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Wednesday, October 19, 2016

Fun in Train 2

"अंकल आप क्या कर रहे हैं?" बच्चे ने उस आदमी से पूछा।

उस आदमी ने मफलर को ठीक करके अपने चेहरे को और छुपाते हुए बोला, "देखते नहीं , बल्ब निकाल रहा हूँ?"

बच्चे ने फिर पूछा, "तो आप खराब बल्ब को निकाल कर नया बल्ब लगाते हैं? आप रेलवे के मैकेनिक हैं?"

उस आदमी ने बल्ब को अपने जैकेट की जेब में डालते हुए कहा, "नहीं, मैं इस बल्ब को अपने घर ले जाउँगा, फिर घर में रोशनी होगी।"

बच्चे ने कहा, "लेकिन यह बल्ब तो रेल का है। आप इसे चोरी कर रहे हैं?"

उस आदमी ने थोड़ा खीझते हुए कहा, "ऊपर देखो, लिखा हुआ है कि रेल की संपत्ति आपकी अपनी संपत्ति है।"

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Sunday, October 16, 2016

Fun in Train

बंटी को नाक भौं सिकोड़े लौटता देखकर उसकी माँ ने पूछा, "क्या हुआ? लगता है टॉयलेट बहुत गंदा है।"

बंटी ने कहा, "हाँ, लगता है किसी देहाती आदमी ने कल रात ढ़ेर सारा खाना खा लिया था और उसी को पूरी टॉयलेट सीट पर निकालकर अभी अभी निकला है। पता नहीं कैसे कैसे लोग चले आते हैं ट्रेन में सफर करने। बदबू से तो बुरा हाल है। मैंं तीन दिन तक रोक लूंंगा लेकिन ऐसी हालत में मेरी तो नहीं निकलेगी।"

बंटी की माँ ने कहा, "बेटा, ये तुम्हारे बेडरूम का अटैच बाथरूम नहीं है। ट्रेन से चलते समय इन सब चीजों को बर्दाश्त करने की आदत डाल लेनी चाहिए।"

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Saturday, October 15, 2016

Fun on Train

The passenger appeared to be highly annoyed when he said to the pantry staff, "Hey! Why do you sell mineral water of fake brands? You are also charging way beyond the maximum retail price."

The pantry staff rudely answered, "Take what you get. You have no other option than to buy from us."

The passenger was flabbergasted, "I am going to complain about this. Can I get the complaint form?"

The pantry staff laughed while he replied, "We don't keep complaint forms. For getting a contract for this train, our owner had paid a huge sum of commission to the higher authorities in the railways. No, point in complaining."

The pantry staff further continued, "If you are so particular about quality then you should buy a private jet to travel in this country.

You may have experienced such harrowing experience while travelling by train. Read about a not so pleasant experience of travellers during a train journey. Buy my new novel "Your Train is Running Late"

Friday, October 14, 2016

Inconvenience is Deeply Regretted Part 2

ट्रेन ठसाठस भरी हुई थी। जब ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी तो डिब्बे के गेट पर लोगों की धक्कामुक्की शुरु हो गई। कुछ लोग उतरने की कोशिश कर रहे थे तो कुछ डिब्बे में चढ़ने की। तीन हट्टे कट्टे पुरुष ढे‌र सारे सामान के साथ किसी तरह डिब्बे में घुसने में सफल हो गये। डिब्बे के अंदर आते ही उन्होंने सामान को ऊपर वाली बर्थ पर ठूंसना शुरु किया। जब तक वो सामान रखकर सीट पर अपने लिये जगह बनाते तब तक ट्रेन चल चुकी थी। तीनों ने दम लेने के लिये तेजी से सांस लेना शुरु किया।

उसके बाद उनमे से एक थोड़ा घबराहट से बोला, "हई दादा! गजब हो गइल।"

उनमे से दूसरे ने पूछा, "का हो चाचा, का भइल?"

इसपर पहले आदमी ने कहा, "अरे जिनका के चहुपावे आइल रही हऊ त रेल में घुसवे न कइलन। ऊ लोग त स्टेशनवे पर छुट गइलन।"

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Thursday, October 13, 2016

Inconvenience is Deeply Regretted

भैया ये कटलेट तो ठंडे हैं। तुम गर्म कटलेट क्यों नहीं रखते?“ मैने पैंट्री के स्टाफ से पूछा।

पैंट्री के स्टाफ ने निर्विकार भाव से कहा, “साहब, ये कटलेट कल के हैं। पहले कल वाले बिक जाएँ तभी तो आज ताजे बनेंगे।

