Pages

Monday, April 30, 2018

नई लड़की की प्रोफाइल


रात के बारह से ऊपर ही बज रहे होंगे। पूरे घर में सन्नाटा पसरा था। बीच बीच में बाहर से किसी बिगड़ैल युवक के बिगड़ैल बुलेट के बिगड़ैल साइलेंसर से फट-फट की तेज आवाज से सन्नाटा भंग भी हो रहा था। ऐसे में दो भाई अपनी रजाई में दुबक कर अपने अपने फोन के सहारे बाहर की दुनिया की सैर कर रहे थे।

“अरे भाई, वो नया वाला प्रोफाइल देखा? गजब की लगती है।“ सनी ने फुसफुसाते हुए कहा।

जवाब में बॉबी ने कहा, “हाँ, उसने तो मेरा फ्रेंड रिक्वेस्ट भी एक्सेप्ट कर लिया है। लेकिन एक बात बताओ, इतना फुसफुसा काहे रहे हो।“

सनी ने फिर से धीमी आवाज में कहा, “अरे अपने कठोर दिल बाप हिटलरेंद्र सिन्हा जाग गये तो फिर अरली टू बेड, अरली टू राइज” पर एक घंटे का प्रवचन देंगे।“

उसके बाद लगभग डेढ़ दो घंटे तक ऑनलाइन और ऑफलाइन बातचीत करने के बाद दोनों भाई सो गये। अगली सुबह जब दोनों नाश्ते पर बैठे थे तो उनके पिता हितेंद्र सिन्हा की कड़क आवाज उनके कानों तक पहुँची, “बहुत बढ़ गया है तुम लोगों का। रात में जाग कर पढ़ने बोलो तो नींद आती है। लेकिन इंटरनेट पर जाने क्या क्या देखते रहने में तो पूरी रात ऐसे नींद गायब हो जाती है जैसे इसका रिसर्च कर रहे हो कि महाभारत काल मे ही सॉफ्टवेयर डेवलपर हुआ करते थे। अब ज्यादा हुआ तो स्मार्टफोन छीनकर हाथ में सैमसंग गुरु थमा देंगे।“

बॉबी ने थोड़ी हिमाकर दिखाई और बोला, “अरे पापा, आपके जमाने में मोबाइल फोन कहाँ होते थे। आप क्या जाने, इसमें कितनी ताकत होती है। पूरी दुनिया की खोज खबर आपकी मुट्ठी में रहती है। आपके जमाने की तरह अब किसी खबर की पुष्टि के लिये बी बी सी के बुलेटिन का इंतजार नहीं करना पड़ता है।“

हितेंद्र सिंहा लगभग गरजते हुए बोले, “हाँ हाँ, लेकिन मुझे इतना पता है कि जिस उम्र में तुम कैंडी क्रश करने में अपना समय बरबाद कर रहे हो उस उम्र में उस मार्क जकरबर्ग ने फेसबुक बना लिया था। यहाँ तो बैंक क्लर्क का इम्तिहान नहीं निकाल पा रहे हो।“

बाकी के बचे नाश्ते को दोनों भाइयों ने जबरदस्ती गले के नीचे धकेला और अपने अपने बैकपैक टांगे हुए घर के बाहर लपक लिये। कॉलेज में आजकल क्लास तो होते नहीं सो सीधा पहुँचे वर्मा सर की कोचिंग क्लास के लिये। किसी सरकारी स्कूल की पुरानी बिल्डिंग में कोचिंग क्लास चलता था। 

सरकारी स्कूल की खंडहरनुमा बिल्डिंग इस बात की गवाही दे रही थी कि कभी उस स्कूल की अपनी आन बान शान रही होगी। लेकिन अब तो उस स्कूल में बच्चे केवल इसलिए एडमिशन लेते हैं ताकि उन्हें मुफ्त की साइकिल, कपड़े और मिड डे मील की सप्लाई चालू रहे। अब तो नुक्कड़ के पान वाले का बेटा भी इंगलिश मीडियम स्कूलमें ही पढ़ता है। ये अलग बात है कि उस शहर के किसी भी इंगलिश मीडियम स्कूल के टीचर तक को अंग्रेजी बोलनी नहीं आती है। स्कूल की उस बिल्डिंग का सदुपयोग करने के लिये हेडमास्टर ने किराये पर उसे कोचिंग वाले को दे दिया था। जो किराया आता था उसे ओहदे के हिसाब से सरकारी स्कूल के सभी शिक्षकों में बाँट लिया जाता था।

