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Monday, May 30, 2016

डाक से गंगाजल

“अरे पंडित जी, ऐसे मुँह लटकाए क्यों बैठे हैं? कोई बुरी खबर सुन ली?” लोटन हलवाई ने पूछा।
गगन पंडे ने चाय सुड़कते हुए बोला, “आज का अखबार नहीं पढ़ा है? अब डाक विभाग लोगों तक गंगाजल की सप्लाई करेगा। हमारा तो धंधा ही चौपट हो जाएगा।:
लोटन हलवाई ने कहा, “हाँ! हाँ! मैंने पढ़ा है। चलो अच्छा ही तो है। अब तक तुम गंगाजल के नाम पर बोतल में किसी भी पानी को भरकर लोगों को ठग रहे थे। उन्हें इससे छुटकारा तो मिलेगा।“
गगन पंडे ने कहा, “इसमें ठगी कहाँ से है। पानी तो कहीं का भी हो, होता एक ही है। मैंने विज्ञान की किताब में पढ़ा था कि पानी का निर्माण हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिलने से होता है। फिर मैंने जल चक्र के बारे में भी पढ़ा था जिसमें लिखा है कि पानी अलग-अलग रूपों में बदलता रहता है। फिर वही पानी पूरी दुनिया में इधर-उधर जाता रहता है।“
उसने आगे कहा, “फिर जब लोगों की भारी भीड़ आती है तो उन्हें कहाँ होश रहता है कि जल भगवान के ऊपर पड़ा भी या नहीं। वे तो बस किसी भी तरह से जल के लोटे या बोतल को भगवान तक फेंक कर अपनी तीर्थयात्रा पूरी करने की कवायद करते हैं।“
लोटन हलवाई ने बीच में ही टोका, “खैर छोड़ो इन बातों को, तुम्हारा सबसे ज्यादा मुनाफा तो गंगाजल के नाम पर पानी बेचने में ही होता है। एक रुपये की प्लास्टिक की बोतल में मुफ्त का पानी भरकर तुम उसे दस रुपये में बेचते हो। इतना मुनाफा तो दक्षिणा में भी नहीं आता होगा। दक्षिणा का कुछ भाग तो हफ्ते के रुप में ऊपर तक भी तो पहुँचाना होता है।“
गगन पंडे ने कहा, “हाँ भैया, दक्षिणा देते समय लोग आजकल बहुत मोलभाव करने लगे हैं। दस लाख रुपए में तो मेरे गुरुजी ने इस पूरे मंदिर का ठेका खरीदा था। उसकी भरपाई हो जाए वही बहुत है। लेकिन अब तो लगता है कि कोई दूसरा काम धंधा ढ़ूँढ़ना पड़ेगा।“
लोटन हलवाई ने कहा, “तुम डाक विभाग से इतने परेशान क्यों लग रहे हो? सुना है कि कई ई-कॉमर्स वाली कंपनियाँ पहले से ही गंगाजल बेच रही हैं। मेरे बेटे ने मुझे किसी ऐसी ही कंपनी का वेबसाइट दिखाया था। वे तो एक बोतल पर एक फ्री भी देते हैं। पाँच बोतल एक साथ लेने पर और अधिक छूट मिलती है। कुछ तो पाँच-पाँच लीटर वाली बोतलें भी बेच रहे हैं।“
गगन पंडे ने कहा, “ये या तो विदेशी कंपनियाँ हैं, या वैसी भारतीय कंपनियाँ जिन्हें इंगलिश स्कूलों में पढ़ चुके लोगों ने शुरु किया है। उन्हें पता ही नहीं है कि कोई भी पाँच लीटर गंगाजल का क्या करेगा। अरे हमारे अधिकतर यजमान तो एक पचास मिली लीटर की छोटी सी बोतल से महान से महान अनुष्ठान करवा लेते हैं। अब कोई आखिरी साँसे गिन रहा आदमी पाँच लीटर गंगाजल कैसे पिएगा? अरे, एक दो चम्मच मुँह में जाते ही मोक्ष प्राप्त हो जाता है। मैंने भी ऐसी कंपनियों के वेबसाइट देखे हैं। उनके रेट बड़े ही महँगे हैं। ऐसे कामों के लिए कोई ग्यारह रुपए तो आसानी से दे देता है लेकिन भला दो सौ निन्यानवे रुपए कोई क्यों देगा। हो सकता है कि बड़े शहरों में इसका असर पड़े। लेकिन ये कंपनियाँ हमारे जैसे छोटे शहरों में कैश ऑन डिलिवरी की सुविधा नहीं देती हैं, इसलिए मुझे उनकी चिंता नहीं है।“
लोटन हलवाई ने पूछा, “फिर डाकिये से क्यों डर रहे हो?”
गगन पंडे ने कहा, “डाक विभाग को तुम नहीं जानते। उसे तो घाटे में बिजनेस करने की आदत पड़ चुकी है। वे तो हो सकता है कि पचास मिली की बोतल मुफ्त में देने लगें। राष्ट्रवाद के नाम पर सरकार इसके लिए अलग से बजट भी बना देगी और कोई उफ्फ तक नहीं करेगा।“
फिर इसका कोई उपाय सोचा है?” लोटन हलवाई ने पूछा।
“हाँ, मैंने अपने गुरुजी से बात की है। विपक्षी पार्टियों के कई नेताओं से उनकी अच्छी जान पहचान है। ऐसे भी विपक्ष को आजकल ठोस मुद्दों की सख्त जरूरत है। हम लोग इसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन करेंगे। पूरे देश में पंडों की अखिल भारतीया हड़ताल होगी, जिस दिन कोई भी पंडा किसी को भी सेवा नहीं देगा। एक हमारा ही तो काम है जिसके बिना बड़े से बड़े सेठ, वैज्ञानिक, राजनेता, डॉक्टर, आईएएस, आईपीएस, आदि किसी भी अहम काम की शुरुआत नहीं करते हैं। हम इसमें पंडितों पर बेरोजगारी के खतरे का मुद्दा उठाएँगे। हम इससे गंगा मैया के अनुचित दोहन का खतरा भी बताएँगे। सारा गंगाजल यदि गोमुख और हरिद्वार में ही निकाल लिया जाएगा तो फिर बनारस में अंत्येष्टि के लिए गए मृतकों को मोक्ष कैसे प्राप्त होगा?”

तभी वहाँ पर जोर का कोलाहल शुरु हो गया। तीर्थयात्रियों की एक नई फौज भगवान पर जल चढ़ाने के लिए तेजी से आ रही थी। गगन पंडा आनन फानन में उठा और नए ग्राहकों की खोज में निकल पड़ा। 

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