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Friday, July 29, 2016

गुरुग्राम में भारी बारिश



आपको पता ही होगा कि अर्जुन एक मेधावी छात्र था जो गुरु द्रोणाचार्य के कॉलेज में पढ़ता था। अर्जुन मेधावी होने के साथ साथ टाइम का भी पक्का था। वह बिला नागा अपने क्लास के लिए समय पर ही पहुँचता था। उसे हस्तिनापुर से गुरुग्राम तक रोज जाना होता था। लगभग चालीस किलोमीटर की इस दूरी को तय करने में उसे एक घंटा लगता था। इसके लिये महाराज धृतराष्ट्र की तरफ से अर्जुन के लिए तेज चलने वाले रथ का इंतजाम किया गया था। अर्जुन की रथ का सारथी और कोई नहीं बल्कि स्वयं भगवान कृष्ण हुआ करते थे। कृष्ण ने रथों की कई फॉर्मूला 1 रेस जीती थी और रथ हाँकने के मामले में उनका कोई सानी नहीं था। इसके अलावा जब भी अर्जुन जैसे राजकुमारों का रथ गुजरता था तो राजा के सिपाही पहले से ही रास्तों को खाली करवा देते थे ताकि रथ किसी ट्राफिक जाम में न फँस जाए।

अर्जुन की तरक्की और कृष्ण की लोकप्रियता को देखकर इंद्र को लगने लगा कि उनकी गद्दी खतरे में है। इंद्र को छोटी छोटी बातों से ही हमेशा अपनी गद्दी खतरे में लगने लगती थी। इंद्र ने इस सिलसिले में कई बार यह भी ट्वीट कर डाला था, “कृष्ण और अर्जुन मेरी हत्या करवाना चाहते हैं। मेरे पास इसके पुख्ता सबूत हैं। उचित समय आने पर मैं इसका खुलासा करूँगा।“

लेकिन इंद्र की बातों पर कोई ध्यान नहीं देता था क्योंकि वे ऐसे ऊलजलूल ट्वीट के लिये बदनाम थे। बहरहाल, इंद्र ने बारिश के देवता वरूण से इस बारे में बात की। वरुण देवता इंद्र की सहायता के लिए तैयार हो गये लेकिन बदले में स्वर्ग की कुछ टॉप क्वालिटी की अप्सराएँ माँग बैठे। इंद्र झटपट तैयार हो गये और अपनी सबसे फेवरीट अप्सरा उर्वशी तक को वरुण के हवाले कर दिया। अब गद्दी बचाने के लिए छोटी मोटी कुर्बानी देनी ही थी।

जुलाई का महीना चल रहा था। मानसून अपने पूरे उफान पर था। वरुण देवता ने सभी बादलों को आदेश दिया कि पूरे भारतवर्ष को छोड़कर केवल गुरुग्राम में बारिश करवाएँ। बस फिर क्या था, गुरुग्राम में मूसलाधार बारिश होने लगी। बृहस्पतिवार की सुबह जो बारिश शुरु हुई तो फिर पूरे दिन और पूरी रात होती ही रही। साथ में बादल भी गरज रहे थे और बिजली भी कड़क रही थी। ऐसा लग रहा था कि गुरुग्राम में महाप्रलय आने वाला है। गुरुग्राम में हाल के वर्षों में तेजी से विकास हुआ था। इसकी शुरुआत हुई थी आम आदमियों के लिए बने एक रथ की फैक्ट्री खुलने के साथ। फिर पूरे गुरुग्राम में तो फैक्ट्रियों की बाढ़ आ गई थी। एक से एक देशी और विदेशी नामी गिरामी कंपनियों ने गुरुग्राम में अपने दफ्तर खोल दिये थे। इसके साथ ही रईसों, सामंतों और व्यापारियों के बड़े-बड़े भवन भी बन गये थे। उन सबकी सेवा करने के लिये मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग के लोगों के भी मकान बहुतायत से बन चुके थे। इससे गुरुग्राम की नाली प्रणाली पर बहुत दवाब पड़ रहा था। उधर हस्तिनापुर के राजा ने गुरुग्राम से आने वाली नालियों का मार्ग बंद कर रखा था। उनका कहना था कि भारतवर्ष की राजधानी होने के नाते हस्तिनापुर में किसी अन्य सूबे की गंदगी नहीं आनी चाहिए क्योंकि इससे हस्तिनापुर की सुंदरता को खतरा था।

भारी बारिश से जो पानी इकट्ठा हुआ वो उचित निकासी न मिलने के कारण गुरुग्राम में ही अटक गया और फिर पूरा गुरुग्राम शहर जलप्लावित हो गया। हर गली, हर चौराहे और यहाँ तक की राजमार्गों पर जलजमाव हो गया। इससे यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ। अर्जुन का रथ जब मेहरौली गुरुग्राम रोड से होते हुए गुरुग्राम के पास पहुँचा तो आगे भीषण जाम लगा हुआ था। कई रथों के पहिये कमर भर पानी में डूबे हुए थे। कई अन्य रथों के पहिये गड्ढ़ों में फँस गये थे। कृष्ण ने किसी सिपाही से पूछा, “तुम्हें पता नहीं है कि इस समय राजकुमार अर्जुन का रथ यहाँ से गुजरता है? फिर यहाँ पर इतना जाम क्यों लगा हुआ है?”

