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Monday, August 29, 2016

मेडल जीतकर क्या मिलेगा?

“मम्मी, मैं स्कूल से लौटते समय राजू चाचा के घर चला जाउँगा। शाम में देर से लौटूँगा।“ नवीन जोर से चिल्लाया और फिर दरवाजे के भड़ाम से बंद होने की आवाज आई।

उसकी माँ; निशा दौड़कर बालकनी में गई और वही से आवाज लगाया, “कोई खास वजह?”

नवीन तब तक नीचे सड़क पर पहुँच चुका था। उसने ऊपर बालकनी की ओर देखकर कहा, “कुछ खास नहीं। बस चाचा के लड़के योगेश से मिले हुए बहुत दिन हो गये थे।“

निशा ने कहा, “ठीक है, लेकिन उससे ज्यादा देर बात नहीं करना। जल्दी आ जाना।“

उसके बाद नवीन ने अपनी स्कूटी स्टार्ट की और तेजी से आँखों से ओझल हो गया। शाम हो गई और उसके बाद रात भी हो गई। नवीन का कहीं कोई पता नहीं था। निशा ने कई बार उसके मोबाइल पर कॉल करने की कोशिश की। फोन की घंटी बज तो रही थी लेकिन नवीन उसे उठा नहीं रहा था। निशा के पति, मधुरेश ने कहा, “आ जाएगा। हो सकता है स्कूटी चला रहा हो इसलिए फोन नहीं उठा रहा है।“

निशा ने कहा, “अरे नहीं, मुझे उसकी चिंता नहीं है। मुझे तो चिंता है कि योगेश से फालतू की बातों में अपना समय न जाया कर रहा हो।“

मधुरेश ने कहा, “अरे योगेश कोई पराया तो है नहीं। मेरे अपने भाई का बेटा है। उसके साथ बातें करेगा तो उनके रिश्ते मजबूत होंगे।“

निशा ने कहा, “खाक रिश्ते मजबूत होंगे। योगेश दूसरे किस्म का लड़का है। पढ़ाई लिखाई से कोई मतलब नहीं। कहता है वेटलिफ्टिंग में मेडल लायेगा।“

ऐसा सुनकर मधुरेश ने कहा, “क्या बात है। हमारे खानदान में आजतक किसी ने ऐसी बात नहीं सोची है। उसका डीलडौल भी वेटलिफ्टर वाला ही है। कौन जानता है, आगे चलकर यह लड़का पूरे परिवार का नाम रौशन करे।“

निशा ने कहा, “मैने कब रोका है उसे नाम रौशन करने से? लेकिन हमारे नवीन को कहीं उसके रास्ते से न भटका दे। मेरे नवीन को तो इंजीनियर बनना है। वैसे भी वेटलिफ्टिंग का क्या भविष्य है। क्रिकेटर बनने की कोशिश करता तो बेहतर होता। और कुछ नहीं तो एकाध सीजन के लिए आइपीएल में भी खेलने का मौका मिल जाता तो मोटे पैसे कमा लेता।“

तभी नवीन भी आ गया। उसे देखते ही निशा उस पर बरस पड़ी, “कितनी बार कहा है कि किसी और के घर में बैठकर अपना समय मत जाया करो।“

नवीन ने कहा, “मम्मी मैं समय नहीं बरबाद कर रहा था। मैं तो योगेश से बॉडी बिल्डिंग के टिप्स ले रहा था। क्या शानदार बॉडी बनाई है उसने। एक मैं हूँ, थुलथुल।“

निशा ने कहा, “तुम्हें कौन सा मॉडलिंग करने जाना है जो बॉडी बिल्डिंग के चक्कर में पड़ा है। अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे। एक बार इंजीनियर बन गया फिर उसके बाद जितनी बॉडी बिल्डिंग करनी होगी कर लेना। मुझे तो अपना थुलथुल बेटा ही पसंद है।“

नवीन ने कहा, “पता है, योगेश का नेशनल चैंपियनशिप के लिए सेलेक्शन हो गया है। कह रहा था कि वहाँ अगर गोल्ड मेडल जीत लेगा तो फिर शायद कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए भी सेलेक्शन हो जाये। कितनी अच्छी बात है।“

निशा ने कहा, “हाँ! हाँ! उस मेडल का सारा गोल्ड वो तुम्हें दे देगा। इसमें कौन सी अच्छी बात है। अरे बहुत करेगा तो कॉमनवेल्थ में भी गोल्ड जीत लेगा। फिर कुछ नेता बीस पचास लाख देने की घोषणा करेंगे। कोई सरकारी नौकरी मिल जाएगी और फिर लोग उसे भूल जाएँगे। बुढ़ापे में गरीबी में मरेगा।“

नवीन ने कहा, “नहीं मम्मी, पूरी दुनिया में उसका नाम हो जायेगा। मुझे भी गर्व होगा कि मेरे परिवार का लड़का इतनी ऊँचाई पर पहुँच जाएगा।“

निशा ने कहा, “बेटा झूठे गर्व से पेट नहीं भरता। रही नाम होने की बात तो आज सुंदर पिचाई को कौन नहीं जानता। तुम इंजीनियर बन जाओ और फिर गूगल जैसी बड़ी कम्पनी के सीईओ बन जाओ। जब तक तुम इंजीनियरिंग पास करोगे तब तक सुंदर पिचाई रिटायर भी हो चुका होगा। फिर तुम्हारा भी नाम होगा।“

नवीन ने कहा, “……..लेकिन माँ......”

निशा ने कहा, “लेकिन वेकिन कुछ नहीं। तुम्हें कोई बाउंसर तो बनना नहीं है। इसलिए केवल वैसे ही लड़कों से मिला जुला करो जो पढ़ने लिखने में यकीन करते हैं। जबतक आइआइटी से कॉल लेटर नहीं आ जाता तब तक के लिए योगेश से मिलना बंद।“


ऐसा सुनकर नवीन अपने पिता की ओर देखने लगा। उसके पिता ने कँधे उचकाए और मुँह बिचकाकर नवीन से इशारा किया जैसे कह रहे हों, “अब इसमें मैं क्या कर सकता हूँ। तुम्हारी माँ के आगे मेरी कौन सी चलती है।“ 

Saturday, August 27, 2016

सही रास्ता

यह बात 1997 के आस पास की होगी। मैं उस समय बहराइच में काम करता था। मुझे उस शहर में आये हुए कुछ ही महीने हुए थे। वह एक छोटा सा शहर है इसलिए शहर में घूमते फिरते कई लोगों से जान पहचान होना लाजिमी था। इसी तरह एक सीनियर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव से मेरी जान पहचान हुई। वह बिहार के मुजफ्फरपुर शहर से आते थे। एक बिहारी होने के नाते मुझे उस आदमी से थोड़ा अपनापन सा महसूस हुआ इसलिए हमलोग जब भी कभी मिलते तो रास्ते में रुककर ही थोड़ी देर के लिए इधर उधर की बातें कर लिया करते थे। वह किसी ऐसी कम्पनी में काम करते थे जो एक सरकारी कम्पनी थी। 

एक बार उन्होंने बताया, “मेरी हालत बहुत खराब है। मुझे पिछले दो साल से सैलरी नहीं मिली है। मेरी बीबी एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती है और मैं कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता हूँ। तब जाकर बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा चल पाता है। अब तो बच्चे भी बड़े हो रहे हैं जिससे हमारे खर्चे बढ़ रहे हैं। समझ में नहीं आता क्या करूँ।“