वहाँ पर क्लास शुरु होने में अभी समय था इसलिये सभी अपने यार दोस्तों के साथ लगे हुए थे।
पूरे कॉरिडोर में बीस से लेकर तीस साल के लड़के लड़की भरे पड़े थे। लेकिन उतनी भीड़ होने के बावजूद वहाँ पर लगभग खामोशी छाई हुई थी। बीच बीच में हाय, व्हाट्स अपके एकाध सुर सुनाई दे जाते थे। वहाँ पर इकट्ठे लड़के लड़की आपस में बातचीत ना के बराबर कर रहे थे। लगभग सभी के कानों में ईयर-फोन ठुंसा हुआ था और सबकी नजरें अपने या किसी और के मोबाइल की स्क्रीन पर थीं। काश हमारे जमाने में ऐसी कोई टेक्नॉलोजी रहती तो हमारे मास्टरजी को बिलावजह बेंत का इस्तेमाल न करना पड़ता। क्लास में ऐसे ही खामोशी छाई रहती।

बॉबी अपने मोबाइल की स्क्रीन में लगभग डूब ही चुका था कि उसे सनी की आवाज सुनाई दी, “पता है, वो नई प्रोफाइल वाली लड़की अपने ही शहर महनार की है।“

सनी चहक उठा, “वाह, तब तो मजा आ जायेगा। बड़ा भाई होने के नाते उस पर मेरा अधिकार पहले बनता है। तुम्हें भी इसी बहाने भाभी तो मिल जायेगी।“

बॉबी की भंवे टेढ़ी हो गईं और उसने कहा, “अरे वाह, अभी सही से चेहरा भी नहीं देखा और पंचवर्षीय योजना भी बन गई। क्या पता प्रोफाइल में किसी सुंदर लड़की का फोटो लगाया हो और खुद किसी भैंस की तरह दिखती हो।“

सनी ने कहा, “अरे नहीं, मैने तो उसके पेज पर पोस्ट भी कर दिया है कि उसकी आँखों में एक अलग तरह की इमानदारी झलकती है। उसने उसके जवाब में चार-चार इमोजी डाले हैं, वो भी दिल वाले।“

बॉबी ने कहा, “अरे भैया, वो हम दोनों से खेल रही है। मैने तो उसके पेज पर कुछ गंदी-गंदी बातें भी लिखी थी। उसके जवाब में भी मुझे चार-चार दिल मिले हैं।“

इतना सुनते ही सनी को गुस्सा आ गया। वह बोला, “तुम्हें तो बड़े छोटे का लिहाज भी नहीं मालूम। एक बार कह दिया कि वो तुम्हारी भाभी है तो बस। अपने पाजामे में रहो तो ठीक लगोगे। वरना धर दूंगा एकाध कि होश ठिकाने आ जायेगा।“

बॉबी ने हंसते हुए कहा, “अरे जाओ, अपना नाड़ा संभलता नहीं और आये हमारी लंगोट टाइट करने। अरे, एक ही साल बड़े हो, कोई पाँच साल नहीं। और फिर पढ़ते हो मेरी ही क्लास में तो क्लासमेट भी हो गये। इसलिये ज्यादा गार्जियन न बनो। पहले से ही एक काफी हैं, वो अपने हिटलरेंद्र सिन्हा।“

उसके जवाब में सनी ने थप्पड़ मारने के लिये अपने हाथ उठा लिये। बॉबी फुर्ती से उठा और वहाँ से भाग लिया। पीछे-पीछे सनी भी भागने लगा। बाकी लड़कों ने बीच-बचाव करके झगड़े को शांत किया। उनसे पता चला कि पिछले चार पाँच दिनों में कई लड़के उस नई लड़की के दीवाने हो गये थे जिसने हाल ही में सोशल मीडिया पर अपना प्रोफाइल डाला था। सारे लड़के बड़ी उम्मीद में लग रहे थे, जिसके दो कारण थे। एक तो वह लड़की उसी शहर की लग रही थी और दूसरा कि वह सबके कॉमेंट को मुकम्मल तरजीह दे रही थी।

