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Monday, April 10, 2017

स्कूल चलें हम

सुबह के नौ बजने वाले थे और शीला का कोई अता पता नहीं था। बच्चों को स्कूल भेजने और पति को ऑफिस भेजने के लिए मैने खुद ही कुछ बरतन धोए और उनके लिए नाश्ता तैयार करके उनका लंच बॉक्स पैक किया था। जब सब घर से चले गये तो मैं बेसब्री से शीला का इंतजार करने लगी। मैं सोच रही थी, “इस शीला की बच्ची का कुछ करना पड़ेगा। आए दिन देर से आती है और मेरा सारा रूटीन डिस्टर्ब हो जाता है। हर बार कोई न कोई बहाना बनाती है। आज छोड़ूंगी नहीं। कायदे से उसकी क्लास लगा दूंगी। लेकिन ज्यादा कुछ बोल दिया तो इस्तीफा देने का भी खतरा है। आजकल कामवाली के नखरे बहुत बढ़ गये हैं और शीला जैसी ईमानदार कामवाली तो बड़ी किस्मत से मिलती है। फिर भी उसे थोड़ा रास्ते पर तो लाना ही पड़ेगा।“

मैं यह सब सोच ही रही थी कि कॉलबेल की आवाज आई। जैसे ही मैने दरवाजा खोला तो सामने शीला अपना मुँह लटकाए खड़ी थी। मैने छूटते ही पूछा, “कहाँ थी इतनी देर तक? तुम्हें मालूम है कि सुबह कितना काम रहता है। अब तक आधे बरतन तो मैने ही साफ कर लिए। आज क्या बहाना है तुम्हारे पास?”

शीला ने कुछ नहीं कहा और सुबक सुबक कर रोने लगी। मैने पूछा, “अरे, क्या हुआ? घर में सब ठीक तो हैं? तुम्हारे बच्चों की तबीयत तो सही है?”

शीला ने रोते रोते जवाब दिया, “नहीं दीदी, किसी की तबीयत को कुछ नहीं हुआ और ना ही मेरे मरद ने मेरी कुटाई की है। बस अपनी बेटियों को स्कूल में दाखिला दिलवाने के लिए परेशान हूँ। आपसे एक मदद चाहिए। आप मेरे साथ चलिए और पास के लिटल एंजल स्कूल में बात कर दीजिए। मैं गई थी, तो चौकीदार ने बाहर से ही भगा दिया।“

अब मेरा सारा गुस्सा स्कूल के चौकीदार पर फट पड़ा, “अरे, ऐसे कैसे भगा दिया? स्कूल उसके बाप का है? तुम अपने आदमी को लेकर जाओ।“

शीला ने कहा, “मेरा आदमी कहता है कि स्कूल जाने से क्या होगा। लड़कियाँ हैं, पढ़ लिखकर क्या करना है।“

मैंने उसे बीच में टोकते हुए कहा, “पास में एक सरकारी स्कूल भी तो है। वहाँ क्यों नहीं डाल देती अपनी बेटियों को? पैसे भी बचेंगे। आजकल तो सरकारी स्कूलों में लड़कियों की फीस भी माफ है।“

शीला ने कहा, “पिछले साल डाला तो था सरकारी स्कूल में। वहाँ कुछ पढ़ाते ही नहीं हैं। बस सारा दिन बच्चों से झाड़ू लगवाते हैं या टट्टी साफ करवाते हैं। उससे टाइम मिलता है तो बच्चों की पिटाई कर देते हैं।“

मैने थोड़े आश्चर्य के भाव से कहा, “अच्छा! सरकारी स्कूल की हालत इतनी खराब है। मुझे नहीं पता था। चलो, कोई बात नहीं। तुम फटाफट काम निबटा लो तब तक मैं नहा धोकर तैयार हो जाती हूँ।“

लगभग आधे-पौन घंटे के बाद मैं शीला के साथ पास के ही लिटल एंजेल स्कूल में पहुँच गई। स्कूल का छोटा सा गेट था और गेट के पास एक दो आइसक्रीम के ठेले लगे हुए थे जो कि किसी लोकल ब्रांड का इश्तहार कर रहे थे। उन ठेलों के पास कुछ बच्चे भी मंडरा रहे थे। सभी ने मैले कुचैले ड्रेस पहन रखे थे लेकिन टाई और आई कार्ड गले में बकायदा लटके हुए थे। कुछ बच्चों के पाँव में जूते थे तो कुच के पाँव में हवाई चप्पलें। अंदर जाने पर बहुत शोर शराबा हो रहा था। एक क्लास रूम में झाँकने पर पता चला कि एक टीचर किसी बच्चे पर अपना कहर बरसा रही थी। इस बीच बाकी बच्चे जोर जोर से बातें कर रहे थे। स्कूल के किसी स्टाफ से पूछते हुए हम उसके ऑफिस में पहुँचे। वहाँ पर एक बड़ी सी टेबल पर फाइलों और किताबों के ढ़ेर लगे हुए थे। उनके पीछे एक अधेड़ उम्र का शख्श बैठा था। उसके सिर के बाल लगभग उड़ चुके थे, लेकिन बालों की कमी को पूरा करने के लिए चेहरे पर चार दिन की खिचड़ी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। उसके मुँह से आती बदबू से पता चल रहा था कि वह कोई पान मसाला चबा रहा था। उसके आस पास तीन चार पुरुष खड़े थे और एक महिला भी थी जिसने लंबा सा घूंघट निकाला हुआ था। लेकिन घूंघट के अंदर से ही वह लड़ने के अंदाज में जोर जोर से बोल रही थी। उस आदमी के पीछे एक बड़ा सा नोटिस बोर्ड लगा था। उस बोर्ड पर कई फोटो लगे हुए थे। ज्यादातर फोटो में वही आदमी आस पास के गणमान्य लोगों के साथ पोज देते हुए दिखाई दे रहा था। उन तसवीरों से मैने अनुमान लगाया कि या तो वह स्कूल का हेडमास्टर था या मालिक था। मुझे देखते ही वह खड़ा हो गया और मुझसे बैठने का इशारा किया।