मैने उनसे सहानुभूति दिखाते हुए कहा, “ये तो बड़ी गंभीर समस्या है। लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आ रहा है कि जब आपको पिछले दो सालों से सैलरी नहीं मिली है तो आप ये नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते। कोई भी दूसरी कम्पनी ज्वाइन कर लीजिए। कम से कम परिवार चलाने लायक आमदनी तो होने लगेगी।“

इसपर उन सज्जन ने जवाब दिया, “तुम नहीं समझोगे। अभी तुम्हारी उमर कम है और तुम कुँवारे भी हो। मैं किसी भी कीमत पर एक सरकारी कम्पनी की नौकरी नहीं छोड़ना चाहता हूँ। सरकारी नौकरी की अपनी ही शान है।“

मैने कहा, “क्या बात करते हैं? ऐसी झूठी शान को लेकर क्या करना जिससे आपके अस्तित्व पर ही खतरा हो।“

फिर उन्होंने कहा, “पैसों की कमी के कारण मैं ठीक से काम भी नहीं कर पाता हूँ। तुम यदि मेरी मदद करना चाहते हो तो कभी कभी किसी इंटीरियर जाते समय मुझे भी साथ ले लेना ताकि मैं भी वहाँ कुछ काम कर पाऊँ। सुना है कि तुम बड़ा ही बढ़िया काम कर रहे हो।“

उसके कुछ दिनों बाद मैं पास के एक बाजार नानपारा जाने वाला था। संयोग से शाम में बाजार में टहलते समय उनसे मुलाकात हुई और मैंने कहा, “भैया, कल मुझे नानपारा जाना है। यदि आप चाहें तो मेरे साथ चल सकते हैं। सुबह आठ बजे तैयार होकर अपने दरवाजे के पास खड़े रहियेगा। मैं आपको वहीं से ले लूँगा।“

उन्होंने हामी भर दी और मैं खाना खाने के लिए पास के ही एक ढ़ाबे में चला गया। खाना खाकर मैं अपने घर गया और अगले दिन के काम के लिए अपने बैग में जरूरी सामान रख लिया। अगले दिन सुबह आठ बजे मैं जब उनके घर के पास पहुँचा तो वे दिखे ही नहीं। खैर, दरवाजे पर थोड़ी देर तक दस्तक देने के बाद वे आये, मुझसे देरी के लिए माफी माँगी और मेरी बाइक की पिछली सीट पर बैठ गये। उनकी गली से निकलकर मैं मेन रोड पर आया और दाहिने मुड़ गया। उसके बाद छावनी चौराहे से मैं बाँए मुड़ने लगा। जैसे ही मेरी बाइक बाईं ओर चलने लगी वे पीछे से जोर से चिल्लाए, “अरे इधर किधर जा रहे हो? तुम तो बता रहे थे कि नानपारा जाना है।“

मैने जवाब दिया, “मैं पिछले पाँच महीनों से लगातार नानपारा जा रहा हूँ। जहाँ तक मुझे पता है यही रास्ता नानपारा को जाता है। आप आराम से बैठिये।“

उन्होंने थोड़ी देर तक मुझसे नानपारा के सही रास्ते के बारे में बहस लड़ाने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही हाइवे आया तो मेरी रफ्तार तेज हो गई और तेज हवा चलने के कारण हमारी कोई बातचीत संभव नहीं थी। लगभग आधे घंटे चलने के बाद हम नानपारा पहुँच गये। नानपारा पहुँचते ही मैने एक चाय की दुकान के पास बाइक रोकी और उनसे उतरने को कहा। जब हम वहाँ बैठकर चाय पी रहे थे तो उन्होंने कहा, “तुम तो यहाँ के रास्तों से कम ही समय में भली भाँति परिचित हो गये हो। दरअसल मुझे नानपारा आये हुए एक लंबा अरसा बीत गया इसलिए क्न्फ्यूजन था।“

मुझे बड़ा गुस्सा आ रहा था। मैने कहा, “अब मेरी समझ में आ गया कि आपकी कम्पनी दो साल से सैलरी क्यों नहीं दे रही है। आप यहाँ पर पिछले दो तीन साल से काम कर रहे हैं फिर भी आपको नानपारा जैसे अहम बाजार का रास्ता नहीं मालूम है। आप कोई दूसरी कम्पनी भी ज्वाइन कर लेंगे तो वहाँ भी आपकी सैलरी बंद कर दी जाएगी। आपके लिए बेहतर होगा कि वापस मुजफ्फरपुर जाकर वहीं ट्यूशन पढ़ाने का काम शुरु कर दें।“


जवाब में उन सज्जन ने कुछ नहीं कहा। बस चुप चाप चाय की चुस्कियाँ लेते रहे। 

Friday, August 26, 2016

Krishna’s Birthday

This is the auspicious day of Lord Krishna’s Birthday. The public address system of my society had announced in the early morning that there would be a grand celebration in the children park to mark this occasion. At about five in the evening, I got a call from the five year old daughter of my neighbor who had called on the intercom to say, “Uncle, I am going to be the Radha tonight. I am going to dance on the stage. You must come to see my dance. Don’t forget to bring auntie and bhaiya along with you.”

We got dressed up for the occasion and went downstairs to the children park. I could see a sizeable crowd had already gathered. A stage had been erected by using iron pipes and colorful clothes. There was a small idol of the Lord Krishna at one corner of the stage. A cradle had been placed in front of the idol on which a neonate was enjoying all the attention. A long queue had already formed to have a glimpse of the Krishna in the idol and Krishna on the cradle.

Many carpets had been laid in front of the stage to make a large sitting area. Single row of chairs had been used for cordoning off the sitting area. By the time we reached, all the chairs had been occupied by people and hence we had to enjoy the function by standing behind the row of chairs.

Most of the people who have purchased the flats in this society are around thirty years old. As all of them are in the stage of ‘baby boomers’ so there is a sizeable population of small kids in this society. Most of the children were playing on the carpets. Most of the girls had donned the costume of Radha while some of the boys were in Krishna’s attire. But most of the boys were wearing the dresses as per the latest fashion trend. Hit songs were being played on the speakers. While most of the girls were dancing to those tunes, the boys were mostly engaged in friendly fights. The mothers of those children were showing the same zeal to dress for the occasion. They had come in their best outfits; with all the necessary accessories and jewelry to add the much wanted dash of glamour to the show.

The members of the RWA arrived on the stage after some time. One of them took a mike and announced, “On behalf of the society, I wish all of you a Happy Janmashtami’. There will be dance performances by children in a short while from now. Parents who are keen for the dance performance of their children are requested to come to the stage.”

The announcement stirred a hornet’s nest. Almost all the ladies began showing the restlessness and urgency as if they were going for the dance competition or for a possible catwalk. Most of the ladies had left no stone unturned while preparing their daughters in Radha’s getup. Some of them had also taken so much pain in getting ready for the show that they could easily give a tough competition to the real Radha. Within a few moments the stage was full of many Radhas. The stage was also full with almost equal number of moms of those Radhas. The announcer was at his wit’s end after seeing the swelling crowd on the stage. He somehow took the mike and said, “I am emboldened by witnessing the energy and spirit of the members of this society. But I need to make some rules to avoid overcrowding at the stage. It would be better if you can register the names of your children with our colleague. After that, we will call the participants one by one.”

