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Wednesday, June 29, 2016

अखबार में फोटो

सुबह सुबह मैं अखबार पढ़ रहा था। पहले पेज पर ही हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी की तस्वीर छपी थी। पास में ही मेरी पाँच साल की बेटी बैठी थी। मैंने उसे वह फोटो दिखाई और पूछा, “ये किसकी फोटो है?”

उस छोटी सी बच्ची ने झट से पहचान लिया और बोली, “मोदी!”

मैं भी आश्चर्य में पड़ गया क्योंकि उस उम्र के बच्चे तो सारा दिन कार्टून देखते हैं। भला उनकी अनोखी दुनिया में किसी राजनेता का क्या काम। मैंने उससे फिर पूछा, “तुम्हें कैसे पता? इस आदमी को कैसे जानती हो?”

उसने जवाब दिया, “अरे, पता नहीं है, यह आदमी बहुत बोलता है। जब देखो तब बोलता ही रहता है।“

उसका जवाब सुनकर मैं बहुत कुछ सोचने को विवश हो गया। वह अक्सर मेरे साथ पास के ही पार्क में खेलने जाया करती है। जब मैं वहाँ पर बैठकर अपने पड़ोसियों के साथ भारत की राजनीति, अर्थव्यवस्था जैसे गंभीर विषयों पर बहस लड़ाता रहता हूँ तो हो सकता है वह उन बातों को सुनती हो। हो सकता है कि उसने अपनी माँ को भी दाल की बढ़ती कीमत पर चिंता जताते हुए सुना होगा। हो सकता है कि उसने टीवी पर होने वाले असंख्य पैनल डिसकशन को सुना होगा।

मुझे लगता है कि यह हमारी सत्ताधारी पार्टी के लिए भी चिंता का विषय है कि एक अबोध बच्ची उनके स्टार कैंपेनर का फोटो देखकर कहती है कि यह आदमी बहुत बोलता है। लगभग दो साल पहले भारत की जनता ने कांग्रेस के एक दशक के खराब शासन से तंग आकर, बड़ी उम्मीद से इस पार्टी को जिताया था। लोग इस उम्मीद में थे कि चीजों के दाम घटेंगे और लोगों की आमदनी बढ़ेगी। लेकिन हुआ ठीक उसके उलट। कुछ चीजों के दाम तो दोगुने से भी ज्यादा हो गए। रुपया और भी अधिक कमजोर हो गया। कई लोग: जो प्राइवेट नौकरी करते थे; अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे। देश में कई जगह सांप्रदायिक तनाव बढ़ गए। मोदी जी की आड़ में कई नेताओं ने अपने विरोधियों को पाकिस्तान भेजने तक की धमकी दे डाली। मोटे तौर पर कहा जाए तो लोगों के सपने टूट गए।


मोदी जी अभी भी लोकप्रियता के मामले में अन्य किसी भी नेता से कोसों आगे चल रहे हैं। उनकी छवि एक मजबूत प्रशासक की है। उम्मीद है कि वे भी इस छोटी सी बच्ची की बातों पर ध्यान देंगे और अपनी पार्टी में वैसे लोगों का मुँह बंद करेंगे जिन्हें अनर्गल प्रलाप करने की आदत है। वे देश में ऐसा माहौल बनाने की कोशिश करेंगे ताकि यहाँ व्यवसाय फले फूले और आम जनता वाकई खुशहाल हो।  

तालमेल

“बड़ी देर लग गई लौटने में। क्या हुआ?” पूनम ने दरवाजा खोला और अपने पति से पूछा।

पूनम के पति विनोद ने अपना बैग लगभग पटकते हुए कहा, “हाँ, ट्रैफिक जाम कुछ ज्यादा ही था। आजकल तो अपनी कॉलोनी की ओर आने वाली सड़क पर कुछ ज्यादा ही जाम लगने लगा है।“

पूनम ने पानी का ग्लास विनोद के हाथों में थमाते हुए कहा, “जब हमने यहाँ शिफ्ट किया था तब तो ऐसा नहीं था। पिछले दो तीन सालों में इस कॉलोनी में नए मकान भी काफी बन गए हैं और नई दुकाने भी खुलती जा रही हैं। इसलिए जाम की समस्या बढ़ती ही जा रही है।“

विनोद ने एक ही साँस में पानी का गिलास खाली कर दिया और बोला, “अरे नहीं, देख नहीं रही हो सड़क पर हमेशा किसी न किसी काम के लिए खुदाई चलती ही रहती है। अरे तीन साल पहले ही तो नई सड़क बनी थी। इतने कम समय में ही इसकी हालत बदतर हो गई है।“

पूनम ने कहा, “पता नहीं, ये टेलिफोन वाले या जल बोर्ड वाले सड़क बनने के पहले अपना काम क्यों नहीं करते। उधर सड़क बनी नहीं कि इधर बिजली, टेलिफोन, जल बोर्ड और सीवर वालों की खुदाई चालू हो जाती है। सरकार के अलग-अलग विभागों में जरा भी तालमेल नहीं है।“

विनोद ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “नहीं, मुझे तो लगता है कि इनमें बड़ा ही अच्छा तालमेल है। सभी विभाग वाले इसी बहाने एक दूसरे की कमाई बढ़ाते रहते हैं।“

पूनम ने आश्चर्य से पूछा, “वो कैसे?”


इस पर संजय ने कहा, “एक बार सड़क के लिए टेंडर निकलेगा जिससे ठेकेदार, इंजीनियर और अफसरों को कमाने का मौका मिलेगा। जैसे ही सड़क बनेगी तो जलबोर्ड की खुदाई का टेंडर निकलेगा। फिर से किसी ठेकेदार और इंजीनियर को कमाई का मौका मिलेगा। फिर उसके बाद बिजली विभाग का टेंडर निकलेगा जिससे किसी अन्य ठेकेदार या इंजीनियर को कमाई का मौका मिलेगा। इस तरह से जब पूरी सड़क लगातार खुदाई से जर्जर हो जाएगी तो फिर सड़क बनाने के लिए टेंडर निकलेगा। इस तरह से ये चक्र चलता रहेगा। बात समझ में आई? है न कमाल का तालमेल।“