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Monday, June 19, 2017

पहली बारिश

मौसम का मिजाज देखकर और अखबार में मौसम रिपोर्ट पढ़ने के बाद ऐसा लगने लगा कि आज मानसून ने मेरे शहर में शुरुआत कर ही दी। अखबार पढ़ने के साथ जब चाय की चुस्कियाँ खतम हुई तो सोचा जरा टीवी न्यूज चैनलों पर भी देख लूँ कि मौसम का क्या हाल होने वाला है। सारे न्यूज चैनल के एंकर गला फाड़ फाड़ कर यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि भारत के बड़े भूभाग में मानसून का आगमन हो चुका है। उनके द्वारा यह भी पता चला कि स्वयं प्रधानमंत्री ने ट्वीट करके पूरे देश को मानसून के आने की बधाई दी है। यह सुनकर मेरा रोम-रोम कृतज्ञ हो गया। चैनल सर्फ करते करते मैने पाया कि एक चैनल पर बकायदा एक पैनल भी बैठ चुका था। उस पैनल में टीवी चैनल पर हमेशा दिखने वाले कुछ गणमान्य व्यक्ति मानसून के नफे नुकसान पर बहस में उलझे पड़े थे। कभी कभी इन व्यक्तियों की ऊर्जा देखकर बड़ा ताज्जुब होता है। मेरी समझ में नहीं आता कि जब सारे चैनल लाइव बहस दिखाते हैं तो एक ही साथ ये ज्ञानी लोग एक से अधिक चैनल पर कैसे नजर आते हैं। शायद इन लोगों ने नोएडा की फिल्म सिटी में अपने चैंबर खोल रखे होंगे। कुछ न्यूज एंकर तो मानसून के आगमन को इस तरह से पेश कर रहे थे जैसे भारत की आजादी के सत्तर वर्षों में पहली बार मानसून आया हो।

थोड़ी देर बाद मै कुछ ऐसे न्यूज चैनलों तक पहुँच गया जिनके पास बजट की इतनी कमी होती है कि वे बारिश की भी रिकार्डिंग नहीं कर पाते। ऐसे चैनल के लिए बॉलीवुड एक रामबाण की तरह काम करता है। जब कोई उपाय काम नहीं करता है तो ये चैनल वाले हिंदी फिल्मों के हिट गाने बजाने लगते है। क्रिकेट या हॉकी का मैच जीतने के बाद यदि एंकर का गला बैठ जाए तो बैकग्राउंड में चक दे इंडिया वाला गाना बजाने से बात बन जाती है। सीमा पर गोलीबारी के वीडियों के साथ सुनो गौर से दुनिया वालो....के बोल सही मेल खाते हैं। उसी तर्ज बर कुछ चैनल वाले टिप टिप बरसा पानी..........” बजा रहे थे जिसमें रवीना टंडन अपनी मादक अदाएँ दिखा रही थी। उस गाने को देखकर मुझे अपने कॉलेज के दिनों की याद आ गई। लेकिन बगल में मेरा जवान होता हुआ बेटा बैठा था इसलिए मैंने चैनल बदलने में ही भलाई समझी। अगले चैनल पर बरसो रे मेघा मेघा ..........” बज रहा था। एक दो चैनल के बाद सावन का महीना पवन करे सोर ..........सुनकर तसल्ली मिली। मुझे पक्का यकीन था कि आजकल के रैप सुनने वाले बच्चे सुनील दत्त और नूतन पर फिल्माए गये उस गाने को भजन ही समझेंगे।

मैं गाने का मजा ले ही रहा था कि मेरी पत्नी बगल में आकर बैठ गई और कहा, “याद है जब हम जौनपुर में थे तो पहली बारिश में छत पर कितना भीगे थे?’

मैने पुरानी यादें ताजा करते हुए कहा, “हाँ, फिर तुमने कमाल का डांस किया था। उसके बाद हमारे मकान मालिक ऊपर आ गये थे और बहुत डाँटा था कि बारिश में भीगने से तबीयत खराब हो जाती ह।“

मेरी पत्नी ने कहा, “अरे वो बुड्ढ़ा, ऐसे ही दाल भात में मूसलचंद बन रहा था।“

मेरी पत्नी ने आगे कहा, “याद है, जब अपना गोलू छोटा था तो हम छतरपुर वाले मकान की छत पर इसको भी बारिश में नहलाते थे।“

तभी कॉलबेल की आवाज आई। मेरे बेटे ने दरवाजा खोला तो पता चला कि ग्राउंड फ्लोर वाली पड़ोसन अपने दोनों बच्चों के साथ खड़ी थी। उसने मेरी पत्नी से कहा, “भाभी, वो क्या है कि दोनों बारिश में भीगने की जिद कर रहे थे।“

मैने कहा, “नीचे तो इतनी खुली जगह है, पूरा पार्क है। भीगने दो।“

मेरी पड़ोसन ने कहा, “नहीं, मुझे नीचे सबके सामने भीगने में अच्छा नहीं लगता। सोचा ऊपर छत पर जाकर बारिश में भीगने का मजा लूँगी। वहाँ कोई नहीं देखेगा।“

मैने कहा, “नीचे जब लोग देखेंगे तो उन्हें भी तो मजा आयेगा। कम से कम बाकी लोगों का तो खयाल किया होता।“

मेरी पत्नी ने मुझे चुप होने का इशारा किया, और छत के गेट की चाबी पड़ोसन को दे दी। वह अपने बच्चों को लेकर छत पर चली गई।

