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Wednesday, October 18, 2017

चमत्कारी राजा

किसी समय की बात है। भारत का कीर्तिमान विश्व के पटल पर किसी ध्वज की तरह लहराया करता था। इस महान देश में दूध दही की नदियाँ बहती थीं। पावन गंगा के जल से सिंचित भूमि से अन्न धन के रूप में सोने की उपज होती थी। उसी काल में इस देश पर एक महान और गौरवशाली राजा राज करता था। अपनी कीर्ति गाथाओं के अनुरूप उस राजा ने पहले तो महाराज की उपाधि धारण कर ली थी। उसके बाद वह महाराजाधिराज बन गया। कालांतर में अश्वमेध यज्ञ में विजयी होकर वह एक चक्रवर्ती सम्राट बन गया।

चक्रवर्ती सम्राट बनने के बाद राजा के मन में बस एक ही इच्छा शेष रह गई थी। वह हर वह शक्ति हासिल करना चाहता था जिससे वह यहाँ की प्रजा को हर वह खुशी प्रदान कर सके जिसके बारे में आज तक किसी भी राजा ने सोचा भी नहीं था। ऐसा करने की धुन में राजा ने एक हजार वर्षों तक घने वन में जाकर घनघोर तपस्या की। उसकी कठिन तपस्या से भगवान प्रसन्न हो गये और उसके सामने प्रकट हो गये।

भगवान ने राजा से कहा, “हे राजन, तुम्हारे जैसे महान राजा की तपस्या से मैं प्रसन्न हुआ। माँगो क्या वर माँगते हो।“

राजा ने कहा, “भगवान की चरणों में मेरा सादर प्रणाम। मैं ऐसी शक्ति चाहता हूँ जिससे मैं पूरी प्रजा को इमानदार बना दूँ। उस शक्ति से हर उस गरीब को मदद पहुँचे जो उसका असली हकदार है। वणिकों के मन में बेईमानी करने से पहले उस शक्ति का डर समा जाये। कोई भी व्यक्ति कर की चोरी ना कर सके। छोटे से छोटे अपराध का चुटकी में पता चल जाये। हे भगवान, यदि आप मेरी तपस्या से और प्रजा के लिए किये गये कार्यों से प्रसन्न हैं तो कृपया मुझे ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए।“

भगवान मंद मंद मुसकाए और कहा, “तथास्तु, इसके लिए मैं तुम्हें ऐसी युक्ति बताता हूँ जो एक अचूक दवा की तरह काम करेगी। इस युक्ति का प्रयोग अभी प्रयोगात्मक रूप में कुछ देशों में हो रहा है। लेकिन भारतवर्ष जैसे महान देश में तुम पहले राजा बनोगे जिसके पास यह युक्ति होगी।“

चक्रवर्ती सम्राट अधीर होने लगा, “भगवन, कृपया कर के शीघ्र उस युक्ति के बारे में बताएँ।“

भगवान ने कहा, “हे राजन, इस युक्ति का नाम है विश्वाधार कार्ड। संक्षेप में तुम इसे आधार कार्ड भी कह सकते हो। इसके लिए सबसे पहले तो तुम्हें सात समुंदर पार के देशों से कंप्यूटर नाम का एक बेशकीमती यंत्र मंगवाना होगा। उसके बाद प्रजा के हर व्यक्ति का एक आधार कार्ड बनवाना होगा। एक आधार कार्ड अपने आप मे अनोखा होगा जिसपर उस व्यक्ति की अंगुलियों के निशान और आँखों की पुतलियों के निशान होंगे। इससे किसी भी व्यक्ति की पहचान आसानी से की जा सकेगी। बिना आधार कार्ड दिखाए प्रजा के किसी भी व्यक्ति को कोई भी कार्य करने की अनुमति नहीं होगी। इससे सभी आर्थिक क्रियाओं का लेखा जोखा रखना आसान हो जायेगा। इससे किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के पीछे गुप्तचर छोड़ने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी। जो यंत्र महाभारत काल में संजय के पास था उससे भी परिष्कृत यंत्र तुम्हारे मंत्रियों और अधिकारियों के पास होगा। उस यंत्र से तुम हर गतिविधि पर नजर और नियंत्रण रख पाओगे। फिर अगले हजार वर्षों तक राज करने से तुम्हें कोई भी नहीं रोक पायेगा।“

