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Sunday, October 9, 2016

नीचे का करप्शन

सुबह सुबह मुझे लगा कि मेरे शरीर का निकोटिन लेवेल कम हो गया है। इसलिये मैं उसकी भरपाई करने के खयाल से घर से निकला ताकि सोसाइटी के गेट के बाहर की दुकान तक जा सकूँ। मेरी बीबी पूजा की तैयारी में तल्लीन लग रही थी। उसकी तैयारी के विशाल स्केल को देखकर मुझे ध्यान आया कि आज दुर्गा पूजा की नवमी वाली पूजा होगी जिसमें हवन करना होता है। मैने अपनी बीबी से पूछा, “मैं नीचे जा रहा हूँ, कुछ मंगवाना तो नहीं है?

मेरी बीबी ने वहीं बैठे बैठे जवाब दिया, “हाँ, दूध और लड्डू ले आना। हाँ, उस दूधवाले से कहना कि कल जो दही दिया था वह बहुत ही घटिया था।“

मैने अपनी बीबी के इंस्ट्रक्शन का एक मेंटल नोट बना लिया और दरवाजे से निकल कर लिफ्ट तक आया। लिफ्ट से जब मैं ग्राउंड फ्लोर पर पहुँचा तो वहाँ सामने बैठे दरबान ने अपनी पोपली मुसकान के साथ मुझे नमस्ते किया। मैने भी उसकी नमस्ते का जवाब मुसकरा कर दिया और तेजी से आगे बढ़ गया। लगभग डेढ़ सौ कदम चलने के बाद मैं सोसाइटी के गेट से बाहर निकला और सामने की सड़क पार करने के बाद सामने एक मिनी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में पहुँचा। इस शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में बेसमेंट में कुछ किराना की दुकानें और एक मिठाई की दुकान है जो दूध दही भी बेचा करती है। दूधवाला बाहर सड़क के किनारे ही अपनी कुर्सी पर विराजमान था। मुझे देखते ही वह मुसकराया और मेरे आगे-आगे दुकान के अंदर चला गया।

मैने उससे कहा, “भैया एक लीटर दूध और आधा किलो लड्डू देना।“

दुकानदार ने एक प्लास्टिक की थैली में दूध भरना शुरु किया और पूछा, “भाई साहब, दूध पसंद आ रहा है?”

मैने कहा, “ठीक ही है। पैकेट वाले दूध से थोड़ा बेहतर। पैकेट वाले दूध में एक अजीब सी बदबू आती है। लेकिन तुम्हारा दूध भी शुद्ध नहीं लगता है।“

दुकानदार ने मेरी ओर देखा और कहा, “भैया, थोड़ा पानी तो हम भी मिलाते हैं, लेकिन साफ पानी मिलाते हैं इसकी गारंटी है।“

मेरे चेहरे पर एक फीकी मुस्कान आई और मैने कहा, “भैया, तुम जितने पैसे मांगते हो उतने मैं देता हूँ। फिर शुद्ध दूध क्यों नहीं बेचते?

दुकानदार ने थोड़ा हँसते हुए कहा, “नहीं भाई साहब, दरअसल ऐसा है कि यदि आप जैसे शहरी लोग भैंस का शुद्ध दूध पी लें तो पेट खराब हो जाये।“

उसके बाद मुझे लगा कि उस आदमी से बहस लड़ाने में कोई फायदा नही है। मुझे उससे लड्डू भी लेने थे। उसके मिठाई की सबसे नजदीकी दुकान वहाँ से कम से कम तीन किमी की दूरी पर है इसलिये मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था। मैंने उससे कहा, “भैया, आधा किलो लड्डू दे दो।“

दूध के पैकेट को रबर बैंड से सील करने के बाद वह लड्डू तौलने की तैयारी करने लगा। उसने गत्ते से बना एक लाल रंग का डिब्बा निकाला जिसके ऊपर रंगोली जैसा सुंदर डिजाइन बना था। उसने डिब्बे में लड्डू डाले और उन्हें तौलने लगा। उसकी इलेक्ट्रानिक स्केल पर 518 ग्राम वजन दिख रहा था। वह डब्बा पैक करते हुए बोला, “देखो भाई साहब, मैने आपको 18 ग्राम अधिक लड्डू दिये हैं।“

मैने कहा, “लेकिन तुमने तो लड्डू के साथ साथ डिब्बे का भी वजन लिया है। इसका मतलब है तुम डिब्बे को भी दो सौ रुपये किलो की दर से बेच रहे हो। ये तो गलत बात है।“   

दुकानदार ने कहा, “आप कहीं भी चले जाएँ, हर मिठाई वाला मिठाई के डिब्बे के साथ ही मिठाई तौलता है। यही परिपाटी है। इसमे गलत क्या है?”