उधर घर पर हितेंद्र सिन्हा पाँच बजे के आस पास अपने ऑफिस से लौटकर शाम की चाय का मजा ले रहे थे। सोफे के आगे रखे सेंटर-टेबल पर मल्टीग्रेन बिस्किट रखा था। एक प्लेट में पकौड़ियाँ भी रखी थीं। हितेंद्र सिन्हा प्रति बिस्किट के साथ चार पाँच पकौड़ियाँ तो देख ही ले रहे थे। बगल में बैठी उनकी पत्नी साधना सिन्हा ने कहा, “हो गया तुम्हारा सेव हेल्थी हार्टका प्लान। बस जमकर पकौड़े खाओ।“

हितेंद्र सिन्हा ने जैसे अपनी पत्नी की बात को सुना ही नहीं। उन्होंने कहा, “कहाँ हैं, तुम्हारे दोनों राजकुमार? आजकल पर निकल आये हैं इनके। गधे जैसे हो गये हैं लेकिन अब तक बाप के होटल में ही रुकने का प्लान लगता है इनका।“

साधना ने कहा, “तुम भी कमाल करते हो। अभी उम्र ही क्या हुई है इनकी। सनी ने पच्चीस पूरे किये हैं और बॉबी ने पच्चीसवें साल में कदम ही रखा है। बेचारे, एक बार घर आ जाते हैं तो फिर कभी बाहर घूमने तक नहीं जाते।“

हितेंद्र सिन्हा ने कहा, “हाँ हाँ, घर आते भी तो दस बजे रात में हैं। उसके बाद तुम फिर से सजा धजा कर घूमने भेज दिया करो। किसी चौराहे पर मटरगश्ती करने के लिये।“

साधना ने कहा, “कमाल है, घर में रहें तो अपने ही बच्चों से तुम्हें बदबू आने लगती है। जबकि ये दोनों तो अपने कमरे में बिलकुल शांत पड़े रहते हैं। थोड़ा बहुत हेडफोन पर गाना सुनते रहते हैं। हम भी तो अपने जमाने में बिनाका गीत माला सुना करते थे।“

हितेंद्र सिन्हा ने प्लेट में रखी आखिरी पकौड़ी को साफ कर दिया और बोले, “बिनाका गीत माला केवल बुधवार को आता था, वो भी रात में आधे घंटे के लिये। अब तो सावन डॉट कॉम से तो आप चौबीसों घंटे गाने सुन सकते हैं। आजकल तो और भी साधन हैं इनका फोकस खराब करने के लिये; फेसबुक, ट्विटर, व्हाटसैप, इंसटाग्राम, और ना जाने क्या क्या। उसपर से हर महीने का मोबाइल बिल।“

साधना ने कहा, “अच्छा और तुम जो वो फेसबुक पर खुशवंत सिंह के चुटकुले पोस्ट करते रहते हो उसका क्या? अभी जो हम किट्टी की शादी में गये थे तब तो तुम मेरे छोटे भाई की बीबी के साथ खूब फोटो खिंचवा रहे थे, सेल्फी भी ले रहे थे। कल तो तुमने एक फोटो पोस्ट भी किया था। मैंने अभी तक लाइक भी नहीं किया तब तक तुम्हारे ससुराल वालों की ओर से एक सौ से ज्यादा लाइक भी मिल गये। 

हितेंद्र सिन्हा ने ठहाका लगाते हुए कहा, “कमाल है, मेरे ससुराल वाले तुम्हारे गैर थोड़े ही हैं। उनसे इतनी जलन। आखिर मैं इकलौता दामाद हूँ। इतना तो बनता है।“

हितेंद्र सिन्हा ने फिर कहा, “खैर छोड़ो इन बातों को। अभी इनके करियर बनाने के दिन हैं। एक बार अच्छी नौकरी लग जाये फिर जो जी में आये करें। अभी कुछ न कुछ करना पड़ेगा। मैने भी वो दिमाग लगाया है कि मान जायेगे कि मैं उनका बाप हूँ।“

साधना ने कहा, “जब मैंने तुम्हें काफी पहले सर्टिफिकेट दे दिया है तो फिर इसमें साबित करने के लिये रखा क्या है। अब बच्चे हैं। एक दिन अपने आप समझ आ जायेगी। ऐसे भी आजकल जमाना बदल चुका है। अब पहले की तरह जवान बच्चों को डाँटने फटकारने का समय नहीं रहा।“

