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Tuesday, July 19, 2016

गठिया का इलाज

दादी अब बहुत बूढ़ी हो चली थीं। वर्षों पुराना गठिया अब कुछ ज्यादा ही तकलीफ देने लगा था। घरवालों से उनकी तकलीफ देखी न जाती थी। दादी के दो बेटे और एक बेटी दिल्ली में रहते थे। बड़े पोते ने कहा कि दादी को दिल्ली लाकर एम्स में दिखवाना चाहिए। उसे लगता था कि एम्स में हर तरह के मरीज का इलाज होता है और पुराने से पुराना मर्ज भी ठीक हो जाता है। फिर एम्स में ऑनलाइन नंबर लगाया गया और कोई डेढ़ महीने के बाद का नंबर मिला। उसी हिसाब से ट्रेन का टिकट कटवाया गया और दादी दादा एक नौकर के साथ गाँव से दिल्ली के लिए रवाना हो गए।
दिल्ली पहुँच कर एक दिन दादी को एम्स में दिखाया गया। डॉक्टर ने कहा कि फिजियोथेरापी में जाकर सप्ताह में तीन दिन मशीन से गर्दन की नसें खिंचवानी होगी। डॉक्टर ने ये भी बताया कि पुराना मर्ज है इसलिए ठीक होने में समय लगेगा। अब यदि दादी के परिवार वाले एम्स के आसपास होते तो कोई बात नहीं थी। लेकिन वे तो पूर्वी दिल्ली से भी आगे ग्रेटर नोएडा में रहते थे। वहाँ से तड़के निकलना पड़ता था ताकि वे समय से एम्स पहुँच सके। पिछली सीट पर दादी को लिटाया जाता था और बंटी की अम्मा साथ में बैठती थीं। अगली सीट पर चिंटु बैठता था और लड्डू गाड़ी ड्राइव करता था। लौटते लौटते शाम हो जाती थी। रास्ते की सफर की थकान के कारण एम्स में जो कुछ भी होता उसका असर नोएडा पहुँचते पहुँचते खतम हो जाता था। ग्रेटर नोएडा पहुँचते पहुँचते तो दादी का दर्द घटने की बजाय बढ़ जाता था।

अब पोते पोती बच्चे तो रह नहीं गए थे। उन्हें भी काम पर जाना होता था। इसलिए घर में विचार विमर्श हुआ कि कोई और व्यवस्था की जाए। फिर पास के ही नर्सिंग होम में दादी को फिजियोथेरापिस्ट के पास ले जाया जाने लगा। वहाँ तक रास्ता बस पाँच मिनट का था इसलिए दादी को रोज ले जाया जाने लगा। लगभग पंद्रह दिन तक जाने के बाद भी दादी को कोई आराम नहीं मिला।

फिर नजफगढ़ में रहने वाले फूफा जी ने बताया कि डिफेंस कॉलोनी में कोई होमियोपैथी का बड़ा हॉस्पिटल है जो ऐसे जीर्ण और असाध्य बीमारियों के शर्तिया इलाज करता है। बाबूजी और अम्मा को हमेशा से ही होमियोपैथी पर ज्यादा भरोसा था। दादी को भी लगता था कि होमियोपैथी दवाइयों की तासीर ठंढ़ी होती है इसलिए वे बेहतर होती हैं।

फिर क्या था, एक दिन दादी को कार में लादकर डिफेंस कॉलोनी ले जाया गया, होमियोपैथी अस्पताल में दिखाने। डॉक्टर ने लगभग डेढ़ घंटे तक दादी की राम कहानी सुनी। वे बता रहे थे कि केस हिस्ट्री लेने के लिए ऐसा जरूरी होता है। दादी को तो मजा ही आ गया। बहुत समय के बाद उन्हें कोई तो मिला था जो उनकी गप्पें सुन सके। डॉक्टर ने कुछ मीठी गोलियाँ दीं और उन्हें कितना बार खाना है ये बताया। फिर डॉक्टर ने एक अनोखा इलाज बताया। उसने कहा कि काँच की हरी बोतल में पानी रखकर उसे धूप में पूरे दिन छो‌ड़ना है। फिर उस पानी को दो-दो चम्मच करके हर आधे घंटे पर पीना है। ऐसा करने से शरीर में विटामिन डी की कमी पूरी होती है जो मजबूत हड्डियों के लिए जरूरी है।

दादी को लेकर सब घर वापस आ गये। उसके बाद घर में हरी बोतल; वो भी काँच की; ढ़ूँढ़ी जाने लगी। अब तो ज्यादातर सामान प्लास्टिक की बोतलों में आने लगे हैं इसलिए काँच की बोतल शायद ही किसी घर में मिले। तभी बंटी ने धीरे से अम्मा को बताया कि बीयर के कुछ गिने चुने ब्रांड हरी बोतलों में आते हैं। उनकी बातों को बाबूजी ने भी सुन लिया। उन्होंने फौरन बंटी को हजार रुपए का नोट दिया और हरी बोतल लेकर आने को कहा। बंटी तुरंत चिंटू को लेकर परी चौक के पास वाले बाजार की ओर चल पड़ा। साथ में गप्पू और लड्डू भी लटक लिए। वहाँ पर उन्होंने बीयर की आठ बोतले खरीदीं; हर किसी के लिए दो-दो बोतलें। फिर साथ में नमकीन और कुछ ऑमलेट भी खरीदा। फिर एक ढ़ाबे में बैठकर चारों ने छककर बीयर का मजा लिया ताकि हरी बोतलें खाली हो सकें। उस ढ़ाबे वाले से ही बोतलों को साफ भी करवा लिया और फिर घर की ओर चल पड़े।


जब दादी ने आठ-आठ हरी बोतलें देखीं तो खुशी से फूली न समाईं। उन्होंने अपने पोतों को तहे दिल से आशीर्वाद दिया, “भगवान इतने लायक पोते सबको दे। देखा कैसे झट से इन्होंने अपनी दादी के इलाज का इंतजाम कर लिया।“ उधर पिताजी की आँखों को देखकर साफ पता चल रहा था कि आठ-आठ हरी बोतलों को देखकर वे कत्तई खुश नहीं थे। 

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