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Saturday, July 22, 2017

तुलसी किसके आँगन की?

रेखा आज बहुत खुश लग रही थी। आखिरकार उसे किराये के मकान से निजात मिल ही गई थी। कल ही उसने अपने पति और दो बच्चों के साथ अपने मकान में  शिफ्ट किया था। कहने को तो ये टू बी एच के फ्लैट था लेकिन था बड़ा ही छोटा। लेकिन मकानों की आकाश छूती कीमतों और अपने बजट को देखते हुए रेखा और उसके पति (राकेश) को वही फ्लैट पसंद आया। वह फ्लैट राजधानी दिल्ली की सीमा पर उस इलाके में था जिसे एन सी आर कहते हैं। आस पास के ग्रामीण परिवेश में बहुमंजिला इमारतों यह कतार ऐसी लगती थी जैसे किसी ने जबरदस्ती खेतों के बीच में कंक्रीट का एक विशाल बिजूका खड़ा कर दिया हो। बहरहाल, रॉयल सिटी नामक उस टाउनशिप में लगभग हर वह सुविधा थी जिससे किसी मिडल क्लास परिवार का जीवन सामान्य ढ़ंग से चल सके। उस टाउनशिप के अंदर बने शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में जरूरत की लगभग हर चीजें मिलती थीं।

उनका फ्लैट ग्राउंड फ्लोर पर था जिसके कारण उन्हें दोनों कमरों के आगे अच्छी खासी जगह मिल गई थी। ऊपर की मंजिलों पर तीन फीट की चौड़ाई वाली बालकनी में दो लोग भी बड़ी मुश्किल से खड़े हो पाते थे। लेकिन ग्राउंड फ्लोर की तथाकथित बालकनी में इतनी जगह थी की चार पाँच कुर्सियों के साथ साथ एक खटिया भी लगाई जा सकती थी। उस जगह में कपड़े सुखाने के लिए भी काफी जगह थी जो कि आजकल के सिमटे हुए फ्लैटों में किसी लक्जरी से कम नहीं थी।

सुबह सुबह नहाने धोने के बाद रेखा ने जल्दी से नाश्ता बनाकर अपने पति और बच्चों को खिलाया। राकेश ने घर का सामान ढ़ंग से रखवाने के खयाल से चार दिनों की छुट्टी ले ली थी। बच्चों के लिए इस नये इलाके में स्कूल एडमिशन का काम अभी बाकी था। नाश्ते का स्वाद लेते हुए राकेश को लगा कि रेखा थोड़ी परेशान लग रही थी। उसने जब रेखा से पूछा तो रेखा ने बताया, “नहीं, कुछ खास नहीं। सोच रही हूँ कि एक नया गमला लेकर उसमें तुलसी का पौधा लगा दूँगी। सुबह की पूजा ठीक से हो जायेगी।“

राकेश ने कहा, “अरे गमले की क्या जरूरत है। सामने जो पार्किंग स्पेस है, उसके आगे फूलों और डेकोरेटिव प्लांट्स की कतारें लगी हैं। उसी में कहीं जगह देखकर तुलसी का पौधा लगा दो। पौधे को फलने फूलने के लिये भरपूर जगह मिलेगी। फिर तुम भी खुश और तुलसी भी खुश।“

अगले दिन रेखा ने अपने फ्लैट के सामने वाली तथाकथित ग्रीन बेल्टमें तुलसी का पौधा लगा दिया। फिर रोज सुबह नहा धोकर तुलसी को पानी का अर्ध्य देना और उसकी पूजा करने का सिलसिला शुरु हो गया। महीने दो महीने बीतते बीतते वह तुलसी का पौधा काफी मशहूर हो गया। उस हाउसिंग सोसाइटी की कई महिलाएँ सुबह सुबह नहा धोकर तुलसी को जल चढ़ाने आने लगीं। कुछ महिलाएँ तो देर दोपहर को तुलसी को जल चढ़ाने आया करती थीं। यह सब देखकर रेखा को आत्मसंतुष्टि का अनुभव होता था।

