Pages

Thursday, July 28, 2016

भंडार घर

मैं दरवाजे के बाहर बरामदे पर बैठा धूप सेंक रहा था कि सामने से रिक्शा आकर मेरे घर के पास रुका। रिक्शे पर ब्रजेश मामा, मामी और उनके तीन बच्चे (दो बेटे और एक बेटी) बैठे हुए थे। रिक्शे पर इतना सामान लदा था जैसे मामा तीन चार दिन नहीं बल्कि महीने दो महीने के लिये आ रहे हों। शायद दीदी की शादी के बाद भी उनका रुकने का इरादा था। मामा को प्रणाम करने बाद मैने अम्मा को आवाज लगाई, “अम्मा, देखो तो मामाजी आये हैं।“

मामा का नाम सुनते ही अम्मा दौड़ी-दौड़ी आ गईं। अपने चहेते भाई को देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा और बोलीं, “अरे भैया आ गये। तुम्हारा ही इंतजार था। तुम तो बिलकुल दिन गिनकर मेहमान की तरह आये हो। कुछ दिन और पहले नहीं आ सकते थे।“

ब्रजेश मामा ने कहा, “अरे नहीं दीदी, थोड़ा कोर्ट कचहरी के चक्कर में दरभंगा का चक्कर ज्यादा लग रहा था इसलिए नहीं आ पाया।“

अम्मा ने कहा, “चलो अब आ गये हो तो जल्दी से काम पर लग जाओ। ये लो चाबी और भंडार घर की जिम्मेदारी संभालो।“

ब्रजेश मामा ने कहा, “अब मैं आ गया हूँ, सब सँभाल लूँगा।“

अम्मा ने कहा, “अरे गाँव घर का मामला है। तुम इस गाँव के लोगों को तो जानते ही हो। सब मौके की तलाश में रहते हैं। जरा सा ध्यान नहीं भटका कि कोई डालडे का टिन गायब कर देता है तो कोई चीनी की बोरी। आजकल के लौंडे तो इस फिराक में रहते हैं कि दाल में जमालगोटा मिला दें।“

ब्रजेश मामा ने कहा, “मुझे शादी ब्याह में भंडार घर सँभालने का पुराना तजुर्बा है। मेरे रहते कोई चिड़िया भी पर नहीं मार सकती। तुम निश्चिंत होकर और मेहमानों का खयाल रखो।“

उसके बाद मामा जी का सामान उतारा गया। मामाजी ने भंडार घर के ही एक कोने में अपने और अपने परिवार के लिए फर्श पर गद्दे लगवा दिये। फिर मामा जी ने मामी से कहा, “अब इस भंडार घर को अपना ही घर समझो। जो जी आये खाओ और अपने बच्चों को खिलाओ। तुम हमेशा ताने देती रहती हो कि मैं तुम्हें ठीक से रईसी नहीं करवाता हूँ।“

मामी ने हँसते हुए कहा, “अब आप तो ठहरे निठल्ले। ऊल जलूल केस मुकदमों में अपना समय बर्बाद करते रहते हैं। कोई काम धँधा कर लेते तो मेरी भी परिवार में कुछ इज्जत होती। चलो भंडार के बहाने ही सही थोड़ी इज्जत तो मिल जाती है।“

परिवार में जितनी भी शादियाँ होती हैं, मामा जी निठल्ले होने के कारण वहाँ सबसे पहले पहुँच जाते हैं और भंडार घर पर कब्जा जमा लेते हैं। उसके बाद तो वे घर वालों को भी कोई सामान देने में इतना मीन मेख निकालते हैं कि पूछो मत। हाँ इस बीच मामा जी और उनके बाल बच्चों की अच्छी कटती है। उन्हें लगभग एक सप्ताह तक तर माल पर हाथ साफ करने का मौका जो मिल जाता है।

