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Tuesday, November 8, 2016

मेरा धन तुम्हारे धन से सफेद कैसे?

जब मैं देर शाम को घर पहुँचा तो मेरी बीबी ने झटपट गरम गरम चाय बनाई। चाय की चुस्कियों के बीच वह पूरे दिन का डेली रिपोर्ट ले रही थी। उसी समय मेरा फोन बजने लगा। मैने देखा कि वह फोन मेरे भाई के बेटे का था इसलिए मैंने फोन अपने बेटे को पकड़ा दिया। मेरा बेटा फोन पर अपने चचेरे भाई से बातें करने लगा। आम फोन कॉल के उलट मेरा बेटा जोर से चिल्लाया, “अरे बाप रे, क्या कह रहे हो? ये तो जुल्म हो गया। कैसे हुआ? कब हुआ?”

उसकी आवाज की बेचैनी से मैं भी बेचैन हो गया। किसी अनिष्ट की आशंका से मेरा दिल जोर जोर 
से धड़कने लगा। मैने अपने बेटे से पूछा, “क्या हुआ? अम्मा ठीक तो हैं?”

मेरे बेटे ने कहा, “नहीं, अम्मा बिलकुल ठीक हैं। गप्पू बता रहा था कि आज रात बारह बजे के बाद 500 और 1000 रुपए के नोट गैर कानूनी हो जाएँगे। अब मेरा क्या होगा? पटना वाली मामी ने कल ही जाते समय मुझे 1000 रुपए का नोट शगुन के तौर पर दिया था।“

मुझे जैसे 440 वोल्ट का झटका लगा। मैने अपनी बीबी से कहा, “पता है, आज ही मैने पचास हजार रुपए निकाले हैं। कल मकानमालिक को तेईस हजार रुपए किराया भी देना है। अब कल तो दे नहीं पाउँगा। मकानमालिक बड़ा दुष्ट आदमी है। लेट पेमेंट होने पर 500 रुपए पेनाल्टी लेता है। मेरे पर्स में छुट्टे के नाम पर केवल पचास रुपए बचे हैं। तुम्हारे पास कितने हैं?”

मेरी बीबी ने कहा, “होंगे दो तीन सौ रुपए। अभी तो दिवाली में सारे पैसे खर्च हो गये।“

मेरी बीबी ने तब तक टीवी ऑन कर दिया। टीवी पर प्रधानमंत्री जी अपने चिरपरिचित स्टाइल में घोषणा कर रहे थे। सारे टीवी चैनल वाले इस घोषणा को मास्टर स्ट्रोक बता रहे थे। तभी मेरी बीबी ने कहा, “ऐसा करो कि पास के किराने वाले के पास चलकर कोई छोटा मोटा सामान खरीदकर एक हजार के नोट का छुट्टा करा लो। नहीं तो दो दिन तक खर्चा कैसे चलेगा।“

मैने कहा, “हाँ सही कह रही हो। चलो कार में भी पेट्रोल भरवा लेते हैं। बता रहे हैं कि पेट्रोल पंप पर अगले बहत्तर घंटे तक ये नोट लिये जाएँगे। लेकिन पेट्रोल कितना भरवा सकते हैं? आज सुबह ही हजार का भरवाया था। अब उसमे ज्यादा से ज्यादा दो हजार का और भरवा सकते हैं।“

हमलोग आनन फानन में लिफ्ट से नीचे उतरे। मैने कार निकाली और पहले किराने वाले के पास रुका। किराने वाले के पास जबरदस्त भीड़ लगी थी। बेचारा किराना वाला हाथ जोड़ कर सबसे माफी माँग रहा था। वह कह रहा था, “भाई साहब मेरे पास भी केवल पाँच सौ या हजार के ही नोट हैं। मैं कहाँ से लाऊँगा इतने सारे सौ रुपए के नोट।“

उसके बाद मैं पास के ही पेट्रोल पंप पर गया। पेट्रोल पंप पर लंबी लाइन लगी थी। भीड़ का जायजा लेने के लिये मैं गाड़ी से उतर गया। पेट्रोल पंप का स्टाफ कह रहा था, “किसी भी आदमी को छुट्टा नहीं मिलेगा। पेट्रोल सबको मिलेगा लेकिन कम से कम 500 रुपए या उसके मल्टीपल में।“

