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Monday, July 18, 2016

दिल्ली की बरसात

दिल्ली की सर्दी काफी मशहूर है। इसके बारे में कई हिंदी फिल्मों ने हम सबका ज्ञान बढ़ाया है। ठीक उसी तरह जैसे कि हिंदी फिल्मों ने मुंबई की बारिश के बारे में हम सबका ज्ञान बढ़ाया है। लेकिन आज तक किसी ने भी दिल्ली की बरसात पर कोई टीका टिप्पणी नहीं की है। इस कहानी से हो सकता है कि आपको दिल्ली की बरसात के बारे में काफी कुछ पता चल जाएगा।

मनजीत सुबह सुबह सज धज कर तैयार हो रहा था तभी उसकी बीबी ने पूछा, “कहाँ की तैयारी है? आज तो लगता है बहुत तेज बारिश होने वाली है। ऐसे मौसम में घर बैठकर चाय पकौड़ी का मजा ही कुछ और है।“

मनजीत ने टाई बाँधते हुए कहा, “एक बड़ा क्लाएंट है जिसने आज ही मिलने के लिए बुलाया है। फिर काम करने नहीं जाऊँगा तो पकौड़ी और चाय की पत्ती कैसे खरीदूँगा।“

मनजीत ने ताजा आयरन की हुई पैंट शर्ट पहनी थी और उसपर लाल रंग की टाई भी लगा रखी थी। उसके ऊपर से उसने एक बदरंग हो चुकी खाकी बरसाती पहन ली। अब इस बारिश के मौसम में साफ सुथरे कपड़ों और अपने आप को बचाने के लिए बरसाती पहनना तो जरूरी हो जाता है। क्या पता कौन कार वाला बगल से तेजी से निकल जाए और आपको कीचड़ से सराबोर कर दे। बरसाती पहनने से कम से कम इस बात का तो भरोसा रहता है कि किसी पोटेंशियल कस्टमर के पास आपकी इम्प्रेशन न खराब हो।

बहरहाल, मनजीत ने अपनी बाइक स्टार्ट की और काम पर निकल पड़ा। उसे बदरपुर से साकेत की ओर जाना था इसलिए उसने महरौली बदरपुर रोड का सीधा-सीधा रूट पकड़ा। थोड़ी देर में वह तुगलकाबाद के पास पहुँचा जहाँ सड़क के ऊपर से एक रेलवे लाइन जाती है। जो सड़क किसी पुल के नीचे से गुजरती है उसे अंडरपास कहते हैं। इस अंडरपास की सड़क सालों भर खराब ही रहती है और वहाँ हमेशा कीचड़ लगा रहता है। भारी बारिश के कारण वहाँ का बुरा हाल था। मनजीत ने अपनी बाइक एक किनारे लगा ली और स्थिति का जायजा लेने लगा। आगे तीन चार कारें पानी में फँसी हुई थीं। कुछ लोग पैदल ही उस वैतरणी को पार करने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें देखकर पता चल रहा था कि पानी कमर भर गहरा था। मनजीत की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तभी एक सोलह सत्रह साल का लड़का उसके पास आया और पूछा, “भाई साहब, आओ तुम्हारी बाइक पार करवा दूँ।“

मनजीत ने पूछा, “लेकिन कैसे।“

उस लड़के ने कहा, “अरे हमारे ताऊ की बैलगाड़ी किस दिन काम आएगी। सौ रुपए लगेंगे। फिर तुम और तुम्हारी बाइक गीले हुए बिना इसे पार कर जाओगे।“

मनजीत ने कहा, “सौ रुपए ज्यादा नहीं माँग रहे हो?”

उस लड़के ने कहा, “अगर बाइक बीच में बंद हो गई, साइलेंसर में पानी चला गया तो ठीक करवाने के पाँच सौ रुपए लगते हैं। फायदा तुम्हारा ही है।“

मनजीत ने तुरंत हामी भर दी। फ़टाफट तीन लड़के और आए और सबने मिलकर मनजीत और उसकी बाइक को बैलगाड़ी पर लाद दिया। फिर बैल बड़े आराम से उस अंडरपास को पार कर गया। कमाल का नजारा था। कीचड़ से लथपथ एक बैल अपनी पुरानी बैलगाड़ी को कमर भर मटमैले पानी में से खींच रहा था। ऊपर दो मजदूर से दिखने वाले लड़के एक लाल रंग की मोटरसाइकिल को संभाल कर पकड़े हुए थे। मोटरसाइकिल की बगल में मनजीत खड़ा था, काली पैंट धारीदार शर्ट और लाल टाई लगाकर। एक ही फ्रेम में भारत का भूतकाल और वर्तमान दिख रहा था जो किसी उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत नहीं कर पा रहा था। 

पर मनजीत ने गौर किया कि कुछ ट्रैक्टर वाले भी तेज बिजनेस कर रहे थे। एक कार को पानी से बाहर निकालने के वे पाँच सौ रुपए चार्ज कर रहे थे। अब जिसकी कार फँसी हुई थी वह बेचारा क्या करता। उसके पास और कोई उपाय नहीं था। किसी ने ये भी बताया कि 100 नंबर डायल करते करते थक गया था लेकिन सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं आई। बताया गया कि आगे इतना ज्यादा जाम था कि किसी भी गाड़ी को नजदीक के पुलिस स्टेशन से आने में कम से कम एक घंटा लग जाए।


अंडरपास को पार करने के बाद  मनजीत की बाइक को बैलगाड़ी से उतारा गया। समीर उस लड़के को सौ रुपए का नोट दे रहा था। उनके पीछे एक बड़ी होर्डिंग लगी थी जिसपर दिल्ली के मुख्यमंत्री का चिर परिचित चेहरा नजर आ रहा था। नीचे लिखा था, “हम काम करते रहे, ये बदनाम करते रहे।“