थोड़ी देर बाद उसने मुझसे पूछा, “मैडम, आप हमारे स्कूल में कैसे? मेरा मतलब है, आपके पहनावे से तो लगता है कि आपके बच्चे किसी महंगे स्कूल में पढ़ते होंगे। मेरे स्कूल में तो पास की झोपड़पट्टी के बच्चे ही आते हैं।“

मैने उससे कहा, “बात ऐसी है कि मैं अपनी कामवाली की बेटी के एडमिशन के लिए आई हूँ। ये शीला है और पास में ही रहती है। अगर आप इसकी बेटी को अपने स्कूल में एडमिशन दे दें तो बड़ी मेहरबानी होगी।“

उस आदमी ने जवाब दिया, “हाँ, हाँ, क्यों नहीं। मैं आपको फीस के बारे में बता देता हूँ। एडमिशन चार्ज दस हजा रुपए हैं और मंथली फीस नौ सौ रुपए। किताबों और ड्रेस के पाँच हजार लग जाएँगे और ट्रांसपोर्ट के आठ सौ रुपए। ट्रांसपोर्ट मैंडेटरी है क्योंकि हम चाहते हैं कि हर बच्चा टाइम से स्कूल पहुँचे। इसके अलावा स्कूल में जो हम पेंसिल और रबर देंगे उसके हर महीने के सौ रुपए।“

मैंने कहा, “यह कुछ ज्यादा नहीं लग रहा? ये बेचारी इतने पैसे नहीं दे पाएगी।“

उस आदमी ने कहा, “मैडम, हमें भी तो अपने स्टाफ को सैलरी देनी होती है। फिर मुझे भी तो परिवार चलाना होता है। अब आप कहती हैं तो एडमिशन चार्ज छोड़ दूँगा। लेकिन अगले साल री-एडमिशन चार्ज देना होगा। हमारे जितना सस्ता स्कूल आपको इस इलाके में कहीं नहीं मिलेगा। इसके मुहल्ले के लगभग सभी बच्चे हमारे स्कूल में ही आते हैं।“

मैने कहा, “अगर आप किसी बच्चे से पुरानी किताबें दिलवा देते तो अच्छा होता। इसके कुछ पैसे बच जाते।“

उसने कहा, “नहीं मैडम, ये संभव नहीं है। हम हर साल सारी किताबें किसी नये प्रकाशन की लगाते हैं। इससे बच्चों को लेटेस्ट नॉलेज मिलती है।“


मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उधर शीला का लटका हुआ मुँह देखकर मुझे उसकी परेशानी का अंदाजा हो रहा था। मैंने कहा, “तुम चिंता न करो। किताबों और ड्रेस के पैसे मैं दे दूँगी और तुम्हारी पगार में से नहीं काटूंगी।“ 

Thursday, March 2, 2017

व्रत की तैयारी

शाम का धुंधलका बढ़ रहा था। रेखा सड़क के किनारे लगे ठेले वाले से सब्जियाँ खरीद रही थी। तभी उसके पास एक ऑटोरिक्शा आकर रुका। उसमे से एक चिरपरिचित चेहरे को उतरते देखकर रेखा के मुँह से सहसा निकल गया, “क्या बात है सुनीता, आज कुछ जल्दी नहीं आ गई? तुम तो अक्सर अपने ऑफिस से देर से आती हो।“

सुनीता ने ऑटो वाले को किराया देते देते कहा, “आज बुधवार है न, इसलिए थोड़ा जल्दी आ गई। गुरुवार को मेरा पूरे दिन का उपवास रहता है। उसके लिये आज ही तैयारी करनी होती है।“

“अच्छा, मुझे नहीं पता था कि एक मॉडर्न दिखने वाली महिला जो किसी आइटी कम्पनी में काम करती है, व्रत भी रखती होगी।“

“अरे इसमें कौन सी बड़ी बात है। मैं तो यह व्रत पिछले पंद्रह साल से रखती आई हूँ।“

उसके बाद वहीं पास लगे एक ठेले से सुनीता ने एक दर्जन अंडे खरीदे। उसने एक दूसरे ठेले वाले से चिप्स और नमकीन के पैकेट भी खरीदे। फिर उसने सब्जी वाले से कुछ प्याज, टमाटर, धनिया वगैरह लिये और अपनी हाउसिंग सोसाइटी के गेट की तरफ चल पड़ी। साथ साथ रेखा भी चल रही थी। रेखा ने पूछा, “तुम तो बता रही थीं कि व्रत की तैयारी करनी है। फिर ये अंडे किस लिये? लगता है तुम्हारे पति और तुम्हारी बेटी को अंडे बहुत पसंद हैं।“

सुनीता ने हँसते हुए जवाब दिया, “अरे नहीं, हर बुधवार को मैं पहले तो डटकर नमकीन और चिप्स खाती हूँ। फिर कुछ अंडों से ऑमलेट बना कर खाती हूँ। फिर अंडा करी और चावल बनाती हूँ और उसका लुत्फ उठाती हूँ।“

रेखा ने बीच में टोका, “लेकिन व्रत से ठीक एक दिन पहले मांसाहारी भोजन खाना सही नहीं होता है।“

