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Thursday, November 9, 2017

आग लगे पर कुंआ खोदना

अजबपुर एक खुशहाल राज्य है, जहाँ चारों ओर खुशहाली है। लोग बाग सारी खुशहाली का श्रेय अजबपुर के महान राजा सूरजचंद्र को देते हैं। लोगों के पास और कोई उपाय भी नहीं है। यदि किसी ने गलती से अजबपुर की खुशहाली का श्रेय किसी अन्य को दिया तो फिर उसकी खैर नहीं। राजा के गुप्तचर तुरंत ऐसे व्यक्ति का पता लगा लेते हैं और फिर उस व्यक्ति को कम से कम सौ कोड़े लगाये जाते हैं। अजबपुर खूबसूरत पहाड़ी की तलहटी में बसा हुआ है और इसके चारों ओर घना जंगल है। पिछले दो तीन वर्षों से अजबपुर एक अजीब समस्या से जूझ रहा है। हर साल जब खरीफ के फसल की कटनी होती है तो खेतों में ठूंठ बच जाते हैं। उनसे छुटकारा पाने के लिये अजबपुर के किसान उन ठूंठों में आग लगा देते हैं। दो साल पहले वह आग जंगल तक फैल गई थी जिससे जंगल के पेड़ों को काफी नुकसान हुआ था। आग कोई एक सप्ताह तक जलती रही जिससे जंगली जानवरों को भी क्षति पहुँची थी। उस आग से जो धुँआ निकला था उसने पूरे अजबपुर पर घने कोहरे की चादर लाद दी थी। कोहरा घना तो था ही उससे सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था। काफी शोध करने के बाद राजगुरु ने बताया था कि पेड़ पौधों के जलने से वातावरण में जहरीली गैसें फैल गईं थीं इसलिये सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। जब जनता में त्राहिमाम मचा हुआ था तो राजा के आला मंत्रियों ने उस समस्या से निपटने के लिये बैठक शुरू की। जब तक बैठक समाप्त हुई तब तक कोहरा भी गायब हो चुका था। कुछ ही दिनों में लोग उस बात को किसी बुरे सपने की तरह भूल गये थे। कुछ दिनों के बाद राजा सूरजचंद्र ने मुनादी करवाई थी कि भविष्य में ऐसी आपदा की रोकथाम के लिये कठोर कदम उठाये जाएंगे। लेकिन धरातल पर कुछ होता दिखाई नहीं दिया।

पिछले दो वर्षों की तरह इस वर्ष भी खरीफ की कटाई हुई। किसानों ने बचे हुए ठूंठों में इस वर्ष भी आग लगा दी। इस वर्ष भी वह आग जंगल तक फैल गई। आग से जो धुँआ निकला तो फिर से अजबपुर के ऊपर कोहरा छाने लगा। इस साल जाड़ा जल्दी आ गया था इसलिये कोहरे से समस्या भी ज्यादा होने लगी। दोपहर के वक्त भी साफ साफ देखना मुश्किल हो रहा था। सुबह के समय तो बहुत ही बुरा हाल रहता था। प्रजा फिर से त्राहि त्राहि करने लगी।

राजगुरु ने फिर से शोध किया और जनता को जागरूक करने के लिये महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं। राजगुरु ने बताया कि इस साल तापमान कुछ ज्यादा ही गिर गया था इसलिए चारों ओर धुंध छाया हुआ था। जब किसी मंत्री ने यह बयान दे दिया कि वह कोहरा नहीं बल्कि स्मॉग था तो राजगुरु ने उसके खिलाफ तर्क देना शुरु किया। राजगुरु का कहना था कि स्मॉग बनने के लिये जिन जहरीली गैसों की जरूरत होती है वे गैसें केवल पादपों को जलाने से पैदा नहीं होती हैं। इसलिये स्मॉग का सवाल ही नहीं था। राजगुरु ने बताया कि अजबपुर में कृषि और व्यवसाय में अच्छी वृद्धि होने के कारण लोगबाग धनी हो गये थे। इसलिये अब अधिकांश लोगों के पास तेज चलने वाले रथ आ गये थे। जब लोगों के रथ राजधानी की सड़कों पर फर्राटे से दौड़ते थे तो उससे ढ़ेर सारी धूल उड़ती थी। उसी धूल के कारण कोहरा अधिक भयानक हो चुका था।