उसके बाद मैं भी सुहाने मौसम का लुत्फ उठाने के लिए बालकनी में खड़ा हो गया क्योंकि छत पर नहीं जा सकता था। बगल वाली बालकनी में मेरे पड़ोसी बनियान पहने हुए अपनी तोंद सहला रहे थे। उनकी पत्नी अपने बच्चों के साथ गर्मी की छुट्टियाँ बिताने अपने मायके गई हुई हैं। मुझे देखकर मेरे पड़ोसी ने मुसकराकर मेरी उपस्थिति के बारे में अपनी भिज्ञता का इशारा किया। वे अपने मोबाइल फोन पर लगे हुए थे। लगता है अपनी पत्नी से बात कर रहे थे, “हाँ, हाँ, मैने सभी खिड़कियाँ बंद कर दी है। बारिश बहुत तेज होने वाली है। अपनी सेहत का खयाल रखना। नेहा और मेघा को बारिश में मत भीगने देना। एहतियात के लिए तुलसी का काढ़ा पिला देना। खुद भी काढ़ा पीना ना भूलना। ...........”

कहते हैं कि भारत के लिए मानसून का बड़ा महत्व है। यहाँ की पूरी अर्थव्यवस्था पर मानसून का गहरा असर पड़ता है। मानसून यदि खराब होता है तो सरकारें गिर जाती हैं। मानसून के आने की खुशी सब अपने अपने तरीके से मनाते हैं। मोर नाचने लगते हैं। झुग्गी झोपड़ी के बच्चे सड़क पर लगे पानी में उछल कूद मचाते हैं। नये-नये जवान हुए लड़के अपनी बाइक लेकर सड़कों पर पानी उड़ाते हुए चलते हैं। अब तो लड़कियाँ भी अपनी स्कूटी लेकर उनसे टक्कर लेती हुई यह चरितार्थ करती हैं, “व्हाई शुड ब्वायज हैव ऑल द फन?” नवविवाहित जोड़े बारिश में भीग कर ऊल जलूल हरकतें करते हैं। जिनके बच्चे बड़े हो जाते है वे एक दूसरे को और अपने बच्चों को सर्दी जुकाम से बचने की सलाह देते हैं।


लेकिन पहली बारिश के बाद जो बारिश होती है उसके नाम से ही दिल दहल जाता है। जगह जगह जलजमाव होने से महाजाम लगता है। लोगों को अपने ऑफिस पहुँचने में घंटों लग जाते हैं। उसके बाद मन शायद यह गाने लगता है, “बादल यूँ गरजता है, डर कुछ ऐसा लगता है, चमक चमक के लपक के ये बिजली हम पे गिर जाएगी।“ 

Sunday, June 11, 2017

A New Smartphone

Bunty was looking somewhat sad. He was munching at a leisurely pace on his breakfast; as if he was engrossed somewhere else. Bunty’s mother; Pooja asked, “Why this long face? I have served your favourite dish in breakfast. You love Maggi. What happened?”

Bunty’s head sank further towards the ground. Without lifting his eyes, he said, “No use of telling you. You won’t be able to fulfill my demand. I know we are not affluent.”

Pooja said, “Yeah, I know that we are not affluent. But we have tried our best to keep you happy. After all, you are the apple of my eyes.”

Bunty raised his head and looked straight into his mother’s eyes. He said, “I need a smartphone on my birthday. Most of my friends have smartphones. It looks awkward when I take out my Samsung Guru in front of them. They call me all sorts of name.”

Hearing that, Pooja said, “Do you know the price of a smartphone with proper configuration? Some of them cost more than what your father earns in a month. We can manage with Akash tablet. That is quite cheap.”

Bunty threw away the steel bowl towards the kitchen sink and shouted, “No way. I need a phone with top quality camera and RAM. Otherwise, I am fine with my basic mobile phone.”

Bunty’s father; who was sitting in another room too heard their discussion. He came out and caressed Bunty’s hair, and said, “Don’t worry son. I will do whatever it takes to get you a nice smartphone. Hope a phone in the range of ten to twelve thousands shall be fine for you.”

Bunty’s face flashed with a winning smile. Pooja interrupted her husband; Shyam and said, “How will you pay so much for a phone. You are just getting twenty thousand as salary. Do you know how tough it is to manage the household expenses, school fees and other expenses in this meagre amount? It is you who has spoiled this brat.”

After finishing his breakfast, Bunty took out his bicycle and rushed to his school. Shyam too got ready to go to the factory where he was working as supervisor of factory workers. During lunch break, Shyam took his lunch-box and went to the manager’s chamber. Alok Mehra; the manager had already started having the lunch. Looking at Shyam, he said, “Hey, Shyam. How are you? Good to see you coming to enjoy lunch with me. Hope everything is fine at your family front.”

Shyam nodded his head in affirmative and took out his lunch-box. After eating a couple of morsels, Shyam said to Alok Mehra, “Sir, can I ask you for some favour?”

Alok Mehra said, “Yeah! Go ahead.”

Shyam further said, “In fact, I am in urgent need of some money. Will you be kind enough to recommend an advance payment of ten thousand for me? The company can adjust the amount from my salary in the next ten or twelve months.”

Alok Mehra’s forehead began to show some creases; as if he was putting some strain on his mind. He said, “What is the matter? Is someone sick in your family? If I am not wrong, your parents have already left for heavenly abode a long time back.”

Shyam brought a fake smile on his face and said, “No, no, everyone is hale and hearty. Actually, I need to buy a smartphone for my son. I need money for that.”

Alok Mehra’s eyeballs almost popped out of the sockets. His voice became somewhat louder when he said, “Are you in your senses? Do you think you can afford a phone which costs ten thousand rupees? Shyam, you should cut your coat according to your cloth. Try to explain the reality to your son instead of spoiling him.”