सुनीता ने कहा, “ऐसा किस ग्रंथ में लिखा है? गुरुवार को पूरे दिन भूखे प्यासे ऑफिस में काम करो। फिर शाम को आकर साबूदाने की खीर खाओ जिससे उबकाई आ जाए। इसलिए एक दिन पहले तो ठीक से खाना बनता है।“


रेखा ने दबी जुबान से कहा, “क्या बात है। व्रत की तैयारी तो कोई तुमसे सीखे।“ 

Thursday, January 12, 2017

टायर जलाना मना है

रामकली चूल्हे पर चाय चढ़ाती हुई जोर से चिल्लाई, “अब उठो भी। दिन चढ़ने को आ रहा है। फटाफट नहाधोकर तैयार हो जाओ। तब तक मैं नाश्ते के लिए चाय रोटी बना देती हूँ।“

रामकली के पति; मंगरू ने रजाई में और दुबकते हुए कहा, “अरे इतनी कड़ाके की सर्दी में भला कौन काम पर जाता है। वैसे भी जब से नोटबंदी हुई है तब से रोज रोज काम भी तो नहीं मिलता। आज हिम्मत नहीं हो रही है, घर से बाहर निकलने की।“

“तो फिर पूरे दिन खटिया तोड़ने का विचार बना रखा है। अच्छा है, तुम्हें तो छुट्टी के लिए किसी को अर्जी भी नहीं देनी है। ऐसा करो, बाहर एक अलाव जला लो। आग की गर्मी मिलेगी तो ठंड से कुछ राहत मिलेगी।“

मंगरू ने यह सुनते ही अपने बेटे को आवाज लगाई, “अरे ओ हरिया, अरे कहाँ मर गया रे। छप्पर पर एक पुरानी टायर रखी थी। उतार उसको, आज उसी का अलाव बनेगा।“

थोड़ी देर में छप्पर पर चरर मरर की आवाज हुई और उसके बाद जमीन पर किसी बड़ी चीज के गिरने की धम्म से आवाज हुई। मंगरू लपककर बाहर आया ताकि उसके पहले कोई उसकी पुरानी टायर को न हथिया ले। उसकी टूटी फूटी झोपड़ी टिन और लकड़ी के बोर्ड से बनी हुई थी। उसका दरवाजा ठीक गली में खुलता था। एक अच्छी बात ये थी कि उस गली से होकर इक्के दुक्के लोग ही आया जाया करते थे इसलिए उसमें अधिक चहल पहल नहीं होती थी। गली के दोनों किनारों पर झुग्गी झोपड़ियाँ इतनी अधिक थीं कि कोई भी भलामानुष उस गली में आने की हिम्मत ही न करे। यह झोपड़पट्टी पूरे इलाके में नशाखोरों और जुए के लिए बदनाम थी।

मंगरू ने थोड़ी घास फूस और सूखी टहनियों की सहायता से जल्दी ही टायर को सुलगा लिया। टायर धू धू कर जल रहा था। मंगरू और उसके परिवार के अलावा और भी कई लोग उस जलते टायर के इर्द गिर्द बैठ गये। टायर जलने की तेज बदबू से भी उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं आ रही थी। ऐसा उनकी वर्षों की प्रैक्टिस के कारण संभव हो पा रहा था।

उनमें से हर किसी को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे सब सीधा अपने बिस्तर से ही उठकर आ गये थे। उनमें ज्यादातर लोगों की शकल से पता चलता था कि इस कड़ाके की सर्दी में किसी को भी नहाए हुए दस दिन से अधिक बीत चुके थे। गरमागरम चाय और रोटी का नाश्ता पेट में जाने के बाद मंगरू की नींद पूरी तरह से खुल चुकी थी। थोड़ी देर देश और समाज की दुर्दशा पर चर्चा करने के बाद मंगरू अपने कुछ दोस्तों के साथ ताश खेलने में मगन हो गया। तब तक उसकी बीबी अपने काम पर निकल चुकी थी। वह पास के ही पक्के मकानों में झाड़ू पोछे का काम करती थी।

अभी ताश के एक दो ही हाथ हुए थे कि गली की एक छोर से कुछ कोलाहल सुनाई दिया। मंगरू और उसके दोस्तों ने जब उधर देखा तो पाया कि आगे-आगे दो आदमी चल रहे थे जो पैंट शर्ट कोट और चमचमाते हुए जूते पहने हुए थे। उनके पीछे-पीछे उसी झोपड़पट्टी के कई लोग हो हल्ला करते हुए इधर ही आ रहे थे। थोड़ी ही देर में वह भीड़ मंगरू के पास आ गई। उन दोनों के हाथ में एक एक लाल डायरी थी और दूसरे हाथ में कलम। दोनों बड़े ही रोबदार किस्म के लग रहे थे। उन्हें पास पहुँचते देख, मंगरू और उसके साथी हाथ जोड़कर बड़े अदब से खड़े हो गये। उन रोबदार किस्म के लोगों में से एक ने कहा, “किसकी परमिशन से तुमने ये टायर जलाया है?”

मंगरू ने सकपकाते हुए कहा, “अरे साहब, सर्दी बहुत थी तो सोचा अलाव जला लें............”