इतना कहने के बाद भगवान अंतर्धान हो गये। राजा वन से अपने राजमहल को लौट गया। फिर उसने द्रुतगामी पुष्पक विमानों से अपने दूतों को सात समुंदर पास के देशों में भेजा ताकि कंप्यूटर नामक परिष्कृत यंत्र को लाया जा सके। उसके बाद राज्य में मुनादी करवा दी गई कि हर व्यक्ति को आधार कार्ड बनवाना पड़ेगा। बिना आधार कार्ड के कोई भी व्यक्ति कुछ भी नहीं कर पायेगा।
छ: मास बीतते बीतते लगभग हर व्यक्ति का आधार कार्ड बन गया। उसे एक विशिष्ट विधि से बनाये गये ताम्रपत्र पर बनाया गया था। उस ताम्रपत्र पर व्यक्ति का चित्र, उसकी अंगुलियों के निशान, पुतलियों के चित्र उकेरे गये थे। इसके अलावा उस कार्ड पर एक क्रमांक लिखा गया था जिसके बारे में बताया गया कि हर व्यक्ति का क्रमांक अपने आप में अनूठा है।

आधार कार्ड बनने से ऐसा लगने लगा की जीवन कितना आसान हो गया था। किसी को सोमरस खरीदना होता था तो दुकान के सामने आधार कार्ड हिलाता और जैसे जादू हो जाता था। सोमरस का गागर एक आकर्षक पैकिंग में उस व्यक्ति के पास स्वयं पहुँच जाता था। किसी को यदि कोई मिस्ठान्न खाना होता तो हलवाई की दुकान के सामने आधार कार्ड हवा में लहराता और मिठाई स्वयं उस व्यक्ति के मुँह में प्रवेश कर जाती। किसी को शौचालय जाना होता तो आधार कार्ड लहराते ही शौचालय का दरवाजा स्वत: खुल जाता था। यदि कोई कहीं खुले में शौच करने बैठता तो आधार कार्ड से एक विकिरण निकलती और उसका शौच उतरना बंद हो जाता था। अब पंडित शादी करवाने के लिए जन्मकुंडली के स्थान पर आधार कार्ड का मिलान करने लगे थे। नये शिशु के जन्म लेते ही कर्मचारी आकर उसका आधार कार्ड बनवा देते थे। आधार कार्ड के कारण राशन पानी भी आसानी से मिलने लगा था।

अब राजा ठहरा एक आदर्श राजा। इसलिए उसने अपने परिवार के लोगों और मंत्रीमंडल के लोगों के भी आधार कार्ड बनवा दिये। राजमहल में एक खास सुविधा प्रदान की गई। ऐसा इसलिए किया गया कि विशिष्ट व्यक्तियों के समय की बचत हो सके और उसे व्यर्थ कार्यों में गंवाना ना पड़े। किसी मंत्री को जब भूख लगती तो उसे केवल इतना करना होता था कि आधार कार्ड को हवा में लहराना होता था। एक स्वचालित मशीन उसके सामने प्रकट होती थी और उसके मुँह में निवाला डालने लगती थी। इससे वह खाते समय भी अधिक जिम्मेदारी वाले कार्य कर सकता था। जब किसी मंत्री को शौच करना होता था तो आधार कार्ड को हवा में लहराते ही उसके नितंबों के नीचे शौच करने वाली आलीशान कुर्सी लग जाती थी। जब तक वह जरूरी कागजात पर हस्ताक्षर कर रहा होता था तब तक नीचे की मशीन सारी गंदगी स्वत: साफ कर देती थी।

