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Friday, September 9, 2016

खूँटे से बँधी गाय

नेताजी सुबह सुबह नहा धोकर तैयार हो गये। ऊपर से नीचे तक झक सफेद कुर्ता पायजामा और उसपर से सफेद चप्पल। लगता था जंपिंग जैक (जीतेंद्र) के ठेठ देसी अवतार। हाँ उस चमकदार सफेदी पर रंगों की हल्की सी छटा बिखेरने के लिए उन्होंने एक गमझा कंधे पर डाल लिया था जिसमें केसरिया और हरे रंग दिख रहे थे। लेकिन अभी तक सेक्रेटरी का कहीं अता पता न था। नेता जी ने समय का सदुपयोग करने के लिए अपने बंगले के लॉन में मॉर्निंग वाक करना ही बेहतर समझा। जैसे ही उन्होंने मॉर्निंग वाक शुरु किया उनके नथुनों में ताजी हवा की खुशबू की जगह एक अजीब सी दुर्गंध फैलने लगी। नेताजी ने तुरंत अपने माली को आवाज लगाकर पूछा, “अबे ये बदबू किस चीज की आ रही है? तुम तो देहाती आदमी हो इसलिए इस बदबू को पहचानते होगे।“

माली ने जवाब दिया, “क्या नेताजी, आप भी तो कहते हैं कि आपका बचपन किसी गाँव में बीता था। फिर आप ये भी दंभ भरते हैं कि आप तो किसानों के हमदर्द हैं। गोबर जैसी चिरपरिचित चीज की बदबू नहीं पहचान पा रहे हैं।“

नेताजी थोड़ा झल्लाए और कहा, “अरे नहीं, जब से सांसद बना हूँ तब से साफ सुथरे बंगले में रहता आया हूँ। ज्यादातर जगह की यात्रा हवाई जहाज से करता हूँ। जहाँ हवाई जहाज नहीं पहुँच सकता वहाँ तो मैं एअरकंडीशन गाड़ी में जाता हूँ। इसलिए बाहर की आबो हवा के बारे में कुछ पता ही नहीं चलता। खैर छोड़ो, ये गोबर की बदबू कहाँ से आ रही है?”

माली ने कहा, “सरकार, अब गोबर की बदबू किसी फूल से थोड़े न आएगी। जरूर गोबर से ही आ रही होगी।“

नेताजी ने अब थोड़ी तल्खी से पूछा, “वो तो मैं समझ गया। लेकिन हमारे बंगले के आस पास गोबर कहाँ से आ गया। जाओ जाकर पता लगाओ।“

माली दौड़कर बंगले के गेट तक गया और वहीं से नेताजी को पास आने का इशारा करने लगा। नेताजी लगभग दौड़ते हुए गेट तक पहुँचे। वहाँ पर बुरा हाल था।

ठीक गेट से ही मोटी मोटी रस्सियों से कई गाएँ और साँड बँधे हुए थे। मेन रोड से गेट तक आने वाली छोटी सी सड़क पर इतनी गाएँ बँधी थी कि तिल रखने की जगह नहीं थी।

नेताजी ने नाक को अपने गमछे से ढ़क लिया और बोले, “अरे बाप रे, ये गाएँ तो बहुत बुरी हालत में लग रहीं हैं। इनमें से तो कुछ के पेट भी खराब लग रहे हैं। उनका गोबर तो दस्त की तरह दिख रहा है। गोबर की बदबू भी कुछ अजीब सी है।“

माली ने जवाब दिया, “सरकार, ये सब आवारा पशु लगते हैं। दिन भर कूड़ा कचरा खाने की वजह से इनका हाजमा भी खराब हो गया है। गोबर की अजीब सी बदबू भी ऊलजलूल खाने के कारण है।“

नेताजी ने नाक भौं सिकोड़ते हुए कहा, “लगता है ये सब विपक्ष की चाल है।“

माली ने कहा, “हाँ हाँ, आपको जुकाम भी हो जाए तो विपक्ष पर ही आरोप लगता है।“

तभी नेताजी का सेक्रेटरी गेट के बाहर से आता दिखाई दिया। गेट खोलकर आने का सवाल ही नहीं पैदा होता था। लिहाजा सेक्रेटरी दीवार फाँद कर अंदर घुसा। उसे देखते ही नेताजी आग उगलने लगे, “कहाँ थे सुबह से? जरूरी मीटिंग में जाना है। उसके बाद गौरक्षा के सिलसिले में भाषण भी देने जाना है। तुम्हारे रहते हुए ये सब किसने कर दिया?

सेक्रेटरी ने थोड़ा दम लेने के बाद कहा, “अरे सर, लगता है कल का न्यूज नहीं सुना आपने। आजकल जो नया जोकर आ गया है उसने कल किसी खूँटा गाड़ो अभियान के बारे में बताया था। कह रहा था कि हमारी पार्टी के सभी आला नेताओं के घर के बाहर आवारा गायों को खूँटे से बाँध देगा। इतनी जल्दी वे काम पर भी लग जाएँगे पता नहीं था।“

तभी बंगले के सामने कई नामी गिरामी टीवी चैनलों के ओबी वैन रुकते दिखाई दिये। उनमें से धड़ाधड़ कैमरामैन उतरने लगे। साथ में सुंदर और कमसिन बालाएँ हाथ में माइक लिए गेट की तरफ दौड़ती दिखाई पड़ गईं। अब नेताजी के पास और कोई रास्ता न था। बुझे मन से उन्होंने गेट खोला और बाहर की तरफ चल पड़े। गेट से बाहर आते ही उनका पहला पैर छपाक से गोबर की ढ़ेर पर पड़ा। नेताजी का मन अंदर तक घिन से भर गया। लेकिन अपनी वेदना छुपाते हुए नेताजी ने चेहरे पर 1000 वाट की मुसकान लाने में सफलता पा ली थी। एक टीवी रिपोर्टर ने इस तरह की जींस और टीशर्ट पहन रखी थी जिससे उसका यौवन नेताजी पर कहर ढ़ाने के लिए काफी था। उस रिपोर्टर ने नेताजी के मुँह में माइक घुसेड़ते हुए पूछा, “नेताजी, आपके बंगले के बाहर इतनी गाएँ बँधी हुई हैं। आपको कैसा महसूस हो रहा है?”

