आज कुछ भक्त जन बड़े दुखी लग
रहे हैं। जिस आदमी को वे आजतक सबसे बड़ा उल्लू साबित कर चुके थे उसी आदमी ने उनकी दुखती
रग छेड़ दी। लगभग दो साल पहले उनके स्टार परफॉर्मर का आगाज किसी धूमकेतू की तरह हुआ
था। उस धूमकेतू की आगवानी में कुछ लोगों ने तो एक कमाल का नारा भी बना लिया था, “हर हर मोदी घर घर मोदी।“ वह
धूमकेतू था भी लाजवाब; रोशनी से लबरेज
और पीछे गैस की लंबी लकीर छोड़ता हुआ; जिसे अंग्रेजी में ट्रेलब्लेज कहते हैं। वैसा
ट्रेलब्लेज जैसा रॉकेट अपने लॉंच के समय छोड़ता है। इसपर मुझे एक ट्रेनिंग प्रोग्राम
याद आया जिसका शीर्षक था ट्रेलब्लेज। उस प्रोग्राम में एक वीडियो दिखाया गया था जिसमें
हर बात पर कोई मशहूर अंग्रेजी गायक एक ही लाइन दोहराता था, “बी
ए वारियर, विन द रेस, ट्रेल ब्लेज ट्रेल
ब्लेज।“ लोगों ने बड़ी उम्मीद से उस धूमकेतू को अपने सर आँखों पर उठा लिया था क्योंकि
वे उसके दिखाए सब्जबाग से अच्छे खासे प्रभावित थे। सबको लगता था कि अच्छे दिन जल्दी
ही आ जाएँगे। लेकिन विज्ञान की किताब में मैने पढ़ा है कि धूमकेतू जिस रास्ते पर चलता
है उसका आकार किसी एलिप्स की तरह होता है। मतलब इसकी परिधि की चौड़ाई कम होती है लेकिन
लंबाई बहुत अधिक होती है। इस कारण से जब धूमकेतू धरती के आसपास से गुजरता है तो बड़ी
तेज रोशनी देता है। लेकिन जब यह धरती से बहुत दूर चला जाता है तो फिर यह शक्तिशाली
दूरबीनों से भी नजर नहीं आता है। एक और बात गौर करने लायक है कि धूमकेतू को दोबारा
धरती के पास आने में पचास या सौ वर्षों से भी ज्यादा लग जाते हैं। अब इस धूमकेतू के
साथ भी ऐसा ही हो रहा है। चुनाव जीतने के साथ ही वह हिंदुस्तान की धरती से दूर जाने
लगा। अब उसका ज्यादा समय विदेशों में बीतता है क्योंकि वसुधैव कुटुंबकम की पॉलिसी के
तहत वह दुनिया के अन्य भागों को भी रोशनी पहुँचाना चाहता है। इस बीच हिंदुस्तान में
अँधेरा छाता जा रहा है। कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं गाय के नाम पर तो कहीं जाति के
नाम पर दंगे भड़काए जा रहे हैं। चीजों के दाम सुरसा के मुँह की तरह बढ़ते ही जा रहे हैं।
अब दाल का उदाहरण लीजिए। बचपन में पढ़ा और सुना था कि दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ।
इसका मतलब था कि सस्ता और साधारण खाना खाकर संतोष करना सीखो। लेकिन दाल के दाम इतने
बढ़ गये हैं कि यह गरीब क्या मध्यम वर्ग की थाली से भी गायब होती जा रही है। भारत एक
ऐसा देश है जहाँ ज्यादातर लोग शाकाहारी हैं। जो लोग माँसाहारी हैं वे भी महीने के बीस
से पच्चीस दिन तो शाकाहारी भोजन ही करते हैं। ऐसे में दाल उनके लिए प्रोटीन के एकमात्र
स्रोत का काम करती है। वैसे भी भारत में कार्बोहाइड्रेट से भरपूर भोजन खाने के कारण
भारत दुनिया का डायबिटीज कैपिटल हो गया है। सरकार उसे रोकने के लिए ‘फैट टैक्स’ लगाने के बारे में भी सोच रही है लेकिन दाल
की कीमतों के बारे में कुछ भी नहीं सोच रही है। अब इससे मुट्ठी भर बचे कांग्रेसियों
को यदि ये लगता है कि मोदी जी के मुँह से कुछ उगलवाने के लिए कोई रैली करवानी पड़ेगी
तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। राहुल गाँधी; जिन्हें ज्यादातर
लोग पप्पू के नाम से जानते हैं; को भी लगता है आटे दाल का भाव
पता चल गया तभी तो वे एक नए नारे, “अरहर मोदी” की बात कर रहे
हैं। लेकिन राहुल गाँधी के इस बढ़ते ज्ञान के पीछे किसी और नहीं बल्की मोदी सरकार का
हाथ है। इस सरकार ने पिछले दो साल में अपने किसी भी चुनावी वादे को पूरा नहीं किया।
कच्चे तेल की कीमत घटने के बावजूद पेट्रोल के दाम नहीं घटे। दाम यदि घटाए जाते हैं
तो एक दो रुपए और बढ़ाए जाते हैं तो तीन चार रुपए। इस स्थिति में फैसला आप का है कि
आप ‘हर हर मोदी’ बोलते हैं या ‘अरहर मोदी’।
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