पेट्रोल पंप पर लगभग एक घंटा इंतजार करने के बाद मैने दो हजार रुपए का पेट्रोल भरवा लिया। उसके बाद जब मैं वापस आया तो कार पार्किंग से निकलते ही कई पड़ोसी मिल गये। ज्यादातर लोग इस फैसले को मास्टर स्ट्रोक ही बतला रहे थे। मैं भी चुपचाप उनकी बातों को सुन रहा था। तभी शर्मा जी ने कहा, “बता रहे हैं कि अगले 72 घंटों तक सरकारी अस्पतालों, सरकारी मिल्क बूथ और शमशान में ये नोट लिये जाएँगे। हाँ रेल और हवाई जहाज के टिकट के लिए भी ये नोट अभी लिये जाएँगे।“  

अब मुझे गुस्सा आ रहा था। मैने कहा, “भैया अब जो बीमार नहीं है वह अस्पताल क्या करने जायेगा। ज्यादातर बीमार लोग प्राइवेट अस्पतालों में जाना पसंद करते हैं। अब आप फोर्टिस हॉस्पिटल जाएँगे या सदर अस्पताल। मिल्क बूथ से आप कितना दूध खरीदे लेंगे एक बारे में? पाँच सौ लीटर? बिना जरूरत के कोई रेल यात्रा सिर्फ इसलिए नहीं करेगा कि उसे अपने 500 या हजार के नोट का सदुपयोग करना है। और रेल में खाना और पानी कैसे खरीदेंगे? टैक्सी या ऑटो वाले का पेमेंट कैसे करेंगे? भगवान न करे कि किसी को शमशान जाने की जरूरत पड़ जाये। शमशान जाकर कोई भला अपने लिये एडवांस बुकिंग करवायेगा?”

मेरी बात सुनकर ज्यादातर लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया। वे शायद मुझे मूर्ख समझ रहे थे या फिर मुझे मौन स्वीकृति दे रहे थे। उसके बाद मैं अपने फ्लैट में आ गया। तभी मेरे फुफेरे भाई का फोन आ गया। उसने बताया, “पता है मेरी अम्माँ कितनी चालाक निकली? उन्होंने पिछले पाँच सालों में सत्रह हजार रुपए जमा करके रखे थे। उनके पास 500 और 1000 के नोट भरे पड़े हैं। आज निकाल कर दिया। मैंने और तुम्हारी भाभी ने उन्हें खूब बुरा भला कहा।“

दरअसल मेरे फूफा को गुजरे हुए कोई दस साल बीत चुके हैं। उनके मरने के बाद उनके पेंशन की आधी राशि बुआ को मिलती है। लेकिन मेरा फुफेरा भाई सारे पैसे हड़प लेता है और उन्हें 500 या 1000 रुपये कभी कभार पकड़ा देता है। मैं तो यह सोचकर चिंता में पड़ गया कि मेरी बुआ की मानसिक स्थिति इस समय कैसी होगी।

अगले दिन सुबह सुबह जब कामवाली आई तो वह बहुत चिंता में लग रही थी। वह मेरी बीबी से कह रही थी, “दीदी, अभी कल परसों ही सब लोगों ने मुझे पगार दिये थे। सारे नोट 500 या 1000 के हैं। मेरे पास बारह हजार रुपए हैं। मैने अपनी बेटी की शादी के लिये पचास हजार रुपए जमा करके रखे हैं। अब उनका मैं क्या करूँगी? मेरा तो कोई खाता भी नहीं है।“

मुझे मेरे पैसों की चिंता अधिक नहीं थी। हाँ एक चिंता हो रही थी कि पता नहीं अपने नोटों को बदलवाने के लिए बैंक में कितने घंटे लाइन में खड़ा होना पड़ेगा और कितने दिन रोज जाकर लाइन लगना पड़ेगा। अभी अभी त्योहारों की छुट्टियाँ समाप्त हुई हैं इसलिए कंपनी से छुट्टी लेना भी मुश्किल होगा। मुझे अपनी काम वाली के लिये चिंता हो रही थी। वह बेचारी यदि बैंक में लाइन लगने के लिए छुट्टी लेगी तो ज्यादातर लोग उसकी पगार काट लेंगे। मेरा धन अब उसके धन से अधिक सफेद लगने लगा था। मुझे सुपर रिन की सफेदी की चमकारयाद आने लगी।

मैं यह सोच ही रहा था कि धनबाद वाले मौसा जी का फोन आया। मौसा जी ने बहुत दुख भरा समाचार सुनाया। मौसा जी ने कहा, “तुम्हें बताया था न कि अगले महीने गुड्डो की शादी की डेट रखी थी। अभी एक सप्ताह पहले लड़के वालों को सात लाख रुपए बतौर एडवांस दिया था। आज ही उनका फोन आया था। कह रहे थे कि उन पैसों को वापस ले लूँ और बदले में 100 के नोट की व्यवस्था करूँ। जब मैने अपनी असमर्थता जताई तो कहने लगे कि मैं कहीं और रिश्ते की बात करने के लिए स्वतंत्र हूँ। बड़ी मुश्किल से तो गुड्डो की शादी तय की थी। अब तो मेरी आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया है। समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूँ।“