अगले दिन झंझारपुर वाले फूफा जी अपने परिवार समेत पधारे। घर का छोटा दामाद होने के नाते उनकी बड़ी शान है। फूफा जी को बुआ और उनके बच्चों के साथ एक अलग कमरा दिया गया। नहा धोकर फूफा जी ने नाश्ता किया और सबसे पहले भंडार घर के पास मुआयना करने पहुँच गये। वहाँ पर देखा कि बाहर दरवाजे पर पहले से ही ब्रजेश मामा एक स्टूल पर विराजमान थे। यह देखकर फूफा जी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उन्होंने अम्मा से कहा, “भाभी ये बताइए कि घर में आदमी होते हुए भी आपने एक बाहरी आदमी को भंडार की जिम्मेदारी कैसे दे दी। अरे मैं ठहरा इस घर का सबसे छोटा दामाद और आपके भाई तो इस घर के सदस्य भी नहीं हैं। आपको न तो मेरी इज्जत का खयाल रहा न ही अपनी इज्जत का।“

अम्मा ने स्थिति को सँभालने की कोशिश की, “अरे जमाई जी, अब ब्रजेश पहले ही आ गया था तो मैं क्या करती। फिर यह ठहरा मेरा मुँहलगा छोटा भाई सो इसकी बात मैं कैसे टाल सकती थी। मैं तो धर्मसंकट में पड़ गई थी। फिर आप ठहरे घर के दामाद सो आपसे कोई काम करवाना तो अधर्म हो जाता।“

मैं जब शाम में बाजार से खरीददारी करके वापस आया तो देखा कि फूफा जी बरामदे पर मुँह लटकाए बैठे थे। मैने उनसे पूछा, “फूफा जी, तबीयत तो ठीक है। कुछ जलजीरा या ईनो पियेंगे। शादी ब्याह के मौके पर तो आपको अकसर गैस की शिकायत हो जाती है।“

फूफा जी ने जवाब दिया, “क्या बकते हो। अरे जब कुछ ठीक से खाउँगा तभी तो गैस बनेगी। आज दोपहर को सोचा था कि भंडार से ढ़ेर सारी तली मछलियाँ लेकर तुम्हारी बुआ और उनके बच्चों को खिलाउँगा लेकिन उस ब्रजेश के बच्चे ने तो पहरा लगा रखा है। बता रहा था कि मछलियाँ रात के खाने के लिए बनी हैं इसलिए दिन में किसी को नहीं लेने देगा। उसे पता ही नहीं है कि घर के दामाद की क्या इज्जत होती है। उसकी बिटिया की शादी होगी तब पता चलेगा।“

फूफा जी बड़े गुस्से में लग रहे थे। अनहोनी को टालने के लिए मैने अम्मा से पैरवी करवाकर मामा जी से पंद्रह बीस पीस तली हुई मछलियाँ निकलवाई और फिर फूफा जी के आगे पेश कर दिया। तब जाकर फूफा जी के कलेजे को ठंडक मिली। जब मैं मछलियाँ लेने भंडार घर के अंदर गया तो देखा कि मामी और उनके बच्चे तो तबतक कोने में काँटों के ढ़ेर लगा चुके थे।

अगले दिन तिलक के समय पता चला कि फूफा जी नदारद थे। मैं फूफा जी को ढ़ूँढ़ने उनके कमरे में गया तो देखा कि वे लुंगी और बनियान में ही लेटे हुए थे। मैने पूछा, “फूफा जी क्या हुआ? सब लोग वहाँ तिलक के लिए आपका इंतजार कर रहे हैं। क्या मछली ज्यादा हो गई थी? ईनो की जरूरत है?”