इसी बीच सनी और बॉबी घर में दाखिल हुए। दोनों ने अपने कमरे में अपने बैकपैक को फेंका और अपनी माँ के अगल बगल धम्म से बैठ गये। बॉबी ने कहा, “मम्मी, एक गरमागरम कॉफी हो जाये तो मजा आ जाये।“

साधना सिन्हा उठी और किचन में चली गईं। किचन के अंदर से पतीले और चम्मच के मेल से उत्पन्न होने वाली मधुर ध्वनि आने लगी। इधर हितेंद्र सिन्हा ने अपने बेटों को संबोधित करते हुए कहा, “आजकल दोनों भाई ज्वाइंट वेंचर में फ्लर्ट करने लगे हो। अच्छा जा रहे हो।“

सनी और बॉबी के मुँह खुले रह गये। काफी मशक्कत के बाद बॉबी के मुँह से आवाज निकल पाई, “आप क्या कह रहे हैं, पापा। हमने तो आज तक किसी लड़की को ऐसी वैसी नजर से नहीं देखा। हमारी फ्रेंड लिस्ट में सभी लड़कियाँ कॉमन हैं। हम दोनों भाई एक ही कोचिंग इंस्टिच्यूट जो जाते हैं।“

हितेंद्र सिन्हा ने कहा, “एक नई लड़की जो शामिल हुई है तुम्हारी फ्रेंड लिस्ट में, वो कहाँ जाती है कोचिंग क्लास करने? जहाँ तक मुझे पता चला है कि उसे तो तुम दोनों कुछ अलग ही नजर से देख रहे हो। काफी आगे तक जाने का प्लान बन रहा है।

सनी ने कहा, “क्क क्क कौन लड़की। क्या बात करते हैं? आपको कैसे मालूम?”

बॉबी उछल पड़ा, “मम्मी, इनकी तानाशाही तो बढ़ती ही जा रही है। लगता है इन्होंने हमारे फोन का पासवर्ड हैक कर लिया है। अरे बेटे जवान हैं, कुछ तो प्राइवेसी दो। मम्मी, अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा। अरे 18 की उम्र में तो सरकार चुनने का अधिकार मिल जाता है। यहाँ 25 की उम्र में इसका भी अधिकार नहीं कि किससे दोस्ती करें।“

हितेंद्र सिन्हा ने कहा, “अमेरिका और इंगलैंड में 18 के बाद लड़के और लड़कियाँ अपने बाप की छाती पर मूँग नहीं दलती हैं। अपने पैरों पर सब खड़े हो जाते हैं। तुम भी आत्मनिर्भर हो जाओ, फिर जो जी में आये करो। किसने रोका है?”

हितेंद्र सिन्हा ने आगे कहा, “और हाँ, मैने कभी किसी से दोस्ती करने से नहीं रोका है। लेकिन किसी लड़की की प्रोफाइल पर ऊल जलूल कॉमेंट लिखोगे तो बुरा तो लगेगा ही।“

सनी और बॉबी ने एक साथ कहा, “हमसे गलती हो गई। आगे से ऐसा नहीं होगा। लेकिन आप तो कभी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते ही नहीं हैं। आपको कैसे पता चला?”

हितेंद्र सिन्हा ने कहा, “याद है पिछले महीने तुम्हारे मामा आये थे। वो तो मुझसे अधिक जवान हैं। उन्होंने ही थोड़ा बहुत सिखा दिया। फिर एक लड़की के नाम से मैने प्रोफाइल बनाई। कुछ ही दिनों में तुम दोनों की हरकत पकड़ में आ गई। मैं तो बस ये चाहता हूँ कि तुम दोनों आगे बढ़ो और मेरा नाम रोशन करो। मुझे तुम्हारी जासूसी करने का कोई शौक नहीं है।“

इतना सुनने के बाद साधना सिन्हा ने कहा, “तभी तो कहते हैं कि बाप बाप होता है, बेटा तो बेटा ही रहेगा।“

