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Tuesday, November 29, 2016

पैसे कहाँ से आएँगे?

राहुल गहरी चिंता में डूबा हुआ था। राहुल की बीवी ने सुबह की चाय रखते हुए कहा था, “पिछले सप्ताह तुमने जो दो हजार रुपए निकाले थे वो अब खत्म होने को हैं। इस बार ज्यादा निकालना पड़ेगा। कामवाली को पगार देनी है। फूलवाले, अखबार वाले और गाड़ी पोंछने वाले को भी पैसे देने हैं।“

राहुल ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “अरे हाँ, अगले सप्ताह तो किराया भी देना होगा। पंद्रह हजार तो किराये में ही निकल जाएँगे। मकानमालिक से बात की थी, कह रहा था कि चेक नहीं लेगा। बाकी लोगों को देने के बाद हमारे पास तो कुछ बचेगा ही नहीं।“

राहुल की बीवी ने कहा, “एटीएम से तो दो हजार ही निकलेंगे, उसकी भी गारंटी नहीं है। ज्यादातर एटीएम में कैश रहता ही नहीं है।“

राहुल ने कहा, “हाँ पिछली बार चार घंटे लाइन में लगा था तब जाकर कहीं पैसे निकाल पाया था। आज जाकर देखता हूँ कि ओरियेंटल बैंक के किसी लोकल ब्रांच से चेक से निकाल पाता हूँ या नहीं।“

राहुल की बीबी ने कहा, “तुम जल्दी से तैयार हो जाओ। तब तक मैं नाश्ता बना देती हूँ।“

थोड़ी देर बाद राहुल तैयार होकर नाश्ता करने लगा। इस बीच उसकी बीवी ने उसके बैग में चेक बुक, पास बुक और पहचान पत्र की फोटो कॉपी रख दी। राहुल नीचे उतरा, अपनी बाइक स्टार्ट की और चल पड़ा किसी ऐसे ब्रांच की तलाश में जहाँ उसे पैसे मिल सकते थे। वह तीन ब्रांच में गया लेकिन सब जगह एक ही जवाब मिला, “कैश नहीं है।“

चौथे ब्रांच के पास पहुँचकर उसने देखा कि बाहर लंबी लाइन लगी थी। उस लंबी लाइन को देखकर राहुल को कुछ उम्मीद बंधी। बाहर ही बैंक का एक स्टाफ भी खड़ा था जो लोगों के तरह तरह के सवालों के जवाब दे रहा था। राहुल के सवाल पर उसने कहा, “आय एम सॉरी। आपका खाता हमारे ब्रांच में नहीं है इसलिये हम आपको पैसे नहीं दे सकते हैं।“

राहुल ने कहा, “फिर कंप्यूटराइजेशन का क्या मतलब हुआ? माना कि मेरा खाता यहाँ नहीं है, लेकिन मैं तो हिंदुस्तान के किसी भी ब्रांच से पैसे निकाल सकता हूँ। मेरा खाता आपके ही बैंक में जो है।“

बैंक के स्टाफ ने बड़े रूखेपन से कहा, “सर, जब हमारे पास कैश ही कम आ रहा है तो इसमें हम क्या कर सकते हैं। सबसे पहले हम उन लोगों को पैसे देंगे जिनके खाते हमारे ब्रांच में है।“

राहुल निराश होकर अपने घर वापस आ गया। दरवाजा खोलते ही उसकी बीवी ने पूछा, “क्या हुआ, पैसे मिले?”

राहुल धम्म से सोफे पर बैठ गया और बोला, “अरे नहीं, बैंक वाले बता रहे हैं कि मेरा खाता जिस ब्रांच में है वहीं जाना होगा।“

राहुल की बीवी ने कहा, “लेकिन हमारा खाता तो गुड़गाँव की ब्रांच में है। अब क्या करोगे?”

राहुल ने कहा, “यही तो मुसीबत है। यहाँ से मेरा ब्रांच लगभग पचास किमी दूर है। लेकिन वह एक छोटा ब्रांच है। पता चला कि वहाँ पहुँचे तो वहाँ भी कैश न मिले। ऐसा करता हूँ कि कल कनाट प्लेस चला जाता हूँ। कनाट प्लेस के ई ब्लॉक में ओरियेंटल बैंक का एक बड़ा सा ब्रांच है। उम्मीद है कि कनाट प्लेस की ब्रांच में पैसे मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी।“

राहुल की बीवी ने कहा, “अब जाने से क्या फायदा। दो बजने जा रहे हैं।“

राहुल ने कहा, “सोच रहा हूँ कि कल सुबह आठ बजे ही कनाट प्लेस के लिये चल दूँगा। यहाँ से बाइक से वैशाली मेट्रो स्टेशन जाउँगा। फिर वहाँ से मेट्रो ट्रेन से राजीव चौक चला जाउँगा। फिर देखते हैं क्या होता है।“

अगले दिन राहुल सुबह आठ बजे के आस पास रुपये निकालने के मिशन पर निकल पड़ा। उसकी बीवी ने एक टिफिन भी दे दिया ताकि रास्ते में कुछ खरीदकर पैसे बरबाद करने की नौबत न आये। मेट्रो के प्रीपेड कार्ड में बैलेंस था ही इसलिए मेट्रो के किराये की चिंता नहीं थी। राहुल ने पर्स में तीन सौ रुपये देखकर एक मशहूर शेर कहा, “आज इतनी भी मयस्सर नहीं मयखाने में, जितनी छोड़ दिया करते थे पैमाने में।“

शेर सुनकर उसकी बीवी ने कहा, “तुम भी अजीब इंसान हो। घर में खाने को फूटी कौड़ी नहीं है और तुम्हें शेर की सूझी है।“

राहुल को अपने घर से वैशाली मेट्रो स्टेशन तक पहुँचने में एक घंटा लग गया। उसके बाद मेट्रो से लगभग पच्चीस मिनट की यात्रा के बाद वह राजीव चौक स्टेशन पहुँच गया। राजीव चौक से बाहर गेट नंबर सात से निकलते ही सामने ओरियेंटल बैंक का बोर्ड नजर आया। वहाँ पर एक भी आदमी नहीं देखकर राहुल के मन में खटका हो रहा था। गेट पर एक दरबान खड़ा था। दरबान ने अपनी दाईं बाँह फैलाकर राहुल का रास्ता रोका और पूछा, “हाँ भई, कहाँ?”

राहुल ने कहा, “भैया, पैसे निकालने हैं, चेक से।“

दरबान ने कहा, ‘आपका खाता किस ब्रांच में है?”

राहुल ने कहा, “मेरा खाता गुड़गाँव के एक ब्रांच में है।“

इसपर दरबान ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा, “तो अपने ब्रांच में जाओ। यहाँ कहाँ चले आये मुँह उठाये हुए। हमने दूसरे ब्रांच के खाताधारियों को पैसे देना बंद कर दिया है।“

राहुल ने कहा, “यहाँ पर ओरियेंटल बैंक का एक बड़ा ब्रांच भी तो है। आप बता सकते हैं कि वह किस ब्लॉक में है?”