नेताजी ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा, “मुझे बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा है। ऐसा लगता है कि मेरा बचपन वापस आ गया है। ऐसा लगता है कि मैं सुबह सुबह गाएँ चराने जा रहा हूँ। गाय हमारी माता है। हम तो बचपन से ही गौ माता की सेवा में उद्धत रहे हैं।“

रिपोर्टर ने फिर पूछा, “नेताजी, इन गायों का आप क्या करेंगे। इन्हें यहाँ से खदेड़ देंगे या अपने आलीशान बंगले में पनाह देंगे।“

नेताजी ने जवाब दिया, “गाय हमारी माता है। भला कोई अपनी माँ को भगाता है। मैं इन सभी गायों को अपने बंगले में ही रखूँगा। मैं विपक्ष का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ कि उसने मुझे गौ माता की सेवा करने का मौका दिया।“


Thursday, September 8, 2016

विश्वामित्र की तपस्या भंग

इन्द्र अपने रंगमहल में एक से एक सुंदर अप्सराओं के नृत्य का आनंद उठा रहे थे। साथ में वे दुनिया के कोने कोने से आये सोमरस का स्वाद भी ले रहे थे। तभी नारद के प्रवेश से रंग में भंग हो गया। नारद ने आते ही कहा, “नारायण, नारायण।“

अब चूँकि नारद ठहरे एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऋषि जिनका आना जाना लगभग हर देवी देवता के यहाँ लगा रहता था इसलिए इंद्र को अपनी पार्टी को बीच में ही रोकना पड़ा। इंद्र अपने सिंहासन से उठ खड़े हुए और पूछा, “नारद जी, कैसे आना हुआ? सब कुशल मंगल तो है?”

नारद ने उत्तर दिया, “आप यहाँ अपनी रातें रंगीन कर रहे हैं और उधर कोई आपके सुख शांति में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है।“

इंद्र ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा, “क्या बात कर रहे हैं? मुझे तो ऐसा कुछ पता नहीं चला।“

इस पर नारद ने हँसते हुए जवाब दिया, “लगता है आजकल आप रियलिटी शो कुछ ज्यादा ही देख रहे हैं। कभी कभी प्राइम टाइम भी देख लिया कीजिए। इससे पूरी दुनिया में होने वाली गतिविधियों के बारे में पता चलता है।“

इंद्र के चेहरे पर अब घबराहट के भाव कुछ अधिक ही दिखने लगे। उन्होंने पूछा, “नारद जी, खुल कर बताएँ।“

नारद ने कहा, “सुनने में आया है कि एक राजा अपना राजपाट और बाकी सबकुछ छोड़ छाड़ कर तपस्या में लीन है। पिछले हजार सालों से वह तपस्या कर रहा है। यदि उसकी तपस्या सफल हो गई तो कहीं वह आपकी गद्दी न हथिया ले।“

इंद्र ने पूछा, “कौन है? क्या नाम है?”

नारद ने कहा, “उसे लोग विश्वामित्र के नाम से जानते हैं।“

फिर नारद ने कहा, “मैंने आपको आने वाले खतरे के प्रति आगाह कर दिया है। अब मैं चलता हूँ। नारायण, नारायण।“

नारद के जाते ही इंद्र ने सोमरस का एक बड़ा गिलास एक ही साँस में खाली कर दिया। फिर वे गहरी चिंता में डूब गये। उनकी चिंता देखकर उनकी सबसे चहेती अप्सरा; जिसका नाम मेनका था; ने पूछा, “हे देवराज, आप किस चिंता में डूब गये?”

इंद्र ने बताया, “अभी अभी नारद जी आये थे। किसी विश्वामित्र नामक ऋषि के बारे में बता रहे थे। वह पिछले हजार सालों से तपस्या में लीन है। मुझे तो मेरी गद्दी खतरे में नजर आ रही है।“

ऐसा सुनकर मेनका ने इंद्र के सामने सोमरस से भरा एक नया गिलास पेश किया और बोली, “हे देवराज, इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। जब आपका दिमाग मेरे सौंदर्य से मिल जाए तो हम बड़े से बड़े खतरे को हवा में उड़ा सकते हैं।“

फिर वे दोनों पूरी रात उस मुद्दे पर सोचते रहे। सुबह होते-होते इंद्र और मेनका ने अपने रास्ते से विश्वामित्र नाम के काँटे को हटाने की तरकीब सोच ली।

योजना के मुताबिक मेनका ने जबरदस्त साज श्रिंगार किया और उसपर से मेल खाते हुए परिधान पहने। फिर वे और इंद्र पुष्पक विमान पर सवार होकर उस स्थान पर पहुँचे जहाँ विश्वामित्र तपस्या कर रहे थे। घना जंगल होने के कारण पुष्पक विमान को थोड़ी दूरी पर ही उतारना पड़ा। फिर घने जंगल में जाकर उन्होंने अपनी योजना को अमली जामा पहनाया। उसके बाद जो कुछ हुआ उसका विवरण आगे है।

अगले ही दिन पूरे विश्व के टेलिविजन चैनलों और इंटरनेट पर एक ही वीडियो वायरल था। उस वीडियो में मेनका और विश्वामित्र को ऐसे ऐसे कोणों से दिखाया गया था जिससे किसी को भी विश्वामित्र के चरित्र के बारे में संदेह न करने का कोई कारण ही न मिले। हर चैनल पर एक ही ब्रेकिंग न्यूज चल रहा था, “इस ढ़ोंगी को देखिये। ये पाखंडी अपने आप को साधु कहता है। इसने तो बड़े से बड़े इज्जतदार साधुओं की लुटिया डुबो दी।“