Thursday, April 19, 2018

अर्जुन का अज्ञातवास और फेसबुक


अर्जुन अपने अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में अपने भाइयों और द्रौपदी के साथ राजा विराट के महल में रहते थे। उस अवधि में अर्जुन ने एक किन्नर का रूप धरा था जिसका नाम वृहन्नला था। अब तक अज्ञातवास ठीक से बीत रहा था। बीती रात अर्जुन की मदद से भीम ने कीचक वध को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया था। अर्जुन उस उपलब्धि से बहुत खुश था। इसलिए अपनी प्रसन्नता प्रकट करने के लिये अर्जुन यानि वृहन्नला ने नख से शिख तक श्रृंगार किया था। आप उसे सोलह सिंगार भी कह सकते हैं। अब वृहन्नला अपना मेकअप किसे दिखाये। जब द्रौपदी ने उसे देखा तो मजाक ही किया और ताने भी मारे। वृहन्नला ने जब विराट के पुत्र उत्तर से पूछा तो वह भी हँस पड़ा। बोला कि एक किन्नर चाहे जितना भी श्रृंगार कर ले, रहेगा तो किन्नर ही। उसमें भला किसी नारी की कमनीयता कहाँ से आ सकती है। वृहन्नला यह सिद्ध करना चाहती थी कि वास्तव में सुंदर लग रही थी। उसने सोच लिया कि अब बहुत हो चुका। उसने अपनी नई फोटो को मुखपुस्तिका नामक वेबसाइट पर पोस्ट करने का फैसला ले लिया। जिनको नहीं पता है उनका ज्ञान दुरुस्त करने के लिये यह बताना जरूरी है कि महाभारत के जमाने की मुखपुस्तिका को आधुनिक काल में फेसबुक के नाम से जाना जाता है। यह बात हमारे आधुनिक राजाओं और महाराज ने सिद्ध कर दी है। वृहन्नला और उत्तर में इस बात की शर्त लग गई कि वृहन्नला को कितने लाइक मिलते हैं। यह तय हुआ कि यदि एक सहस्र लाइक से कम मिले तो वृहन्नला आजीवन मत्स्य राज में गुलामी करेगी। यदि एक सहस्र लाइक से अधिक मिले तो उत्तर को अपनी बहन का हाथ अभिमन्यु के हाथ में देना होगा; मतलब उत्तरा की शादी अभिमन्यु से करवानी पड़ेगी। वृहन्नला ने अपनी फोटो को मुखपुस्तिका पर अपलोड कर दिया था। अभी वह पोस्ट पर क्लिक करने ही वाली थी कि वहाँ पर भीम आ गये। भीम ने कहा कि अज्ञातवास में ऐसा करना उचित नहीं होगा। उसे डर था कि कौरव को उनके सही ठिकाने का पता चल जायेगा तो फिर अनर्थ हो जायेगा। लेकिन वृहन्नला ने भीम की एक न सुनी। उसने बस एक झटके में अपना सोलह सिंगार वाला फोटो पोस्ट कर दिया।

उधर धृतराष्ट्र के महल में दुर्योधन अपने भाइयों और प्रिय मामा शकुनि के साथ जुए के नये दांव सीख रहा था। दु:शासन अपने 4 जी फोन पर मुखपुस्तिका देखने में मगन था। तभी उसकी आँखें चमक उठीं। किसी षोडषी दिखने वाली कन्या ने अपनी बला की खूबसूरती दिखाते हुए अपना फोटो पोस्ट किया था। दु:शासन ने एक पल की देर किये बिना जवाब में लिखा, “1000 लाइक”। शकुनि की पैनी नजर ने तुरंत इस बात को ताड़ लिया कि दु‌:शासन का दिमाग कहीं और विचरण कर रहा था। शकुनि ने उसके हाथ से मोबाइल फोन छीन लिया और वृहन्नला की तस्वीर को गौर से देखने लगा। शकुनि के शातिर दिमाग से यह बात छिप नहीं पाई कि वह और कोई नहीं बल्कि अर्जुन था। शकुनि उछल उछल कर बच्चों की तरह किलकारियां मारने लगा। उसने लगभग घोषणा करते हुए कहा, “मेरे प्यारे भांजे, अब तुम्हें हस्तिनापुर का राजा बनने से कोई नहीं रोक सकता। पांडवों का अज्ञातवास टूट चुका है। चलो पता करते हैं कि आई पी ऐडरेस के हिसाब से वह किस स्थान पर छुपे हुए हैं।“

लगभग तीन पहर बीतते बीतते अपने द्रुतगामी रथों और घोड़ों की सहायता से कौरव अपने दल बल के साथ मत्स्य राज की सीमा के बाहर खड़े थे। सबसे आगे दुर्योधन था। उसने अपने दूत से राजा विराट को संदेश भेज दिया कि पांडवों को उसके हवाले कर दे अन्यथा वह पूरे मत्स्य राज को तबाह कर देगा।