क्या आपको भी ट्रेन यात्रा के दौरान ऐसा अनुभव हुआ है? पढ़िये ऐसे ही मजेदार और रोचक अनुभव मेरे नये उपन्यास YOUR TRAIN IS RUNNING LATEमें। यह उपन्यास अमेजन डॉट कॉम पर उपलब्ध है। यह किंडल पर और पेपरबैक दोनों टाइप में उपलब्ध है। 

Your Train is Running Late

This story is about various problems which one can encounter while travelling by trains; especially during a long distance journey. More often than not, the train never runs on time. A slight disturbance in weather causes inordinate delay in train timings. The lack of concept of ‘customer service’ among the railway staffs, vendors, railway police, etc. further compound the problem and take the joy out of traveling. There are two key protagonists in this novel. One of them is a middle class person while another is a migrant laborer. Both of them face almost similar problems but each of them has his own way to visualize and tackle a particular problem. But the migrant laborer faces more problems because of his socio-economic status. But the same socio-economic status enables him to derive more pleasure from mundane things. Both the protagonists are travelling by the same train but are travelling in different classes. Both of them get almost similar pain due to inordinately long duration of the journey. However, both of them keep on their nerves to withstand the agonies of the journey and finally end up as satisfied passengers when they reach their final destination. One of the protagonists is a middle class person working at middle level position in some private company at Delhi. Another protagonist is a migrant laborer from Bihar who lives with three other friends in a slum in Delhi. The first protagonist is traveling to Bihar for the festival of Holi; along with his family. The second protagonist is also traveling by the same train and for the same purpose but he is going to meet his family. The first protagonist is going by the air-conditioned class while another guy is going by the sleeper class. Both of them face difficulties while getting confirmed tickets for the journey. However, availability of a travel agent makes it somewhat easier for the second character. The train is running behind its schedule and hence both of them are forced to wait for their train for about ten hours on the waiting lounge of the railway station. During their journey, they face numerous other problems; in the form of shoddy quality of food, greedy railway staffs and further delay during the journey. They make many friends during the journey and share their thoughts, happiness and sorrow with their fellow passengers. They get to interact with some of the unique characters during their journey. After going through all the trials and tribulations, they successfully reach their respective destinations. The train takes more than thirty hours to complete its journey against the stipulated schedule of about twenty hours. If waiting period is included then their tale of horror lasts for more than forty hours. This story tells about the numerous difficulties faced by common people in their day-to-day life. We should not forget that we are living in a country where a simple task like crossing the road can be life threatening. 

Sunday, October 9, 2016

नीचे का करप्शन

सुबह सुबह मुझे लगा कि मेरे शरीर का निकोटिन लेवेल कम हो गया है। इसलिये मैं उसकी भरपाई करने के खयाल से घर से निकला ताकि सोसाइटी के गेट के बाहर की दुकान तक जा सकूँ। मेरी बीबी पूजा की तैयारी में तल्लीन लग रही थी। उसकी तैयारी के विशाल स्केल को देखकर मुझे ध्यान आया कि आज दुर्गा पूजा की नवमी वाली पूजा होगी जिसमें हवन करना होता है। मैने अपनी बीबी से पूछा, “मैं नीचे जा रहा हूँ, कुछ मंगवाना तो नहीं है?

मेरी बीबी ने वहीं बैठे बैठे जवाब दिया, “हाँ, दूध और लड्डू ले आना। हाँ, उस दूधवाले से कहना कि कल जो दही दिया था वह बहुत ही घटिया था।“

मैने अपनी बीबी के इंस्ट्रक्शन का एक मेंटल नोट बना लिया और दरवाजे से निकल कर लिफ्ट तक आया। लिफ्ट से जब मैं ग्राउंड फ्लोर पर पहुँचा तो वहाँ सामने बैठे दरबान ने अपनी पोपली मुसकान के साथ मुझे नमस्ते किया। मैने भी उसकी नमस्ते का जवाब मुसकरा कर दिया और तेजी से आगे बढ़ गया। लगभग डेढ़ सौ कदम चलने के बाद मैं सोसाइटी के गेट से बाहर निकला और सामने की सड़क पार करने के बाद सामने एक मिनी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में पहुँचा। इस शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में बेसमेंट में कुछ किराना की दुकानें और एक मिठाई की दुकान है जो दूध दही भी बेचा करती है। दूधवाला बाहर सड़क के किनारे ही अपनी कुर्सी पर विराजमान था। मुझे देखते ही वह मुसकराया और मेरे आगे-आगे दुकान के अंदर चला गया।

मैने उससे कहा, “भैया एक लीटर दूध और आधा किलो लड्डू देना।“

दुकानदार ने एक प्लास्टिक की थैली में दूध भरना शुरु किया और पूछा, “भाई साहब, दूध पसंद आ रहा है?”