Shyam did not utter a single word. It was pin-drop silence when Shyam and Alok Mehra were finishing their food. After the lunch-break, Shyam went to the shop-floor to finish that day’s work. But his mind was not on his job rather it was waiting for the final hooter sound. The final hooter of the factory appeared to be taking too long to announce the end of the working hours. After what appeared to be an endless wait, the hooter made a hoarse sound at five in the evening. Shop-floor workers started coming out in a queue; like products on the conveyor belt in the assembly line. Each worker was smiling and saying Namaste to Shyam. But Shyam was finding it difficult to bring smile on his face. Most of the workers found his behaviour amusing but nobody dared to ask about it. Ramlal; who was the most senior worker was the last man in the queue. Looking at Shyam’s face, he asked, “Shyam Ji, what happened? You don’t appear to be in your normal mood.”

Ramlal put his hand on Shaym’s shoulder; while they were emerging out of the main gate of the factory. Shyam said to Ramlal, “You know Bunty; my son? He has become stubborn. I know that I am the culprit for this. You know that he is my only son. He wants a smartphone as his birthday gift. I don’t know how to manage the money for that.”

Ramlal kept mum for a few moments and then said, “Don’t worry. I know a person who lends money on interest. You can borrow from him. The interest rate is quite steep, but I am sure you shall be able to repay the loan in no time.”

When Shyam reached his home in the evening, he was carrying a small box which was nicely wrapped in colourful paper. Seeing that pack, Bunty’s joy knew no bound. He was elated as if he found some treasure. He kept awake throughout that night; playing all the games which that phone could offer. He also took many photos of him and his parents.

After about a week, it was celebration time on Bunty’s birthday. Bunty had invited many of his friends; which included one of his neighbours named Tinku. Tinku’s father Mohan was working in the same factory; under Shyam. The tiny drawing room was decorated with colourful balloons, stars, stripes and sparkles. When Bunty blew the candles, one of his friends popped a canister which burst to release a cloud of sparkles to add the proverbial dash of colours to the party. Bunty’s mother was busy taking photos of the party. She must have taken hundreds of photos but she was not done yet. In the meantime, Tinku took out his Samsung Guru and started taking some photos. Looking at him, Bunty burst into laughter. Bunty said, “Hey Tinku! What do you think? Your useless phone cannot take good photos. Why are you spoiling my image in front of my friends?”

Other boys too joined the round of laughter. Even Bunty’s parents started mocking Tinku. Tinku’s parents did not like that spectacle. They held Tinku by his arms and left the party in a huff.

The next evening, Bunty appeared to have had too much of his new smartphone. He took out a bubble-maker which he got from someone as birthday gift. Bunty was at the rooftop; making soap bubbles of all sizes. There were bubbles of all sizes; big, medium and small. Bunty was overjoyed at seeing the colours of rainbow in those bubbles. Tinku was playing in the lane below the rooftop. When he craned his neck to see those bubbles and Bunty, one of the bubbles hit his face and burst in his eyes. Tinku felt a burning sensation in his eyes because of soap. It was not too much of a pain but nevertheless Tinku started crying as if he was stung by a wasp. Hearing his cries, Tinku’s parents rushed out into the lane. Mohan (Tinku’s father) took no time in rushing through the staircase to reach the rooftop. He grabbed Bunty’s hairs and started thrashing Bunty. Within no time, Bunty was beaten black and blue. All that Bunty was left with were sore eyes and swollen face.

After venting his anger on Bunty, Mohan returned to the lane. He was shouting at the top his voice, “What do they think? I know that Shyam is my boss in the factory. So what? He is earning just five thousand rupees more than me. Does he think that I cannot afford a smartphone for my son? Even I can borrow money from the same person from whom Shyam has borrowed. I am going to buy even costlier phone for my son.”


Most of the people from the neighbourhood had already come out in the lane. Some of them were trying to figure out what had happened. Some of them were taking a sadistic pleasure of that quarrel. But none of them tried to intervene in the matter. 

Monday, April 10, 2017

स्कूल चलें हम

सुबह के नौ बजने वाले थे और शीला का कोई अता पता नहीं था। बच्चों को स्कूल भेजने और पति को ऑफिस भेजने के लिए मैने खुद ही कुछ बरतन धोए और उनके लिए नाश्ता तैयार करके उनका लंच बॉक्स पैक किया था। जब सब घर से चले गये तो मैं बेसब्री से शीला का इंतजार करने लगी। मैं सोच रही थी, “इस शीला की बच्ची का कुछ करना पड़ेगा। आए दिन देर से आती है और मेरा सारा रूटीन डिस्टर्ब हो जाता है। हर बार कोई न कोई बहाना बनाती है। आज छोड़ूंगी नहीं। कायदे से उसकी क्लास लगा दूंगी। लेकिन ज्यादा कुछ बोल दिया तो इस्तीफा देने का भी खतरा है। आजकल कामवाली के नखरे बहुत बढ़ गये हैं और शीला जैसी ईमानदार कामवाली तो बड़ी किस्मत से मिलती है। फिर भी उसे थोड़ा रास्ते पर तो लाना ही पड़ेगा।“

मैं यह सब सोच ही रही थी कि कॉलबेल की आवाज आई। जैसे ही मैने दरवाजा खोला तो सामने शीला अपना मुँह लटकाए खड़ी थी। मैने छूटते ही पूछा, “कहाँ थी इतनी देर तक? तुम्हें मालूम है कि सुबह कितना काम रहता है। अब तक आधे बरतन तो मैने ही साफ कर लिए। आज क्या बहाना है तुम्हारे पास?”

शीला ने कुछ नहीं कहा और सुबक सुबक कर रोने लगी। मैने पूछा, “अरे, क्या हुआ? घर में सब ठीक तो हैं? तुम्हारे बच्चों की तबीयत तो सही है?”

