Pages

Saturday, July 30, 2016

जेनरल क्लास का टिकट

एक बार मैं वारणसी से फैजाबाद वापस आ रहा था। साइकल मीटिंग खत्म होने के बाद अगली सुबह को मैं ट्रेन पकड़ने के लिए वारणसी स्टेशन पहुँचा। काउंटर से एक जेनरल क्लास का टिकट खरीदा और जाकर स्लीपर क्लास में बैठ गया। वह ट्रेन शायद सरयू यमुना एक्सप्रेस थी। जेनरल क्लास में इतनी भी‌ड़भाड़ होती है कि उसमें यात्रा करना किसी भी नॉर्मल आदमी के लिए संभव नहीं होता। समय कम होने के कारण मुझे इतना मौका नहीं मिला कि मैं पहले से रिजर्वेशन करवा लूँ। वैसे भी छोटी दूरी की यात्रा के लिए हमलोग शायद ही रिजर्वेशन करवाते हैं।

जब ट्रेन वाराणसी से चल पड़ी तो थोड़ी ही देर में काला कोट पहने हुए टीटी आया जो टिकट चेक कर रहा था। चूँकि वह ट्रेन दरभंगा से आ रही थी इसलिए वह केवल उन्हीं लोगों के टिकट चेक कर रहा था जो वाराणसी से ट्रेन में चढ़े थे। मुझे दो बातों से हमेशा ताज्जुब होता है। पहला कि गर्मी के मौसम में भी ये टीटी कोट क्यों पहनते हैं। अब तो भारत को आजाद हुए एक लंबा अर्सा बीत चुका है और इसलिए कॉलोनियल हैंगओवर से मुक्ति मिलनी चाहिए। दूसरी बात ये कि ये टीटी ये कैसे जान लेते हैं कि केवल वैसे ही लोगों के टिकट चेक करने हैं जिन्हें मुर्गे की तरह हलाल किया जा सके।

टिकट चेक करते-करते वह टीटी मेरे पास पहुँचा। जब मैंने उसे अपना टिकट दिखाया तो उसके मुँह से निकला, “ये तो जेनरल क्लास का टिकट है।“

मैंने रूखे अंदाज में जवाब दिया, “पता है।“

टीटी फिर बोला, “लेकिन आप तो स्लीपर क्लास में बैठे हैं।“

मैंने कहा, “वो भी पता है।“

टीटी ने कहा, “आपको पता होना चाहिए कि जेनरल क्लास का टिकट लेकर स्लीपर क्लास में यात्रा करना गैरकानूनी है।“

मैने कहा, “मुझे ये पता है कि बर्थ खाली होने पर टीटी को जेनरल क्लास के टिकट को स्लीपर क्लास में कंवर्ट कर देना चाहिए। आप मेरे टिकट को कन्वर्ट कर दीजिए और उसकी रसीद बना दीजिए।“

टीटी ने फिर मेरे चमड़े वाले डिटेलिंग बैग को देखा और कहा, “लगता है आप एमआर हैं।“

बिहार और उत्तर प्रदेश में लोग मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव को प्यार से एमआर बुलाते हैं।

मैंने कहा, “हाँ आपने ठीक समझा है।“

फिर टीटी ने कहा, “लगता है बनारस किसी मीटिंग में आये थे और अब वापस जा रहे हैं। अरे भाई साहब, मैं भी कभी एमआर हुआ करता था। फिर बाद में रेलवे की नौकरी ज्वाइन कर ली।“

इतना कहने के बाद वह टीटी वहाँ से चला गया। लगभग एक घंटे के बाद वह दोबारा मेरे पास आया और पास में ही बैठ गया। फिर उसने मुझसे एमआर की नौकरी की तत्कालीन दशा और दुर्दशा के बारे में पूछा और अपने बीते दिनों को याद किया। उसके बाद उसने मेरे सामने एक सिगरेट का पैकेट बढ़ाया और पूछा, “आप सिगरेट का शौक फरमाते हैं?”

मैं सिगरेट नहीं पीता हूँ लेकिन किसी डॉक्टर या किसी केमिस्ट से ऑर्डर लेने के चक्कर में सिगरेट के कश लेने में कभी परहेज नहीं करता था। मैंने उसके हाथ से एक सिगरेट ली और फिर धुँआ उड़ाने लगा। काफी देर तक इधर उधर की बातचीत के बाद वह टीटी मुद्दे की बात पर आना चाहता था, “तो बताएँ, आगे क्या करना है?”