अगले दिन अखबारों में खबर छपी, “पुलिस ने एक ढोंगी साधु को रंगे हाथ गिरफ्तार किया। साधु रंगरेलियाँ मनाते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया।“

हर नुक्कड़, हर खलिहान और खेत में लोग अपने अपने स्मार्टफोन पर साधु वाला वीडियो देख रहे थे। ये अलग बात है कि उनकी रुचि साधु में कम और अप्सरा में अधिक थी। हर टेलिविजन चैनल पर एक से एक ज्ञानी मनुष्यों के पैनल बैठे हुए थे जो गिरते सामाजिक मूल्यों पर ज्ञानवर्धक चर्चा कर रहे थे।

उधर स्वर्ग में मेनका और इंद्र साथ में बैठकर प्रख्यात उद्घोषक संजय के चैनल पर ये खबरें सुन रहे थे। इंद्र मेनका की ओर मुसकरा कर कह रहे थे, “तुमने तो कमाल का नृत्य पेश किया। उस साधु का एक एक रोयां हिल गया था।“


मेनका अपनी तारीफ सुनकर फूली नहीं समा रही थी। उसने कहा, “आपने भी तो कमाल कर दिया। उतने कठिन कोणों से वीडियो बनाना तो अच्छे से अच्छे कैमरामैन के वश का नहीं। सारे स्टिंग ऑपरेशन करने वाले तो आपसे जल भुन गये होंगे।“ 

Sunday, September 4, 2016

टीचर्स डे का त्योहार

मेरी क्लासटीचर आज कुछ ज्यादा ही बनी ठनी दिख रही थीं। जैसे ही वे क्लास में आईं बच्चों ने उन्हें गुड मॉर्निंग कहने में कुछ अधिक ही जोश दिखाया। टीचर जवाब में कुछ नहीं बोलीं लेकिन कुछ शर्मा और सकुचा कर अपनी सीट पर बैठ गईं। क्लास में बैठे लगभग सभी लड़के उन्हें तिरछी निगाहों से देखने की कोशिश कर रहे थे। कुछ लड़कियाँ भी उन्हें वैसे ही घूरने की कोशिश कर रहीं थीं। लड़के किस वजह से देख रहे थे और लड़कियाँ किस वजह से देख रहीं थीं ये बहस का मुद्दा हो सकता है। लेकिन क्लास टीचर को भी इस तरह से सबके आकर्षण का केंद्र बनना अच्छा ही लग रहा था। रौल कॉल के बाद क्लास टीचर ने अपनी शहद भरी आवाज में ऐलान किया, “बच्चों तुम्हें तो पता ही होगा कि अगले सोमवार को हम टीचर्स डे मना रहे हैं। यह हर छात्र के लिए एक यादगार दिन होता है क्योंकि इस दिन के अवसर पर सभी छात्र अपने टीचर्स का सम्मान करना सीखते हैं।“

मैंने बीच में ही टोका, “लेकिन मैं तो रोज ही आपका सम्मान करता हूँ।“

टीचर से थोड़ा झुँझलाते हुए कहा, “कितनी बार कहा है कि बीच में न टोका करो। खैर, टीचर्स डे के दिन हमारे स्कूल में एक शानदार प्रोग्राम होगा। उस प्रोग्राम के लिए तुममे से हर स्टूडेंट को पचास पचास रुपए चंदा देना होगा।“

मैंने कहा, “मेरे पापा चंदा देने के सख्त खिलाफ हैं। मैं चंदा नहीं दे पाउँगा।“

इस पर टीचर ने थोड़ा और झुँझलाते हुए कहा, “अब इसे देखो। इसके मन में टीचर के लिए तो कोई इज्जत ही नहीं है। बस कहता फिरता है कि यह रोज ही मेरा सम्मान करता है।“

मैंने टीचर से कहा, “लेकिन पचास रुपए देने ने देने से टीचर का सम्मान कैसे जुड़ा हुआ है?

टीचर ने जवाब दिया, “मेरे पास इतनी फुरसत नहीं है कि तुम्हारे हर सवाल का जवाब दूँ। तुम जवाब ही जानना चाहते हो तो तुम्हें प्रिंसिपल मैम के पास ले चलती हूँ। वहाँ तुम्हें ठीक से जवाब मिल जायेगा।“

यह सुनकर कुछ बच्चे फिस्स से हँस पड़े। बाकी बच्चे आपस में कानाफूसी करने लगे।

मैंने कहा, “क्या मैम, आप भी। बात बेबात प्रिंसिपल मैम को बीच में क्यों ले आती हैं? चलिये मैं अपनी मम्मी से पचास रुपए माँग कर ले आउँगा। सोचूँगा किसी मंदिर में चढ़ावा चढ़ा दिया। जब भगवान तक की इज्जत रुपयों पैसों में तौली जाती है तो फिर टीचर कहाँ से गलत हो सकती हैं।“

टीचर ने थोड़ा कुटिल मुसकान के साथ कहा, “ठीक है, उम्मीद है तुम्हें टीचर की इज्जत का असली मतलब समझ में आ गया होगा।“

घर लौटने के बाद जब मैने अपने पापा से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा, “यह ठीक है कि मैं चंदा देना पसंद नहीं करता हूँ लेकिन जब मुहल्ले के पहलवान भंडारा करने के लिए चंदा माँगने आते हैं तो मैं कुछ नहीं कर पाता। मैं इस डर से चंदा दे देता हूँ कि कहीं वही पहलवान कल को मुझपर अपनी पहलवानी की आजमाइश न करने लगें। टीचर से भी बहस ल‌ड़ाना ठीक नहीं है। हो सकता है कि वे तुम्हारे नंबर काट दें।“


