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Thursday, September 8, 2016

विश्वामित्र की तपस्या भंग

इन्द्र अपने रंगमहल में एक से एक सुंदर अप्सराओं के नृत्य का आनंद उठा रहे थे। साथ में वे दुनिया के कोने कोने से आये सोमरस का स्वाद भी ले रहे थे। तभी नारद के प्रवेश से रंग में भंग हो गया। नारद ने आते ही कहा, “नारायण, नारायण।“

अब चूँकि नारद ठहरे एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऋषि जिनका आना जाना लगभग हर देवी देवता के यहाँ लगा रहता था इसलिए इंद्र को अपनी पार्टी को बीच में ही रोकना पड़ा। इंद्र अपने सिंहासन से उठ खड़े हुए और पूछा, “नारद जी, कैसे आना हुआ? सब कुशल मंगल तो है?”

नारद ने उत्तर दिया, “आप यहाँ अपनी रातें रंगीन कर रहे हैं और उधर कोई आपके सुख शांति में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है।“

इंद्र ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा, “क्या बात कर रहे हैं? मुझे तो ऐसा कुछ पता नहीं चला।“

इस पर नारद ने हँसते हुए जवाब दिया, “लगता है आजकल आप रियलिटी शो कुछ ज्यादा ही देख रहे हैं। कभी कभी प्राइम टाइम भी देख लिया कीजिए। इससे पूरी दुनिया में होने वाली गतिविधियों के बारे में पता चलता है।“

इंद्र के चेहरे पर अब घबराहट के भाव कुछ अधिक ही दिखने लगे। उन्होंने पूछा, “नारद जी, खुल कर बताएँ।“

नारद ने कहा, “सुनने में आया है कि एक राजा अपना राजपाट और बाकी सबकुछ छोड़ छाड़ कर तपस्या में लीन है। पिछले हजार सालों से वह तपस्या कर रहा है। यदि उसकी तपस्या सफल हो गई तो कहीं वह आपकी गद्दी न हथिया ले।“

इंद्र ने पूछा, “कौन है? क्या नाम है?”

नारद ने कहा, “उसे लोग विश्वामित्र के नाम से जानते हैं।“

फिर नारद ने कहा, “मैंने आपको आने वाले खतरे के प्रति आगाह कर दिया है। अब मैं चलता हूँ। नारायण, नारायण।“

नारद के जाते ही इंद्र ने सोमरस का एक बड़ा गिलास एक ही साँस में खाली कर दिया। फिर वे गहरी चिंता में डूब गये। उनकी चिंता देखकर उनकी सबसे चहेती अप्सरा; जिसका नाम मेनका था; ने पूछा, “हे देवराज, आप किस चिंता में डूब गये?”

इंद्र ने बताया, “अभी अभी नारद जी आये थे। किसी विश्वामित्र नामक ऋषि के बारे में बता रहे थे। वह पिछले हजार सालों से तपस्या में लीन है। मुझे तो मेरी गद्दी खतरे में नजर आ रही है।“

ऐसा सुनकर मेनका ने इंद्र के सामने सोमरस से भरा एक नया गिलास पेश किया और बोली, “हे देवराज, इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। जब आपका दिमाग मेरे सौंदर्य से मिल जाए तो हम बड़े से बड़े खतरे को हवा में उड़ा सकते हैं।“

फिर वे दोनों पूरी रात उस मुद्दे पर सोचते रहे। सुबह होते-होते इंद्र और मेनका ने अपने रास्ते से विश्वामित्र नाम के काँटे को हटाने की तरकीब सोच ली।

योजना के मुताबिक मेनका ने जबरदस्त साज श्रिंगार किया और उसपर से मेल खाते हुए परिधान पहने। फिर वे और इंद्र पुष्पक विमान पर सवार होकर उस स्थान पर पहुँचे जहाँ विश्वामित्र तपस्या कर रहे थे। घना जंगल होने के कारण पुष्पक विमान को थोड़ी दूरी पर ही उतारना पड़ा। फिर घने जंगल में जाकर उन्होंने अपनी योजना को अमली जामा पहनाया। उसके बाद जो कुछ हुआ उसका विवरण आगे है।

अगले ही दिन पूरे विश्व के टेलिविजन चैनलों और इंटरनेट पर एक ही वीडियो वायरल था। उस वीडियो में मेनका और विश्वामित्र को ऐसे ऐसे कोणों से दिखाया गया था जिससे किसी को भी विश्वामित्र के चरित्र के बारे में संदेह न करने का कोई कारण ही न मिले। हर चैनल पर एक ही ब्रेकिंग न्यूज चल रहा था, “इस ढ़ोंगी को देखिये। ये पाखंडी अपने आप को साधु कहता है। इसने तो बड़े से बड़े इज्जतदार साधुओं की लुटिया डुबो दी।“

अगले दिन अखबारों में खबर छपी, “पुलिस ने एक ढोंगी साधु को रंगे हाथ गिरफ्तार किया। साधु रंगरेलियाँ मनाते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया।“

हर नुक्कड़, हर खलिहान और खेत में लोग अपने अपने स्मार्टफोन पर साधु वाला वीडियो देख रहे थे। ये अलग बात है कि उनकी रुचि साधु में कम और अप्सरा में अधिक थी। हर टेलिविजन चैनल पर एक से एक ज्ञानी मनुष्यों के पैनल बैठे हुए थे जो गिरते सामाजिक मूल्यों पर ज्ञानवर्धक चर्चा कर रहे थे।

उधर स्वर्ग में मेनका और इंद्र साथ में बैठकर प्रख्यात उद्घोषक संजय के चैनल पर ये खबरें सुन रहे थे। इंद्र मेनका की ओर मुसकरा कर कह रहे थे, “तुमने तो कमाल का नृत्य पेश किया। उस साधु का एक एक रोयां हिल गया था।“


मेनका अपनी तारीफ सुनकर फूली नहीं समा रही थी। उसने कहा, “आपने भी तो कमाल कर दिया। उतने कठिन कोणों से वीडियो बनाना तो अच्छे से अच्छे कैमरामैन के वश का नहीं। सारे स्टिंग ऑपरेशन करने वाले तो आपसे जल भुन गये होंगे।“