आज सुबह जब मैं अखबार पढ़
रहा था तो मेरी नजर एक हेडलाइन पर पड़ी। उसमें लिखा था कि 2025 तक नॉर्वे को
पेट्रोल कारों से मुक्त कर दिया जाएगा। उसके बदले में वहाँ केवल जैविक ईंधन से
चलने वाली कारें चलेंगी। ऐसा माना जाता है कि पूरे विश्व में यदि कोई पर्यवारण की
रक्षा के लिए प्रतिबद्ध देश है तो वह है नॉर्वे। अब आप सोच रहे होंगे कि भला
नॉर्वे की इस खबर से हम हिंदुस्तानियों का क्या लेना देना। आप को याद दिलाना बेहतर
होगा कि किसी भी विदेशी बात को; खासकर से
पश्चिमी देशों की बात को हम खुशी-खुशी अपनाने को तैयार रहते हैं। यह हमारे रोज रोज
के जीवन में भरपूर देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए इटली का पिज्जा या फिर किसी
इटैलियन नाम वाली कंपनी का मॉड्यूलर किचेन; हमें बहुत पसंद आता है। इसमें कुछ अपवाद भी
हैं; जैसे कि कोई इटैलियन मूल का व्यक्ति यदि प्रधानमंत्री
बनने की कोशिश करे या कोई ऐसा व्यक्ति जिसका ननिहाल इटली में हो तो फिर हम सब एक
सुर में उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं। खैर छोड़िये इन बातों को क्योंकि आज का मुख्य
मुद्दा है कि कैसे किसी शहर को कार-मुक्त किया जाए।
अभी हाल के वर्षों में आपने देखा होगा कि हमारे कुछ राजनेता
राजधानी दिल्ली को कार-मुक्त बनाने के लिए कितनी जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं। और कुछ
नहीं हो पाता है तो कुछ खास इलाकों में महीने में एक दिन कार-मुक्त दिवस जरूर
मनाया जाता है। भले ही उसमें शरीक होने के लिए आने वाले नेता कारों में ही आते
हैं। इसकी देखा देखी दिल्ली के आसपास के शहरों में भी कार-मुक्त दिवस मनाने का
फैशन शुरु हो गया है। इसकी जानकारी के लिए आपको उस शहर के किसी हिंदी अखबार का
अवलोकन करना पड़ेगा। किसी शहर को कार-मुक्त बनाने की पहल करना बड़ा ही आसान है। कम
से कम पूरे देश को कांग्रेस-मुक्त बनाने से तो आसान है ही। इसमें शरीक होने वाले
लोगों को अखबार में नाम और तस्वीर छपवाने का मौका भी मिल जाता है। ये अलग बात है
कि इन सब कोशिशों के बावजूद कार की बिक्री रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। इस साल
तो अच्छे मानसून होने की उम्मीद भी है जिसके कारण कारों की बिक्री और भी बढ़ेगी।
अब इसी बात को लेकर दिल्ली के माननीय मुख्यमंत्री भी परेशान
हैं; क्योंकि वायु प्रदूषण से सबसे अधिक तकलीफ उन्हें होती है। उनकी कभी न खतम
होने वाली खाँसी की असली वजह वायु प्रदूषण ही है। नॉर्वे वाली खबर पढ़कर तो
केजरीवाल जी अपनी कुर्सी से ‘यूरेका! यूरेका!; कहते हुए उछल पड़े होंगे। उन्हें यह बात कतई गवारा नहीं कि दिल्ली के होते
हुए कोई और शहर सुर्खियों में आ जाए; खासकर भारत से हजारों
किलोमीटर दूर स्थित कोई देश। इसके पीछे भी एक वजह है। सभी नामी गिरामी टीवी चैनलों