जब सोमवार को मैं स्कूल पहुँचा तो स्कूल का गेट फूलों से सजा हुआ था। गेट के ऊपर एक बड़ा सा बैनर लगा था जिसपर हैप्पी टीचर्स डे लिखा हुआ था। स्कूल के मैदान में एक शामियाना लगा था जिसके एक छोर पर स्टेज बना हुआ था। चारों तरफ बंदनवार लगे थे। सभी टीचर ऐसे सज धज कर आईं थीं जैसे करवा चौथ का त्योहार हो। लाउडस्पीकर पर हिट फिल्म तारे जमीन परके गाने बज रहे थे। सभी बच्चों ने टीचर्स के लिए गुलाब के फूल और गुलदस्ते लाये थे। रंगारंग प्रोग्राम में कुछ बच्चों ने गाना गाया। कुछ बच्चों ने गिटार और कीबोर्ड पर अपना हुनर दिखाया। कुछ लड़कियों ने हिट गानों पर डांस भी पेश किया। आखिर में प्रिंसिपल मैम ने एक लंबा लेकिन बोरिंग भाषण दिया। फिर टीचर्स के लिए नाश्ते के पैकेट सर्व किये गये। सर्व करने का काम स्टूडेंट्स ने किया। किसी भी स्टूडेंट को नाश्ते का पैकेट नहीं मिला। इस तरह से सभी स्टूडेंट ने टीचर्स डे के अवसर पर सभी टीचर्स को भरपूर मान और सम्मान दिया। 

Monday, August 29, 2016

मेडल जीतकर क्या मिलेगा?

“मम्मी, मैं स्कूल से लौटते समय राजू चाचा के घर चला जाउँगा। शाम में देर से लौटूँगा।“ नवीन जोर से चिल्लाया और फिर दरवाजे के भड़ाम से बंद होने की आवाज आई।

उसकी माँ; निशा दौड़कर बालकनी में गई और वही से आवाज लगाया, “कोई खास वजह?”

नवीन तब तक नीचे सड़क पर पहुँच चुका था। उसने ऊपर बालकनी की ओर देखकर कहा, “कुछ खास नहीं। बस चाचा के लड़के योगेश से मिले हुए बहुत दिन हो गये थे।“

निशा ने कहा, “ठीक है, लेकिन उससे ज्यादा देर बात नहीं करना। जल्दी आ जाना।“

उसके बाद नवीन ने अपनी स्कूटी स्टार्ट की और तेजी से आँखों से ओझल हो गया। शाम हो गई और उसके बाद रात भी हो गई। नवीन का कहीं कोई पता नहीं था। निशा ने कई बार उसके मोबाइल पर कॉल करने की कोशिश की। फोन की घंटी बज तो रही थी लेकिन नवीन उसे उठा नहीं रहा था। निशा के पति, मधुरेश ने कहा, “आ जाएगा। हो सकता है स्कूटी चला रहा हो इसलिए फोन नहीं उठा रहा है।“

निशा ने कहा, “अरे नहीं, मुझे उसकी चिंता नहीं है। मुझे तो चिंता है कि योगेश से फालतू की बातों में अपना समय न जाया कर रहा हो।“

मधुरेश ने कहा, “अरे योगेश कोई पराया तो है नहीं। मेरे अपने भाई का बेटा है। उसके साथ बातें करेगा तो उनके रिश्ते मजबूत होंगे।“

निशा ने कहा, “खाक रिश्ते मजबूत होंगे। योगेश दूसरे किस्म का लड़का है। पढ़ाई लिखाई से कोई मतलब नहीं। कहता है वेटलिफ्टिंग में मेडल लायेगा।“

ऐसा सुनकर मधुरेश ने कहा, “क्या बात है। हमारे खानदान में आजतक किसी ने ऐसी बात नहीं सोची है। उसका डीलडौल भी वेटलिफ्टर वाला ही है। कौन जानता है, आगे चलकर यह लड़का पूरे परिवार का नाम रौशन करे।“

निशा ने कहा, “मैने कब रोका है उसे नाम रौशन करने से? लेकिन हमारे नवीन को कहीं उसके रास्ते से न भटका दे। मेरे नवीन को तो इंजीनियर बनना है। वैसे भी वेटलिफ्टिंग का क्या भविष्य है। क्रिकेटर बनने की कोशिश करता तो बेहतर होता। और कुछ नहीं तो एकाध सीजन के लिए आइपीएल में भी खेलने का मौका मिल जाता तो मोटे पैसे कमा लेता।“

तभी नवीन भी आ गया। उसे देखते ही निशा उस पर बरस पड़ी, “कितनी बार कहा है कि किसी और के घर में बैठकर अपना समय मत जाया करो।“

नवीन ने कहा, “मम्मी मैं समय नहीं बरबाद कर रहा था। मैं तो योगेश से बॉडी बिल्डिंग के टिप्स ले रहा था। क्या शानदार बॉडी बनाई है उसने। एक मैं हूँ, थुलथुल।“

निशा ने कहा, “तुम्हें कौन सा मॉडलिंग करने जाना है जो बॉडी बिल्डिंग के चक्कर में पड़ा है। अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे। एक बार इंजीनियर बन गया फिर उसके बाद जितनी बॉडी बिल्डिंग करनी होगी कर लेना। मुझे तो अपना थुलथुल बेटा ही पसंद है।“

नवीन ने कहा, “पता है, योगेश का नेशनल चैंपियनशिप के लिए सेलेक्शन हो गया है। कह रहा था कि वहाँ अगर गोल्ड मेडल जीत लेगा तो फिर शायद कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए भी सेलेक्शन हो जाये। कितनी अच्छी बात है।“

निशा ने कहा, “हाँ! हाँ! उस मेडल का सारा गोल्ड वो तुम्हें दे देगा। इसमें कौन सी अच्छी बात है। अरे बहुत करेगा तो कॉमनवेल्थ में भी गोल्ड जीत लेगा। फिर कुछ नेता बीस पचास लाख देने की घोषणा करेंगे। कोई सरकारी नौकरी मिल जाएगी और फिर लोग उसे भूल जाएँगे। बुढ़ापे में गरीबी में मरेगा।“