दरबान ने कहा, “हाँ, ई ब्लॉक में है। लेकिन वहाँ जाकर भी कोई फायदा नहीं होगा।“

राहुल ने सोचा कि कोशिश करने में क्या हर्ज है। वह तेजी से चलता हुआ ई ब्लॉक की तरफ बढ़ा। लगभग दो सौ मीटर चलने के बाद उसे ई ब्लॉक के पास ओरियेंटल बैंक का ब्रांच दिखा। बाहर एक लंबी लाइन को देखकर उसे थोड़ी तसल्ली हुई। पास जाकर देखा तो वह लाइन एटीएम के बाहर लगी थी। बैंक के अंदर जाने के लिए कोई लाइन नहीं लगी थी। बैंक के गेट पर खड़े दरबान से पूछने पर पता चला कि वहाँ भी कैश नहीं था। जब राहुल ने दरबान से अपनी समस्या बताई तो उसने राहुल को अंदर जाने दिया। अंदर एक बड़ा सा वेटिंग एरिया था लेकिन वहाँ पर एक भी आदमी नहीं था। इधर उधर नजर दौड़ाने के बाद राहुल को एक काउंट के बाहर एक छोटी सी लाइन मिली जिसमें लगभग बीस लोग खड़े थे। उन सबके हाथों में चेक दिख रहा था। राहुल की उम्मीद कुछ कुछ बढ़ रही थी। वह उस लाइन में जाकर सबसे पीछे खड़ा हो गया। थोड़ी देर में लाइन में सबसे आगे खड़ा आदमी वापस लौट रहा था। उसके चेहरे पर के भाव देखकर कोई भी कह सकता था कि उसे पैसे नहीं मिले थे। राहुल ने उस आदमी से पूछा, “भाई साहब, पैसे मिल रहे हैं?”

उस आदमी ने कहा, “नहीं, आज पैसे नहीं मिल रहे हैं। ये लोग चेक लेकर टोकन दे रहे हैं। पैसे कल मिलेंगे।“

राहुल लाइन से निकलकर आगे पहुँच गया ताकि बैंक स्टाफ से जानकारी ले सके। उसने बैंक स्टाफ से कहा, “सर, मेरा खाता इस ब्रांच में नहीं है। मैं इस ब्रांच से पैसे निकाल सकता हूँ?”

बैंक के स्टाफ का मुँह लटका हुआ था। उसने भाव शून्य आँखों से कहा, “हाँ बिलकुल निकाल सकते हैं। जिनका खाता इस ब्रांच में है उन्हें हम दस हजार दे रहे हैं। जिनका खाता किसी दूसरे ब्रांच में है उन्हें हम केवल पाँच हजार दे रहे हैं। लेकिन आज हमारे पास कैश नहीं है। आज हम केवल टोकन दे रहे हैं। आपका खाता दूसरे ब्रांच में है इसलिए आपको पैसे परसों मिल पाएँगे।“

राहुल ने कहा, “सर, फिर कंप्यूटराइज्ड बैंकिंग का क्या मतलब हुआ? सरकार ने घोषणा की है कि अब कोई भी अपने खाते से चौबीस हजार तक निकाल सकता है।“

बैंक के स्टाफ ने हाथ जोड़कर कहा, “सर, हमारे पास कैश इतना कम आ रहा है कि हम अपने ग्राहकों को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं। हमारी कोशिश है कि अधिक से अधिक लोगों को थोड़े ही सही पैसे दे सकें। रिजर्व बैंक ठीक से कैश सप्लाई ही नहीं कर पा रहा है।“

राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया और वहाँ से वापस हो लिया। बैंक से निकलने के बाद राहुल बड़ा ही विक्षिप्त लग रहा था। बाहर ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी। कुछ जवान लड़के लड़की वहाँ चहलकदमी कर रहे थे, जो कि हमेशा ही करते रहते हैं। ज्यादातर फेरीवाले भी नदारद थे। राहुल एक बेंच पर बैठ गया और जेब से पान मसाला निकालकर मुँह में भर लिया। थोड़ी देर तक चबाने के बाद उसने पास रखे डस्टबिन में पीक की एक तेज धार छोड़ी। फिर उसने अपना मोबाइल फोन निकाला और अपनी बीवी का नंबर डायल किया, “यहाँ पर भी बुरा हाल है। यहाँ दो ब्रांच हैं लेकिन दोनों में से किसी के पास कैश नहीं है। सोचो, जब कनाट प्लेस का ये हाल है तो गुड़गाँव के छोटे ब्रांच में क्या होगा।“
उसकी बीवी ने कहा, “अब क्या करोगे?”

राहुल ने कहा, “अब गुड़गाँव तो कल ही जा पाउंगा। अभी जाने से कोई फायदा नहीं होगा। यहाँ से गुड़गाँव तो मेट्रो से आसानी से पहुँच जाउँगा। लेकिन एम जी रोड मेट्रो स्टेशन से मेरे बैंक का ब्रांच चौदह पंद्रह किलोमीटर दूर है। वहाँ से ऑटो से जाने में कम से कम एक घंटा लगेगा। वहाँ पहुँचते पहुँचते दो बज जाएँगे। पहुँचने पर पता चला कि वहाँ भी कैश खत्म हो चुका है। अब कल सुबह सात बजे बाइक से गुड़गाँव के लिये निकल लूँगा।“


थोड़ी देर बाद राहुल बोझिल कदमों से चलता हुआ गेट नम्बर दो से राजीव चौक मेट्रो स्टेशन के लिये जमीन के नीचे उतरने लगा। 

राजीव चौक पर सिक्योरिटी चेक के बाद राहुल ने अपना प्रीपेड कार्ड सेंसर के पास लगाया तो टर्न्सटाइल खुल गया और राहुल अंदर चला गया। उसने दाहिनी ओर देखा कि दो एटीएम के पास लंबी लाइनें लगी थीं। वह भीतर ही भीतर आत्मग्लानि से त्रस्त था क्योंकि उसके पास जो एटीएम था वह दो महीने पहले ही ब्लॉक हो चुका था। एटीएम को देखकर राहुल मन मसोसकर रह गया और तेजी से ट्रेन पकड़ने आगे बढ़ गया।

अगले दिन राहुल सुबह सुबह ही गुड़गाँव के लिये चल पड़ा। लगभग दो घंटे की थका देने वाली ड्राइव के बाद आखिरकार वह अपने बैंक के पास पहुँच गया। वहाँ पर ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। पास जाकर उसने देखा कि नो कैशनोटिस चिपका हुआ था। राहुल मन मसोसकर रह गया। फिर भी उसने सोचा कि एटीएम और चेक बुक के लिए आवेदन दे दे। गार्ड से बड़ी मिन्नत करने के बाद राहुल को बैंक के अंदर प्रवेश करने में सफलता मिली। उसने एटीएम और चेकबुक के लिए आवेदन दे दिया। उसके बाद थोड़ा सुस्ताने के लिए वह वहीं एक कुर्सी पर बैठ गया। लगभग पंद्रह मिनट के बाद बैंक के एक मैनेजर ने एक घोषणा की, “अभी अभी हमारे पास किसी बिजनेसमैन का एक लाख का डिपॉजिट आया है। इसलिए मैं केवल बीस लोगों को पेमेंट कर सकता हूँ वो भी पाँच हजार प्रति व्यक्ति को। आप जल्दी से लाइन में लग जाएँ।“


लोग आनन फानन में लाइन में लग गये। राहुल उन किस्मत वालों में से था जिन्हें टोकन मिल पाया। उसके बाद लगभग एक डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद राहुल को पाँच हजार रुपये मिल ही गये। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि खुश हो या दुखी हो। उसने अपनी बीवी को फोन करके शुभ समाचार दिया और फिर वापस अपने घर की ओर चल पड़ा। 


Harsh Reality of Notebandi

All the TV channels are flashing news that RBI has increased the limit of withdrawal to Rs. 24,000. Another update says that for deposit after 29th November, no such limit exists and one can withdraw any amount of money from account. This means that people who get salaries in their accounts shall be able to withdraw their whole salary at one go. But reality is quite different.

I have recently shifted to Ghaziabad. I have account at a branch of Oriental Bank of Commerce and the branch is in Gurgaon. The location of the branch is about 60 km from my current residence. This appeared to be normal because of the facility of computerised banking. But things have changed for worse after demonetization.

