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Saturday, July 11, 2015

मुर्ग मसल्लम

परीक्षा ख़त्म होने के बाद सुमन गेट के बाहर राकेश का इंतजार कर रहा था।  राकेश और सुमन रांची से बोकारो आये थे, किसी सरकारी नौकरी में भर्ती के लिए परीक्षा देने। राकेश बाइस साल का है और सुमन पच्चीस साल का।  दोनों प्राइवेट कंपनी में सेल्स रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर काम करते हैं।  दोनों रांची में एक ही मकान में साथ रहते है। दोनों एक ही शहर दरभंगा से आते हैं इसलिए दोनों में अच्छी पटरी खाती है।  तनख्वाह के हिसाब से देखा जाए तो दोनों अच्छी खासी नौकरी कर रहे है। लेकिन सरकारी नौकरी करने वालों की समाज में अच्छी इज्जत मानी जाती है, इसलिए ये दोनों इस प्रयास में लगे हैं की किसी तरह सरकारी नौकरी लग जाए।  अब सेल्स के काम में इतना ज्यादा घूमना पड़ता है की इन्हे इतना समय नहीं मिलता कि सरकारी नौकरी के लिए ठीक से तैयारी कर सकें।  बहरहाल, दोनों ने बस ठीक ठाक उत्तर दिए थे और बहुत ज्यादा उम्मीद लगाए नहीं बैठे थे।  वैसे भी उन्हें नौकरी की चिंता तो थी नहीं।  
 परीक्षा के बाद दोनों ने एक रिक्शा किया और सेक्टर १ के राम चौक से चास की और चल पड़े।  चास में उन्होेने किसी होटल में एक कमरा ले रखा था।  दोनों ही अपने काम के सिलसिले में अक्सर बोकारो आया करते थे इसलिए उनके लिए यह शहर नया नहीं था।  यदि परीक्षा एतवार को न होती तो ये तो कंपनी के खर्चे पर ही रांची से बोकारो का ट्रिप कर लेते।  होटल पहुंचने के बाद दोनों ने कुछ देर आराम किया।  फिर परीक्षा में उम्मीद से अच्छा करने की ख़ुशी में सोचा कि थोड़ी मस्ती की जाए।  सुमन ने रिसेप्शन पर फोन करके बियर और नमकीन मंगवाए।  बियर पीने के बाद दोनों ने सोचा कि कुछ अच्छा खाना खाया जाए।  वे ऐसे लोगों में थे जिनके लिए अच्छे खाने का मतलब होता है नॉन वेज के नाम पर कुछ भी परोस दो।  जिस होटल में वे ठहरे थे उसमे पता चला कि नॉन वेज नहीं मिलता था।  इसलिए दोनों होटल से बाहर आए और पैदल ही किसी रेस्तरां की तलाश में निकल पड़े।  चास का यह इलाका किसी चिर परिचित बाजार की तरह लगता है।  यहाँ पर थोक विक्रेताओं की मंडी है।  विभिन्न कम्पनियों के सेल्स के लोग यहाँ  आते-जाते रहते हैं इसलिए यहां हर रेट के ठीक-ठाक होटल है।  
आखिरकार उन्हें एक ऐसा रेस्तरां मिला गया जो अच्छा दिख रहा था और उनके बजट में भी आ रहा था।  वह नया ही खुला था।  सुमन ने उसके मैनेजर के सामने लम्बी चौड़ी डींगें मारी यह दिखाने के लिए कि वह किसी कंपनी का बड़ा साहब है।  उसके लिए यह आसान भी था क्योंकि वे वहां पर के सबसे  मंहगे होटल में ठहरे हुए थे।  जी नहीं, यह कोई तीन या पांच सितारा होटल नहीं था, लेकिन चास जैसे बाजार की नाक था।  थोड़ी देर में उनके सामने एक पूरे मुर्गे का मुर्ग मसल्लम आ गया।  साथ में पराठे और सलाद भी।  दोनों को तेज भूख लगी थी, इसलिए दोनों उस लजीज खाने पर टूट पड़े।  मैनेजर ने उन्हें अपनी तरफ से आइसक्रीम भी पेश किया।  वह इस उम्मीद में था कि इससे अगली बार से सुमन की कंपनी के सभी साहब उसी रेस्तरां में जाया करेंगे।  फिर बिल चुकता करने के बाद वे दोनों वापस उस होटल में चले गए जहां वे ठहरे हुए थे।  
दोनों बिस्तर पर लेटे हुए स्वादिष्ट भोजन पर टीका टिप्पणी कर ही रहे थे कि सुमन को ध्यान आया कि उस रेस्तरां वाले ने गलती से कम पैसे लिए थे।  राकेश ने सुमन को ध्यान दिलाया कि सुबह से ही दोनों अपनी औकात से ज्यादा रईसी कर रहे थे।  अब उनके पास इतने ही पैसे बचे थे कि वे इस होटल का बिल चुकता करने के बाद किसी तरह से बोकारो स्टेशन पहुंच कर ट्रेन की टिकट कटाकर रांची पहुंच सके।  सुमन एकदम से बिस्तर से उठा और दोनों जल्दी-जल्दी अपना सामान पैक करने लगे।  राकेश ने घड़ी में देखा कि अभी तीन बजे हैं।  उन्होंने तय किया की उन्हें फ़ौरन बोकारो स्टेशन के लिए चल देना चाहिए इसके पहले कि उस रेस्तरां का मैनेजर उन्हें ढूंढता हुआ आ जाए।  जब वे इस होटल का बिल चुकता कर रहे थे तभी उस रेस्तरां से एक वेटर उनके पास आया; एक सही बिल के साथ।  सुमन से उसे खूब खरी खोटी सुनाई और कहा कि वह अपने मैनेजर को भेज दे, क्योंकि उस जैसे वेटर से बात करना सुमन जैसे साहब की तौहीन होती।  
उन्हें पूरा भरोसा था कि जब तक वेटर रेस्तरां तक पहुंचेगा, वे चास की सीमा से निकल चुके होंगे।  बोकारो स्टेशन वहां से इतनी दूर था कि एक बार वहां पहुंचने का मतलब था खतरे से मुक्ति।  वे दोनों आनन-फानन में बाहर निकले, एक ऑटो पर सवार हुए और उसे तेज चलने को कहा।  बोकारो स्टेशन पहुंचने पर पता चला कि वर्धमान हटिया पैसेंजर ट्रेन आने ही वाली थी।  जब तक ट्रेन नहीं छूटी, तब तक उनका दिल किसी अनिष्ट की आशंका से तेजी से धड़क रहा था।  जैसे ही ट्रेन ने प्लेटफॉर्म छोड़ा, दोनों ने चैन की सांस ली।  