After that, each mummy went on to register the name of her Radha or Krishna. The announcer then began to call the children to perform on stage one by one. The children went on to perform excellent dance numbers. But only two songs appeared to top the popularity charts in those dance performances. One of the songs was ‘O Radha teri chunri O Radha tera jhumka’ and another song was ‘Radha kaise na jale’. Everybody was surprised to see so many ladies coming up with similar opinion on a particular topic. It was really amazing because it can be impossible to bring two ladies to agree on a topic.

The moment the dance prorgamme started, most of the people went near the stage and were standing there in order to have the best view of the performance. They were least worried about the inconvenience caused to people who were sitting behind them. The announcer must have appealed numerous times to them to sit down but his announcements fell on deaf ears. People were probably thinking of getting a vantage point for clicking photos and recording videos and that is why they preferred to stand near the stage.

Other than the nuisance of a blocked view by people standing near the stage, the programme was going on in proper order. It was the turn of a new dancer. His mummy was accompanying her to the stage. The announcer told that the child was going to dance on some innovative song. Her mother gave a memory stick to the technician so that the innovative song could be played. But the moment the song started to play there appeared to be some problem with the speaker. It started producing strange sounds of Pee! Ponnn! Koooo! Aaargh! The mother of that child promptly snatched the mike from the announcer’s hand and said, “It appears that there is some problem with the speaker. Don’t worry. I will take the initiative and will sing for my daughter’s dance performance.

After that the lady began to sing. It was an innovative song indeed but was somewhat weird too. Her horrible singing proved to be another dampener. I am unable to recall it properly but the song goes something like this:

“O Krishna I have made a building for you in my heart
O Krishna I have made delicious food for you
I have taken butter and ghee and milk to make the dish
O Krishna I love you.”

The use of Hinglish was not the only problem. The lady was equally horrible on pronunciation and diction. People were just tolerating her singing in the name of decent behavior at a public forum. But the lady did not feel a pity on the audience. She went on and on for about five minutes. Finally, people could get to come out of that round of torture. Once she finished her singing, the audience gave her a huge round of applause; may be because of courtesy or to indicate their displeasure.  

When the lady was back in her home, there was mayhem in her house. After reaching her home when she asked her husband about the video of her performance the husband innocently replied, “Everything got screwed up. I could not make the video. My phone hanged at the wrong time.”

Hearing that the wife was fuming with anger, “You don’t want me to become famous.”

The husband said, “No, no, it is not true. You should appreciate that I could snap the wires of the speaker at the right time. This helped in getting you a chance on the stage.”

But the lady could not be pleased by that. She said, “I know that I am a treasure trove of talent. But I have been trapped within the walls of this house since the day I married you. After so many years I could get this opportunity to dress in my finest attire and to showcase my talent to the whole world. But I know that you feel jealous of me.”

The husband says, “You are talking nonsense. Every morning it is you who goes to the bus stop to drop our daughter for school bus. You are also a regular at kitty parties at the club. You are just making an issue out of my failure to record your video.”

The wife said, “When your phone had hanged then you should have borrowed your neighbor’s phone for a while. You never know I may become a sensation on the YouTube the way Justin Webber became.”

The husband said, “Don’t worry, I will not take any chances on the occasion of Janmashtami celebrations next year.”

The lady stomped her feet and went inside her bedroom. After that her poor husband was left waiting for the clock to strike 12 of the midnight. He was waiting for the Lord Krishna to enact his incarnation. He was hoping against hope to get something to eat when his wife would offer some sweet dishes after the birth of the Lord Krishna.


Thursday, August 25, 2016

जन्माष्टमी समारोह

आज जन्माष्टमी का दिन है। यह दिन भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मेरी सोसाइटी के पब्लिक ऐड्रेस सिस्टम पर सुबह सुबह ही यह घोषणा कर दी गई थी कि चिल्ड्रेन पार्क में जन्माष्टमी का समारोह मनाया जाएगा। शाम में पाँच बजे के आसपास मेरे एक पड़ोसी की पाँच साल की बेटी ने इंटरकॉम पर कॉल करके मुझे बताया, “अंकल मैं आज राधा बनने वाली हूँ। मैं स्टेज पर डांस करूँगी। उसे देखने आप जरूर आना। आंटी और भैया को भी साथ में लाना।“

शाम सात बजे के आसपास हमलोग तैयार होकर नीचे पार्क में चले गये। वहाँ पर अच्छी खासी भीड़ जमा हो चुकी थी। लोहे की पाइपों के फ्रेम पर रंग बिरंगे कपड़े लगाकर एक स्टेज बनाया गया था। जिसके अंदर भगवान कृष्ण की छोटी सी मूर्ति लगी हुई थी। मूर्ति के आगे एक पालने पर एक नवजात शिशु को भी लिटा दिया गया था। स्टेज के बाहर कई दरियाँ बिछा दी गई थीं। उन दरियों के चारों ओर प्लास्टिक की कुर्सियाँ लगी थीं। जब तक हम नीचे पहुँचे थे तब तक सारी कुर्सियाँ भर चुकी थीं, इसलिए हमें उन कुर्सियों के पीछे खड़े होकर ही समारोह का आनंद लेना था। इस सोसाइटी में घर खरीदने वाले ज्यादातर लोग तीस के आस पास के हैं। इसलिए इस सोसाइटी में छोटे बच्चों की जनसंख्या अच्छी खासी है। सभी बच्चे कुर्सियों के आगे लगी दरियों पर खेल रहे थे। ज्यादातर लड़कियों ने राधा का ड्रेस पहना था और कुछ लड़कों ने कृष्ण का ड्रेस पहना था। लेकिन ज्यादातर लड़के लेटेस्ट फैशन वाले ड्रेस पहने नजर आ रहे थे। बड़े-बड़े स्पीकरों से हिट गाने बज रहे थे अधिकतर लड़कियाँ उन धुनों पर नाच रही थीं। लेकिन अधिकतर लड़के एक दूसरे से धींगा मुश्ती कर रहे थे।

थोड़ी देर बाद सोसाइटी के आर डब्ल्यू ए के सदस्य आ गये। उनमें से एक ने माइक लेकर घोषणा की, “आप सबको इस सोसाइटी की तरफ से जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। अब थोड़ी देर में स्टेज पर बच्चों द्वारा डांस पेश किया जाएगा। जिन लोगों ने अपने बच्चों को डांस के लिए तैयार किया है वे बारी बारी से स्टेज पर आ जाएँ।“

उस घोषणा को सुनते ही वहाँ बैठी महिलाओं में खलबली मच गई। ज्यादातर महिलाओं ने अपनी बेटियों को राधा का गेटअप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उनमें से कुछ स्वयं भी किसी राधा से कम नहीं लग रहीं थीं। थोड़ी ही देर में स्टेज पर एक साथ कई राधा पहुँच चुकी थीं। उनके साथ लगभग उतनी ही संख्या में राधाओं की मम्मियाँ भी थीं। स्टेज पर बढ़ती हुई भीड़ देखकर वहाँ उपस्थित उद्घोषक के तो होश उड़ गये। उसने फिर से माइक पकड़ा और बोलने लगा, “इस सोसाइटी के निवासियों का जोश देखकर मैं भी पूरे जोश में आ गया हूँ। लेकिन स्टेज पर जगह की कमी होने के कारण मुझे कुछ कायदे कानून बनाने होंगे। बेहतर ये होगा कि आप लोग अपने बच्चों के नाम लिखवा दें। फिर बारी बारी से हम बच्चों को बुलाकर उनका डांस पेश करेंगे।“