I tried to withdraw money from three branches of OBC at Gahziabad but all of them refused. They said that they were allowing only those people who have accounts at their branches. I decided to go to Connaught Place because of many reasons. The branch at CP is a huge one. This is in the heart of Delhi; the capital of India. So, I had all the hopes of getting money from that branch.

There are two branches; one is in A block and another is in E block of CP. The branch in A block is a smaller one. The security guard did not allow me to enter the bank premises. He said that I should go to the branch where my account is. After that, I went to the E block branch. After some cajoling, the guard allowed me to enter the bank. There was a long queue in front of one counter. The bank staff was taking cheques from people. He told that he would be happy to give me the money. But there was a condition. He said that people with their account at that branch shall be given Rs. 10000 and people with accounts at any other branch of OBC shall be given only Rs. 5000. He further told that he shall be issuing tokens to everyone but the money shall be given after two days. He was diligently jotting down the names and cheque numbers in a register while issuing tokens.

This is ridiculous at its best. This is the reality of the capital city of India. This is making a mockery of computerisation in all the banks. This is making a mockery of personal freedom and right to live with dignity. Many people will say that I should go cashless. I am already cashless because I am not left with any cash. I can do monthly shopping for groceries by card, I have paid the maintenance charge by cheque, shall be paying school fees by cheque. But my landlord is not willing to accept payment through cheque. My maid does not want a cheque or online payment because she does not get spare time to stand in queue. The flower vendor and newspaper vendor have also refused to accept payment by cheque or mobile phones because they also need cash for petty expenses.

Most of the people who were returning empty handed from the bank were feeling disgusted, depressed and were angry. But nobody was raising his voice. This can happen to anybody. When you are down because of low level of resources, you don't get the energy to fight against anything. To illustrate this, I would like to recall an interesting story from Panchatantra.

There was a hermit who was living in a small hut. He used to get many gifts, food and gold coins from his clients. After eating the food, he used to keep the remaining food in a pot and the pot was suspended from a rope which was slung very high; almost near the roof. Every night, a rat had developed a strange habit of jumping to the pot to steal the food. The hermit was puzzled because it was quite abnormal for a tiny rat to jump so high. One day, a friend of hermit had stopped for a night stay with him. When the hermit narrated the story of the rat to his friend, the friend was able to solve the puzzle.

Both of them dug the rat hole. To their amazement, they found a huge lump of gold under the hole. The friend of hermit said that the rat was getting all the confidence and energy to jump so high because of the huge amount of wealth he was sitting on. Once the lump of gold was removed from the site, the rat was no longer able to jump so high and peace returned for the hermit.

The common people of India are suffering the plight of the rat. Whatever small trinkets were there with the common people have been sucked up by the government machinery. The poor guys have no energy or confidence left to raise their voice. They are just simmering with the discontent of living a life of abject dejection and depression. It is difficult to predict how long all of this is going to last.

If the situation is so bad in the capital of the country, you can imagine the situation in the hinterland. 

Saturday, November 26, 2016

Migrant Go Back

The moment Bujhaavan pulled up the shutter of his shop, a strong whiff of rotten vegetables shattered the olfactory receptors in their noses. Bujhaavan’s wife; Lalita covered her nose with her dupatta but could not stop a strong bout of coughing. When she was through with a round of coughing, she just wailed in anguish, “Oh my God! Look at this! Our shop is devastated. Almost all the vegetables have rotten completely.”

Lalita started to wail uncontrollably. Bujhaavan was trying to console her. Their son and daughter were looking at them with a sense of bewilderment. Bujhaavan could muster up some courage to say, “Don’t worry. Have faith on me. I will once again bring our life back on rail.”

After opening his shop, Bujhaavan sat on the steps. He was sitting on his haunches; with his head resting on his palms. His wife was filling plastic crates with rotten vegetables; in order to clean the shop. Her son (who is about 12 years old) was helping her. Her five year old daughter was playing with an orange as if it was a ball. After looking at Bujhavans’s gesture and posture, anybody could easily tell that he was not enjoying the sunshine on a winter morning rather he was feeling highly dejected.

Bujhaavan was spotted by Rahul. Rahul was a regular customer for Bujhaavan. Rahul works as software developer in an MNC. He is quite friendly with most of the people and does not mind talking to people even from the lower strata of socio-economic ladder. Looking at Bujhaavan, Rahul said, “Hey, Bujhaavan! What happened? Your shop was not being opened since so many days. Is everything alright? Anybody is sick?”

Hearing that, Bujhaavan raised his hands over his head to offer a silent Namaste and said, “No Sahib, nobody was sick. I was just getting negligible customers on a daily basis so there was no other way out. It was better to keep the shop shut.”

Rahul sat beside Bujhaavan and said, “Don’t be a pessimist. I know that sales have suffered a bit. But it is a short term dip. Everything would improve in the long run. A bright future awaits all of us. Have people stopped buying vegetables?”

Bujhaavan gave a wry smile and said, “Yeah, you are right. Earlier, you used to buy at least one kg of cauliflower at one go. But now, you are not buying more than one-fourth of a kg. Earlier, you used to buy at least two litres of milk on a daily basis. Now, I have seen you carrying a half litre pack only. Sir, I have to think about paying my rents. Add the electricity bill to it. Keeping the shutter down would at least help in saving on electricity bill. Nobody has cash so everybody is cutting on spending. I had to stand in queue for four days. After that, I became successful in depositing my money in my account. Now, they are not allowing us to withdraw the money.  The bank on the other side of the road has not received cash after the nineteenth November. How do I buy fresh stock? I need at least twenty thousand but ATM is just giving two thousand.”

Rahul took out a cigarette and offered another to Bujhaavan. After lighting up their cigarettes, Rahul took a long puff of nicotine enriched smoke and said, “Don’t worry my friend. You must know about the great work being done by our government. It has changed everything in one stroke. Now, every transaction is going to be online; through internet. You can make all your transactions through your mobile phone. For the time being, you can use check or DD to pay your suppliers. Haven’t you heard what the Finance Minister had said a couple of days ago?”

Bujhaavan exhaled a sharp jet of smoke towards the ground and said, “Do you know my landlord? He appears to be highly educated. When he refuses to take payment through cheque, then what do you expect from farmers who come to sell in mandi. Even the wholesalers in the mandi are refusing cheques now-a-days. One of them was telling that he does not have time to stand in queue just to deposit cheques. Our Finance Minister was talking about DD. Is he going to pay for the commission on DD? Cannot he see the huge crowd in front of every bank? Which staff in a bank is free to make a demand draft?”  

Bujhaavan was unable to dampen the optimistic spirit in Rahul. Rahul said, “You already own a smartphone; if I am not wrong. I have seen you forwarding messages. Making a payment is as easy as forwarding an MMS.”

Bujhaavan said, “I know that if I make a typo error while using WhatsApp then it is not going to make a difference. But if I will repeat the same mistake in my bank account then I will lose my hard-earned money. What happens when someone steals my password? Sahib, we are much smaller in size. We are not in a position to withstand such shocks. To add insult to my injury, the landlord has created a new problem for me.”

Rahul asked, “What happened?”

Bujhaavan said, “I had been to meet my landlord. When I told him that I am not in a position to pay my rents for the next couple of months, he handed an eviction notice to me. My shop has a good client base but he is hell bent to destroy my business. It takes years to establish a business at a new place.”

Rahul said, “Why don’t you set up your shop on the sidewalk. You can shift later to a new shop after finding a suitable place.”

Bujhaavan said, “It is more difficult to do business on the sidewalk. One needs to bribe the police. The local muscleman also takes his share. There is additional risk of theft. I was able to protect my dignity by keeping a shop in this shopping complex. I have enquired in nearby shopping complexes, but there is no vacancy. A shop is vacant near another apartment but they are asking for a hefty advance.”