Thursday, May 28, 2015

बच्चे का शगुन

मेरी ट्रेन काफी लेट हो चुकी थी।  जिस ट्रेन को सुबह के पाँच बजे ही पटना पहुंच जाना चाहिए था वह दिन के १० बजे भी अपनी मंजिल से लगभग ६० किमी पीछे थी।  ज्यादातर मुसाफिर जाग चुके थे और सीटों पर बैठ गए थे।  लोग अपने अपने अंदाज में भारतीय रेल की लेट लतीफी को कोस रहे थे।  हालांकि यह स्लीपर वाली बोगी थी लेकिन बहुत सारे यात्री ऐसे भी चढ़ गए थे जिनके पास जेनरल टिकट था।  इनमे से अधिकांश डेली पैसेंजर थे, जो अपने काम से रोज पटना तक जाया करते थे।  कुछ तो डेली पैसेंजर के डर से और कुछ सब कुछ एडजस्ट करने की मानसिकता के कारण रिजर्व टिकट वाले यात्री सभी को बैठने की जगह दे रहे थे।  ऐसे भी जेनरल क्लास के डिब्बे में इतनी कशमकश होती है कि कमजोर दिल और शरीर वाले आदमी का उसमे घुसने की हिम्मत करना भी असंभव है।  बेचारे डेली पैसेंजर करें भी तो क्या करें।  उनके लिए जो ई एम यू ट्रेन चलती है वह कहीं भी जितनी देर मर्जी रुकी रहती है और कई लोग इस कारण से अपने काम पर देरी से पहुंचते हैं।  
तो कुल मिलाकर ट्रेन में ठीक ठाक भीड़ थी जिसे बढ़ती गर्मी और उमस के कारण बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था।  इसी भीड़ में फेरीवाले बड़े आराम से अपना रास्ता निकाल ले रहे थे और बड़ी जबरदस्त सेल कर रहे थे।  कुछ भिखारी भी उतने ही आराम से पूरी ट्रेन में घूम फिर रहे थे और दान दक्षिणा बटोर रहे थे।  
मैं साइड बर्थ पर बैठा था और खिड़की से आती हुई हवा का आनंद ले रहा था।  मेरी बगल में एक महिला खड़ी थी जिसकी गोद में कोई डेढ़ दो साल का बच्चा था।  महिला ने नई साड़ी पहन रखी थी और उसके बालों से किसी सुगंधित तेल की तेज महक आ रही थी।  इस महक को बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो रहा था।  पहनावे और बोलचाल से वह पास के ही किसी गाँव की महिला लग रही थी।  बच्चे ने पीले रंग की नई ड्रेस पहन रखी थी और उसके ललाट पर नजर से बचाने के लिए काला टिका लगा हुआ था।  बच्चे के हाथ में ५० रूपए का नोट था जिसे उसने भींच कर पकड़ रखा था।  मुझे कभी-कभी ताज्जुब होता है कि छोटे बच्चे ये कैसे जान लेते हैं कि नोट की क्या वैल्यू होती है।  
थोड़ी देर में सामने से एक साधु आया।  उसने गेरुआ कपड़े पहन रखे थे।  माथे पर भभूत लगा था, गले में रुद्राक्ष की मोटी सी माला और हाथ में एक कमंडल था।  वह हर किसी के कल्याण और उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए बड़ी उम्मीद से सबके सामने हाथ फैला रहा था।  ज्यादातर लोग ऐसे दृश्य के अभ्यस्त थे इसलिए साधु के हाथ कुछ भी न आ रहा था।  साधु थोड़ी देर तक मेरे पास ही खड़ा रहा और फिर जो हुआ उस घटना ने मेरे मन पर एक अमिट छाप छोड़ दी।  
साधु ने तेजी से बच्चे के हाथ से ५० रूपए का नोट झपट लिया।  बच्चा जोर-जोर से रोने लगा।  उसकी माँ में शायद इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह साधु का विरोध कर सके।  वह भी सुबक-सुबक कर रोने लगी।  उसने बताया कि बच्चे के नाना ने शगुन के रूप में वह रुपए दिए थे और कहा था कि उससे बच्चे के लिए जलेबियाँ खरीद दे।  
चलिए उस औरत की मन:स्थिति तो समझ में आती है; क्योंकि ज्यादातर महिलाओं को यही सिखाया जाता है कि अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को चुपचाप सहन कर लेना चाहिए।  वहाँ पर बैठे किसी भी यात्री की यह हिम्मत न हुई कि उस साधु का विरोध कर सकें।  मैं भी उन्हीं में से एक था।  लगता है सबने पंचतंत्र की बंदर और लकड़ी के फंटे वाली कहानी से बड़ी अच्छी शिक्षा ली थी।  

