आज कुछ भक्त जन बड़े दुखी लग
रहे हैं। जिस आदमी को वे आजतक सबसे बड़ा उल्लू साबित कर चुके थे उसी आदमी ने उनकी दुखती
रग छेड़ दी। लगभग दो साल पहले उनके स्टार परफॉर्मर का आगाज किसी धूमकेतू की तरह हुआ
था। उस धूमकेतू की आगवानी में कुछ लोगों ने तो एक कमाल का नारा भी बना लिया था, “हर हर मोदी घर घर मोदी।“ वह
धूमकेतू था भी लाजवाब; रोशनी से लबरेज
और पीछे गैस की लंबी लकीर छोड़ता हुआ; जिसे अंग्रेजी में ट्रेलब्लेज कहते हैं। वैसा
ट्रेलब्लेज जैसा रॉकेट अपने लॉंच के समय छोड़ता है। इसपर मुझे एक ट्रेनिंग प्रोग्राम
याद आया जिसका शीर्षक था ट्रेलब्लेज। उस प्रोग्राम में एक वीडियो दिखाया गया था जिसमें
हर बात पर कोई मशहूर अंग्रेजी गायक एक ही लाइन दोहराता था, “बी
ए वारियर, विन द रेस, ट्रेल ब्लेज ट्रेल
ब्लेज।“ लोगों ने बड़ी उम्मीद से उस धूमकेतू को अपने सर आँखों पर उठा लिया था क्योंकि
वे उसके दिखाए सब्जबाग से अच्छे खासे प्रभावित थे। सबको लगता था कि अच्छे दिन जल्दी
ही आ जाएँगे। लेकिन विज्ञान की किताब में मैने पढ़ा है कि धूमकेतू जिस रास्ते पर चलता
है उसका आकार किसी एलिप्स की तरह होता है। मतलब इसकी परिधि की चौड़ाई कम होती है लेकिन
लंबाई बहुत अधिक होती है। इस कारण से जब धूमकेतू धरती के आसपास से गुजरता है तो बड़ी
तेज रोशनी देता है। लेकिन जब यह धरती से बहुत दूर चला जाता है तो फिर यह शक्तिशाली
दूरबीनों से भी नजर नहीं आता है। एक और बात गौर करने लायक है कि धूमकेतू को दोबारा
धरती के पास आने में पचास या सौ वर्षों से भी ज्यादा लग जाते हैं। अब इस धूमकेतू के
साथ भी ऐसा ही हो रहा है। चुनाव जीतने के साथ ही वह हिंदुस्तान की धरती से दूर जाने
लगा। अब उसका ज्यादा समय विदेशों में बीतता है क्योंकि वसुधैव कुटुंबकम की पॉलिसी के
तहत वह दुनिया के अन्य भागों को भी रोशनी पहुँचाना चाहता है। इस बीच हिंदुस्तान में
अँधेरा छाता जा रहा है। कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं गाय के नाम पर तो कहीं जाति के
नाम पर दंगे भड़काए जा रहे हैं। चीजों के दाम सुरसा के मुँह की तरह बढ़ते ही जा रहे हैं।
अब दाल का उदाहरण लीजिए। बचपन में पढ़ा और सुना था कि दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ।
इसका मतलब था कि सस्ता और साधारण खाना खाकर संतोष करना सीखो। लेकिन दाल के दाम इतने
बढ़ गये हैं कि यह गरीब क्या मध्यम वर्ग की थाली से भी गायब होती जा रही है। भारत एक
ऐसा देश है जहाँ ज्यादातर लोग शाकाहारी हैं। जो लोग माँसाहारी हैं वे भी महीने के बीस
से पच्चीस दिन तो शाकाहारी भोजन ही करते हैं। ऐसे में दाल उनके लिए प्रोटीन के एकमात्र
स्रोत का काम करती है। वैसे भी भारत में कार्बोहाइड्रेट से भरपूर भोजन खाने के कारण
भारत दुनिया का डायबिटीज कैपिटल हो गया है। सरकार उसे रोकने के लिए ‘फैट टैक्स’ लगाने के बारे में भी सोच रही है लेकिन दाल
की कीमतों के बारे में कुछ भी नहीं सोच रही है। अब इससे मुट्ठी भर बचे कांग्रेसियों
को यदि ये लगता है कि मोदी जी के मुँह से कुछ उगलवाने के लिए कोई रैली करवानी पड़ेगी
तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। राहुल गाँधी; जिन्हें ज्यादातर
लोग पप्पू के नाम से जानते हैं; को भी लगता है आटे दाल का भाव
पता चल गया तभी तो वे एक नए नारे, “अरहर मोदी” की बात कर रहे
हैं। लेकिन राहुल गाँधी के इस बढ़ते ज्ञान के पीछे किसी और नहीं बल्की मोदी सरकार का
हाथ है। इस सरकार ने पिछले दो साल में अपने किसी भी चुनावी वादे को पूरा नहीं किया।
कच्चे तेल की कीमत घटने के बावजूद पेट्रोल के दाम नहीं घटे। दाम यदि घटाए जाते हैं
तो एक दो रुपए और बढ़ाए जाते हैं तो तीन चार रुपए। इस स्थिति में फैसला आप का है कि
आप ‘हर हर मोदी’ बोलते हैं या ‘अरहर मोदी’।
High level satire on political and social happenings in India. Get to read funny stories in Hindi & English.