शीला ने रोते रोते जवाब दिया, “नहीं दीदी, किसी की तबीयत को कुछ नहीं हुआ और ना ही मेरे मरद ने मेरी कुटाई की है। बस अपनी बेटियों को स्कूल में दाखिला दिलवाने के लिए परेशान हूँ। आपसे एक मदद चाहिए। आप मेरे साथ चलिए और पास के लिटल एंजल स्कूल में बात कर दीजिए। मैं गई थी, तो चौकीदार ने बाहर से ही भगा दिया।“

अब मेरा सारा गुस्सा स्कूल के चौकीदार पर फट पड़ा, “अरे, ऐसे कैसे भगा दिया? स्कूल उसके बाप का है? तुम अपने आदमी को लेकर जाओ।“

शीला ने कहा, “मेरा आदमी कहता है कि स्कूल जाने से क्या होगा। लड़कियाँ हैं, पढ़ लिखकर क्या करना है।“

मैंने उसे बीच में टोकते हुए कहा, “पास में एक सरकारी स्कूल भी तो है। वहाँ क्यों नहीं डाल देती अपनी बेटियों को? पैसे भी बचेंगे। आजकल तो सरकारी स्कूलों में लड़कियों की फीस भी माफ है।“

शीला ने कहा, “पिछले साल डाला तो था सरकारी स्कूल में। वहाँ कुछ पढ़ाते ही नहीं हैं। बस सारा दिन बच्चों से झाड़ू लगवाते हैं या टट्टी साफ करवाते हैं। उससे टाइम मिलता है तो बच्चों की पिटाई कर देते हैं।“

मैने थोड़े आश्चर्य के भाव से कहा, “अच्छा! सरकारी स्कूल की हालत इतनी खराब है। मुझे नहीं पता था। चलो, कोई बात नहीं। तुम फटाफट काम निबटा लो तब तक मैं नहा धोकर तैयार हो जाती हूँ।“

लगभग आधे-पौन घंटे के बाद मैं शीला के साथ पास के ही लिटल एंजेल स्कूल में पहुँच गई। स्कूल का छोटा सा गेट था और गेट के पास एक दो आइसक्रीम के ठेले लगे हुए थे जो कि किसी लोकल ब्रांड का इश्तहार कर रहे थे। उन ठेलों के पास कुछ बच्चे भी मंडरा रहे थे। सभी ने मैले कुचैले ड्रेस पहन रखे थे लेकिन टाई और आई कार्ड गले में बकायदा लटके हुए थे। कुछ बच्चों के पाँव में जूते थे तो कुच के पाँव में हवाई चप्पलें। अंदर जाने पर बहुत शोर शराबा हो रहा था। एक क्लास रूम में झाँकने पर पता चला कि एक टीचर किसी बच्चे पर अपना कहर बरसा रही थी। इस बीच बाकी बच्चे जोर जोर से बातें कर रहे थे। स्कूल के किसी स्टाफ से पूछते हुए हम उसके ऑफिस में पहुँचे। वहाँ पर एक बड़ी सी टेबल पर फाइलों और किताबों के ढ़ेर लगे हुए थे। उनके पीछे एक अधेड़ उम्र का शख्श बैठा था। उसके सिर के बाल लगभग उड़ चुके थे, लेकिन बालों की कमी को पूरा करने के लिए चेहरे पर चार दिन की खिचड़ी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। उसके मुँह से आती बदबू से पता चल रहा था कि वह कोई पान मसाला चबा रहा था। उसके आस पास तीन चार पुरुष खड़े थे और एक महिला भी थी जिसने लंबा सा घूंघट निकाला हुआ था। लेकिन घूंघट के अंदर से ही वह लड़ने के अंदाज में जोर जोर से बोल रही थी। उस आदमी के पीछे एक बड़ा सा नोटिस बोर्ड लगा था। उस बोर्ड पर कई फोटो लगे हुए थे। ज्यादातर फोटो में वही आदमी आस पास के गणमान्य लोगों के साथ पोज देते हुए दिखाई दे रहा था। उन तसवीरों से मैने अनुमान लगाया कि या तो वह स्कूल का हेडमास्टर था या मालिक था। मुझे देखते ही वह खड़ा हो गया और मुझसे बैठने का इशारा किया।

थोड़ी देर बाद उसने मुझसे पूछा, “मैडम, आप हमारे स्कूल में कैसे? मेरा मतलब है, आपके पहनावे से तो लगता है कि आपके बच्चे किसी महंगे स्कूल में पढ़ते होंगे। मेरे स्कूल में तो पास की झोपड़पट्टी के बच्चे ही आते हैं।“

मैने उससे कहा, “बात ऐसी है कि मैं अपनी कामवाली की बेटी के एडमिशन के लिए आई हूँ। ये शीला है और पास में ही रहती है। अगर आप इसकी बेटी को अपने स्कूल में एडमिशन दे दें तो बड़ी मेहरबानी होगी।“

उस आदमी ने जवाब दिया, “हाँ, हाँ, क्यों नहीं। मैं आपको फीस के बारे में बता देता हूँ। एडमिशन चार्ज दस हजा रुपए हैं और मंथली फीस नौ सौ रुपए। किताबों और ड्रेस के पाँच हजार लग जाएँगे और ट्रांसपोर्ट के आठ सौ रुपए। ट्रांसपोर्ट मैंडेटरी है क्योंकि हम चाहते हैं कि हर बच्चा टाइम से स्कूल पहुँचे। इसके अलावा स्कूल में जो हम पेंसिल और रबर देंगे उसके हर महीने के सौ रुपए।“