उधर अर्जुन के अन्य भाई अर्जुन पर भड़क रहे थे। अर्जुन के कानों पर लग रहा था की जूँ भी नहीं रेंग रही थी। उसने कहा, “जरा गौर से देखो कि मैने फोटो कितने बजे पोस्ट किया था। उस समय मध्यरात्रि बीत चुकी थी। इसका मतलब हुआ कि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हमारे अज्ञातवास का काल पूरा हो चुका था। इसलिये हमने कोई भी शर्त नहीं तोड़ी।“

उसके ऐसा कहने पर नकुल सहदेव ने गणना की तो पाया कि अर्जुन बिलकुल सही बोल रहा था। फिर क्या था, पाँचो भाई एक सुर में चिल्ला पड़े, “चलो, वन में चलते हैं। जहाँ हमने अपने अस्त्र छुपाये थे। अब समय आ गया है कौरवों को मुँहतोड़ जवाब देने का”।

Saturday, April 14, 2018

आई ए एस से आइ एस एस तक की नौकरी


आई ए एस का नाम शायद भारत में हर उस व्यक्ति को पता होगा जिसका जेनरल नॉलेज थोड़ा सा भी दुरुस्त होगा। अंग्रेजों ने भारत में आइ सी एस की शुरुआत की थी, जिसका नाम आजादी के बाद आइ ए एस हो गया। आइ ए एस बनने के लिये घोर परिश्रम करना होता है और एक कठिन इम्तिहान पास करना होता है। लेकिन एक बार अगर कोई आइ ए एस बन गया तो फिर वह हर मर्ज की दवा बन जाता है। सरकारी अफसरशाही के हर बड़े पद पर अक्सर आइ ए एस की ही नियुक्ति होती है। चाहे जिले में कलेकटर की तरह राज करना हो या राजधानी में कैबिनेट सेक्रेटरी बनकर मंत्री की जी हुजूरी करनी हो, एक आइ ए स अधिकारी को हर काम में महारत हासिल होती है। आइ ए एस बनते ही उस आदमी और उसके परिवार पर गरीबी हटाओ की योजना आश्चर्यजनक रूप से सफलतापूर्वक काम करती है। नौकरी लगने के तुरंत बाद ही शादी हो जाती है जिसमें करोड़ों की संपत्ति दहेज में मिल जाती है। परिवार वाले भी अपने आप को आइ ए एस ही समझने लगते हैं। उसके बाद थोड़े ही वर्ष बीतने के बाद एक आइ ए एस अधिकारी सिस्टम को इतनी दक्षता से चूसने लगता है कि उसके रस से उसका और उसके ऊपर तक के आकाओं का पेट भरने लगता है।

जैसा की पहले ही बताया गया है, सरकारी नुमाइंदों को कोई भी ऐसा काम नहीं लगता है, जिसे एक आइ ए स नहीं कर सकता हो। इसी मानसिकता का अनुसरण करने के प्रक्रम में एक आइ ए एस अधिकारी की पोस्टिंग आइ एस एस यानि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर हो गई। एक बार अमेरिका की नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) में एक योजना बनी कि कुछ ऐसे विकासशील देश जो विकसित होने का भ्रम पालते हैं, वहाँ के चुनिंदा लोगों को छ: महीने के लिये आइ एस एस में रहने की व्यवस्था की जाये। ऐसा इसलिए किया गया ताकि विज्ञान की नई खोजों से दुनिया के हर कोने को अवगत कराया जा सके।

भारत के आला मंत्रियों ने उचित व्यक्ति के लिये आइ ए एस के अफसरशाहीनुमा खजाने को खंगालना ही उचित समझा। बड़ी पैरवी और बयाना और नजराना देने के बाद श्रीप्रसाद वर्मा नामक एक आइ ए एस अधिकारी ने इस काम के लिये अपना चयन करवा ही लिया। चयन होते ही, उनकी घोषित आय द्रुत गति से बढ़ गई। अब उन्हें भारत सरकार से मिलने वाले वेतन के अलावा अमेरिकी सरकार से भी विशेष भत्ता दिया जाने लगा। इसका असर उनके घर में भी दिखने लगा। श्रीप्रसाद वर्मा की बीबी अब केवल बर्गर, हॉट डॉग और पैनकेक ही खाने लगीं। उनका कहना था कि देसी खाना खाने से बदहजमी हो जाती है। कुछ ही दिनों में उनकी तरक्की इतनी हो गई कि अपने प्यारे कुत्ते टॉमी से भी वे अमेरिकन लहजे में हिंगलिश में बतियाने लगीं। जल्दी ही वह दिन भी आ गया जब भारत के इसरो में कुछ जरूरी ट्रेनिंग लेने के बाद श्रीप्रसाद वर्मा अमेरिका के लिये रवाना हो गये। जाते समय उनका कलेजा थोड़ा बैठ गया था क्योंकि अमेरिकी सरकार ने सरकारी खर्चे पर बीबी और बच्चों को ले जाने के लिये मना कर दिया था।