Thursday, July 28, 2016
Wednesday, July 27, 2016
फूफा जी की हजामत
गप्पू आजकल बहुत खुश है। आजकल
उसके धनबाद वाले फूफा जी आये हुए हैं इसलिए। हालाँकि फूफाजी और गप्पू में उम्र का एक
बड़ा अंतर है लेकिन दोनों में अच्छी पटरी खाती है। गप्पू दस साल का है जबकी फूफा जी
बस साठ पहुँचने ही वाले हैं। फूफाजी को बच्चों से बहुत लगाव हैं। जैसे ही गप्पू स्कूल
से लौटता है बस फूफा जी उसके साथ कैरम खेलने बैठ जाते हैं। गप्पू के आठवें जन्मदिन
पर उसके पापा ने कैरम गिफ्ट किया था लेकिन घर में किसी के पास इतनी फुरसत नहीं कि गप्पू
के साथ कैरम खेल पाये। गप्पू के पापा हर वक्त अपने काम में बिजी रहते हैं। गप्पू की
मम्मी को रसोई से फुरसत मिलती है तो शॉपिंग का वक्त हो जाता है। गप्पू की बड़ी बहन पढ़ाई
में बिजी रहती है क्योंकि उसे अगले साल इंजिनियरिंग के एंट्रेंस एग्जाम देने हैं। बेचारा
गप्पू सारा दिन टीवी देखता है। लेकिन उसके इस शौक में भी उसकी दादी खलल डाल देती हैं
क्योंकि उनहें पारिवारिक और धार्मिक सीरियल जो देखने होते हैं।
फूफा जी के बेटे बेटी अब बड़े
हो गये हैं। बेटी कलकत्ता में और बेटा जोधपुर में नौकरी करता है। उन्हें धनबाद से जोधपुर
जाना था इसलिए सोचा कि दिल्ली होते हुए जाएँ। इसी बहाने सबसे भेंट भी हो जाएगी और दिल्ली
भ्रमण भी हो जायेगा। फूफाजी की आड़ में गप्पू ने तीन दिन के लिए स्कूल से भी छुट्टी
कर ली। उसकी तो लॉट्री लग गई। फूफा जी ने टैक्सी बुलाई और दिल्ली भ्रमण के लिए निकल
लिये। गप्पू दिल्ली की लगभग हर वैसी जगह पर घूम चुका है जो घूमने लायक है। इसलिए गप्पू
फूफा जी के लिए एक अच्छा गाइड साबित हो रहा था। शाम में लौटते समय फूफा जी ने सबके
लिये ढ़ेर सारा मोमो भी खरीद लिया ताकि बरसात की शाम को गरमागरम खाने से सुहाना बनाया
जा सके।
जब वे लोग मोमो का लुत्फ उठा
रहे थे तो गप्पू ने कहा, “फूफा जी, एक बात पूछूँ?”
फूफा जी ने कहा, “हाँ पूछो।“
गप्पू ने पूछा, “आपको ऐसा नहीं लगता है कि आपके बाल बहुत बड़े
हो गये हैं और आपको नाई के पास जाने की जरूरत है?”
फूफा जी ने जवाब दिया, “तुमने सही पकड़ा है। धनबाद से चलते समय ही मैने
सोचा था कि हजामत बनवा लूँगा लेकिन तुम्हारी बुआ की शॉपिंग के चक्कर में टाइम ही नहीं
मिला।“
गप्पू ने कहा, “तो कल चलिये और दिल्ली में हजामत बनवा लीजिए।“
फूफा जी ने कहा, “अरे नहीं, पता नहीं यहाँ
के नाई कैसी हजामत बनाते हैं। मैं तो पिछले तीस सालों से धनबाद के एक ही नाई से हजामत
बनवा रहा हूँ। मुझे उसपर पूरा भरोसा है। पता है, एक बार मैं कंपनी
की ट्रेनिंग के सिलसिले में डेढ़ महीने तक मुम्बई में था लेकिन हजामत नहीं बनवाई।“
गप्पू ने कहा, “क्या बात कर रहे हैं। आपको शायद बुरा लगे लेकिन
दिल्ली तो हर मामले में धनबाद से बेहतर है। यहाँ के नाई तो ज्यादा ही स्मार्ट लगते
हैं। फिर उनकी दुकान भी चकाचक है। एसी लगा हुआ है और अंदर से बिलकुल साफ सुथरा। फिर
अब आपकी उमर में बालों को लेकर इतने नखरे भी शोभा नहीं देता।“
फूफा जी ने कहा, “अरे नहीं, मैं एक महीने
बाद जब जोधपुर से धनबाद लौटूँगा तभी हजामत बनवाउँगा। नहीं तो मेरी हेयरस्टाइल खराब
हो जाएगी।“
गप्पू ने कहा, “क्या बात कर रहे हैं फूफाजी। मेरे साथ चलिये।
मैं आपके बाल बिलकुल लेटेस्ट स्टाइल में कटवा दूँगा। मुहल्ले का नाई मुझे ठीक से पहचानता
है। पता है, वो पापा से भी बहुत खुश रहता है?”