वह शायद मुझसे कुछ पैसे ऐंठने के चक्कर में था। मैं भी ठहरा पुराना चावल, जिसने घाट घाट का पानी पी रखा था। मैंने उससे कहा, “अब इसमें कहने सुनने के लिए रखा ही क्या है। आपने खुद बताया कि आप भी एमआर थे। अब न तो मुझे ये अच्छा लगेगा कि आपसे कुछ कहूँ सुनूँ और न ही आपको ये अच्छा लगेगा कि आप उसी धंधे के आदमी से कुछ कहें सुनें जिस धंधे में कभी आप भी हुआ करते थे।“


वह टीटी मेरा इशारा समझ गया। उसने एक फीकी मुसकान के साथ मुझे देखा और फिर बिना कुछ दान दक्षिणा लिए वहाँ से चला गया। 

बाघ ने गाय को क्यों मारा?

बाघ अपनी गुफा के आगे चिंतित मुद्रा में बैठा हुआ था। तभी सामने से उसका पुराना चमचा चंदू सियार आया। चंदू सियार ने बाघ से पूछा, “मालिक, क्या बात है? आप बड़ी चिंता में लग रहे हैं। सुबह से कोई शिकार नहीं मिला?”

बाघ धीरे से गुर्राया, “अरे, तुम्हारे जैसे चमचों के रहते मुझे शिकार रोज ही मिल जाता है। उसकी कोई चिंता नहीं है।“

चंदू सियार ने फिर पूछा, “तो फिर मालकिन ने कुछ कह दिया होगा। तभी सुबह सुबह मूड खराब है। चलिये तालाब के पास चलते हैं। सुना है वहाँ पर कई जवान बाघिन आई हैं।“

बाघ ने एक लंबी साँस लेते हुए कहा, “नहीं दरअसल बात ये है कि आजकल कुछ मनुष्य राष्ट्रीय पशु के ओहदे से मुझे हटाने की साजिश रच रहे हैं। उनमें से ज्यादातर लोग धार्मिक प्रवृत्ति के हैं और कहते हैं कि गाय को राष्ट्रीय पशु का ओहदा मिलना चाहिए।“

चंदू सियार ने कहा, “इससे क्या फर्क पड़ता है, गाय के राष्ट्रीय पशु बनने के बाद ऐसा तो नहीं हो जायेगा कि आप बाघ से गदहे बन जाएँगे। या फिर कोई भी गाय आएगी और आपको डराकर चली जाएगी।“

बाघ ने कहा, “तुम जूठन चाटने वाले सियार क्या समझोगे कि इज्जत की कितनी कीमत होती है। जब मैगजीन के कवर पर, डाक टिकट पर तस्वीर छपती है तो बहुत अच्छा लगता है। भला किसी ने राष्ट्रीय खेलों के लिए बाघ को छो‌ड़कर कभी किसी सियार को मैस्कॉट बनाया गया है। तुम नहीं समझोगे।“

सियार ने कहा, “इसके लिए आपने जंगल के राजा शेर से बात की? हो सकता है वो आपकी मदद करें।“

बाघ ने कहा, “अरे कहाँ का राजा? बस मुट्ठी भर बचे हैं गुजरात के जंगलों में और अपने आप को राजा समझते हैं। भला किसी ने सेव लायन करके कोई कैंपेन किया है। उसके लिए भी लोगों को सेव टाइगर का ही खयाल आता है।“

सियार ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा, “ठीक कहा मालिक, वैसे भी आजकल कई गुजराती मनुष्य अपने आप को शेर समझने लगे हैं। असली शेरों का अब वो रौब नहीं रहा।“

बाघ ने कहा, “अब अपनी पदवी बचाने के लिए मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। सोच रहा हूँ कि एक एक करके इन मनुष्यों का वध कर दूँ।“

सियार ने कहा, “लेकिन ऐसा संभव नहीं है मालिक। बाघों की संख्या तो पूरे हिंदुस्तान में दो हजार से कुछ कम ही होगी। और पता है आपको कि मनुष्य कितने हैं? पूरे एक सौ बीच करोड़। सब ने मिलकर यदि एक साथ बाघों को घुड़की भी दे दी तो फिर यह पूरी धरती बाघों से विहीन हो जाएगी।“

बाघ ने कहा, “अब तुम ही बताओ क्या करना चाहिए।“

सियार ने कहा, “आप आज से भोजन के लिये गायों का शिकार करना शुरु कर दीजिए। जहाँ दस बीस गायेँ मरेंगी लोग डर के मारे गाय पालना ही छो‌ड़ देंगे। जब लोग डर जायेंगे तो गायें अपने आप डर जायेंगी। वे तो ऐसे भी गऊ होती हैं, मतलब बिलकुल सीधी सादी।“


उसके बाद बाघ ने एक लंबी दहाड़ ली। वह वहाँ से उठकर पास के गाँव गया। उसके सामने सबसे पहले जो गाय आई उसने उसे वहीं मार गिराया। लोगों का शोरगुल सुनकर मरी हुई गाय को वहीं छो‌ड़कर वह बाघ दुम दबाकर जंगल की ओर भागा।