मैंने कहा, “यह कुछ ज्यादा नहीं लग रहा? ये बेचारी इतने पैसे नहीं दे पाएगी।“

उस आदमी ने कहा, “मैडम, हमें भी तो अपने स्टाफ को सैलरी देनी होती है। फिर मुझे भी तो परिवार चलाना होता है। अब आप कहती हैं तो एडमिशन चार्ज छोड़ दूँगा। लेकिन अगले साल री-एडमिशन चार्ज देना होगा। हमारे जितना सस्ता स्कूल आपको इस इलाके में कहीं नहीं मिलेगा। इसके मुहल्ले के लगभग सभी बच्चे हमारे स्कूल में ही आते हैं।“

मैने कहा, “अगर आप किसी बच्चे से पुरानी किताबें दिलवा देते तो अच्छा होता। इसके कुछ पैसे बच जाते।“

उसने कहा, “नहीं मैडम, ये संभव नहीं है। हम हर साल सारी किताबें किसी नये प्रकाशन की लगाते हैं। इससे बच्चों को लेटेस्ट नॉलेज मिलती है।“


मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उधर शीला का लटका हुआ मुँह देखकर मुझे उसकी परेशानी का अंदाजा हो रहा था। मैंने कहा, “तुम चिंता न करो। किताबों और ड्रेस के पैसे मैं दे दूँगी और तुम्हारी पगार में से नहीं काटूंगी।“ 

Thursday, March 2, 2017

व्रत की तैयारी

शाम का धुंधलका बढ़ रहा था। रेखा सड़क के किनारे लगे ठेले वाले से सब्जियाँ खरीद रही थी। तभी उसके पास एक ऑटोरिक्शा आकर रुका। उसमे से एक चिरपरिचित चेहरे को उतरते देखकर रेखा के मुँह से सहसा निकल गया, “क्या बात है सुनीता, आज कुछ जल्दी नहीं आ गई? तुम तो अक्सर अपने ऑफिस से देर से आती हो।“

सुनीता ने ऑटो वाले को किराया देते देते कहा, “आज बुधवार है न, इसलिए थोड़ा जल्दी आ गई। गुरुवार को मेरा पूरे दिन का उपवास रहता है। उसके लिये आज ही तैयारी करनी होती है।“

“अच्छा, मुझे नहीं पता था कि एक मॉडर्न दिखने वाली महिला जो किसी आइटी कम्पनी में काम करती है, व्रत भी रखती होगी।“

“अरे इसमें कौन सी बड़ी बात है। मैं तो यह व्रत पिछले पंद्रह साल से रखती आई हूँ।“

उसके बाद वहीं पास लगे एक ठेले से सुनीता ने एक दर्जन अंडे खरीदे। उसने एक दूसरे ठेले वाले से चिप्स और नमकीन के पैकेट भी खरीदे। फिर उसने सब्जी वाले से कुछ प्याज, टमाटर, धनिया वगैरह लिये और अपनी हाउसिंग सोसाइटी के गेट की तरफ चल पड़ी। साथ साथ रेखा भी चल रही थी। रेखा ने पूछा, “तुम तो बता रही थीं कि व्रत की तैयारी करनी है। फिर ये अंडे किस लिये? लगता है तुम्हारे पति और तुम्हारी बेटी को अंडे बहुत पसंद हैं।“

सुनीता ने हँसते हुए जवाब दिया, “अरे नहीं, हर बुधवार को मैं पहले तो डटकर नमकीन और चिप्स खाती हूँ। फिर कुछ अंडों से ऑमलेट बना कर खाती हूँ। फिर अंडा करी और चावल बनाती हूँ और उसका लुत्फ उठाती हूँ।“

रेखा ने बीच में टोका, “लेकिन व्रत से ठीक एक दिन पहले मांसाहारी भोजन खाना सही नहीं होता है।“

सुनीता ने कहा, “ऐसा किस ग्रंथ में लिखा है? गुरुवार को पूरे दिन भूखे प्यासे ऑफिस में काम करो। फिर शाम को आकर साबूदाने की खीर खाओ जिससे उबकाई आ जाए। इसलिए एक दिन पहले तो ठीक से खाना बनता है।“


रेखा ने दबी जुबान से कहा, “क्या बात है। व्रत की तैयारी तो कोई तुमसे सीखे।“ 

Thursday, January 12, 2017

टायर जलाना मना है

रामकली चूल्हे पर चाय चढ़ाती हुई जोर से चिल्लाई, “अब उठो भी। दिन चढ़ने को आ रहा है। फटाफट नहाधोकर तैयार हो जाओ। तब तक मैं नाश्ते के लिए चाय रोटी बना देती हूँ।“

रामकली के पति; मंगरू ने रजाई में और दुबकते हुए कहा, “अरे इतनी कड़ाके की सर्दी में भला कौन काम पर जाता है। वैसे भी जब से नोटबंदी हुई है तब से रोज रोज काम भी तो नहीं मिलता। आज हिम्मत नहीं हो रही है, घर से बाहर निकलने की।“

“तो फिर पूरे दिन खटिया तोड़ने का विचार बना रखा है। अच्छा है, तुम्हें तो छुट्टी के लिए किसी को अर्जी भी नहीं देनी है। ऐसा करो, बाहर एक अलाव जला लो। आग की गर्मी मिलेगी तो ठंड से कुछ राहत मिलेगी।“

मंगरू ने यह सुनते ही अपने बेटे को आवाज लगाई, “अरे ओ हरिया, अरे कहाँ मर गया रे। छप्पर पर एक पुरानी टायर रखी थी। उतार उसको, आज उसी का अलाव बनेगा।“