बहरहाल, अमेरिका के नासा में अगले छ: महीने तरह तरह की ट्रेनिंग लेने के बाद वे स्पेशशिप में जाकर बैठ गये और उसके उड़ने का इंतजार करने लगे। जब वे काउंट्डाउन का इंतजार कर रहे थे तो भारत के किसी मशहूर टीवी चैनल के एक मशहूर एंकर ने उनसे टेलीकॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सवाल पूछा, “वर्मा जी, आपकी आत्मा को कैसा महसूस हो रहा है?”

इस पर श्रीप्रसाद वर्मा जी ने जवाब दिया, “मेरी आत्मा तो उसी दिन बिक गई थी जिस दिन मैं आइ ए एस बना था। इसलिये कुछ भी महसूस नहीं हो रहा है। मेरा भारत महान।“

थोड़ी ही देर में रॉकेट बिलकुल नियत समय पर लॉन्च पैड से उठ गया और अपने पीछे लाल पीले धुंए के गुबार छोड़ता हुआ नीले आकाश में गायब हो गया। भारत के हर टीवी चैनल पर उस घटना का सीधा प्रसारण चल रहा था। हर चैनल वाला उस प्रसारण को एक्सक्लूसिव बता रहा था। उसके कुछ दिनों के बाद बात आई गई हो गई और लोग श्रीप्रसाद वर्मा का नाम तक भूल गये। टीवी चैनल वाले भी नये नये और अधिक रोचक ब्रेकिंग न्यूज को एक्सक्लूसिव बनाने में रम गये।

छ: महीने बीतने के बाद श्रीप्रसाद वर्मा वापस धरती पर आये और फिर स्वदेश भी लौट गये। देश लौटने पर प्रधानमंत्री द्वारा उनका उचित सम्मान किया गया। उन्हें प्रधानमंत्री की ओर से एक शॉल और प्रशस्ति पत्र भी दिया गया। वह जिस राज्य के कैडर के अधिकारी थे, उस राज्य के मुख्यमंत्री ने उन्हें दस लाख रुपए पुरस्कार देने की घोषणा की। उसके बाद उनके गृह राज्य के मुख्यमंत्री ने उन्हें पंद्रह लाख रुपए पुरस्कार देने की घोषणा की। उसके बाद लगभग दो महीने तक विभिन्न समारोहों में उन्हें सम्मानित करने का एक लंबा सिलसिला चला। जब इन सब कार्यक्रमों से वे फारिग हुए तो अपने पैत्रिक गांव पहुँचे। वहाँ पहुँचने पर गांववालों ने उन्हें पूरा सम्मान दिया। गांव के एक मूर्तिकार ने उनकी मूर्ति बनाई थी जिसमें उनकी बगल में आइ एस एस की मूर्ति भी लगी थी। आइ एस एस की मूर्ति तो हू ब हू लग रही थी, लेकिन उनकी मूर्ति की शक्ल उनसे एक फीसदी भी नहीं मिलती थी। फिर भी लोगों के प्यार और उन्माद को देखते हुए उन्होंने मूर्ति का अनावरण अपने ही कर कमलों से किया।

इन सब गतिविधियों से निजात पाने के बाद बड़ी मुश्किल से श्रीप्रसाद वर्मा को अपने नजदीकी रिश्तेदारों और कुछ घनिष्ठ मित्रों के साथ शाम गुजारने का वक्त मिल पाया। उनके चाचा ने पूछा, “तुम देश के लिये इतना बड़ा काम कर आये, सुनकर सीना चौड़ा हो गया। लेकिन ये बताओ कि इस काम में कुछ माल बना पाये या बस थोथी इज्जत ही कमा कर लौट आये।“

