पड़ोस के वर्मा जी सबसे आगे-आगे
चल रहे थे। उनके पीछे-पीछे उनके दो बेटे और पड़ोस के अन्य लड़के भी चल रहे थे। दस लोगों
के उस समूह में वर्मा जी को छोड़कर बाकी सभी किशोरावस्था में थे। वर्मा जी आगे-आगे किसी
सिपाही की मुद्रा में कदम ताल करते हुए चल रहे थे। उनके पीछे चल रहे लड़के उनकी हूबहू
नकल उतार रहे थे। इससे वर्मा जी के बेटों को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था।
वर्मा जी कह रहे थे, “सुबह-सुबह सैर करने से बहुत
सारे फायदे होते हैं। ताजी हवा अंदर जाने से सेहत अच्छी रहती है।“
एक लड़के ने जवाब दिया, “हाँ चचा, सही कहा आपने। हम किस्मत वाले हैं कि हमारे शहर में मॉर्निंग
वाक के लिए राज का इतना बड़ा कैंपस है।“
दूसरे लड़के ने कहा, “हाँ इस कैंपस में बड़े-बड़े मैदान हैं और जमकर
हरियाली भी है।“
वर्मा जी ने कहा, “अरे नहीं, इससे ज्यादा
हरियाली तो हमारे गाँव में हुआ करती थी। शहरों में वो बात नहीं है। अब इतनी ज्यादा
गाड़ियाँ चलने लगीं हैं कि हर तरफ धुँए का असर होता है।“
वे इसी तरह से बातें करते-करते आगे बढ़ रहे थे कि वर्मा जी के
कदम अचानक रुक गये। बाकी लड़के उनके पीछे ठीक उसी तरह रुक गये और एक सुर में पूछा, “क्या
हुआ चचा? रुक क्यों गये?”
वर्मा जी ने किसी छोटे बच्चे की तरह किलकारी मारी और बोला, “अरे देखो,
एक मरा हुआ कौवा।“
बाकी लड़कों ने कहा, “हे राम! मरा हुआ कौवा। उससे दूर ही रहिए चचा।
चलिये चलते हैं यहाँ से।“
वर्मा जी ने कहा, “अरे नहीं। इस मरे हुए कौवे से तो हम बहुत मजा
कर सकते हैं।“
बाकी लड़कों ने कहा, “क्या बात है चचा? लगता
है आप हमें कोई नई शरारत सिखाएँगे।“
किसी लड़के ने कहा, “पिछली बार आपके कहने पर मैंने उस बुढ़ऊ की धोती
खींच दी थी तो घर में बहुत मार पड़ी थी।“
किसी अन्य लड़के ने कहा, “पिछली बार आपके कहने पर मैंने
उस गदहे को पकड़ने की कोशिश की थी तो उसकी दुलत्ती खानी पड़ी थी।“
वर्मा जी ने कहा, “अबे तुम सब रह जाओगे डरपोक के डरपोक। तुम्हारी
उमर में तो हम वो सब शरारते करते थे कि गाँव के कई बुजुर्ग तो गाँव छोड़कर पूरे दिन
खेतों में छुप जाते थे।“
वर्मा जी ने आगे कहा, “:अभी दिखाता हूँ कि यह मरा हुआ कौवा हमारे
कितने काम आ सकता है।“
फिर वर्मा जी के इशारे पर एक लड़के ने किसी पेड़ से एक टहनी तोड़
ली। वर्मा जी ने अपने गमछे से अपने सिर को ढ़क लिया। फिर उस टहनी की एक छोर पर उस मरे
हुए कौवे को टाँग लिया और आगे की ओर चल पड़े।
उसके बाद तो वहाँ के कौवों में कोहराम मच गया। सभी कौवों ने
एक सुर में काँव-काँव करना शुरु कर दिया। लगता था पूरे शहर के कौवे वहीं आ गये थे।
वे सभी कौवे बारी-बारी से वर्मा जी के सिर पर झपट्टा मारने की कोशिश कर रहे थे। वर्मा
जी बड़ी सफाई से उनसे बच निकलते थे। वर्मा जी आगे-आगे मरे हुए कौवे को टाँगे हुए चल