मैने कहा, “भैया, तुमने जो रेट मांगा वो मैने दिया। तुमसे मोलभाव नहीं किया। फिर भी तुम मुझे लूटने की कोशिश क्यों कर रहे हो?”

मैने आगे कहा, “और सुनो, कल तुमसे जो दही लिया था वो भी घटिया था। सही सामान दोगे तो तुम्हारे ग्राहक बने रहेंगे।“

दुकानदार ने कहा, “क्या कहा, दही खराब था? तो आज मट्ठा ले जाओ पीने के लिये।“

मुझे अब झल्लाहट होने लगी थी। मैने कहा, “कमाल करते हो यार, दही खराब था इसलिये अब मट्ठा पी लूँ। तुम कहो तो दूह दही खाना ही बंद कर दूँ।“

तभी दुकानदार का बड़ा भाई भी दुकान पर पहुँच चुका था। मामले को समझने के बाद उसके तो अलग ही तेवर थे। वह मुझसे बोला, “देखो भाई साहब, जो सामान मिलता है शराफत से ले लिया करो। हम पिछले सात पुश्तों से दूध दही का धंधा कर रहे हैं। आज तक किसी की मजाल नहीं हुई कि हमारे सामान को खराब बोल दे। एक दो तुम्हारे जैसे ग्राहक नहीं आएँगे तो हमारी सेहत को कोई असर नहीं पड़ने वाला।“


मुझे पता था कि वह पास के ही गाँव के एक दबंग का रिश्तेदार है। इसलिए मैने चुपचाप उसकी बात सुन ली और पैसे चुकता करने के बाद अपने घर चला आया। मेरी बीबी को मेरी शकल देखकर कुछ शक हुआ तो मैने कहा, “तुमसे तो मैं ही ठीक हूँ। पिछले पंद्रह सालों से नींबू वाली चाय पी रहा हूँ क्योंकि कहीं भी सही दूध नहीं मिलता है। दही खाना है तो किसी मल्टीनेशनल ब्रांड का खाओ। उससे कम से कम इन उजड्डों से बहस तो नहीं लड़ानी पड़ेगी।“  

नवाज की रामलीला

नवाज आज बहुत खुश है। वह अपनी चमचमाती गाड़ी में आराम से पिछली सीट पर बैठा हुआ है और एसी वेंट से आती हुई ठंढ़ी हवा का मजा ले रहा है। वह लगभग चौदह साल के बाद अपने गाँव लौट रहा है। वह लगभग चौदह साल का था जब उसे गाँव से भागना पड़ा था। बात सिर्फ इतनी थी कि वह गाँव की रामलीला में मारीच का रोल करने के लिये स्टेज के पीछे तैयारी कर रहा था तभी कुछ लोगों ने उस पर हमला बोल दिया। वे लोग इस बात को कतई पसंद नहीं करते थे कि एक मुसलमान का बेटा रामलीला में काम करे। लोगों ने उसकी जमकर पिटाई की थी। अपने अब्बा की सलाह पर नवाज अपनी जान बचाने के खयाल से गाँव छो‌ड़कर भाग गया था।

नवाज को लोग थोड़ा सनकी भी समझते थे। वह पतला दुबला और काला कलूटा था और उसपर से उसकी लम्बाई भी कम थी। उसके अब्बा की पंक्चर की दुकान से इतनी कमाई नहीं हो पाती थी कि नवाज को ठीक ढ़ंग से खाना पीना मिल सके। कुछ हद तक कुपोषण की वजह से और कुछ अपने पुरखों से आये जीन की वजह से नवाज एक मरियल टाइप का लड़का ही लगता था। फिर भी उसे बचपन से ही फिल्म स्टार बनने का शौक था। बचपन से ही वह टेलिविजन देख देखकर मशहूर फिल्म स्टारों की नकल उतारा करता था। अपने इस अनूठे हुनर के कारण नवाज अपने हमउम्र लड़कों और लड़कियों में काफी लोकप्रिय था। जाड़े की शामों को अक्सर जब गाँव के लोग एक बड़े से घूरे के पास आग तापने के लिये इकट्ठे होते थे तो नवाज तरह तरह के स्वांग रचकर लोगों का मनोरंजन किया करता था। लेकिन लोग उसे किसी जोकर से अधिक तवज्जो नहीं देते थे।

