यह किसी अत्यधिक काबिल टीचर
द्वारा पूछा गया सवाल नहीं है और न ही किसी प्राइवेट स्कूल की प्रोजेक्ट का हिस्सा
है। ये और बात है कि इस तरह के ऊलजलूल टॉपिक अक्सर प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले
छात्रों को प्रोजेक्ट के तौर पर मिलते हैं। हो सकता है कि यह सवाल इसके पहले भी
किसी के मन में आया हो लेकिन उसने उसे वहीं पर खारिज कर दिया हो। यह सवाल मेरे
दिमाग की भी मूल उपज नहीं है।
आजकल सैंकड़ो टीवी चैनल हो
गए हैं और लगभग हर चैनल पर एक जैसे ही प्रोग्राम दिखाई देते हैं। कुछ में तो
कलाकार भी एक ही होते हैं जो पोशाक भी एक ही पहने रहते हैं। ऐसा लगता है कि वे
न्यूज चैनल पर दिखने वाले पार्टी प्रवक्ताओं की तरह हो गए हैं जो एक ही बार में कई
चैनलों पर दिख जाते हैं। इसी तरह के एक जैसे प्रोग्रामों की दौड़ में धार्मिक
सीरियलों की भी बाढ़ आ गई है। अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई है जब हमें रामायण
में राम, सीता, लक्ष्मण,
मेघनाद और रावण की भूमिका कर रहे कलाकारों के नाम याद होते थे। उस
जमाने में रामायण नाम का एक ही धारावाहिक हुआ करता था क्योंकि टीवी चैनल भी इकलौता
था; दूरदर्शन। अब तो एक महाभारत खत्म नहीं होती है कि दूसरी
शुरु हो जाती है। कोई रामायण को रावण के नजरिये से दिखाने की कोशिश करता है तो कोई
सीता की नजर से। ऐसा ही एक धारावाहिक किसी लोकप्रिय चैनल पर आ रहा है जिसमें
निर्माता का दावा है कि वो सीता के दृष्टिकोण से रामायण को बनाने की कोशिश कर रहा
है। बढ़ती हुई टीआरपी से जितना हो सके उतना पैसे बटोर लेने के चक्कर में रामायण के
छोटे से छोटे प्रसंग को भी इतना खींचा जाता है जितना कि वाल्मीकि या तुलसीदास ने
भी नहीं खींचा होगा। मेरी समझ में नहीं आता है कि कुछ दर्शक; खासकर गृहस्वामिनियाँ; इस बात को कैसे बर्दाश्त कर
लेती हैं कि उनकी आँखों के सामने ही कोई बाल की खाल को उनसे बेहतर निकाल रहा होता
है।
ऐसा ही कोई एपिसोड चल रहा था जिसमें वह मशहूर प्रसंग पिछले
चार सप्ताह से चल रहा था जिसमें कैकेई कोपभवन में चली जाती है और फिर दशरथ को यह
कड़वा सच पता चल जाता है कि मर्द कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अपनी
पत्नी के सामने उसे एक न एक दिन हथियार डालना ही पड़ता है। मैं भी मजबूरी में उस
एपिसोड को देख रहा था क्योंकि रिमोट पर का कंट्रोल मेरे हाथ में नहीं था। कैमरामैन
बड़ी ही दक्षता के साथ कैकेई के क्लोज अप शॉट दिखा रहा था ताकि कैकेई के रौद्र रूप
के हर पहलू को दिखा सके। बीच बीच में दशरथ के फुटेज से करुणा रस की झलक भी मिल रही
थी। पास में ही मेरा बारह साल का बेटा भी बैठा था। उसे इन पुरानी कहानियों में जरा
भी दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि उसे फेसबुक और यूट्यूब पर समय
बिताना अधिक उपयोगी लगता है। फिर भी अपने बाप की मजबूरी देखकर उसे भी यह अहसास हो
गया था कि शराफत से उस सीरियल को झेलता रहे। बारह वर्ष के बच्चे बड़े जिज्ञासु
प्रवृत्ति के होते हैं। यह वह समय होता है जब उनका बचपन जा रहा होता है और वे
किशोरावस्था की दहलीज पर खड़े होते हैं। सीरियल देखते देखते उसने ऐसा सवाल दाग दिया
कि मैं निरुत्तर हो गया।
उसने मुझसे पूछा, “पापा, ये बताओ कि
दशरथ तो बड़ा ही ज्ञानी राजा था। फिर उसने कोप भवन क्यों बनवाया? ना वो कोपभवन बनवाता ना इतना बड़ा कांड होता। आखिर उसने इतनी बड़ी गलती
क्यों कर दी?”