रहे थे। उनके पीछे उनकी वानर सेना हो हल्ला मचाते हुए चल रही थी। और उनका पीछा करते
हुए कौवे काँव-काँव कर रहे थे।
जब वे अपने मुहल्ले के पास पहुँचे तो उन्हें देखने के लिए कई
लोग अपने घरों से बाहर निकल पड़े। कुछ लोग अपनी छतों पर आ गये तो कुछ अपनी बालकनी में
से झाँकने लगे।
पाँडे जी ने हँसते हुए कहा, “अरे वर्मा जी, आपका बचपना तो कभी नहीं जायेगा।“
गुप्ता जी ने गुस्से में कहा, “अरे वर्मा जी, आपने तो मुहल्ले के लड़कों को बिगाड़ कर रख दिया है।“
मिश्राइन ने आँखें मटकाते हुए कहा, “अरे पप्पू
के पापा, देखते हो वर्मा जी कैसे अपनी जवानी मेंटेन किए हुए हैं।
एक तुम हो जो अभी से बुढ़ऊ की तरह करने लगे हो।“
मिश्रा जी ने झल्लाकर कहा, “अब तुम जैसी बुढ़िया के लिए
तो मेरे जैसा बुड्ढ़ा ही सही रहेगा।“
लग रहा था कि वर्मा जी किसी विजय जुलूस की अगुवाई कर रहे थे।
वे आगे-आगे और उनकी वानर सेना उनके पीछे। साथ में उनके सिर पर मंडराता कौवों का झुंड।
उनके पीछे-पीछे चल रहे लड़कों को पता था कि वर्मा जी के साथ होने के कारण घर में डाँट
पड़ने की संभावना न के बराबर थी। इसलिए वे भी पूरे जोशो खरोश के साथ चिल्ला रहे थे।
उसके बाद वर्मा जी का जुलूस उनके आंगन में प्रवेश कर गया। वर्माइन
ने एक हाथ से अपना नाक बंद करते हुए दरवाजा खोला और बोलने लगी, “पता नहीं
आप कब सुधरेंगे। आपकी वजह से मुझे पूरे मुहल्ले से ताने सुनने पड़ते हैं।“
वर्मा जी ने अपनी पत्नी को अनसुना कर दिया और जीने से होते हुए
छत पर पहुँच गये। थोड़ी देर में कौवों की संख्या और भी बढ़ गई। लगता था पूरे शहर के कौवे
वर्मा जी की छत पर उतरने को व्याकुल हो रहे थे। वे जितनी बार वर्मा जी के सिर पर झपट्टा
मारने की कोशिश कर रहे थे, हर बार वर्मा जी बड़ी चतुराई के साथ बच निकलते
थे।
फिर वर्मा जी ने कहा, “अबे सुनो।“
लड़कों ने एक सुर में कहा, “बताइए चचा।“
वर्मा जी ने कहा, “इस कौवे को दारोगा जी की छत पर फेंक दूँ?”
लड़कों ने कहा, “हाँ चचा, वो दारोगा चचा
कुछ ज्यादा ही रौब दिखाते हैं।“
फिर क्या था, वर्मा जी ने कौवे को पकड़ा, उसे तेजी से हवा में घुमाया और बगल वाले दारोगा जी की छत परे फेंक दिया। अब
उनके ऊपर मंडरा रहे कौवों ने उनका पीछा छोड़ दिया और वे सब जाकर दारोगा जी के छत पर
बैठ कर काँव काँव करने लगे।
जब दारोगा जी को पता चला तो वे अपने आंगन में से ही जोर-जोर
से चिल्लाने लगे, “इस तरह की कारस्तानी वर्मा जी ही कर सकते हैं। मैं छोड़ूँगा नहीं।
पुलिस बुलवाऊँगा। मुकदमा दायर करूँगा।“
वर्मा जी तब तक अपने कमरे में जा चुके थे। वर्माइन ने उनके चेलों
को गरमागरम चाय पिलाई। चाय की चुस्कियों के साथ सब मिलकर ठहाका लगा रहे थे और बोल रहे
थे, “कसम से चचा, मजा आ गया।“