फूफा जी ने कहा, “तुम्हारे पापा से क्यों नहीं खुश होगा। किसी
टकले की हजामत बनाने में कोई मेहनत भी नहीं लगती और पैसे भी पूरे मिल जाते हैं।“
ऐसा सुनकर वहाँ बैठे सबलोग ठठाकर हँस पड़े। फिर अगले दिन सुबह
सुबह गप्पू अपने फूफा जी को लेकर नाई की दुकान चला गया। उस छोटे से बच्चे की उस नाई
से लगता है जबरदस्त दोस्ती थी। फूफा जी के लाख मना करने पर भी नाई ने उनके सिर पर बेरहमी
से कैंची चला दी। थोड़ी ही देर में फूफा जी की हेयरस्टाइल बिलकुल आजकल के लड़कों की तरह
कटोरा कट हो गई। जो फूफा जी आजतक शाहरुख खान की नकल करते थे वे अब उड़ता पंजाब वाले
शाहिद कपूर नजर आ रहे थे। जब फूफा जी ने आइने में अपना चेहरा देखा तो उन्हें अंदर से
बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन एक छोटे बच्चे को वे कुछ नहीं कह पा रहे थे।
जब वे घर आये तो फूफाजी की नई हेयरस्टाइल देखकर अलग-अलग लोगों
ने अलग-अलग कॉमेंट दिये। गप्पू की बुआ ने कहा, “शाबाश गप्पू! आखिरकार तुमने
इनकी सही हजामत बनवा दी। मैं भी अकसर कहती थी कि अब तो अपनी उम्र के हिसाब से बाल रखा
करें लेकिन मेरी सुनते ही नहीं थे।“
बुआ ने फौरन फूफाजी की फोटो खींची और अपने बेटे और बेटी को व्हाट्सऐप
पर भेज दिया। पलक झपकते ही उनका कॉमेंट आया, “वाव! फैंटाबुलस! लुकिंग कूल!”
Gullu Had a Haircut
It was a Sunday and Gullu wanted to have a
haircut. Gullu is about 12 years old. Gullu was pressing since early morning to
go for a haircut. He told his father, “Dad, when are we going to have a
haircut?”
Gullu’s father replied, “I think you last had
a haircut around fifteen days back. So, what is the hurry now? Your hairs don’t
appear to be too long to go to a barber’s shop.”
Gullu was adamant and said, “But you know Dad
that I prefer to keep short hairs; like crew cut. This is in fashion. This is
cool.”
Gullu’s father had to concede to his son’s
demand. He asked Gullu to be ready in five minutes. Gullu’s grandfather Mr.
Sinha was sitting nearby foraging through the newspaper. He peeped through his
glasses and said, “I also need a haircut. Let us go together to the barber’s
shop.”
So, all three of them went out together to
the barber’s shop. Gullu’s father; Rajan does not like to visit a barber’s shop
on weekends because of the long queue which is normal for Saturdays and
Sundays. He usually takes out time on any of the weekdays in order to avoid the
hassle of waiting at the barber’s shop. But for his son’s sake he had to go.
When they reached the barber’s shop there was a sizeable crowd. The barber’s
shop has five special chairs on which the customers sit while getting served by
the barbers. Gullu always loves to sit on those chairs because they look really
grand; with high back and hydraulic mechanism. The faux leather cover on the
chair gives somewhat rich feel to the ambience. There was a long sofa on which
eight or nine people were already sitting; waiting for their turn. Two benches
outside the shop were also occupied. When Gullu enquired he came to know that
they would have to wait for at least forty five minutes. Gullu’s grandfather;
Mr. Sinha pulled out a couple of pages of the newspaper and began to savor the
news articles. Gullu’s father; Rajan; opened a sachet of Pan Masala and started
chewing on it to kill away the time. He bought a lollypop for Gullu. Gullu’s
father was pacing left and right which was showing the lack of peace in his
mind. Gullu was at ease and was sitting on a stool.
After a long wait of about an hour, their
turn came. Being the youngest of the lot, Gullu got the privilege to be the first
to occupy the vacant chair. The barber asked from Rajan, “Sir, any special
instructions for this cute baby’s haircut?”
Rajan said, “Ask this baby. He is smart
enough to tell you about his favorite hairstyle.”
