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Monday, June 13, 2016

नीलगाय का आतंक

संजय सड़क के नीचे गिरा पड़ा था। वह दर्द से कराह रहा था। पास में ही उसकी मोटरसाइकिल गिरी हुई थी। संजय की उम्र 25 से 28 के बीच रही होगी। उसके कपड़ों को देखकर लग रहा था कि वह किसी शहर का रहने वाला था। उसने काली फुलपैंट और सफेद शर्ट पहन रखी थी। शर्ट करीने से पैंट के अंदर की हुई थी। ऊपर से चमड़े का बेल्ट; जिसपर चमचमाती बकल लगी थी: अपनी जगह दुरुस्त थी। हेल्मेट अभी भी सिर के ऊपर ही था। शायद हेल्मेट के कारण ही उसे कोई गंभीर चोट नहीं आई थी और वह अपने पूरे होशो हवास में था। उसकी मोटरसाइकिल से थोड़ी दूर पर एक चमड़े का बड़ा सा बैग गिरा हुआ था। पास से दौड़कर आए गाँववालों में से एक ने जब उसके बैग को देखा तो सहसा चिल्ला पड़ा, “अरे ये तो कोई एमआर लगता है। इस तरह की मोटी चमड़ी वाले बैग तो एमआर लोग ही लेकर चलते हैं। देखो तो बेचारे को कितनी चोट लगी है।“

आपकी जानकारी के लिए यह बताना जरूरी होगा कि मेडिकल सेल्स रिप्रेजेंटेटिव को हिंदी बेल्ट के लोग प्यार से एमआर कहकर बुलाते हैं। ऐसा शायद उच्चारण की सहूलियत के लिए किया जाता है या भाषा की अपभ्रंशता के कारण।

एक दूसरे गाँव वाले ने पूछा, “और भैया! लगता है नई बाइक पर बिल्कुल आँधी तूफान की तरह चल रहे थे। तभी तो इस तरह रपटा गए।“

संजय ने कराहते हुए जवाब दिया, “अरे नहीं भैया, मैं ज्यादा स्पीड से नहीं चल रहा था। यही कोई पचास की स्पीड होगी।“

इसपर उस ग्रामीण ने पूछा, “तो फिर कैसे गिर गए? किसी भूत ने पटक दिया?”
संजय ने कहा, “अरे नहीं, मैं तो आराम से ही जा रहा था। तभी अचानक से एक नीलगाय बीच सड़क पर आ गई। मैं जब तक ब्रेक लगाता, उससे टकरा गया और गिर पड़ा।“

ऐसा सुनकर एक अन्य व्यक्ति ने कहा, “अरे मत पूछो। इन नीलगायों ने तो जीना हराम कर रखा है। पिछले साल तो मेरे चाचा को एक नीलगाय ने इतनी जबरदस्त लथाड़ मारी थी कि बेचारे फौरन स्वर्ग सिधार गए।“

एक अधेड़ से दिखने वाले आदमी ने कहा, “भैया, हम तो इनसे तंग आ चुके हैं। हर साल नीलगायों से हमारी फसलों को भारी नुकसान पहुँचता है। इसपर तो सरकार कोई मुआवजा भी नहीं देती। अभी हाल ही में अखबार में पढ़ा था कि किसी मंत्री ने नीलगायों को मारने की अनुमति देने की बात की थी। लेकिन एक अन्य मंत्री ने उसपर अपना वीटो लगा दिया। बोलने लगीं कि जानवरों को मारने से पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। अरे जब गरीब किसान ही नहीं बचेगा तो फिर पर्यावरण बचाकर क्या मिलेगा?