उस आदमी ने गरजते हुए कहा, “जानते नहीं, टायर या लकड़ी या सूखे पत्ते जलाना मना है। हमलोग नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से आये हैं। टायर जलाने के अपराध में तुम्हें पाँच हजार रुपए जुर्माना या छ: महीने की जेल या दोनों हो सकती है।“

मंगरू ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “साहब, ई कानून कब बन गया हमको पता ही नहीं चला। लेकिन हम गरीब आदमी हैं। हमारे पास तो ढंग की रजाई या कम्बल भी नहीं है। एक आग ही सहारा है जो इस कड़ाके की सर्दी में हमारी जान बचा सकती है।“

उस अफसर से दिखने वाले आदमी ने कहा, “कानून अमीर या गरीब में फर्क नहीं देखता है। अपराध किया है तो सजा भी मिलेगी। थाने चलो, नहीं तो अभी पुलिस बुला लूँगा।“

मंगरू का एक दोस्त इस बीच आगे आ गया। उसका नाम बुझावन था। बुझावन अपने आप को औरों से समझदार समझता था। उसने झटपट दो कुर्सियाँ वहाँ पर रख दी और कहा, “अजी साहब, आप तो सरकार हैं। आपका हुकम सर माथे पर। पुलिस बुलवाने की इतनी भी क्या जल्दी है। इतनी जबरदस्त ठंढ़ पड़ रही है। पहले बैठकर थोड़ा आग ताप लीजिए। शरीर में थोड़ी गरमाहट आ जाएगी, फिर आगे की कार्रवाई कर लीजिएगा।“

थोड़ी ना नुकर करने के बाद वे दोनों कुर्सियों पर बैठ गये और आग सेंकने लगे। अब आदत न होने की वजह से जलते टायर की बदबू उनकी बरदाश्त से बाहर हो रही थी। ऐसा देखकर बुझावन ने टायर की मदद से कुछ लकड़ियाँ सुलगाई और फिर टायर को वहाँ से हटवा दिया।“उसके बाद दोनों आदमी जो अफसर जैसे दिख रहे थे, आग तापने का मजा लेने लगे। इस बीच मंगरू और उसके दोस्तों ने उनके लिये अंगूर की बेटी का इंतजाम भी कर दिया जिसे कि ठंढ़ के मौसम में फायदेमंद माना जाता है। 

लगभग एकाध घंटे बिताने के बाद वे दोनों अफसर वहाँ से उठे और मंगरू से कहा, “भैया, जाड़े में तो आग तापने की जरूरत होती ही है। लेकिन थोड़ा बचाकर किया करो। झोपड़ी की ओट में करोगे तो किसी की नजर नहीं लगेगी। अब क्या करें, सरकार ने कानून बना दिया है सो इंसपेक्शन में जाना ही पड़ता है।“  

Saturday, January 7, 2017

साढ़े चार हजार रुपए

सुबह के दस बजने वाले थे। चिंटू और बंटी सेंट्रल मॉल के पास पहुँचे ही थे। चिंटू ने पार्किंग में बाइक लगाई और सीधा सामने वाले एटीएम की ओर देखा। एटीएम के बाहर सन्नाटा देखकर उसका दिल धक से रह गया।

चिंटू के चेहरे के भाव को पढ़कर बंटी ने कहा, “लगता है तुम्हें भी वही आशंका हो रही है जो मुझे हो रही है।“

चिंटू ने कहा, “हाँ लगता है एटीएम में पैसे नहीं हैं। अब क्या करें?”

बंटी ने कहा, “कहने को तो इस मार्केट में लगभग बीस एटीएम हैं लेकिन ये इकलौता एटीएम है जिसने लगभग हर दिन सही काम किया है। आज तो इसने भी धोखा दे दिया।“

चिंटू ने कहा, “इतनी जल्दी हताश नहीं होते। चलो, पास चलकर पता करते हैं।“

फिर दोनों सड़क पार करते हुए उस एटीएम के पास पहुँचे। तभी उन्हें अंदर से दरबान बाहर निकलता हुआ दिखाई दिया। चिंटू ने दरबान से पूछा, “भैया, क्या हुआ? आज पैसे नहीं आये?”

दरबान ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा, “नहीं साहब, आज पैसे भी आये हैं और एटीएम भी काम कर रहा है। एक जनवरी के बाद से हालत में बहुत सुधार आ गया है। अब पाँच पाँच घंटे लाइन लगने की जरूरत नहीं है।“

चिंटू ने कहा, “अच्छा, बड़ी अच्छी बात है। वैसे, कितने पैसे निकल रहे हैं अब?”

दरबान ने कहा, “अब तो साढ़े चार हजार निकल रहे हैं, वो भी पाँच सौ के नोट।“

बस फिर क्या था, चिंटू और बंटी लपक कर एटीएम केबिन के अंदर चले गये। पलक झपकते ही दोनों ने साढ़े चार-चार हजार रुपये निकाल लिये। दोनों की खुशी का ठिकाना न था। बाहर आते-आते बंटी बता रहा था, “याद है? लगभग दस दिन पहले हमारी क्या हालत हुई थी? इस एटीएम के पास सुबह दस बजे से तीन बजे तक खड़े रहने के बाद पता चला था कि पैसे खत्म हो गये।“

चिंटू ने कहा, “हाँ, उसके बाद हम पास में यूनियन बैंक की एटीएम के पास तीन घंटे लाइन में लगे थे। हमारा नंबर आने ही वाला था कि सर्वर फेल हो गया था। फिर हमलोग खाली हाथ वापस लौट गये थे।“

बंटी ने कहा, “हाँ और फिर अगले दिन फिर इसी एटीएम के पास शाम के पाँच बजे तक लाइन में खड़े होने के बावजूद पैसे नहीं मिले थे।“

चिंटू ने कहा, “आखिरकार तीसरे दिन हम पैसे निकालने में कामयाब हुए थे, वो भी केवल दो हजार रुपए।“

