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Tuesday, June 21, 2016

मुद्रा आयोग

जबसे नई सरकार आई है तबसे लगता है कि देश में वाकई कोई सरकार है। पिछली सरकार के दौर में तो पता ही नहीं चलता था कि देश में सरकार नाम की कोई चीज भी है। सरकार में कोई प्रधानमंत्री भी है इसकी आहट तो काफी निकट जाने पर भी नहीं आती थी। नई सरकार के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे मंत्री हमेशा कुछ न कुछ ऐसा कार्यकलाप करते हैं जिससे आम आदमी को पता चलता रहता है कि हाँ देश में सरकार है। इस सरकार ने इस खुशनुमा अहसास को और बेहतर बनाने के लिए एक और अहम पहल किया है। आगे बढ़ने से पहले यह बताना जरूरी है कि 2004 का चुनाव हारने के बाद सुषमा स्वराज ने कहा था कि Shining India का मतलब खुशनुमा अहसास होता है। इस बार की भाजपा सरकार उस खुशनुमा अहसास को और अधिक बड़ा करने के लिए हर उस विभाग, संस्था, सड़क या शहर का नाम बदल रही है जिससे हमारे कई तरह के अहसास जुड़े हुए हैं। चूँकि सारे नए नाम हमारी पुरातन सभ्यता से लिए जा रहे हैं इसलिए अब दुखी करने वाले अहसासों के लिए कोई जगह नहीं रहेगी और केवल खुशनुमा अहसास ही रह जाएँगे।

सबसे पहले तो इस सरकार ने राजधानी दिल्ली का ही नाम बदलने की पेशकश की। लेकिन बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई (बीच में किसी ने मफलराबाद का नाम भी उछाला था) और इसलिए औरंगजेब रोड का नाम बदलकर ही संतोष करना पड़ा। उसके बाद निर्मल भारत अभियान का नाम बदलकर स्वच्छ भारत कर दिया। निर्मल शब्द से मलकी बू आती थी इसलिए नाम बदलना ही पड़ा। ये अलग बात है कि अभी भी मेरी बिल्डिंग के आस पास सुबह से ही उँकड़ू बैठे लोग नजर आने लगते हैं। ऊपर बीसवें फ्लोर तक इतनी बदबू फैल जाती है कि नीचे जाकर मॉर्निंग वाक करने के सिवा और कोई चारा नहीं रह जाता है। फिर गुड़गाँव का नाम बदलकर गुरुग्राम रखा गया ताकि भाषा की शुद्धता से लोगों में आत्मसम्मान बढ़े। भला इतना विकसित मिलेनियम सिटी अपभ्रंश भाषा वाले नाम को कब तक ढ़ोता। ये और बात है कि गुड़गाँव नाम न तो किसी अंग्रेज ने रखा था और ना ही कांग्रेस की किसी सरकार ने। प्रधानमंत्री जी ने विकलांगों को भी खुशनुमा अहसास देने की कोशिश की है। उन्होंने विकलांगों का नाम बदलकर दिव्यांग कर दिया। अब इस नए नाम से उनमें आत्मसम्मान की जबरदस्त वृद्धि होगी। अब ये बात अलग है कि हमारे फुटपाथ पर हट्टे कट्टे आदमी भी ठीक से नहीं चल पाते हैं बेचारे दिव्यांग तो ऐसा करने की सोच भी नहीं सकते हैं। प्रधानमंत्री जी ने योजना आयोग का नाम नीति आयोग रख दिया; क्योंकि योजना आयोग से नेहरू के जमाने के समाजवाद की बू आती थी। इसके बाद से कोई योजना नहीं बनेगी क्योंकि लंबी-लंबी योजनाएँ बनाना आलसी व्यक्तियों का काम है; किसी 24X7 काम करने वाले का नहीं। भारत जितनी तेजी से विकसित हो रहा है उसमें पंचवर्षीय योजनाओं के लिए कोई स्थान नहीं है।


अब इसी सिलसिले में एक और पहल होने वाली है। इसकी अभी तक कोई खबर नहीं आई है बल्कि ये मेरा अनुमान है। ऐसा हो सकता है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का नाम बदलकर मुद्रा आयोग रख दिया जाए। इस महत्वपूर्ण संस्थान के नए नाम के लिए कई अन्य विकल्प भी हो सकते हैं; जैसे कि धेला आयोग, कौड़ी आयोग, चवन्नी आयोग या फिर रुपया आयोग। लेकिन मुद्रा आयोग से संस्कृत भाषा की भी झलक मिलती है इसलिए यह नाम ज्यादा सटीक रहेगा। अभी हाल ही में विदेश से एक व्यक्ति को रिजर्व बैंक की कमान सँभालने के लिए आयातित किया गया था। कांग्रेस की सरकार तो ऐसे हास्यास्पद फैसले के लिए बदनाम है ही। सरकार के एक बड़े ही काबिल सदस्य को पक्का यकीन था कि वह व्यक्ति केवल नाम से ही हिंदुस्तानी था। उसकी रग-रग में विदेश का रंग चढ़ा हुआ था। अब ऐसे व्यक्ति को भारत की ऐसी महत्वपूर्ण संस्था की कमान सँभालने से भारत की एकता और अखंडता को भारी खतरा था। उस व्यक्ति के ही कारण कई महत्वपूर्ण हिंदु यहाँ से पलायन कर गए थे; जैसे कि विजय माल्या। इसलिए उस व्यक्ति को उसकी सही औकात बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। अब दोबारा यह गलती न हो इसलिए रिजर्व बैंक का ना सिर्फ नाम बदला जाएगा बल्कि उसके मूल ढ़ाँचे में भी कई बदलाव होंगे। मुद्रा आयोग की कमान सँभालने के लिए इस सरकार में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। खुद सुब्रमण्यम स्वामी एक जाने माने अर्थशास्त्री हैं। लेकिन उनकी प्रतिभा को अन्य रचनात्मक कार्यों में इस्तेमाल करने के लिए उन्हें यह जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी। चेतन चौहान, गजेंद्र चौहान और पहलाज निहलानी तो पहले से ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सँभाल रहे हैं। हो सकता है नई जिम्मेदारी अनुपम खेर को मिले, या फिर स्वामी आदित्यनाथ, या साध्वी प्राची को, ………यह एक लंबी लिस्ट हो सकती है। जैसा कि राहुल गाँधी ने कहा है और जैसा कि प्रधानमंत्री जी के FDI वाले फैसले से पता चलता है; हो सकता है स्वयं प्रधानमंत्री ही इस आयोग का स्वतंत्र प्रभार अपने पास रख लें। फिर देखिएगा कि कैसे भारत दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा। स्वयं प्रधानमंत्री ने कहा है, “भारत दुनिया का वैसा सबसे खुला देश है जहाँ के द्वार विदेशी पूँजी के लिए हमेशा खुले रहेंगे।“ 

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