“क्या हुआ? सुबह से इतना ठुनक क्यों रही है? तबीयत
तो ठीक है इसकी?” श्याम ने आवाज लगाई।
किचन से राधा की आवाज आई, “अरे कुछ नहीं, कहती है बोर हो रही है। पार्क में खेलने जाना है।“
श्याम ने हँसते हुए कहा, “कमाल है, हमारे जमाने में तो बच्चे स्कूल बंद होने पर खुश हुआ करते थे। अब इसे देख
लो, आज छुट्टी का पहला दिन है और आज से ही बोर हो रही है।
अरे तुम्हारे लिये ही तो कार्टून चैनल का स्पेशल पैक ऐक्टिवेट करवाया है।“
तबतक किचन से नाश्ता लेकर राधा ड्राइंग रूम में आ चुकी थी।
श्याम के सामने नाश्ते की प्लेट रखते हुए बोली, “हमारे जमाने में तो हम
मुहल्ले में खेलने निकल जाते थे। पूरे दिन धमाचौकड़ी करते थे। अब जमाना खराब हो गया
है। अब भला कोई अपने बच्चे को अकेले घर से बाहर निकलने दे तब न। ऐसा करो, परी को पार्क में ले जाओ। वहाँ खेलेगी तो मन लगेगा इसका।“
श्याम ने झटके में गरमागरम पोहे का एक बड़ा चम्मच अपने मुँह
में डाल लिया। श्याम के चेहरे पर अजीबोगरीब भाव आ जा रहे थे। लगता था पोहा कुछ
ज्यादा ही गर्म था। थोड़ा दम भरने के बाद श्याम के मुँह से आवाज निकली, “बड़ी
मुश्किल से तो एक इतवार मिलता है, जब मैं चैन से अखबार पढ़ता
हूँ।“
राधा ने कहा, “पार्क में अखबार पढ़ने पर किसी ने बैन नहीं
लगा रखा है। धूप भी अच्छी निकली है। तुमलोग आगे बढ़ो, मैं
बाकी काम निबटाकर आ जाउंगी।“
श्याम ने झटपट अपनी प्लेट में से पोहे को साफ कर दिया और
फिर बोला, “ऐसा करो, परी को तैयार कर दो। टिंकू के
दोनों बच्चों को भी ले लेता हूँ। तीन बच्चे रहेंगे तो इन्हें भी मजा आयेगा। आखिर
पास पड़ोस में रिश्तेदार के रहने का कुछ फायदा तो मिलना चाहिए। उसे भी लगेगा कि
जीजाजी के बगल में मकान लेकर सही काम किया।“
राधा ने कहा, “हाँ पड़ोस में रहने से तो जैसे केवल साले
को फायदा होता है। जीजाजी का जनम तो बस परोपकार और लोक कल्याण के उद्देश्य से हुआ
है।“
हल्की फुल्की झड़प किसी बड़े हादसे में न तब्दील हो जाये, इसकी
आशंका होते ही श्याम अपनी बेटी परी को लेकर घर से बाहर निकल गया और सीधा लिफ्ट के
सामने खड़ा हो गया। जीरो से पच्चीसवें तले तक आने में लिफ्ट को समय तो लगता ही है।
आज कुछ ज्यादा ही समय लग रहा था। लिफ्ट की बटन के साथ लगे डिस्प्ले से पता चल रहा
था कि लिफ्ट किसी सुपरफास्ट ट्रेन की तरह न आकर किसी मरी हुई पैसेंजर ट्रेन की तरह
हर स्टेशन पर रुकते हुए आ रही थी। इस बीच श्याम को अपनी पीठ पर राधा की चुभती हुई
नजर महसूस हो रही थी। आखिरकार, एक लम्बे इंतजार के बाद लिफ्ट
का दरवाजा खुला और श्याम उसके अंदर चला गया। लिफ्ट का दरवाजा बंद होते ही श्याम ने
चैन की सांस ली। परी ने उछलकर सात नंबर वाला बटन दबा दिया।
सातवें तले पर श्याम
लिफ्ट से बाहर निकल गया। श्याम का साला 705 नंबर फ्लैट में रहता था। परी ने उछलकर
कॉल बेल का बटन दबाया। अंदर से ‘ओम जय जगदीश हरे’ का मधुर संगीत गूँजने लगा। अंदर से लकड़ी वाला दरवाजा खुला तो तार की जाली
वाले दरवाजे से तीन तीन लोगों का आकार नजर आने लगा। सबसे पीछे सबसे लम्बी आकृति थी
वह टिंकू की थी। उसके आगे दो छोटी छोटी आकृतियाँ थीं वे उसके दोनों बच्चों विवान
और आन्वी की थी। अंदर की तुलना में बाहर अधिक रोशनी की वजह से विवान और आन्वी को
साफ दिख रहा था कि कौन आया है। वे दोनों अंदर से ही उछल उछलकर जोर जोर से बोलने
