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Thursday, May 28, 2015

बच्चे का शगुन

मेरी ट्रेन काफी लेट हो चुकी थी।  जिस ट्रेन को सुबह के पाँच बजे ही पटना पहुंच जाना चाहिए था वह दिन के १० बजे भी अपनी मंजिल से लगभग ६० किमी पीछे थी।  ज्यादातर मुसाफिर जाग चुके थे और सीटों पर बैठ गए थे।  लोग अपने अपने अंदाज में भारतीय रेल की लेट लतीफी को कोस रहे थे।  हालांकि यह स्लीपर वाली बोगी थी लेकिन बहुत सारे यात्री ऐसे भी चढ़ गए थे जिनके पास जेनरल टिकट था।  इनमे से अधिकांश डेली पैसेंजर थे, जो अपने काम से रोज पटना तक जाया करते थे।  कुछ तो डेली पैसेंजर के डर से और कुछ सब कुछ एडजस्ट करने की मानसिकता के कारण रिजर्व टिकट वाले यात्री सभी को बैठने की जगह दे रहे थे।  ऐसे भी जेनरल क्लास के डिब्बे में इतनी कशमकश होती है कि कमजोर दिल और शरीर वाले आदमी का उसमे घुसने की हिम्मत करना भी असंभव है।  बेचारे डेली पैसेंजर करें भी तो क्या करें।  उनके लिए जो ई एम यू ट्रेन चलती है वह कहीं भी जितनी देर मर्जी रुकी रहती है और कई लोग इस कारण से अपने काम पर देरी से पहुंचते हैं।  
तो कुल मिलाकर ट्रेन में ठीक ठाक भीड़ थी जिसे बढ़ती गर्मी और उमस के कारण बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था।  इसी भीड़ में फेरीवाले बड़े आराम से अपना रास्ता निकाल ले रहे थे और बड़ी जबरदस्त सेल कर रहे थे।  कुछ भिखारी भी उतने ही आराम से पूरी ट्रेन में घूम फिर रहे थे और दान दक्षिणा बटोर रहे थे।  
मैं साइड बर्थ पर बैठा था और खिड़की से आती हुई हवा का आनंद ले रहा था।  मेरी बगल में एक महिला खड़ी थी जिसकी गोद में कोई डेढ़ दो साल का बच्चा था।  महिला ने नई साड़ी पहन रखी थी और उसके बालों से किसी सुगंधित तेल की तेज महक आ रही थी।  इस महक को बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो रहा था।  पहनावे और बोलचाल से वह पास के ही किसी गाँव की महिला लग रही थी।  बच्चे ने पीले रंग की नई ड्रेस पहन रखी थी और उसके ललाट पर नजर से बचाने के लिए काला टिका लगा हुआ था।  बच्चे के हाथ में ५० रूपए का नोट था जिसे उसने भींच कर पकड़ रखा था।  मुझे कभी-कभी ताज्जुब होता है कि छोटे बच्चे ये कैसे जान लेते हैं कि नोट की क्या वैल्यू होती है।  
थोड़ी देर में सामने से एक साधु आया।  उसने गेरुआ कपड़े पहन रखे थे।  माथे पर भभूत लगा था, गले में रुद्राक्ष की मोटी सी माला और हाथ में एक कमंडल था।  वह हर किसी के कल्याण और उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए बड़ी उम्मीद से सबके सामने हाथ फैला रहा था।  ज्यादातर लोग ऐसे दृश्य के अभ्यस्त थे इसलिए साधु के हाथ कुछ भी न आ रहा था।  साधु थोड़ी देर तक मेरे पास ही खड़ा रहा और फिर जो हुआ उस घटना ने मेरे मन पर एक अमिट छाप छोड़ दी।  
साधु ने तेजी से बच्चे के हाथ से ५० रूपए का नोट झपट लिया।  बच्चा जोर-जोर से रोने लगा।  उसकी माँ में शायद इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह साधु का विरोध कर सके।  वह भी सुबक-सुबक कर रोने लगी।  उसने बताया कि बच्चे के नाना ने शगुन के रूप में वह रुपए दिए थे और कहा था कि उससे बच्चे के लिए जलेबियाँ खरीद दे।  
चलिए उस औरत की मन:स्थिति तो समझ में आती है; क्योंकि ज्यादातर महिलाओं को यही सिखाया जाता है कि अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को चुपचाप सहन कर लेना चाहिए।  वहाँ पर बैठे किसी भी यात्री की यह हिम्मत न हुई कि उस साधु का विरोध कर सकें।  मैं भी उन्हीं में से एक था।  लगता है सबने पंचतंत्र की बंदर और लकड़ी के फंटे वाली कहानी से बड़ी अच्छी शिक्षा ली थी।  