छ: महीने बीतते बीतते वह तुलसी का पौधा काफी फैल चुका था। तीज त्योहारों के मौकों पर शाम की आरती के लिए वहाँ कई महिलाएँ इकट्ठी हुआ करती थीं। भजन कीर्तन का आयोजन भी होने लगा। इसी बहाने वहाँ पर अक्सर शाम को अच्छी खासी चहल पहल होने लगी। कुछ लोगों ने उस तुलसी के आस पास देवी देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियाँ भी रख दी थीं। इस तरह से वह स्थान एक पवित्र स्थलमें बदल चुका था।

अब रेखा को अक्सर तुलसी पर जल चढ़ाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता था। उसे लगता था कि उस तुलसी के पौधे पर उसका पहला अधिकार था क्योंकि उसी ने उस पौधे को लगाया था। लेकिन वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती थी। रेखा को यह बात अंदर से खाने लगी। वह अब हमेशा की तरह पूजा करने के बाद खुश नहीं होती थी। उसे अब कभी कभी सर दर्द का दौरा भी पड़ने लगा था। राकेश उसे अक्सर समझाने की कोशिश करता था, “तुम्हें तो खुश होना चाहिए। तुम्हारे कारण कितने लोगों को पूजा करने के लिए एक निश्चित स्थान मिल गया। भगवान तो सबके होते हैं। उन पर किसी की मोनोपॉली नहीं होती। इसमें इतना परेशान होने की बात ही नहीं है।“

इस बीच रेखा को सर दर्द के इलाज के लिए कई डॉक्टरों से दिखाया गया। लेकिन किसी भी दवा का उसपर कोई असर नहीं होता था। अब तो सर दर्द के और भी नये नये कारणों का जन्म होने लगा था। कभी कोई वहाँ पर भंडारे का आयोजन करा देता। भंडारे के समय जो खलबली मचती थी कि रेखा अपने घर में भी शांति से बैठ नहीं पाती थी। उससे भी ज्यादा जुल्म तब होता था जब कोई मंडली वहाँ पर माता के जागरण का अनुष्ठान कर देती थी। फिर तो रेखा और उसके परिवार को रात भर जाग कर ही बिताना पड़ता था। एकाध बार रेखा ने रेजिडेंट वेलफेअर एसोशियेशन में इसकी शिकायत की तो जवाब मिला कि धार्मिक मामलों में वे कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते। लगभग दो साल बीतने का बाद एक दिन उस हाउसिंग सोसाइटी के हर टावर के नोटिस बोर्ड पर एक नोटिस लग गया।

“बड़े हर्ष के साथ यह सूचना दी जाती है कि गंगा टावर के सामने जो पूजा स्थल है, वहाँ पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराने का फैसला लिया गया है। मंदिर बनाने में जो खर्च आयेगा उसका पचास प्रतिशत वहन करने का वादा बिल्डर के द्वारा किया गया है। बाकी की राशि चंदे के माध्यम से इकट्ठी की गई है। गंगा टावर के ग्राउंड फ्लोर के दो फ्लैट में रहने वाले परिवारों को फ्लैट खाली करने होंगे। बदले में उनके लिये सबसे ऊपरी मंजिल यानी एक्कीसवीं मंजिल पर नये फ्लैट बनाकर दिये जाएँगे। चूँकि वहाँ पर सबसे पहला तुलसी का पौधा रेखा जी ने लगाया था इसलिए उन्हें मंदिर का ट्रस्टी नियुक्त किया जायेगा। रॉयल सिटी के निवासी रेखा जी के सदैव आभारी रहेंगे।“


उस नोटिस को पढ़ने के बाद रेखा की समझ में नहीं आ रहा था कि हँसे या रोये। हाँ वह इस बात से जरूर खुश थी कि नये फ्लैट में शिफ्ट करने के बाद रोज रोज के कोलाहल से मुक्ति जरूर मिलेगी।