नवीन ने कहा, “नहीं मम्मी, पूरी दुनिया में उसका नाम हो जायेगा। मुझे भी गर्व होगा कि मेरे परिवार का लड़का इतनी ऊँचाई पर पहुँच जाएगा।“

निशा ने कहा, “बेटा झूठे गर्व से पेट नहीं भरता। रही नाम होने की बात तो आज सुंदर पिचाई को कौन नहीं जानता। तुम इंजीनियर बन जाओ और फिर गूगल जैसी बड़ी कम्पनी के सीईओ बन जाओ। जब तक तुम इंजीनियरिंग पास करोगे तब तक सुंदर पिचाई रिटायर भी हो चुका होगा। फिर तुम्हारा भी नाम होगा।“

नवीन ने कहा, “……..लेकिन माँ......”

निशा ने कहा, “लेकिन वेकिन कुछ नहीं। तुम्हें कोई बाउंसर तो बनना नहीं है। इसलिए केवल वैसे ही लड़कों से मिला जुला करो जो पढ़ने लिखने में यकीन करते हैं। जबतक आइआइटी से कॉल लेटर नहीं आ जाता तब तक के लिए योगेश से मिलना बंद।“


ऐसा सुनकर नवीन अपने पिता की ओर देखने लगा। उसके पिता ने कँधे उचकाए और मुँह बिचकाकर नवीन से इशारा किया जैसे कह रहे हों, “अब इसमें मैं क्या कर सकता हूँ। तुम्हारी माँ के आगे मेरी कौन सी चलती है।“ 

Saturday, August 27, 2016

सही रास्ता

यह बात 1997 के आस पास की होगी। मैं उस समय बहराइच में काम करता था। मुझे उस शहर में आये हुए कुछ ही महीने हुए थे। वह एक छोटा सा शहर है इसलिए शहर में घूमते फिरते कई लोगों से जान पहचान होना लाजिमी था। इसी तरह एक सीनियर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव से मेरी जान पहचान हुई। वह बिहार के मुजफ्फरपुर शहर से आते थे। एक बिहारी होने के नाते मुझे उस आदमी से थोड़ा अपनापन सा महसूस हुआ इसलिए हमलोग जब भी कभी मिलते तो रास्ते में रुककर ही थोड़ी देर के लिए इधर उधर की बातें कर लिया करते थे। वह किसी ऐसी कम्पनी में काम करते थे जो एक सरकारी कम्पनी थी। 

एक बार उन्होंने बताया, “मेरी हालत बहुत खराब है। मुझे पिछले दो साल से सैलरी नहीं मिली है। मेरी बीबी एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती है और मैं कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता हूँ। तब जाकर बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा चल पाता है। अब तो बच्चे भी बड़े हो रहे हैं जिससे हमारे खर्चे बढ़ रहे हैं। समझ में नहीं आता क्या करूँ।“

मैने उनसे सहानुभूति दिखाते हुए कहा, “ये तो बड़ी गंभीर समस्या है। लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आ रहा है कि जब आपको पिछले दो सालों से सैलरी नहीं मिली है तो आप ये नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते। कोई भी दूसरी कम्पनी ज्वाइन कर लीजिए। कम से कम परिवार चलाने लायक आमदनी तो होने लगेगी।“

इसपर उन सज्जन ने जवाब दिया, “तुम नहीं समझोगे। अभी तुम्हारी उमर कम है और तुम कुँवारे भी हो। मैं किसी भी कीमत पर एक सरकारी कम्पनी की नौकरी नहीं छोड़ना चाहता हूँ। सरकारी नौकरी की अपनी ही शान है।“

मैने कहा, “क्या बात करते हैं? ऐसी झूठी शान को लेकर क्या करना जिससे आपके अस्तित्व पर ही खतरा हो।“

फिर उन्होंने कहा, “पैसों की कमी के कारण मैं ठीक से काम भी नहीं कर पाता हूँ। तुम यदि मेरी मदद करना चाहते हो तो कभी कभी किसी इंटीरियर जाते समय मुझे भी साथ ले लेना ताकि मैं भी वहाँ कुछ काम कर पाऊँ। सुना है कि तुम बड़ा ही बढ़िया काम कर रहे हो।“

उसके कुछ दिनों बाद मैं पास के एक बाजार नानपारा जाने वाला था। संयोग से शाम में बाजार में टहलते समय उनसे मुलाकात हुई और मैंने कहा, “भैया, कल मुझे नानपारा जाना है। यदि आप चाहें तो मेरे साथ चल सकते हैं। सुबह आठ बजे तैयार होकर अपने दरवाजे के पास खड़े रहियेगा। मैं आपको वहीं से ले लूँगा।“

उन्होंने हामी भर दी और मैं खाना खाने के लिए पास के ही एक ढ़ाबे में चला गया। खाना खाकर मैं अपने घर गया और अगले दिन के काम के लिए अपने बैग में जरूरी सामान रख लिया। अगले दिन सुबह आठ बजे मैं जब उनके घर के पास पहुँचा तो वे दिखे ही नहीं। खैर, दरवाजे पर थोड़ी देर तक दस्तक देने के बाद वे आये, मुझसे देरी के लिए माफी माँगी और मेरी बाइक की पिछली सीट पर बैठ गये। उनकी गली से निकलकर मैं मेन रोड पर आया और दाहिने मुड़ गया। उसके बाद छावनी चौराहे से मैं बाँए मुड़ने लगा। जैसे ही मेरी बाइक बाईं ओर चलने लगी वे पीछे से जोर से चिल्लाए, “अरे इधर किधर जा रहे हो? तुम तो बता रहे थे कि नानपारा जाना है।“

मैने जवाब दिया, “मैं पिछले पाँच महीनों से लगातार नानपारा जा रहा हूँ। जहाँ तक मुझे पता है यही रास्ता नानपारा को जाता है। आप आराम से बैठिये।“