Rahul said, “Your shop must be quite old; at least five or six years old. I think it is as old as this apartment. You must have saved enough money by now. You can easily pay the advance.”

Bujhaavan said, “I also overestimate people who live in high rise apartments. But you are underestimating my expenses. I need to pay eight thousand as rent for this shop and at least two thousand as electricity bill. The beat constable takes one thousand and the municipality staff takes five hundred. I need to pay at least five thousand in a year as donations for pooja and bhandara. A stray food inspector may rob me off a couple of thousands in a year. I pay two thousand as house rent and pay one thousand five hundred as school fees. Now, you can easily calculate that I hardly earn enough to make a saving. Nevertheless, I have saved about one lakh fifty thousand during this period. I was planning to buy a small plot. But even a fifty yard plot is costing around seven lakh in this area.”

Rahul said, “Don’t worry, everything would be alright. The moment we shift to cashless economy, no food inspector is going to disturb you.”

Bujhaavan laughed and said, “Don’t underestimate an illiterate person who is in business for so many years. When everything will happen through account then I will get another set of greedy officials to satiate. The guys from sales tax and income tax would be my new tormentors. My hands were already full with constable and muscleman. You mean to say that I need to increase my business related expenses. I need to pay taxes as well as hefty fees to the chartered accountant. Wonderful.”

Rahul asked, “What have you thought of future?”

Bujhaavan said, “I don’t plan for future. Let us leave it to the almighty. But the present is looking scary. All the vegetables have rotten; setting me back with huge loss. I am not left with enough strength to stand on my feet. Add the ultimatum of my landlord to this. I am packing my bag and baggage; to go back to my village. I will once again work in the farms; the way I did it when I was much younger. Farm work comes for only four months in a given year. But I will have the solace to be with my own people. It is better to die peacefully in my own village than facing the endless agony in this big city. I migrated to this city in search of better opportunity. I had dreamt of a better life for my children. Now, I can only look at a blank screen ahead of me.”


घर वापसी

बुझावन की दुकान आज लगभग बीस पच्चीस दिनों बाद खुली थी। वह अपनी दुकान के बाहर धूप में बैठा था। लेकिन उसने जिस तरह से अपने झुके हुए सिर को अपनी हथेलियों से संभाला हुआ था उससे जाहिर होता था कि वह जाड़े की धूप का आनंद नहीं उठा रहा था बल्कि गहरी चिंता में था। दुकान के अंदर उसकी बीबी संड़ी-गली सब्जियों को छाँट रही थी। उस सड़ांध से उठे भभके से बचने के लिए उसने अपने आँचल को नाक के ऊपर कसकर बाँधा हुआ था। उसका दस बारह साल का बेटा इस काम में उसका हाथ बँटा रहा था। पास में ही उसकी पाँच छ: साल की बेटी एक संतरे को गेंद बनाकर खेल रही थी।

बुझावन का एक पुराना ग्राहक होने के नाते मैने उससे पूछा, “क्या हुआ? कहाँ थे इतने दिन? बहुत दिनों से दुकान नहीं खुली थी। किसी की तबीयत तो नहीं खराब हो गई थी?”

बुझावन ने मुझे देखते ही अपने जुड़े हाथों को अपने सिर के ऊपर कर लिया जैसे नमस्कार करना चाहता हो, और बोला, “अरे नहीं साहब, कौनो तबीयत उबियत खराब नहीं हुई। ग्राहक ही नहीं आ रहे थे इसलिए दुकान बंद करना पड़ा।“

मैने पूछा, “क्या बात करते हो भैया? माना कि बिक्री थोड़ी कम हुई होगी लेकिन हमलोग थोड़ा बहुत सामान तो खरीद ही रहे हैं।“

बुझावन ने कहा, “क्या बताएँ साहब, थोड़े बहुत ग्राहक से तो दुकान का भाड़ा भी नहीं निकलेगा। फिर पूरे दिन दुकान खोलकर रहने से बिजली का बिल भागेगा सो अलग। लोगों के पास नोट हैं ही नहीं जो खरीदेंगे कुछ। शुरु के तीन चार दिन तो बैंकों की लाइन में लग गये और उस चक्कर में दुकान बंद करना पड़ा। जब सारे पैसे खाते में जमा कर दिया तो अब बैंक वाले निकालने ही नहीं देते। रोड के सामने वाले बैंक में तो पिछली उन्नीस तारीख के बाद से कैश आया ही नहीं है। अब ताजी सब्जियाँ खरीदूं तो कैसे?”

मैने कहा, “अरे इसमे इतना परेशान होने की क्या जरूरत है? तुम्हें पता नहीं है कि इस सरकार ने कितना अच्छा काम किया है। अब सबकुछ ऑन लाइन होगा, मतलब इंटरनेट से। तुम रुपये की लेन देन अपने मोबाइल फोन से कर सकते हो। तुम्हारे खाते में पैसे जमा हो गये हैं तो चेक से पेमेंट कर दो।“

बुझावन ने कहा, “साहब यहाँ इतना पढ़ा लिखा मकान मालिक तो किराया चेक से लेता ही नहीं है और आप मंडी में आये किसानों की बात कर रहे हो। आजकल तो आढ़तिये भी चेक लेने से मना कर रहे हैं। कहते हैं, कौन जायेगा लाइन में लगने। अभी तो चेक जमा कराने में भी चार-चार घंटे लाइन में लगना पड़ता है।“

मैने कहा, “तुम्हारे पास स्मार्टफोन तो है ही। मैने देखा है तुम उसपर सारा दिन फोटो देखते रहते हो। उससे पेमेंट कर दो। बड़ा आसान है।“

बुझावन ने कहा, “साहब, व्हाट्स ऐप करने में कोई गलती टाइप हो जाये तो क्या फर्क पड़ता है। खाते में ऐसा हुआ तो पता चला मेरी पूरी जमा पूँजी चली गई। और कोई मेरा पासवर्ड चुरा लिया तो फिर जुलुम हो जायेगा। हम छोटे आदमी हैं, उतनी बड़ी चपत थोड़े न झेल पाएँगे। ऊपर से एक और नई मुसीबत सर पर आ गई है।“

मैने पूछा, “अब क्या हुआ?”

बुझावन ने कहा, “मकान मालिक के पास गया था। जब उसे बताया कि एक दो महीने किराया नहीं दे पाउँगा तो उसने दुकान खाली करने की नोटिस दे दी। अब जमी जमाई दुकान थी, उजड़ जायेगी। नई जगह पर जमने में तो सौ फेरे हैं।“

मैने कहा, “कुछ दिन के लिए बाहर फुटपाथ पर लगा लो। इस बीच कोई दूसरी दुकान आस पास ही खोज लेना।“

बुझावन ने कहा, “फुटपाथ पर दुकान चलाना तो और मुश्किल है। पुलिस को हफ्ता देने के साथ साथ मुहल्ले के रंगदार को भी देना पड़ता है। फिर रात में चोरी चकारी का भी डर रहता है। इस शॉपिंग कम्प्लेक्स में इज्जत से दुकान चलती थी। आस पास पता किया है, कोई दुकान खाली नहीं है। एक खाली भी है तो पगड़ी इतना अधिक मांग रहा है कि पूछो मत।“

मैने कहा, “क्या बात कर रहे हो। तुम्हारी तो पाँच छ: साल पुरानी दुकान है। जब से यह अपार्टमेंट बना है तब से। इतने पैसे तो जमा किये ही होंगे। पगड़ी तो दे ही सकते हो।“