After that Gullu instructed the barber, “Keep
it as short as possible. You can use trimmer instead of scissors. This will
give a neat look.”
Within a few minutes, Rajan and Mr. Sinha could
also get to sit on different vacant chairs. When the barber asked Rajan about
his favorite style, Rajan said, “Keep it medium cut on the front but keep it
little bit longer at the back. Have you seen the film stars of the 90s? I love
their hairstyle.”
The barber said, “But your hairline is
receding very fast. Keeping it short on the front would not look good.”
Rajan replied, “I know that my hairline is
receding but I have yet to develop a bald pate. Don’t worry about the look. It
goes well with my age. Do whatever you are told to do.”
When Mr. Sinha’s turn came, he said, “In
fact, I don’t need a haircut. I just need a little bit of trimming. Keep them
long on front, side as well as on the back. Have you seen the film stars of the
70s and 80s? I love their hairstyle. I am a big fan of Amitabh Bachchan.”
The barber said, “You still have dense hair
on your head. You must have taken good care of your hairs.”
Mr. Sinha said, “Yeah, I know. Even my wife
says so.”
After about fifteen minutes, all of them were
through with the haircut. Gullu; the youngest of the lot was sporting small
stubbles in the name of hairs. Rajan; his father; was sporting somewhat longer
locks. But the senior-most of the lot was sporting the longest hairs. The
person who was collecting the bill smilingly said, “Sir, doesn’t it look odd
that the baby of the family has got the cleanest cut and the grandpa is trying
to ape a film star?”
Rajan said, “Yeah, some things never change
with time but many other things change. During my childhood, I too was a big
fan of Amitabh Bachchan. I used to request the barber to leave long locks on my
head. But my father always scolded me and used to send me back to the barber to
make my hairs shorter. Even our teachers were never happy when we copied the
popular film stars. Things have changed now. I have never dictated my choice of
hairstyle on my son. He is free to keep his hairs as he wishes. These are his hairs
and he has every right to indulge in them. But my father has not changed during
all these years.”
Rajan then turned to his father and said,
“Dad, I still remember how many lies you told to my mother for going to watch
the hit movie Dewaar umpteenth times. But do you know, this Gullu does not even
like to go to a cinema hall. He probably gets a better worldview by peeping
into his computer. “
Then Rajan and Mr. Sinha had a hearty laugh.
Gullu was amusingly looking at them; as he was engrossed in his own world.
मेरा मरीज तेरा मरीज
डॉक्टर के पेशे में तगड़ा कंपिटीशन
है। डॉक्टरी की पढ़ाई में बहुत पैसे खर्च होते हैं और कई साल लग जाते हैं। केवल एमबीबीएस
करने में ही छ: साल लग जाते हैं। उसके बाद पोस्ट ग्रैजुएशन करने में दो साल और लग जाते
हैं। ठीक तरह से डॉक्टर बनने में लगभग दस साल तो लग ही जाते हैं। यदि किस्मत अच्छी
रही तो सरकारी नौकरी मिल जाती है नहीं तो प्राइवेट प्रैक्टिस जमाना आसान नहीं होता।
परिवार और समाज की उम्मीदों पर खड़ा उतरने के लिए हर डॉक्टर पर अधिक से अधिक पैसे कमाने
का प्रेशर भी रहता है। कुछ डॉक्टर इस चक्कर में बहुत सारे ऐसे काम कर बैठते हैं जो
उनके पेशे पर ही धब्बा लगाता है। हर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव को ये बातें नजदीक से देखने
और समझने का मौका मिलता है।
एक बार मैं सुबह दस बजे के आसपास
तैयार होकर काम करने के लिए जिला अस्पताल पहुँचा। मुझे ऑर्थो डिपार्टमेंट में कॉल करना
था। उस डिपार्टमेंट की ओपीडी के बाहर पहुँचकर मैने देखा कि वहाँ पर कई डॉक्टरों की
भीड़ लगी थी और बहुत हो हल्ला मचा हुआ था। अपनी जिज्ञासा शाँत करने के लिए मैं भी वहाँ
रुक गया। मेरे पूछने पर डॉक्टर शर्मा; जो हड्डी रोग विशेषज्ञ
थे; ने बताया, “सुना आपने, उस डॉक्टर
बैरोलिया के बारे में?”
मैने कहा, “नहीं, क्या हुआ?”