रुपए निकालने के बाद दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा। दोनों भाइयों की आँखें नम हो रहीं थीं। चिंटू ने कहा, “याद है, एक दिन पैसे की कमी के कारण हमें बिना बटर के ही ब्रेड खानी पड़ी थी।“
बंटी ने कहा, “हाँ, वो भी तब जब हमारे खाते में पैसे भी थे और हमारा एटीएम कार्ड भी पास में ही था।“

चिंटू ने कहा, “हद तो तब हो गई थी जब पास में पैसे न होने की वजह से मैं नौकरी के लिए इंटरव्यू देने नहीं जा पाया था।“

बंटी ने कहा, “सोचो, आज डेमोक्रेसी के जमाने में ये हालत है। मैं तो यही सोचकर डर जाता हूँ कि किसी सनकी राजा के जमाने में लोगों की क्या हालत होती होगी।“

चिंटू ने कहा, “जो हुआ उसे भूलने में ही भलाई है। पास्ट या फ्यूचर के बारे में सोचने की बजाय हमें प्रेजेंट को एंजॉय करना चाहिए। चलो, मैकडॉनल्ड चलते हैं। एक एक बर्गर खाएँगे।“

बंटी ने कहा, “सिर्फ बर्गर क्यों? चलो पूरा मील खाते हैं। आज इतनी ट्रीट तो बनती ही है।“


फिर दोनों पास के ही मैकडॉनल्ड के रेस्तरां में गये। वहाँ पर उन्होंने बर्गर इस तरह से खाया जैसे कि पहले कभी न खाया हो।

थोड़ी देर के बाद दोनों वापस अपने घर पहुँच गये। चिंटू ने अपनी माँ को साढ़े आठ हजार रुपये दिये और कहा, “माँ, आज तो कमाल हो गया। आज एटीएम के बाहर एक भी आदमी नहीं था। और तो और, पैसे भी आज ज्यादा निकल रहे थे। एक कार्ड से साढ़े चार हजार रुपये। हम दोनों ने मिलकर नौ हजार रुपये निकाल लिये। अब तुम आराम से कामवाली, पेपर वाले, पानी वाले, दूधवाले और गाड़ी पोंछने वाले को पैसे दे सकती हो।“

उनकी माँ ने पैसे लेते हुए पूछा, “लेकिन तुम तो केवल साढ़े आठ हजार ही दे रहे हो। बाकी के पाँच सौ कहाँ गये?”

बंटी ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा, “वो ऐसा हुआ कि इतनी आसानी से पैसे निकल जाने से हम बहुत खुश हो गये। फिर हमलोग मैक डॉनल्ड में चले गये। दोनों ने पूरी की पूरी मील खा ली। उसी में पैसे खर्च हो गये। लेकिन तुम चिंता ना करो। मैं कल फिर जाकर नौ हजार और निकाल लाउँगा।“

उनकी माँ ने कुछ नहीं कहा। बस दोनों के गालों पर एक हल्की सी चपत जड़ दी। 

Monday, January 2, 2017

Tale of Ramayana with a twist

You must be aware that Dashrath was a great king. Being a king, he was never far from various pleasures of life. Taking things to the next level, Dashrath was married to three wives and was thus trying to keep the practice of polygamy live and kicking. Handling and maintaining even a single wife can be an uphill task for mere mortals like us. But it was not the case for the undisputed king of Ayodhya. However, things remain in your favour till you are young. Once the old age begins to take over your life, everything can go out of control.

King Dashrath was getting old. His eldest son was also the son of the first queen of Dashrath. Hence, the eldest son Ram was logical choice to take over the reins from Dashrath. Dashrath was also thinking about the succession plan and had discussed the matter with his ministers to make it a smooth transfer of power to the next generation. But when power is at stake, then many claimants to the throne can crop up as surprise packs. While Dashrath was busy in chalking out the plans for transfer of power to his eldest son, a message from the royal palace was conveyed to Dashrath. The message was about the blue mood of his favourite queen Kaikeyi.

Kaikeyi wanted the kingdom for her son Bharat so that she could enjoy the majority stake in power. Dashrath had to finally give in to strong arm tactics of Kaikeyi. But he was not sure how to get Ram to agree to the changed equations of power. Ram had already been doing some groundwork for his eventual ascension to the throne. He was keenly pursuing all the activities to raise his TRP among the public. Dashrath was aware about Ram’s growing rank in the popularity charts.

After many rounds of conferences with his trusted ministers, Dashrath decided to use his veto power to remove Ram from the power equation. It was decided to send Ram into exile for a long period so that Ram’s name could be erased from public memory.

Ram was promptly called to the royal court so that Dashrath could tell him in plain and harsh words about the new succession plan. When Ram got the message about King’s desire to meet him, Ram was unable to control his emotions. He was almost sure that he would be getting the baton in his hands to continue the rich legacy of the Raghukul. So, Ram dressed in his finest dress. It was made from the finest silk from the famous Silk bazaar of Varanasi. Ram also used copious amount of floral perfume to make a lasting impression in the royal court.

When Ram entered the royal court, he did not get the rousing reception as he had expected. Nevertheless, Ram tried to maintain his composure and sat on a seat which was designated for the eldest prince. Dashrath spoke in his choked voice, “Ram, there is good news and a bad news. The good news is that we have finalized the succession plan. But the bad news is you are not going to be the next king of Ayodhya. You may recall that I was bound to a promise which I had given to Kaikeyi during an epic battle. To keep my words, I could not refuse Kaikeyi’s demand. So, I have decided to hand over the reins of this kingdom to your beloved brother Bharat. You will agree that no king in this world wants to have a constant threat of a parallel centre of power. So, the whole council of ministers has decided that you will have to live in exile for fourteen years. You will have to immediately leave the boundaries of this great kingdom. You will have to live in jungle for fourteen years. After that, if situations would permit you may try your luck at making a shot for the king’s throne.”

