पंचतंत्र की कहानियाँ आप में
से कई लोगों ने पढ़ी और सुनी होगी। उसमें से एक कहानी है एक राजा, एक व्यापारी और उस राजा के एक नौकर के बारे में। व्यापारी बड़ा
ही प्रतिभाशाली होता है। उसकी वाकपटुता से प्रभावित होकर राजा उसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ
देता है। व्यापारी अपनी प्रतिभा से राजा को और अन्य लोगों बहुत ही संतुष्ट रखता है।
एक बार उस व्यापारी की बेटी की शादी में सभी गणमान्य लोगों को निमंत्रित किया जाता
है। राजा का एक विश्वासपात्र नौकर भी उस पार्टी में जाता है। नौकर मौका देखकर उन कुर्सियों
में से एक पर बैठ जाता है जो खास लोगों के लिए रिजर्व रखी गईं थीं। यह बात वहाँ बैठे
इज्जतदार लोगों को पसंद नहीं आती है। उन्हें नाक भौं सिकोड़ता देखकर व्यापारी उस नौकर
को बुरा भला कहता है और वहाँ से भगा देता है। उस नौकर को अपनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं
होती है। वह इसका बदला लेने की मन ही मन ठान लेता है।
एक दिन तड़के सुबह उसे इसका मौका मिल जाता है; जब वह
राजा के बेडरूम में झाड़ू लगा रहा होता है। राजा अधजगा सा लेटा हुआ होता है। वह नौकर
झाड़ू लगाते-लगाते बड़बड़ाने लगता है, “हे राम! ये आजकर महल में
क्या हो रहा है? उस व्यापारी की ये मजाल की रानी का आलिंगन करे।“
यह सुनकर राजा हड़बड़ाकर उठ जाता है और नौकर की गिरेबान पकड़ कर
पूछता है, “ये क्या बक रहे हो? तुम अपने होश में तो
हो?”
नौकर जवाब देता है, “म्म मुझे माफ कर दीजिए महाराज। पिछली रात मैं
जुआ खेल रहा था। और सारी रात मैं शराब भी पीता रहा। न जाने नशे में मेरे मुँह से क्या
निकल गया।“
नौकर के जाने के बाद राजा के मन में तरह तरह की शँकाएँ घुमड़ने
लगती हैं। राजा सोचने को विवश हो जाता है, “हो सकता है यह सही कह रहा हो। उस व्यापारी
के अलावा यही एक ऐसा व्यक्ति है जो इस महल में बेरोक टोक घूम सकता है। हो सकता है इसने
व्यापारी को रानी के साथ रोमांस करते देख लिया होगा। इस व्यापारी का कुछ करना पड़ेगा।“
उसके बाद राजा के सैनिकों और द्वारपालों को आदेश दे दिया जाता
है कि उस व्यापारी को महल के आस पास भी न फ़टकने दें। इस बात से अनभिज्ञ व्यापारी जब
एक दिन राजमहल के द्वार पर आता है तो सैनिक उसे अंदर नहीं जाने देते हैं। व्यापारी
अचंभे में पड़ जाता है। पास में ही उसे वह नौकर झाड़ू लगाता हुआ दिख जाता है। नौकर सिपाहियों
से कहता है, “अरे! तुम्हारी इतनी हिम्मत की इन जैसे महान आदमी को महल में जाने
से रोको। जानते नहीं ये कौन हैं। ये तो एक ही इशारे में तुम्हारी इज्जत की बखिया उधेड़
सकते हैं।“
नौकर की बात सुनकर व्यापारी को सारी बात समझ में आ जाती है।
फिर वह नौकर को बाइज्जत अपने घर बुलाता है। उसे पूरा सम्मान देता है। साथ में उसे ढ़ेर
सारी स्वर्ण मुद्राएँ और उपहार देता है। अपनी खोई हुई इज्जत वापस पाकर नौकर खुश हो
जाता है। वह व्यापारी से कहता है, “मैं जाता हूँ और कुछ न कुछ उपाय करता हूँ।
