भारत सरकार एक बिल लाने वाली
है जिसके मुताबिक हर किसी को भारत के किसी भी भाग का नक्शा इस्तेमाल करने के लिए लाइसेंस
लेना होगा। अब इससे दक्षिण एशिया की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा इस पर विचार विमर्श
करने का जिम्मा मैं अपने से अधिक ज्ञानी लोगों पर छोड़ता हूँ। मुझे तो ये चिंता सता
रही है कि इससे आम आदमियों के जीवन पर क्या असर पड़ेगा। इस विषय पर गहन चिंतन करके मैंने
कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश की है।
कल्पना कीजिए कि सुबह सुबह किसी
स्कूल में भूगोल की क्लास शुरु हो रही है और मास्टर साहब बच्चों से पिछले दिन दिए गए
होमवर्क के बारे में पूछ रहे हैं।
मास्टर साहब, “कल मैंने एक होमवर्क दिया था
जिसमें भारत के मानचित्र पर अधिक वर्षा और कम वर्षा वाले क्षेत्रों को दिखाना था। उस
होमवर्क को जिसने भी पूरा किया हो वह अपने हाथ ऊपर कर ले।“
जवाब में कोई भी हाथ ऊपर नहीं
उठा। जब मास्टर साहब ने कारण पूछा तो सबसे मेधावी छात्र गोपाल का जवाब आया।
गोपाल, “सर, मेरे पापा ने उस होमवर्क को बनाने से मना किया था क्योंकि मेरे
पास उस नक्शे का लाइसेंस नहीं है। मेरे पापा नक्शा विभाग के दफ्तर के कई चक्कर लगा
चुके हैं लेकिन यह पता ही नहीं चल पा रहा है कि लाइसेंस कितने में मिलेगा और किस काउंटर
से मिलेगा।“
मास्टर साहब, “कोई बात नहीं है। मैंने प्रिंसिपल मैडम से
बात की है ताकि स्कूल के लिए एक लाइसेंस ले लिया जाए। लेकिन वो बता रहीं हैं कि इसमें
बहुत खर्चा आयेगा। उस खर्चे की भरपाई के लिए सभी छात्रों से डेवलपमेंट चार्ज के नाम
पर एक मोटी राशि ली जाएगी। अभी तक के कानून के हिसाब से हम नक्शे के लाइसेंस के लिए
छात्रों से कोई चार्ज नहीं कर सकते हैं। अरे हाँ, लगता है राहुल
कुछ बोलना चाहता है। बोलो राहुल।“
राहुल, “मेरे पापा के कुछ दोस्त नक्शे वाले दफ्तर के
बाहर दलाली का काम करते हैं। उनका कहना है कि लाइसेंस लिए बगैर भी काम चल सकता है।
हाँ इसके बदले में स्कूल की तरफ से उस दफ्तर के लिए हर महीने कुछ नजराना चला जाता तो...............।“
मास्टर साहब, “ठीक है, ठीक है। चलो
मैं शाम में तुम्हारे पापा से मिल लूँगा। लेकिन ये बात बाहर किसी को नहीं बताना।“
मास्टर साहब फिर कहते हैं, “लेकिन तुम्हारे घर का पता
मुझे ठीक से मालूम नहीं है। आजकल मेरे फोन का नैविगेशन सिस्टम भी काम नहीं कर रहा है।
उसमें मैसेज आ रहा है कि लाइसेंस की फीस के लिए हजार रुपए जमा करने पड़ेंगे। अब तक तो
उनकी सेवा फ्री में मिल रही थी। अब फिर पुराने तरीके से कोई पता ढ़ूँढ़ना पड़ेगा। लेकिन
अब किसी अंजान आदमी से पता पूछने में भी डर लगता है। जमाना खराब हो गया है। कहीं किसी
चोर उचक्के के चक्कर में न पड़ जाऊँ।“
तभी स्कूल के डाइरेक्टर क्लास में आते हैं। वे मास्टर साहब से
पूछते हैं, “सर, ये बताइए कि आपको यहाँ से एयरपोर्ट
का रास्ता मालूम तो है? आजकल रेडियो टैक्सी के ड्राइवर भी जाने
से इनकार कर रहे हैं। कहते हैं कि शहर में इतना अधिक नया कंस्ट्रक्शन हो गया है कि
बिना नैविगेशन सिस्टम के रास्ता ढ़ूँढ़ना बहुत मुश्किल हो गया है। अब तो गूगल मैप ने
भी भारत में अपनी सेवा देना बंद कर दिया है। सुना है कि भारत सरकार ने उसपर करोड़ों
रुपयों का जुर्माना लगाया है।“
मास्टर साहब, “सर आप भूभाग क्यों नहीं इस्तेमाल करके देखते
हैं। हाल ही में मशहूर बाबा झामदेव की कंपनी ने गूगल मैप जैसी ही सेवा शुरु की है।
सुना है कि ग्राफिक्स कुछ धुँधले होते हैं लेकिन किसी रास्ते का मोटा-मोटा आइडिया लग
जाता है। वैसे बहुत स्पेस लेता है और बहुत महँगे स्मार्टफोन में ही चल पाता है। आपके
पास तो एक लैपटॉप भी है। लैपटॉप की हार्ड डिस्क में ज्यादा जगह होती है।“
डाइरेक्टर साहब, “डाउनलोड किया था। लेकिन उसका इस्तेमाल करना
अपने आप में एक जद्दोजहद है। हर नई जगह का डाइरेक्शन बताने से पहले आधार नंबर और पैन
नंबर डालना पड़ता है। उनका कहना है कि इससे काले धन पर रोक लगने में मदद मिलती है।“
मास्टर साहब, “सर एक बात पूछना चाहता हूँ। भूगोल की क्लास
मानचित्र के बिना अधूरी हो जाती है। यदि आप एक स्कूल के लिए एक लाइसेंसे ले लेते तो............।“
डाइरेक्टर साहब, “अरे सर, आजकल के बच्चे
कहाँ भूगोल में रुचि लेते हैं। उन्हें साइंस और गणित पर ही फोकस करने दीजिए। अंत में
इन सबको इंजीनियर ही तो बनना है। उसके बात ये अपना रास्ता खुद ढ़ूँढ़ लेंगे।“