उसके बाद सभी मम्मियों ने अपनी अपनी राधाओं और कृष्णों के नाम लिखवा दिये। फिर बारी बारी से बच्चों को स्टेज पर बुलाया जाने लगा। बच्चों ने एक से एक डांस पेश किया। लेकिन ज्यादातर डांसों में दो ही गाने सुनाई पड़ रहे थे। एक गाना था राधा तेरी चुनरी ओ राधा तेरा झुमकाऔर दूसरा गाना था राधा कैसे न जले। हर किसी को ताज्जुब हो रहा था कि वहाँ उपस्थित सैंकड़ों महिलाओं में गाने के सेलेक्शन के मामले में एकमत कैसे हो गया।

बहरहाल जैसे ही डांस प्रोग्राम शुरु हुआ वैसे ही ज्यादातर लोग ठीक स्टेज के पास जाकर खड़े हो गये ताकि वे उस प्रोग्राम को ठीक से देख सकें। उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं थी कि पीछे बैठे लोगों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। एनाउंसर ने कई बार लोगों से बैठ जाने की अपील की लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं था। शायद खड़े होने से फोटो खींचने और वीडियो बनाने में ज्यादा सहूलियत हो रही थी।

सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा था। तभी किसी नई डांसर की बारी आई। उसके साथ उसकी मम्मी भी स्टेज पर गई। बताया गया कि वह बच्ची किसी अनूठे गाने पर डांस करने वाली थी। उसकी मम्मी ने वहाँ खड़े टेकनीशियन को पेन ड्राइव दिया ताकि गाना बज सके। पेन ड्राइव लगाने पर गाना शुरु होते ही बंद हो गया। स्पीकर में से चीं पों की आवाज आने लगी। उस बच्ची की मम्मी ने एनाउंसर के हाथ से माइक छीना और बोलीं, “लगता है स्पीकर में कुछ खराबी आ गई है। इसलिए अपनी बच्ची के लिए मैं खुद ही गाना गा दूँगी।“

उसके बाद उस बच्ची की मम्मी ने गाना शुरु किया। वह गाना अनोखा तो था ही साथ में कुछ अजीब भी था। उस महिला की बेसुरी गायकी ने माहौल को और भी खराब कर दिया। मुझे ठीक से याद नहीं लेकिन गाना कुछ इस प्रकार था:

“ओ कृष्णा आइ हैव मेड ए बिल्डिंग फॉर यू इन माइ हार्ट
ओ कृष्णा आइ हैव मेड डेलिसियस फूड फॉर यू
आइ हैव टेकेन बटर एंड घी एंड मिल्क तो मेक द डिश
ओ कृष्णा आइ लव यू”

समस्या केवल हिंगलिश भाषा से नहीं थी। उस महिला का ना तो उच्चारण ठीक था ना ही प्रोनाउंसिएशन और ना ही तलफ्फुस। लोग बड़ी मुश्किल से उस गाने को झेल रहे थे। लेकिन उस महिला को वहाँ बैठे लोगों पर जरा भी तरस नहीं आ रहा था। खैर लगभग पाँच मिनट के लंबे अंतराल के बाद लोगों को उस भीषण गायकी से मुक्ति मिली। लोगों ने औपचारिकता निभाते हुए उस महिला और उसकी बच्ची के लिए जोर जोर से तालियाँ बजाई।

जब वह महिला अपने घर पहुँची तो घर में कोहराम मच गया। घर पहुँच कर जब उसने अपने पति से अपने परफॉर्मेंस के वीडियो के बारे में पूछा तो पति ने बताया, “गजब हो गया। मैं तो वीडियो बना ही नहीं पाया। ठीक ऐन वक्त पर मेरा फोन हैंग कर गया था।“

इतना सुनते ही वह महिला बिफर पड़ी, “तुम तो चाहते ही नहीं हो कि मेरा भी नाम हो।“
पति ने कहा, “:अरे नहीं ऐसा नहीं है। स्पीकर का तार तो मैंने सही समय पर काट दिया था। तभी तो तुम्हें गाने का मौका मिला।“

महिला इतने से कहाँ मानने वाली थी। उसने कहा, “मैं जानती हूँ कि मेरे अंदर कितना टैलेंट छुपा है। जबसे तुमसे शादी हुई है इस घर की चारदीवारी में बंद हो गई हूँ। आज बड़ी मुश्किल से मौका मिला था अच्छी ड्रेस पहनकर दुनिया को दिखाने का। बच्ची के बहाने उतना बड़ा स्टेज भी मिल गया था। लेकिन तुम मुझसे जलते हो।“

पति ने कहा, “क्या बात करती हो। सुबह बिटिया को स्कूल बस के पास छोड़ने तुम ही जाती हो। फिर क्लब की किटी पार्टी में भी बराबर जाती हो। एक वीडियो रिकार्डिंग नहीं हो पाई तो क्या हुआ।“
पत्नी ने कहा, “अरे तुम्हारा फोन हैंग कर गया तो किसी पड़ोसी का फोन थोड़ी देर के लिए उधार माँग लेते। क्या पता मेरी वीडियों यूट्यूब पर वैसी ही हिट हो जाती जैसी जस्टिन बेबर की हुई थी।“
पति ने कहा, “अच्छा अगले साल की जन्माष्टमी के समारोह में मैं पूरी तरह से तैयार रहूँगा।“


महिला ने कुछ नहीं बोला और अपने कोपभवन में चली गईं। उसके बाद बेचारे पति इस बात का इंतजार करने लगे कि कैसे रात के बारह बजें और कृष्ण भगवान का जन्म हो। वे इस उम्मीद में जाग रहे थे कि कृष्ण भगवान के जन्म होते ही उन्हें कुछ खाने को मिला जाता। 

Tuesday, August 23, 2016

अनारकली पर देशद्रोह का मुकदमा

अनारकली के हुस्न की चर्चा पूरे सल्तनत में छाई हुई थी। अनारकली राजमहल में एक दासी का काम करती थी। शुरु शुरु में उसपर किसी भी मंत्री, राजकुमार या राजा की नजर नहीं पड़ी थी। लेकिन एक बार उसके रूप पर मोहित होकर मशहूर कलाकार जेपी सिंघल ने उसकी आदमकद पेंटिंग बनाकर प्रदर्शनी लगा दी। उसके बाद तो हर कोई बस अनारकली के बारे में बातें करने लगा था। बादशाह का दिल भी अनारकली पर आ गया था। लेकिन अपनी इज्जत और अनगिनत बेगमों के नाराज होने के डर से बादशाह ने उसके साथ प्यार की पींगे बढ़ाना सही नहीं समझा। लेकिन अनारकली की इज्जत अफजाई के लिए बादशाह ने उसे राजदरबार की मुख्य डांसर के तौर पर नियुक्त कर दिया। फ्रिंज बेनिफिट के तौर पर अनारकली को रहने के लिए एक आलीशान महल दिया गया जिसमें तमाम सुविधाएँ दी गईं। अब अनारकली के आगे पीछे दास दासियों की फौज हुआ करती थी। आम्रपाली के लिये ये अच्छे दिन से कम नहीं थे।