आपको अपना खोया हुआ सम्मान फिर से मिल जाएगा।“
कुछ दिन बीतने के बाद उस नौकर को फिर से मौका मिल जाता है। सुबह-सुबह
वह राजा के बेडरुम में झाड़ू लगाता रहता है। राजा आधी नींद में करवटें बदल रहा है। तभी
नौकर बड़बड़ाने लगता है, “हमारे राजा भी पक्के कार्टून हैं। पता नहीं,
उन्हें शौचालय में बैठे-बैठे ककड़ी खाने का शौक कब से चढ़ गया है।“
राजा फिर हड़बड़ाकर उठता है और उससे इस अनर्गल प्रलाप का कारण
पूछता है। नौकर जवाब देता है, “म्म मुझे माफ कर दें महाराज। मैं पूरी रात
शराब पीता रहा। नशे के कारण मैं न जाने क्या अनाप शनाप बक गया।“
राजा को लगता है कि कि किसी छोटे आदमी के अनर्गल प्रलाप पर ध्यान
नहीं देना चाहिए। वह व्यापारी को बुलवा भेजता है। उस व्यापारी को अपनी खोई हुई मान
और प्रतिष्ठा वापस मिल जाती है।
आप सोच रहे होंगे कि पंचतंत्र की इस कई बार सुनी हुई कहानी को
यहाँ फिर से क्यों लिखा गया है। दरअसल आजकल हमारे एक काबिल राजनेता उसी नौकर की तरह
बर्ताव कर रहे हैं। कई सालों से वे जिस किसी के खिलाफ अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं।
किसी के भी खिलाफ कोई भी आरोप मढ़ देते हैं और फिर मुकदमा भी दायर कर देते हैं। उनमें
से कई लोगों की हालत तो उस व्यापारी की तरह हो जाती है। वह बेचारा अपनी वर्षों की कमाई
इज्जत को क्षण भर में मिट्टी में मिलते देखकर हताश हो जाता है। रघुराम राजन इस सबका
एक ताजातरीन उदाहरण हैं। अब यह नौकर अपने फाड़े का रफू करने की कोशिश कर रहा है। आजकल
यह लगभग हर किसी पर कोई न कोई आरोप लगा रहा है। एक पुराना लतीफा है जिसमें यह कहा गया
है कि रफू तो मामूली से छोटे छेदों के लिए होता है। कपड़ा यदि तार-तार हो जाए तो उसका
रफू तो बड़े से बड़ा रफूगर भी नहीं कर सकता।
आजकल 24X7 टीवी चैनलों का जमाना है। गिद्ध जैसी दृष्टि
वाले इन टीवी रिपोर्टरों को ऐसे लोग बहुत पसंद आते हैं जो अपने अनर्गल प्रलापों के
कारण सुर्खियाँ बनाते हैं। फिर बहुतेरे पैनल बहसों के माध्यम से पब्लिक के बीच किसी
के भी कपड़े को तार-तार कर दिया जाता है। उस आक्रमण की चपेट में आने वाले व्यक्ति के
लिए अपनी आबरू बचाने के लिए किसी दीवार का ओट भी नहीं मिलता है। जब तक एक मुद्दा ठंडा
भी नहीं होता, इस तरह के व्यक्ति नए-नए मुद्दे बाजार में छोड
देते हैं; और हमारी चटपटी खबरों की पिपासा को शाँत करते हैं।
अब देखने वाली बात ये है कि राजा किस तरह से ऐसे नौकरों के मुँह सदा के लिए बंद कर
देता है। लेकिन अब शायद ही कोई ऐसा व्यापारी हो जो किसी नौकर को इसलिए इतनी मान प्रतिष्ठा
दे ताकि उसकी अपनी इज्जत बची रहे। न ही आजकल ऐसे राजा होते हैं जो अपने किसी दरबारी
की खोई हुई इज्जत लौटाने के लिए बातों को दबाने में माहिर हों। आजकल के राजसी लोग तो
चाहते ही हैं कि सिवाय उनके बाजार में अन्य हर किसी की इज्जत उछाली जाए ताकि वे चिर
काल तक सत्ता का सुख भोग सकें।