परीक्षा ख़त्म होने के बाद सुमन गेट के बाहर राकेश का इंतजार कर रहा था। राकेश और सुमन रांची से बोकारो आये थे, किसी सरकारी नौकरी में भर्ती के लिए परीक्षा देने। राकेश बाइस साल का है और सुमन पच्चीस साल का। दोनों प्राइवेट कंपनी में सेल्स रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर काम करते हैं। दोनों रांची में एक ही मकान में साथ रहते है। दोनों एक ही शहर दरभंगा से आते हैं इसलिए दोनों में अच्छी पटरी खाती है। तनख्वाह के हिसाब से देखा जाए तो दोनों अच्छी खासी नौकरी कर रहे है। लेकिन सरकारी नौकरी करने वालों की समाज में अच्छी इज्जत मानी जाती है, इसलिए ये दोनों इस प्रयास में लगे हैं की किसी तरह सरकारी नौकरी लग जाए। अब सेल्स के काम में इतना ज्यादा घूमना पड़ता है की इन्हे इतना समय नहीं मिलता कि सरकारी नौकरी के लिए ठीक से तैयारी कर सकें। बहरहाल, दोनों ने बस ठीक ठाक उत्तर दिए थे और बहुत ज्यादा उम्मीद लगाए नहीं बैठे थे। वैसे भी उन्हें नौकरी की चिंता तो थी नहीं।
परीक्षा के बाद दोनों ने एक रिक्शा किया और सेक्टर १ के राम चौक से चास की और चल पड़े। चास में उन्होेने किसी होटल में एक कमरा ले रखा था। दोनों ही अपने काम के सिलसिले में अक्सर बोकारो आया करते थे इसलिए उनके लिए यह शहर नया नहीं था। यदि परीक्षा एतवार को न होती तो ये तो कंपनी के खर्चे पर ही रांची से बोकारो का ट्रिप कर लेते। होटल पहुंचने के बाद दोनों ने कुछ देर आराम किया। फिर परीक्षा में उम्मीद से अच्छा करने की ख़ुशी में सोचा कि थोड़ी मस्ती की जाए। सुमन ने रिसेप्शन पर फोन करके बियर और नमकीन मंगवाए। बियर पीने के बाद दोनों ने सोचा कि कुछ अच्छा खाना खाया जाए। वे ऐसे लोगों में थे जिनके लिए अच्छे खाने का मतलब होता है नॉन वेज के नाम पर कुछ भी परोस दो। जिस होटल में वे ठहरे थे उसमे पता चला कि नॉन वेज नहीं मिलता था। इसलिए दोनों होटल से बाहर आए और पैदल ही किसी रेस्तरां की तलाश में निकल पड़े। चास का यह इलाका किसी चिर परिचित बाजार की तरह लगता है। यहाँ पर थोक विक्रेताओं की मंडी है। विभिन्न कम्पनियों के सेल्स के लोग यहाँ आते-जाते रहते हैं इसलिए यहां हर रेट के ठीक-ठाक होटल है।
आखिरकार उन्हें एक ऐसा रेस्तरां मिला गया जो अच्छा दिख रहा था और उनके बजट में भी आ रहा था। वह नया ही खुला था। सुमन ने उसके मैनेजर के सामने लम्बी चौड़ी डींगें मारी यह दिखाने के लिए कि वह किसी कंपनी का बड़ा साहब है। उसके लिए यह आसान भी था क्योंकि वे वहां पर के सबसे मंहगे होटल में ठहरे हुए थे। जी नहीं, यह कोई तीन या पांच सितारा होटल नहीं था, लेकिन चास जैसे बाजार की नाक था। थोड़ी देर में उनके सामने एक पूरे मुर्गे का मुर्ग मसल्लम आ गया। साथ में पराठे और सलाद भी। दोनों को तेज भूख लगी थी, इसलिए दोनों उस लजीज खाने पर टूट पड़े। मैनेजर ने उन्हें अपनी तरफ से आइसक्रीम भी पेश किया। वह इस उम्मीद में था कि इससे अगली बार से सुमन की कंपनी के सभी साहब उसी रेस्तरां में जाया करेंगे। फिर बिल चुकता करने के बाद वे दोनों वापस उस होटल में चले गए जहां वे ठहरे हुए थे।
दोनों बिस्तर पर लेटे हुए स्वादिष्ट भोजन पर टीका टिप्पणी कर ही रहे थे कि सुमन को ध्यान आया कि उस रेस्तरां वाले ने गलती से कम पैसे लिए थे। राकेश ने सुमन को ध्यान दिलाया कि सुबह से ही दोनों अपनी औकात से ज्यादा रईसी कर रहे थे। अब उनके पास इतने ही पैसे बचे थे कि वे इस होटल का बिल चुकता करने के बाद किसी तरह से बोकारो स्टेशन पहुंच कर ट्रेन की टिकट कटाकर रांची पहुंच सके। सुमन एकदम से बिस्तर से उठा और दोनों जल्दी-जल्दी अपना सामान पैक करने लगे। राकेश ने घड़ी में देखा कि अभी तीन बजे हैं। उन्होंने तय किया की उन्हें फ़ौरन बोकारो स्टेशन के लिए चल देना चाहिए इसके पहले कि उस रेस्तरां का मैनेजर उन्हें ढूंढता हुआ आ जाए। जब वे इस होटल का बिल चुकता कर रहे थे तभी उस रेस्तरां से एक वेटर उनके पास आया; एक सही बिल के साथ। सुमन से उसे खूब खरी खोटी सुनाई और कहा कि वह अपने मैनेजर को भेज दे, क्योंकि उस जैसे वेटर से बात करना सुमन जैसे साहब की तौहीन होती।
उन्हें पूरा भरोसा था कि जब तक वेटर रेस्तरां तक पहुंचेगा, वे चास की सीमा से निकल चुके होंगे। बोकारो स्टेशन वहां से इतनी दूर था कि एक बार वहां पहुंचने का मतलब था खतरे से मुक्ति। वे दोनों आनन-फानन में बाहर निकले, एक ऑटो पर सवार हुए और उसे तेज चलने को कहा। बोकारो स्टेशन पहुंचने पर पता चला कि वर्धमान हटिया पैसेंजर ट्रेन आने ही वाली थी। जब तक ट्रेन नहीं छूटी, तब तक उनका दिल किसी अनिष्ट की आशंका से तेजी से धड़क रहा था। जैसे ही ट्रेन ने प्लेटफॉर्म छोड़ा, दोनों ने चैन की सांस ली।
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