एक बार बादशाह ने अपने बेटे सलीम को अनारकली के महल में भेजा। किसी खास समारोह के लिए अनारकली को डांस पेश करने के लिए दीवाने-खास में बुलाया गया था। जब शहजादे सलीम ने अनारकली के हुस्न को देखा तो वे मतवाले हो गये। सलीम को फौरन अनारकली से बेपनाह मुहब्बत हो गई। उस समारोह में अनारकली के डांस के समय सलीम अपनी आँखें सेंकते रहे। उसके बाद दोनों का छुप छुपकर मिलने का सिलसिला शुरु हो गया। जिस तरह गुलाब की खुशबू छुपाए नहीं छुपती उसी तरह इश्क भी छुप नहीं सकता। कुछ समय बीतते बीतते सलीम और अनारकली के इश्क के चर्चे हर बाजार, गली, नुक्कड़ और मदिरालय में होने लगी। धीरे-धीरे यह बात बादशाह तक भी पहुँची। बादशाह को तो जैसे काठ मार गया। वे इसलिए परेशान नहीं थे कि हिंदुस्तान के बादशाह का शहजादा किसी दासी के प्यार में पागल हो गया था। वे तो इसलिए परेशान थे कि वे भी मन ही मन अनारकली से मुहब्बत करते थे लेकिन अपने ओहदे का खयाल करके बात को आगे नहीं बढ़ा रहे थे।
बादशाह ने कई बार सलीम को समझाने की कोशिश की लेकिन सलीम कहाँ मानने वाले थे। वे किसी भी टीनएजर की तरह अपने मुहब्बत की दुहाई देकर अपना केस मजबूत करने की कोशिश करते थे। बादशाह को ये भी डर था कि बात हाथ से निकल जाने से बदनामी होगी इसलिए वे अनारकली के खिलाफ कोई भी कदम उठाने से डरते थे।

इसी तरह दिन बीत रहे थे। बादशाह उस मुसीबत से पीछा छुड़ाने का उपाय सोचते रहते थे। एक बार किसी शत्रु राज्य में अनारकली का डांस प्रोग्राम आयोजित हुआ। सही कीमत मिलने के कारण अनारकली वहाँ पर अपना प्रोग्राम देने को राजी हुई थी। शाही डांसर होने के नाते उसके पास यह आजादी थी कि वह जहाँ चाहे अपना प्रोग्राम पेश कर सकती थी। उस शत्रु राज्य में अनारकली की जमकर खातिरदारी हुई। उसकी तारीफ में कशीदे पढ़े गये। जब अनारकली लौट कर आई तो उसने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। वह अपनी खातिरदारी से इतनी खुश थी कि उसने कहा, “हमारे शत्रु राज्य में बहुत ही अच्छा माहौल है। वहाँ के दुष्ट राजा को छोड़ दें तो बाकी सभी लोग अच्छे हैं। वहाँ की अवाम तो इतनी शालीन है कि दिल करता है वहीं एक घर बना लूँ।“

इसके बाद तो जैसे भूचाल आ गया। किसी को भी ये गवारा नहीं था कि उनकी शाही डांसर किसी शत्रु राज्य के बारे में अच्छी अच्छी बातें करे। लोग अनारकली के विरोध में तरह-तरह की बातें करने लगे। मदिरालयों में इस बात पर घंटो बहस होने लगी। राजदरबार में इस बात पर गंभीर चर्चाएँ होने लगीं। बादशाह को तो बस ऐसे ही मौके की तलाश थी। उनके हाथ ऐसा हथियार लग गया था कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। बादशाह ने फौरन हुक्म दिया कि अनारकली के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाए।

उसके बाद पूरी प्रजा दो गुटों में बँट गई। एक गुट का मानना था कि अनारकली ने देशद्रोह का काम किया था। वहीं दूसरे गुट का मानना था कि अनारकली ने कोई भी ऐसा काम नहीं किया था जिससे देशद्रोह साबित हो सके। यह कहने की जरूरत नहीं है कि सलीम दूसरे गुट का समर्थन कर रहे थे।

उसके बाद तय तारीख को दीवाने आम में मुकदमे की सुनवाई हुई। दोनों पक्षों के वकीलों ने घंटों जिरह किया। पूरे दिन की बहस के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकल पा रहा था। उसके बाद मौलवियों और पंडितों ने बादशाह से गुजारिश की कि वह अपने वीटो का इस्तेमाल करके मुकदमे का फैसला सुना दें।


बादशाह ने कई पहलुओं पर गौर किया। उन्हें इस बात की सबसे ज्यादा चिंता थी कि शहजादे सलीम के पाँव बहक गये थे। उन्हें इस बात की भी चिंता थी कि अनारकली जैसी बला की खूबसूरत डांसर से सल्तनत को मरहूम होना पड़ेगा। लेकिन उनका पुत्र प्रेम सब पर भारी पड़ गया। बड़े ही बुझे मन से बादशाह ने अपना फैसला सुना दिया, “अनारकली ने मुल्क के साथ गद्दारी का पाप किया है। मुल्क किसी भी बादशाह, शहजादे या उसके डांसर से ऊपर है। इसलिए अनारकली को दीवार में चुनवाने का हुक्म दिया जाता है।“ 

Sunday, August 21, 2016

जय शिवराज चौहान की

राजा शिवराज सिंह चौहान चिंतित मुद्रा में बैठे हुए थे। वे बार-बार अपने सिंहासन पर मुद्राएँ बदल रहे थे। लगता था कि काँटों के ताज के साथ साथ काँटों से भरा सिंहासन भी उन्हें परेशान कर रहा था। उनकी बेचैनी देखकर मंत्री ने पूछा, “महाराज इतने चिंतित क्यों दिखाई दे रहे हैं?”


(image ref: www.ndtv.com) 

राजा शिवराज ने कहा, “नगर में भीषण बाढ़ आई है इसलिए परेशान हूँ।“

मंत्री ने पूछा, “आप जैसा महान राजा तो किसी प्रजा को किस्मत से मिलता है।“

राजा शिवराज ने कहा, “अरे नहीं मैं प्रजा के लिए थोड़े ही परेशान हूँ। प्रजा को तो मुसीबतें झेलने की आदत पड़ चुकी है। मैं तो इसलिए परेशान हूँ की बाढ़ ग्रसित क्षेत्रों का दौरा करने के लिए कोई साधन नहीं मिल रहा है।“

मंत्री ने कहा, “आपका राजसी उड़न खटोला कहाँ गया? हर बार तो आप उड़न खटोले पर बैठकर बाढ़ का जायजा लिया करते थे।“

राजा ने कहा, “आजकल हिंदुस्तान के शहंशाह को विदेशों का भ्रमण करना पड़ता है। इसलिए उन्होंने सभी राज्यों के राजाओं के उड़न खटोले को दिल्ली में मंगवा लिया है ताकि उनकी यात्राओं में कोई खलल नहीं पड़े।“

मंत्री ने कहा, “अच्छा ये बात है। फिर आप पैदल ही दौरा कर लीजिए। सुनने में आया है कि घुटने भर से ज्यादा पानी कहीं नहीं लगा है।“

राजा ने कहा, “जब से महान कलाकार राजकुमार ने ये बताया कि मेरे पाँव बड़े खूबसूरत हैं और इन्हें जमीन पर नहीं रखना चाहिए तब से मैने पैदल चलना छोड़ दिया है। फिर पैदल चलने में मेरे श्वेत वस्त्र और जूते भी मैले हो जाएँगे।“

मंत्री ने कहा, “तो ऐसा करते हैं कि कोई पालकी मंगवा लेते हैं। आप पालकी में बैठ जाएँगे और चार कहार उसे उठाकर आपको बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र का दौरा करवा देंगे।“

राजा ने कहा, “आजकल पालकियाँ कहाँ मिलती हैं। जब से रिजर्वेशन लागू हुआ है तब से सारे कहार सरकारी नौकरियों में लग गये हैं। कहते हैं कि उन्होंने पालकी ढ़ोने का काम छोड़ दिया है।“

मंत्री ने कहा, “ये तो मुसीबत है। उड़न खटोला भी नहीं है और पालकी भी नहीं। आप को पैदल चलना भी मना है। कुछ सोचना पड़ेगा।“

राजा ने कहा, “जल्दी सोचो, इससे पहले बाढ़ न निकल जाए। अभी यदि दौरा नहीं किया तो अखबार की सुर्खियों में कैसे आ पाऊँगा। सोशल मीडिया पर छाने का मौका हाथ से न निकल जाए।“

तभी मंत्री जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “यूरेका! यूरेका!”