नवाज गाँव से भागने के बाद सीधा मुम्बई पहुँचा। वहाँ पहुँचकर सबसे पहले उसने किसी पंक्चर की दुकान पर नौकरी शुरु कर दी। यह उसका खानदानी पेशा था इसलिये उसने अपने काम और लगन से अपने मालिक का दिल जीत लिया। पंक्चर बनाने के सिलसिले में उसे अक्सर मशहूर फिल्मी हस्तियों के घर आने जाने का मौका मिलता था। नवाज ने उन मौकों का फायदा उठाने की भरपूर कोशिश की। लेकिन उसकी कद काठी और अजीब से शकल के कारण कोई उसे घास ही नहीं डालता था। लेकिन जब तक नवाज बीसेक साल का हुआ तब तक उसकी जान पहचान मुम्बई की फिल्म इंडस्ट्री के कई नामी गिरामी लोगों से हो चुकी थी। अपने कनेक्शन के कारण नवाज को बर्थडे पार्टी और किट्टी पार्टी में मेहमानों का मनोरंजन करने के लिये बुलाया जाने लगा। इसी तरह एक दिन किसी फिल्म डायरेक्टर ने उसपर तरस खाकर उसे एक फिल्म में छोटा सा रोल दे दिया। नवाज के सीन में उसे हीरो के पिता की जेब काटते हुए दिखाया गया और उसके बाद हीरो से बुरी तरह पिटते हुए दिखाया गया। नवाज ने उस छोटे से रोल में अपनी पूरी शिद्दत के साथ काम किया।

संयोग से उस सीन को देखकर एक ऐसा डायरेक्टर प्रभावित हो गया जिसे आर्ट फिल्में बनाने का शौक था। उसने अपनी एक फिल्म के लिये नवाज को लीड रोल में ले लिया। उस फिल्म को न सिर्फ आलोचकों और बुद्धिजीवियों ने सराहा बल्कि बॉक्स ऑफिस ने भी हाथों हाथ ले लिया। उसके बाद तो नवाज की निकल पड़ी। एक से एक सुपर स्टार नवाज को अपनी फिल्म में बतौर विलेन रखना चाहते थे। उनका कहना था कि नवाज की बर्फ जैसी आँखें और कुटिल हँसी सामने वाले का खून जमाने के लिये काफी है। इस तरह से नवाज फिल्मों में नेगेटिव रोल के सेंसेशन के रूप में सामने उभर कर आया।

उधर नवाज अपने खयालों में डूबा हुआ था तभी उसके ड्राइवर ने कहा, “सर, लगता है आपका गाँव आ गया।“

नवाज जैसे नींद से जागा। उसने देखा कि उसकी गाड़ी रुकी हुई थी और गाड़ी के सामने एक छोटी सी भीड़ जमा थी। भीड़ में सबसे आगे अधनंगे बच्चे थे जो उस महंगी कार को छू छू कर देख रहे थे। उनके पीछे बूढ़े और जवान स्त्री पुरुष खड़े थे। वे भी बड़े अचंभे से गाड़ी को ही निहार रहे थे। तभी एक बुजुर्ग की नजर कार की पिछली सीट पर बैठे नवाज पर पड़ी। वह बुजुर्ग चिल्लाया, “अरे भैया, ई तो अपना नवजवा है। नवाज! अपना असरानी। अपना जगदीप।“

नवाज गाड़ी से उतरा तो लगभग हर व्यक्ति ने उसे पहचान लिया। दूर से नवाज के अब्बा और अम्मी भी दौड़ते हुए आते दिखाई दिये। उन्होंने नवाज को गले से लगा लिया और उसका माथा चूमकर उसे दुआएँ दीं।

रात में नवाज की अम्मी ने उसकी पसंदीदा बिरयानी बनाई। पहली बार बिरयानी में सही ढ़ंग से जरूरी मसाले पड़े थे इसलिय बिरयानी लजीज भी लग रही थी। खाना खाते-खाते नवाज के अब्बू ने पूछा, “सुना है बहुत बड़े आदमी बन गये हो। कुछ लौंडों ने मुझे तुम्हारी फिल्मों के पोस्टर की कतरनें दिखाई थी।“