थोड़ी देर में छप्पर पर चरर मरर की आवाज हुई और उसके बाद जमीन पर किसी बड़ी चीज के गिरने की धम्म से आवाज हुई। मंगरू लपककर बाहर आया ताकि उसके पहले कोई उसकी पुरानी टायर को न हथिया ले। उसकी टूटी फूटी झोपड़ी टिन और लकड़ी के बोर्ड से बनी हुई थी। उसका दरवाजा ठीक गली में खुलता था। एक अच्छी बात ये थी कि उस गली से होकर इक्के दुक्के लोग ही आया जाया करते थे इसलिए उसमें अधिक चहल पहल नहीं होती थी। गली के दोनों किनारों पर झुग्गी झोपड़ियाँ इतनी अधिक थीं कि कोई भी भलामानुष उस गली में आने की हिम्मत ही न करे। यह झोपड़पट्टी पूरे इलाके में नशाखोरों और जुए के लिए बदनाम थी।

मंगरू ने थोड़ी घास फूस और सूखी टहनियों की सहायता से जल्दी ही टायर को सुलगा लिया। टायर धू धू कर जल रहा था। मंगरू और उसके परिवार के अलावा और भी कई लोग उस जलते टायर के इर्द गिर्द बैठ गये। टायर जलने की तेज बदबू से भी उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं आ रही थी। ऐसा उनकी वर्षों की प्रैक्टिस के कारण संभव हो पा रहा था।

उनमें से हर किसी को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे सब सीधा अपने बिस्तर से ही उठकर आ गये थे। उनमें ज्यादातर लोगों की शकल से पता चलता था कि इस कड़ाके की सर्दी में किसी को भी नहाए हुए दस दिन से अधिक बीत चुके थे। गरमागरम चाय और रोटी का नाश्ता पेट में जाने के बाद मंगरू की नींद पूरी तरह से खुल चुकी थी। थोड़ी देर देश और समाज की दुर्दशा पर चर्चा करने के बाद मंगरू अपने कुछ दोस्तों के साथ ताश खेलने में मगन हो गया। तब तक उसकी बीबी अपने काम पर निकल चुकी थी। वह पास के ही पक्के मकानों में झाड़ू पोछे का काम करती थी।

अभी ताश के एक दो ही हाथ हुए थे कि गली की एक छोर से कुछ कोलाहल सुनाई दिया। मंगरू और उसके दोस्तों ने जब उधर देखा तो पाया कि आगे-आगे दो आदमी चल रहे थे जो पैंट शर्ट कोट और चमचमाते हुए जूते पहने हुए थे। उनके पीछे-पीछे उसी झोपड़पट्टी के कई लोग हो हल्ला करते हुए इधर ही आ रहे थे। थोड़ी ही देर में वह भीड़ मंगरू के पास आ गई। उन दोनों के हाथ में एक एक लाल डायरी थी और दूसरे हाथ में कलम। दोनों बड़े ही रोबदार किस्म के लग रहे थे। उन्हें पास पहुँचते देख, मंगरू और उसके साथी हाथ जोड़कर बड़े अदब से खड़े हो गये। उन रोबदार किस्म के लोगों में से एक ने कहा, “किसकी परमिशन से तुमने ये टायर जलाया है?”

मंगरू ने सकपकाते हुए कहा, “अरे साहब, सर्दी बहुत थी तो सोचा अलाव जला लें............”

उस आदमी ने गरजते हुए कहा, “जानते नहीं, टायर या लकड़ी या सूखे पत्ते जलाना मना है। हमलोग नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से आये हैं। टायर जलाने के अपराध में तुम्हें पाँच हजार रुपए जुर्माना या छ: महीने की जेल या दोनों हो सकती है।“

मंगरू ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “साहब, ई कानून कब बन गया हमको पता ही नहीं चला। लेकिन हम गरीब आदमी हैं। हमारे पास तो ढंग की रजाई या कम्बल भी नहीं है। एक आग ही सहारा है जो इस कड़ाके की सर्दी में हमारी जान बचा सकती है।“

उस अफसर से दिखने वाले आदमी ने कहा, “कानून अमीर या गरीब में फर्क नहीं देखता है। अपराध किया है तो सजा भी मिलेगी। थाने चलो, नहीं तो अभी पुलिस बुला लूँगा।“

मंगरू का एक दोस्त इस बीच आगे आ गया। उसका नाम बुझावन था। बुझावन अपने आप को औरों से समझदार समझता था। उसने झटपट दो कुर्सियाँ वहाँ पर रख दी और कहा, “अजी साहब, आप तो सरकार हैं। आपका हुकम सर माथे पर। पुलिस बुलवाने की इतनी भी क्या जल्दी है। इतनी जबरदस्त ठंढ़ पड़ रही है। पहले बैठकर थोड़ा आग ताप लीजिए। शरीर में थोड़ी गरमाहट आ जाएगी, फिर आगे की कार्रवाई कर लीजिएगा।“

थोड़ी ना नुकर करने के बाद वे दोनों कुर्सियों पर बैठ गये और आग सेंकने लगे। अब आदत न होने की वजह से जलते टायर की बदबू उनकी बरदाश्त से बाहर हो रही थी। ऐसा देखकर बुझावन ने टायर की मदद से कुछ लकड़ियाँ सुलगाई और फिर टायर को वहाँ से हटवा दिया।“उसके बाद दोनों आदमी जो अफसर जैसे दिख रहे थे, आग तापने का मजा लेने लगे। इस बीच मंगरू और उसके दोस्तों ने उनके लिये अंगूर की बेटी का इंतजाम भी कर दिया जिसे कि ठंढ़ के मौसम में फायदेमंद माना जाता है। 