लगे, “फूफाजी आये, फूफाजी आये।“
थोड़ी देर में श्याम, परी, टिंकू, विवान और आन्वी पार्क में पहुँच गये। उस हाउसिंग सोसाइटी की लगभग दो हजार
की आबादी के हिसाब से यह पार्क छोटा ही था। लेकिन शहरों के तंग मुहल्लों की तुलना
में यहाँ पर उस साफ सुथरे पार्क की मौजूदगी किसी वरदान से कम नहीं थी। पार्क में
पहुँचते ही तीनों बच्चों ने आपस में रेस लगा ली। श्याम और टिंकू एक बेंच पर बैठ
गये और देश और दुनिया की बड़ी-बड़ी समस्याओं पर अपना ज्ञान बघारने लगे। दोनों में एक
तरह से होड़ लगी थी कि उनमें से कौन प्रधानमंत्री के उस पद के लिये अधिक लायक है जिसकी
वैकेंसी अगले साल आने वाली थी। एकाध घंटे के बाद राधा भी आ गई। उसके साथ टिंकू की
बीबी मिली भी थी। दोनों महिलाओं ने अपने साथ एक एक कैसरोल और पानी की बोतलें भी
लाईं थीं। उन्हें देखकर श्याम ने कहा, “वाह, क्या बात है। आप लोगों ने तो लंच का भी इंतजम कर दिया है। इसे कहते हैं एक
परफेक्ट संडे।“
उसके जवाब में मिली ने कहा, “बिलकुल सही फरमाया
जीजाजी। एक बात और बता दूँ। एक परफेक्ट संडे का परफेक्ट अंत तब माना जाता है जब एक
आदमी अपनी बीबी को शाम में बाजार घुमाने ले जाता है।“
ऐसा सुनकर श्याम ने कुछ नहीं कहा। उसके मुँह पर एक फीकी सी
मुसकान जरूर आ गई। बच्चों के खेलने कूदने, लंच शेयर करने और गुलाबी धूप में गप्पें
मारने में समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। जाड़े का मौसम होने की वजह से जल्दी
ही अंधेरा छाने लगा। श्याम और टिंकू अब अपने अपने परिवार के साथ अपने अपने घरों की
ओर चल पड़े। आगे-आगे तीनों बच्चे उछल कूद मचाते हुए चल रहे थे। उनके पीछे श्याम और
टिंकू थे। सबसे पीछे राधा और मिली कुछ सुस्त रफ्तार में चल रहीं थीं। यह कहना
मुश्किल था कि उनकी सुस्त रफ्तार खाली हो चुके टिफिन के भार की वजह से थी या थोड़ा
और गप्प मार लेने की अनबुझी चाहत के कारण थी।
जैसे ही वे लोग लिफ्ट के अंदर हुए तो विवान ने कहा, “फूफाजी,
हमारे घर चलिये। मम्मी चाय बहुत अच्छी बनाती है।“
श्याम ने कहा, “नहीं बेटे, फिर कभी।“
विवान ने श्याम की बाँह पकड़ते हुए कहा, “नहीं,
आज ही। चलिये न फूफाजी। मम्मी, फूफाजी से कहो न
कि चाय पीने चलें।“
विवान की बात सुनकर सबलोग मुसकराने लगे। फिर सब लोग सातवीं मंजिल
पर ही लिफ्ट से बाहर निकल गये। टिंकू के घर में सोफे पर विराजमान होने के बाद श्याम
ने कहा, “एक बात तो तय है। दुनिया कितनी ही क्यों न बदल जाये, खून के रिश्ते में जो गहराई होती है वह किसी और रिश्ते में नहीं। अब विवान
को देख लो। अभी इसकी उमर ही क्या हुई है। बस छ: साल का है। फिर भी इसे पता है कि फूफा
के रिश्ते की क्या गरिमा होती है।“
श्याम के ऐसा कहने पर टिंकू ठठाकर हंस पड़ा। थोड़ी देर हँसने के
बाद वह बोला, “अरे नहीं जीजाजी, इसे अपने फूफा से कोई
लगाव नहीं है। बात ऐसी है कि शाम में इसे मिली होमवर्क करने के लिये बिठा लेती है।
फिर दो घंटे तक पढ़ाती है। इसने तो पढ़ाई से बचने के लिये सोचा फूफा जी को चाय का निमंत्रण
दे दो। उसी बहाने आज तो बच जायेगा।“
टिंकू के ऐसा कहने पर श्याम का चेहरा देखते बनता था। वहीं दूसरी
ओर टिंकू, राधा और मिली ऐसे अट्टहास कर रहे थे कि धार्मिक सीरियल के राक्षस
भी शरमा जाएँ।