के दफ्तर नोएडा में हैं। उनमें काम करने वाले रिपोर्टरों के लिए दिल्ली पहुँचना
बड़ा ही आसान है। चाहे तपती गर्मी हो या कड़कड़ाती ठंड; देश के
अन्य भागों में भटककर रिपोर्टिंग करने से तो अच्छा है कि पलक झपकते दिल्ली जाओ और
फ़टाक से कोई रिपोर्ट ले आओ; फिर उस दिन की नौकरी को जायज
ठहराओ। केजरीवाल जी को भली भाँति पता है कि इसका लाभ कैसे उठाया जाए। वे खाँसी भी
करें तो न्यूज बनता है; लेकिन बहुत कम ही लोग होंगे जिन्हें
मिजोरम के मुख्यमंत्री का नाम पता होगा।
बहरहाल, कल्पना कीजिए कि दिल्ली को कार-मुक्त बनाने
के लिए भविष्य में किस तरह के कदम उठाए जाएँगे। वैसे भी अप्रैल महीने में फ्लॉप
हुए ऑड ईवेन स्कीम से तिलमिलाए केजरीवाल जी बहुत दिनों से किसी धाँसू आइडिया की
तलाश में लगे हुए हैं। वे आनन फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे; जिसमें उनके अगल-बगल मनीष सिसोदिया और आशुतोष होंगे। वो ऐलान करेंगे कि
2020 तक दिल्ली को कार मुक्त कर देंगे। इसके लिए वे पूरी दिल्ली के फ्लाइओवर को
ध्वस्त कर देंगे। ऐसे भी एक दो दिन पहले छपी रिपोर्ट के मुताबिक उनका ऐसा कोई भी
इरादा नहीं है कि दिल्ली में नए फ्लाइओवर या नई सड़कें बनेंगी। उन्हें लगता है कि
अच्छी सड़क होने से कारों की संख्या में इजाफा होता है क्योंकि लोग बिना मतलब ही
कार से घूमने लगते हैं। इस रिपोर्ट में तो मोटरसाइकिलों के बारे में भी बुरी बातें
ही कही गई हैं। उन्हें यह बात बुरी लगती है कि दो-दो लोग एक बाइक पर सवार होकर
अपना खर्चा बचाते हैं। वे ऐलान करेंगे कि दिल्ली में जैविक ईंधन वाली कारें भी
नहीं चलेंगी क्योंकि ईंधन भला कोई भी हो, जलने के बाद तो
कार्बन डाइऑक्साइड ही छोड़ता है। बदले में वे हर व्यक्ति को मुफ्त में साइकिल
बाँटेंगे। यदि किसी व्यक्ति को चार किमी से कम की यात्रा करनी हो तो उसे पैदल ही
जाना होगा। हाँ, चार से छ: किमी की यात्रा के लिए वह अपनी
साइकिल का इस्तेमाल कर सकेगा। छ: किमी से अधिक की यात्रा के लिए उसे बस या मेट्रो
रेल से सफर करना होगा। उन्होंने आइआइटी में जो ज्ञान प्राप्त किया है, उसका इस्तेमाल करते हुए वे बसों में भी पैडल लगवा देंगे। हर सीट के नीचे
एक पैडल होगा। इस तरह से जब सभी मुसाफिर एक साथ सैंकड़ों पैडल को चलाएँगे तो बस
अपने आप चल पड़ेगी। इससे वायु प्रदूषण भी नहीं होगा। दिल्ली में प्रवेश करने वाले
ट्रकों पर इतना ज्यादा हरित टैक्स लगाया जाएगा कि ट्रक वाले दिल्ली की सीमा पर ही
सामान उतारकर वापस चले जाएँगे। उसके बाद वह सामान ठेलागाड़ियों पर अपने गंतव्य तक
पहुँचेगा। इससे एक तीर से दो शिकार हो जाएँगे। वायु प्रदूषण भी कम होगा और रोजगार
के अवसर भी बढ़ेंगे। ठेलागाड़ी चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए वे प्रधानमंत्री से अपील
करेंगे कि इसे भी स्किल इंडिया में शामिल कर लिया जाए।