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Monday, September 26, 2016

दुर्वासा और पड़ोसी मुल्क

यदि आप पौराणिक कथाओं में थोड़ी सी भी रुचि रखते हैं तो आपने दुर्वासा का नाम सुना ही होगा। दुर्वासा अत्री और अनुसूया के पुत्र थे और अपने शॉर्ट सर्किट के लिए जाने जाते थे। उनके दिमाग का फ्यूज जरा जरा सी बात पर उड़ जाया करता था और फिर किसी न किसी को उनके गुस्से का दंड मिलता ही था। दुर्वासा के गुस्से के शिकार कई प्रसिद्ध देवी देवता, नर नारी और असुर हो चुके थे। कहा जाता है कि दुर्वासा के शाप के कारण ही बेचारी शकुंतला को दुष्यंत भूल गये थे और शकुंतला की कहानी में ट्विस्ट आया था। कहते हैं कि दुर्वासा के शाप के कारण ही भगवान कृष्ण की मृत्यु एक बहेलिये द्वारा तीर लगने से हुई थी। यह कहानी उसी मशहूर दुर्वासा के मशहूर गुस्से के बारे में है।

यह बात कई हजार वर्ष पुरानी है। आर्यावर्त के पड़ोस में एक छोटा सा देश हुआ करता था। उस देश पर असुरों का राज था। आर्यावर्त के तत्कालीन राजा ने असुरों पर दया करके पड़ोसी देश के साथ एक जल संधि की थी। जल संधि की जरूरत इसलिए पड़ी थी कि अखंड भारतवर्ष की सभी प्रमुख नदियाँ हिमालय की गोद से निकलती हैं। इनमें से पाँच नदियाँ पड़ोसी देश से होते हुए अरब सागर में गिरती हैं। इन पाँच नदियों के नाम हैं; झेलम, रावी, सतलज, व्यास और सिंधु। बाकी की चार नदियाँ पड़ोसी देश में जाकर सिंधु नदी में मिल जाती हैं। उसके आगे सिंधु नदी सारा जल लेकर सागर की ओर बढ़ती है। लेकिन आर्यावर्त में उद्गम होने के कारण नदियों के अधिकांश जल का इस्तेमाल आर्यावर्त में ही होता था जिससे पड़ोसी देश में रहने वाले असुर प्यास से बिलबिला जाते थे। आर्यावर्त के तत्कालीन राजा को उनकी हालत देखकर बहुत तरस आया था इसलिए उसने जल संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए हामी भरी थी। उसके बाद सिंधु नदी के विशाल जल तंत्र का 80% जल पड़ोसी देश को दिया जाने लगा। इससे पड़ोसी देश में रहने वाली असुरों की प्रजा के दिन फिर गये। वे छककर जल का सेवन करने लगे। उनके खेतों की सिंचाई होने लगी जिससे खेतों में पैदावार बढ़ी। नदियों के ऊपर बाँध बनाये गये और पनबिजली निकालने के कारखाने लगाये गये। इससे पड़ोसी देश में खुशहाली छा गई।

अब असुर तो असुर ही ठहरे। वे अपनी आदत से कहाँ बाज आने वाले थे। जब उन्हें भरपूर भोजन पानी मिलने लगा तो उनके दिमाग में कीड़ा बिलबिलाने लगा। उसके परिणामस्वरूप असुरों ने आर्यावर्त में रहने वाले सुरों को परेशान करना शुरु कर दिया। वे हमारे यहाँ के ऋषि मुनियों के यज्ञ में विघ्न डालने लगे। फिर वे हमारे यहाँ की भोली भाली प्रजा को भी परेशान करने लगे। प्रजा की सुरक्षा के लिए आर्यावर्त के राजा ने सीमा पर सेना की चौकसी बढ़ा दी। लेकिन असुरों को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ा। कई बार उन्होंने हमारी सेना की चौकी पर भी हमला बोल दिया जिसमें हमारे कई सैनिक शहीद हो गये। आर्यावर्त के राजा ने अन्य देशों के राजाओं से इस बाबत बातचीत की लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। समस्या बढ़ती ही जा रही थी। आखिरकार समस्या इतनी बढ़ गई कि एक बार असुरों ने हिमालय की घाटियों में चल रहे दुर्वासा विश्वविद्यालय पर धावा बोल दिया। उस समय दुर्वासा मुनि कोई महत्वपूर्ण यज्ञ कर रहे थे। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि उस यज्ञ के संपूर्ण होने के पश्चात दुर्वासा मुनि के के हाथ ब्रह्मास्त्र बनाने का फॉर्मूला लग जायेगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। उस यज्ञ में विघ्न पड़ने के कारण दुर्वासा मुनि का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उनके गुस्से की खबर सुनकर आर्यावर्त के राजा आये और पड़ोसी देश के असुरों पर आक्रमण करने की पेशकश की। दुर्वासा ठहरे एक मुनि इसलिए उन्होंने युद्ध के लिये मना कर दिया। उनका मानना था कि युद्ध करने से दोनों ओर के सैनिकों और निर्दोष प्रजा की जान जाने का पाप लगता। दुर्वासा मुनि ने आर्यावर्त के राजा से कहा कि वे कोई ऐसा इलाज करेंगे जिसका असर दीर्घकालीन हो। उनका मानना था कि उस इलाज के बाद पड़ोसी मुल्क फिर कभी भी उठकर खड़ा नहीं हो पायेगा। उनका ये भी मानना था कि उनकी जुगाड़ से साँप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।

