हर पुरुष कभी न कभी बैचलर की
तरह जिंदगी जीता है। इनमे से कुछ लोग तो चिर कुँवारे होते हैं और कुछ फोर्स्ड बैचलर
भी होते हैं। मैं भी कभी बैचलर था। उस जमाने में सबसे ज्यादा परेशानी होती थी किराये
का मकान लेने में। मकान मालिक ऐसी निगाह से देखता था जैसे मैं उसकी बिटिया को भगा के
ले जाउँगा। ज्यादातर केस में मार्केट रेट से अधिक किराया देकर मकान लेना पड़ता था। एक
बार मैं एक मकान मालिक से किराये की बात कर रहा था। मैने उससे पूछा, “अंकल, आपको बैचलर को किराया देने में कोई परेशानी तो नहीं है?”
उसने जवाब दिया, “बेटा मुझे कोई परेशानी नहीं है। शराफत से रहोगे
तो रहने दिये जाओगे नहीं तो मुहल्ले वाले जमकर धुनाई करेंगे और भगा देंगे।“
खैर लगभग दस सालों तक बैचलर की तरह रहने में ऐसी नौबत कभी नहीं
आई कि मुहल्ले वालों को कोई मेहनत करनी पड़े। शादी होने के कुछ दिनों बाद मैं दिल्ली
आ गया। मैं जिस बिल्डिंग में रहता था उसमे कोई भी बैचलर नहीं रहता था। मतलब यदि कोई
कुँवारा लड़का रहता भी था तो अपने माँ बाप के साथ। सबकुछ ठीक ठाक चल रहा था कि हमारी
एक पड़ोसन अपने पति के साथ ऑस्ट्रेलिया चली गईं। उनका बेटा ऑस्ट्रेलिया में रहता है।
बीच में मकान की देखभाल के लिए उन्होंने अपने किसी रिश्तेदार के लड़के को अपने मकान
में रहने के लिए छोड़ दिया। वह लड़का मेरी पड़ोसन की ही तरह किसी रईस घराने का लगता था।
एक दो दिन बाद ही उसने ऐसे ऐसे कारनामे करने शुरु किये कि बिल्डिंग के लोगों के होश
उड़ गये। बेसमेंट की पार्किंग के बाहर दो तीन बड़ी बड़ी गाड़ियाँ खड़ी हो जाती थीं जिससे
अन्य लोगों को गाड़ी निकालने में काफी परेशानी होती थी। घंटों बेल बजाने के बाद ही वह
अपने कमरे से निकलता था; वो भी अर्धनग्न अवस्था में। ऐसा लगता था कि
उस पर हर समय ड्रग्स का नशा छाया होता था। अंदर से कई लड़के लड़कियों की शरारती हँसी
भी सुनाई देती थी। यह सब लगभग छ: महीने चला। जब पड़ोसन वापस लौटकर आईं तो बिल्डिंग वालों
ने उनसे जमकर शिकायत की। उन्होंने सबसे माफी मांगी। उसके बाद वह जब भी ऑस्ट्रेलिया
जाती थीं तो बाहर ताला ही लटका मिलता था।
अभी हाल ही में मैंने एनसीआर के एक गेटेड सोसाइटी में शिफ्ट
किया है। यहाँ जगह जगह बोर्ड लगा हुआ है कि बैचलर किरायेदार मना हैं। यहाँ पहले से
रह रहे लोगों से पता चला कि पहले यहाँ काफी बैचलर किरायेदार रहते थे। आस पास कई इंजीनियरिंग
और मैनेजमेंट कॉलेज होने की वजह से किराये पर रहने वाले लड़के लड़कियों की कमी नहीं थी।
लेकिन जितने भी वैसे किरायेदार आये सबने अन्य लोगों का जीना दुश्वार कर दिया था। लोग
बताते हैं कि रात रात भर तेज म्यूजिक बजता था। लिफ्ट और कॉरिडोर में बीयर और शराब की
खाली बोतलें फेंकी हुई मिलती थी। पार्क में तो लड़के लड़कियों ने माहौल इतना खराब कर
दिया था कि सोसाइटी के अन्य लोगों ने पार्क में जाने से तौबा कर ली थी।
यहाँ आने के बाद अखबारों में मैंने ऐसे कई आर्टिकल पढ़े हैं जिसमें
बैचलर किरायेदार को मना करने की परिपाटी को रेसिज्म के तौर पर बताया गया है। वैसे आर्टिकल
शायद एक खास उम्र के लोग लिखते होंगे और उसी उम्र के लोग पढ़ते होंगे।
जब मैं बैचलर था तो मुझे भी तकलीफ होती थी जब कोई मुझे किराये
पर मकान देने से मना करता था। अब जब मेरा अपना परिवार है तो मुझे किसी भी बैचलर पड़ोसी
से तकलीफ होती है। ये और बात है कि मुझे कभी भी किसी मकान मालिक ने बैचलर होने के कारण
धक्के मारकर बाहर नहीं निकाला। ऐसा शायद इसलिए संभव हुआ कि मैने मुहल्ले के अन्य लोगों
के जीवन में कोई खलल नही डाला।
अमेरिका में अब तक 44 राष्ट्रपति हुए हैं और अब पैंतालीसवाँ
चुनकर आया है। सबसे कमाल की बात है कि इनमे से कोई भी बैचलर नहीं था। लेकिन भारत कुछ
मामलों में अधिक प्रगतिशील है। इसलिए यहाँ बैचलर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री भी चुने
जाते हैं। अमेरिकी लोगों की मान्यता है कि जो आदमी अपना परिवार नहीं संभाल सकता है
वह देश कैसे संभालेगा। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री भी इस बात को साबित करते हैं। उन्हें
पता ही नहीं है कि एक आम आदमी परिवार कैसे चलाता है। उन्हें पता ही नहीं है कि दो हजार
या चार हजार रुपए में आज की महंगाई में कोई एक सप्ताह भी गुजारा नहीं कर सकता है। बैंकों
के बाहर अपने पैसे लेने के लिए लोगों की जो लंबी कतार है उस कतार में शायद ही कोई घोटालेबाज
अपने 4000 रुपए बदलवाने आया होगा। उनमें से कितनों के घरों में चूल्हा नहीं जला होगा।
कितने लोग पुलिस की लाठियों से घायल हो चुके हैं। कितने लोग डिप्रेशन का शिकार हो गये
हैं। कई लोग तो मर भी चुके हैं। उस लाइन में शादीशुदा भी हैं और बैचलर भी। वे लाइन
में इसलिए लगे हैं ताकि वे अपनी मूलभूत आवश्यकता को पूरा करने के लिए पैसे ले सकें।
हो सकता है कि भारत के लोगों को थोड़ी अकल आ जाये और वे भविष्य में किसी बैचलर किरायेदार
को प्रधानमंत्री निवास में रहने से रोकें।
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