सन 2116 में छठ पूजा

गप्पू के दादाजी आज बहुत जोश में लग रहे थे। उन्हें छठ पूजा के लिए बाजार जो जाना था। गप्पू और उसकी मम्मी भी बहुत खुश थीं क्योंकि छठ पूजा के अवसर पर भारत में हजारों ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल से हर चीज पर जबरदस्त छूट जो मिल रही थी। गप्पू की मम्मी को लेटेस्ट डिजाइन की ड्रेसेज खरीदनी थी। हालांकि अभी अभी धनतेरस के अवसर पर उन्होंने ढ़ेर सारे गहने खरीदे थे लेकिन सैंकड़ों ऑनलाइन टीवी चैनल पर चल रहे विज्ञापनों और छठ स्पेशल प्रोग्राम का उनपर इतना गहरा असर हुआ था कि वे ऑनलाइन शॉपिंग का मोह छोड़ नहीं पा रही थीं। उधर गप्पू को एनवायरनमेंट फ्रेंडली पटाखे खरीदने थे। ये नये जमाने के पटाखे थे जिनमें वह सब कुछ होता था जो पुराने जमाने के पटाखों में होता था लेकिन इन नये जमाने के पटाखों से प्रदूषण नहीं होता था। इन पटाखों का आविष्कार पुराने जमाने में ही हो चुका था। हिंदू धर्म के नये रखवालों का कहना था कि इन पटाखों की खोज आर्यभट्ट जैसे महान वैज्ञानिक ने की थी जिनका जन्म हजारों साल पहले हुआ था। लेकिन मुगलों और अंग्रेजों के प्रभाव में भारत की यह विद्या बहुत वर्षों तक छुपी हुई रही। वह तो भला हो उस राष्ट्रवादी नेता का जिसने इक्कीसवीं सदी में भारत के खोये हुए ज्ञान को जनमानस के पटल पर वापस लाकर इतिहास रच दिया। लेकिन जबतक इन पटाखों का उत्पादन भारत में शुरु हुआ तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी। भारत में प्रदूषण इतना बढ़ चुका था कि राजधानी दिल्ली समेत भारत के हर शहर और हर गाँव में धुंध के बादल हमेशा के लिए छाये रहते थे।

दरअसल ये धुंध के बादल नहीं थे बल्कि धुँए और पीएम 2.5 नामक पदार्थों की वजह से धुंध जैसे दिखते थे। चूँकि यह धुंध जैसी चीज लगभग सौ वर्षों से छाई हुई थी इसलिए भारत के अलावा दुनिया के सभी देशों में सूरज या चांद कभी नजर ही नहीं आता था। बहरहाल, छठ पूजा की खरीददारी के बाद घर में पकवानों के बनने का सिलसिला शुरु हुआ। एक बार मम्मी ने सलाह दी कि हल्दीराम से रेडीमेड पकवान मंगवा लिये जाएँ। लेकिन दादी ठहरीं पक्की परंपरावादी सो उन्होंने अपना वीटो लगा दिया और पकवान घर में ही बनने लगे। इससे मम्मी थोड़ी निराश हुईं क्योंकि हल्दीराम की तरफ से एक से एक ऑफर दिये जा रहे थे। छठ पूजा के पहले दिन शाम में डूबते सूर्य को अर्घ्य देना था। पूरी हाउसिंग सोसाइटी के लोग स्विमिंग पूल के पास इकट्ठे हुए। अब यमुना और हिंडन नदी इतनी सूख चुकी थी कि उसमें नोएडा और गाजियाबाद डेवलपमेंट अथीरिटी ने कार रेस के लिये बकायदा रेसिंग ट्रैक बनवा दी थी। सूखी नदी के दोनों किनारों पर स्टेडियम की तर्ज पर लोगों के बैठने के लिए सीटें भी बन चुकी थीं। इसलिए अब सभी लोग या तो स्विमिंग पूल में छठ करते थे या फिर प्लास्टिक के टब में या फिर सीमेंट की टंकी में। स्विमिंग पूल के चारों ओर रंगबिरंगी लाइट लगी थी। सोसाइटी में रहने वाले सारे बिहारी परिवार स्विमिंग पूल के चारों ओर पूजा के साजो सामान लेकर जमा हो चुके थे। जो लोग बिहारी नहीं थे वे दर्शकों के लिए लगी कुर्सियों पर विराजमान थे। एक स्थानीय नेताजी छठ पूजा की औपचारिक शुरुआत करने के लिए फीता भी काटने आये थे। अब उनके पास और कोई चारा नहीं था क्योंकि इस सोसाइटी में बिहारियों का वोट बहुत ज्यादा था। प्रधानमंत्री ने भी उस सोसाइटी तथा देश के कोने कोने में रहने वाले बिहारियों को ट्वीट करके छठ की शुभकामनाएँ दीं।

