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Sunday, July 10, 2016

DM Is Coming

First line managers are called by different names in different companies. Some of the designations for front line managers can be quite fancy. The front line managers in Pfizer are called DM which is a short form for District Manager. Coincidentally, the abbreviated form DM is also used for an important post in the Indian Administrative Services. The District Magistrate is an important person in districts and is considered to be very powerful person. In colloquial terms; he is often called as DM Sahib. This incident is related to the much revered term ‘DM’ in mofussil towns of India. This was shared by one of my colleagues during a sales meeting.

A PSO was going to some interior market along with his DM aka District Manager. They reached the nearby railway station only to find that the train was overcrowded. Even the first class coach was jampacked. They discovered that it was some auspicious day of a Hindu festival and people were going to a nearby bathing ghat to wash their sins.

The DM (of Pfizer) was scared to see the crowd and wanted to change the tour plan. He preferred to go back so that they could work in relative calm of the base town. But the PSO appeared to be unperturbed and insisted on proceeding as per the tour programme. The DM was not sure how to get in the train. The PSO found an ingenious way to solve the seemingly huge problem.

He went near the door of the first class coach and began to shout, “DM sahib is coming! DM sahib is coming! Make way for the DM.”


When the crowd in the compartment heard these words it apparently went into some sort of trance. People began to make way for the DM. Even a couple of policemen; present there; began shoving the people to make way for the DM. The DM (of Pfizer) followed the PSO the way a kid follows his mother. Both of them easily found their way inside the compartment. To their utter surprise, they also found that two seats were made vacant for them to sit comfortably. 

असली डॉक्टर

उस समय मेरा ट्रांसफर धनबाद से बहराइच हुआ था। धनबाद में मैं केवल क्वालीफाइड डॉक्टर से मिला करता था और इसलिए अपनी सेल्स पिच में अंग्रेजी का इस्तेमाल अधिक करता था। ठीक इसके उलट बहराइच उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा शहर है जहाँ के मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव को झोला छाप डॉक्टर और बिएएमएस डॉक्टर से भी मिलना पड़ता है। बहराइच में काम करने के लिए हिंदी का दुरुस्त ज्ञान होना जरूरी है। मुझे हिंदी में सही तरीके से सेल्स पिच सिखाने के लिए रीजनल ट्रेनिंग मैंनेजर को जिम्मेदारी दी गई थी। वे एक बुजुर्ग और अनुभवी सेल्स प्रोफेशनल थे जिनके कैरियर का ज्यादातर भाग पूर्वी उत्तर प्रदेश के मार्केट में बीता था। एक बार हमलोग किसी छोटे से गाँव में काम करने गये थे। उस गाँव में पहुँच कर हम एक केमिस्ट की दुकान पर सर्वे कर रहे थे। तभी किसी मैले कुचैले कागज पर किसी डॉक्टर का पर्चा आया जिसपर दवा का नाम उर्दू में लिखा हुआ था। केमिस्ट से पता चला कि उसपर टेरामाइसिन लिखा हुआ था। केमिस्ट ने बताया कि कोई डॉक्टर अली थे जिन्होंने वह पर्चा लिखा था। उसने ये भी बताया कि वे फाइजर की दवाएँ खूब लिखा करते थे। 
ऐसा सुनकर मैं और मेरे रीजनल ट्रेनिंग मैनेजर उस डॉक्टर से मिलने चल दिए। केमिस्ट ने बताया था कि वह डॉक्टर बाजार में एक पीपल के पेड़ के पास वाले टीले पर क्लिनिक चलाते थे।

मैं अपनी मोटरसाइकिल चला रहा था और पिछली सीट पर मैनेजर साहब बैठे हुए थे। मैंने बड़ी स्टाइल से मोटरसाइकिल को उस टीले पर चढ़ा दी। हमारे सामने एक खस्ताहाल झोपड़ी सी दिखी जिसमें कुछ देहाती लोग बैठे हुए थे। झोपड़ी के बाहर एक अधेड़ उम्र का आदमी चेक वाली लुंगी और मटमैली बनियान पहने खड़ा था। मैंने अपनी बाइक पर बैठे बैठे ही उस आदमी से बड़े कड़क अंदाज में पूछा, “ओ भैया, ये अली डॉक्टर कहाँ मिलेंगे।“

वह आदमी थोड़ा सकपकाते हुए बोला, “डॉक्टर तो नहीं हैं, किसी दूसरे गाँव गये हैं। एकाध घंटे बाद आएँगे।“

मैंने अपने मैनेजर से वापस चलने को कहा तो उन्होंने मुझे इशारे से चुप होने को कहा। फिर वे बाइक से उतर कर उस आदमी के पास पहुँचे और बोला, “हम लोग दवा कंपनी फाइजर से आए हैं। आप कहें तो थोड़ी देर आपसे ही बात कर लें।“

उस आदमी ने हामी भरी और फिर हम उसके पीछे उसकी झोपड़ीनुमा क्लिनिक के अंदर चले गए। फिर मेरे ट्रेनिंग मैनेजर ने मुझे उस आदमी को डिटेलिंग करने के लिए इशारा किया। मैं मन ही मन भन्ना रहा था क्योंकि मुझे उस देहाती आदमी को डिटेलिंग करना अच्छा नहीं लग रहा था। फिर थोड़ी देर तक मैनेजर ने उसे ठेठ हिंदी में कुछ दवाओं के बारे में बताया। उनके कहने पर मुझे उस आदमी को एक गिफ्ट भी देना पड़ा। अंत में पता चला कि वह आदमी और कोई नहीं बल्कि डॉक्टर अली था।

वहाँ से निकलने के बाद मैंने अपने ट्रेनिंग मैनेजर से पूछा, “मुझे दो बातें समझ में नहीं आई। इसने पहले ये क्यों कहा कि ये डॉक्टर नहीं है? फिर आपने कैसे पकड़ लिया कि यही असली डॉक्टर है?”

इस पर मेरे मैनेजर ने जो जवाब दिया उससे मैं उनके अनुभव का कायल हो गया। उस दिन मेरी आँखें खुल गईं कि किसी की पोशाक देखकर ही किसी के व्यक्तित्व का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। उन्होंने कहा, “जब उसने देखा कि दो लोग पैंट शर्ट और टाई में इतनी हेकड़ी से उसके टीले के ऊपर पहुँचकर सवाल पूछ रहे हैं तो वो डर गया होगा कि कहीं कोई सरकारी अधिकारी छापा मारने तो नहीं आ गया। मैंने इस तरह के बाजारों में वर्षों काम किया है इसलिए उसे देखते ही मैं ताड़ गया कि यही वह आदमी होगा जिसे हम तलाश रहे थे। देखा नहीं वह कितने इत्मिनान से उस टीले पर टहल रहा था।“