आज सुबह-सुबह जब अखबार पलटा
तो एक ज्ञान की बात पता चली। उस अखबार में छपी खबर के अनुसार अभी हाल ही में अप्रैल
के महीने में संपन्न हुए ऑड-ईवेन अभियान के दौरान प्रदूषण स्तर में कोई सुधार नहीं
आया था और न ही कंजेशन से कोई मुक्ति मिली थी। उस खबर में एक रिपोर्ट का हवाला देते
हुए लिखा गया था कि ऐसा स्कूलों के खुले रहने के कारण हुआ। जब जनवरी में दिल्ली के
मुख्यमंत्री ने यह अभियान चलाया था तो उस समय स्कूलों की छुट्टियाँ होने के कारण ऑड-ईवेन
का बेहतर रिजल्ट आया था। उसी खबर में ये भी लिखा था कि जब स्कूली बच्चों का सर्वे किया
गया तो ये पता चला कि आधे से ज्यादा बच्चे प्राइवेट कारों या बाइकों से स्कूल जाते
हैं। मैं भी अपने बच्चे को स्वयं स्कूल छोड़ने
जाता हूँ लेकिन मेरा अनुभव तो कहता है कि दस प्रतिशत से अधिक बच्चों के पिता उतने भी
खाली नहीं हैं कि अपने बच्चे को स्कूल छोड़ सकें। हमारा जमाना ही अच्छा था जब हम पैदल
ही स्कूल जाया करते थे। कम से कम ये डर तो नहीं रहता था कि प्रदूषण जैसी विकराल समस्या
के लिए स्कूली बच्चों पर दोषारोपण होगा। अब तो शायद ही कोई बच्चा पैदल स्कूल जाता होगा।
केजरीवाल भी अपनी जगह सही हैं क्योंकि अब तो हर आम दिल्लीवासी कारों में सफर करता है।
इससे मंत्रियों और अधिकारियों को बहुत परेशानी होती है; क्योंकि उनके काफिले को जाम में फँसना पड़ता है। अब दिल्ली में
इन हुक्मरानों की उतनी मनमानी तो चल नहीं पाती जितनी बिहार या उत्तर प्रदेश में चलती
है। पटना या लखनऊ में तो मंत्री के काफिले के आगे-आगे डंडाधारी पुलिसवाले चलते हैं
ताकि रास्ते में आने वाले किसी को भी डंडे की चोट पर हटाया जा सके। दिल्ली में अगर
ऐसा हो गया तो फिर सारे मीडिया वाले हंगामा मचा देंगे। बेचारे मीडिया वालों की भी कोई
गलती नहीं है। दिल्ली के बारे में खबर बनाना आसान है, क्योंकि
इससे मीडियाकर्मियों को अपने दफ्तर से अधिक दूर जाने की जरूरत नहीं पड़ती।
खैर, इन सब बातों को छोड़कर असली मुद्दे पर आते हैं।
अखबार में छपी उस रिपोर्ट पर मंत्रियों और अधिकारियों में खलबली मच जाएगी। कल्पना कीजिए
कि अगले ऑड-ईवेन प्लान में कैसी-कैसी शर्तें रखी जाएँगी। जरा सोचिए कि अगला ऑड-ईवेन
प्लान के लिए मीटिंग चल रही है और दिल्ली सरकार के आला मंत्री और अधिकारी अपने-अपने
सुझाव रख रहे हैं। एक मंत्री बड़ा ही आसान तरीका सुझाता है कि अब से जब भी ऑड-ईवेन लागू
हो तो सारे स्कूल बंद करने का आदेश निकाल दिया जाए। इससे बच्चे भी खुश हो जाएँगे कि
जम कर खेलने-कूदने का मौका मिल जाएगा। इस पर मुख्यमंत्री जी कि राय होती है कि यदि
मध्यम वर्ग को ठीक से परेशान न किया गया तो फिर टीवी चैनलों पर फुटेज नहीं मिलेगी।
फिर एक अधिकारी कहता है कि जिन-जिन बच्चों के जन्म ऑड तारीख को हुए हैं वे ऑड तारीख
को स्कूल नहीं जा सकेंगे। यही नियम ईवेन तारीखों को जन्म लेने वाले बच्चों पर भी लागू
होगा। स्कीम को सही से लागू करने के लिए स्कूल पहुँचाने जाते समय हर माँ या बाप को
साथ में बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र रखना होगा। लेकिन इसमें खतरा ये है कि जो बच्चे
बसों या वैन से स्कूल जाते हैं उनको तो बेमौसम छुट्टी का मजा नहीं मिल पाएगा। फिर वे
आंदोलन न कर दें? किसी ने कहा कि बच्चे कैसे आंदोलन कर सकते हैं
तो किसी ने जवाब दिया कि आजकल के बच्चे; खासकर जिन्हें जुवेनाइल
कहा जाता है; एक से एक जघन्य अपराध कर रहे हैं तो फिर आंदोलन
या अनशन कौन सी बड़ी बात है।
उसके बाद एक बड़े ही काबिल मंत्री ने कहा कि जिन माता पिता के
संतानों की संख्या ऑड है वे ऑड डेट को अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाएँगे। जिन
माता पिता के संतानों की संख्या ईवेन है वे ईवेन डेट को अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने
नहीं जा पाएँगे। इसके लिए किसी को भी जन्म प्रमाण पत्र लेकर चलने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
अभियान शुरु होने से पहले हर पेट्रोल पंप पर स्टिकर मुफ्त बाँटे जाएँगे। उस स्टिकर
पर बड़े-बड़े अक्षरों में ‘ऑड बच्चे’ या ‘ईवेन बच्चे’ लिखा होगा। उस स्टिकर को कार के अगले शीशे
पर लगाना होगा। अब तो ज्यादातर लोगों के दो ही बच्चे होते हैं इसलिए यह स्कीम कारगर
साबित होगी। महानगरों में तो बहुत से लोगों के अब एक ही बच्चा रहता है इसलिए यह स्कीम
दोगुनी असरदार होगी।
मेरा सिर अब यह सोच-सोच कर
भन्ना रहा है कि ऐसी स्थिति में मेरे जैसे कितने ही माँ-बाप क्या करेंगे। हम कुछ कर
भी नहीं सकते, क्योंकि हम आम आदमी हैं। अधिकतर नेताओं को मध्यम वर्ग की उपस्थिति का अहसास
ही नहीं होता क्योंकि इस वर्ग के लोगों को वोट बैंक की तरह नहीं हाँका जा सकता है।
उन्हें तो केवल उस तरह के लोग पसंद होते हैं जिन्हें आसानी से अपनी बातों में फँसा
कर सामूहिक रूप से वोटिंग के लिए मना लिया जाए।
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