फूफा जी भड़क उठे, “तुम्हें क्या लगता है कि मैं गैस का सिलिंडर हूँ। मेरी तो कोई इज्जत ही नहीं है इस घर में। जब तक तुम्हारे दादा जीवित थे तब बात कुछ और थी। अरे कल मेरे बेटे पिंकू को उस ब्रजेश के बच्चे ने कान उमेठ कर भगा दिया। बेचारा पिंकू तो केवल एक कटोरी गुलाबजामुन लेने गया था। मैने सोच लिया है कि कल सुबह वाली बस से ही मैं झंझारपुर के लिए निकल जाउँगा।“

जब अम्मा को ये बात पता चली तो उन्होंने फौरन पापा को बाजार भेजकर पिंकू और उसके पिताजी के लिए रसमलाई मँगवाई। तब जाकर फूफा जी का गुस्सा शाँत हुआ और वे तिलक में शरीक हुए।
अगले दिन जब मैं शामियाना की सजावट की जाँच पड़ताल कर रहा था तो देखा कि मामा जी एक कोने में चुपचाप बैठे थे। मैने उनसे पूछा, “मामाजी क्या हुआ? अभी भंडार घर में कोई काम नहीं है?”

मामा जी ने उदास सुर में कहा, “कल रात जब मैं सो रहा था तो मेरी जनेऊ में बँधी चाबी को तुम्हारे फूफा जी ने चुरा ली। कहते हैं भंडार का असली हकदार तो घर का दामाद होता है न कि घर का साला। आज से भंडार घर के नये इनचार्ज तुम्हारे फूफा ही हैं। मेरी तो कोई इज्जत ही नहीं है इस घर में। अब बहुत हो चुका। इसके बाद तुम्हारी शादी में तो मैं कतई नहीं आउँगा।“

अंदर जाकर देखा तो भंडार घर के बाहर रखे स्टूल पर फूफा जी विराजमान थे। मामी और उनके बच्चों को भी भंडार घर से बेदखल कर दिया गया था। फूफा जी के दोनों बेटे मालपुआ पर अपने हाथ साफ कर रहे थे। बगल में बुआ कटोरी भर कर रबड़ी खा रहीं थीं।


अम्मा ने मामा जी का दिल रखने के लिए उन्हें पैंट शर्ट का कपड़ा दिया, मामी को सिल्क की नई साड़ी दी और उनके बच्चों को भी नई ड्रेस दी। फिर विदाई के समय अम्मा ने मामाजी के हाथ में एक हजार एक रुपये भी पकड़ाए और कहा, “भैया, दिल छोटा नहीं करो। परिवार में सबका दिल रखना पड़ता है। अब वो ठहरे छोटे दामाद सो उनको तो नाराज नहीं कर सकते। साल दो साल में जब लड्डू की शादी करूँगी तो भंडार की जिम्मेदारी तुम्हें ही दूँगी, बकायदा स्टांप पेपर पर लिखकर।“ 