बुझावन ने कहा, “अरे कहाँ साहिब, आठ हजार तो ई दुकान का किराया है और दो हजार बिजली बिल लगता है। एक हजार कांस्टेबल को और पाँच सौ यहाँ के रंगदार को। साल में चार पाँच हजार से अधिक तो पूजा और भंडारा का चंदा देने में चला जाता है। कभी कभार अगर फ़ूड इंस्पेक्टर टहलते हुए आ गया तो उसे भी एक दो हजार देने पड़ते हैं। मेरे घर का किराया दो हजार है और मेरे बेटे के स्कूल में पंद्रह सौ रुपये फीस है। उसके बाद बचता कहाँ है। हाँ एक डेढ़ लाख रुपये जोड़ के रखे थे। सोचा था छोटा सा प्लॉट ले लूँगा। लेकिन आजकल तो पचास गज का भी लेने में सात आठ लाख लग जाते हैं।“

मैने कहा, “अब सब कुछ ठीक हो जायेगा। जैसे ही कैशलेस इकॉनोमी बन जायेगी फिर कोई तंग नहीं करेगा।“

बुझावन ने कहा, “अब हमको इतना भी मूरख ना समझो साहब। जब सब कुछ खाते से होगा तो फिर सेल्स टैक्स और इनकम टैक्स वालों को भी चढ़ावा देना पड़ेगा। अब तक ये पुलिस वाले और रंगदार ही क्या कम थे? पाँच साल से दुकान चला रहा हूँ, इतनी समझ है। टैक्स भी भरो और सीए को भी फीस दो।“

मैने कहा, “तो अब क्या प्लान है? आगे क्या करना है?”


बुझावन ने कहा, “अब आगे का तो ऊपर वाला जाने। सारी सब्जियाँ संड़ गई हैं। जबरदस्त नुकसान हुआ है। अब ई हालत में नहीं हैं कि उठकर खड़े हो पाएँ। ऊपर से मकान मालिक का अल्टिमेटम। अब दुकान दौड़ी समेटकर गाँव वापस चले जाएँगे। पहले की तरह खेत में काम करेंगे; साल के तीन चार महीने ही सही। कुछ ऊँच नीच होगा तो फिर अपना समाज तो है ही वहाँ। सोचा था कि शहर जाकर कम से कम अपने बच्चों का भविष्य तो सुधार पाउँगा, लेकिन अब तो आगे अंधेरा ही दिखता है।“ 

Tuesday, November 22, 2016

कुछ दिन तो गुजारिये कतार में

जब तक पूरा देश है मझधार में
कुछ दिन तो गुजारिये कतार में।

क्या रक्खा है नोटों के इस जंजाल में
हरे, नीले और गुलाबी मायाजाल में
हमने सबकुछ छोड़ दिया संसार में
आप भी तो आ जाइये मेरे भंवरजाल में
कुछ दिन तो गुजारिये कतार में।

तुम क्या लेके आये थे
क्या लेके जाओगे
जो लिया यहाँ से लिया
इसलिए सब कुछ जमा कीजिए सरकार में
कुछ दिन तो गुजारिये कतार में।

क्या रखा है पुरानी रेल की सीत्कार में
क्या रखा है मरने वालों की चीत्कार में
असली मजा है बुलेट की रफ्तार में
कुछ दिन तो गुजारिये कतार में। 

Friday, November 18, 2016

अर्जुन और नोटबंदी

अर्जुन का अज्ञातवास शुरु हो चुका था। उसके अज्ञातवास का यह पहला महीना था। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि अचानक दुर्योधन की सलाह पर धृतराष्ट्र ने ऐसा आदेश निकाल दिया कि अर्जुन के पसीने छूट गये। दुर्योधन और शकुनि की सलाह पर आदेश निकाला गया कि बाजार में उपलब्ध सभी सिक्कों को गैरकानूनी करार दे दिया जाये। उसके बदले में नए सिक्कों को जारी किया जायेगा। ऐसा बताया गया कि पुराने सिक्कों पर धृतराष्ट्र को अधिक बूढ़ा दिखाया गया था जो राजा की छवि के लिए ठीक नहीं था। नये सिक्कों पर राजा की जवानी की तस्वीर होगी। लेकिन वास्तविकता इससे अलग थी। सिक्कों को इसलिए बंद करवाया गया ताकि अर्जुन समेत अन्य पांडव अपनी जरूरत की कोई भी चीज खरीद न सकें। इससे या तो वे भूख से बिलबिला कर मर जाते या फिर जिंदा रहने के लिए उन्हें अपना अज्ञातवास तोड़ना पड़ता। दोनों ही हालत में दुर्योधन की जीत होती। उसके रास्ते का काँटा निकल जाता और फिर वह संपूर्ण आर्यावर्त पर चिर काल के लिए राज करता।

बेचारा अर्जुन बहुत परेशान था। अब उसे ही कोई न कोई उपाय ढ़ूँढ़ना था। युधिष्ठिर तो सबसे बड़े भाई होने के कारण कुछ भी नहीं करता था और सारा काम अर्जुन से ही करवाता था। यहाँ तक कि अपनी शादी के लिए भी उन्होंने अर्जुन से ही स्वयंवर जीतने के कार्य को मूर्तरूप दिया था। भीम को अपना विशाल पेट भरने से फुरसत ही नहीं मिलती थी। फिर कोई पेट भर कर खाना खाने के बाद काम कैसे कर सकता है। खाना को पचाने में भी ऊर्जा लगती है। नकुल और सहदेव अपने आप को बालक ही समझते थे इसलिए हमेशा अर्जुन की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखा करते थे। कुंती और दौपदी तो ठहरीं अबला नारी इसलिए उनसे कोई उम्मीद करना ही बेकार था।

अर्जुन हिंदी फिल्मों का बहुत बड़ा फैन था। वर्षों तक हिंदी फिल्म देखकर उसने एक बात सीखी थी। जब भी कोई बड़ी मुसीबत आ जाये तो फिर भगवान को याद करो और गाने लगो, “ओ पालन हारे, निर्गुण और न्यारे, तुम बिन हमरा कोई नहीं।“

हिंदी फिल्मों के इस अनमोल सीख का अनुसरण करते हुए अर्जुन ने भगवान कृष्ण को याद किया। कृष्ण फौरन अर्जुन के सामने प्रकट हो गये और पूछा, “हे पार्थ, आज तुम बड़ी ही कातर मुद्रा में मेरे नाम के भजन गा रहे हो। बताओ क्या कष्ट है?”

अर्जुन ने जब कृष्ण को साक्षात अपने सम्मुख देखा तो उनकी आँखों से भक्तिरस की अश्रुधारा बहने लगी। अर्जुन ने कहा, “हे माधव, मैं बहुत दुखी फील कर रहा हूँ। आज के पहले इतना दुखी मैं कभी नहीं हुआ था। अपने वनवास काल में मैने अनेक बुरे दिनों का सामना किया; इस उम्मीद में कि अच्छे दिन कभी तो आएँगे। मैने दुर्गम वनों को पार किया और कई पहाड़ों और घाटियों को लांघ कर कितने ही दिव्यास्त्र प्राप्त किये। लेकिन अब वे सारे दिव्यास्त्र मेरे लिए व्यर्थ साबित हो रहे हैं। उस बूढ़े राजा ने ऐसा आदेश जारी कर दिया कि मैं और मेरा परिवार दाने दाने को मोहताज हो गया है। आजकल तो आपका दिया हुआ अक्षय पात्र भी आर्यावर्त के एटीएम मशीन की तरह बर्ताव कर रहा है। उसमें पासवर्ड डालने पर कुछ भी नहीं निकलता, केवल ब्लैंक स्क्रीन दिखती है। जब मुँह में अन्न का दाना ही नहीं जायेगा तो हम इन दिव्यास्त्रों को तो नहीं खा सकते। अब तो आखिरी उम्मीद भी खतम हो रही है क्योंकि पास के गाँव के वनिक पुत्र ने उधार देने से मना कर दिया है। हे माधव, अब आप ही कोई मार्ग बताएँ।“