After that short speech, everyone in the royal court was stunned. There was pin drop silence in the royal court. But Ram appeared as confident as ever. Without batting an eyelid, he said, “I have all the respect for you because you are my father and you are the king of Ayodhya. But I beg to differ from you on this issue. You will agree that in every era a time comes when the older generation has to make way for the newer generation. Our sacred texts have also mentioned the concept of four Ashramas. The time has come for you to take sanyas or detachment from worldly matters. I am the most eligible choice to be the next king of Ayodhya. Moreover, I have been doing so many works of public welfare for no reason. I had been doing everything so that the common people of this great empire will not have problem in accepting me as their new king. Even during my days in the gurukul, I was given the award of the best student. Bharat was way behind me in the rankings. I am sure you will not become a fan of your eldest son if he ends up meekly surrendering to any challenge. So, I have decided that I will be the next king of this kingdom and will not allow anybody else to take my position. I think, this will benefit the kingdom in the long run. This will also be good for your reputation as a great king. I am confident that the council of ministers will give a majority vote in my favour.”

After that, Ram arranged for a show of strength in the royal court. To Dashrath’s great surprise, majority of the members in the court said yes in Ram’s favour. It was a bolt from the blue for Dashrath. Dashrath could not withstand that sudden onslaught on his authority. He started sweating profusely. His heart was beating at double the normal rate of seventy two beats per minute. Within no time, he fell on his seat and became unconscious.


Dashrath’s lifeless body was promptly removed from the scene and was carried to the palace so that the royal doctors could attend to him. Meanwhile, Ram lost no time in sitting on the royal throne. After that, Ram announced his first major ordinance, “It is for the benefit of the great kingdom of Ayodhya. Bharat and his mother Kaikeyi will be sent to exile with immediate effect. I don’t want any parallel centre of power in this kingdom. If anybody has a problem with this ordinance, he is free to go along with Bharat and his mother. Times have changed and you should be well aware of the real boss.” 

Wednesday, December 28, 2016

नोटबंदी और द्रौपदी

रात के आठ बजने वाले थे। पाँचों पांडवों को भोजन कराने के बाद द्रौपदी ने अपने और कुंती के लिए भोजन परोसा और खाने बैठ गई। तभी कुटिया के बाहर से संजय की आवाज सुनाई दी। यह वह समय होता था जब संजय पूरे दिन की बड़ी खबरों का सीधा प्रसारण करने के लिए पांडवों की अज्ञातवास की कुटिया में आते थे। सबने संजय का स्वागत किया और उन्हें बैठने के लिए आसन दिया।

बैठते ही संजय की आँखों से रोशनी की एक चमकदार किरण निकली और कुटिया की दीवार से टंगी धोती पर रंग बिरंगे इश्तहार दिखने लगे। तीर धनुष, साड़ी धोती और रथों के पहिये के इश्तहारों के बाद उस परदे पर महाराज धृतराष्ट्र का चिर परिचित चेहरा दिखाई दिया। संजय ने बताया कि महाराज धृतराष्ट्र कोई बड़ी घोषणा करने वाले थे।

धृतराष्ट्र की तल्ख आवाज गूँजने लगी, “मेरी प्यारी प्रजा के नर नारियों। आज मैं एक बड़ी घोषणा करने जा रहा हूँ। आज मध्यरात्रि के बाद वर्तमान में चलने वाली सारी स्वर्ण मुद्राएँ बंद हो जाएँगी। जिनके पास धेला या छदाम है उन्हें चिंता की कोई जरूरत नहीं है। जिनके पास स्वर्ण मुद्राएँ हैं उनके लिए अब बुरे दिन आने वाले हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि राज्य और उसके आस पास के इलाके में रहने वाले अपराधी तत्वों और बेईमानों को पकड़ा जा सके। ऐसे अपराधी और बेईमान स्वर्ण मुद्राओं का इस्तेमाल बड़े बड़े अपराधों को अंजाम देने के लिए करते हैं। जो इमानदार हैं उन्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है। वे कल से अगले पचास दिनों तक अपनी स्वर्ण मुद्राओं को राजसी खजाने में जमा कराकर बदले में नई मुद्राएँ प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा कठोर कदम इसलिए उठाना पड़ रहा है ताकि आर्यावर्त फिर से महान बन जाए।“


समाचार समाप्त होने के बाद संजय वहाँ से प्रस्थान कर गये। उसके बाद पांडव बड़े चिंतित भाव से मंत्रणा करने लगे। अर्जुन ने कहा, “भ्राता युधिष्ठिर, बड़ी मुश्किल से तो धन इकट्ठा किया था ताकि दिव्यास्त्र खरीद सकूँ। अब क्या होगा?”