नवाज ने एक बोटी चूसते हुए जवाब दिया, “हाँ अब्बू, ये सब आपकी और अम्मी की दुआओं का असर है।“

नवाज की अम्मी ने बीच में ही टोका, “क्या खाक असर है। हर फिल्म में तो तुम उतने ही गंदे दिखते हो जैसे यहाँ से गये थे। उस सलमान को देखो, पचास की उमर में भी कितना हसीन लगता है। वहाँ तो एक से एक मेकअप करने वाले होंगे। उनसे कहो कि तुम्हें भी एक हसीन नौजवान बना दें।“

नवाज जोर से हँसा और बोला, “फिर आप मुझे कैसे पहचानोगी अम्मी।“

नवाज के अब्बू ने पूछा, “कितने दिन रुकने का प्लान है? हमें भी अपने साथ ले चलोगे या हमारा 
बुढ़ापा अकेले ही गुजरेगा।“

नवाज ने कहा, “आपको ही लेने तो आया हूँ। लेकिन सोच रहा हूँ एक सप्ताह यहाँ रुक जाऊँ।“

नवाज के अब्बू ने कहा, “क्यों भई, अब यहाँ तुम्हारा दिल कैसे लगेगा। वो भी पूरा एक हफ्ता।“

नवाज ने कहा, “एक दिली ख्वाहिश है अब्बू। इस बार गाँव की रामलीला में मारीच का रोल करना चाहता हूँ। अब तुम्हारे बदसूरत बेटे को तो वे राम या लक्ष्मण का रोल देने से रहे।“

अब्बू ने कहा, “दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा। अरे उसी रामलीला के कारण तुम्हें यहाँ से भागना पड़ा था। भूल गये इतनी जल्दी।“

नवाज ने कहा, “नहीं अब्बू, भूला नहीं हूँ। लेकिन न मैं गाँव से भागता न इतना बड़ा आदमी बनता। कितने एहसान हैं इस रामलीला के मुझपर। आज वक्त आया है तो उस कर्ज को चुकता कर दूँ।“

नवाज के अब्बू ने कहा, “मुझे तो डर लगता है। जमाना खराब हो चुका है। पूरे देश की हवा बदल चुकी है। अब तो यहाँ दो गज जमीन भी नसीब हो जाये उसपर भी अंदेशा लगा रहता है।“

नवाज ने कहा, “नहीं अब्बू, ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं कल ही जाकर रामलीला कमिटी में जाकर अपनी अर्जी डालूँगा। मुझे यकीन है कि वे मुझे मना नहीं करेंगे।“

अगले दिन नवाज रामलीला कमिटी के दफ्तर पहुँचा। यह दफ्तर नवाज के घर से कोई सौ फर्लांग की दूरी पर होगा। एक बूढ़े बरगद के नीचे एक मेज और दो तीन कुर्सियाँ और उनके आगे दो चारपाई; बस यही था रामलीला कमिटी का दफ्तर। दफ्तर के बाहर कुछ आवारा बच्चे उसी गाँव के आवारा कुत्तों के साथ खेल रहे थे। मेज के पीछे लगी कुर्सी पर रामलीला कमिटी के अध्यक्ष बटुक मिश्रा जी विराजमान थे।

नवाज को अपनी ओर आता देखकर बटुक मिश्रा ने कहा, “आदाब अर्ज है नवाज साहब। हमारे अहो भाग्य कि हमसे मिलने बॉलीवुड से एक हस्ती आई है।“

नवाज ने जवाब दिया, “नमस्कार मिश्रा जी। आपके लिये तो मैं अभी भी नवजवा ही हूँ। इतनी इज्जत अफजाई करके शर्मिंदा न कीजिए।“

थोड़ा हाल चाल पूछने और इधर उधर की बातें करने के बाद नवाज ने मुद्दे की बात कही, “मिश्रा जी, मैं बड़े अरमान लेके मुम्बई से आया हूँ। आपसे गुजारिश है कि इस साल की रामलीला में मुझे मारीच का रोल करने दिया जाये।“

मिश्रा जी थोड़ा चौंक कर बोले, “भैया नवाज, तुम तो जानते ही हो कि गाँव का माहौल कितना बदल चुका है। तुम्हें ये भी याद होगा कि तुम्हें गाँव छोड़कर क्यों भागना पड़ा था। मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है कि राम का रोल कौन करे और मारीच का कौन। मुझे तो सिर्फ अच्छे कलाकार चाहिए होते हैं।“