भगवान कृष्ण ने अर्जुन की ओर देखकर एक ठंडी सांस ली और कहा, “हे पार्थ, मैं तुम्हारा दर्द समझ सकता हूँ; क्योंकि आजकल पैसों की तंगी मैं भी झेल रहा हूँ। हम देवताओं के लिए देवलोक में जो एटीएम लगा है वह चौबीस घंटे काम करता है। लेकिन उन मशीनों में भी दो हजार मुद्राओं की ही लिमिट है। अब मेरे जैसे देवता के लिए इतनी कम मुद्रा काफी नहीं होती। मेरे खर्चे भी तो बहुत हैं। गोपियों के साथ रासलीला रचानी होती है। सोलह हजार पटरानियों के साथ उनकी दासियों का भी खयाल रखना होता है। फिर ग्वाल बाल के लिए मक्खन की अनवरत सप्लाई भी मेंटेन करनी होती है। मैं तो दुखी हो गया हूँ।“

अर्जुन ने बीच में टोकते हुए कहा, “हे माधव, आप से ऐसे उत्तर की उम्मीद न थी। आपकी बातों से तो लगता है कि मुझे अपने परिवार के साथ शीघ्र ही जल समाधि लेनी पड़ेगी।“

कृष्ण ने कहा, “नहीं पार्थ, इतनी जल्दी धीरज नहीं खोते। कहते हैं कि हर काली रात के बाद भोर जरूर आती है। हर काली सुरंग के बाद रोशनी अवश्य दिखाई देती है। अब इसके लिए मैं जो उपाय बताता हूँ उसे ध्यानपूर्वक सुनो।“

अर्जुन ने अपनी आँखे और कान खोलकर कृष्ण की ओर देखा और कहा, “बताएँ माधव, क्या आदेश है?”

कृष्ण ने कहा, “यहाँ से लगभग एक हजार योजन पर एक एटीएम मशीन लगा है। स्वयं विश्वकर्मा ने उस मशीन को बनाया है इसलिए वह बड़ी कुशलता से कार्य करता है। उस मशीन के कनेक्शन सीधे भगवान कुबेर के बैंक से हैं इसलिए उसमे स्वर्ण मुद्राओं की कभी कमी नहीं होती है। तुम कल प्रात:काल अपने ईष्ट देवों का स्मरण करके, शौचादि से निवृत होकर पूर्व दिशा की ओर दंड प्रणाम करते हुए चलते जाना।“

अर्जुन ने बीच में टोका, “लेकिन माधव, मैं उस स्थान को पहचानूँगा कैसे?”

कृष्ण ने कहा, “उसे पहचानना मुश्किल नहीं है। जब वह मशीन तुमसे कोई सौ योजन की दूरी पर होगा वहीं से तुम्हें मनुष्यों की लंबी लाइन दिख जायेगी। वहाँ पर राजा के सैनिक भी तैनात हैं। राजा को डर है कि कहीं लोगों में फैले रोष से हिंसा न भड़क जाये।“

अर्जुन ने कहा, “लेकिन वहाँ पर के लोगों या सैनिकों ने मुझे पहचान लिया तो मेरा अज्ञातवास टूट जायेगा।“

कृष्ण ने कहा, “मेरे पास इसका भी उपाय है। तुम वृहन्नला के गेटअप में जाओगे तो तुम्हें कोई नहीं पहचानेगा। महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग अलग लाइन लगती है। किन्नरों की लाइन अलग से है, जिसमें एकाध किन्नर ही होते हैं, इसलिए तुम्हारा काम आसानी से हो जायेगा।“

कृष्ण ने आगे कहा, “वहाँ पहुँचकर कुबेर तुष्टिकरण मंत्र का एक लाख बार जप करना जिससे कुबेर तुमसे प्रसन्न हो जाएँगे। उस मंत्र के प्रभाव से वहाँ पर खड़े सभी नर नारी थोड़ी देर के लिए मूर्छित हो जाएँगे। उस बीच तुम दो हजार स्वर्ण मुद्राएँ निकाल लेना।“


कृष्ण की ऐसी वाणी सुनकर अर्जुन का हृदय भक्तिरस से विह्वल हो गया। उसकी आँखों से अश्रुधारा ऐसे बहने लगी जैसे किसी बरसाती नदी का बाँध टूट गया हो। तभी भगवान कृष्ण वहाँ से अंतर्धान हो गये। उसके बाद अर्जुन अपना मेकअप किट लेकर वृहन्नला की भाँति साज श्रृंगार करने में तल्लीन हो गया। 

Thursday, November 17, 2016

Havoc of Cash Crunch

The latest demonetization move is being touted as masterstroke by most of the people in the ruling party. Many eminent economists and top honchos of the corporate world are also showing their rock solid support behind the noble task of removing the scourge of black money from India. Opposition is opposing this move and that is what you can expect from any opposition party, i.e. to oppose every move of the government. I am not an economist to clearly understand the long term implication of this move on our economy. So, to understand this matter, I try to decipher numerous articles written in newspapers. But being a common man who fits somewhere in the middle class bracket, I am confident of having a fair sense of havoc which a cash crunch can play with the day to day life of a common man. This story is based on one such incident.

It was the period of early nineties when ATM cards and online banking were yet to arrive on the scene. So, almost all the transactions of a common man took place in cash. I was working for a pharmaceutical company which was notorious for paying peanuts to its medical representatives. To add insult to injury, the company often used to withhold expense reimbursement on some pretext or the other. Whenever I had to go for an outstation tour, I had to carefully plan for my expenses so that they would fit in with my allowances and salary.

On one such trip, I had been to Hazaribagh from Ranchi. I had to stay at Hazaribagh for two nights to finish my work. I was getting fifty two rupees as outstation allowance and was allowed to charge the bus fare for two seats. If I recall it properly then the bus fare from Ranchi to Hazaribagh was thirty rupees. The hotel; where I used to stay used to charge forty rupees per night for a room. After careful planning, I took the required cash in my pocket and proceeded to Hazaribagh. It was enough to take care of bus fare, hotel stay, food bill and my daily dose of nicotine for two days’ working.

On the morning of the third day, I had just enough money to pay for rickshaw from hotel to the bus stand, bus fare from Hazaribagh to Ranchi, rickshaw fare from Ranchi bus stand to my residence and some extra money to enjoy on 100 g of peanuts during the bus ride.

When I reached the bus stand, there was no bus in sight. There were a few stray persons and numerous stray dogs on the bus stand. When I enquired about the unusual calm at the bus stand, I came to know that since it was the day for Ramanavami celebrations so there would be no buses to go anywhere. I had no other way than to return to my hotel.

But I was not having enough money to pay for hotel stay and other expenses to make my extended stay comfortable. I was a new recruit so I did not have enough confidence to ask for credit from the hotel guy. Nevertheless, I went back to the hotel and told the receptionist about my problem. He told me not to worry and offered to give credit for my extended stay. Being an introvert person, I did not want to take his obligations. So, I was thinking of some other way to come out of that situation.

Suddenly, I recalled that one of my cousin brothers; a distant relative; was living in Hazaribagh. He was working for LIC (Life Insurance of India). He was five years older than me. I thought of taking his help. I waited for the clock to strike ten. The hotel staff told that the LIC office was about two km away from the hotel. In order to save my every penny, I walked up to the LIC office. To my great relief, I spotted my cousin brother sitting on a chair in the office. He recognized me which was evident from his wide smile. After exchanging pleasantries, I mustered up some courage to share my problem with him. He came out of his office and kick-started his scooter. I hopped on the pillion seat and we reached to the hotel. After collecting my luggage, we went to his residence. He was living alone; as he was still a bachelor.