फिर मंत्री ने राजा को अपने पीछे आने का इशारा किया। साथ में राजा के चमचे और कई अंगरक्षक भी चल पड़े। चलते-चलते वे एक ऐसे मुहल्ले में पहुँचे जहाँ की गलियों में जलजमाव नजर आ रहा था। कुछ बच्चे कागज की नाव बनाकर तैरा रहे थे। कुछ बच्चे अपने-अपने घर की चौखटों पर बैठकर उसी जल में मलत्याग कर रहे थे। कुछ महिलाएँ कपड़े धो रही थीं। कुछ ग्वाले अपनी गायों और भैंसों को स्नान करवा रहे थे। कुल मिलाकर बड़ा ही मनोरम दृश्य था।

राजा ने कहा, “मंत्री, तुम यूरेका यूरेका चिल्लाने का प्रयोजन बताओ। ये भी बताओ कि मेरे बाढ़ भ्रमण का क्या इंतजाम किया है।“

मंत्री ने कहा, “बस आगे आगे देखिए क्या होता है। आप मेरी बुद्धि की दाद अवश्य देंगे।“

मंत्री के इशारे पर दो अंगरक्षक आगे आये। उन्होंने अपनी बाजुओं को आपस में जोड़कर एक झूला जैसा बना लिया। उसके बाद राजा के नितंबों के नीचे हाथों का झूला डालकर राजा को हवा में उठा लिया। फिर क्या था, राजा की पालकी चल पड़ी। राजा को गुदगुदी हो रही थी जो उनके चेहरे पर अनायास खिल आई मुसकान से साफ झलकता था। जनता ने राजा का ऐसा रूप पहले कभी नहीं देखा था। प्रजा उनकी जय जयकार करने लगी। कुछ लोगों ने राजा की सवारी के आस पास खड़े होकर सेल्फी भी ली। शाम होते-होते राजा जी की तसवीर सोशल मीडिया पर छा गई। कोई राजा की हिम्मत की दाद दे रहा था तो कोई उनके अंगरक्षकों की कर्तव्यपरायणता की। कुछ लोग मंत्री जी के जुगाड़ु दिमाग की भूरी-भूरी प्रशंसा कर रहे थे।

राजा ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, “बाढ़ अभिशाप में वरदान की तरह है। एक ओर तो यह विभीषिका लाती है वहीं दूसरी ओर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती है। हमने देखा कि बाढ़ के कारण बच्चे जलक्रीड़ा का आनंद ले रहे थे। कुछ बच्चे तो शौच करने का भी मजा ले रहे थे। बाढ़ के पानी के कारण स्वच्छ भारत अभियान में कोई कमी नहीं आई थी बल्कि मदद ही मिल रही थी। महिलाएँ बाढ़ के पानी में कपड़े धोकर बिजली की बचत का शानदार उदाहरण पेश कर रही थीं। ग्वाले इस बात से खुश थे कि भैंसों को नहलाने के लिए उन्हें बहुत दूर जाना नहीं पड़ रहा था। मंत्री जी ने साबित कर दिया कि जुगाड़ के मामले में हम हिंदुस्तानियों का कोई सानी नहीं है। अगली बाढ़ के आने से पहले मैं यहाँ जल साफ करने का संयंत्र लगवाउँगा ताकि स्वच्छ जल में लोग जल क्रीड़ा का अधिक से अधिक आनंद ले सकें। उसके उद्घाटन के लिए मैं मशहूर तैराक माइकल फेल्प्स को निमंत्रण दूँगा।“


उसके बाद राजा के मीडिया मैनेजर ने जनता में जोश फूँकने के लिए एक नया नारा भी दे दिया, “हाथी घो‌ड़ा पालकी, जय शिवराज चौहान की।“ 

Friday, August 19, 2016

गोलगप्पे का स्वाद

सुबह से ही तेज बारिश हो रही थी इसलिए मौसम बड़ा सुहाना हो गया था। शाम को जाकर बारिश थम चुकी थी। मेरी पत्नी ने कहा, “चलो जरा बाहर टहल कर आते हैं। मौसम बड़ा ही सुहाना है। इसी बहाने बच्चे भी घूम लेंगे।“

मैने कहा, “चलो चलते हैं। रिंकी और टिंकू भी बहुत दिनों के बाद आये हैं। बोलेंगे की चाचा ने कुछ खिलाया पिलाया नहीं।“

रिंकी और टिंकू मेरे बड़े भाई के बच्चे हैं। मैं, मेरी पत्नी, मेरा बेटा गोलू, रिंकी और टिंकू; सब एक साथ निकल पड़े। लिफ्ट से बाहर आते ही सामने का पार्क नजर आ रहा था। बारिश होने के कारण धुली हुई पत्तियाँ तरोताजा लग रही थीं। अपार्टमेंट के ज्यादातर लोग शाम का आनंद लेने के लिए पार्क में टहल रहे थे। वहाँ से लगभग दो सौ मीटर चलने के बाद अपार्टमेंट का में गेट पड़ता है। उस गेट से निकलते ही बाहर एक शॉपिंग कॉम्पलेक्स है। उसके सामने; सड़क की दूसरी ओर कई ठेले वाले नजर आ रहे थे। वहाँ पर कुछ सब्जी वाले, फल वाले, अंडे वाले, आइसक्रीम वाले और एक गोलगप्पे वाला था। बच्चों ने आइसक्रीम की फरमाइश की थी। तभी मेरी पत्नी ने कहा, “क्यों ना आज गोलगप्पे खायें। लगता है एक अरसा बीत गया गोलगप्पे खाये हुए। जब हमारी नई-नई शादी हुई थी तब तो आप मेरे लिये ढ़ेर सारे गोलगप्पे लाया करते थे।“

मैने कहा, “हाँ उस शहर में गोलगप्पों के अलावा और कुछ भी नहीं मिलता था।“

फिर हम गोलगप्पे के खोमचे के पास खड़े हो गये। बच्चों ने बड़ी मुश्किल से गोलगप्पे खाने के लिए हामी भरी। फिर हम लोग उस खोमचे के आसपास एक गोला बनाकर खड़े हो गये। गोलगप्पे वाले ने हम सबको एक एक डिस्पोजेबल प्लेट पकड़ा दी। फिर उसने बड़े ही लगन के साथ आलू, प्याज और मसाले का मिक्सचर तैयार किया। वह बड़ी ही फुर्ती से गोलगप्पे में सुराख करता, उसमें आलू मसाला डालता और फिर गोलगप्पे को बड़ी सी हाँडी में डुबोने के बाद हमारी प्लेटों में डाल देता। उसकी दक्षता देखकर कोई भी उसका कायल हो जाये। गोलगप्पों में वही खास स्वाद और चटकारापन था जो कि अकसर हुआ करता है। मैने कोई पाँच गोलगप्पे खाए होंगे। मेरी पत्नी ने दस गोलगप्पे खाये। लेकिन उन तीन बच्चों ने मिलकर दस से अधिक नहीं खाये होंगे।

मुझे इसमें कोई ताज्जुब भी नहीं हुआ क्योंकि वे आधुनिक जमाने के बच्चे हैं और वो भी टीनएजर। फिर भी मैंने रिंकी से पूछा, “बेटा, गोलगप्पे कैसे लगे?”