फिर अगले दिन तड़के ही उठकर दुर्वासा मुनि हिमालय की गोद में स्थित उन नदियों के उद्गम स्थल पर गये। वहाँ बैठकर उन्होंने अपने ईष्टदेव को याद किया, सूर्य को नमस्कार किया और उद्गम के किनारे बैठकर नदी का सारा जल पी गये।

उसके बाद तो पड़ोसी मुल्क में त्राहि मच गई। दुर्वासा मुनि रातोंरात आर्यावर्त के हीरो बन गये। सभी टेलिविजन चैनलों पर 24X7 दुर्वासा का ही चेहरा नजर आने लगा। फेसबुक पर दुर्वासा के बारे में जितने भी पोस्ट थे उनपर करोड़ों लाइक मिलने लगे। ट्विटर पर दुर्वासा के हैश्टैग ही सबसे ज्यादा ट्रेंड करने लगे। समस्त आर्यावर्त अपनी सौ करोड़ से अधिक जनसंख्या की ताकत का अहसास पूरे विश्व को दिला रहा था। कई विशेषज्ञ तो दुर्वासा के लिये देश के सर्वोच्च सम्मान आर्यावर्त रत्न की भी मांग करने लगे। आर्यावर्त में जो कोई भी दुर्वासा की आलोचना करता हुआ पकड़ा जाता था उसे सौ कोड़े लगाये जाते और फिर उसे राष्ट्रद्रोह के आरोप में कारागार में डाल दिया जाता।

उधर पड़ोसी मुल्क में जल के लिये कोहराम मचा हुआ था। म्युनिसिपालिटी के नलों पर पानी लेने के लिये दंगे हो रहे थे। पड़ोसी देश की सेना जो सीमा पर रहकर आर्यावर्त को परेशान कर रही थी; अब अपने ही वतन में दंगों को नियंत्रित करने में लगी थी। पड़ोसी देश के धनी असुर अपने देश से पलायन कर रहे थे और खाड़ी देशों को प्रस्थान कर रहे थे। लेकिन जो निर्धन असुर थे वे बेचारे प्यास से मर रहे थे।

इधर दुर्वासा की हालत भी कुछ ठीक नहीं लग रही थी। करोड़ों लीटर पानी तो उन्होंने पी लिया था लेकिन उनका वृद्ध शरीर उस विशाल जलभंडार को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। हर पाँच मिनट के बाद उन्हें दो नंबर के लिए जाना पड़ता था। अखिल आर्यावर्त चिकित्सालय के नामी गिरामी वैद्यों ने बताया कि उनकी प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ गई थी जिसके कारण उनका अपने ब्लाडर पर से कंट्रोल सदा के लिए खत्म हो गया था। उसके बाद टीवी स्टूडियो में उनके लिये आसन की जगह कमोड लगा दिया गया ताकि इंटरव्यू में बाधा न पड़े और जनता जनार्दन का नॉन स्टॉप मनोरंजन होता रहे।

इस बीच कई वैद्यों ने ये सलाह दी कि कैथेटर लगाकर उनका मूत्र विसर्जन करवाया जाये लेकिन उससे समस्त आर्यावर्त में बाढ़ आने और उससे मचने वाली प्रलय का खतरा था। फिर दुर्वासा इस बात के लिए नहीं मान रहे थे क्योंकि वे प्राण जाये पर वचन न जाये वाली दलील में यकीन रखते थे।

