रात के आठ बजने वाले थे। पाँचों पांडवों को भोजन कराने के बाद द्रौपदी ने अपने और कुंती के लिए भोजन परोसा और खाने बैठ गई। तभी कुटिया के बाहर से संजय की आवाज सुनाई दी। यह वह समय होता था जब संजय पूरे दिन की बड़ी खबरों का सीधा प्रसारण करने के लिए पांडवों की अज्ञातवास की कुटिया में आते थे। सबने संजय का स्वागत किया और उन्हें बैठने के लिए आसन दिया।
बैठते ही संजय की आँखों से रोशनी की एक चमकदार किरण निकली और कुटिया की दीवार से टंगी धोती पर रंग बिरंगे इश्तहार दिखने लगे। तीर धनुष, साड़ी धोती और रथों के पहिये के इश्तहारों के बाद उस परदे पर महाराज धृतराष्ट्र का चिर परिचित चेहरा दिखाई दिया। संजय ने बताया कि महाराज धृतराष्ट्र कोई बड़ी घोषणा करने वाले थे।
धृतराष्ट्र की तल्ख आवाज गूँजने लगी, “मेरी प्यारी प्रजा के नर नारियों। आज मैं एक बड़ी घोषणा करने जा रहा हूँ। आज मध्यरात्रि के बाद वर्तमान में चलने वाली सारी स्वर्ण मुद्राएँ बंद हो जाएँगी। जिनके पास धेला या छदाम है उन्हें चिंता की कोई जरूरत नहीं है। जिनके पास स्वर्ण मुद्राएँ हैं उनके लिए अब बुरे दिन आने वाले हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि राज्य और उसके आस पास के इलाके में रहने वाले अपराधी तत्वों और बेईमानों को पकड़ा जा सके। ऐसे अपराधी और बेईमान स्वर्ण मुद्राओं का इस्तेमाल बड़े बड़े अपराधों को अंजाम देने के लिए करते हैं। जो इमानदार हैं उन्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है। वे कल से अगले पचास दिनों तक अपनी स्वर्ण मुद्राओं को राजसी खजाने में जमा कराकर बदले में नई मुद्राएँ प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा कठोर कदम इसलिए उठाना पड़ रहा है ताकि आर्यावर्त फिर से महान बन जाए।“
समाचार समाप्त होने के बाद संजय वहाँ से प्रस्थान कर गये। उसके बाद पांडव बड़े चिंतित भाव से मंत्रणा करने लगे। अर्जुन ने कहा, “भ्राता युधिष्ठिर, बड़ी मुश्किल से तो धन इकट्ठा किया था ताकि दिव्यास्त्र खरीद सकूँ। अब क्या होगा?”
युधिष्ठिर ने कहा, “अब इस पर हम क्या कर सकते हैं। तुम सबसे कुशल योद्धा हो। अब तुम ही कोई मार्ग ढ़ूँढ़ो।“
भीम ने नथुने फड़काते हुए कहा, “भ्राता श्री, यह आदेश महाराज ने हमें परेशान करने के लिए किया है। वे नहीं चाहते हैं कि हम अपना अज्ञातवास सफलतापूर्वक पूरा करें। आप आदेश करें तो मैं अभी जाकर धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों की हड्डियाँ तोड़ दूँ।“
इस बीच नकुल और सहदेव माता कुंती की गोद में सिर रखकर कब गहरी निद्रा में चले गये पता ही नहीं चला। कुंती ने कहा, “आपको अपने अस्त्रों की पड़ी है। मुझे तो यह चिंता खाये जा रही है कि कल से भोजन का प्रबंध कैसे करूँगी। वन के बाहर जो लोभी वनिक रहता है वह हर वस्तु के दाम स्वर्ण मुद्राओं में ही लेता है। उसे भली भाँति हमारी असलियत मालूम है। अब स्वर्ण मुद्राओं के बगैर वह राशन देने से भी मना कर देगा। महाराज ने यह आदेश केवल हमलोगों को तबाह करने के लिए दिया है।“
उसके बाद द्रौपदी और उसका पूरा परिवार भगवान कृष्ण को याद करते हुए लगान फिल्म का ये गाना गाने लगे, “ओ पालन हारे, निर्गुण और न्यारे, तुम बिन हमरा कौन न रे .............”
अपनी आराधना से प्रसन्न होकर कृष्ण भगवान तत्क्षण वहाँ प्रकट हो गये और द्रौपदी से पूछा, “हे सखी, तुम इतनी कातर मुद्रा से मुझे क्यों याद कर रही हो?”