रिंकी ने जवाब दिया, “इंटेरेस्टिंग!

टिंकू ने कहा, “वंडरफुल, लेकिन उतना भी टेस्टी नहीं जितना कि आप और चाची उछल रहे थे।“

गोलू ने कहा, “मैने तो रिंकी और टिंकू का साथ देने के खयाल से खा भी लिया वरना ऐसी चीजों को तो मैं हाथ भी नहीं लगाता। ये भी कोई चीज है खाने की। इतना मसाला, उसपर से उसकी गंदी सी हाँडी। जब वह अपनी उंगलियाँ उस हाँडी में डुबाकर गोलगप्पे निकालता है तो मुझे तो घिन आती है। पता नहीं आप लोग ऐसी चीजें पचा कैसे लेते हैं?”

फिर रिंकी ने कहा, “चाचा, अब हमारी आइसक्रीम तो बनती ही है।“

मैने पास ही खड़े आइसक्रीम वाले से कहा, “भैया, इनको इनके पसंद की आइसक्रीम दे दो।“


जब वे आइसक्रीम खा रहे थे तो मैं सोच रहा था, “अब आजकल के बच्चों को हमारे जमाने की चीजें कैसे पसंद आएँगी। पैकेट में बंद चीजों को खाते-खाते इनको तो पता ही नहीं कि किसी के हाथ से बनी चीजों में क्या स्वाद होता है।“ 

गोलगप्पे की दुकान

शाम में मैं अपने अपार्टमेंट के बाहर टहल रहा था तभी मेरी पत्नी अचानक से लगभग चिल्ला उठी, “अरे देखो, लगता है किसी नये गोलगप्पे वाले ने वहाँ पर अपना ठेला लगाना शुरु किया है।“

मैंने देखा कि आगे तिराहे पर एक नया ठेला नजर आ रहा था। उस ठेले के इर्द गिर्द आठ दस लोग खड़े थे। गोलगप्पे वाला उन सबों को बारी बारी से गोलगप्पे खिला रहा था। मैंने कहा, “अरे वाह, ये तो अच्छी बात है। यहाँ आसपास बड़ी मुश्किल से कोई भी खाने की चीज मिल पाती है। अंदर शॉपिंग कॉम्पलेक्स में जो गोलगप्पे वाला है वह बहुत ही घटिया गोलगप्पे बनाता है। चलो इसके गोलगप्पे खाकर देखते हैं।“

उस नये गोलगप्पे वाले के गोलगप्पे खाकर मजा आ गया। गोलगप्पे बिलकुल करारे थे और उसका पानी तो लाजवाब था। सबसे बड़ी बात ये कि उसने दस्ताने भी पहन रखे थे। फिर मैंने अपने बेटे और उसकी दादी के लिए गोलगप्पे पैक करवाये और वापस अपने फ्लैट में आ गया।

लगभग एक सप्ताह बीतते बीतते उस गोलगप्पे वाले की निकल पड़ी। रोज शाम के चार बजे वह वहाँ पर पहुँच जाता था। उसके गोलगप्पे खाने के लिए मेरे अपार्टमेंट से लोगों का हुजूम निकलने लगा। आठ बजते-बजते उसके सारे गोलगप्पे बिक जाते थे। दरअसल यह अपार्टमेंट शहर के बहुत बाहर बना है और आसपास के इलाके में अभी भी ग्रामीण माहौल है। अपार्टमेंट में एक छोटा सा शॉपिंग कॉम्पलेक्स है जिसमें जरूरत की चीजें मिल जाती हैं। वहाँ पर कुछ किराना स्टोर्स, दवा की दुकानें, एक स्टेशनरी की दुकान और एक नाई की दुकान है। इसके अलावा कुछ सब्जी वाले बैठते हैं जो बहुत ही घटिया सब्जियाँ रखते हैं। एक गोलगप्पे वाला है जो घटिया गोलगप्पे बेचने के अलावा बहुत ही बदतमीज किस्म का इंसान है। कुछ समोसे या नूडल या मोमो की दुकानें बीच बीच में खुलती हैं लेकिन खराब क्वालिटी होने के कारण उनकी दुकानें महीने भर भी नहीं चल पाती हैं। कोई भी अच्छी चीज लाने के लिए यहाँ रहने वाले लोगों को पास के ही एक बाजार जाना पड़ता जो यहाँ से पाँच किलोमीटर दूर है। ऐसी स्थिति में स्वादिष्ट और साफ सफाई वाले गोलगप्पे मिलना यहाँ रहने वाले लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं था।

लेकिन उस गोलगप्पे वाले को किसी की नजर लग गई। लगभग पंद्रह दिन बीते होंगे कि उसका ठेला वहाँ से गायब हो गया। इसका पता मुझे तब लगा जब मैं किसी शाम को गोलगप्पे खाने के लिए उस तिराहे की ओर गया। आसपास के फलवालों और सब्जी वालों से पूछने पर पता चला कि वह सड़क के उस पार स्थित गाँव का रहने वाला था। ये भी पता चला कि उसने अब अपने गाँव में ही ठेला लगाना शुरु किया था। अब शाम में उस गाँव में जाने की मेरी हिम्मत नहीं थी इसलिए मैने सोचा कि उसके बारे में अगले दिन पता करूँगा।

अगले दिन मैं अपनी बाइक से उस गाँव में गया। थोड़ी ही देर में मुझे उस गोलगप्पे वाले का पता चल गया। उसका ठेला एक बरगद की पेड़ के नीचे लगा था। कुछ इक्का दुक्का ग्राहक उसके पास खड़े थे। मैने उससे पूछा, “अरे भैया, क्या हुआ? यहाँ क्यों चले आये? वहाँ तो ज्यादा बिक्री हो रही थी।

गोलगप्पे वाले ने कुछ उदास सुर में कहा, “क्या बताऊँ साहब, उस अपार्टमेंट के पास कुछ लोगों की रंगदारी चलती है। शॉपिंग कॉम्पलेक्स में जो गोलगप्पे की दुकान लगाता है वह कुछ दबंगों के साथ मेरे पास आया। उन्होंने पहले तो मुझसे गाली गलौज की और वहाँ से ठेला हटाने को कहा। उनके कहने के बावजूद जब मैंने अगले दिन भी अपना ठेला लगाया तो उन्होंने मेरे साथ मारपीट भी की। कहने लगे कि उस अपार्टमेंट में उनकी मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता।“

मैने उससे कहा, “हाँ भैया, अब उनसे झगड़ा तो नहीं कर सकते। खैर छोड़ो, आज के लिए मेरे लिये पचास रुपए के गोलगप्पे पैक कर दो।“

मैं वापस अपने घर में आ गया। गोलगप्पे खाते हुए मैने अपनी पत्नी से कहा, “अजीब जमाना आ गया है। एक गरीब आदमी को लोग नई दुकान भी नहीं खोलने देते।“


मेरी पत्नी ने कहा, “इसमें अजीब क्या है? जहाँ जिसकी चलती है वह वहीं पर अपनी ताकत दिखाता है। देखते नहीं किस तरह से दिल्ली के ऑटो वालों और टैक्सी वालों ने ओला कैब के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। अब तो मुख्यमंत्री भी ओला कैब के खिलाफ कानून बना रहे हैं। पता नहीं ये लोग कौन होते हैं ये फैसला करने वाले कि मुझे किस टैक्सी से जाना चाहिए या किस दुकान से सामान खरीदना चाहिए?” 

Wednesday, August 17, 2016

Staying in a Five Star Hotel

I have observed that most of the people who join as medical representatives come from middle class backgrounds. When I joined Pfizer, India had yet to reap the benefits of liberalization because of a time lapse of just above two years. People of my generation were not exposed to things; like cable television. Internet was still in the realms of science fiction. As I come from a small town so even looking at a photograph of a good hotel was a thing of luxury to me.

Before joining Pfizer, I had been working with Cadila so had been to a three star hotel at Patna to attend some sales meeting. But staying in a five-star hotel was still beyond my wildest imagination. After clearing the written test and several rounds of interview at Bombay, we were told to go to a doctor for a round of medical checkup. After about a couple of days we were told to check in at the Ramada Hotel. I hired an auto-rickshaw and loaded my luggage on that to go to the above-mentioned hotel. Before starting my journey, I showed the address of the hotel to the auto driver. After a half an hour drive, the auto-driver stopped near a nice looking hotel and said, “Hey Sahib, here is your hotel. Pay my bill and get down here.”

I craned my neck to see an imposing structure in front of me. I was simply mesmerized at that imposing and glistening façade of the hotel. My first thought was that the auto-driver must have done some mistake by stopping near such a grand hotel. I meekly asked the auto-driver, “Are you sure, we have reached the right hotel.”

He said, “Yeah, you can check the address from your envelope.”

I once again checked the address, which was written on the envelope. To make myself sure, I tallied each letter of the hotel’s name on the envelope with what was written on the huge neon sign atop the hotel. I got down from the auto and placed my luggage on the sidewalk. Still being unsure, I was trying to peep through the glass door which was behind a burly mustachioed gatekeeper. The sight of the tall and well built gatekeeper further frayed my nerves. While my mind was going through all the turmoil, I could get a glimpse of many detailing bags (the typical leather bags of medical representatives) kept like a huge pile near the reception desk.


The sight of the stack of detailing bags gave me enough courage and then only I could enter the gate of Ramada Hotel; where our training was to begin from the next day. 

Tuesday, August 16, 2016

The Kite Expert

Kite flying is a popular pastime in many parts of the world. In our country, kite flying is associated with different festivals in different parts of the country. For example; Gujarat is famous for kite flying during Makar Sankranti which usually takes place on 14th of January. I have seen that people of the eastern Uttar Pradesh also enjoy kite flying during the festival of Makar Sankranti. The people of Delhi have reserved the Independence Day for this spectacle.

If you are living at Delhi or happen to be in Delhi around 15th of August then you can see the whole sky dotted with colorful kites around this date. Some of the enthusiasts make elaborate preparations for this in advance. The activity reaches its peak on 15th of August; with every rooftop full of kite experts, spectators and cheerleaders. Some people also arrange grand parties at their rooftops on this occasion; with whisky and beer in full flow. This is often accompanied by sounds of loud music. The scene is further enriched by impromptu dance performances by people of all ages.

Some people are so adept at the art of kite flying that they can make a kite soar in the sky without the help of bulky spools. For them, a reel of string is enough. Some people are experts in playing the game of ‘Patangbazi’. This game involves entangling other kites and slashing their strings with the precision of a surgeon’s scalpel. The moment a kite is set free of its proverbial umbilical cord, it starts wobbling like a dead bird in the sky. Some people just run after the ‘dead kite’ to become a winner of looting that kite. Apart from the expertise, the kite experts also need specially made string called ‘manjha’ to cut their competitors’ kites. A manjha is usually made by applying a layer of fine shards of glass on the string. Now-a-days, plastic strings are also available by the name of ‘Chinese Manjha’. They are quite popular among the kite experts but have earned a bad reputation for causing many freak accidents. Some of the accidents have even turned out to be lethal by killing some innocent passerby.

Let us now come to the point, i.e. the story of some kite enthusiasts who are not experts. They can be termed as dilatants at the most. I am not even among them but I try to buy lots of kite for my son. My son has been trying to learn to fly a kite but till date he is unsuccessful in doing so. But as any other caring father, I have to concede to his demand by buying lots of kite, string, manjha and spool. This has been going on since many years. I have to buy a new stock of everything each year because the old stock becomes useless because of lack of use.

 On the D-day, I accompanied my son to the rooftop to assist him in flying the kite. Some children and some grown up guys from my apartment were already on the rooftop. Let me introduce some of them to you. Sai is about 17 years old and he is in the 12th class. Rajat is about 27 years old and is working in a call centre since two years. Sunil is about 35 years old and is working at some managerial position in a reputed travel agency. He is accompanied by his five years old son. It is needless to say that all of them have come with good quantity of kites and accessories. People on the adjacent rooftop have two experts in their team. Others in that team are onlookers, enthusiasts, assistants, cheerleaders. That crowd also includes some hangers-on who utilize such occasions to enjoy the free liquor.

After wishing a ‘Happy Independence Day’ to each other we sat down for the real work. Almost everyone was carrying a tablet or a smartphone. All of us were watching some videos on YouTube about ‘how to tie the strings to a kite’. After carefully watching the video, I tried to tie the strings to a kite. It appeared to be good and was looking similar to what was shown in the video. Rajat, Sai and Sunil were also successful in tying their kites; as show in the video on YouTube. After that, we searched for videos on ‘How to fly a kite’. But most of the results were of no use for us as they were showing huge kites which are not used in our setup. After that, I typed ‘How to fly an Indian kite’ in the search box. The search result gave use some useful videos. After watching the video, I asked my son to take the kite at a distance from me. On my instructions, he lifted the kite up in the air and released it with an upward thrust. It tried to pull on the string in all directions but the kite refused to go up in the sky. It just nosedived like an outdated model of Mig fighter planes. Seeing that, all of us had a hearty laugh. People on the adjacent roof laughed with some tinge of sarcasm. We took their sarcasm in our stride and tried to focus on our business. Rajat and Sai were helping each other in flying their kites. They also met the same fate as us. Sunil’s son was too small to be of any help and hence my son was helping him in flying the kite.

We continued like that for about an hour. Many of our kites were torn during our endless efforts. But none of our kites were brave enough to soar in the sky. Meanwhile, I spotted a street urchin who had also come to the rooftop to enjoy the celebrations. I called him and requested him to fly my kite. He was really happy to oblige. He took out a new kite and tied it with some strings. He did that pretty quickly, the way any kite expert would do. He held the kite in one hand and held another end of the string in another hand. Within a few seconds, my kite was soaring high in the sky. While he was busy in pushing the kite in the sky, I was busy making a video of the spectacle. After that, I and my son took turns to hold the string for a few seconds to enjoy the thrill of flying a kite.


That street urchin was kind enough to help Rajat, Sai and Sunil in flying their kites as well. I offered a full bottle of soft drink to that little boy as a token of thanks. Thus, our kite flying festival which had started with a whimper had ended with the much needed hype of a loud round of cheers from all of us.