मैं मन ही मन उसकी बातों से सहमत था लेकिन पास में अपनी
पत्नी के बैठे होने की वजह से कुछ लाचार भी था। जब बच्चे कोई कठिन सवाल पूछते हैं
तो उसका इमानदारी से जवाब देना चाहिए; ऐसा बहुत सारे सेल्फ हेल्प बुक का कहना है।
लेकिन उस तरह की सभी किताबों में केवल थ्योरेटिकल ज्ञान होता है जिसे व्यावहारिकता
के धरातल पर उतारना उतना ही मुश्किल होता है जितना किसी नए प्रधानमंत्री को हवाई
यात्रा पर जाने से रोकना। मैंने किसी दक्ष बाप की तरह उस सवाल को सदा के लिए दफन
करने की कोशिश करते हुए कहा, “अरे बेटा, ये तो कहानी के प्लॉट का अहम हिस्सा है। यदि कैकेई कोपभवन नहीं जाती तो
फिर ये कहानी आगे कैसे बढ़ती। फिर राम वन कैसे जाते और सीता का हरण कैसे होता। ये
सब नहीं होता तो इस कहानी का विलेन मारा कैसे जाता।“
मेरे बेटे के चेहरे से लगा कि वह मेरे उत्तर से संतुष्ट
नहीं था। लेकिन उसने शायद अपने पिता की इज्जत रखने के लिए हामी भर दी और फिर बात
आई गई हो गई।
लेकिन उसके बाद से यह सवाल मेरे मन में वैसे ही घुमड़ रहा है
जैसे कि कब्ज के मरीज के पेट में पिछले छ: दिन का कचरा घुमड़ रहा हो। मैं भी सोचने
को विवश हो गया हूँ कि दशरथ जैसे महान राजा ने कोपभवन क्यों बनवाया होगा। वह अपनी
रानियों के लिए सुंदर अटारियाँ बनवाते, बाग बगीचे लगवाते, गहने
जेवर बनवाते, आलीशान फर्नीचर बनवाते। ये सब तो उन्होंने जरूर
बनवाए होंगे, फिर कोपभवन बनवाने की क्या जरूरत थी।
अब तो अधिकाँश लोग दो या तीन कमरों के मकान में रहते हैं।
उसमें से भी यदि एक कमरे को कोपभवन बना दिया गया तो फिर टू बी एच के फ्लैट का क्या
होगा? यदि किसी की पत्नी ने फरमाइश कर दी कि एक कोपभवन बनवाओ तो बेचारे आदमी की
पूरी जिंदगी की कमाई ही उसे बनवाने में लुट जाएगी। फिर वह पहले से लोन पर लिए हुए
घर की ईएमआई कहाँ से भरेगा। सोचिए, यदि शाहजहाँ ने ताजमहल की
जगह कोपभवन बनवाया होता तो उसका क्या हश्र होता। वैसे ताजमहल बनवाने के बाद भी
उसके साथ कुछ अच्छा नहीं हुआ था। उसे एक सनकी बुड्ढ़ा समझकर उसके ही बेटे ने उसे कैदखाने
में डाल दिया था।
इस सवाल को एक और दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। सच पूछा जाए
तो कोपभवन की जरूरत ही क्या है। जब भी किसी गृहिणी का मूड बिगड़ जाता है तो वह बड़े आराम
से अपने किसी भी कमरे को कोपभवन बना लेती है। कभी-कभी तो वह पूरे घर को कोपभवन बना
लेती है। आप में से कई लोगों ने इस दर्द को करीब से झेला होगा। शाम को बेचारा मर्द
जब अपने काम की थकान के बाद ट्रैफिक की मार झेलने के बाद घर पहुँचता है तो दरवाजा खुलने
के स्टाइल से ही पकड़ लेता है कि उसका घर कोपभवन बना हुआ है। पीने का पानी तो वह खुद
ही फ्रिज से निकाल लेता है लेकिन चाय की प्याली धम्म से उसके पास रख दी जाती है। रसोई
में से जब चकले और बेलन की जोर-जोर की खटपट सुनाई देती है तो वह इस वजह से नहीं कि
गृहस्वामी के लिए बड़ी मेहनत से भोजन तैयार हो रहा है बल्कि इसलिए कि मैडम का आज मूड
खराब है। दशरथ तो फिर भी भाग्यशाली थे, क्योंकि कैकेई ने उन्हें अपने गुस्से का कारण
बता दिया था। लेकिन आजकल के ज्यादातर पतियों की वैसी किस्मत कहाँ। पूछने पर कोई कारण
ही नहीं पता चलता। यह ऐसा सवाल बन जाता है जिसका जवाब गूगल के पास भी न हो। मुद्दा
उतना बड़ा भी नहीं होता है जैसा कि रामायण में था; सत्ता का हस्तानांतरण।
क्योंकि भारत के एक आधुनिक आम आदमी के पास कोई दशरथ जैसा राज पाट भी नहीं है और न ही
चार बेटे। अब तो कुल जमा एक बीवी होती है और एक या बहुत हुआ तो दो बच्चे। एक बात के
लिए दशरथ की दाद तो देनी ही चाहिए। वे तीन-तीन पत्नियों के स्वामी होने की हिम्मत जो
रखते थे।
बहरहाल, मैंने अपने कई मित्रों से इस सवाल का जवाब जानने
की कोशिश की लेकिन अभी तक कुछ भी हाथ न लगा। हो सकता है कि हमारे यहाँ के बड़े रईसों;
जैसे टाटा, अंबानी, अडानी,
आदि के घरों में कोपभवन हो और हमें पता भी नहीं हो। यदि उनके घरों से
ये बात बाहर आ गई तो हो सकता है कि सरकार उनपर ‘कोपभवन टैक्स’
लगाना शुरु कर दे। उसके बाद ये भी हो सकता है कि सरकार गरीबों को मुफ्त
में कोपभवन मुहैया कराने के चक्कर में ‘कोपभवन सेस’ लगा दे। इस पर कोई विरोध भी नहीं होगा क्योंकि इसमें नारी का सम्मान निहित
है। यह भी हो सकता है कि कोई ऐसा कानून पास हो जाए जिसके कारण कोई भी महिला अपने पति
और ससुराल वालों को कोपभवन ना बनवाने के जुर्म में जेल की हवा खिला सके।
यह एक पेचीदा सवाल है। यदि आपमें से किसी को भी इसका जवाब मालूम
हो तो कृपया मेरे ज्ञान चक्षु खोलने की कोशिश जरूर करिएगा।
1 comment:
क्या कोपभवन की जरूरत आज पुरूषों के लिये भी नहीं है? मेरे ख्याल से इसपर आंदोलन चला कर सरकार का ध्यान आसर्षित करना चाहिये।
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