जब द्रौपदी ने उन्हें सारी बात सुनाई तो कृष्ण के चेहरे पर एक भीनी सी मुसकान फैल गई। कृष्ण ने कहा, “अब महाराज का आदेश तो मैं भी नहीं टाल सकता। तुम कहो तो तुम्हारी स्वर्ण मुद्राओं के बदले में मैं धेले और छदाम की व्यवस्था कर दूँगा। मेरा एक मित्र है जो कुबेर के यहाँ टकसाल में काम करता है।“
इस पर युधिष्ठिर ने कहा, “लेकिन इस कार्य में खतरा है। इतनी सारी स्वर्ण मुद्राओं के बदले में जो धेले और छदाम मिलेंगे उन्हें लाने के लिए तो बैलगाड़ियों का एक बड़ा कारवाँ बुलाना पड़ेगा। हर ओर कड़ा पहरा है। महाराज धृतराष्ट्र को तुरंत पता लग जायेगा।“
द्रौपदी ने कहा, “हे कृष्ण, आप कोई जुगाड़ क्यों नहीं करते जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।“
द्रौपदी की बात सुनकर कृष्ण मुसकाए और अपना हाथ ऊपर हवा में किया। आसमान से एक चमकीली किरण आई और फिर कृष्ण के हाथ में पीतल का एक चमचमाता हुआ बड़ा सा कटोरा आ गया। कृष्ण ने वह कटोरा द्रौपदी को सौंपते हुए कहा, “हे सखी, ये अक्षय पात्र है। इसमें से तुम जितना चाहे उतना भोजन प्राप्त कर सकती हो। अब तुम्हें उस वणिक के आसरे की आवश्यकता नहीं होगी।“
इस तरह से द्रौपदी और उसके परिवार के लिए भोजन की समस्या समाप्त हो गई। वे बड़े आराम से अपना अज्ञातवास व्यतीत कर रहे थे। उधर महाराज धृतराष्ट्र चिंतित हो रहे थे क्योंकि पांडवों का कोई अता पता नहीं था। उनके गुप्तचरों ने सूचना दी थी कि पांडव बड़े आराम से अपने दिन बिता रहे थे। बीच बीच में वे हजारों की संख्या में साधु संतों को भी भोजन करवा रहे थे। पचास दिन पूरे होने वाले थे। पांडवों को गिरफ्तार करने की व्याकुलता में महाराज धृतराष्ट्र ने एक और बड़ी घोषणा कर दी, “मुद्राबंदी के पचास दिन पूरे होने के पश्चात जिस किसी के पास से पुरानी स्वर्ण मुद्राएँ मिलेंगी उसे पूरे परिवार के साथ आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी।“
बैठते ही संजय की आँखों से रोशनी की एक चमकदार किरण निकली और कुटिया की दीवार से टंगी धोती पर रंग बिरंगे इश्तहार दिखने लगे। तीर धनुष, साड़ी धोती और रथों के पहिये के इश्तहारों के बाद उस परदे पर महाराज धृतराष्ट्र का चिर परिचित चेहरा दिखाई दिया। संजय ने बताया कि महाराज धृतराष्ट्र कोई बड़ी घोषणा करने वाले थे।
धृतराष्ट्र की तल्ख आवाज गूँजने लगी, “मेरी प्यारी प्रजा के नर नारियों। आज मैं एक बड़ी घोषणा करने जा रहा हूँ। आज मध्यरात्रि के बाद वर्तमान में चलने वाली सारी स्वर्ण मुद्राएँ बंद हो जाएँगी। जिनके पास धेला या छदाम है उन्हें चिंता की कोई जरूरत नहीं है। जिनके पास स्वर्ण मुद्राएँ हैं उनके लिए अब बुरे दिन आने वाले हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि राज्य और उसके आस पास के इलाके में रहने वाले अपराधी तत्वों और बेईमानों को पकड़ा जा सके। ऐसे अपराधी और बेईमान स्वर्ण मुद्राओं का इस्तेमाल बड़े बड़े अपराधों को अंजाम देने के लिए करते हैं। जो इमानदार हैं उन्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है। वे कल से अगले पचास दिनों तक अपनी स्वर्ण मुद्राओं को राजसी खजाने में जमा कराकर बदले में नई मुद्राएँ प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा कठोर कदम इसलिए उठाना पड़ रहा है ताकि आर्यावर्त फिर से महान बन जाए।“
समाचार समाप्त होने के बाद संजय वहाँ से प्रस्थान कर गये। उसके बाद पांडव बड़े चिंतित भाव से मंत्रणा करने लगे। अर्जुन ने कहा, “भ्राता युधिष्ठिर, बड़ी मुश्किल से तो धन इकट्ठा किया था ताकि दिव्यास्त्र खरीद सकूँ। अब क्या होगा?”
