Pages

Tuesday, August 9, 2016

बुढ़ऊ की नसीहत

रात के बारह बज चुके थे। घर के सब लोग या तो सो रहे थे या सोने की तैयारी कर रहे थे। डब्बन, पिंटू, लड्डू और पप्पू की आँखों से नींद गायब थी। वे तो बस सबके सोने का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही घर में सन्नाटा सा लगने लगा तो चारों ने एक दूसरे के मोबाइल फोन पर मिस कॉल दिया और फिर ऊपर छत पर जमा हो गये। डब्बन के हाथ में एक भारी झोला था जिसमें बीयर की ठंडी बोतलें रखी हुई थीं। पिंटू के हाथ में एक छोटा सा थैला था जिसमें नमकीन के पैकेट थे। लड्डू ने एक हाथ में चटाई पकड़ी थी और दूसरे हाथ में बर्फ से भरी थैली। सबने चटाई बिछाई और फिर नमकीन के पैकेट और बीयर की बोतलों को करीने से रख दिया। पप्पू ने अपनी जेब में से सिगरेट का पैकेट भी निकाल लिया। उसके बाद चारों ने अपनी पार्टी शुरु कर दी।

डब्बन ने बीयर का पहला घूँट लेते हुए कहा, “आह! ये तो जबरदस्त ठंडा है। सचमुच मजा आ गया।“
पिंटू ने नमकीन मुँह में डालते हुए कहा, “बहुत देर तक इंतजार करना पड़ा। आज तो लग रहा था कि कोई सोने के मूड में ही नहीं था। घर की छत पर बैठकर पीने में जो सुकून मिलता है वह और कहीं नहीं।“

लड्डू ने कहा, “हाँ, पिछली बार याद नहीं है क्या हुआ था? हम उस दुकान के पीछे वाले कूड़े के ढ़ेर पर खड़े होकर पी रहे थे कि दो पुलिस वाले आ गये थे। पाँच सौ रुपए लेने का बाद भी डंडा मार ही दिया था उसने। ऊपर से मुहल्ले में जो थू थू हुई वो अलग।“

पप्पू ने कहा, “अब हम इतने रईस तो हैं नहीं कि जाकर किसी बार में अपने शौक पूरे करें। दोगुने से भी ज्यादा पैसे ऐंठते हैं ये बार वाले। घर में पियो तो लफंगे करार कर दिये जाओ। हमारी तो कोई जिंदगी ही नहीं।“

अभी उनपर बीयर ने रंग जमाना शुरु भी नहीं किया था कि तभी जीने पर से किसी के छत पर आने की आवाज आने लगी। आनन फानन में वे सब कुछ छुपाने की जगह ही ढ़ूँढ़ रहे थे कि देखा कि उनके सत्तर वर्षीय दादाजी छत पर उदित हो गये। दादाजी तो गुस्से से काँप रहे थे। वे बोले, “अबे नालायकों, शर्म नहीं आती। शरीफों के घर में क्या कर रहे हो? तुम्हारी वजस से पूरे मुहल्ले में नाक कट जाएगी।“

अब तो चारों रंगे हाथ पकड़े गये थे। बहाने बनाने का कोई फायदा नहीं था। पप्पू ने कहा, “दादाजी, कुछ नहीं बस यूँ ही थोड़ा मन बहला रहे थे। अब गर्मी भी तो बहुत पड़ रही है।“

लड्डू ने कहा, “बीयर कोई हार्ड ड्रिंक थोड़े ही है। इतना तो चलता है।“

दादाजी ने कहा, “मैं अभी तुम्हारे बापों को जगाता हूँ। जब डंडे पड़ेंगे तो सारी गर्मी निकल जाएगी। जानता नहीं कि शराब की लत कितनी खराब होती है?

डब्बन ने कहा, “लेकिन मैने सुना है कि अपनी जवानी में तो आप भी महुआ वाली शराब ले लिया करते थे। दादी ने बताया था एक बार।“

दादाजी ने कहा, “हाँ जवानी में गलती कर दी थी। लेकिन जैसे ही अपनी भूल का पता चला, फिर सब छोड़ दिया। अब वह गलती मैं तुम्हें हरगिज नहीं करने दूँगा।“

पिंटू ने कहा, “दादाजी, कम से कम जवानी में तो हमें गलतियाँ करने का मौका दीजिये। हम भी जब आपकी तरह बूढ़े हो जाएँगे तो छोड़ देंगे।“

तभी दादाजी ने कहा, “अरे बाप रे, तुमलोग तो सिगरेट भी पी रहे हो। शर्म नहीं आती।“

लड्डू ने कहा, “और आप जो हुक्का पीते हैं तो कुछ नहीं।“

दादाजी ने कहा, “अपने दादा से बहस लड़ाता है। शर्म नहीं आती?

डब्बन ने कहा, “दादाजी, अब आप ही कोई रास्ता बताएँ। घर में पी नहीं सकते क्योंकि आपकी नाक कटती है। बार में पी नहीं सकते क्योंकि महँगी मिलती है। चौराहे पर पी नहीं सकते क्योंकि मुहल्ले की नाक कटती है। हमारी उमर के लड़के पी नहीं सकते और आपकी उमर के लोगों को पीना नहीं चाहिए। तो फिर ये दुकान वाले बेचते किसके लिये हैं? आप तो बिल्कुल नीतीश कुमार की तरह बरताव कर रहे हैं।”

फिर दादाजी ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप वापस नीचे चले गये। 

No comments: