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Saturday, December 30, 2017

चाय पार्टी

“क्या हुआ? सुबह से इतना ठुनक क्यों रही है? तबीयत तो ठीक है इसकी?” श्याम ने आवाज लगाई।
किचन से राधा की आवाज आई, “अरे कुछ नहीं, कहती है बोर हो रही है। पार्क में खेलने जाना है।“
श्याम ने हँसते हुए कहा, “कमाल है, हमारे जमाने में तो बच्चे स्कूल बंद होने पर खुश हुआ करते थे। अब इसे देख लो, आज छुट्टी का पहला दिन है और आज से ही बोर हो रही है। अरे तुम्हारे लिये ही तो कार्टून चैनल का स्पेशल पैक ऐक्टिवेट करवाया है।“

तबतक किचन से नाश्ता लेकर राधा ड्राइंग रूम में आ चुकी थी। श्याम के सामने नाश्ते की प्लेट रखते हुए बोली, “हमारे जमाने में तो हम मुहल्ले में खेलने निकल जाते थे। पूरे दिन धमाचौकड़ी करते थे। अब जमाना खराब हो गया है। अब भला कोई अपने बच्चे को अकेले घर से बाहर निकलने दे तब न। ऐसा करो, परी को पार्क में ले जाओ। वहाँ खेलेगी तो मन लगेगा इसका।“

श्याम ने झटके में गरमागरम पोहे का एक बड़ा चम्मच अपने मुँह में डाल लिया। श्याम के चेहरे पर अजीबोगरीब भाव आ जा रहे थे। लगता था पोहा कुछ ज्यादा ही गर्म था। थोड़ा दम भरने के बाद श्याम के मुँह से आवाज निकली, “बड़ी मुश्किल से तो एक इतवार मिलता है, जब मैं चैन से अखबार पढ़ता हूँ।“

राधा ने कहा, “पार्क में अखबार पढ़ने पर किसी ने बैन नहीं लगा रखा है। धूप भी अच्छी निकली है। तुमलोग आगे बढ़ो, मैं बाकी काम निबटाकर आ जाउंगी।“

श्याम ने झटपट अपनी प्लेट में से पोहे को साफ कर दिया और फिर बोला, “ऐसा करो, परी को तैयार कर दो। टिंकू के दोनों बच्चों को भी ले लेता हूँ। तीन बच्चे रहेंगे तो इन्हें भी मजा आयेगा। आखिर पास पड़ोस में रिश्तेदार के रहने का कुछ फायदा तो मिलना चाहिए। उसे भी लगेगा कि जीजाजी के बगल में मकान लेकर सही काम किया।“

राधा ने कहा, “हाँ पड़ोस में रहने से तो जैसे केवल साले को फायदा होता है। जीजाजी का जनम तो बस परोपकार और लोक कल्याण के उद्देश्य से हुआ है।“

हल्की फुल्की झड़प किसी बड़े हादसे में न तब्दील हो जाये, इसकी आशंका होते ही श्याम अपनी बेटी परी को लेकर घर से बाहर निकल गया और सीधा लिफ्ट के सामने खड़ा हो गया। जीरो से पच्चीसवें तले तक आने में लिफ्ट को समय तो लगता ही है। आज कुछ ज्यादा ही समय लग रहा था। लिफ्ट की बटन के साथ लगे डिस्प्ले से पता चल रहा था कि लिफ्ट किसी सुपरफास्ट ट्रेन की तरह न आकर किसी मरी हुई पैसेंजर ट्रेन की तरह हर स्टेशन पर रुकते हुए आ रही थी। इस बीच श्याम को अपनी पीठ पर राधा की चुभती हुई नजर महसूस हो रही थी। आखिरकार, एक लम्बे इंतजार के बाद लिफ्ट का दरवाजा खुला और श्याम उसके अंदर चला गया। लिफ्ट का दरवाजा बंद होते ही श्याम ने चैन की सांस ली। परी ने उछलकर सात नंबर वाला बटन दबा दिया। 

सातवें तले पर श्याम लिफ्ट से बाहर निकल गया। श्याम का साला 705 नंबर फ्लैट में रहता था। परी ने उछलकर कॉल बेल का बटन दबाया। अंदर से ओम जय जगदीश हरेका मधुर संगीत गूँजने लगा। अंदर से लकड़ी वाला दरवाजा खुला तो तार की जाली वाले दरवाजे से तीन तीन लोगों का आकार नजर आने लगा। सबसे पीछे सबसे लम्बी आकृति थी वह टिंकू की थी। उसके आगे दो छोटी छोटी आकृतियाँ थीं वे उसके दोनों बच्चों विवान और आन्वी की थी। अंदर की तुलना में बाहर अधिक रोशनी की वजह से विवान और आन्वी को साफ दिख रहा था कि कौन आया है। वे दोनों अंदर से ही उछल उछलकर जोर जोर से बोलने लगे, “फूफाजी आये, फूफाजी आये।“

थोड़ी देर में श्याम, परी, टिंकू, विवान और आन्वी पार्क में पहुँच गये। उस हाउसिंग सोसाइटी की लगभग दो हजार की आबादी के हिसाब से यह पार्क छोटा ही था। लेकिन शहरों के तंग मुहल्लों की तुलना में यहाँ पर उस साफ सुथरे पार्क की मौजूदगी किसी वरदान से कम नहीं थी। पार्क में पहुँचते ही तीनों बच्चों ने आपस में रेस लगा ली। श्याम और टिंकू एक बेंच पर बैठ गये और देश और दुनिया की बड़ी-बड़ी समस्याओं पर अपना ज्ञान बघारने लगे। दोनों में एक तरह से होड़ लगी थी कि उनमें से कौन प्रधानमंत्री के उस पद के लिये अधिक लायक है जिसकी वैकेंसी अगले साल आने वाली थी। एकाध घंटे के बाद राधा भी आ गई। उसके साथ टिंकू की बीबी मिली भी थी। दोनों महिलाओं ने अपने साथ एक एक कैसरोल और पानी की बोतलें भी लाईं थीं। उन्हें देखकर श्याम ने कहा, “वाह, क्या बात है। आप लोगों ने तो लंच का भी इंतजम कर दिया है। इसे कहते हैं एक परफेक्ट संडे।“

उसके जवाब में मिली ने कहा, “बिलकुल सही फरमाया जीजाजी। एक बात और बता दूँ। एक परफेक्ट संडे का परफेक्ट अंत तब माना जाता है जब एक आदमी अपनी बीबी को शाम में बाजार घुमाने ले जाता है।“

ऐसा सुनकर श्याम ने कुछ नहीं कहा। उसके मुँह पर एक फीकी सी मुसकान जरूर आ गई। बच्चों के खेलने कूदने, लंच शेयर करने और गुलाबी धूप में गप्पें मारने में समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। जाड़े का मौसम होने की वजह से जल्दी ही अंधेरा छाने लगा। श्याम और टिंकू अब अपने अपने परिवार के साथ अपने अपने घरों की ओर चल पड़े। आगे-आगे तीनों बच्चे उछल कूद मचाते हुए चल रहे थे। उनके पीछे श्याम और टिंकू थे। सबसे पीछे राधा और मिली कुछ सुस्त रफ्तार में चल रहीं थीं। यह कहना मुश्किल था कि उनकी सुस्त रफ्तार खाली हो चुके टिफिन के भार की वजह से थी या थोड़ा और गप्प मार लेने की अनबुझी चाहत के कारण थी।

जैसे ही वे लोग लिफ्ट के अंदर हुए तो विवान ने कहा, “फूफाजी, हमारे घर चलिये। मम्मी चाय बहुत अच्छी बनाती है।“

श्याम ने कहा, “नहीं बेटे, फिर कभी।“

विवान ने श्याम की बाँह पकड़ते हुए कहा, “नहीं, आज ही। चलिये न फूफाजी। मम्मी, फूफाजी से कहो न कि चाय पीने चलें।“

विवान की बात सुनकर सबलोग मुसकराने लगे। फिर सब लोग सातवीं मंजिल पर ही लिफ्ट से बाहर निकल गये। टिंकू के घर में सोफे पर विराजमान होने के बाद श्याम ने कहा, “एक बात तो तय है। दुनिया कितनी ही क्यों न बदल जाये, खून के रिश्ते में जो गहराई होती है वह किसी और रिश्ते में नहीं। अब विवान को देख लो। अभी इसकी उमर ही क्या हुई है। बस छ: साल का है। फिर भी इसे पता है कि फूफा के रिश्ते की क्या गरिमा होती है।“

श्याम के ऐसा कहने पर टिंकू ठठाकर हंस पड़ा। थोड़ी देर हँसने के बाद वह बोला, “अरे नहीं जीजाजी, इसे अपने फूफा से कोई लगाव नहीं है। बात ऐसी है कि शाम में इसे मिली होमवर्क करने के लिये बिठा लेती है। फिर दो घंटे तक पढ़ाती है। इसने तो पढ़ाई से बचने के लिये सोचा फूफा जी को चाय का निमंत्रण दे दो। उसी बहाने आज तो बच जायेगा।“


टिंकू के ऐसा कहने पर श्याम का चेहरा देखते बनता था। वहीं दूसरी ओर टिंकू, राधा और मिली ऐसे अट्टहास कर रहे थे कि धार्मिक सीरियल के राक्षस भी शरमा जाएँ। 

Thursday, November 9, 2017

आग लगे पर कुंआ खोदना

अजबपुर एक खुशहाल राज्य है, जहाँ चारों ओर खुशहाली है। लोग बाग सारी खुशहाली का श्रेय अजबपुर के महान राजा सूरजचंद्र को देते हैं। लोगों के पास और कोई उपाय भी नहीं है। यदि किसी ने गलती से अजबपुर की खुशहाली का श्रेय किसी अन्य को दिया तो फिर उसकी खैर नहीं। राजा के गुप्तचर तुरंत ऐसे व्यक्ति का पता लगा लेते हैं और फिर उस व्यक्ति को कम से कम सौ कोड़े लगाये जाते हैं। अजबपुर खूबसूरत पहाड़ी की तलहटी में बसा हुआ है और इसके चारों ओर घना जंगल है। पिछले दो तीन वर्षों से अजबपुर एक अजीब समस्या से जूझ रहा है। हर साल जब खरीफ के फसल की कटनी होती है तो खेतों में ठूंठ बच जाते हैं। उनसे छुटकारा पाने के लिये अजबपुर के किसान उन ठूंठों में आग लगा देते हैं। दो साल पहले वह आग जंगल तक फैल गई थी जिससे जंगल के पेड़ों को काफी नुकसान हुआ था। आग कोई एक सप्ताह तक जलती रही जिससे जंगली जानवरों को भी क्षति पहुँची थी। उस आग से जो धुँआ निकला था उसने पूरे अजबपुर पर घने कोहरे की चादर लाद दी थी। कोहरा घना तो था ही उससे सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था। काफी शोध करने के बाद राजगुरु ने बताया था कि पेड़ पौधों के जलने से वातावरण में जहरीली गैसें फैल गईं थीं इसलिये सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। जब जनता में त्राहिमाम मचा हुआ था तो राजा के आला मंत्रियों ने उस समस्या से निपटने के लिये बैठक शुरू की। जब तक बैठक समाप्त हुई तब तक कोहरा भी गायब हो चुका था। कुछ ही दिनों में लोग उस बात को किसी बुरे सपने की तरह भूल गये थे। कुछ दिनों के बाद राजा सूरजचंद्र ने मुनादी करवाई थी कि भविष्य में ऐसी आपदा की रोकथाम के लिये कठोर कदम उठाये जाएंगे। लेकिन धरातल पर कुछ होता दिखाई नहीं दिया।

पिछले दो वर्षों की तरह इस वर्ष भी खरीफ की कटाई हुई। किसानों ने बचे हुए ठूंठों में इस वर्ष भी आग लगा दी। इस वर्ष भी वह आग जंगल तक फैल गई। आग से जो धुँआ निकला तो फिर से अजबपुर के ऊपर कोहरा छाने लगा। इस साल जाड़ा जल्दी आ गया था इसलिये कोहरे से समस्या भी ज्यादा होने लगी। दोपहर के वक्त भी साफ साफ देखना मुश्किल हो रहा था। सुबह के समय तो बहुत ही बुरा हाल रहता था। प्रजा फिर से त्राहि त्राहि करने लगी।

राजगुरु ने फिर से शोध किया और जनता को जागरूक करने के लिये महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं। राजगुरु ने बताया कि इस साल तापमान कुछ ज्यादा ही गिर गया था इसलिए चारों ओर धुंध छाया हुआ था। जब किसी मंत्री ने यह बयान दे दिया कि वह कोहरा नहीं बल्कि स्मॉग था तो राजगुरु ने उसके खिलाफ तर्क देना शुरु किया। राजगुरु का कहना था कि स्मॉग बनने के लिये जिन जहरीली गैसों की जरूरत होती है वे गैसें केवल पादपों को जलाने से पैदा नहीं होती हैं। इसलिये स्मॉग का सवाल ही नहीं था। राजगुरु ने बताया कि अजबपुर में कृषि और व्यवसाय में अच्छी वृद्धि होने के कारण लोगबाग धनी हो गये थे। इसलिये अब अधिकांश लोगों के पास तेज चलने वाले रथ आ गये थे। जब लोगों के रथ राजधानी की सड़कों पर फर्राटे से दौड़ते थे तो उससे ढ़ेर सारी धूल उड़ती थी। उसी धूल के कारण कोहरा अधिक भयानक हो चुका था।

राजगुरु की सलाह पर राजा के मंत्रियों की बैठक शुरु हुई ताकि इस समस्या का हल ढ़ूँढ़ा जाये। इस बार कुछ चारणों ने राजा का गुणगान करने की बजाय राजकाज के तरीकों की आलोचना शुरु कर दी थी। उन चारणों को भी सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी। इसलिये राजा सूरजचंद्र पर दबाव बढ़ गया था। इस बार मंत्रियों की बैठक जल्दी ही समाप्त हो गई। राजा सूरजचंद्र ने मंत्रियों की मंत्रणा के आधार पर कुछ कठोर फैसले लेने का ऐलान कर दिया।

राजा ने अपने निर्णय के बारे में यह जरूरी समझा की जन जन तक उसका संदेश पहुँचाया जाये। इसलिये राज्य के हर शहर और गाँव में मुनादी करवाई गई। राजधानी और बड़े शहरों में शिलालेख लगवाये गये जिनपर राजा का संदेश उकेरा गया। अब हर संदेश को लिखना यहाँ संभव नहीं है। इसलिये कुछ मुख्य बातें दी जाती हैं।

धूल की समस्या से निजात पाने के लिये दो कदम उठाये जायेंगे। राजपरिवार, मंत्रियों और अधिकारियों को छोड़कर किसी को भी रथ से घूमने की अनुमति नहीं होगी। राजधानी की सड़कों पर सुबह शाम मशक द्वारा पानी का छिड़काव किया जायेगा।

स्मॉग से बूढ़ों और बच्चों की सेहत को अधिक खतरा रहता है। इसलिये सारे विद्यालय अनिश्चित काल के लिये बंद किये जाते हैं। बूढ़ों के लिये सुबह और शाम की सैर पर पाबंदी लगाई जाती है। यदि कोई भी बुजुर्ग सुबह या शाम को सैर करते दिख जायेगा तो उसे सौ कोड़े लगाये जायेंगे।

आग बुझाने के लिये पानी की बहुत बड़ी मात्रा में आवश्यकता पड़ेगी। इसलिये हर गली और मुहल्ले में कुएं खुदवाये जाएंगे। इसके लिये सीलबंद टेंडर आमंत्रित किये जाते हैं। जो सबसे सस्ते रेट में कुँआ खोदने का टेंडर देगा उसे ही इसका करार मिलेगा।

इस सूचना के बाद राज्य में यदि सबसे खुश कोई हुआ तो वे थे स्कूल जाने वाले बच्चे। उन्हें बिन मांगे लंबी छुट्टी जो मिल गई थी। हाँ शिक्षकगण खुश नहीं थे क्योंकि उन्हें जनगणना के काम पर लगा दिया गया था।

बूढ़े लोग इसलिये दुखी थे कि अब सारा दिन घर में बैठकर बहु बेटियों के ताने सुनने पड़ते थे।

राज्य के कुछ नामी गिरामी व्यवसायियों को कुएं खोदने का टेंडर मिल गया था। ये वही लोग थे जिन्हें हर काम के लिये टेंडर किसी न किसी तरीके से मिल ही जाता था।

अब पूरे राज्य मे मजदूर काम पर लगे हुए हैं। सारे के सारे एक ही काम कर रहे हैं और वह है कुआँ खोदना। खुदाई की जगह पर बच्चों की भीड़ है। वे तो बस अपना कौतूहल मिटाने को वहाँ खड़े हैं।

एक बार फिर से अजबपुर में जिंदगी अपनी पटरी पर आ चुकी है। जंगल की आग अपने आप बुझ चुकी है क्योंकि अधिकतर पे‌ड़ झुलस चुके हैं। कुआँ खोदने का काम अभी भी जारी है। हो सकता है अगले वर्ष की आग में ये काम आयेंगे। 

Monday, November 6, 2017

राजा की खिचड़ी

मंगरू नाली के किनारे बैठकर दातुन कर रहा था। दातुन को बीच से चीड़ कर जीभ साफ की और फिर पूरी ताकत से गरारा करने लगा। उसके बाद अपने फटे पुराने गमछे से मुँह पोछने के बाद उसने पूरी ताकत से दातून को हवा में उछाला तो दातून सीधा नाली के उस पार लगभग बीसेक गज जाकर गिरा। तभी मंगरू की धर्मपत्नी रतिया की आवाज आई, “नाश्ते में खिचड़ी बना दूँ?”

मंगरू खाने के मामले में नखरे नहीं करता था। वैसे भी उस जैसे गरीब के पास खाने के लिये नखरे करने का कोई विकल्प ही नहीं था। फिर भी उसे खिचड़ी का नाम सुनकर ही उबकाई आती थी। जब वह छोटा बच्चा था तो उसकी माँ अक्सर सुबह दोपहर और रात को खिचड़ी ही परोसा करती थी। शायद बचपन में खिचड़ी के ओवरडोज के कारण उसकी यह हालत हुई थी। मंगरू ने लगभग गुर्राती हुई आवाज में कहा, “तेरी जो मर्जी आये बना दे, लेकिन खिचड़ी न बना। बाजरे की रोटी और मिर्च की चटनी से भी काम चल जायेगा।“

मंगरू को कभी कभी लगता था कि उसकी पत्नी की जन्मकुंडली मंगरू की माँ से मिलवाई गई थी। रतिया को भी पता नहीं क्यों खिचड़ी बनाने में बड़ा मजा आता था। उनके आधा दर्जन बच्चे भी अपनी माँ के हाथ की बनी खिचड़ी को बड़े चाव के साथ सुपड़-सुपड़ कर चट कर जाते थे। मंगरू अपनी सोच में डूबा हुआ था कि उसकी पत्नी की तीखी आवाज गूँजी, “अब तो राजा ने भी मुनादी करवा दी है। अब खिचड़ी को राष्ट्रीय भोजन की उपाधि मिलेगी। उसके बाद हर व्यक्ति के लिये खिचड़ी खाना जरूरी हो जायेगा।“

मंगरू ने बुझी आवाज में जवाब दिया, “हाँ, लगता है राजा भी तुमसे और तुम्हारे बच्चों से प्रभावित हैं। ये भी सुना है कि आज विजय पथ के पास एक बड़े से कड़ाह में राजा का खास रसोइया प्रजा के लिये खिचड़ी पकायेगा। महाराज स्वयं आकर खिचड़ी में नमक डालेंगे। राजवैद्य ने उस खिचड़ी में डालने के लिये खास मसालों और जड़ी बूटियों की लम्बी फेहरिस्त भी बनाई है।“

रतिया ने खुश होते हुए कहा, “और हाँ, खिचड़ी पक जाने के बाद उसमें राजपुरोहित अपने कर कमलों से तड़का लगायेंगे। इस राज्य के हर नागरिक के लिये आदेश है कि वह खिचड़ी ग्रहण करने के लिये विजय पथ पर उपस्थित हो जाये। अब जल्दी से नहाधोकर तैयार हो जाओ। हमें भी तो वहाँ जाना होगा।“

मंगरू ने धीमे से कहा, “हाँ, जाना तो पड़ेगा ही। नहीं तो क्या पता राजा के सिपाही काल कोठरी में न डाल दें।“

आधे घंटे के बाद मंगरू, उसकी पत्नी रतिया और उनके आधा दर्जन बच्चे सज धजकर तैयार हो गये। मंगरू ने मलमल का कुर्ता पहना था जो बहुत दिनों तक टोकरी में रखे होने के कारण बहुत ही बेढ़ंगे तौर पर मुड़ा तुड़ा था। रतिया ने वो साड़ी पहनी थी जिसमें वह अपनी शादी के बाद विदा होकर आई थी। रतिया के तीन बेटों ने केवल हाफ पैंट पहनी थी, शर्ट उनके पास थी नहीं। उसकी तीन बेटियों ने वो फ्राक पहनी थी जो उन्हें तब मिली थीं जब गाँव का जमींदार पुराने कपड़े बाँट रहा था।

मंगरू और उसका परिवार दस बजते बजते विजय पथ पर पहुँच चुके थे। वहाँ का दृश्य अद्भुत था। लाखों की संख्या में लोग उपस्थित थे। जिधर निगाह डालो उधर आदमी ही आदमी। आज खेत खलिहानों में सूनापन पसरा हुआ था। विजयपथ पर हर तरफ रंग बिरंगी तिलिंगियाँ फड़फड़ा रही थीं। ऊँचे ऊँचे डंडों पर राजध्वज लहरा रहे थे। राजभवन के गीतकार और संगीतकार मोहक धुन और तान छेड़ रहे थे। पंडितों की टोली एक तरफ मंत्रोच्चारण कर रही थी। किशोरवय पंडित शंखनाद कर रहे थे। राजा का रथ किसी दुल्हन की भाँति सजा हुआ था। रथ में जो घोड़े जुते थे उन्हें भी गेंदे के फूलों से सजाया गया था। ढ़ोल नगाड़े भी बज रहे थे।

महाराज, महारानी अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपने अपने आसनों पर विराजमान थे। फिर महाराज ने एक खास अंदाज में अपना हाथ हवा में लहराया। उनके ऐसा करते ही खास तौर पर प्रशिक्षित हाथियों के एक दल ने एक बड़े से कड़ाह को एक बड़े से चूल्हे के ऊपर रखा। उसे देखकर मंगरू ने कहा, “इस चूल्हे की सारी लकड़ियाँ अगर मिल जाएँ तो तुम्हें एक साल तक जंगल जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।“

यह सुनकर रतिया ने कहा, “बड़े आये। शादी से पहले तो कहते थे कि जंगल से लकड़ियाँ तुम ही लाओगे। लकड़ियाँ लाने के चक्कर में मेरे पैरों में ऐसी बिवाई फटी है जो अब मेरे मरने के साथ ही जाएगी।“

फिर कड़ाही में हाथियों ने अपनी सूँड़ों से पानी भरा। पानी में उबाल आने के बाद राजा के सिपाहियों ने उसमें ढ़ेर सारा चावल और दाल डाल दिया। उसके बाद महाराज स्वयं आये और अपने कर कमलों से एक बड़ी सी कलछुल से चावल और दाल को हिला दिया। वह कलछुल इतनी बड़ी लग रही थी जैसे कि उसे कभी कुंभकर्ण को खाना परोसा जाता रहा होगा। महाराज के जाने के बाद राजमहल के खानसामे खिचड़ी को चलाने लगे। बीच बीच में राजवैद्य सोने की तराजू से तौलकर जड़ी बूटियाँ मिला रहे थे। जब खिचड़ी पक गई तो राजगुरु आये और एक बड़ी सी देग में तड़का बनाकर खिचड़ी में डाल दिया।

उसके बाद राष्ट्रीय हरकारे ने ढ़ोल पीटना शुरु किया। वहाँ उपस्थित प्रजा को समझ में आ गया कि फिर से कोई मुनादी होने वाली है। उस मुनादी को ठीक से सुनने के लिये लोगों में खामोशी छा गई। ढ़ोल पीटना समाप्त करने के बाद हरकारे ने बोलना शुरु किया, “सुनो, सुनो, आज के शुभ दिन में शुभ मुहूर्त में समस्त प्रजागण के लिये विशेष रूप से खिचड़ी पकाई गई है। महाराज ने अपने विशाल हृदय का परिचय देते हुए एक हजार किलो खिचड़ी बनवाने का आदेश दिया था। अब इस खिचड़ी को यहाँ उपस्थित प्रजा में वितरित किया जायेगा।“


यह सुनकर मंगरू हिसाब लगाने लगा, “यहाँ लगभग एक लाख लोग उपस्थित हैं। एक हजार किलो खिचड़ी के हिसाब से एक लाख ग्राम खिचड़ी हुई। इस हिसाब से तो हर व्यक्ति को एक ग्राम से अधिक खिचड़ी नहीं मिलेगी। उतनी खिचड़ी तो बस दाँतों के बीच कहीं फँसकर रह जायेगी। चलो अच्छा हुआ। कम से कम यहाँ तो खिचड़ी खाने से बच गये।“ 

Wednesday, October 18, 2017

चमत्कारी राजा

किसी समय की बात है। भारत का कीर्तिमान विश्व के पटल पर किसी ध्वज की तरह लहराया करता था। इस महान देश में दूध दही की नदियाँ बहती थीं। पावन गंगा के जल से सिंचित भूमि से अन्न धन के रूप में सोने की उपज होती थी। उसी काल में इस देश पर एक महान और गौरवशाली राजा राज करता था। अपनी कीर्ति गाथाओं के अनुरूप उस राजा ने पहले तो महाराज की उपाधि धारण कर ली थी। उसके बाद वह महाराजाधिराज बन गया। कालांतर में अश्वमेध यज्ञ में विजयी होकर वह एक चक्रवर्ती सम्राट बन गया।

चक्रवर्ती सम्राट बनने के बाद राजा के मन में बस एक ही इच्छा शेष रह गई थी। वह हर वह शक्ति हासिल करना चाहता था जिससे वह यहाँ की प्रजा को हर वह खुशी प्रदान कर सके जिसके बारे में आज तक किसी भी राजा ने सोचा भी नहीं था। ऐसा करने की धुन में राजा ने एक हजार वर्षों तक घने वन में जाकर घनघोर तपस्या की। उसकी कठिन तपस्या से भगवान प्रसन्न हो गये और उसके सामने प्रकट हो गये।

भगवान ने राजा से कहा, “हे राजन, तुम्हारे जैसे महान राजा की तपस्या से मैं प्रसन्न हुआ। माँगो क्या वर माँगते हो।“

राजा ने कहा, “भगवान की चरणों में मेरा सादर प्रणाम। मैं ऐसी शक्ति चाहता हूँ जिससे मैं पूरी प्रजा को इमानदार बना दूँ। उस शक्ति से हर उस गरीब को मदद पहुँचे जो उसका असली हकदार है। वणिकों के मन में बेईमानी करने से पहले उस शक्ति का डर समा जाये। कोई भी व्यक्ति कर की चोरी ना कर सके। छोटे से छोटे अपराध का चुटकी में पता चल जाये। हे भगवान, यदि आप मेरी तपस्या से और प्रजा के लिए किये गये कार्यों से प्रसन्न हैं तो कृपया मुझे ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए।“

भगवान मंद मंद मुसकाए और कहा, “तथास्तु, इसके लिए मैं तुम्हें ऐसी युक्ति बताता हूँ जो एक अचूक दवा की तरह काम करेगी। इस युक्ति का प्रयोग अभी प्रयोगात्मक रूप में कुछ देशों में हो रहा है। लेकिन भारतवर्ष जैसे महान देश में तुम पहले राजा बनोगे जिसके पास यह युक्ति होगी।“

चक्रवर्ती सम्राट अधीर होने लगा, “भगवन, कृपया कर के शीघ्र उस युक्ति के बारे में बताएँ।“

भगवान ने कहा, “हे राजन, इस युक्ति का नाम है विश्वाधार कार्ड। संक्षेप में तुम इसे आधार कार्ड भी कह सकते हो। इसके लिए सबसे पहले तो तुम्हें सात समुंदर पार के देशों से कंप्यूटर नाम का एक बेशकीमती यंत्र मंगवाना होगा। उसके बाद प्रजा के हर व्यक्ति का एक आधार कार्ड बनवाना होगा। एक आधार कार्ड अपने आप मे अनोखा होगा जिसपर उस व्यक्ति की अंगुलियों के निशान और आँखों की पुतलियों के निशान होंगे। इससे किसी भी व्यक्ति की पहचान आसानी से की जा सकेगी। बिना आधार कार्ड दिखाए प्रजा के किसी भी व्यक्ति को कोई भी कार्य करने की अनुमति नहीं होगी। इससे सभी आर्थिक क्रियाओं का लेखा जोखा रखना आसान हो जायेगा। इससे किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के पीछे गुप्तचर छोड़ने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी। जो यंत्र महाभारत काल में संजय के पास था उससे भी परिष्कृत यंत्र तुम्हारे मंत्रियों और अधिकारियों के पास होगा। उस यंत्र से तुम हर गतिविधि पर नजर और नियंत्रण रख पाओगे। फिर अगले हजार वर्षों तक राज करने से तुम्हें कोई भी नहीं रोक पायेगा।“

इतना कहने के बाद भगवान अंतर्धान हो गये। राजा वन से अपने राजमहल को लौट गया। फिर उसने द्रुतगामी पुष्पक विमानों से अपने दूतों को सात समुंदर पास के देशों में भेजा ताकि कंप्यूटर नामक परिष्कृत यंत्र को लाया जा सके। उसके बाद राज्य में मुनादी करवा दी गई कि हर व्यक्ति को आधार कार्ड बनवाना पड़ेगा। बिना आधार कार्ड के कोई भी व्यक्ति कुछ भी नहीं कर पायेगा।
छ: मास बीतते बीतते लगभग हर व्यक्ति का आधार कार्ड बन गया। उसे एक विशिष्ट विधि से बनाये गये ताम्रपत्र पर बनाया गया था। उस ताम्रपत्र पर व्यक्ति का चित्र, उसकी अंगुलियों के निशान, पुतलियों के चित्र उकेरे गये थे। इसके अलावा उस कार्ड पर एक क्रमांक लिखा गया था जिसके बारे में बताया गया कि हर व्यक्ति का क्रमांक अपने आप में अनूठा है।

आधार कार्ड बनने से ऐसा लगने लगा की जीवन कितना आसान हो गया था। किसी को सोमरस खरीदना होता था तो दुकान के सामने आधार कार्ड हिलाता और जैसे जादू हो जाता था। सोमरस का गागर एक आकर्षक पैकिंग में उस व्यक्ति के पास स्वयं पहुँच जाता था। किसी को यदि कोई मिस्ठान्न खाना होता तो हलवाई की दुकान के सामने आधार कार्ड हवा में लहराता और मिठाई स्वयं उस व्यक्ति के मुँह में प्रवेश कर जाती। किसी को शौचालय जाना होता तो आधार कार्ड लहराते ही शौचालय का दरवाजा स्वत: खुल जाता था। यदि कोई कहीं खुले में शौच करने बैठता तो आधार कार्ड से एक विकिरण निकलती और उसका शौच उतरना बंद हो जाता था। अब पंडित शादी करवाने के लिए जन्मकुंडली के स्थान पर आधार कार्ड का मिलान करने लगे थे। नये शिशु के जन्म लेते ही कर्मचारी आकर उसका आधार कार्ड बनवा देते थे। आधार कार्ड के कारण राशन पानी भी आसानी से मिलने लगा था।

अब राजा ठहरा एक आदर्श राजा। इसलिए उसने अपने परिवार के लोगों और मंत्रीमंडल के लोगों के भी आधार कार्ड बनवा दिये। राजमहल में एक खास सुविधा प्रदान की गई। ऐसा इसलिए किया गया कि विशिष्ट व्यक्तियों के समय की बचत हो सके और उसे व्यर्थ कार्यों में गंवाना ना पड़े। किसी मंत्री को जब भूख लगती तो उसे केवल इतना करना होता था कि आधार कार्ड को हवा में लहराना होता था। एक स्वचालित मशीन उसके सामने प्रकट होती थी और उसके मुँह में निवाला डालने लगती थी। इससे वह खाते समय भी अधिक जिम्मेदारी वाले कार्य कर सकता था। जब किसी मंत्री को शौच करना होता था तो आधार कार्ड को हवा में लहराते ही उसके नितंबों के नीचे शौच करने वाली आलीशान कुर्सी लग जाती थी। जब तक वह जरूरी कागजात पर हस्ताक्षर कर रहा होता था तब तक नीचे की मशीन सारी गंदगी स्वत: साफ कर देती थी।

राजा ने एक खास शैली में बनवाये हुए भवन में सब कार्यों पर नजर रखने के लिए कंप्यूटरों का जाल बिछा दिया था। उन मशीनों को चलाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित कर्मचारी और अधिकारी दिन रात काम पर लगे रहते थे।

अब केवल एक ही काम बिना आधार कार्ड के हो पाता था और वह था साँस लेना और शरीर के अंदर की जैविक क्रियाओं का संचालन।

एक बार कुछ ऐसा संयोग बना कि राजा की पुत्री; जो कि उस राज्य की इकलौती राजकुमारी भी थी; अपनी सहेलियों के साथ नदी में क्रीड़ा विहार करने गई। जब राजकुमारी का रथ नदी के तट पर पहुँचा तो दास दासियों की सहायता से राजकुमारी रथ से उतरी। उसने अपना आधार कार्ड हवा में लहराया और नदी के तट पर एक सीढ़ीनुमा रचना अवतरित हो गई। इन सीढ़ियों से उतरकर राजकुमारी सीधा नाव पर सवार हो गई। उस नाव पर राजकुमारी की कुछ सहेलियों को भी स्थान दिया गया। अन्य नावों पर संगीतकार अपने गाजे बाजे के साथ बैठ गये। उसके बाद क्रीड़ा विहार का कभी न रुकने वाला सिलसिला शुरु हुआ। गर्मी की तपिश से बचने के लिए राजकुमारी ने तैराकी और गोताखोरी का आनंद भी लिया।

क्रीड़ा विहार का आनंद लेने के बाद राजकुमारी जब वापस राजमहल पहुँची तो उसके होश उड़ गये। उसकी कमरघनी में से सदैव लटकने वाला आधार कार्ड का कहीं अता पता नहीं था। राजकुमारी ने याद किया कि तैराकी के लिये जल में कूदते समय तो आधार कार्ड उसकी कमरघनी में ही बंधा हुआ था। लगता था कि गोताखोरी के समय किसी जलीय जीव ने उसके आधार कार्ड को अपना ग्रास बना लिया था।

अब राजकुमारी कुछ भी नहीं कर सकती थी। वह न तो भोजन कर सकती थी ना ही जल ग्रहन कर सकती थी। यह समाचार सुनकर राजा चिंता की मुद्रा में आ गया। राजा ने अपनी थाली में राजकुमारी को भोजन कराना चाहा लेकिन आधार कार्ड की अनुपस्थिति में राजकुमारी का मुँह ही नहीं खुल पा रहा था जिससे भोजन प्रवेश कर सके।

राजा ने अपने दक्ष कंप्यूटरबाजों को आदेश दिया कि राजकुमारी के लिए डुप्लिकेट आधार बना दिया जाये। पता चला कि उस प्रक्रिया में कम से कम सात दिनों का वक्त लगने वाला था। फिर राजा ने आदेश दिया कि कंप्यूटर में कुछ छेड़छाड़ कर दिया जाये ताकि डुप्लिकेट आधार कार्ड बनने तक किसी तरह से राजकुमारी की दिनचर्या सामान्य रखी जा सके। पूरे आर्यावर्त के एक से एक कंप्यूटरबाजों ने अपना दिमाग लगाया लेकिन कोई कुछ न कर सका।


अब राजा की स्थिति किसी विक्षिप्त व्यक्ति की तरह हो गई थी। सुकुमार राजकुमारी भोजन न मिलने के का दर्द झेल नहीं पाई। एक सप्ताह बीतने से पहले ही वह स्वर्ग सिधार गई। राजा ने घोषणा कर दी कि वह अपना राजपाट छोड़कर वान्यप्रस्थ को चला जायेगा। ऊपर से देखने पर लगता था कि प्रजा का हर व्यक्ति उस महान राजा के सन्यास की घोषणा से बहुत दुखी था। लेकिन तह में जाकर पता चलता था हर व्यक्ति इस बात के लिए प्रसन्न था कि अब भोजन करने जैसी नैसर्गिक गतिविधि के लिए जादुई मशीनों का आसरा नहीं रह जायेगा। 

Wednesday, September 20, 2017

अब जमाना बदल चुका है

मौसम बदलने लगा था। अब सूरज जल्दी से ढ़लने लगा था और ठंड भी पड़ने लगी थी। दिन भर बंठू धूप में खेलने का मजा लेता था लेकिन रात होते ही दुबक कर गुफा के किसी कोने में अपनी दादी से चिपका रहता था। इस बीच उसकी माँ मोरी खाना बनाती रहती थी। उसका पिता मतलू तब तक मशाल की रोशनी में गुफा की दीवार पर अपनी कला के नमूने उकेरता रहता था।

ऐसी ही एक रात को मतलू गुफा की दीवार पर मैमथ और बारहसिंघे की तसवीर में गेरू के रंग भर रहा था। तभी मोरी ने अलाव पर माँस के टुकड़े को पलटते हुए कहा, “बंठू अब इतना बड़ा हो गया है कि उसे भी आग जलाने का तरीका सिखाना पड़ेगा। यही सही समय है। तुम्हें क्या लगता है?”

मतलू ने गुफा की दीवार पर अपनी हथेलियों की छाप लेते लेते जवाब दिया, “सही कह रही हो। अभी से नहीं सिखाया तो देर हो जायेगी। ऐसे भी आग जलाना तो हर किसी को पता होना चाहिए। बिना आग के हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।“

इस बीच बंठू के दादा भी उस महत्वपूर्ण बहस में कूद पड़े, “अरे आग जलाना कौन सी बड़ी बात है। कल ही मैं इसे आग जलाना सिखा दूँगा।“

मतलू ने अपने पिता को टोकते हुए कहा, “अरे नहीं बाबा। अब जमाना बदल गया है। अब सिखाने पढ़ाने का तरीका आपके जमाने का नहीं रहा। अब तो नये नये तरीकों का इस्तेमाल होने लगा है। पिछले वसंत में मैं जब दूर के कबीले से मिलने गया था तो मुझे उन नये तरीकों के बारे में पता चला जिससे बच्चे को अच्छे तरीके से सिखाया पढ़ाया जाता है। मैने तो बकायदा उस कबीले से उसकी ट्रेनिंग भी ली थी। आप मुझपर छोड़ दीजिए। वैसे भी आप बूढ़े हो चुके हैं।“

अगले दिन तड़के ही बंठू को नहला धुलाकर बाजरे की रोटी और बकरी के दूध का नाश्ता कराया गया। उसके बाद मतलू उसे लेकर गुफा के बाहर चला गया ताकि उसे आग जलाने की ट्रेनिंग दे सके। बंठू भी बहुत उत्साहित लग रहा था। उसे पता था कि एक बार वह आग जलाना सीख ले तो फिर बड़े से बड़े जानवर को मात दे सकता था।

उन्हें गुफा के बाहर जाता देख बंठू के दादा ने पूछा, “अरे बेटा मतलू, ये कौन सी ट्रेनिंग देने जा रहे हो। साथ में ना तो चकमक पत्थर है और ना ही बरमा और टेक। फिर आग जलाना कैसे सिखाओगे?”

मतलू ने बिना पीछे मुड़े जवाब दिया, “अरे बाबा, आप बस देखते जाओ।“

गुफा के बाहर पहुँचकर मतलू जमीन पर पालथी लगाकर बैठ गया। उसके सामने बंठू भी उसी मुद्रा में बैठ गया। मतलू ने सबसे पहले सरकंडे का लगभग आधे फुट का टुकड़ा लिया और उसके एक सिरे को चाकू से नुकीला कर दिया। उसके बाद मतलू ने जमीन पर उस सरकंडे की कलम से बरमा और टेक की आकृति बनाई। फिर मतलू शुरु हो गया, “देखो बेटा, सबसे पहले हम सीखेंगे कि आग क्या है और उससे क्या क्या फायदे हैं।“

बंठू उत्साहित होकर बोला, “बाबा, आग सुर्ख लाल फूल होता है जो पेड़ों पर नहीं लगता बल्कि इसे हम इंसान पैदा करते हैं। आग से बहुत फायदे ............”

मतलू ने उसे चुप होने का इशारा करते हुए कहा, “जब मैं पढ़ाने लगूं तो बीच में मत बोला करो। ध्यान से मेरी बात सुनों। तुम मुझसे ज्यादा नहीं जानते।

बंठू ने मुंह बना लिया। मतलू आगे बढ़ा, “हाँ, तो आग एक फूल होता है जो सुर्ख लाल रंग का होता है। लेकिन यह फूल पेड़ों पर नहीं लगता। इसे हम इंसान पैदा करते हैं। कभी कभी आसमान से भी आग पैदा होती है और धरती पर गिरती है। आग में बहुत शक्ति होती है। इस शक्ति को नियंत्रित करने की कला भगवान ने केवल इंसानों को दी है। आग से हम अपनी गुफा को सुरक्षित करते हैं। आग से हम भयानक जानवरों को दूर भगा देते हैं। आग पर हम खाना भी पकाते हैं। आग से ही हम जंगल साफ करते हैं ताकि खेती के लिए जमीन बना सकें।“

बंठू को उस लंबे प्रवचन से नींद आने लगी थी। ऐसा देखकर मतलू ने जोर से उसके कान खींच लिये ताकि नींद भाग जाये।

खैर, लगभग एक पहर बीतने के बाद आग के गुण और अवगुण वाला वह पाठ आखिरकार समाप्त हो गया। बंठू ने भी चैन की सांस ली। लेकिन अभी उसका दिन और भी लंबा होने वाला था। मतलू ने उसके बाद बरमा और टेक की संरचना का वर्णन करना शुरु किया, “देखो बेटा, ये बरमा है। यह मजबूत लेकिन लचीली लकड़ी का बना होता है और कुछ कुछ धनुष जैसा दिखता है। लेकिन आकार में यह धनुष से छोटा होता है। इसमें भी धनुष की तरह ही मजबूत डोर चढ़ी होती है लेकिन थोड़ी ढ़ीली होती है। यह लकड़ी का जो चौकोर टुकड़ा देख रहे हो, उसे टेक कहते हैं। इसके बीचोबीच एक छोटा सा गड्ढ़ा बना रहता है। बरमा की डोरी को बीच में लपेट कर उसमें से लकड़ी की एक पतली लेकिन मजबूत डंडी को फँसाते हैं। डंडी के निचले सिरे को टेक के गड्ढ़े में टिकाकर बरमा को दाएँ बाएँ करते हैं जिससे डंडी अपनी धुरी पर घूमने लगे। इन सब औजारों को बनाने के लिये अच्छी लकड़ी का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होता है। बरमा को तेजी से अगल बगल चलाते हैं ताकि डंडी तेजी से घूमे। डंडी को जोर से पकड़ना होता है ताकि यह टेक के गड्ढ़े में बनी रहे। गड्ढ़े के आस पास सूखी घास फूस रखते हैं। जब डंडी तेजी से घूमती है तो उससे घर्षण पैदा होती है। घर्षण से गर्मी पैदा होती है। यह गर्मी जब अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाती है तो सूखी घास फूस में आग लग जाती है। उसके बात मुँह से फूँक फूँक कर उस आग को बढ़ाया जाता है। उसके बाद उस आग से लकड़ी में आग लगाई जाती है।“

उस पाठ के समाप्त होते होते दोपहर भी बीत गई। बंठू का भूख और नींद के मारे बुरा हाल था। मतलू ने कहा, “आज के लिए इतना काफी है। आज रात में इस पाठ को रटकर याद कर लेना। कल इस पर सवाल पूछूँगा। एक भी गलत जवाब दिया तो तुम्हारी खैर नहीं।“

जब बंठू अपने पिता के साथ खाना खाने गुफा के अंदर गया तो उसके दादा ने पूछा, “और बंठू, कितनी लकड़ियों में आग लगाई। कहीं अपनी लंगोट तो नहीं जला ली तुमने।“

मतलू ने बहुत रूखे स्वर में कहा, “अरे बाबा, आज तो केवल पहला दिन था। कम से कम एक सप्ताह तो इसकी थ्योरी की क्लास लूँगा। उसके बाद डमी पर प्रैक्टिकल होगा तब कहीं जाकर असली बरमा को हाथ लगाने का मौका मिलेगा इसे। आपको पता नहीं है, सुरक्षा कितनी जरूरी होती है।“

मतलू के पिता जोर से हँसे और बोले, “पता है, जब तुम बंठू की उमर के थे तभी मैंने एक ही दिन में तुम्हे आग जलाना सिखा दिया था। उम्मीद है तुम आज भी नहीं भूले होगे।“


मतलू ने कहा, “बाबा, आपका जमाना अलग था। अब जमाना बदल चुका है।“ 

Monday, August 28, 2017

फालतू का फोन

मोबाइल फोन आने से जिंदगी बिलकुल बदल गई है। अब आप जब चाहें, जिससे चाहें, जहाँ से चाहें; बातें कर सकते हैं। इससे लोगों के बीच के रिश्ते पहले से शायद ज्यादा मजबूत भी हुए हैं। लेकिन कुछ ऐसे रिश्ते भी जरूरत से ज्यादा मजबूत होने लगे हैं, जिसे शायद बहुत कम लोग मजबूत करना चाहते हों। जैसे बॉस और उसके मातहतों के बीच का रिश्ता। मोबाइल फोन के ढ़ेर सारे फायदे हैं लेकिन कुछ नुकसान भी हैं। उनमें से एक नुकसान है वक्त बेवक्त आने वाले फालतू के फोन कॉल से जिनके द्वारा आपको कुछ न कुछ बेचने की कोशिश की जाती है। कभी कोई वाटर प्यूरिफाय्रर बेचने लगता है, तो कोई मकान बेचने लगता है। कोई इंश्योरेंस बेचने लगता है तो कोई क्रेडिट कार्ड देने लगता है। सब यही जताने की कोशिश करते हैं कि आप उन सबसे लकी लोगों में से हैं जिन्हें उस अभूतपूर्व ऑफर के लिये चुना गया है। कभी कभी तो ऐसे कॉल आधी रात के समय भी आ जाते हैं। जब कोई आदमी धड़कते हुए दिल से किसी अशुभ समाचार की आशंका में फोन उठाता है तो उसे कम से कम ये तसल्ली जरूर मिल जाती है कि चिंता की कोई बात नहीं है, क्योंकि वह कोई सेल्स कॉल होता है। मेरे पास भी ऐसे ढ़ेरों फोन कॉल आते रहते है। मैंने डीएनडी (डू नॉट डिस्टर्ब) में अपना नम्बर भी रजिस्टर्ड करवाया हुआ है लेकिन उसका कोई फायदा नजर नहीं आता। ऐसे अधिकतर कॉल्स को मैं बड़े ही कड़े अंदाज से खारिज कर देता हूँ। इस काम में मेरी भारी आवाज काफी मदद करती है। लेकिन कभी कभी जब मैं खाली होता हूँ तो ऐसे कॉल करने वाले से बात भी कर लेता हूँ। इससे मेरा भी दिल बहलता है और कॉल करने वाले का भी। ऐसा ही एक कॉल आज मेरे पास आया। कॉल में जो बातचीत हुई वह कुछ इस तरह से है।

“हलो, हाँ जी बताइए आप कौन बोल रहे हैं?”

उधर से किसी पुरुष की आवाज थी जो कोई तीसेक साल का युवक लग रहा था। आवाज में थोड़ा सा अनगढ़पना था जो ट्रेनिंग की कमी जाहिर कर रहा था। वैसे भी पाँच छ: हजार पाने वाले वैसे लोग जो हिंदी वाले कॉल सेंटर में काम करते हों, उनके लिये शायद ही कोई कम्पनी ट्रेनिंग पर खर्च करती होगी। उस व्यक्ति ने कहा, “नमस्कार, सर मैं निदान डायग्नोस्टिक से बोल रहा हूँ। क्या मैं आपकी उम्र जान सकता हूँ?”

मैंने कहा, “भैया, जब तुमने फोन नम्बर पा लिया तो उम्र के बारे में भी पता कर लेते।“

उधर से जवाब आया, “सर, हमारी कम्पनी फुल बॉडी टेस्ट पर आकर्षक डिस्काउंट दे रही है।“
“अच्छा किस तरह के टेस्ट करवाते हैं आप?”

“सर, केवल दो हजार रुपए में हम आपकी किडनी, लिवर, डायबिटीज, हार्ट, थायरायड, रेटिना, आदि लगभग पचास टेस्ट कर देंगे।“

मैंने अपनी आवाज में झूठा उत्साह दर्शाते हुए कहा, “अच्छा, ये तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन इन टेस्ट को करवाने से मेरा क्या फायदा होगा?”

“सर जब टेस्ट की रिपोर्ट आयेगी तो आपको पक्का यकीन हो जायेगा कि आपको डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है।“

मैंने कहा, “अरे भैया, ऊपरवाले की दया से मैं बिलकुल फ़िट फ़ाट हूँ। फिर मुझे ऐसे भी डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती है।“

सर, एक बार हमारी टेस्ट रिपोर्ट आपको मिल जायेगी तो फिर गारंटी होगी कि आपको डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।“

मैंने कहा, “भैया, मुझे तो अब तक ये पता था कि किसी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए दवाइयाँ लेनी पड़ती हैं। आज तो तुमने मेरी आँखें ही खोल दीं। आज पता चला कि केवल टेस्ट करवा लेने से ही बिमारी भाग जाती है। कमाल है।

“सर, आपने बिलकुल ठीक समझा। तो आप अपना पता नोट करवा दें, ताकि मैं अपने कलेक्शन स्टाफ को आपके घर भेज दूँ, सारे सैंपल लेने के लिए।“

अब मेरा धैर्य जवाब देने लगा था। मैंने कहा, “भाई, तुम पहले तो अपना ज्ञान दुरुस्त कर लो। टेस्ट करवाने से केवल यह पता चलता है कि कोई बीमारी है या नहीं। टेस्ट से इलाज नहीं होता। अपनी कम्पनी के साहबों से बताओ कि तुम्हें ठीक से ट्रेनिंग दिया करें, उसके बाद ही किसी को कॉल करना।“


उसकी आवाज से लगता है कि उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने किसी तरह से लड़खड़ाती आवाज में कहा, “ठीक है सर, थैंक यू सर, हैव अ गुड डे सर।“ 

Tuesday, August 15, 2017

नागिन डांस

जैसे ही ई-रिक्शा दरवाजे के सामने रुका, उसपर लदे हुए लोगों और सामान को देखकर मधुरेश कुछ ज्यादा ही खुशी जाहिर करते हुए जोर से बोला, “आइए, आइए, आपकी ही बाट जोह रहा था। उम्मीद है मकान खोजने में परेशानी नहीं हुई होगी। गुड्डू ने ईरेल पर देखकर बताया था कि आपकी ट्रेन चार घंटे लेट चल रही थी।“

अपने सामान और परिवार को बरामदे पर पहुँचाते हुए नरेंद्र सिन्हा अपनी बत्तीसी दिखाने की असफल कोशिश करते हुए बोले, “अरे नहीं, मेरा बचपन तो इसी समस्तीपुर में बीता था। अपनी स्कूली शिक्षा मैंने यहीं से प्राप्त की थी। अभी भी बहुत कुछ वैसा ही है। हाँ भीड़-भाड़ बढ़ गई है। पहले जो गाँव जैसे इलाके थे अब वहाँ भी शहर पहुँच चुका है।“

सामान उठाने में मदद करते हुए मधुरेश ने कहा, “मैं खुद ही आ रहा था, आपको स्टेशन से लिवा लाने के लिए। लेकिन क्या करूँ, शादी ब्याह का घर है कोई न कोई काम निकल ही जाता है।“

नरेंद्र सिन्हा ने कहा, “अरे इसकी क्या जरूरत है? आपने बड़ी जिम्मेदारी ली है अपने ऊपर। किसी की की शादी सही ढ़ंग से सम्पन्न करा देना कोई हँसी मजाक थोड़े ही है। इतना बिजी होने के बावजूद भी आपने मेरे परिवार के लिए अलग से ठहरने का इंतजाम कर दिया। ...”

मधुरेश ने बरामदे से लगे कमरे का दरवाजा खोलते हुए कहा, “अरे, ये तो मेरा कर्तव्य था। आपके पुराने अहसान हैं हमपर। और फिर मुझे आपकी बेटी पूनम की शादी भी तो करवानी है।“

नरेंद्र सिन्हा ने बैग और सूटकेस कमरे के अंदर पटकते हुए कहा, “हाँ, आजकल अच्छे लड़के बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। आपके बताये लड़के को देखने के खयाल से ही तो हम इस शादी में शरीक होने आए हैं। नहीं तो मै तो अपने लड़के के हाथों ही शगुन भिजवा देता। आजकल टाइम कहाँ मिल पाता है। ऊपर से अगर साल में तीन चार शादियों में न्योता करना पड़े तो पूरा बजट बिगड़ जाता है। वैसे, जिस लड़के की बात आपने की है, वो इस शादी में शामिल तो होगा ना?”

मधुरेश ने कहा, “अरे जिनके यहाँ शादी है उनके और इस लड़के के परिवार को समझिये जनम जनम का नाता है। ये लोग हमेशा से एक दूसरे के सुख दुख में शरीक होते रहे हैं। और तो और, यह लड़का तो समझिये कि मेरी जेब में है। है तो मेरे दूर के रिश्ते का भांजा लेकिन आस पास रहने की वजह से मेरे मुँह लगा है। आप तो तब उछल पडेंगे जब आपको पता चलेगा कि यह कमरा जहाँ मैंने आपके ठहरने का इंतजाम किया है, यह उन्हीं के मकान का हिस्सा है।“

यह सुनकर नरेंद्र सिन्हा की मुसकान रोके न रुक रही थी। उन्होंने कहा, “अच्छा है, पूनम और उसकी माँ भी आराम से घरेलू माहौल में लड़के को देख लेगी। आजक्ल अच्छा लड़का तो बड़ा महँगा आता है। आपको हमारी माली हालत का पता ही है। हम उतना दहेज देने की स्थिति में नहीं हैं। हाँ बेटी को बड़े जतन से पढ़ाया है, बरौनी के डीएवी स्कूल में टीचर है। अच्छी खासी तनख्वाह मिलती है। उम्मीद है कि कमाउ लड़की देखकर लड़के वाले थोड़ा पसीज जाएँ।“

मधुरेश ने कहा, “आप अब नहाधो लीजिए और तैयार हो जाइए। आज शाम को तिलक है, वहीं लड़के को देख भी लीजिएगा। परसों बारात जानी है, और उसके तीसरे दिन रिसेप्शन है। उसके बाद वाले दिन की तारीख ले लेता हूँ मैं लड़के के पापा से। लड़का अकेला भाई है और उसकी एक ही बहन है जिसकी शादी हो चुकी है। लड़के के पापा का अपना मकान है जिसमें आप अभी विराजमान हैं। और कुछ तो नहीं है लेकिन बीच शहर में मेन मार्केट में अपना मकान होना ही बहुत बड़ी बात होती है। लड़की की शादी हो चुकी है इसलिए कोई बोझ भी नहीं है। अब आजकल के कायस्थों के पास इससे अधिक की आप उम्मीद भी नहीं कर सकते।“

मधुरेश के जाने के बाद नरेंद्र सिन्हा ने कमरे का मुआयना किया। उस कमरे में एक पलंग और एक तखत बिछी हुई थी। एक पुराना सा जर्जर सोफा सेट भी था जिसपर लाल रंग के मखमल का कवर चढ़ा हुआ था। उन तीन जनों के रुकने के लिए वह कमरा काफी लग रहा था। उस कमरे का भीतरी दरवाजा आंगन में खुलता था। आंगन में एक कोने में हैंडपंप लगा था। हैंडपंप के पास ही एक दरवाजा था जिसपर लगी नमी से यह अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह गुसलखाना था। थोड़ी देर में अंदर से एक अधेड़ महिला दाखिल हुईं। नरेंद्र सिन्हा और उनकी पत्नी को नमस्ते करने के बाद उस महिला ने उन्हें गुसलखाने का रास्ता बता दिया। उसने ये भी बता दिया कि नरेंद्र सिन्हा उसे अपना ही घर समझें और बेहिचक जो जरूरत पड़े मांग लें। उसने ये भी बताया कि नरेंद्र सिन्हा को अपने घर में ठहराने का जो सौभाग्य उसे प्राप्त हुआ था उससे वह बहुत प्रसन्न थी।