युधिष्ठिर ने कहा, “अब इस पर हम क्या कर सकते हैं। तुम सबसे कुशल योद्धा हो। अब तुम ही कोई मार्ग ढ़ूँढ़ो।“
भीम ने नथुने फड़काते हुए कहा, “भ्राता श्री, यह आदेश महाराज ने हमें परेशान करने के लिए किया है। वे नहीं चाहते हैं कि हम अपना अज्ञातवास सफलतापूर्वक पूरा करें। आप आदेश करें तो मैं अभी जाकर धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों की हड्डियाँ तोड़ दूँ।“
इस बीच नकुल और सहदेव माता कुंती की गोद में सिर रखकर कब गहरी निद्रा में चले गये पता ही नहीं चला। कुंती ने कहा, “आपको अपने अस्त्रों की पड़ी है। मुझे तो यह चिंता खाये जा रही है कि कल से भोजन का प्रबंध कैसे करूँगी। वन के बाहर जो लोभी वनिक रहता है वह हर वस्तु के दाम स्वर्ण मुद्राओं में ही लेता है। उसे भली भाँति हमारी असलियत मालूम है। अब स्वर्ण मुद्राओं के बगैर वह राशन देने से भी मना कर देगा। महाराज ने यह आदेश केवल हमलोगों को तबाह करने के लिए दिया है।“
उसके बाद द्रौपदी और उसका पूरा परिवार भगवान कृष्ण को याद करते हुए लगान फिल्म का ये गाना गाने लगे, “ओ पालन हारे, निर्गुण और न्यारे, तुम बिन हमरा कौन न रे .............”
अपनी आराधना से प्रसन्न होकर कृष्ण भगवान तत्क्षण वहाँ प्रकट हो गये और द्रौपदी से पूछा, “हे सखी, तुम इतनी कातर मुद्रा से मुझे क्यों याद कर रही हो?”
जब द्रौपदी ने उन्हें सारी बात सुनाई तो कृष्ण के चेहरे पर एक भीनी सी मुसकान फैल गई। कृष्ण ने कहा, “अब महाराज का आदेश तो मैं भी नहीं टाल सकता। तुम कहो तो तुम्हारी स्वर्ण मुद्राओं के बदले में मैं धेले और छदाम की व्यवस्था कर दूँगा। मेरा एक मित्र है जो कुबेर के यहाँ टकसाल में काम करता है।“
इस पर युधिष्ठिर ने कहा, “लेकिन इस कार्य में खतरा है। इतनी सारी स्वर्ण मुद्राओं के बदले में जो धेले और छदाम मिलेंगे उन्हें लाने के लिए तो बैलगाड़ियों का एक बड़ा कारवाँ बुलाना पड़ेगा। हर ओर कड़ा पहरा है। महाराज धृतराष्ट्र को तुरंत पता लग जायेगा।“
द्रौपदी ने कहा, “हे कृष्ण, आप कोई जुगाड़ क्यों नहीं करते जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।“
द्रौपदी की बात सुनकर कृष्ण मुसकाए और अपना हाथ ऊपर हवा में किया। आसमान से एक चमकीली किरण आई और फिर कृष्ण के हाथ में पीतल का एक चमचमाता हुआ बड़ा सा कटोरा आ गया। कृष्ण ने वह कटोरा द्रौपदी को सौंपते हुए कहा, “हे सखी, ये अक्षय पात्र है। इसमें से तुम जितना चाहे उतना भोजन प्राप्त कर सकती हो। अब तुम्हें उस वणिक के आसरे की आवश्यकता नहीं होगी।“
इस तरह से द्रौपदी और उसके परिवार के लिए भोजन की समस्या समाप्त हो गई। वे बड़े आराम से अपना अज्ञातवास व्यतीत कर रहे थे। उधर महाराज धृतराष्ट्र चिंतित हो रहे थे क्योंकि पांडवों का कोई अता पता नहीं था। उनके गुप्तचरों ने सूचना दी थी कि पांडव बड़े आराम से अपने दिन बिता रहे थे। बीच बीच में वे हजारों की संख्या में साधु संतों को भी भोजन करवा रहे थे। पचास दिन पूरे होने वाले थे। पांडवों को गिरफ्तार करने की व्याकुलता में महाराज धृतराष्ट्र ने एक और बड़ी घोषणा कर दी, “मुद्राबंदी के पचास दिन पूरे होने के पश्चात जिस किसी के पास से पुरानी स्वर्ण मुद्राएँ मिलेंगी उसे पूरे परिवार के साथ आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी।“
No comments:
Post a Comment