आपके यहाँ अखबार तो आता ही होगा।
हममें से अधिकतर लोगों के घरों में अखबार आता है। मैं जिस बिल्डिंग में रहता हूँ, वहाँ भी अधिकांश लोगों के घरों में अखबार आता है। कुछ मुहल्लों
में अखबार वाले नीचे से ही अखबार को चौथी मंजिल तक पहुँचा देते हैं। उनका निशाना कमाल
का होता है। इस काम में माहिर लड़के शायद ही कभी चूकते हैं। हाँ कभी कभी नए रंगरूटों
को मैंने देखा है कि कई बार कोशिश करने के बाद ही वे अखबार को सही जगह तक पहुँचा पाते
हैं। जब तक अखबार आपकी पकड़ में आता है तब तक वह कीचड़ से लथपथ हो चुका होता है। ऐसे
में अखबार को पढ़ने का क्या, छूने तक का मन नहीं करता है। मेरी बिल्डिंग
में इसकी कोई परेशानी नहीं है, क्योंकि इसमें बीस-बीस मंजिले
टावर हैं। अखबार वाला अपना भारी बैग लेकर लिफ्ट से सबसे ऊपरी मंजिल तक पहुँच जाता है
और फिर हर फ्लैट के दरवाजे के आगे निश्चित अखबार डालकर चला जाता है। मेरे जैसे कुछ
लोग जैसे उसके इंतजार में ही रहते हैं और फौरन दरवाजा खोलकर अखबार उठाकर उसका उपभोग
शुरु कर देते हैं; जैसे उसके बिना पेट ही नहीं भरता। मैं जिस
मंजिल पर हूँ उसपर आठ फ्लैट हैं। मैंने गौर किया है कि एक फ्लैट में एक रिटायर्ड सज्जन
रहते हैं जो मेरी तरह ही अखबार वाले का इंतजार करते रहते हैं। बाकी के लोगों को लगता
है कि टीवी या मोबाइल पर हेडलाइन पता चल गई फिर अखबार पढ़ने की क्या ज्ल्दबाजी है। बाकी
सभी दरवाजों के बाहर के अखबार देर तक यूँ ही पड़े रहते हैं।
कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। इसलिए मैं अपनी
जिज्ञासा शांत करने की कोशिश करने लगा कि आखिर अन्य लोग अखबार को उतनी तवज्जो क्यों
नहीं देते। अखबार वाला उनसे भी पूरा ही बिल वसूलता होगा। उन्हें कोई डिस्काउंट तो नहीं
ही मिलता होगा। आजकल की टू बी एच के वाले फ्लैटों की जिंदगी में यह बात तो संभव नहीं
कि आप सीधे-सीधे किसी से पूछ लें कि वह अखबार क्यों नहीं पढ़ता है। ऐसे परिवेश में तो
अपने पड़ोसी का नाम और काम जानने में ही साल भर लग जाता है। या तो हर आदमी अपने जीवन
में व्यस्त होता है या व्यस्त होने का ढ़ोंग करता है। इसलिए मैंने अपने पड़ोसियों की
दिनचर्या पर जासूसी नजर रखना शुरु किया। बहुत दिनों तक अवलोकन करने पर मैंने अनुमान
लगाया कि मेरे सामने के दो फ्लैटों और मेरी बगल की एक फ्लैट में रहने वाले लोग किसी
बीपीओ में काम करते होंगे। वे दोपहर के बाद अपनी फॉर्मल ड्रेस पहनकर काम पर निकलते
दिखते हैं और सुबह लगभग नौ बजे के आसपास वापस आते हुए दिखते हैं। अब मुझे पता चल गया
था कि वे बिचारे रात भर की ड्यूटी से थके होने के कारण इस हालत में नहीं रहते होंगे
कि कोई भी क्रिएटिव काम कर सकें।
अखबार का स्वाद लेने के साथ चाय की चुस्की लेते हुए मैंने अपनी
पत्नी से पूछा, “ये बेचारे तो रात भर कॉल सेंटर में अमेरिका में बैठे लोगों के
सवालों के जवाब दे देकर थक जाते होंगे, इसलिए इन्हें अखबार पढ़ने
की कोई जल्दी नहीं होती। लेकिन मेरी समझ में ये बात नहीं आती कि इनकी पत्नियाँ तो पूरे
रात सोती रहती हैं, फिर वे सुबह सुबह अखबार क्यों नहीं पढ़ती हैं।
देखने से तो लगता है कि काफी पढ़ी लिखी हैं। नीचे पार्क में मैंने उन्हें बातें करते
भी सुना है; हर बात में अंग्रेजी के एक दो शब्द का इस्तेमाल तो
कर ही लेती हैं। लगता है शायद इनके पति इन्हें अखबार पढ़ने की अनुमति नहीं देते होंगे।“
मेरी पत्नी ने जवाब में कुछ नहीं कहा। वह मन ही मन अखबार को
पढ़ रही थी और चाय की चुस्की ले रही थी। हाँ उसकी भृकुटियों की बदलती हुई भाव भंगिमा
से मुझे अहसास हो गया कि मैंने कोई गलत सवाल पूछ लिया था। मामले की गंभीरता और किसी
अनिष्ट की आशंका से मैं चुपके से उठा और अपनी गाड़ी साफ करने के बहाने नीचे पार्किंग
में चला गया।
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