इतने में एक मूंगफली बेचने वाला आया।  उसकी उम्र १६ - १७ साल से अधिक नहीं रही होगी।  उसने ठेठ बिहारी लहजे में उस साधु को चुनिंदा गालियाँ दी और उसके हाथ से वह नोट छीन कर बच्चे के हाथों में दे दिया।  मैं मन ही मन उस किशोरवय लड़के के प्रति नतमस्तक हो गया।  

Saturday, May 23, 2015

दूध का दूध और पानी का पानी

 किसी विधानसभा चुनाव से पहले किसी नेताजी ने कहा था कि कुछ लोग ऐसा करेंगे कि दूध के दाम आसमान छुएंगे। मुझे तो लगता है कि ज्यादातर चीजों के दाम आज आसमान छू रहे है।  लेकिन हमारे देश के नेता हमेशा कुछ न कुछ ऐसा करते हैं जिससे हमें लगता रहे कि वो वाकई हमारी सुध लेते है।  इसी सोच को अमली जामा पहनाते हुए एक मुख्यमंत्री ने आदेश जारी कर दिया कि अब से दूध उत्पादकों को गेहूं और धान की तरह समर्थन मूल्य मिलेगा।  यह समाचार सुनकर मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए।  जो जो चीजें समर्थन मूल्य की राजनीति से प्रभावित होती हैं उनके दाम सुरसा के मुख की तरह बढ़ने लगते हैं।  लेकिन लगता है कि मुख्यमंत्री जी को मेरी चिंता की चिंता होने लगी।  अगले ही दिन यह समाचार आया की पैकेट वाले दूध के दाम ५ रूपए प्रति लीटर घटाने का भी अध्यादेश आ गया।  जब मैंने इसकी चर्चा अपनी पत्नी से की तो मुझे पता चला यह तो मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने के बराबर है।  जी नहीं मैं अपनी पत्नी के संभावित गुस्से की बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि दूध पर भविष्य में होने वाली राजनीति के बारे में चिंतित  हो रहा हूँ।  अब आप गौर से मेरी भविष्यवाणी को पढ़िए।  अब पूरे देश के किसान नेताओं को आंदोलन करने का एक और नया बहाना मिल जाएगा।  दूध के समर्थन मूल्य को बढाने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन हुआ करेंगे।  टीवी चैनलों पर एक से बढ़ कर एक पैनल इस पर चर्चा करके हमारे ज्ञान को निखारने की कोशिश करेंगे।  दिल्ली के मुख्यमंत्री आनन फानन में दूध पर सब्सिडी की घोषणा कर देंगे।  यह सब्सिडी केवल उन परिवारो को ही मिलेगी जो महीने में दस लीटर से कम दूध खरीदेंगे।  प्रधानमंत्री जी दूध पर मिलने वाली सब्सिडी को सीधे बैंक खाते में डलवा देंगे ताकि दूध की कालाबाजारी रोकी जा सके।  इसपर एक पहल योजना भी आएगी जिसमे जनता जनार्दन से यह अपील की जाएगी कि वैसे लोग जो आसानी से दूध खरीद सकते हैं; स्वेक्षा से दूध की सब्सिडी लेने से मना कर दे।
नोट: अर्थशास्त्र की कई किताबो में मैंने पढ़ा है की भारत पूरे विश्व में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।  

Thursday, March 12, 2015

Wednesday, December 10, 2014

This watercolor painting is made from a reference photograph of the toy train in Darjeeling. 

This watercolor painting is made on handmade paper. Probably the thickness of paper has given a dull finish to this painting or I may not be conversant with correct technique. 

This is a remake of Cottage on the Cornfield by John Constable. 



This is a landscape in watercolor. While making this painting, I have followed a tutorial by Sterling Edwards.