राजा ने एक खास शैली में बनवाये हुए भवन में सब कार्यों पर नजर रखने के लिए कंप्यूटरों का जाल बिछा दिया था। उन मशीनों को चलाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित कर्मचारी और अधिकारी दिन रात काम पर लगे रहते थे।

अब केवल एक ही काम बिना आधार कार्ड के हो पाता था और वह था साँस लेना और शरीर के अंदर की जैविक क्रियाओं का संचालन।

एक बार कुछ ऐसा संयोग बना कि राजा की पुत्री; जो कि उस राज्य की इकलौती राजकुमारी भी थी; अपनी सहेलियों के साथ नदी में क्रीड़ा विहार करने गई। जब राजकुमारी का रथ नदी के तट पर पहुँचा तो दास दासियों की सहायता से राजकुमारी रथ से उतरी। उसने अपना आधार कार्ड हवा में लहराया और नदी के तट पर एक सीढ़ीनुमा रचना अवतरित हो गई। इन सीढ़ियों से उतरकर राजकुमारी सीधा नाव पर सवार हो गई। उस नाव पर राजकुमारी की कुछ सहेलियों को भी स्थान दिया गया। अन्य नावों पर संगीतकार अपने गाजे बाजे के साथ बैठ गये। उसके बाद क्रीड़ा विहार का कभी न रुकने वाला सिलसिला शुरु हुआ। गर्मी की तपिश से बचने के लिए राजकुमारी ने तैराकी और गोताखोरी का आनंद भी लिया।

क्रीड़ा विहार का आनंद लेने के बाद राजकुमारी जब वापस राजमहल पहुँची तो उसके होश उड़ गये। उसकी कमरघनी में से सदैव लटकने वाला आधार कार्ड का कहीं अता पता नहीं था। राजकुमारी ने याद किया कि तैराकी के लिये जल में कूदते समय तो आधार कार्ड उसकी कमरघनी में ही बंधा हुआ था। लगता था कि गोताखोरी के समय किसी जलीय जीव ने उसके आधार कार्ड को अपना ग्रास बना लिया था।

अब राजकुमारी कुछ भी नहीं कर सकती थी। वह न तो भोजन कर सकती थी ना ही जल ग्रहन कर सकती थी। यह समाचार सुनकर राजा चिंता की मुद्रा में आ गया। राजा ने अपनी थाली में राजकुमारी को भोजन कराना चाहा लेकिन आधार कार्ड की अनुपस्थिति में राजकुमारी का मुँह ही नहीं खुल पा रहा था जिससे भोजन प्रवेश कर सके।

राजा ने अपने दक्ष कंप्यूटरबाजों को आदेश दिया कि राजकुमारी के लिए डुप्लिकेट आधार बना दिया जाये। पता चला कि उस प्रक्रिया में कम से कम सात दिनों का वक्त लगने वाला था। फिर राजा ने आदेश दिया कि कंप्यूटर में कुछ छेड़छाड़ कर दिया जाये ताकि डुप्लिकेट आधार कार्ड बनने तक किसी तरह से राजकुमारी की दिनचर्या सामान्य रखी जा सके। पूरे आर्यावर्त के एक से एक कंप्यूटरबाजों ने अपना दिमाग लगाया लेकिन कोई कुछ न कर सका।


अब राजा की स्थिति किसी विक्षिप्त व्यक्ति की तरह हो गई थी। सुकुमार राजकुमारी भोजन न मिलने के का दर्द झेल नहीं पाई। एक सप्ताह बीतने से पहले ही वह स्वर्ग सिधार गई। राजा ने घोषणा कर दी कि वह अपना राजपाट छोड़कर वान्यप्रस्थ को चला जायेगा। ऊपर से देखने पर लगता था कि प्रजा का हर व्यक्ति उस महान राजा के सन्यास की घोषणा से बहुत दुखी था। लेकिन तह में जाकर पता चलता था हर व्यक्ति इस बात के लिए प्रसन्न था कि अब भोजन करने जैसी नैसर्गिक गतिविधि के लिए जादुई मशीनों का आसरा नहीं रह जायेगा। 

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