लगभग एकाध घंटे बिताने के बाद वे दोनों अफसर वहाँ से उठे और मंगरू से कहा, “भैया, जाड़े में तो आग तापने की जरूरत होती ही है। लेकिन थोड़ा बचाकर किया करो। झोपड़ी की ओट में करोगे तो किसी की नजर नहीं लगेगी। अब क्या करें, सरकार ने कानून बना दिया है सो इंसपेक्शन में जाना ही पड़ता है।“  

Saturday, January 7, 2017

साढ़े चार हजार रुपए

सुबह के दस बजने वाले थे। चिंटू और बंटी सेंट्रल मॉल के पास पहुँचे ही थे। चिंटू ने पार्किंग में बाइक लगाई और सीधा सामने वाले एटीएम की ओर देखा। एटीएम के बाहर सन्नाटा देखकर उसका दिल धक से रह गया।

चिंटू के चेहरे के भाव को पढ़कर बंटी ने कहा, “लगता है तुम्हें भी वही आशंका हो रही है जो मुझे हो रही है।“

चिंटू ने कहा, “हाँ लगता है एटीएम में पैसे नहीं हैं। अब क्या करें?”

बंटी ने कहा, “कहने को तो इस मार्केट में लगभग बीस एटीएम हैं लेकिन ये इकलौता एटीएम है जिसने लगभग हर दिन सही काम किया है। आज तो इसने भी धोखा दे दिया।“

चिंटू ने कहा, “इतनी जल्दी हताश नहीं होते। चलो, पास चलकर पता करते हैं।“

फिर दोनों सड़क पार करते हुए उस एटीएम के पास पहुँचे। तभी उन्हें अंदर से दरबान बाहर निकलता हुआ दिखाई दिया। चिंटू ने दरबान से पूछा, “भैया, क्या हुआ? आज पैसे नहीं आये?”

दरबान ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा, “नहीं साहब, आज पैसे भी आये हैं और एटीएम भी काम कर रहा है। एक जनवरी के बाद से हालत में बहुत सुधार आ गया है। अब पाँच पाँच घंटे लाइन लगने की जरूरत नहीं है।“

चिंटू ने कहा, “अच्छा, बड़ी अच्छी बात है। वैसे, कितने पैसे निकल रहे हैं अब?”

दरबान ने कहा, “अब तो साढ़े चार हजार निकल रहे हैं, वो भी पाँच सौ के नोट।“

बस फिर क्या था, चिंटू और बंटी लपक कर एटीएम केबिन के अंदर चले गये। पलक झपकते ही दोनों ने साढ़े चार-चार हजार रुपये निकाल लिये। दोनों की खुशी का ठिकाना न था। बाहर आते-आते बंटी बता रहा था, “याद है? लगभग दस दिन पहले हमारी क्या हालत हुई थी? इस एटीएम के पास सुबह दस बजे से तीन बजे तक खड़े रहने के बाद पता चला था कि पैसे खत्म हो गये।“

चिंटू ने कहा, “हाँ, उसके बाद हम पास में यूनियन बैंक की एटीएम के पास तीन घंटे लाइन में लगे थे। हमारा नंबर आने ही वाला था कि सर्वर फेल हो गया था। फिर हमलोग खाली हाथ वापस लौट गये थे।“

बंटी ने कहा, “हाँ और फिर अगले दिन फिर इसी एटीएम के पास शाम के पाँच बजे तक लाइन में खड़े होने के बावजूद पैसे नहीं मिले थे।“

चिंटू ने कहा, “आखिरकार तीसरे दिन हम पैसे निकालने में कामयाब हुए थे, वो भी केवल दो हजार रुपए।“

रुपए निकालने के बाद दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा। दोनों भाइयों की आँखें नम हो रहीं थीं। चिंटू ने कहा, “याद है, एक दिन पैसे की कमी के कारण हमें बिना बटर के ही ब्रेड खानी पड़ी थी।“
बंटी ने कहा, “हाँ, वो भी तब जब हमारे खाते में पैसे भी थे और हमारा एटीएम कार्ड भी पास में ही था।“

चिंटू ने कहा, “हद तो तब हो गई थी जब पास में पैसे न होने की वजह से मैं नौकरी के लिए इंटरव्यू देने नहीं जा पाया था।“

बंटी ने कहा, “सोचो, आज डेमोक्रेसी के जमाने में ये हालत है। मैं तो यही सोचकर डर जाता हूँ कि किसी सनकी राजा के जमाने में लोगों की क्या हालत होती होगी।“

चिंटू ने कहा, “जो हुआ उसे भूलने में ही भलाई है। पास्ट या फ्यूचर के बारे में सोचने की बजाय हमें प्रेजेंट को एंजॉय करना चाहिए। चलो, मैकडॉनल्ड चलते हैं। एक एक बर्गर खाएँगे।“

बंटी ने कहा, “सिर्फ बर्गर क्यों? चलो पूरा मील खाते हैं। आज इतनी ट्रीट तो बनती ही है।“


फिर दोनों पास के ही मैकडॉनल्ड के रेस्तरां में गये। वहाँ पर उन्होंने बर्गर इस तरह से खाया जैसे कि पहले कभी न खाया हो।

थोड़ी देर के बाद दोनों वापस अपने घर पहुँच गये। चिंटू ने अपनी माँ को साढ़े आठ हजार रुपये दिये और कहा, “माँ, आज तो कमाल हो गया। आज एटीएम के बाहर एक भी आदमी नहीं था। और तो और, पैसे भी आज ज्यादा निकल रहे थे। एक कार्ड से साढ़े चार हजार रुपये। हम दोनों ने मिलकर नौ हजार रुपये निकाल लिये। अब तुम आराम से कामवाली, पेपर वाले, पानी वाले, दूधवाले और गाड़ी पोंछने वाले को पैसे दे सकती हो।“

उनकी माँ ने पैसे लेते हुए पूछा, “लेकिन तुम तो केवल साढ़े आठ हजार ही दे रहे हो। बाकी के पाँच सौ कहाँ गये?”