इसी बीच एक और रिश्तेदार बोल पड़े, “हाँ भई, आज के जमाने में धन संपत्ति है तो ही इज्जत है। वरना कोई किसी को नहीं पूछता है। अरे साल भर तो तुम्हारी अनुपस्थिति में हमें भी कोई नया टेंडर नहीं मिल पाया।“

उनकी बात सुनकर श्रीप्रसाद वर्मा ने मंद मंद मुसकाते हुए कहा, “क्या चाचा, आप हमेशा मुझे कम क्यों आंकते हैं। मैं तो वो बला हूँ कि निर्जन मंगल ग्रह पर भी भेज दो तो कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही लूंगा। वहाँ से आते वक्त मैंने जुगाड़ लगाकर स्पेस स्टेशन के सोलर पैनल का आधा हिस्सा बेच दिया। उसके अलावा स्पेस स्टेशन के एक कैप्सूल को भी बेच दिया। पूरे तीस करोड़ बनाकर आया हूँ। सबसे बड़ी बात ये कि इसमें से यहाँ किसी ऊपर वाले को चढ़ावा भी नहीं देना है। सब वहीं से मैनेज कर लिया था। स्विस बैंक में पहुँच चुका है।“

उनके ऐसा कहने पर मामाजी थोड़ा भड़कते हुए बोले, “हमको उल्लू समझे हो का? वहाँ क्या कोई ट्रक जाता है जो माल पार कर दिये?”

श्रीप्रसाद वर्मा ने कहा, “अरे नहीं मामाजी, स्पेस शिप जाता है। लेकिन उसमें आदमी तो इसी धरती से जाता है। खून का स्वाद चखाओ तो किसी भी देश का आदमी मांस खाने को तैयार हो जाता है। था एक किसी तीसरे देश से। कुछ रिपेयर का सामान लेकर गया था। शुरु में तो बहुत दुहाई दे रहा था, इमानदरी की। लेकिन एक बार देसी स्टाइल में उसका ब्रेनवाश किया तो फिर आ गया लाइन पर। वहाँ कोई चौबीस घंटे का ब्रेकिंग न्यूज तो है नहीं। रिपोर्ट में लिखवा दिया कि सोलर आंधी चलने से सोलर पैनल और कैप्सूल दूर कहीं अंतरिक्ष में खो गये। अब भला कागज कलम में हमसे कोई जोर ले सकता है।“

इसी तरह बातचीत के बीच खाने पीने का प्रोग्राम चलता रहा। लोग श्रीप्रसाद वर्मा के किस्सों का मजा लेते रहे। उसके बाद जीवन फिर से अपनी सामान्य गति से चलने लगा।

इस घटना को कोई तीसेक साल बीत चुके होंगे। श्रीप्रसाद वर्मा सेवानिवृत हो चुके थे। अपने पैत्रिक गांव में एक बड़ी सी हवेली में वे रिटायर्ड लाइफ के मजे ले रहे थे। शाम का समय था। वर्माजी सोफे पर बैठे ठंडी बियर के घूंट भर रहे थे। बगल में बैठी उनकी बीबी काजू फ्राइ के छोटे छोटे निवाले उनके मुंह में बड़े प्यार से डाल रही थी। एक वर्दीधारी नौकर हाथ में डोंगा लेकर डाइनिंग टेबल पर भोजन परोस रहा था। सामने की दीवार पर 56 इंच का टेलिविजन ऑन था। किसी न्यूज चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज आ रहा था, “क्या अंतरिक्ष में भी भ्रष्टाचार होता है?”
लगभग तीन बजे भोर में सीबीआइ वालों ने श्रीप्रसाद वर्मा को उनके घर से आधी नींद में ही हिरासत में ले लिया। अगली शाम तक उन्हें एक विशेष फ्लाइट से अमेरिका भेज दिया गया क्योंकि केस अब एफबीआइ के हाथों में था। सीबीआइ तक तो कुछ न कुछ जुगाड़ लगाया जा सकता था। लेकिन बात अपने देश की सीमा से बाहर निकल चुकी थी। अमेरिका में द्रुत गति से सुनवाई होती है। एक महीने के अंदर फैसला भी आ गया। बेचारे श्रीप्रसाद वर्मा जी को चार सौ बीस साल की जेल हो गई।