डॉक्टर शर्मा ने बताया, “अरे उसने आजकल एक नया नर्सिंग
होम खोला है। साथ में उनकी पत्नी भी वहीं बैठती हैं। उन्हें शायद पता नहीं कि प्रैक्टिस
जमाने में एड़ी चोटी एक करनी पड़ती है। आजकल उसने गुंडे पाल रखे हैं। कल रात उसके गुंडे
यहाँ आये और ऑर्थो वार्ड से एक मरीज को उठाकर जबरन अपनी वैन में डाला और उनके नर्सिंग
होम में पहुँचा दिया।“
मैने सुना तो अचरज में पड़ गया। अब सोचिये उस मरीज के बारे में
जिसके सिर से पाँव तक प्लास्टर चढ़ा हुआ हो। वो बेचारा तो अपनी जान बचाने के लिए भाग
भी नहीं सकता है। उसे उठाकर जब कोई वैन में डालने लगे तो उसे ये भी समझ में नहीं आयेगा
कि उसका अपहरण किस वजह से हो रहा है। वैसे भी सरकारी अस्पतालों मे इतने गरीब मरीज आते
हैं जो फिरौती के तौर पर कुछ भी नहीं दे सकते।
फिर डॉक्टर शर्मा ने बताया, “हमलोगों ने आज ही सीएमओ के
साथ एक मीटिंग बुलाई है। वे जिला प्रशासन को लिखेंगे कि सदर अस्पताल में पुलिस की समुचित
व्यवस्था हो। अब यहाँ के डॉक्टर या नर्स उन गुंडों से दो दो हाथ तो नहीं कर सकते।“
मैने कुछ नहीं कहा बस उनकी हाँ में हाँ मिलाता रहा। फिर मेरे
मन में खयाल आया कि चलकर डॉक्टर बैरोलिया से मिल लेता हूँ। अब बैरोलिया जी की कहानी
उन्हीं की जुबानी सुन लीजिए।
डॉक्टर बैरोलिया ने कहा, “अरे भाई साहब क्या बताऊँ?
इस नर्सिंग होम को बनवाने में ही सत्तर अस्सी लाख खर्च हो गये। मरीज
हैं कि आने का नाम ही नहीं लेते। फिर मेरे एक सीनियर ने यह अनूठा सुझाव दिया। वैसे
जिला अस्पताल के डॉक्टर भी तो ओपीडी किसी सेवा भावना से जाते नहीं हैं। वे तो वहाँ
से मरीजों को बरगला कर शाम में अपनी क्लिनिक पर ही बुलवाते हैं। एकाध मरीज मैने हड़प
लिये तो कौन सा गुनाह कर दिया?”
डॉक्टर बैरोलिया ने आगे कहा, “मैने सोचा है कि खुद जाकर
सदर अस्पताल के डॉक्टरों से मिलूँगा। उन्हें उनका शेयर मिल जायेगा। लेकिन वे तो मुझे
ऐसी नीची नजर से देखते हैं जैसे मैं कोई वार्ड ब्वाय हूँ।“
Tuesday, July 26, 2016
तानसेन पर मुकदमा
तानसेन का नाम आप सभी ने
सुना होगा। तानसेन एक महान संगीतकार थे और अकबर के दरबार में नवरत्न हुआ करते थे।
उनकी गायकी इतनी जबरदस्त थी कि कहा जाता है कि जब वो मेघराग गाते थे तो बारिश होने
लगती और जब वो दीपक राग गाते थे तो चिराग जल उठते थे। अकबर के दरबार में नवरत्न
होने की वजह से तानसेन की आमदनी करोड़ों स्वर्ण मुद्राओं में थी। साथ में पूरे
हिंदुस्तान में मशहूर होने की वजह से शादी, त्योहार, मेले आदि जलसे में उनकी बहुत माँग हुआ करती थी। एक प्रोफेशनल
होने के नाते तानसेन किसी भी पब्लिक या प्राइवेट फंक्शन में गाने के लिए मोटी रकम
चार्ज किया करते थे। साथ में कई कंपनियों के प्रोडक्ट के इश्तहार में भी वे नजर
आते थे। कुल मिलाकर कहा जाए तो तानसेन को भगवान ने छप्पड फाड़कर धन संपत्ति दी थी।
इसके साथ साथ वो पूरे हिंदुस्तान में बला के लोकप्रिय थे। जब उनका रथ निकलता था तो
उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। तानसेन तो हैंडसम थे ही। इसलिए
उनके रथ के आगे उस जमाने की युवतियाँ लेट जाया करती थीं। कई लड़कियों ने तो तानसेन
की तस्वीर से ही शादी रचा ली थी।
तानसेन की शोहरत कुछ अन्य नवरत्नों को हजम नहीं होती थी; जैसा
कि इन मामलों में अक्सर होता है। टोडरमल; जो कि स्वयं भी
नवरत्न थे; इस मौके की फिराक में रहते थे कि कैसे तानसेन को
नीचा दिखाया जा सके। इसके लिए उन्होंने संगीत सीखना भी शुरु किया लेकिन उसमें असफल
रहे। वे पहले भी कई बार बीरबल को नीचा दिखाने की चक्कर में मुँह की खा चुके थे
इसलिए इस बार वे कड़ी सावधानी बरत रहे थे।
आखिरकार टोडरमल को एक सुनहरा मौका मिल गया; बल्कि