पड़ोसी देश के निर्धन असुरों ने आर्यावर्त में घुसने की कोशिश भी की लेकिन हमारे जाँबाज सैनिकों ने उन्हें सीमा पर ही रोक लिया। इस घटना से पड़ोसी देश के पशु पक्षी भी परेशान थे। लगभग सभी पक्षी तो उड़कर आर्यावर्त की सीमा में प्रवेश कर गये। उनको आर्यावर्त में आता देख यहाँ के सैनिक निम्नलिखित गाना गुनगुनाते रहे, “पंछी नदिया पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके।“

पंछी तो वैसे भी सुदूर देशों से हमारे यहाँ आते ही रहते है। साइबेरियन क्रेन तो लगभग पाँच हजार किलोमीटर का सफर तय करके सीधा साइबेरिया से आते हैं। इसलिए हम गर्व से कह सकते हैं कि पंछियों के अतिथि सतकार की हमारी पुरानी परंपरा रही है। पंछियों के आने के बाद अब पशुओं की बारी थी।

आर्यावर्त की पश्चिमी सीमा से लगी एक अहम चौकी पर तैनात हमारे जांबाज सैनिकों में से एक अपनी दूरबीन से पड़ोसी मुल्क पर नजर रख रहा था। तभी उसे दूर क्षितिज पर बवंडर जैसा दिखाई दिया। उसने फौरन अपने साथियों को चौकन्ना कर दिया। सैनिकों के कमांडर को लग रहा था कि शायद पड़ोसी मुल्क ने परमाणु बम दाग दिया है। उसने तुरंत अपने आला अफसरों को संदेश भेजा। सेना के आला अफसरों ने तुरंत आर्यावर्त के राजा को संदेश भेजा। उनका संदेश सुनते ही राजा ने अपने परमाणु बमों को बंकर से ऊपर जमीन पर रखवा लिया।

लेकिन थोड़ी ही देर में सीमा पर तैनात सैनिकों को अहसास हो गया कि आने वाला खतरा परमाणु बमों से भी ज्यादा खतरनाक था। सामने से करोड़ों की संख्या में जानवर आर्यावर्त की ओर दौड़ते हुए चले आ रहे थे। जानवरों के उस विशाल झुंड में हर किस्म के जानवर थे; जैसे कि गाय, बकरी, भैंस, ऊँट, गदहे, कुत्ते, शेर, बाघ, हिरण, नीलगाय, चीता, हाथी, आदि। उतने जानवरों को अपनी ओर आते देख जांबाज सैनिक के होश उड़ गये। उसके कमांडर ने गोलियाँ चलाने का आदेश दिया। इधर से हजारों की संख्या में गोलियाँ चलने लगीं। कई जानवर हताहर हुए जा रहे थे। लेकिन वे इंसान तो थे नहीं कि कुछ जानवरों के मरने से मैदान छोड़कर भाग खड़े होते। वे तो बस पूरब की ओर बढ़ते ही जा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे अफ्रिका के विशाल मैदानों में जानवरों की भगदड़ हो रही हो। वे अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को रौंद रहे थे। जब जानवरों का झुंड बिलकुल पास आ गया तो बेचारे सैनिकों को अपनी जान बचाने के लिए बंकर में छुपना पड़ गया। जानवर अब आर्यावर्त की सीमा में प्रवेश कर रहे थे। सीमा पर के लगे गाँव नेस्तनाबूद हो रहे थे।


यह खबर बिजली की तेजी से दुर्वासा मुनि के पास पहुँची। आर्यावर्त के राजा और समस्त प्रजा अब दुर्वासा के पास त्राहिमाम कर रही थी। दुर्वासा ने देखा कि उनका दांव उल्टा पड़ रहा था। उनके इशारे पर फौरन उनके लिये एक तीव्रगामी विमान लाया गया। विमान दुर्वासा को लेकर सीधा हिमालय की गोद की तरफ उड़ा। वहाँ पर जाकर दुर्वासा ने उन नदियों के उद्गम पर जाकर; जो बिलकुल सूख चुका था: तबीयत से उल्टी की। लगभग एक घंटा तक उल्टी करने के बाद नदियों का प्रवाह सामान्य हो गया और पड़ोसी मुल्क की सूखी धरती शांत हो गई। अब जानवरों को भी राहत मिली और वे अपने वतन की ओर धीरे-धीरे लौटने लगे। सबसे बड़ी राहत दुर्वासा को मिली क्योंकि अब उन्हें ना तो प्रोस्टेट का ऑपरेशन करवाने की जरूरत थी और न ही बार बार दो नंबर जाने की।