अर्जुन का अज्ञातवास शुरु
हो चुका था। उसके अज्ञातवास का यह पहला महीना था। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि
अचानक दुर्योधन की सलाह पर धृतराष्ट्र ने ऐसा आदेश निकाल दिया कि अर्जुन के पसीने
छूट गये। दुर्योधन और शकुनि की सलाह पर आदेश निकाला गया कि बाजार में उपलब्ध सभी
सिक्कों को गैरकानूनी करार दे दिया जाये। उसके बदले में नए सिक्कों को जारी किया
जायेगा। ऐसा बताया गया कि पुराने सिक्कों पर धृतराष्ट्र को अधिक बूढ़ा दिखाया गया
था जो राजा की छवि के लिए ठीक नहीं था। नये सिक्कों पर राजा की जवानी की तस्वीर
होगी। लेकिन वास्तविकता इससे अलग थी। सिक्कों को इसलिए बंद करवाया गया ताकि अर्जुन
समेत अन्य पांडव अपनी जरूरत की कोई भी चीज खरीद न सकें। इससे या तो वे भूख से
बिलबिला कर मर जाते या फिर जिंदा रहने के लिए उन्हें अपना अज्ञातवास तोड़ना पड़ता।
दोनों ही हालत में दुर्योधन की जीत होती। उसके रास्ते का काँटा निकल जाता और फिर
वह संपूर्ण आर्यावर्त पर चिर काल के लिए राज करता।
बेचारा अर्जुन बहुत परेशान
था। अब उसे ही कोई न कोई उपाय ढ़ूँढ़ना था। युधिष्ठिर तो सबसे बड़े भाई होने के कारण
कुछ भी नहीं करता था और सारा काम अर्जुन से ही करवाता था। यहाँ तक कि अपनी शादी के
लिए भी उन्होंने अर्जुन से ही स्वयंवर जीतने के कार्य को मूर्तरूप दिया था। भीम को
अपना विशाल पेट भरने से फुरसत ही नहीं मिलती थी। फिर कोई पेट भर कर खाना खाने के
बाद काम कैसे कर सकता है। खाना को पचाने में भी ऊर्जा लगती है। नकुल और सहदेव अपने
आप को बालक ही समझते थे इसलिए हमेशा अर्जुन की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखा
करते थे। कुंती और दौपदी तो ठहरीं अबला नारी इसलिए उनसे कोई उम्मीद करना ही बेकार
था।
अर्जुन हिंदी फिल्मों का
बहुत बड़ा फैन था। वर्षों तक हिंदी फिल्म देखकर उसने एक बात सीखी थी। जब भी कोई बड़ी
मुसीबत आ जाये तो फिर भगवान को याद करो और गाने लगो, “ओ पालन हारे, निर्गुण और न्यारे, तुम बिन हमरा कोई नहीं।“
हिंदी फिल्मों के इस अनमोल सीख का अनुसरण करते हुए अर्जुन
ने भगवान कृष्ण को याद किया। कृष्ण फौरन अर्जुन के सामने प्रकट हो गये और पूछा, “हे
पार्थ, आज तुम बड़ी ही कातर मुद्रा में मेरे नाम के भजन गा
रहे हो। बताओ क्या कष्ट है?”
अर्जुन ने जब कृष्ण को साक्षात अपने सम्मुख देखा तो उनकी
आँखों से भक्तिरस की अश्रुधारा बहने लगी। अर्जुन ने कहा, “हे
माधव, मैं बहुत दुखी फील कर रहा हूँ। आज के पहले इतना दुखी
मैं कभी नहीं हुआ था। अपने वनवास काल में मैने अनेक बुरे दिनों का सामना किया;
इस उम्मीद में कि अच्छे दिन कभी तो आएँगे। मैने दुर्गम वनों को पार
किया और कई पहाड़ों और घाटियों को लांघ कर कितने ही दिव्यास्त्र प्राप्त किये।
लेकिन अब वे सारे दिव्यास्त्र मेरे लिए व्यर्थ साबित हो रहे हैं। उस बूढ़े राजा ने
ऐसा आदेश जारी कर दिया कि मैं और मेरा परिवार दाने दाने को मोहताज हो गया है। आजकल
तो आपका दिया हुआ अक्षय पात्र भी आर्यावर्त के एटीएम मशीन की तरह बर्ताव कर रहा
है। उसमें पासवर्ड डालने पर कुछ भी नहीं निकलता, केवल ब्लैंक
स्क्रीन दिखती है। जब मुँह में अन्न का दाना ही नहीं जायेगा तो हम इन
