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Saturday, January 7, 2017

साढ़े चार हजार रुपए

सुबह के दस बजने वाले थे। चिंटू और बंटी सेंट्रल मॉल के पास पहुँचे ही थे। चिंटू ने पार्किंग में बाइक लगाई और सीधा सामने वाले एटीएम की ओर देखा। एटीएम के बाहर सन्नाटा देखकर उसका दिल धक से रह गया।

चिंटू के चेहरे के भाव को पढ़कर बंटी ने कहा, “लगता है तुम्हें भी वही आशंका हो रही है जो मुझे हो रही है।“

चिंटू ने कहा, “हाँ लगता है एटीएम में पैसे नहीं हैं। अब क्या करें?”

बंटी ने कहा, “कहने को तो इस मार्केट में लगभग बीस एटीएम हैं लेकिन ये इकलौता एटीएम है जिसने लगभग हर दिन सही काम किया है। आज तो इसने भी धोखा दे दिया।“

चिंटू ने कहा, “इतनी जल्दी हताश नहीं होते। चलो, पास चलकर पता करते हैं।“

फिर दोनों सड़क पार करते हुए उस एटीएम के पास पहुँचे। तभी उन्हें अंदर से दरबान बाहर निकलता हुआ दिखाई दिया। चिंटू ने दरबान से पूछा, “भैया, क्या हुआ? आज पैसे नहीं आये?”

दरबान ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा, “नहीं साहब, आज पैसे भी आये हैं और एटीएम भी काम कर रहा है। एक जनवरी के बाद से हालत में बहुत सुधार आ गया है। अब पाँच पाँच घंटे लाइन लगने की जरूरत नहीं है।“

चिंटू ने कहा, “अच्छा, बड़ी अच्छी बात है। वैसे, कितने पैसे निकल रहे हैं अब?”

दरबान ने कहा, “अब तो साढ़े चार हजार निकल रहे हैं, वो भी पाँच सौ के नोट।“

बस फिर क्या था, चिंटू और बंटी लपक कर एटीएम केबिन के अंदर चले गये। पलक झपकते ही दोनों ने साढ़े चार-चार हजार रुपये निकाल लिये। दोनों की खुशी का ठिकाना न था। बाहर आते-आते बंटी बता रहा था, “याद है? लगभग दस दिन पहले हमारी क्या हालत हुई थी? इस एटीएम के पास सुबह दस बजे से तीन बजे तक खड़े रहने के बाद पता चला था कि पैसे खत्म हो गये।“

चिंटू ने कहा, “हाँ, उसके बाद हम पास में यूनियन बैंक की एटीएम के पास तीन घंटे लाइन में लगे थे। हमारा नंबर आने ही वाला था कि सर्वर फेल हो गया था। फिर हमलोग खाली हाथ वापस लौट गये थे।“

बंटी ने कहा, “हाँ और फिर अगले दिन फिर इसी एटीएम के पास शाम के पाँच बजे तक लाइन में खड़े होने के बावजूद पैसे नहीं मिले थे।“

चिंटू ने कहा, “आखिरकार तीसरे दिन हम पैसे निकालने में कामयाब हुए थे, वो भी केवल दो हजार रुपए।“

रुपए निकालने के बाद दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा। दोनों भाइयों की आँखें नम हो रहीं थीं। चिंटू ने कहा, “याद है, एक दिन पैसे की कमी के कारण हमें बिना बटर के ही ब्रेड खानी पड़ी थी।“
बंटी ने कहा, “हाँ, वो भी तब जब हमारे खाते में पैसे भी थे और हमारा एटीएम कार्ड भी पास में ही था।“

चिंटू ने कहा, “हद तो तब हो गई थी जब पास में पैसे न होने की वजह से मैं नौकरी के लिए इंटरव्यू देने नहीं जा पाया था।“

बंटी ने कहा, “सोचो, आज डेमोक्रेसी के जमाने में ये हालत है। मैं तो यही सोचकर डर जाता हूँ कि किसी सनकी राजा के जमाने में लोगों की क्या हालत होती होगी।“

चिंटू ने कहा, “जो हुआ उसे भूलने में ही भलाई है। पास्ट या फ्यूचर के बारे में सोचने की बजाय हमें प्रेजेंट को एंजॉय करना चाहिए। चलो, मैकडॉनल्ड चलते हैं। एक एक बर्गर खाएँगे।“

बंटी ने कहा, “सिर्फ बर्गर क्यों? चलो पूरा मील खाते हैं। आज इतनी ट्रीट तो बनती ही है।“


फिर दोनों पास के ही मैकडॉनल्ड के रेस्तरां में गये। वहाँ पर उन्होंने बर्गर इस तरह से खाया जैसे कि पहले कभी न खाया हो।

थोड़ी देर के बाद दोनों वापस अपने घर पहुँच गये। चिंटू ने अपनी माँ को साढ़े आठ हजार रुपये दिये और कहा, “माँ, आज तो कमाल हो गया। आज एटीएम के बाहर एक भी आदमी नहीं था। और तो और, पैसे भी आज ज्यादा निकल रहे थे। एक कार्ड से साढ़े चार हजार रुपये। हम दोनों ने मिलकर नौ हजार रुपये निकाल लिये। अब तुम आराम से कामवाली, पेपर वाले, पानी वाले, दूधवाले और गाड़ी पोंछने वाले को पैसे दे सकती हो।“

उनकी माँ ने पैसे लेते हुए पूछा, “लेकिन तुम तो केवल साढ़े आठ हजार ही दे रहे हो। बाकी के पाँच सौ कहाँ गये?”

बंटी ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा, “वो ऐसा हुआ कि इतनी आसानी से पैसे निकल जाने से हम बहुत खुश हो गये। फिर हमलोग मैक डॉनल्ड में चले गये। दोनों ने पूरी की पूरी मील खा ली। उसी में पैसे खर्च हो गये। लेकिन तुम चिंता ना करो। मैं कल फिर जाकर नौ हजार और निकाल लाउँगा।“

उनकी माँ ने कुछ नहीं कहा। बस दोनों के गालों पर एक हल्की सी चपत जड़ दी। 

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