उन्होंने थोड़ी देर तक मुझसे नानपारा के सही रास्ते के बारे में बहस लड़ाने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही हाइवे आया तो मेरी रफ्तार तेज हो गई और तेज हवा चलने के कारण हमारी कोई बातचीत संभव नहीं थी। लगभग आधे घंटे चलने के बाद हम नानपारा पहुँच गये। नानपारा पहुँचते ही मैने एक चाय की दुकान के पास बाइक रोकी और उनसे उतरने को कहा। जब हम वहाँ बैठकर चाय पी रहे थे तो उन्होंने कहा, “तुम तो यहाँ के रास्तों से कम ही समय में भली भाँति परिचित हो गये हो। दरअसल मुझे नानपारा आये हुए एक लंबा अरसा बीत गया इसलिए क्न्फ्यूजन था।“

मुझे बड़ा गुस्सा आ रहा था। मैने कहा, “अब मेरी समझ में आ गया कि आपकी कम्पनी दो साल से सैलरी क्यों नहीं दे रही है। आप यहाँ पर पिछले दो तीन साल से काम कर रहे हैं फिर भी आपको नानपारा जैसे अहम बाजार का रास्ता नहीं मालूम है। आप कोई दूसरी कम्पनी भी ज्वाइन कर लेंगे तो वहाँ भी आपकी सैलरी बंद कर दी जाएगी। आपके लिए बेहतर होगा कि वापस मुजफ्फरपुर जाकर वहीं ट्यूशन पढ़ाने का काम शुरु कर दें।“


जवाब में उन सज्जन ने कुछ नहीं कहा। बस चुप चाप चाय की चुस्कियाँ लेते रहे। 

Friday, August 26, 2016

Krishna’s Birthday

This is the auspicious day of Lord Krishna’s Birthday. The public address system of my society had announced in the early morning that there would be a grand celebration in the children park to mark this occasion. At about five in the evening, I got a call from the five year old daughter of my neighbor who had called on the intercom to say, “Uncle, I am going to be the Radha tonight. I am going to dance on the stage. You must come to see my dance. Don’t forget to bring auntie and bhaiya along with you.”

We got dressed up for the occasion and went downstairs to the children park. I could see a sizeable crowd had already gathered. A stage had been erected by using iron pipes and colorful clothes. There was a small idol of the Lord Krishna at one corner of the stage. A cradle had been placed in front of the idol on which a neonate was enjoying all the attention. A long queue had already formed to have a glimpse of the Krishna in the idol and Krishna on the cradle.

Many carpets had been laid in front of the stage to make a large sitting area. Single row of chairs had been used for cordoning off the sitting area. By the time we reached, all the chairs had been occupied by people and hence we had to enjoy the function by standing behind the row of chairs.

Most of the people who have purchased the flats in this society are around thirty years old. As all of them are in the stage of ‘baby boomers’ so there is a sizeable population of small kids in this society. Most of the children were playing on the carpets. Most of the girls had donned the costume of Radha while some of the boys were in Krishna’s attire. But most of the boys were wearing the dresses as per the latest fashion trend. Hit songs were being played on the speakers. While most of the girls were dancing to those tunes, the boys were mostly engaged in friendly fights. The mothers of those children were showing the same zeal to dress for the occasion. They had come in their best outfits; with all the necessary accessories and jewelry to add the much wanted dash of glamour to the show.

The members of the RWA arrived on the stage after some time. One of them took a mike and announced, “On behalf of the society, I wish all of you a Happy Janmashtami’. There will be dance performances by children in a short while from now. Parents who are keen for the dance performance of their children are requested to come to the stage.”

The announcement stirred a hornet’s nest. Almost all the ladies began showing the restlessness and urgency as if they were going for the dance competition or for a possible catwalk. Most of the ladies had left no stone unturned while preparing their daughters in Radha’s getup. Some of them had also taken so much pain in getting ready for the show that they could easily give a tough competition to the real Radha. Within a few moments the stage was full of many Radhas. The stage was also full with almost equal number of moms of those Radhas. The announcer was at his wit’s end after seeing the swelling crowd on the stage. He somehow took the mike and said, “I am emboldened by witnessing the energy and spirit of the members of this society. But I need to make some rules to avoid overcrowding at the stage. It would be better if you can register the names of your children with our colleague. After that, we will call the participants one by one.”

After that, each mummy went on to register the name of her Radha or Krishna. The announcer then began to call the children to perform on stage one by one. The children went on to perform excellent dance numbers. But only two songs appeared to top the popularity charts in those dance performances. One of the songs was ‘O Radha teri chunri O Radha tera jhumka’ and another song was ‘Radha kaise na jale’. Everybody was surprised to see so many ladies coming up with similar opinion on a particular topic. It was really amazing because it can be impossible to bring two ladies to agree on a topic.

The moment the dance prorgamme started, most of the people went near the stage and were standing there in order to have the best view of the performance. They were least worried about the inconvenience caused to people who were sitting behind them. The announcer must have appealed numerous times to them to sit down but his announcements fell on deaf ears. People were probably thinking of getting a vantage point for clicking photos and recording videos and that is why they preferred to stand near the stage.

Other than the nuisance of a blocked view by people standing near the stage, the programme was going on in proper order. It was the turn of a new dancer. His mummy was accompanying her to the stage. The announcer told that the child was going to dance on some innovative song. Her mother gave a memory stick to the technician so that the innovative song could be played. But the moment the song started to play there appeared to be some problem with the speaker. It started producing strange sounds of Pee! Ponnn! Koooo! Aaargh! The mother of that child promptly snatched the mike from the announcer’s hand and said, “It appears that there is some problem with the speaker. Don’t worry. I will take the initiative and will sing for my daughter’s dance performance.

