अनारकली के हुस्न की चर्चा पूरे
सल्तनत में छाई हुई थी। अनारकली राजमहल में एक दासी का काम करती थी। शुरु शुरु में
उसपर किसी भी मंत्री, राजकुमार या राजा
की नजर नहीं पड़ी थी। लेकिन एक बार उसके रूप पर मोहित होकर मशहूर कलाकार जेपी सिंघल
ने उसकी आदमकद पेंटिंग बनाकर प्रदर्शनी लगा दी। उसके बाद तो हर कोई बस अनारकली के बारे
में बातें करने लगा था। बादशाह का दिल भी अनारकली पर आ गया था। लेकिन अपनी इज्जत और
अनगिनत बेगमों के नाराज होने के डर से बादशाह ने उसके साथ प्यार की पींगे बढ़ाना सही
नहीं समझा। लेकिन अनारकली की इज्जत अफजाई के लिए बादशाह ने उसे राजदरबार की मुख्य डांसर
के तौर पर नियुक्त कर दिया। फ्रिंज बेनिफिट के तौर पर अनारकली को रहने के लिए एक आलीशान
महल दिया गया जिसमें तमाम सुविधाएँ दी गईं। अब अनारकली के आगे पीछे दास दासियों की
फौज हुआ करती थी। आम्रपाली के लिये ये अच्छे दिन से कम नहीं थे।
एक बार बादशाह ने अपने बेटे सलीम को अनारकली के महल में भेजा।
किसी खास समारोह के लिए अनारकली को डांस पेश करने के लिए दीवाने-खास में बुलाया गया
था। जब शहजादे सलीम ने अनारकली के हुस्न को देखा तो वे मतवाले हो गये। सलीम को फौरन
अनारकली से बेपनाह मुहब्बत हो गई। उस समारोह में अनारकली के डांस के समय सलीम अपनी
आँखें सेंकते रहे। उसके बाद दोनों का छुप छुपकर मिलने का सिलसिला शुरु हो गया। जिस
तरह गुलाब की खुशबू छुपाए नहीं छुपती उसी तरह इश्क भी छुप नहीं सकता। कुछ समय बीतते
बीतते सलीम और अनारकली के इश्क के चर्चे हर बाजार, गली, नुक्कड़ और मदिरालय में होने लगी। धीरे-धीरे यह बात बादशाह तक भी पहुँची। बादशाह
को तो जैसे काठ मार गया। वे इसलिए परेशान नहीं थे कि हिंदुस्तान के बादशाह का शहजादा
किसी दासी के प्यार में पागल हो गया था। वे तो इसलिए परेशान थे कि वे भी मन ही मन अनारकली
से मुहब्बत करते थे लेकिन अपने ओहदे का खयाल करके बात को आगे नहीं बढ़ा रहे थे।
बादशाह ने कई बार सलीम को समझाने की कोशिश की लेकिन सलीम कहाँ
मानने वाले थे। वे किसी भी टीनएजर की तरह अपने मुहब्बत की दुहाई देकर अपना केस मजबूत
करने की कोशिश करते थे। बादशाह को ये भी डर था कि बात हाथ से निकल जाने से बदनामी होगी
इसलिए वे अनारकली के खिलाफ कोई भी कदम उठाने से डरते थे।
इसी तरह दिन बीत रहे थे। बादशाह उस मुसीबत से पीछा छुड़ाने का
उपाय सोचते रहते थे। एक बार किसी शत्रु राज्य में अनारकली का डांस प्रोग्राम आयोजित
हुआ। सही कीमत मिलने के कारण अनारकली वहाँ पर अपना प्रोग्राम देने को राजी हुई थी।
शाही डांसर होने के नाते उसके पास यह आजादी थी कि वह जहाँ चाहे अपना प्रोग्राम पेश
कर सकती थी। उस शत्रु राज्य में अनारकली की जमकर खातिरदारी हुई। उसकी तारीफ में कशीदे
पढ़े गये। जब अनारकली लौट कर आई तो उसने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। वह अपनी
खातिरदारी से इतनी खुश थी कि उसने कहा, “हमारे शत्रु राज्य में बहुत ही अच्छा माहौल
है। वहाँ के दुष्ट राजा को छोड़ दें तो बाकी सभी लोग अच्छे हैं। वहाँ की अवाम तो इतनी
शालीन है कि दिल करता है वहीं एक घर बना लूँ।“
इसके बाद तो जैसे भूचाल आ गया। किसी को भी ये गवारा नहीं था
कि उनकी शाही डांसर किसी शत्रु राज्य के बारे में अच्छी अच्छी बातें करे। लोग अनारकली
के विरोध में तरह-तरह की बातें करने लगे। मदिरालयों में इस बात पर घंटो बहस होने लगी।
राजदरबार में इस बात पर गंभीर चर्चाएँ होने लगीं। बादशाह को तो बस ऐसे ही मौके की तलाश
थी। उनके हाथ ऐसा हथियार लग गया था कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। बादशाह ने
फौरन हुक्म दिया कि अनारकली के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाए।
उसके बाद पूरी प्रजा दो गुटों में बँट गई। एक गुट का मानना था
कि अनारकली ने देशद्रोह का काम किया था। वहीं दूसरे गुट का मानना था कि अनारकली ने
कोई भी ऐसा काम नहीं किया था जिससे देशद्रोह साबित हो सके। यह कहने की जरूरत नहीं है
कि सलीम दूसरे गुट का समर्थन कर रहे थे।
उसके बाद तय तारीख को दीवाने आम में मुकदमे की सुनवाई हुई। दोनों
पक्षों के वकीलों ने घंटों जिरह किया। पूरे दिन की बहस के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकल
पा रहा था। उसके बाद मौलवियों और पंडितों ने बादशाह से गुजारिश की कि वह अपने वीटो
का इस्तेमाल करके मुकदमे का फैसला सुना दें।
बादशाह ने कई पहलुओं पर गौर किया। उन्हें इस बात की सबसे ज्यादा
चिंता थी कि शहजादे सलीम के पाँव बहक गये थे। उन्हें इस बात की भी चिंता थी कि अनारकली
जैसी बला की खूबसूरत डांसर से सल्तनत को मरहूम होना पड़ेगा। लेकिन उनका पुत्र प्रेम
सब पर भारी पड़ गया। बड़े ही बुझे मन से बादशाह ने अपना फैसला सुना दिया, “अनारकली
ने मुल्क के साथ गद्दारी का पाप किया है। मुल्क किसी भी बादशाह, शहजादे या उसके डांसर से ऊपर है। इसलिए अनारकली को दीवार में चुनवाने का हुक्म
दिया जाता है।“