राजगुरु की सलाह पर राजा के मंत्रियों की बैठक शुरु हुई ताकि इस समस्या का हल ढ़ूँढ़ा जाये। इस बार कुछ चारणों ने राजा का गुणगान करने की बजाय राजकाज के तरीकों की आलोचना शुरु कर दी थी। उन चारणों को भी सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी। इसलिये राजा सूरजचंद्र पर दबाव बढ़ गया था। इस बार मंत्रियों की बैठक जल्दी ही समाप्त हो गई। राजा सूरजचंद्र ने मंत्रियों की मंत्रणा के आधार पर कुछ कठोर फैसले लेने का ऐलान कर दिया।

राजा ने अपने निर्णय के बारे में यह जरूरी समझा की जन जन तक उसका संदेश पहुँचाया जाये। इसलिये राज्य के हर शहर और गाँव में मुनादी करवाई गई। राजधानी और बड़े शहरों में शिलालेख लगवाये गये जिनपर राजा का संदेश उकेरा गया। अब हर संदेश को लिखना यहाँ संभव नहीं है। इसलिये कुछ मुख्य बातें दी जाती हैं।

धूल की समस्या से निजात पाने के लिये दो कदम उठाये जायेंगे। राजपरिवार, मंत्रियों और अधिकारियों को छोड़कर किसी को भी रथ से घूमने की अनुमति नहीं होगी। राजधानी की सड़कों पर सुबह शाम मशक द्वारा पानी का छिड़काव किया जायेगा।

स्मॉग से बूढ़ों और बच्चों की सेहत को अधिक खतरा रहता है। इसलिये सारे विद्यालय अनिश्चित काल के लिये बंद किये जाते हैं। बूढ़ों के लिये सुबह और शाम की सैर पर पाबंदी लगाई जाती है। यदि कोई भी बुजुर्ग सुबह या शाम को सैर करते दिख जायेगा तो उसे सौ कोड़े लगाये जायेंगे।

आग बुझाने के लिये पानी की बहुत बड़ी मात्रा में आवश्यकता पड़ेगी। इसलिये हर गली और मुहल्ले में कुएं खुदवाये जाएंगे। इसके लिये सीलबंद टेंडर आमंत्रित किये जाते हैं। जो सबसे सस्ते रेट में कुँआ खोदने का टेंडर देगा उसे ही इसका करार मिलेगा।

इस सूचना के बाद राज्य में यदि सबसे खुश कोई हुआ तो वे थे स्कूल जाने वाले बच्चे। उन्हें बिन मांगे लंबी छुट्टी जो मिल गई थी। हाँ शिक्षकगण खुश नहीं थे क्योंकि उन्हें जनगणना के काम पर लगा दिया गया था।

बूढ़े लोग इसलिये दुखी थे कि अब सारा दिन घर में बैठकर बहु बेटियों के ताने सुनने पड़ते थे।

राज्य के कुछ नामी गिरामी व्यवसायियों को कुएं खोदने का टेंडर मिल गया था। ये वही लोग थे जिन्हें हर काम के लिये टेंडर किसी न किसी तरीके से मिल ही जाता था।

अब पूरे राज्य मे मजदूर काम पर लगे हुए हैं। सारे के सारे एक ही काम कर रहे हैं और वह है कुआँ खोदना। खुदाई की जगह पर बच्चों की भीड़ है। वे तो बस अपना कौतूहल मिटाने को वहाँ खड़े हैं।

एक बार फिर से अजबपुर में जिंदगी अपनी पटरी पर आ चुकी है। जंगल की आग अपने आप बुझ चुकी है क्योंकि अधिकतर पे‌ड़ झुलस चुके हैं। कुआँ खोदने का काम अभी भी जारी है। हो सकता है अगले वर्ष की आग में ये काम आयेंगे। 

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