राहुल उतना ही बाँका नौजवान है जितना उसकी उमर के लड़के हुआ करते हैं। पतला दुबला छरहरा शरीर जिसपर एक छोटी सी तोंद यह बता रही थी कि लड़का दो तीन साल से नौकरी कर रहा था और अपनी जिंदगी से काफी संतुष्ट था। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों के ऊपर गिर आये उसके काले-काले बाल किसी भी युवती को मोहित करने का दम रखते थे। राहुल और मधुरेश के बीच गहरी दोस्ती थी, क्योंकि उन दोनों के बीच उम्र का फासला कम ही था। मधुरेश रिश्ते में उसका मामा लगता था लेकिन राहुल के बहुत सी राज का राजदार था। राहुल किसी प्राइवेट कम्पनी में बतौर सेल्स रिप्रेजेंटेटिव काम करता था इसलिए लड़की वाले उसके घर की तरफ झाँकते भी नहीं थे। इसलिए उसे अपने मुँहबोले मामा की पैरवी करनी पड़ती थी ताकि कोई लड़की वाला उसकी तरफ भी निगाह डाल सके। मधुरेश कभी कभी उससे बड़े ज्ञान की बातें करता था। एक बार मधुरेश ने कहा था, “पता है, हमारे देश में लिंग अनुपात बड़ा खराब है। हर एक हजार पुरुष पर केवल नौ सौ चालीस के आस पास स्त्रियाँ हैं। अगर तुम्हारी किस्मत खराब हुई तो तुम्हारा रॉल नम्बर नौ सौ चालीस के बाद आयेगा और फिर तुम रह जाओगे आजीवन कुँवारे।“

इस बार राहुल को बहुत उम्मीद थी। मधुरेश ने बताया था कि लड़की दिखने में ठीक ठाक है और साथ में नौकरी भी करती है। लड़की के पिताजी के पास धन संपदा नाम की कोई चीज नहीं थी, इसलिए वहाँ आशा की जा सकती थी। राहुल को तो किसी तरह से एक लड़की चाहिए थी जो उसकी बीबी बने और आगे के सफर में साथ दे। उसे या उसके परिवार वालों को एक बहू मिल जाए यही बहुत था, दहेज के बारे में तो वो कबकी उम्मीद छोड़ चुके थे।

शाम को तिलक समारोह में नरेंद्र सिन्हा और उनकी बीबी उतना ही सजे धजे जितना उनकी उम्र पर फब सकता था। बेटी को सजाने में उसकी माँ ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उधर राहुल भी ब्लू जींस और लाल टी-शर्ट पहनकर आया था। राहुल के दोस्तों ने घर के पिछवाड़े में एक पेड़ की ओट में एक खटारा सी मारुति कार में पूरा इंतजाम कर रखा था। राहुल ने इशारा पाते ही उस पेड़ की तरफ कूच कर दिया। पता चला कि जिस लड़के की शादी थी उसके छोटे भाई ने व्हिस्की और रम का भरपूर इंतजाम किया था। राहुल और उसकी उम्र के लड़के तो बस वहीं डेरा जमाए हुए थे। थोड़ी अधिक उम्र के पुरुष बीच बीच में आकर गटागट एक एक पेग गटककर चले जाते थे। जब तक सोमरस का स्टॉक समाप्त हुआ तबक राहुल और उसके दोस्तों पर शुरूर पूरी तरह से छा चुका था। उसके बाद वे लड़के डांस के लिए बने स्टेज पर पहुँच गये और उसपर कब्जा कर लिया। उसके बाद बाकी लोगों को डांस फ्लोर छोड़कर जाना पड़ा। राहुल ने गजब का डांस दिखाया। बॉलीवुड के लेटेस्ट नम्बर की हूबहू नकल उतारने में उसका कोई सानी नहीं था। जब सभी लेटेस्ट डांस का दौर खतम हुआ तो बारी आई उस डांस की जिसकी पॉपुलरिटी के आगे बाकी के हार डांस पीछे रहते हैं; खासकर शादियों के मौसम में। जी हाँ, मैं नागिन डांस की बात कर रहा हूँ। राहुल पहले तो नागिन बनकर डांस करता रहा। फिर संपेरा बन गया। नागिन से संपेरा और संपेरे से नागिन बनने का दौर जो शुरु हुआ वह खतम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। उस डांस पर जवान लोग तो सीटियाँ बजा रहे थे। लेकिन बुजुर्ग और महिलाएँ अपने नाक भौं सिकोड़ रही थीं। तिलक का भोज खाने के बाद सारे मेहमान चले गये लेकिन राहुल और उसकी मंडली का प्रोग्राम तबतक चलता रहा जबतक वो लोग निढ़ाल होकर गिर नहीं गये।

इसी तरह बारात में भी उन लड़कों जमकर मजा किया और हंगामा किया। उनका मूड बनाने के लिए व्हिस्की और रम की सप्लाई सुचारु रूप से चलती रही। फिर दुल्हन की विदाई हुई और उसके बाद रिसेप्शन भी हुआ। रिसेप्शन के बाद वह दिन आ गया जिसका राहुल और उसके मम्मी पापा को बेसब्री से इंतजार था।

राहुल के पापा ने खुद जाकर बाजार से गुलाब जामुन, नमकीन और जिंदा रोहू मछली लाई। राहुल की मम्मी ने बड़े जतन से मछली बनाई। उनके घर में पहली बार कोई लड़की वाला रिश्ते की बात करने आ रहा था। इसलिए वे उनकी खातिर में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। अब अगर आप मिथिला में रहते है तो किसी को मछली भात खिलाने से बड़ी खातिर और क्या हो सकती है। मछली देखना और खाना तो यहाँ शुभ माना जाता है।

लंच का वक्त होने को आ रहा था लेकिन नरेंद्र सिन्हा का कहीं अता पता नहीं था। दोपहर के तीन बजने वाले थे तभी मधुरेश आता दिखाई दिया। मधुरेश के चेहरे को देखकर लग रहा था कि मामला कुछ ठीक नहीं है। राहुल के पापा ने पूछा तो मधुरेश ने बताया कि नरेंद्र सिन्हा के प्रोग्राम में थोड़ा बदलाव हुआ था। उनको अचानक बरौनी में कोई काम पड़ गया था इसलिए वे बता रहे थे कि एक दो महीने बाद ही आएँगे। इतना सुनने के बाद राहुल और उसकी मम्मी पापा के चेहरे बुझ गये। 

राहुल के पापा अपनी भड़ास निकालने लगे, “पहले ही कहता था कि किसी कंपिटीशन की तैयारी करो। अरे, अगर बैंक में क्लर्क भी हो जाते तो लड़की वालों की लाइन लग जाती। दिमाग खराब हुआ था कि चले थे प्राइवेट नौकरी करने। अभी भी उम्र नहीं बीती है। दो साल मैं तुम्हें पाल सकता हूँ। ठीक से तैयारी करोगे तो बैंक क्लर्क का कंपिटीशन निकालने के लिये दो साल बहुत होते हैं।“

उन्हें बीच में ही टोकते हुए मधुरेश ने कहा, “अरे नहीं जीजाजी, वो बात नहीं है। वे लोग तो इस नालायक के दारू पीने की वजह से भड़क गये हैं। और करो नागिन डांस। अरे अब उम्र हो गई है। अभी इंप्रेशन खराब हो गया तो आस पास के सौ किलोमीटर से कोई लड़की वाला झाँकने तक नहीं आयेगा।“

मधुरेश ने आगे कहा, “जैसे ही नरेंद्र सिन्हा ने अपनी बीबी को राहुल के बारे में बताया वो फौरन भड़क उठी। कहने लगी कि उसी दारू के चक्कर में उनकी जिंदगी नरक हो गई। वो अपनी बेटी को आजीवन कुँवारी रखेंगी लेकिन किसी बेवड़े के हाथ में कभी नहीं देंगी।“

राहुल के पापा ने कहा, “ठीक ही तो कह रही थीं। नरेंद्र सिन्हा को मैं कोई आज से जानता हूँ? उसकी रेलवे की नौकरी उसी दारू के चक्कर में छूट गई थी। फिर उसके चाचा ने पैरवी करके बरौनी रिफाइनरी में रखवाया था, वहाँ से भी भगा दिया गया था।“

मधुरेश ने कहा, “हाँ नरेंद्र सिन्हा तो कह ही रहे थे कि लड़का थोड़ जॉली नेचर का है। उमर है इसलिए खाता पीता है। एक बार शादी हो जाएगी तो रास्ते पर आ जायेगा। लेकिन उनकी बीबी ने अपना वीटो लगा दिया।“

उसके बाद मधुरेश ने राहुल से कहा, “बेटा, एक बात गाँठ बाँध लो। आज के बाद नागिन डांस बंद। कभी पीने पिलाने का प्रोग्राम हो तो छुपाकर ही करना। तभी कोई तुम्हारी शादी कराने का बीड़ा लेगा।“


राहुल ने नजरें झुकाकर कहा, “मामा, मैं वादा करता हूँ कि आज के बाद नागिन डांस बिलकुल बंद। अब तो मेरी शादी भी हो जायेगी तब भी नागिन डांस नहीं करूँगा।“