After that the lady began to sing. It was an innovative song indeed but was somewhat weird too. Her horrible singing proved to be another dampener. I am unable to recall it properly but the song goes something like this:

“O Krishna I have made a building for you in my heart
O Krishna I have made delicious food for you
I have taken butter and ghee and milk to make the dish
O Krishna I love you.”

The use of Hinglish was not the only problem. The lady was equally horrible on pronunciation and diction. People were just tolerating her singing in the name of decent behavior at a public forum. But the lady did not feel a pity on the audience. She went on and on for about five minutes. Finally, people could get to come out of that round of torture. Once she finished her singing, the audience gave her a huge round of applause; may be because of courtesy or to indicate their displeasure.  

When the lady was back in her home, there was mayhem in her house. After reaching her home when she asked her husband about the video of her performance the husband innocently replied, “Everything got screwed up. I could not make the video. My phone hanged at the wrong time.”

Hearing that the wife was fuming with anger, “You don’t want me to become famous.”

The husband said, “No, no, it is not true. You should appreciate that I could snap the wires of the speaker at the right time. This helped in getting you a chance on the stage.”

But the lady could not be pleased by that. She said, “I know that I am a treasure trove of talent. But I have been trapped within the walls of this house since the day I married you. After so many years I could get this opportunity to dress in my finest attire and to showcase my talent to the whole world. But I know that you feel jealous of me.”

The husband says, “You are talking nonsense. Every morning it is you who goes to the bus stop to drop our daughter for school bus. You are also a regular at kitty parties at the club. You are just making an issue out of my failure to record your video.”

The wife said, “When your phone had hanged then you should have borrowed your neighbor’s phone for a while. You never know I may become a sensation on the YouTube the way Justin Webber became.”

The husband said, “Don’t worry, I will not take any chances on the occasion of Janmashtami celebrations next year.”

The lady stomped her feet and went inside her bedroom. After that her poor husband was left waiting for the clock to strike 12 of the midnight. He was waiting for the Lord Krishna to enact his incarnation. He was hoping against hope to get something to eat when his wife would offer some sweet dishes after the birth of the Lord Krishna.


Thursday, August 25, 2016

जन्माष्टमी समारोह

आज जन्माष्टमी का दिन है। यह दिन भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मेरी सोसाइटी के पब्लिक ऐड्रेस सिस्टम पर सुबह सुबह ही यह घोषणा कर दी गई थी कि चिल्ड्रेन पार्क में जन्माष्टमी का समारोह मनाया जाएगा। शाम में पाँच बजे के आसपास मेरे एक पड़ोसी की पाँच साल की बेटी ने इंटरकॉम पर कॉल करके मुझे बताया, “अंकल मैं आज राधा बनने वाली हूँ। मैं स्टेज पर डांस करूँगी। उसे देखने आप जरूर आना। आंटी और भैया को भी साथ में लाना।“

शाम सात बजे के आसपास हमलोग तैयार होकर नीचे पार्क में चले गये। वहाँ पर अच्छी खासी भीड़ जमा हो चुकी थी। लोहे की पाइपों के फ्रेम पर रंग बिरंगे कपड़े लगाकर एक स्टेज बनाया गया था। जिसके अंदर भगवान कृष्ण की छोटी सी मूर्ति लगी हुई थी। मूर्ति के आगे एक पालने पर एक नवजात शिशु को भी लिटा दिया गया था। स्टेज के बाहर कई दरियाँ बिछा दी गई थीं। उन दरियों के चारों ओर प्लास्टिक की कुर्सियाँ लगी थीं। जब तक हम नीचे पहुँचे थे तब तक सारी कुर्सियाँ भर चुकी थीं, इसलिए हमें उन कुर्सियों के पीछे खड़े होकर ही समारोह का आनंद लेना था। इस सोसाइटी में घर खरीदने वाले ज्यादातर लोग तीस के आस पास के हैं। इसलिए इस सोसाइटी में छोटे बच्चों की जनसंख्या अच्छी खासी है। सभी बच्चे कुर्सियों के आगे लगी दरियों पर खेल रहे थे। ज्यादातर लड़कियों ने राधा का ड्रेस पहना था और कुछ लड़कों ने कृष्ण का ड्रेस पहना था। लेकिन ज्यादातर लड़के लेटेस्ट फैशन वाले ड्रेस पहने नजर आ रहे थे। बड़े-बड़े स्पीकरों से हिट गाने बज रहे थे अधिकतर लड़कियाँ उन धुनों पर नाच रही थीं। लेकिन अधिकतर लड़के एक दूसरे से धींगा मुश्ती कर रहे थे।

थोड़ी देर बाद सोसाइटी के आर डब्ल्यू ए के सदस्य आ गये। उनमें से एक ने माइक लेकर घोषणा की, “आप सबको इस सोसाइटी की तरफ से जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। अब थोड़ी देर में स्टेज पर बच्चों द्वारा डांस पेश किया जाएगा। जिन लोगों ने अपने बच्चों को डांस के लिए तैयार किया है वे बारी बारी से स्टेज पर आ जाएँ।“

उस घोषणा को सुनते ही वहाँ बैठी महिलाओं में खलबली मच गई। ज्यादातर महिलाओं ने अपनी बेटियों को राधा का गेटअप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उनमें से कुछ स्वयं भी किसी राधा से कम नहीं लग रहीं थीं। थोड़ी ही देर में स्टेज पर एक साथ कई राधा पहुँच चुकी थीं। उनके साथ लगभग उतनी ही संख्या में राधाओं की मम्मियाँ भी थीं। स्टेज पर बढ़ती हुई भीड़ देखकर वहाँ उपस्थित उद्घोषक के तो होश उड़ गये। उसने फिर से माइक पकड़ा और बोलने लगा, “इस सोसाइटी के निवासियों का जोश देखकर मैं भी पूरे जोश में आ गया हूँ। लेकिन स्टेज पर जगह की कमी होने के कारण मुझे कुछ कायदे कानून बनाने होंगे। बेहतर ये होगा कि आप लोग अपने बच्चों के नाम लिखवा दें। फिर बारी बारी से हम बच्चों को बुलाकर उनका डांस पेश करेंगे।“