मैने कहा, “ठीक ही है। पैकेट वाले दूध से थोड़ा बेहतर। पैकेट वाले दूध में एक अजीब सी बदबू आती है। लेकिन तुम्हारा दूध भी शुद्ध नहीं लगता है।“

दुकानदार ने मेरी ओर देखा और कहा, “भैया, थोड़ा पानी तो हम भी मिलाते हैं, लेकिन साफ पानी मिलाते हैं इसकी गारंटी है।“

मेरे चेहरे पर एक फीकी मुस्कान आई और मैने कहा, “भैया, तुम जितने पैसे मांगते हो उतने मैं देता हूँ। फिर शुद्ध दूध क्यों नहीं बेचते?

दुकानदार ने थोड़ा हँसते हुए कहा, “नहीं भाई साहब, दरअसल ऐसा है कि यदि आप जैसे शहरी लोग भैंस का शुद्ध दूध पी लें तो पेट खराब हो जाये।“

उसके बाद मुझे लगा कि उस आदमी से बहस लड़ाने में कोई फायदा नही है। मुझे उससे लड्डू भी लेने थे। उसके मिठाई की सबसे नजदीकी दुकान वहाँ से कम से कम तीन किमी की दूरी पर है इसलिये मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था। मैंने उससे कहा, “भैया, आधा किलो लड्डू दे दो।“

दूध के पैकेट को रबर बैंड से सील करने के बाद वह लड्डू तौलने की तैयारी करने लगा। उसने गत्ते से बना एक लाल रंग का डिब्बा निकाला जिसके ऊपर रंगोली जैसा सुंदर डिजाइन बना था। उसने डिब्बे में लड्डू डाले और उन्हें तौलने लगा। उसकी इलेक्ट्रानिक स्केल पर 518 ग्राम वजन दिख रहा था। वह डब्बा पैक करते हुए बोला, “देखो भाई साहब, मैने आपको 18 ग्राम अधिक लड्डू दिये हैं।“

मैने कहा, “लेकिन तुमने तो लड्डू के साथ साथ डिब्बे का भी वजन लिया है। इसका मतलब है तुम डिब्बे को भी दो सौ रुपये किलो की दर से बेच रहे हो। ये तो गलत बात है।“   

दुकानदार ने कहा, “आप कहीं भी चले जाएँ, हर मिठाई वाला मिठाई के डिब्बे के साथ ही मिठाई तौलता है। यही परिपाटी है। इसमे गलत क्या है?”

मैने कहा, “भैया, तुमने जो रेट मांगा वो मैने दिया। तुमसे मोलभाव नहीं किया। फिर भी तुम मुझे लूटने की कोशिश क्यों कर रहे हो?”

मैने आगे कहा, “और सुनो, कल तुमसे जो दही लिया था वो भी घटिया था। सही सामान दोगे तो तुम्हारे ग्राहक बने रहेंगे।“

दुकानदार ने कहा, “क्या कहा, दही खराब था? तो आज मट्ठा ले जाओ पीने के लिये।“

मुझे अब झल्लाहट होने लगी थी। मैने कहा, “कमाल करते हो यार, दही खराब था इसलिये अब मट्ठा पी लूँ। तुम कहो तो दूह दही खाना ही बंद कर दूँ।“

तभी दुकानदार का बड़ा भाई भी दुकान पर पहुँच चुका था। मामले को समझने के बाद उसके तो अलग ही तेवर थे। वह मुझसे बोला, “देखो भाई साहब, जो सामान मिलता है शराफत से ले लिया करो। हम पिछले सात पुश्तों से दूध दही का धंधा कर रहे हैं। आज तक किसी की मजाल नहीं हुई कि हमारे सामान को खराब बोल दे। एक दो तुम्हारे जैसे ग्राहक नहीं आएँगे तो हमारी सेहत को कोई असर नहीं पड़ने वाला।“


मुझे पता था कि वह पास के ही गाँव के एक दबंग का रिश्तेदार है। इसलिए मैने चुपचाप उसकी बात सुन ली और पैसे चुकता करने के बाद अपने घर चला आया। मेरी बीबी को मेरी शकल देखकर कुछ शक हुआ तो मैने कहा, “तुमसे तो मैं ही ठीक हूँ। पिछले पंद्रह सालों से नींबू वाली चाय पी रहा हूँ क्योंकि कहीं भी सही दूध नहीं मिलता है। दही खाना है तो किसी मल्टीनेशनल ब्रांड का खाओ। उससे कम से कम इन उजड्डों से बहस तो नहीं लड़ानी पड़ेगी।“