तभी वहाँ पर उस गाँव के प्रधान भी आ गए। वे पास से ही गुजर रहे थे कि छोटी मोटी भीड़ को इकट्ठा देखकर अपनी जिज्ञासा शाँत करने आ पहुँचे। प्रधान का गेटअप बिलकुल माहिर नेता की तरह लग रहा था। सफेद कुर्ता पायजामा; जिसपर लगता था कि हर दो घंटे पर स्टार्च चढ़ाया जाता हो। पाँव में सफेद जूते और कँधे पर नीली चेक वाला सफेद गमझा। उनकी तलवार छाप रोबीली मूँछों को देखकर उस इलाके में उनके दबदबे का थोड़ा बहुत अंदाजा तो हो ही जाता था। प्रधान जी ने अपनी कड़कती आवाज में आदेश जैसा दिया, “सब अपना ही रोना रोओगे या इस लड़के को लेकर अस्पताल भी जाओगे।“

प्रधान जी की बात सुनते ही, दो लड़कों ने लपककर एक खटिया ले आई। फिर संजय को उस खटिया पर लादा गया और लोग अस्पताल की ओर चल दिए। एक युवक संजय की मोटरसाइकिल को खींचते हुए साथ में चल रहा था। एक अन्य व्यक्ति संजय का बैग टाँगे चल रहा था।
जैसे ही वे अस्पताल पहुँचे तो वहाँ के डॉक्टर ने संजय को देखते ही कहा, “अरे संजय जी आप! लगता है आप भी नीलगाय की चपेट में आ गए। भगवान का शुक्रिया अदा करो कि कोई गंभीर चोट नहीं आई। पिछले साल तो एक नीलगाय की वजह से मेरी टाँग टूट गई थी। पता नहीं इनका क्या इलाज है।“

डॉक्टर संजय की मरहम पट्टी करने लगा। इस बीच अन्य लोग आपस में खुसर पुसर कर रहे थे। फसल की कटाई के बाद वैसे भी उनके पास कोई खास काम तो था नहीं। वहीं पास में एक महिला भी बैठी थी। उसके मैले कुचैले कपड़ों को देखकर लग रहा था कि वह ऐसे परिवार से आती थी जिनके पास अपनी जमीन नहीं होती है। ऐसे लोग बड़े किसानों के खेतों में काम करके अपना गुजारा करते हैं। इनमें से कुछ लोग थोड़े बहुत मवेशी भी पाल लेते हैं ताकि कुछ आमदनी हो जाए। उस महिला ने मामले को समझने के बाद कहा, “अरे साहब, ये जंगली जानवर तो हम गरीबों को कुछ ज्यादा ही परेशान करते हैं। अभी इसी फागुन की बात है। एक तेंदुए ने मेरी बकरी चुरा ली। उस बकरी के जाने के बाद तो मेरी कमर ही टूट गई। दूध बेचकर जो भी थोड़ी बहुत कमाई होती थी, चली गई। अब तो किसी भी तरह दो जून की रोटी जुड़ जाए काफी है।“

उसकी बात सुनकर प्रधान ने कहा, “तुम ब्लॉक ऑफिस क्यों नहीं जाती? तुम्हें तो मुआवजे की माँग करनी चाहिए। आजकल दलितों की बात तो हर अफसर और मंत्री सुनता है।“
उस महिला ने जवाब दिया, “गई थी। लेकिन वहाँ के बाबू ने कहा कि तेंदुओं को सरकार की तरफ से संरक्षण मिला हुआ है। इसलिए कोई मुआवजा नहीं मिलेगा।“


एक अधेड़ से दिखने वाले व्यक्ति ने कहा, “हाँ भैया, जमाना बदल गया है। इंसानों को कोई संरक्षण नहीं लेकिन जानवरों को पूरा संरक्षण। अरे पिछले साल जब मैंने एक पागल कुत्ते को जान से मार दिया था पता नहीं कैसे किसी ने उसका वीडियो बनाकर इंटरनेट पर डाल दिया। फिर क्या था, दिल्ली से कुछ ऐसे लोग आ धमके जो अपने आप को आवारा कुत्तों के हितैषी बताते थे। लगभग एक महीने तक उन्होंने और टीवी चैनल वालों ने तो मेरा जीना हराम कर दिया था। अपनी जान बचाने के लिए मैं तो केदारनाथ भाग गया था।“