उसके बाद सभी मम्मियों ने अपनी अपनी राधाओं और कृष्णों के नाम लिखवा दिये। फिर बारी बारी से बच्चों को स्टेज पर बुलाया जाने लगा। बच्चों ने एक से एक डांस पेश किया। लेकिन ज्यादातर डांसों में दो ही गाने सुनाई पड़ रहे थे। एक गाना था राधा तेरी चुनरी ओ राधा तेरा झुमकाऔर दूसरा गाना था राधा कैसे न जले। हर किसी को ताज्जुब हो रहा था कि वहाँ उपस्थित सैंकड़ों महिलाओं में गाने के सेलेक्शन के मामले में एकमत कैसे हो गया।

बहरहाल जैसे ही डांस प्रोग्राम शुरु हुआ वैसे ही ज्यादातर लोग ठीक स्टेज के पास जाकर खड़े हो गये ताकि वे उस प्रोग्राम को ठीक से देख सकें। उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं थी कि पीछे बैठे लोगों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। एनाउंसर ने कई बार लोगों से बैठ जाने की अपील की लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं था। शायद खड़े होने से फोटो खींचने और वीडियो बनाने में ज्यादा सहूलियत हो रही थी।

सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा था। तभी किसी नई डांसर की बारी आई। उसके साथ उसकी मम्मी भी स्टेज पर गई। बताया गया कि वह बच्ची किसी अनूठे गाने पर डांस करने वाली थी। उसकी मम्मी ने वहाँ खड़े टेकनीशियन को पेन ड्राइव दिया ताकि गाना बज सके। पेन ड्राइव लगाने पर गाना शुरु होते ही बंद हो गया। स्पीकर में से चीं पों की आवाज आने लगी। उस बच्ची की मम्मी ने एनाउंसर के हाथ से माइक छीना और बोलीं, “लगता है स्पीकर में कुछ खराबी आ गई है। इसलिए अपनी बच्ची के लिए मैं खुद ही गाना गा दूँगी।“

उसके बाद उस बच्ची की मम्मी ने गाना शुरु किया। वह गाना अनोखा तो था ही साथ में कुछ अजीब भी था। उस महिला की बेसुरी गायकी ने माहौल को और भी खराब कर दिया। मुझे ठीक से याद नहीं लेकिन गाना कुछ इस प्रकार था:

“ओ कृष्णा आइ हैव मेड ए बिल्डिंग फॉर यू इन माइ हार्ट
ओ कृष्णा आइ हैव मेड डेलिसियस फूड फॉर यू
आइ हैव टेकेन बटर एंड घी एंड मिल्क तो मेक द डिश
ओ कृष्णा आइ लव यू”

समस्या केवल हिंगलिश भाषा से नहीं थी। उस महिला का ना तो उच्चारण ठीक था ना ही प्रोनाउंसिएशन और ना ही तलफ्फुस। लोग बड़ी मुश्किल से उस गाने को झेल रहे थे। लेकिन उस महिला को वहाँ बैठे लोगों पर जरा भी तरस नहीं आ रहा था। खैर लगभग पाँच मिनट के लंबे अंतराल के बाद लोगों को उस भीषण गायकी से मुक्ति मिली। लोगों ने औपचारिकता निभाते हुए उस महिला और उसकी बच्ची के लिए जोर जोर से तालियाँ बजाई।

जब वह महिला अपने घर पहुँची तो घर में कोहराम मच गया। घर पहुँच कर जब उसने अपने पति से अपने परफॉर्मेंस के वीडियो के बारे में पूछा तो पति ने बताया, “गजब हो गया। मैं तो वीडियो बना ही नहीं पाया। ठीक ऐन वक्त पर मेरा फोन हैंग कर गया था।“

इतना सुनते ही वह महिला बिफर पड़ी, “तुम तो चाहते ही नहीं हो कि मेरा भी नाम हो।“
पति ने कहा, “:अरे नहीं ऐसा नहीं है। स्पीकर का तार तो मैंने सही समय पर काट दिया था। तभी तो तुम्हें गाने का मौका मिला।“

महिला इतने से कहाँ मानने वाली थी। उसने कहा, “मैं जानती हूँ कि मेरे अंदर कितना टैलेंट छुपा है। जबसे तुमसे शादी हुई है इस घर की चारदीवारी में बंद हो गई हूँ। आज बड़ी मुश्किल से मौका मिला था अच्छी ड्रेस पहनकर दुनिया को दिखाने का। बच्ची के बहाने उतना बड़ा स्टेज भी मिल गया था। लेकिन तुम मुझसे जलते हो।“

पति ने कहा, “क्या बात करती हो। सुबह बिटिया को स्कूल बस के पास छोड़ने तुम ही जाती हो। फिर क्लब की किटी पार्टी में भी बराबर जाती हो। एक वीडियो रिकार्डिंग नहीं हो पाई तो क्या हुआ।“
पत्नी ने कहा, “अरे तुम्हारा फोन हैंग कर गया तो किसी पड़ोसी का फोन थोड़ी देर के लिए उधार माँग लेते। क्या पता मेरी वीडियों यूट्यूब पर वैसी ही हिट हो जाती जैसी जस्टिन बेबर की हुई थी।“
पति ने कहा, “अच्छा अगले साल की जन्माष्टमी के समारोह में मैं पूरी तरह से तैयार रहूँगा।“


महिला ने कुछ नहीं बोला और अपने कोपभवन में चली गईं। उसके बाद बेचारे पति इस बात का इंतजार करने लगे कि कैसे रात के बारह बजें और कृष्ण भगवान का जन्म हो। वे इस उम्मीद में जाग रहे थे कि कृष्ण भगवान के जन्म होते ही उन्हें कुछ खाने को मिला जाता।