बंटी ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा, “वो ऐसा हुआ कि इतनी आसानी से पैसे निकल जाने से हम बहुत खुश हो गये। फिर हमलोग मैक डॉनल्ड में चले गये। दोनों ने पूरी की पूरी मील खा ली। उसी में पैसे खर्च हो गये। लेकिन तुम चिंता ना करो। मैं कल फिर जाकर नौ हजार और निकाल लाउँगा।“

उनकी माँ ने कुछ नहीं कहा। बस दोनों के गालों पर एक हल्की सी चपत जड़ दी। 

Monday, January 2, 2017

Tale of Ramayana with a twist

You must be aware that Dashrath was a great king. Being a king, he was never far from various pleasures of life. Taking things to the next level, Dashrath was married to three wives and was thus trying to keep the practice of polygamy live and kicking. Handling and maintaining even a single wife can be an uphill task for mere mortals like us. But it was not the case for the undisputed king of Ayodhya. However, things remain in your favour till you are young. Once the old age begins to take over your life, everything can go out of control.

King Dashrath was getting old. His eldest son was also the son of the first queen of Dashrath. Hence, the eldest son Ram was logical choice to take over the reins from Dashrath. Dashrath was also thinking about the succession plan and had discussed the matter with his ministers to make it a smooth transfer of power to the next generation. But when power is at stake, then many claimants to the throne can crop up as surprise packs. While Dashrath was busy in chalking out the plans for transfer of power to his eldest son, a message from the royal palace was conveyed to Dashrath. The message was about the blue mood of his favourite queen Kaikeyi.

Kaikeyi wanted the kingdom for her son Bharat so that she could enjoy the majority stake in power. Dashrath had to finally give in to strong arm tactics of Kaikeyi. But he was not sure how to get Ram to agree to the changed equations of power. Ram had already been doing some groundwork for his eventual ascension to the throne. He was keenly pursuing all the activities to raise his TRP among the public. Dashrath was aware about Ram’s growing rank in the popularity charts.

After many rounds of conferences with his trusted ministers, Dashrath decided to use his veto power to remove Ram from the power equation. It was decided to send Ram into exile for a long period so that Ram’s name could be erased from public memory.

Ram was promptly called to the royal court so that Dashrath could tell him in plain and harsh words about the new succession plan. When Ram got the message about King’s desire to meet him, Ram was unable to control his emotions. He was almost sure that he would be getting the baton in his hands to continue the rich legacy of the Raghukul. So, Ram dressed in his finest dress. It was made from the finest silk from the famous Silk bazaar of Varanasi. Ram also used copious amount of floral perfume to make a lasting impression in the royal court.

When Ram entered the royal court, he did not get the rousing reception as he had expected. Nevertheless, Ram tried to maintain his composure and sat on a seat which was designated for the eldest prince. Dashrath spoke in his choked voice, “Ram, there is good news and a bad news. The good news is that we have finalized the succession plan. But the bad news is you are not going to be the next king of Ayodhya. You may recall that I was bound to a promise which I had given to Kaikeyi during an epic battle. To keep my words, I could not refuse Kaikeyi’s demand. So, I have decided to hand over the reins of this kingdom to your beloved brother Bharat. You will agree that no king in this world wants to have a constant threat of a parallel centre of power. So, the whole council of ministers has decided that you will have to live in exile for fourteen years. You will have to immediately leave the boundaries of this great kingdom. You will have to live in jungle for fourteen years. After that, if situations would permit you may try your luck at making a shot for the king’s throne.”

After that short speech, everyone in the royal court was stunned. There was pin drop silence in the royal court. But Ram appeared as confident as ever. Without batting an eyelid, he said, “I have all the respect for you because you are my father and you are the king of Ayodhya. But I beg to differ from you on this issue. You will agree that in every era a time comes when the older generation has to make way for the newer generation. Our sacred texts have also mentioned the concept of four Ashramas. The time has come for you to take sanyas or detachment from worldly matters. I am the most eligible choice to be the next king of Ayodhya. Moreover, I have been doing so many works of public welfare for no reason. I had been doing everything so that the common people of this great empire will not have problem in accepting me as their new king. Even during my days in the gurukul, I was given the award of the best student. Bharat was way behind me in the rankings. I am sure you will not become a fan of your eldest son if he ends up meekly surrendering to any challenge. So, I have decided that I will be the next king of this kingdom and will not allow anybody else to take my position. I think, this will benefit the kingdom in the long run. This will also be good for your reputation as a great king. I am confident that the council of ministers will give a majority vote in my favour.”

After that, Ram arranged for a show of strength in the royal court. To Dashrath’s great surprise, majority of the members in the court said yes in Ram’s favour. It was a bolt from the blue for Dashrath. Dashrath could not withstand that sudden onslaught on his authority. He started sweating profusely. His heart was beating at double the normal rate of seventy two beats per minute. Within no time, he fell on his seat and became unconscious.


Dashrath’s lifeless body was promptly removed from the scene and was carried to the palace so that the royal doctors could attend to him. Meanwhile, Ram lost no time in sitting on the royal throne. After that, Ram announced his first major ordinance, “It is for the benefit of the great kingdom of Ayodhya. Bharat and his mother Kaikeyi will be sent to exile with immediate effect. I don’t want any parallel centre of power in this kingdom. If anybody has a problem with this ordinance, he is free to go along with Bharat and his mother. Times have changed and you should be well aware of the real boss.”