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Tuesday, July 26, 2016

तानसेन पर मुकदमा

तानसेन का नाम आप सभी ने सुना होगा। तानसेन एक महान संगीतकार थे और अकबर के दरबार में नवरत्न हुआ करते थे। उनकी गायकी इतनी जबरदस्त थी कि कहा जाता है कि जब वो मेघराग गाते थे तो बारिश होने लगती और जब वो दीपक राग गाते थे तो चिराग जल उठते थे। अकबर के दरबार में नवरत्न होने की वजह से तानसेन की आमदनी करोड़ों स्वर्ण मुद्राओं में थी। साथ में पूरे हिंदुस्तान में मशहूर होने की वजह से शादी, त्योहार, मेले आदि जलसे में उनकी बहुत माँग हुआ करती थी। एक प्रोफेशनल होने के नाते तानसेन किसी भी पब्लिक या प्राइवेट फंक्शन में गाने के लिए मोटी रकम चार्ज किया करते थे। साथ में कई कंपनियों के प्रोडक्ट के इश्तहार में भी वे नजर आते थे। कुल मिलाकर कहा जाए तो तानसेन को भगवान ने छप्पड फाड़कर धन संपत्ति दी थी। इसके साथ साथ वो पूरे हिंदुस्तान में बला के लोकप्रिय थे। जब उनका रथ निकलता था तो उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। तानसेन तो हैंडसम थे ही। इसलिए उनके रथ के आगे उस जमाने की युवतियाँ लेट जाया करती थीं। कई लड़कियों ने तो तानसेन की तस्वीर से ही शादी रचा ली थी।

तानसेन की शोहरत कुछ अन्य नवरत्नों को हजम नहीं होती थी; जैसा कि इन मामलों में अक्सर होता है। टोडरमल; जो कि स्वयं भी नवरत्न थे; इस मौके की फिराक में रहते थे कि कैसे तानसेन को नीचा दिखाया जा सके। इसके लिए उन्होंने संगीत सीखना भी शुरु किया लेकिन उसमें असफल रहे। वे पहले भी कई बार बीरबल को नीचा दिखाने की चक्कर में मुँह की खा चुके थे इसलिए इस बार वे कड़ी सावधानी बरत रहे थे।

आखिरकार टोडरमल को एक सुनहरा मौका मिल गया; बल्कि दो मौके मिल गये। हुआ यूँ कि एक बार तानसेन जंगल में आखेट के लिए गये। अब तानसेन तो ठहरे एक कलाकार इसलिए वे खुद जानवरों का शिकार क्या करते। उनके अमलों चमलों ने एक हिरण को मार गिराया। बताया जाता है कि बादशाह की पटरानियों को हिरण बहुत सुंदर लगते थे इसलिए पूरे हिंदुस्तान में हिरण के शिकार पर रोक लगी थी। बस फिर क्या था, टोडरमल ने तानसेन पर एक मुकदमा दायर कर दिया। आरोप था कि तानसेन ने हिरण का शिकार किया था। उसके कुछ ही दिनों बाद एक बार तानसेन का काफिला रात में मुंबई की मायनगरी में रात्रि भ्रमण का आनंद ले रहा था। लगता है कि सारथी के नशे में धुत होने के कारण रथ ने फुटपाथ पर सो रहे कुछ लोगों को कुचल दिया। टोडरमल को एक और मौका मिल गया, तानसेन पर मुकदमा दायर करने का।

तानसेन ने बहुत कोशिश की कि उन मुकदमों से बरी हो जाएँ लेकिन तबतक बादशाह अकबर बूढ़े हो चुके थे और उनकी शक्ति भी कम हो रही थी। उनकी लाख पैरवी के बावजूद तानसेन को कई रात कारागार में भी गुजारने पड़े और उसके बाद अदालतों में तारीख पर तारीख का जो सिलसिला चला वह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। बादशाह अकबर के इंतकाल के बाद उनके बेटे जहाँगीर ने गद्दी सँभाली। जहाँगीर को भी संगीत से उतना ही लगाव था जितना कि उनके वालिद अकबर को। लेकिन जहाँगीर का मानना था कि कानून की नजर में हर कोई बराबर होता है इसलिए वे तानसेन की कोई मदद नहीं कर पा रहे थे। उधर निचली अदालतों के वकील और जज तानसेन पर हुए मुकदमे से बड़े खुश थे। वे तानसेन को नोचने खसोटने का कोई मौका हाथ से नहीं छोड़ते थे। वकील मोटी रकम चार्ज किया करते थे और उसका तय प्रतिशत जज साहब को बतौर नजराना पेश किया जाता था। उसके ऐवज में जज किसी भी तारीख पर कोई फैसला नहीं सुनाते थे बल्कि अगली तारीख के बारे में इत्तला कर दिया करते थे।

तानसेन ने कई मंत्रियों और अफसरों को सेट करने की कोशिश की। सबने उनसे नजराने के रुप में लाखों स्वर्ण मुद्राएँ, कीमती जवाहरात और रेशमी शाल ले लिए लेकिन मुकदमा था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।

इस बात से जहाँगीर भी तंग आ गये थे। एक बार उन्होंने जज को बुलाया और उनसे पूछा, “यदि तानसेन दोषी हैं तो उन्हें उचित सजा देकर इस मुकदमे को खत्म क्यों नहीं कर देते?”

