सुबह सुबह मुझे लगा कि मेरे
शरीर का निकोटिन लेवेल कम हो गया है। इसलिये मैं उसकी भरपाई करने के खयाल से घर से
निकला ताकि सोसाइटी के गेट के बाहर की दुकान तक जा सकूँ। मेरी बीबी पूजा की तैयारी
में तल्लीन लग रही थी। उसकी तैयारी के विशाल स्केल को देखकर मुझे ध्यान आया कि आज
दुर्गा पूजा की नवमी वाली पूजा होगी जिसमें हवन करना होता है। मैने अपनी बीबी से
पूछा, “मैं नीचे जा रहा हूँ, कुछ मंगवाना
तो नहीं है?“
मेरी बीबी ने वहीं बैठे बैठे जवाब दिया, “हाँ,
दूध और लड्डू ले आना। हाँ, उस दूधवाले से कहना
कि कल जो दही दिया था वह बहुत ही घटिया था।“
मैने अपनी बीबी के इंस्ट्रक्शन का एक मेंटल नोट बना लिया और
दरवाजे से निकल कर लिफ्ट तक आया। लिफ्ट से जब मैं ग्राउंड फ्लोर पर पहुँचा तो वहाँ
सामने बैठे दरबान ने अपनी पोपली मुसकान के साथ मुझे नमस्ते किया। मैने भी उसकी
नमस्ते का जवाब मुसकरा कर दिया और तेजी से आगे बढ़ गया। लगभग डेढ़ सौ कदम चलने के
बाद मैं सोसाइटी के गेट से बाहर निकला और सामने की सड़क पार करने के बाद सामने एक
मिनी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में पहुँचा। इस शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में बेसमेंट में कुछ
किराना की दुकानें और एक मिठाई की दुकान है जो दूध दही भी बेचा करती है। दूधवाला
बाहर सड़क के किनारे ही अपनी कुर्सी पर विराजमान था। मुझे देखते ही वह मुसकराया और
मेरे आगे-आगे दुकान के अंदर चला गया।
मैने उससे कहा, “भैया एक लीटर दूध और आधा किलो लड्डू
देना।“
दुकानदार ने एक प्लास्टिक की थैली में दूध भरना शुरु किया
और पूछा,
“भाई साहब, दूध पसंद आ रहा है?”
मैने कहा, “ठीक ही है। पैकेट वाले दूध से थोड़ा बेहतर।
पैकेट वाले दूध में एक अजीब सी बदबू आती है। लेकिन तुम्हारा दूध भी शुद्ध नहीं
लगता है।“
दुकानदार ने मेरी ओर देखा और कहा, “भैया,
थोड़ा पानी तो हम भी मिलाते हैं, लेकिन साफ
पानी मिलाते हैं इसकी गारंटी है।“
मेरे चेहरे पर एक फीकी मुस्कान आई और मैने कहा, “भैया,
तुम जितने पैसे मांगते हो उतने मैं देता हूँ। फिर शुद्ध दूध क्यों
नहीं बेचते?“
दुकानदार ने थोड़ा हँसते हुए कहा, “नहीं
भाई साहब, दरअसल ऐसा है कि यदि आप जैसे शहरी लोग भैंस का शुद्ध
दूध पी लें तो पेट खराब हो जाये।“
उसके बाद मुझे लगा कि उस आदमी से बहस लड़ाने में कोई फायदा नही
है। मुझे उससे लड्डू भी लेने थे। उसके मिठाई की सबसे नजदीकी दुकान वहाँ से कम से कम
तीन किमी की दूरी पर है इसलिये मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था। मैंने उससे कहा, “भैया,
आधा किलो लड्डू दे दो।“
दूध के पैकेट को रबर बैंड से सील करने के बाद वह लड्डू तौलने
की तैयारी करने लगा। उसने गत्ते से बना एक लाल रंग का डिब्बा निकाला जिसके ऊपर रंगोली
जैसा सुंदर डिजाइन बना था। उसने डिब्बे में लड्डू डाले और उन्हें तौलने लगा। उसकी इलेक्ट्रानिक
स्केल पर 518 ग्राम वजन दिख रहा था। वह डब्बा पैक करते हुए बोला, “देखो
भाई साहब, मैने आपको 18 ग्राम अधिक लड्डू दिये हैं।“
मैने कहा, “लेकिन तुमने तो लड्डू के साथ साथ डिब्बे का
भी वजन लिया है। इसका मतलब है तुम डिब्बे को भी दो सौ रुपये किलो की दर से बेच रहे
हो। ये तो गलत बात है।“
दुकानदार ने कहा, “आप कहीं भी चले जाएँ, हर मिठाई वाला मिठाई के डिब्बे के साथ ही मिठाई तौलता है। यही परिपाटी है।
इसमे गलत क्या है?”
मैने कहा, “भैया, तुमने जो रेट मांगा
वो मैने दिया। तुमसे मोलभाव नहीं किया। फिर भी तुम मुझे लूटने की कोशिश क्यों कर रहे
हो?”
मैने आगे कहा, “और सुनो, कल तुमसे जो
दही लिया था वो भी घटिया था। सही सामान दोगे तो तुम्हारे ग्राहक बने रहेंगे।“
दुकानदार ने कहा, “क्या कहा, दही खराब था?
तो आज मट्ठा ले जाओ पीने के लिये।“
मुझे अब झल्लाहट होने लगी थी। मैने कहा, “कमाल
करते हो यार, दही खराब था इसलिये अब मट्ठा पी लूँ। तुम कहो तो
दूह दही खाना ही बंद कर दूँ।“
तभी दुकानदार का बड़ा भाई भी दुकान पर पहुँच चुका था। मामले को
समझने के बाद उसके तो अलग ही तेवर थे। वह मुझसे बोला, “देखो
भाई साहब, जो सामान मिलता है शराफत से ले लिया करो। हम पिछले
सात पुश्तों से दूध दही का धंधा कर रहे हैं। आज तक किसी की मजाल नहीं हुई कि हमारे
सामान को खराब बोल दे। एक दो तुम्हारे जैसे ग्राहक नहीं आएँगे तो हमारी सेहत को कोई
असर नहीं पड़ने वाला।“
मुझे पता था कि वह पास के ही गाँव के एक दबंग का रिश्तेदार है।
इसलिए मैने चुपचाप उसकी बात सुन ली और पैसे चुकता करने के बाद अपने घर चला आया। मेरी
बीबी को मेरी शकल देखकर कुछ शक हुआ तो मैने कहा, “तुमसे तो मैं ही ठीक हूँ।
पिछले पंद्रह सालों से नींबू वाली चाय पी रहा हूँ क्योंकि कहीं भी सही दूध नहीं मिलता
है। दही खाना है तो किसी मल्टीनेशनल ब्रांड का खाओ। उससे कम से कम इन उजड्डों से बहस
तो नहीं लड़ानी पड़ेगी।“