इतने में एक मूंगफली बेचने वाला आया।  उसकी उम्र १६ - १७ साल से अधिक नहीं रही होगी।  उसने ठेठ बिहारी लहजे में उस साधु को चुनिंदा गालियाँ दी और उसके हाथ से वह नोट छीन कर बच्चे के हाथों में दे दिया।  मैं मन ही मन उस किशोरवय लड़के के प्रति नतमस्तक हो गया।  

Saturday, May 23, 2015

दूध का दूध और पानी का पानी

 किसी विधानसभा चुनाव से पहले किसी नेताजी ने कहा था कि कुछ लोग ऐसा करेंगे कि दूध के दाम आसमान छुएंगे। मुझे तो लगता है कि ज्यादातर चीजों के दाम आज आसमान छू रहे है।  लेकिन हमारे देश के नेता हमेशा कुछ न कुछ ऐसा करते हैं जिससे हमें लगता रहे कि वो वाकई हमारी सुध लेते है।  इसी सोच को अमली जामा पहनाते हुए एक मुख्यमंत्री ने आदेश जारी कर दिया कि अब से दूध उत्पादकों को गेहूं और धान की तरह समर्थन मूल्य मिलेगा।  यह समाचार सुनकर मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए।  जो जो चीजें समर्थन मूल्य की राजनीति से प्रभावित होती हैं उनके दाम सुरसा के मुख की तरह बढ़ने लगते हैं।  लेकिन लगता है कि मुख्यमंत्री जी को मेरी चिंता की चिंता होने लगी।  अगले ही दिन यह समाचार आया की पैकेट वाले दूध के दाम ५ रूपए प्रति लीटर घटाने का भी अध्यादेश आ गया।  जब मैंने इसकी चर्चा अपनी पत्नी से की तो मुझे पता चला यह तो मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने के बराबर है।  जी नहीं मैं अपनी पत्नी के संभावित गुस्से की बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि दूध पर भविष्य में होने वाली राजनीति के बारे में चिंतित  हो रहा हूँ।  अब आप गौर से मेरी भविष्यवाणी को पढ़िए।  अब पूरे देश के किसान नेताओं को आंदोलन करने का एक और नया बहाना मिल जाएगा।  दूध के समर्थन मूल्य को बढाने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन हुआ करेंगे।  टीवी चैनलों पर एक से बढ़ कर एक पैनल इस पर चर्चा करके हमारे ज्ञान को निखारने की कोशिश करेंगे।  दिल्ली के मुख्यमंत्री आनन फानन में दूध पर सब्सिडी की घोषणा कर देंगे।  यह सब्सिडी केवल उन परिवारो को ही मिलेगी जो महीने में दस लीटर से कम दूध खरीदेंगे।  प्रधानमंत्री जी दूध पर मिलने वाली सब्सिडी को सीधे बैंक खाते में डलवा देंगे ताकि दूध की कालाबाजारी रोकी जा सके।  इसपर एक पहल योजना भी आएगी जिसमे जनता जनार्दन से यह अपील की जाएगी कि वैसे लोग जो आसानी से दूध खरीद सकते हैं; स्वेक्षा से दूध की सब्सिडी लेने से मना कर दे।
नोट: अर्थशास्त्र की कई किताबो में मैंने पढ़ा है की भारत पूरे विश्व में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।