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Tuesday, August 2, 2016

देहात का डॉक्टर

फाइजर में मेरी पहली पोस्टिंग कटिहार में हुई थी। उसके पहले मैं कैडिला के लिए राँची में काम करता था। राँची एक कॉस्मोपॉलिटन सिटी है। वहाँ के डॉक्टर बिलकुल अंग्रेजी बाबू की तरह कपड़े पहनते थे। कुछ डॉक्टर तो बकायदा सूट और टाई में नजर आते थे। ज्यादातर डॉक्टर अंग्रेजी भी अच्छी बोल लेते थे। कटिहार एक ऐसा शहर है जो समय के प्रवाह से अनछुआ लगता है। वहाँ के डॉक्टर थोड़े देसी टाइप के हैं। कटिहार के आस पास के गाँवों के ज्यादातर डॉक्टर सेमी लिटरेट होते हैं, यानि आरएमपी। मेरे लिये ऐसे डॉक्टरों से मिलना एक नया अनुभव था।

कटिहार से लगभग तीस किलोमीटर की दूरी पर एक गाँव है; काढ़ागोला। मैं वहाँ पहली बार काम करने गया। लिस्ट के मुताबिक मैं एक डॉक्टर की तलाश करते करते उसके क्लिनिक पर पहुँचा। वह क्लिनिक जैसा तो लग ही नहीं रहा था बल्कि किसी पुराने मकान की तरह था जिसपर फूस की छप्पड़ पड़ी हुई थी। बाहर बरामदे पर एक महिला चटाई पर बैठी हुई चावल बीन रही थी और पास में उसके चार बच्चे खेल रहे थे। बच्चों की उम्र चार से लेकर दस साल तक की रही होगी।

मुझे लगा कि मैं गलत जगह पहुँच गया था इसलिए मैने उस महिला से पूछा, “डॉक्टर साहब यहीं मिलेंगे या उनका क्लिनिक कहीं और है?”

उस महिला ने जल्दी से आँचल अपने सिर पर डाल लिया और थोड़ा सकुचाते हुए बोली, “डागदर साहब यहीं मिलेंगे। ऊ थोड़ा बजार गये हैं, सब्जी तरकारी लाने। आप बईठ जाइए, ऊ आते ही होंगे।“

उसके बाद उस महिला के इशारे पर उसके सबसे बड़े लड़के ने मेरे लिये एक कुर्सी निकाली और मैं वहीं बैठ गया। लगभग दस मिनट के इंतजार के बाद मैंने देखा कि चारों बच्चे एक सुर में चिल्लाने लगे, “पप्पा आ गये! पप्पा आ गये!”

मैंने देखा की दूर पगडंडी से एक राजदूत मोटरसाइकिल उस ओर चली आ रही थी। उस मोटरसाइकिल पर एक आदमी बैठा था जिसने धोती कुर्ता पहन रखा था और सिर पर गमछा बाँध रखा था। जब मोटरसाइकिल पास आई तो मैने देखा कि उसकी हैंडल पर बड़े भारी झोले लटके हुए थे। पीछे वाली कैरियर पर एक विशाल कद्दू बँधा हुआ था। जब उस आदमी ने मोटरसाइकिल को खड़ा किया तो बच्चे सामान उतारने में उसकी मदद करने लगे। मैने अनुमान लगाया कि यही वो डॉक्टर होगा जिससे मिलने मैं वहाँ पहुँचा था। सामान उतरवाने के बाद उस आदमी ने मुझे नमस्कार किया और थोड़ा इंतजार करने के लिए कहा।


उसके बाद उसकी बेटी एक पीतल के बड़े से लोटे में पानी लेकर आई। वह आदमी वहीं बरामदे के किनारे बैठ गया और अपना हाथ मुँह धोने लगा। उसने बड़े ही वीभत्स तरीके से कुल्ला किया और अपना गला साफ करने के लिए खखार भी किया। उसकी उस हरकत को देखकर मुझे घिन आ रही थी। 

मैं सोच रहा था, “बड़ी अजीब जगह है। जाने कैसे कैसे लोग डॉक्टर बनने की हिम्मत कर बैठते हैं। अब नौकरी करनी है तो मुझे इनके जैसे नमूनों से भी अदब से मिलना पड़ेगा।“ 

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