उसके बाद छठ पूजा का मुख्य भाग यानि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की बारी आई। लेकिन घने धुंध के कारण सूर्य को देख पाना संभव नहीं था। लेकिन इससे किसी के माथे पर कोई शिकन नहीं आई क्योंकि वहाँ मौजूद किसी ने भी आज तक सूर्य को देखा ही नहीं था। लोग तो बस अंधेरे उजाले के अंदाजे से यह गेस कर लेते थे कि कब सूर्योदय हुआ और कब सूर्यास्त हुआ। गप्पू की दादी ने भी वही किया। गप्पू उनको सहारा देकर स्विमिंग पूल में ले गया। दादी काफी देर तक पश्चिम दिशा की ओर मुँह करके काल्पनिक सूर्य को प्रणाम करती रहीं। इस बीच लाउडस्पीकर पर शारदा सिन्हा के छठ के गाने भी बज रहे थे। जब दादी को लगा कि अंधेरा बढ़ता जा रहा है तो उन्होंने बाँस के सूपों में रखे पकवानों और फलों से डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया। पश्चिम में डूबते सूर्य की कोई वैसी लाली नहीं दिखाई पड़ रही थी जैसी कि पुराने जमाने की पेंटिंग में दिखाई जाती थी। आकाश में यदि कुछ दिख रहा था तो स्याह रंग के धुंध के बादल जो और भी गहरे रंग के होते जा रहे थे और आने वाली रात की ओर इशारा कर रहे थे।

अगले दिन उसी तरह से सुबह सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने की रस्म निभाई गई। उसके बाद सोसाइटी के लोगों में छठ का प्रसाद बाँटने के बाद गप्पू अपने परिवार के साथ अपने फ्लैट में आ गया। जब वे लोग प्रसाद खा रहे थे तो उसके दादा जी ने कहा, “जानते हो बेटा गप्पू, मेरे पिताजी के जमाने में लोग सही में उगते और डूबते सूर्य को देख पाते थे? मेरी दादी ने एक बार बताया था कि उन्होंने असली सूर्य को अर्घ्य दिया था।“
उनकी बात सुनकर गप्पू जोर से हँसा और बोला, “क्यों डींगें मार रहे हैं दादाजी। मैने अपनी साइंस की किताब में पढ़ा है कि इस यूनिवर्स में सूर्य और चांद जैसे खरबों सेलेस्टियल बॉडी हैं लेकिन उन्हें केवल उन शक्तिशाली टेलिस्कोप से ही देखा जा सकता है जो पृथ्वी के वायुमंडल से लाखों किमी दूर हैं। मैने नासा की वेबसाइट पर उनकी फोटो जरूर देखी है। लेकिन यह साइंटिफिकली प्रूव हो चुका है कि सूर्य को धरती पर से देखने वाला इंसान अब जिंदा नहीं बचा है। मेरी टीचर तो कहती हैं कि किसी ने अगर सूर्य को वाकई देख लिया तो उसकी आँखों की रोशनी सदा के लिए चली जायेगी।“

दादी भी उन दोनों की बातें सुन रही थीं। उन्होंने कहा, “अरे नहीं बेटा, मैने तो करवा चौथ के अवसर पर चाँद को भी देखा था। यह तब की बात है जब मैं छोटी बच्ची थी। मेरी माँ ने करवा चौथ का व्रत रखा था। चाँद बहुत ही सुंदर दिखता था, बिल्कुल सफेद|”

गप्पू फिर से हँसा और बोला, “क्या बात करती हो दादी। चाँद की फोटो भी मैने देखी है। वह तो बिल्कुल धूसर रंग का बेजान उपग्रह लगता है। सफेद कैसे दिखता था?”


गप्पू ने आगे कहा, “आप लोग तो मेरी साइंस की बुक और टीचर दोनों को झुठला रहे हैं। दादी, लगता है कि दो दिनों के उपवास के कारण आपकी मति मारी गई है।“