After coming back from his office in the evening, my cousin brother made food for us. He tried his every effort to make my stay comfortable. But I was so worried and depressed because of the cash crunch that I could not sleep through the night.

Next morning, he drove me to the bus stand and gave me hundred rupees. I repaid the money in due course of time but will never forget the immense value of those hundred rupees till my last breadth.

Money is called a necessary evil for no reason. When you have sufficient money, it gives you a confidence. It even gives confidence to your friends and relatives. But when you are running short on money; even your friends and relatives turn away from you. You may not get the prestige at family and social functions if you are poorer than most of your relatives and friends.

At present, many people have become a lot poorer in spite of having cash with them. Contrary to what is being shown on TV or announced by the government, many banks are not giving even the minimum amount of cash to their customers. Practically it is not possible for everybody to sacrifice a whole day’s work just to stand in a queue outside the bank.


It is like 95% income tax which was the top tax rate during Indira Gandhi’s time. Let us assume that I earn one lakh rupees in a month. Out of that, about 33,000 needs to be paid as income tax. All my payments come via online transfer so I cannot evade taxes. Out of the remaining 67,000 the government takes away 86% which translates into 57,000 (approx). This leaves me with just 10,000 rupees. As I am earning one lakh rupees so I am paying 25,000 as house rent. This leaves me in negative. Can anybody tell me how to buy my daily bread with the money I am left with?  Someone will say that you can make online payment. I do pay my telephone bill, electricity bill, house rent and many other expenses online. Yet I need some cash to buy candy for my son. I need some cash to satiate my craving for nicotine, to pay for my haircut, the list can be endless. My wife too needs some cash to pay to the beauty parlour, to the maid. My maid does not want to pay 4% charge to the Paytm. 

Wednesday, November 16, 2016

नोट बदलवाने की तैयारी

क्या हुआ? पैसे मिले?” मैने पूछा।

चिंटू ने जवाब दिया, “ नहीं मिले। चार घंटे लाइन में लगा था। उसके बाद बताया कि बैंक में केवल जमा लेंगे लेकिन नोट बदलेंगे नहीं।

मैने कहा, “तुमने जाने में देर कर दी थी। किसी लाट साहेब की तरह नाश्ता करके गये थे।“

चिंटू ने कहा, “हाँ, सोच रहा हूँ कल सुबह पाँच बजे ही लाइन में लग जाउँगा।“

मैने कहा, “टीवी पर देखा है कि बहुत लोग रिजर्व बैंक के पास लाइन लग रहे हैं। वहीं चलते हैं। रिजर्व बैंक है, वहाँ पैसों की कमी नहीं होगी।“

चिंटू ने कहा, “हाँ सही कह रहे हो भैया। छोटे ब्रांच में तो कैश तुरंत खत्म हो जा रहा है।“

मैंने अपनी बीबी से कहा, “कल के लिए आज रात ही पराठे बना लेना। बंटी को स्कूल नहीं भेजेंगे और उसे भी लाइन में लगा देंगे। चार आदमी लाइन में लगेंगे तो साढ़े चार हजार के हिसाब से अठारह हजार तो बदल ही जाएँगे।“

मेरी बीबी ने कहा, “हाँ, समझ लेंगे कि इंडिया गेट गये थे पिकनिक मनाने।“

तभी मुझे अपने पड़ोसी का ध्यान आया। उनके बिटिया की शादी परसों ही है। वे भी परेशान हैं। मैने सोचा उनसे भी मिल लूँ। मैं अपने पड़ोसी के पास गया और बोला, “अंकल, कल हम लोग रिजर्व बैंक जा रहे हैं। नोट बदलवाने के लिए लाइन लगने। आप चाहें तो हमारी कार से चल सकते हैं। कम से कम चौबीस हजार तो मिल जाएँगे।“

मेरे पड़ोसी ने कहा, “अभी अभी टीवी पर सुना है कि अब शादी वाले परिवार को ढ़ाई लाख रुपए निकालने की इजाजत मिल गई है।“

मैने कहा, “वाह ये तो अच्छी बात है। लेकिन ढ़ाई लाख में क्या होगा? चलिये आपके परिवार में कम से कम चार लोगों के खाते तो होंगे ही। दस लाख निकल जाने से शादी में परेशानी नहीं होगी।“

मेरे पड़ोसी ने कहा, “अरे नहीं, एक परिवार के एक ही सदस्य के खाते से इतनी रकम निकाल सकते हैं। उसे निकालने के लिये केवायसी भी भरना पड़ेगा।“

मेरे पड़ोसी का बेटा भी तब तक हमारी बातचीत में शामिल हो गया, “हमें सरकार का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि इसके लिये दूल्हा और दुल्हन की जन्मकुंडली नहीं माँग रहे हैं।“

उसकी बात सुनते ही मैं अपनी हँसी रोक नहीं पाया और बोला, “उसपर शर्त ये होगी कि दूल्हा और दुल्हन की कुंडली में छत्तीस गुण मेल खाने चाहिए तभी पैसे मिलेंगे।“


अगले दिन हमलोग सुबह चार बजे अपनी गाड़ी में लद गये। मेरी बीबी ने साथ में लगभग पचास पराठे, अचार की बोतल और पानी की पाँच छ: बोतलें रख लीं। गाड़ी की डिक्की में कम्बल भी रख लिये गये। इस बार हम यह ठान कर जा रहे थे कि चाहे दो दिन तक लाइन में लगना पड़े, अपने नोट बदलवा कर जरूर आएँगे। हमारे पड़ोसी और उनका बेटा भी हमारे साथ थे। उन्होंने अपना पहचान पत्र, अपनी बेटी का पहचान पत्र, अपने होने वाले दामाद और उनके पिता के पहचान पत्र, दूल्हा दुल्हन की जन्मकुंडली और शादी का निमंत्रण कार्ड भी रख लिया था। लग रहा था कि हम सब वाकई किसी जंग को जीतने के मकसद से जा रहे थे। 

Tuesday, November 15, 2016

How to Change Ur Currency Notes?

First Day: 

You can change Rs. 4000 at one go.

I assumed that I may change Rs. 4000 every day.

Second Day: 
You can change Rs. 4000 only once a week. The limit was later raised to Rs. 4500.

I planned to change my notes every week. This amount is enough to last a week for my routine needs.

Third Day:
Indelible ink will be used to prevent multiple use of this facility. This is in order to stop unscrupulous people from beating the system.

I am worried because the indelible mark may not go away in a week. Media and many economic pundits are going ga ga over this announcement. They are hoping for a futuristic smart country where everyone; from roadside beggar to kantabai to gorkha to flower seller; would start using plastic money. The Paytm partner Alibaba must be throwing a party to his forty friends.

My Assumptions About Possible Future Announcements: 

Fourth Day: Iris scan and finger imprints will be taken at the time of currency exchange and withdrawal. This is in order to prevent miscreants from siphoning off with money.

Fifth Day: Video recording will be done and videographer will be specially appointed by the Central Government. State governments are not allowed to interfere in this matter as money comes under Union List.

Meanwhile, numerous PILs have been filed in the Supreme Court of India against this order. The Supreme Court which is normally very fast in hearing cases of high importance is showing a lackadaisical attitude. It has given 25 November as the next day of hearing. I am assuming that the government must be thinking that enthusiasm of TV reporters and opposition leaders would fizzle out by that time. Everyone would forget the plight of millions of Indians who will be standing in endless queue. People of India usually adjust with myriad problems. So, everyone would learn to live with this man-made disaster for many months to come.