दो मौके मिल गये। हुआ यूँ कि एक बार तानसेन जंगल में आखेट के लिए गये। अब तानसेन
तो ठहरे एक कलाकार इसलिए वे खुद जानवरों का शिकार क्या करते। उनके अमलों चमलों ने
एक हिरण को मार गिराया। बताया जाता है कि बादशाह की पटरानियों को हिरण बहुत सुंदर
लगते थे इसलिए पूरे हिंदुस्तान में हिरण के शिकार पर रोक लगी थी। बस फिर क्या था,
टोडरमल ने तानसेन पर एक मुकदमा दायर कर दिया। आरोप था कि तानसेन ने
हिरण का शिकार किया था। उसके कुछ ही दिनों बाद एक बार तानसेन का काफिला रात में
मुंबई की मायनगरी में रात्रि भ्रमण का आनंद ले रहा था। लगता है कि सारथी के नशे
में धुत होने के कारण रथ ने फुटपाथ पर सो रहे कुछ लोगों को कुचल दिया। टोडरमल को
एक और मौका मिल गया, तानसेन पर मुकदमा दायर करने का।
तानसेन ने बहुत कोशिश की कि उन मुकदमों से बरी हो जाएँ
लेकिन तबतक बादशाह अकबर बूढ़े हो चुके थे और उनकी शक्ति भी कम हो रही थी। उनकी लाख
पैरवी के बावजूद तानसेन को कई रात कारागार में भी गुजारने पड़े और उसके बाद अदालतों
में तारीख पर तारीख का जो सिलसिला चला वह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। बादशाह
अकबर के इंतकाल के बाद उनके बेटे जहाँगीर ने गद्दी सँभाली। जहाँगीर को भी संगीत से
उतना ही लगाव था जितना कि उनके वालिद अकबर को। लेकिन जहाँगीर का मानना था कि कानून
की नजर में हर कोई बराबर होता है इसलिए वे तानसेन की कोई मदद नहीं कर पा रहे थे।
उधर निचली अदालतों के वकील और जज तानसेन पर हुए मुकदमे से बड़े खुश थे। वे तानसेन
को नोचने खसोटने का कोई मौका हाथ से नहीं छोड़ते थे। वकील मोटी रकम चार्ज किया करते
थे और उसका तय प्रतिशत जज साहब को बतौर नजराना पेश किया जाता था। उसके ऐवज में जज किसी
भी तारीख पर कोई फैसला नहीं सुनाते थे बल्कि अगली तारीख के बारे में इत्तला कर
दिया करते थे।
तानसेन ने कई मंत्रियों और अफसरों को सेट करने की कोशिश की।
सबने उनसे नजराने के रुप में लाखों स्वर्ण मुद्राएँ, कीमती जवाहरात और रेशमी
शाल ले लिए लेकिन मुकदमा था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
इस बात से जहाँगीर भी तंग आ गये थे। एक बार उन्होंने जज को
बुलाया और उनसे पूछा, “यदि तानसेन दोषी हैं तो उन्हें उचित सजा देकर इस मुकदमे को
खत्म क्यों नहीं कर देते?”
इस पर जज ने जवाब दिया, “जिल्ले इलाही, तानसेन तो एक सागर की तरह हैं। उनके पास इश्तहारों और रॉयल्टी से करोड़ों
की आमदनी आती है। उस सागर में से एक दो लोटा यदि हम लोग ले भी लें तो क्या फर्क
पड़ता है। आखिर वे मरने के बाद अपनी संपत्ति को लादकर तो नहीं ले जाएँगे। फिर उनकी
लोकप्रियता को देखकर भी डर लगता है। इतने दिनों से मुकदमा चलने के बावजूद उनके नए
गाने और नाटक जबरदस्त हिट होते हैं। कभी कभी ये भी डर लगता है उनको सजा सुनाने से
प्रजा विद्रोह न कर दे और कहीं फिर आपका ही तख्तापलट न हो जाए। इसलिए जैसा चल रहा
है चलने दीजिए। आप कहें तो आपके पास भी नजराना पहुँच जाया करेगा और किसी को कानों
कान खबर नहीं होगी।“
बादशाह जहाँगीर ने कुछ नहीं कहा बस नजरों ही नजरों में जज
के आगे हामी भर दी। बेचारे तानसेन परेशान हो चुके थे। उन्हें डर था कि कहीं सौ
वर्षों की सजा हो गई तो उनकी वर्षों की कमाई इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। उनके
बच्चों का क्या होगा; ऐसा सोचकर तानसेन ने डर से शादी भी नहीं की थी; जबकी वे चालीस के पार पहुँच चुके थे।
अदालतों में मुकदमे खिंचते रहे और साल बीतते गये। तानसेन अब
पचास को पार करने ही वाले थे। उनकी उम्मीद में कई युवतियाँ तबतक अधेड़ हो चुकी थीं।
कई प्रैक्टिकल दिमाग वाली युवतियों के तो अब बच्चे भी युवा हो चुके थे। तानसेन की
समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। उनकी हालत वैसे मरीज की तरह हो गई थी जो ऐसी बीमारी
