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Wednesday, July 6, 2016

कुछ तो लोग कहेंगे

हम चाहे कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाएँ, कुछ पुरानी आदतें छूटती ही नहीं। सत्तर के दशक के सुपरस्टार राजेश खन्ना की फिल्मों के गीतों का लुत्फ उठाना इन्हीं आदतों में से एक है। राजेश खन्ना के अनूठे चार्म के साथ सदाबहार गीतों ने सोने पे सुहागे का काम किया था जिसका असर आज भी दिखाई देता है। हमारी दूसरी बुरी आदत है अपनी सहूलियत के हिसाब से सारे नियमों को ताक पर रख देना। टू व्हीलर चलाते समय हेलमेट से परहेज, और कार चलाते समय सीट बेल्ट से परहेज, आदि इसके अन्य उदाहरण हैं। ऐसी ही आदतों के असर में हमारी निवर्तमान मानव संसाधन विकास मंत्री ने न मौका देखा और न ही दस्तूर और राजेश खन्ना कि एक फिल्म का गाना गुनगुना दिया, “कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना।“

अब आप सोच रहे होंगे कि यह तो बड़ा ही सुंदर गीत है जिसके साथ बड़ा ही मधुर संगीत जुड़ा हुआ है। साथ में नायक और नायिका का असीम रोमांस इसमें चार चाँद लगा देता है। इतने सुंदर और सदाबहार गीत को गुनगुनाने में हर्ज ही क्या है? वैसे भी उनका पसंदीदा मंत्रालय छिन जाने के बाद लोग तरह तरह की बातें कहने लगे थे। इसलिए भावनाओं में बहते हुए उन्होंने इस गाने की एक पंक्ति गुनगुना दी। मेरी उलझन समझने के लिए आपको उस फिल्म का दृश्य याद करना होगा। या फिर उस गाने की अगली पंक्ति जो इस प्रकार है, “छोड़ो बेकार की बातों में कहीं बीत न जाए रैना।“ मूल सिचुएशन में यह गाना तब गाया जाता है जब नायक और नायिका का मिलन होता है। नायिका नायक से बताती है कि किस तरह से लोग उनके रोमांस के बारे में उल्टी सीधी बातें करते हैं। इस पर नायक का उत्तर मिलता है कि लोगों की परवाह नहीं करनी चाहिए। लोगों की बातों में उलझने से बहुमूल्य समय व्यर्थ चला जाता है और काम की बातें नहीं हो पाती हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह गाना मिलन के समय गाने लायक है न कि जुदाई के समय। अब निवर्तमान मंत्री इस गाने को तब गुनगुना रही हैं जब उनका सबसे फेवरीट मंत्रालय उनसे अलग हो रहा है।


यह तो वही बात हुई कि कोई गायक राग भैरवी को आधी रात में गाने लगे। आपकी जानकारी के लिए यह बताना उचित होगा कि राग भैरवी सुबह के समय गाया जाने वाला राग है न की रात्रि के समय। आप कभी भी ब्रेकफास्ट रात में नहीं करते, लंच सुबह नहीं करते और डिनर दिन में नहीं करते। हर तरह के भोजन का अपना निर्धारित समय होता है। हो सकता है कि ये नियम उन निशाचरों पर लागू नहीं होता होगा जो बीपीओ में कार्यरत हैं। लेकिन मंत्री जी बीपीओ में नहीं बल्कि मंत्रालय में कार्यरत हैं। भारत सरकार का एक अहम नुमाइंदा होने के नाते हमें उनसे ऐसी उम्मीद करनी चाहिए कि कम से कम वे तो नियमों का पालन करें। वरना नियम तोड़ने वाली तुच्छ प्रजा और नियम बनाने वाले राजाओं में कोई अंतर नहीं रह जाएगा।