इस पर जज ने जवाब दिया, “जिल्ले इलाही, तानसेन तो एक सागर की तरह हैं। उनके पास इश्तहारों और रॉयल्टी से करोड़ों की आमदनी आती है। उस सागर में से एक दो लोटा यदि हम लोग ले भी लें तो क्या फर्क पड़ता है। आखिर वे मरने के बाद अपनी संपत्ति को लादकर तो नहीं ले जाएँगे। फिर उनकी लोकप्रियता को देखकर भी डर लगता है। इतने दिनों से मुकदमा चलने के बावजूद उनके नए गाने और नाटक जबरदस्त हिट होते हैं। कभी कभी ये भी डर लगता है उनको सजा सुनाने से प्रजा विद्रोह न कर दे और कहीं फिर आपका ही तख्तापलट न हो जाए। इसलिए जैसा चल रहा है चलने दीजिए। आप कहें तो आपके पास भी नजराना पहुँच जाया करेगा और किसी को कानों कान खबर नहीं होगी।“

बादशाह जहाँगीर ने कुछ नहीं कहा बस नजरों ही नजरों में जज के आगे हामी भर दी। बेचारे तानसेन परेशान हो चुके थे। उन्हें डर था कि कहीं सौ वर्षों की सजा हो गई तो उनकी वर्षों की कमाई इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। उनके बच्चों का क्या होगा; ऐसा सोचकर तानसेन ने डर से शादी भी नहीं की थी; जबकी वे चालीस के पार पहुँच चुके थे।

अदालतों में मुकदमे खिंचते रहे और साल बीतते गये। तानसेन अब पचास को पार करने ही वाले थे। उनकी उम्मीद में कई युवतियाँ तबतक अधेड़ हो चुकी थीं। कई प्रैक्टिकल दिमाग वाली युवतियों के तो अब बच्चे भी युवा हो चुके थे। तानसेन की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। उनकी हालत वैसे मरीज की तरह हो गई थी जो ऐसी बीमारी से पीड़ित होता है जो उसे पंगु तो बना देती है लेकिन उसे मारती नहीं है। उस बेचारे को पड़े पड़े ही सबकुछ करना पड़ता है। वह केवल मौत के इंतजार में दिन गिनता रहता है। एक दिन तानसेन को लगा कि हिंदुस्तान के सबसे अकलमंद आदमी यानि बीरबल से सलाह ली जाए। बीरबल को तो उनके केस के बारे में पता ही था। बीरबल ने कहा, “मैं भी आपकी तकलीफ देखकर दुखी था। लेकिन मैं बिना माँगे किसी को मुफ्त की सलाह नहीं देता हूँ। आपको तो मेरी कँसल्टेंशी फीस के बारे में पता ही होगा।“

उचित फीस मिलने के बाद बीरबल ने तानसेन को बिलकुल सटीक सलाह दी। यह वह वक्त था जब नये बादशाह शाहजहाँ ने अभी अभी गद्दी सँभाली थी। वे अपने शौक के लिए पहले से ही मशहूर थे। तानसेन ने उनके लिए एक नया राग रचा था। तानसेन ने नये बादशाह के सामने राग मुमताज पेश किया। बादशाह खुश हुए और तानसेन से गुफ्तगू करने के लिए उन्हें अपने दीवान-ए-खास में ले गये। वहाँ पर उनके बीच कुछ डील तय हुई। उसके बाद तानसेन ने ऐलान किया कि ताजमहल बनाने का सारा खर्चा वे अपने चैरिटी की तरफ से देंगे। उन्होंने ये भी कहा कि एक प्यार की निशानी बनाना मानवता की सेवा करने जैसा है। उन्होंने इस बात को भी कबूल किया कि मुकदमों की वजह से वे पचास की उम्र तक भी सच्चे प्यार से मरहूम थे।

फिर कुछ दिनों में ही एक अदालत ने फैसला सुनाया, “तानसेन को रथ चलाना ही नहीं आता। रथ तो उनके सारथी चला रहे थे। वैसे भी रथ चलाना किसी नवरत्न की शान के खिलाफ होता है। इसलिए उस दुर्घटना में मरने वालों के दोषी सारथी थे। अब चूँकि सारथी का देहाँत हो चुका है इसलिए इस मुकदमे को खारिज किया जाता है। तानसेन को इस मुकदमे से बरी किया जाता है।“
एक दो महीने बाद एक दूसरी अदालत ने फैसला सुनाया, “एक तानपूरा उठाने वाला संगीतकार बंदूक कैसे उठा सकता है। जिसके कान सितार के मधुर धुनों को सुनने के आदी हों वो भला गोलियों की आवाज कैसे बर्दाश्त कर सकता है। पुख्ता सबूत न मिलने के कारण तानसेन को हिरण के शिकार के आरोप से बरी किया जाता है।“


उस ऐतिहासिक फैसले के बाद प्रजा में एक नए जोश का संचार हो गया। कई महिलाएँ जो तानसेन के इंतजार में अधेड़ हो चुकीं थीं ने ऐलान किया कि वे तानसेन के लिए अपनी बेटियों को सौंपने तक को तैयार हैं। सुनने में ये भी आया कि टोडरमल अब सर्वोच्च न्यायालय जाने की सोच रहे हैं लेकिन नये बादशाह की डर से उनकी हिम्मत नहीं हो रही है।