हर हर मोदी से अरहर मोदी

आज कुछ भक्त जन बड़े दुखी लग रहे हैं। जिस आदमी को वे आजतक सबसे बड़ा उल्लू साबित कर चुके थे उसी आदमी ने उनकी दुखती रग छेड़ दी। लगभग दो साल पहले उनके स्टार परफॉर्मर का आगाज किसी धूमकेतू की तरह हुआ था। उस धूमकेतू की आगवानी में कुछ लोगों ने तो एक कमाल का नारा भी बना लिया था, “हर हर मोदी घर घर मोदी।“ वह धूमकेतू था भी लाजवाब; रोशनी से लबरेज और पीछे गैस की लंबी लकीर छोड़ता हुआ; जिसे अंग्रेजी में ट्रेलब्लेज कहते हैं। वैसा ट्रेलब्लेज जैसा रॉकेट अपने लॉंच के समय छोड़ता है। इसपर मुझे एक ट्रेनिंग प्रोग्राम याद आया जिसका शीर्षक था ट्रेलब्लेज। उस प्रोग्राम में एक वीडियो दिखाया गया था जिसमें हर बात पर कोई मशहूर अंग्रेजी गायक एक ही लाइन दोहराता था, “बी ए वारियर, विन द रेस, ट्रेल ब्लेज ट्रेल ब्लेज।“ लोगों ने बड़ी उम्मीद से उस धूमकेतू को अपने सर आँखों पर उठा लिया था क्योंकि वे उसके दिखाए सब्जबाग से अच्छे खासे प्रभावित थे। सबको लगता था कि अच्छे दिन जल्दी ही आ जाएँगे। लेकिन विज्ञान की किताब में मैने पढ़ा है कि धूमकेतू जिस रास्ते पर चलता है उसका आकार किसी एलिप्स की तरह होता है। मतलब इसकी परिधि की चौड़ाई कम होती है लेकिन लंबाई बहुत अधिक होती है। इस कारण से जब धूमकेतू धरती के आसपास से गुजरता है तो बड़ी तेज रोशनी देता है। लेकिन जब यह धरती से बहुत दूर चला जाता है तो फिर यह शक्तिशाली दूरबीनों से भी नजर नहीं आता है। एक और बात गौर करने लायक है कि धूमकेतू को दोबारा धरती के पास आने में पचास या सौ वर्षों से भी ज्यादा लग जाते हैं। अब इस धूमकेतू के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। चुनाव जीतने के साथ ही वह हिंदुस्तान की धरती से दूर जाने लगा। अब उसका ज्यादा समय विदेशों में बीतता है क्योंकि वसुधैव कुटुंबकम की पॉलिसी के तहत वह दुनिया के अन्य भागों को भी रोशनी पहुँचाना चाहता है। इस बीच हिंदुस्तान में अँधेरा छाता जा रहा है। कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं गाय के नाम पर तो कहीं जाति के नाम पर दंगे भड़काए जा रहे हैं। चीजों के दाम सुरसा के मुँह की तरह बढ़ते ही जा रहे हैं। अब दाल का उदाहरण लीजिए। बचपन में पढ़ा और सुना था कि दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ। इसका मतलब था कि सस्ता और साधारण खाना खाकर संतोष करना सीखो। लेकिन दाल के दाम इतने बढ़ गये हैं कि यह गरीब क्या मध्यम वर्ग की थाली से भी गायब होती जा रही है। भारत एक ऐसा देश है जहाँ ज्यादातर लोग शाकाहारी हैं। जो लोग माँसाहारी हैं वे भी महीने के बीस से पच्चीस दिन तो शाकाहारी भोजन ही करते हैं। ऐसे में दाल उनके लिए प्रोटीन के एकमात्र स्रोत का काम करती है। वैसे भी भारत में कार्बोहाइड्रेट से भरपूर भोजन खाने के कारण भारत दुनिया का डायबिटीज कैपिटल हो गया है। सरकार उसे रोकने के लिए फैट टैक्सलगाने के बारे में भी सोच रही है लेकिन दाल की कीमतों के बारे में कुछ भी नहीं सोच रही है। अब इससे मुट्ठी भर बचे कांग्रेसियों को यदि ये लगता है कि मोदी जी के मुँह से कुछ उगलवाने के लिए कोई रैली करवानी पड़ेगी तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। राहुल गाँधी; जिन्हें ज्यादातर लोग पप्पू के नाम से जानते हैं; को भी लगता है आटे दाल का भाव पता चल गया तभी तो वे एक नए नारे, “अरहर मोदी” की बात कर रहे हैं। लेकिन राहुल गाँधी के इस बढ़ते ज्ञान के पीछे किसी और नहीं बल्की मोदी सरकार का हाथ है। इस सरकार ने पिछले दो साल में अपने किसी भी चुनावी वादे को पूरा नहीं किया। कच्चे तेल की कीमत घटने के बावजूद पेट्रोल के दाम नहीं घटे। दाम यदि घटाए जाते हैं तो एक दो रुपए और बढ़ाए जाते हैं तो तीन चार रुपए। इस स्थिति में फैसला आप का है कि आप हर हर मोदीबोलते हैं या अरहर मोदी।