नवाज ने कहा, “बस यदि आपको आपत्ति नहीं है तो फिर आपकी बात को कौन टालेगा। आप बस एक बार हामी भर दीजिए।“

बटुक मिश्रा ने कहा, “मेरी तरफ से तो हाँ समझो। तुम चाहो तो आज से ही रिहर्सल शुरु कर सकते हो। लेकिन आजकल कुछ जवान लौंडे गाँव में नेतागिरी करने लगे हैं। हम बुजुर्गों की बात तो वे सुनते ही नहीं। यदि उन्होंने कुछ गड़बड़ की तो फिर मैं कुछ नहीं कर पाउँगा।“

नवाज ने कहा, “जो होगा देखा जायेगा।“

उसके बाद नवाज गाँव के शिव मंदिर के पीछे बने अहाते में चला गया जहाँ रामलीला की रिहर्सल चल रही थी। नवाज को देखकर वहाँ पर मौजूद बाकी कलाकारों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। कोई नवाज का ऑटोग्राफ ले रहा था तो कोई उसके साथ सेल्फी खिंचवा रहा था। इन सबसे फारिग होने के बाद, नवाज को मारीच के डायलॉग की स्क्रिप्ट पकड़ा दी गई और नवाज उसका रिहर्सल करने लगा। नवाज बहुत खुश लग रहा था।

शाम मे जब नवाज अपने घर पहुँचा तो देखा कि उसके घर के बाहर भीड़ लगी है। उस भीड़ में ज्यादातर लोगों के हाथों में डंडे थे और उन डंडों के ऊपर भगवा झंडे लहरा रहे थे। वे लोग बस नारे लगा रहे थे, “नवाज मुर्दाबाद, नवाज मुर्दाबाद।“

नवाज ने भीड़ को शांत करने की कोशिश की और कहा, “भैया मैं तुम्हारा अपना नवाज हूँ। मैं कोई पाकिस्तान का प्राइम मिनिस्टर नहीं हूँ कि तुम मुर्दाबाद के नारे लगा रहे हो।“

भीड़ में से एक पहलवान टाइप नौजवान आगे आया और बोला, “भाई नवाज, हम तुम्हारी फिल्मों के बहुत बड़े फैन हैं। अभी पिछले ही सप्ताह मैंने शहर में तुम्हारी फिल्म देखने के लिये ब्लैक में टिकट खरीदी थी। और मेरे स्मार्ट फोन में तुम्हारे डायलॉग के सीन अभी भी डाउनलोड करके रखे हैं। लेकिन एक सच्चा हिंदू होने के नाते मैं तुम्हें रामलीला में रोल करने नहीं दूँगा। मेरा वश चले तो मैं मुम्बई में भी धार्मिक फिल्मों और सीरियलों में मुसलमानों को रोल दिये जाने का विरोध करूँगा।“

नवाज की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। वह अभी समझने की कोशिश ही कर रहा था कि उसे पुलिस के सायरन की आवाज सुनाई पड़ी। पलक झपकते ही पुलिस की कई गाड़ियाँ वहाँ आकर रुक गईं। एक गाड़ी में से एक पुलिस ऑफिसर उतरा और नवाज के पास जाकर बोला, “सर, मेरे पास ऊपर से ऑर्डर हैं। आपकी जान पर हम कोई आँच नहीं आने देंगे। साथ में हमें गाँव में सांप्रदायिक सौहार्द्र को भी बनाये रखना है। हमारी पुलिस आपको अभी बाबतपुर एअरपोर्ट तक छो‌ड़ देगी। आप बिलावजह इस लोकल पचड़े में ना पड़ें तो ही ठीक है।“


नवाज ने मौके की नजाकत को देखते हुए पुलिस वाले की बात मानने में ही भलाई समझी। इस बार वह गाँव से भगोड़े की तरह नहीं जा रहा था। इस बार उसके साथ उसके अब्बू अम्मी भी जा रहे थे। लेकिन जब नवाज पहली बार गाँव से भाग रहा था तो उसे लगा था कि वह आजाद हो रहा था। उस समय वह बहुत खुश था। लेकिन इस बार नवाज बड़े भारी मन से अपने गाँव से वापस जा रहा था। उसे लग रहा था कि वह अपने सीने पर एक पत्थर रखकर जा रहा था।