Future:


  • After the dust settles on cash exchange and cash loot, the government will come with many more novel ideas to stop the scourge of black money. Some examples are as follows:
  • You will have to give your PAN number while buying ration for a month. If someone buys ration for more than two months then 30% cess would be charged on the bill. With 1% extra as patriotism tax.
  • You will have to give a xerox copy of your Adhar for buying more than 1 litre of milk.
  • You will have to pay 10% banking transaction tax for each withdrawal of more than Rs. 999 from bank.
  • All costly cars and bikes will only be sold to ministers and government officers. No private person shall be able to buy them.
  • Before buying any car or bike or TV you will have to take a permit from the government. While doing so, you will need to submit an affidavit to show that you are buying from your hard earned money.



Jai Hind

Monday, November 14, 2016

चर्बी से इलाज या चर्बी का इलाज

पंचतंत्र की सभी कहानियाँ मजेदार हैं और सबसे कोई न कोई शिक्षा जरूर मिलती है। पंचतंत्र की कहानियाँ आज भी लोकप्रिय हैं क्योंकि उनका रेलिवेंस आज भी है। इन्हीं में से एक कहानी है एक बंदर और उसके झुंड की।

किसी राज्य में बंदरों का एक झुंड किसी राजा के राजमहल के प्रांगन में रहता था। बंदरों के झुंड का नेता बड़ा समझदार हुआ करता था। उस राज्य के राजकुमार को जानवरों से बहुत प्यार था। इसलिए बंदरों को कोई परेशान नहीं करता था। बंदर बेरोकटोक कहीं भी आते जाते थे और अपनी मनपसंद चीजों पर हाथ साफ किया करते थे। कभी कभी वे राजमहल की रसोई में भी धावा बोल देते थे और कुछ न कुछ उड़ाकर उसका मजा लिया करते थे। उसी रसोई में एक बकरा भी घुस जाया करता था। बकरा बहुत शरारती था और खाने के अलावा चीजों को तहस नहस भी करता था। राजा के रसोइए अक्सर उस बकरे को भगाने के लिए हाथ में जो कुछ आता उसे उठाकर बकरे की ओर फेंक देते थे।
बंदर के नेता ने एक दिन अपने झुंड के बंदरों से कहा, “यह रसोई उस बकरे की वजह से खतरनाक हो सकती है। इसलिए हमें रसोई के भोजन को भूलना पड़ेगा। हमारे खाने के लिए फलों से लदे इतने वृक्ष हैं कि उनसे हमारा काम चल सकता है। मेरी बात मानो तो रसोई से दूर ही रहो।“

बंदरों का नेता बूढ़ा हो चुका था। जैसा कि अक्सर होता है उस बूढ़े की बातों पर उस झुंड के जवान बंदरों ने ध्यान नहीं दिया। एक जवान बंदर ने तो यहाँ तक कह दिया, “अरे दद्दू तुम बुढ़ापे के कारण डरपोक हो गये हो। भला रसोई में क्या खतरा हो सकता है। और हम ठहरे बंदर। हम तो बिजली की तेजी से कहीं से भी भाग सकते हैं।“

इस तरह से झुंड के जवान बंदरों ने रसोई में हमला बोलना जारी रखा। एक दिन वह बकरा जब रसोई में चीजें उलट पुलट रहा था तो किसी रसोईए ने जलती हुई लकड़ी बकरे को दे मारी। लकड़ी ठीक निशाने पर लगी और बकरे की खाल में आग लग गई। बकरा अपनी जान बचाने के लिये वहाँ से भागा। भागते भागते वह घोड़ों के अस्तबल में पहुँचा। घोड़े के अस्तबल में रखे पुआल में आग लग गई। आग इतनी तेजी से फैली कि घोड़ों को भागने का मौका ही न मिला। जब तक आग बुझाई जा सकी तब तक कई घोड़े जलने से मर गये। जो जिंदा बचे ते वे बुरी तरह जल चुके थे।

जिंदा बचे घोड़ों के इलाज के लिए राजवैद्य को बुलाया गया। राजवैद्य ने कहा, “घोड़ों के घावों को जल्दी से भरने का एक ही उपाय है। इसके लिए जो मलहम बनाना पड़ेगा उसके लिए बंदरों की चर्बी की जरूरत पड़ेगी।“

फिर क्या था, राजा के सैनिकों ने बंदरों को मौत के घाट उतारना शुरु किया। बंदरों का नेता पहले ही अपनी जान बचाकर भाग चुका था। उसके साथ कुछ बूढ़े बंदर तो भाग गये लेकिन जवान बंदर अभी भी वहीं डटे हुए थे। इस तरह से ज्यादातर बंदरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।


यह कहानी मुझे भारत की नोटबंदी पर कुछ अलग तरह से सोचने को मजबूर करती है। ज्यादातर लोग उन बंदरों की तरह हैं। इन लोगों को किसी की रसोई में से माल पर हाथ साफ करने में कोई परहेज नहीं है। लेकिन उसी रसोई से कई मोटे बकरे भी लाभांवित होते रहते हैं। सरकार उन रसोइयों की तरह है जो सजा की वार्निंग देकर बकरे को डराने का काम करती है। एक दिन जब बात सिर के ऊपर से गुजरने लगी तो रसोइए ने जलती लकड़ी दे मारी। यह नोट बंदी का आदेश उसी जलती लकड़ी की तरह है। मोटे बकरे तो बचने में सफल हो गये हैं। लेकिन ज्यादातर आम लोग उन बंदरों की तरह बैंकों के बाहर लाइन में लगकर अपनी चर्बी निकलवा रहे हैं। पूरे दिन लाइन में लगेंगे तो पूरे दिन का काम डिस्टर्ब होगा। काम नहीं करेंगे तो कमायेँगे क्या और खाएंगे क्या। अभी जो नोट हाथ में हैं उनसे खा ही नहीं सकते। जब खाएंगे नहीं तो चर्बी अपने आप निकल जाएगी। 

Sunday, November 13, 2016

PINK REVOLUTION

This revolution has nothing to do with the power of women; as Amitabh Bacchan may be dreaming. This revolution is about the revolution which is being created by the introduction of pink coloured notes of 2000 denomination. The main idea behind introduction of these 2000 notes was to remove black money and corruption from India. These new notes are going to replace old notes of 500 and 1000 denomination and are sure to create a kind of economic and social revolution in India.

People of India are lapping up this revolution with great zeal. People are so enthusiastic that every citizen of India is running to banks and ATM right from 2 AM in the night. Nobody wants to miss the chance to be a part of this revolution and to be a part of history. People are happy which is evident from numerous sound-bytes from general public often saying, “This is a masterstroke indeed.”  Every such person is in the eternal hope of getting the proverbial 15 seconds of fame.

People are so happy that some of them just shove others to squeeze through half open grills of the banks. People are so happy that many of them join the queue without bothering for their daily chores, breakfast and even their jobs. Some people become so happy that they get vertigo and fall on the pavement because they become senseless. Some people have even died because of an overdose of happiness because of this revolution. They are sure to get bravery award during next year’s Republic Day parade at Rajpath.

Some of them who were lucky enough to get hold of the new notes on the first day could not conceal their glee and gave the proof in the form of numerous ‘selfies with the new note’ on social media.

The offices are empty. The farms are empty. The factories are empty. The shops are empty. Shopkeepers are still present in their shops but all the customers are in queue. Shopkeepers are eagerly waiting like expectant mothers for their customers to come with new currency notes. The association of school buses in Mumbai has already announced that they are going to stop plying school buses from 16th November. Children of Delhi’s schools erupted in joy because they are hoping of similar announcement from Delhi’s schools. So, this revolution is going to make all the school going children happy. Every child becomes happy with announcement of holidays in schools.


Every coin has two faces. This revolutionary happiness is not going to last forever. The PM has announced that he needs just 50 days to change everything. So, this happiness is going to last only for 50 days. After that, everything would come to its old mundane ways. All the happiness, zeal and enthusiasm would be gone forever.