सिपाही ने जवाब दिया, “क्षमा करें भगवान, आगे इतने रथ, बैलगाड़ियाँ, हाथी, ऊँट, आदी फँसे हुए हैं कि इस जाम को छुड़वाना मेरे वश का नहीं है।“

अर्जुन ने कहा, “आज मैं अपने क्लास में पहुँच पाऊँ इसकी कोई संभावना नहीं दिखती। ऐसा करते हैं किसी हरकारे को भेजकर गुरू द्रोणाचार्य को संदेश भिजवा देते हैं कि आज मैं नहीं आ पाऊँगा। वे आज की क्लास को अगले सप्ताह के लिए टाल सकते हैं।“

जब एक हरकारे से बात की गई तो उसने कहा, “क्षमा करें राजकुमार, मैं आगे जाने में असमर्थ हूँ। मेरे भी बीबी बच्चे हैं और उनको मैं अनाथ नहीं छोड़ सकता। सुबह से कई हरकारे बिना मौसम बने गड्ढ़ों में डूबकर अपनी जान गवाँ चुके हैं। जो जीवित हैं, वे जहाँ तहाँ फँसे हुए हैं और भूख प्यास से उनका बुरा हाल है।“

इतना सुनकर अर्जुन ने कहा, “हे कृष्ण, अब आप ही मेरी नैया पार लगा सकते हैं, मतलब रथ को पार पहुँचा सकते हैं। आपके पास तो एक से एक आधुनिक अस्त्र हैं। किसी उचित अस्त्र का उपयोग करके आप इस जल को सुखा दीजिए।“

कृष्ण ने मंद मुसकान के साथ जवाब दिया, “हे पार्थ, अब तुम्हारी खातिर मैं इंद्र या वरुण को नाराज तो नहीं कर सकता।“

फिर अर्जुन ने कहा, “फिर ऐसा करते हैं कि वापस हस्तिनापुर की ओर चलते हैं।“

इसपर कृष्ण ने कहा, “ऐसा करना असंभव प्रतीत होता है। आगे यू टर्न पर भी कई रथ फँसे हुए हैं। कोई भी एक इंच भी नहीं हिल पा रहा है। अब हमारे पास कोई चारा नहीं है। हमें तब तक यहीं रुकना पड़ेगा जब तक यहाँ पर का जलजमाव समाप्त न हो जाए।“

उसके बाद कृष्ण और अर्जुन का रथ वहीं रुका रहा। न वे आगे बढ़ सकते थे न ही वापस मुड़ सकते थे। तभी अर्जुन को ध्यान आया कि उनके रथ में ऐसी स्थिति में टाइम पास करने के लिए कई उपयोगी वस्तुएँ हुआ करती हैं। उन्होंने अपनी सीट के नीचे देखा तो वहाँ सोमरस से भरी सुराही, कुछ नमकीन और गिलास दिखे। बस फिर क्या था, वे दोनों वहीं बैठकर सोमरस का पान करने लगे। बीच बीच में कृष्ण अपनी बाँसुरी बजाते थे और अर्जुन उस पर एक से एक नृत्य पेश करते थे। बृहन्नला बनने के लिए उन्होंने कई शास्त्रीय नृत्य सीखे थे जो आज उनके काम आ रहे थे। जब सोमरस का असर सर चढ़ कर बोलने लगा तो अर्जुन को नींद आ गई। लगभग आधे घंटे के बाद वे हड़बड़ाकर उठे। उनका माथा पसीने से नहाया हुआ था और धड़कन तेज चल रही थी। उनकी ऐसी हालत देखकर कृष्ण ने पूछा, “हे पार्थ क्या हुआ? लगता है कोई बुरा सपना देख लिया है।“


अर्जुन ने कहा, “हे कृष्ण, मैंने वाकई एक भयानक सपना देखा। मैने देखा कि एकलव्य अपनी नाव से क्लास में पहुँच चुका है। वहाँ पर किसी और से कंपिटीशन न मिलने के कारण उसने मछली की आँख बेधने वाले लेसन में टॉप स्कोर किया है। अब उसके फुल मार्क्स के कारण गुरु द्रोणाचार्य ने द्रौपदी के स्वयंवर में उसे ही भेजने की सिफारिश की है। महाराज भी इस बात के लिए तैयार हो गये हैं। उनका कहना है कि इस तरह की महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धा में हस्तिनापुर जैसे राज्य के लिये जीतना बहुत जरूरी है। इसलिए फुल मार्क्स लाने वाले प्रतियोगी को ही द्रौपदी के स्वयंवर में भेजा जाएगा।“