युधिष्ठिर ने कहा, “अब इस पर हम क्या कर सकते हैं। तुम सबसे कुशल योद्धा हो। अब तुम ही कोई मार्ग ढ़ूँढ़ो।“

भीम ने नथुने फड़काते हुए कहा, “भ्राता श्री, यह आदेश महाराज ने हमें परेशान करने के लिए किया है। वे नहीं चाहते हैं कि हम अपना अज्ञातवास सफलतापूर्वक पूरा करें। आप आदेश करें तो मैं अभी जाकर धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों की हड्डियाँ तोड़ दूँ।“

इस बीच नकुल और सहदेव माता कुंती की गोद में सिर रखकर कब गहरी निद्रा में चले गये पता ही नहीं चला। कुंती ने कहा, “आपको अपने अस्त्रों की पड़ी है। मुझे तो यह चिंता खाये जा रही है कि कल से भोजन का प्रबंध कैसे करूँगी। वन के बाहर जो लोभी वनिक रहता है वह हर वस्तु के दाम स्वर्ण मुद्राओं में ही लेता है। उसे भली भाँति हमारी असलियत मालूम है। अब स्वर्ण मुद्राओं के बगैर वह राशन देने से भी मना कर देगा। महाराज ने यह आदेश केवल हमलोगों को तबाह करने के लिए दिया है।“

उसके बाद द्रौपदी और उसका पूरा परिवार भगवान कृष्ण को याद करते हुए लगान फिल्म का ये गाना गाने लगे, “ओ पालन हारे, निर्गुण और न्यारे, तुम बिन हमरा कौन न रे .............”

अपनी आराधना से प्रसन्न होकर कृष्ण भगवान तत्क्षण वहाँ प्रकट हो गये और द्रौपदी से पूछा, “हे सखी, तुम इतनी कातर मुद्रा से मुझे क्यों याद कर रही हो?”

जब द्रौपदी ने उन्हें सारी बात सुनाई तो कृष्ण के चेहरे पर एक भीनी सी मुसकान फैल गई। कृष्ण ने कहा, “अब महाराज का आदेश तो मैं भी नहीं टाल सकता। तुम कहो तो तुम्हारी स्वर्ण मुद्राओं के बदले में मैं धेले और छदाम की व्यवस्था कर दूँगा। मेरा एक मित्र है जो कुबेर के यहाँ टकसाल में काम करता है।“

इस पर युधिष्ठिर ने कहा, “लेकिन इस कार्य में खतरा है। इतनी सारी स्वर्ण मुद्राओं के बदले में जो धेले और छदाम मिलेंगे उन्हें लाने के लिए तो बैलगाड़ियों का एक बड़ा कारवाँ बुलाना पड़ेगा। हर ओर कड़ा पहरा है। महाराज धृतराष्ट्र को तुरंत पता लग जायेगा।“

द्रौपदी ने कहा, “हे कृष्ण, आप कोई जुगाड़ क्यों नहीं करते जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।“
द्रौपदी की बात सुनकर कृष्ण मुसकाए और अपना हाथ ऊपर हवा में किया। आसमान से एक चमकीली किरण आई और फिर कृष्ण के हाथ में पीतल का एक चमचमाता हुआ बड़ा सा कटोरा आ गया। कृष्ण ने वह कटोरा द्रौपदी को सौंपते हुए कहा, “हे सखी, ये अक्षय पात्र है। इसमें से तुम जितना चाहे उतना भोजन प्राप्त कर सकती हो। अब तुम्हें उस वणिक के आसरे की आवश्यकता नहीं होगी।“

इस तरह से द्रौपदी और उसके परिवार के लिए भोजन की समस्या समाप्त हो गई। वे बड़े आराम से अपना अज्ञातवास व्यतीत कर रहे थे। उधर महाराज धृतराष्ट्र चिंतित हो रहे थे क्योंकि पांडवों का कोई अता पता नहीं था। उनके गुप्तचरों ने सूचना दी थी कि पांडव बड़े आराम से अपने दिन बिता रहे थे। बीच बीच में वे हजारों की संख्या में साधु संतों को भी भोजन करवा रहे थे। पचास दिन पूरे होने वाले थे। पांडवों को गिरफ्तार करने की व्याकुलता में महाराज धृतराष्ट्र ने एक और बड़ी घोषणा कर दी, “मुद्राबंदी के पचास दिन पूरे होने के पश्चात जिस किसी के पास से पुरानी स्वर्ण मुद्राएँ मिलेंगी उसे पूरे परिवार के साथ आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी।“

Monday, December 19, 2016

टेम्पलेट से परेशानी

यदि आप इस ब्लॉग को पढ़ रहे हैं तो इससे यह साबित होता है कि आप कम्प्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल बखूबी जानते हैं। इससे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि आप टेम्पलेट का इस्तेमाल भी करते होंगे। कुछ लोग टेम्पलेट का इस्तेमाल थोड़ा बहुत करते होंगे तो कुछ लोग बहुत अधिक करते होंगे। सबकी अपनी अपनी पसंद के हिसाब से टेम्पलेट इस्तेमाल करने की आदत होती है और इसके खिलाफ अभी तक हमारे देश में कोई बैन भी नहीं लगा है। लेकिन मुझे लगता है कि कुछ गंभीर विषयों के मामलों में टेम्पलेट के इस्तेमाल से बचना चाहिए। लेकिन हमारे राजनेता तो अपना पूरा करियर टेम्पलेट के सहारे ही चला लेते हैं। इसका यदि आप एक उदाहरण खोजने निकलेंगे तो आपको हजार उदाहरण मिलेंगे।