दिव्यास्त्रों को तो नहीं खा सकते। अब तो आखिरी उम्मीद भी खतम हो रही है क्योंकि
पास के गाँव के वनिक पुत्र ने उधार देने से मना कर दिया है। हे माधव, अब आप ही कोई मार्ग बताएँ।“
भगवान कृष्ण ने अर्जुन की ओर देखकर एक ठंडी सांस ली और कहा, “हे
पार्थ, मैं तुम्हारा दर्द समझ सकता हूँ; क्योंकि आजकल पैसों की तंगी मैं भी झेल रहा हूँ। हम देवताओं के लिए देवलोक
में जो एटीएम लगा है वह चौबीस घंटे काम करता है। लेकिन उन मशीनों में भी दो हजार
मुद्राओं की ही लिमिट है। अब मेरे जैसे देवता के लिए इतनी कम मुद्रा काफी नहीं
होती। मेरे खर्चे भी तो बहुत हैं। गोपियों के साथ रासलीला रचानी होती है। सोलह
हजार पटरानियों के साथ उनकी दासियों का भी खयाल रखना होता है। फिर ग्वाल बाल के
लिए मक्खन की अनवरत सप्लाई भी मेंटेन करनी होती है। मैं तो दुखी हो गया हूँ।“
अर्जुन ने बीच में टोकते हुए कहा, “हे
माधव, आप से ऐसे उत्तर की उम्मीद न थी। आपकी बातों से तो
लगता है कि मुझे अपने परिवार के साथ शीघ्र ही जल समाधि लेनी पड़ेगी।“
कृष्ण ने कहा, “नहीं पार्थ, इतनी
जल्दी धीरज नहीं खोते। कहते हैं कि हर काली रात के बाद भोर जरूर आती है। हर काली
सुरंग के बाद रोशनी अवश्य दिखाई देती है। अब इसके लिए मैं जो उपाय बताता हूँ उसे
ध्यानपूर्वक सुनो।“
अर्जुन ने अपनी आँखे और कान खोलकर कृष्ण की ओर देखा और कहा, “बताएँ
माधव, क्या आदेश है?”
कृष्ण ने कहा, “यहाँ से लगभग एक हजार योजन पर एक एटीएम
मशीन लगा है। स्वयं विश्वकर्मा ने उस मशीन को बनाया है इसलिए वह बड़ी कुशलता से
कार्य करता है। उस मशीन के कनेक्शन सीधे भगवान कुबेर के बैंक से हैं इसलिए उसमे
स्वर्ण मुद्राओं की कभी कमी नहीं होती है। तुम कल प्रात:काल अपने ईष्ट देवों का
स्मरण करके, शौचादि से निवृत होकर पूर्व दिशा की ओर दंड
प्रणाम करते हुए चलते जाना।“
अर्जुन ने बीच में टोका, “लेकिन माधव, मैं उस स्थान को पहचानूँगा कैसे?”
कृष्ण ने कहा, “उसे पहचानना मुश्किल नहीं है। जब वह मशीन
तुमसे कोई सौ योजन की दूरी पर होगा वहीं से तुम्हें मनुष्यों की लंबी लाइन दिख
जायेगी। वहाँ पर राजा के सैनिक भी तैनात हैं। राजा को डर है कि कहीं लोगों में
फैले रोष से हिंसा न भड़क जाये।“
अर्जुन ने कहा, “लेकिन वहाँ पर के लोगों या सैनिकों ने
मुझे पहचान लिया तो मेरा अज्ञातवास टूट जायेगा।“
कृष्ण ने कहा, “मेरे पास इसका भी उपाय है। तुम वृहन्नला
के गेटअप में जाओगे तो तुम्हें कोई नहीं पहचानेगा। महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग
अलग लाइन लगती है। किन्नरों की लाइन अलग से है, जिसमें एकाध
किन्नर ही होते हैं, इसलिए तुम्हारा काम आसानी से हो
जायेगा।“
कृष्ण ने आगे कहा, “वहाँ पहुँचकर कुबेर तुष्टिकरण मंत्र का एक
लाख बार जप करना जिससे कुबेर तुमसे प्रसन्न हो जाएँगे। उस मंत्र के प्रभाव से वहाँ
पर खड़े सभी नर नारी थोड़ी देर के लिए मूर्छित हो जाएँगे। उस बीच तुम दो हजार स्वर्ण
मुद्राएँ निकाल लेना।“
कृष्ण की ऐसी वाणी सुनकर अर्जुन का हृदय भक्तिरस से विह्वल हो
गया। उसकी आँखों से अश्रुधारा ऐसे बहने लगी जैसे किसी बरसाती नदी का बाँध टूट गया हो।
तभी भगवान कृष्ण वहाँ से अंतर्धान हो गये। उसके बाद अर्जुन अपना मेकअप किट लेकर वृहन्नला
की भाँति साज श्रृंगार करने में तल्लीन हो गया।