से पीड़ित होता है जो उसे पंगु तो बना देती है लेकिन उसे मारती नहीं है। उस बेचारे
को पड़े पड़े ही सबकुछ करना पड़ता है। वह केवल मौत के इंतजार में दिन गिनता रहता है।
एक दिन तानसेन को लगा कि हिंदुस्तान के सबसे अकलमंद आदमी यानि बीरबल से सलाह ली
जाए। बीरबल को तो उनके केस के बारे में पता ही था। बीरबल ने कहा, “मैं
भी आपकी तकलीफ देखकर दुखी था। लेकिन मैं बिना माँगे किसी को मुफ्त की सलाह नहीं
देता हूँ। आपको तो मेरी कँसल्टेंशी फीस के बारे में पता ही होगा।“
उचित फीस मिलने के बाद बीरबल ने तानसेन को बिलकुल सटीक सलाह
दी। यह वह वक्त था जब नये बादशाह शाहजहाँ ने अभी अभी गद्दी सँभाली थी। वे अपने शौक
के लिए पहले से ही मशहूर थे। तानसेन ने उनके लिए एक नया राग रचा था। तानसेन ने नये
बादशाह के सामने राग मुमताज पेश किया। बादशाह खुश हुए और तानसेन से गुफ्तगू करने के
लिए उन्हें अपने दीवान-ए-खास में ले गये। वहाँ पर उनके बीच कुछ डील तय हुई। उसके बाद
तानसेन ने ऐलान किया कि ताजमहल बनाने का सारा खर्चा वे अपने चैरिटी की तरफ से देंगे।
उन्होंने ये भी कहा कि एक प्यार की निशानी बनाना मानवता की सेवा करने जैसा है। उन्होंने
इस बात को भी कबूल किया कि मुकदमों की वजह से वे पचास की उम्र तक भी सच्चे प्यार से
मरहूम थे।
फिर कुछ दिनों में ही एक अदालत ने फैसला सुनाया, “तानसेन
को रथ चलाना ही नहीं आता। रथ तो उनके सारथी चला रहे थे। वैसे भी रथ चलाना किसी नवरत्न
की शान के खिलाफ होता है। इसलिए उस दुर्घटना में मरने वालों के दोषी सारथी थे। अब चूँकि
सारथी का देहाँत हो चुका है इसलिए इस मुकदमे को खारिज किया जाता है। तानसेन को इस मुकदमे
से बरी किया जाता है।“
एक दो महीने बाद एक दूसरी अदालत ने फैसला सुनाया, “एक तानपूरा
उठाने वाला संगीतकार बंदूक कैसे उठा सकता है। जिसके कान सितार के मधुर धुनों को सुनने
के आदी हों वो भला गोलियों की आवाज कैसे बर्दाश्त कर सकता है। पुख्ता सबूत न मिलने
के कारण तानसेन को हिरण के शिकार के आरोप से बरी किया जाता है।“
उस ऐतिहासिक फैसले के बाद प्रजा में एक नए जोश का संचार हो गया।
कई महिलाएँ जो तानसेन के इंतजार में अधेड़ हो चुकीं थीं ने ऐलान किया कि वे तानसेन के
लिए अपनी बेटियों को सौंपने तक को तैयार हैं। सुनने में ये भी आया कि टोडरमल अब सर्वोच्च
न्यायालय जाने की सोच रहे हैं लेकिन नये बादशाह की डर से उनकी हिम्मत नहीं हो रही है।
Monday, July 25, 2016
नौकरी मिल गई
“अजी सुनते हो, पटना वाली मौसी का फोन आया था। बता रहीं थीं विक्की की नौकरी
लग गई।“ पत्नी ने कहा।
पति ने पूछा, “अब ये विक्की कौन है?”
पत्नी ने झुँझलाते हुए कहा, “विक्की मेरी मौसी का लड़का
है। याद नहीं है हमारी शादी में उसीने तुम्हारे पिछवाड़े में पटाखों की लड़ियाँ बाँध
दी थी।“
पति ने कहा, “अब उस भीड़भाड़ में मैं तुम्हारे विक्की को देखता
या फिर पटाखों से अपनी जान बचाता? ऐसे भी दस साल से ऊपर हो गये
उस दुखद घटना को। अब तक किस किस विक्की को याद रखूँ?”
पत्नी ने कहा, “लगता है तुम विक्की की नौकरी से खुश नहीं हो?”
पति ने कहा, “अब भला उसकी नौकरी से मैं क्यों खुश होने लगा।
तुम तो ऐसे कह रही हो कि पगार मिलते ही वह सारे पैसे लाकर मेरे चरणों में डाल देगा।“
पत्नी ने कहा, “पता है, विक्की ने दुर्गापुर
के किसी अच्छे कॉलेज से इंजीनियरिंग की है। इसी साल तो उसने बीटेक निकाला है। अभी रिजल्ट
भी नहीं आया है। लेकिन कैंपस प्लेसमेंट में उसका सेलेक्शन हो गया। मौसा जी बता रहे
थे कि किसी प्रेशर कुकर बनाने वाली कम्पनी में बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर की पोस्ट मिली
है। है न बहुत बड़ी बात?”