गांधीजी के बारे में कहा जाता है कि वे टॉल्सटॉय से बहुत प्रभावित थे। टॉल्सटॉय की तर्ज पर गांधीजी एक ऐसे समाज की परिकल्पना करते थे जिसमें हर व्यक्ति एक समान होगा। ऐसा ही खयाल समाजवाद के शुरुआती प्रैक्टिशनरों का भी था। लेनिन और स्टालिन भी किसी ऐसे ही समाज का निर्माण करना चाहते थे। सोवियत रूस के विघटन के बाद यह साबित हो गया कि ऐसे समाज का चित्र कितना भी रोमांचकारी क्यों न हो, ऐसा समाज बनाना असंभव है। आज दुनिया के कुछ मुट्ठी भर देशों को छोड़कर कहीं भी समाजवादी सरकार नहीं है। चीन में सत्ता तो समाजवादी सोच वाली पार्टी की है लेकिन वहाँ भी पूँजीवाद ही हावी है। हमारे उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी की सरकार होने के बावजूद समाजवादी परिवार में भी पूँजीवाद का ही बोलबाला है। बहरहाल, गांधीजी हर घर में एक कुटीर उद्योग लगवाना चाहते थे। गांधीजी ने शायद हेनरी फोर्ड के आधुनिक मैनेजमेंट के बारे में नहीं पढ़ा होगा। उस समय भारत के समाज और आर्थिक व्यवस्था की स्थिति के बारे में मुझसे ज्यादा जानकारी गांधीजी को रही होगी। हो सकता है कि उस जमाने के हिसाब से उनकी सोच भी सही रही होगी। लेकिन तब से लेकर आजतक जमाना बदल चुका है। फिर भी हमारे आधुनिक नेता गांधीजी के दिये टेम्पलेट का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। वे गांधीजी की तरह लंगोट तो नहीं पहनते लेकिन जैसे ही कोई आदमी राजनीति में आता है तुरंत वह धोती कुर्ता या पाजामा कुर्ता धारण कर लेता है। हो सकता है कि गांधीजी के जमाने में हिंदुस्तान के ज्यादातर लोग धोती कुर्ता या पाजामा कुर्ता पहनते रहे होंगे। लेकिन आज अगर आप गाँव में भी चले जाएँ तो ज्यादातर लोग आपको जींस टीशर्ट में मिलेंगे। एक खास उम्र से नीचे के लोग आपको शॉर्ट्स में ही नजर आएँगे। अरविंद केजरीवाल जब राजनीति में आये थे तो उनसे कुछ उम्मीद बनी थी। लेकिन उनकी जरूरत से ज्यादा ढ़ीली शर्ट देखकर लगता है कि गांधीजी के टेम्पलेट में उन्होंने दिल्ली के हिसाब से बदलाव भर कर दिया है। अखिलेश यादव और राहुल गांधी भारत की राजनीति के हिसाब से अभी युवा हैं। लेकिन ये दोनों भी कुर्ता पायजामा ही धारण करते हैं। बीजेपी के नेताओं के परिधान भी पारंपरिक ही होते हैं लेकिन कुछ डिजायनर किस्म के। अब इन नेताओं को कौन समझाए कि भारत बदल चुका है और अब ज्यादातर लोग पारंपरिक परिधान किसी खास मौके पर ही धारण करते हैं। जिस दिन देश के नेता यहाँ के आम लोगों जैसे पोशाक पहनने लगेंगे उस दिन हमारी समस्या काफी कुछ हल हो जायेगी।

गांधीजी गरीबों के बारे में बहुत कुछ सोचते थे। उनका मानना था कि कुटीर उद्योग से गरीबी दूर होगी। उनके टेम्पलेट को इंदिरा गांधी एक नये मुकाम पर तब ले गईं जब उन्होंने गरीबी हटाओका नारा दिया। ये बात और है कि अभी भी भारत में गरीबी मौजूद है। मजा तो तब आता है जब कोई नेता डिजायनर जैकेट के साथ कुर्ते पाजामे में किसी हवाई जहाज या हेलिकॉप्टर से उतरता है और अपने आप को गरीबों का सबसे बड़ा रहनुमा बताता है।

एक और कमाल का टेम्पलेट सम्राट अशोक ने बनाया था जिसकी नकल आज के नेता जमकर करते हैं। माना जाता है कि अशोक वह पहला राजा था जिसने जनता तक अपना संदेश पहुँचाने के लिए मास मीडिया का इस्तेमाल किया था। उस समय होर्डिंग का फैशन नहीं आया था इसलिए अशोक ने बड़े बड़े शिलालेख लगवाये जिनपर संदेश खुदे होते थे। उस जमाने में इस काम में कितना  खर्चा आया होगा, कितने का घोटाला हुआ होगा, ट्रैफिक को कितनी बाधा पहुँची होगी, ये सब बताना बहुत मुश्किल है। लेकिन आज के जमाने में मास मीडिया में विज्ञापन देने में करोड़ों का खर्चा आता है। इसमें नीचे स्तर के नेताओं में कुछ न कुछ बंदरबाँट भी होती होगी। कई शहरों में तो नेताओं की होर्डिंग ठीक ट्रैफिक साइन के ऊपर या मुहल्लों या शहरों का रास्ता बताने वाले बोर्ड के ऊपर ही लगा दी जाती है। इससे लोगों को अच्छी खासी परेशानी होती है। कई बार तो अखबार का कवर देखकर शक होने लगता है कि गलती से अखबार वाले ने अखबार की जगह किसी पार्टी का घोषणापत्र तो नहीं डाल दिया।


इन सबसे होता कुछ भी नहीं है। गरीब आज भी गरीब ही हैं। लोग आज भी भूखमरी से मर रहे हैं। भारत अभी भी स्वच्छ नहीं हो पाया है। यह सब टेम्पलेट इस्तेमाल करने के साइड इफेक्ट हैं। जिस दिन हमारे नेता सामान्य लोगों की तरह कपड़े पहने लगेंगे, जिस दिन पुलिस वाले हेल्मेट पहनकर बाइक चलाने लगेंगे, उस दिन हमारी ज्यादातर समस्याएँ अपने आप दूर हो जाएँगी।