पति ने कहा, “ये बहुत अच्छी बात है। लेकिन यदि रिजल्ट आने
पर फेल कर गया तो क्या होगा? तब तो उसे नौकरी से निकाल देंगे।“
पत्नी ने कहा, “तुम्हें शायद पता नहीं है। इन प्राइवेट इंजीनियरिंग
कॉलेजों में किसी को फेल नहीं करते। इसलिए इसका कोई रिस्क नहीं है।“
पति ने कहा, “लेकिन एक बात समझ में नहीं आई। उसने पढ़ाई तो
इंजीनियरिंग की की है। फिर प्रेशर कुकर का सेल्समैन कैसे बन गया?”
पत्नी ने कहा, “तुम्हारी तो आदत बन चुकी है मेरे परिवार वालों
का मजाक उड़ाने की। अरे सेल्समैन नहीं है, बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर
है।“
पति ने कहा, “अब तुम्हारे परिवार वालों से तो मेरा मजाक
का रिश्ता है। उनका मजाक उड़ाना तो मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। खैर छोड़ो, तुम्हें पता नहीं है कि आजकल ये कम्पनी वाले इसी तरह के फैंसी डेजिग्नेशन देकर
लोगों को उल्लू बनाते हैं। कोई बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर, तो कोई
टेरिटरी डेवलपमेंट मैनेजर, तो कोई प्रोफेशनल सर्विस ऑफिसर,
और न जाने क्या क्या नाम दे डालते हैं अपनी कंपनी के सेल्स रिप्रेजेंटेटिव
को। लेकिन काम तो उन्हें सेल्स का ही करना है। अरे जब सेल्समैन ही बनना था तो फिर इंजीनियरिंग
करने की जरूरत ही क्या थी। बीए कर लेते और काम पर लग जाते। माँ बाप के पैसे भी बच जाते
इससे।“
पति ने आगे कहा, “जिसे देखो वही आजकल इंजीनियर बन रहा है। लेकिन
इंजीनियरिंग वाला काम बहुत कम ही लोग कर पा रहे हैं। मेरी बुआ की लड़की तो किसी बड़ी
कम्पनी के दफ्तर में सारा दिन डाटा एंट्री करती रहती है और उसका डेजिग्नेशन है टीम
लीड। डेजिग्नेशन कुछ भी हो लेकिन काम तो हेड क्लर्क का ही है; माने बड़ा बाबू।“
Sunday, July 24, 2016
My First Day on Job
My first job was in Zieta Phramaceuticals which was a sister
concern of Cadila. I reached my first headquarter at about 12:00 in the noon. After
checking in a hotel, I quickly got ready to go for work. Having performed
reasonably well in the training program, I was bubbling with enthusiasm and was
raring to go. I took out the doctor’s list and planned for a particular area;
called Kuchehry Road.
First of all, I went to a chemist to make a call. As we were
launching a new division, so we were told to do the detailing in front of
chemists as well. The chemist was definitely not a new person on the job;
unlike me. He hurriedly told me to tell the names of some key products and the
name of the wholesaler and told me to just keep my mouth shut. It was quite bizarre
for me as I was expecting him to lend his ears to me. Being unperturbed, I
tried to open the visual aid so that I could do the detailing but I felt a big
lump in my throat. My forehead was profusely sweating and I could not utter a
single word in front of him. I was feeling dejected at not being able to
perform what I was supposed to do.
After that, I went looking for some doctors but could not
find a single signboard which could show the names as per my list. I went to another
nearby area but all my efforts were in vain. I tried till 8 pm in the evening
and finally gave up. I was unable to understand how to find a doctor; as per
the addresses. Meanwhile, I must have met at least 10 chemists but could not do
the detailing in front of any of them because nobody permitted me to do so.
Next day, my Regional Manager came for joint working. He probably
possessed some kind of magic. The road where I could not find a single doctor
the last day revealed so many doctors for my Regional Manager. He was equally
at ease while detailing to the doctors as well as to the chemists. I was simply
swept off my feet by seeing the virtuoso performance of my Regional Manager; in
terms of ideal presentation in front of customers.
I meekly asked him, “Yesterday, I was unable to find a
single doctor on the same road. But you could easily pick up them on this
crowded street. I was tongue tied in front of all the chemists I met but you
were at ease. Do I have what it takes to become a successful salesman?”
The Regional Manager calmly replied, “It is natural for any
person on his first day on job. Do not worry you will also become a virtuoso
performed within a week.”
After the day’s work was over, we sat for dinner in a
restaurant. The regional manager did some pep talk to boost my morale. At the
end of the day, I was feeling more confident of doing justice to my job.
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