यह एक बहुत पुरानी कहानी
है। इस कहानी का सार अधिकतर लोगों को पता होगा क्योंकि यह कहानी पंचतंत्र से ली गई
है। फिर भी इस कहानी को ताजा घटनाओं के संदर्भ में लिखने की जरूरत पड़ती ही रहती
है। आगे बढ़ने से पहले इस कहानी को एक बार फिर से याद कर लेते हैं। संजीवक नाम का
बैल जंगल में इसलिए भटक रहा था क्योंकि उसके रखवालों ने उसे उसके हाल पर छोड़कर
जंगल से भाग जाने में अपनी भलाई समझी थी। थोड़े ही दिनों में जंगल की ताजा घास खाकर
और ताजी आबो हवा में सांस लेकर संजीवक फिर से हट्टा कट्ठा हो गया था। खुले जंगल
में घूमने के कारण संजीवक का कॉन्फिडेंस धीरे-धीरे ओवरकॉन्फिडेंस में बदलने लगा था
और वह उसका मजा भी ले रहा था।
उसी जंगल में पिंगलक नाम का
एक शेर रहता था जो कि उस जंगल का राजा भी था। पिंगलक कभी भी अकेले नहीं घूमता था
बल्कि इंसानी नेताओं और राजाओं की तरह पूरे दल बल के साथ घूमता था। उसके साथ
अंगरक्षकों की एक फौज भी चलती थी। इसकी झाँकी आधुनिक काल के बड़े नेताओं में भी
देखने को मिलती है। जैसे ही कोई नेता बहुत बड़ा हो जाता है वह अकेले घूमना बंद कर
देता है। साथ में हमेशा अंगरक्षकों की एक फौज जरूर होती है। ऐसा वह दो कारणों से
करता है। सबसे बड़ा कारण होता है जान जाने का डर। कहीं बीच में ही जान चली गई तो
फिर बड़ी मुश्किल से हाथ आई सत्ता का सुख क्षणभंगुर रह जायेगा। दूसरा कारण होता है
स्टैटस सिंबॉल। अंगरक्षकों की जितनी भयंकर फौज नेता का उतना ही अधिक महात्म्य।
बहरहाल, पिंगलक अपने
अंगरक्षकों और चाटुकारों की फौज के साथ पानी पीने के लिए नदी के किनारे की ओर जा
रहा होता है। तभी उसे संजीवक के रंभाने की आवाज सुनाई पड़ती है। संजीवक के रंभाने
की आवाज पिंगलक को किसी भयानक जानवर की दहाड़ की तरह सुनाई देती है। पिंगलक उस दहाड़
को सुनकर अंदर तक डर जाता है और उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वह तेजी से अपने कदम
पीछे हटाता है झाड़ियों की ओट में छुप जाता है। उसके चारों ओर अंगरक्षकों और
चाटुकारों की सुरक्षा कवच बन जाती है। अब पिंगलक ठहरा एक राजा इसलिए वह अपने चेहरे
से डर को छुपाने की कोशिश करता है और कॉन्फिडेंट दिखने की कोशिश करता है। वह ऐसा
इसलिए करता है ताकि उसके चाटुकार उसे डरपोक न समझ लें। यदि ऐसा हो गया तो फिर
चाटुकारों के दल बदलने का खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए अपनी सत्ता बचाने के लिए
पिंगलक के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह कॉन्फिडेंट दिखता रहे।
उसके बाद उसी झाड़ियों की ओट में पिंगलक और उसके चाटुकारों
की एक लंबी मीटिंग चलती है। वहाँ उपस्थित सभी जानवर उस अनजान से भयानक जानवर से
निपटने के लिए तरह तरह की योजना बनाते हैं। उनकी मीटिंग पर कोई दूर से भी नजर रख
रहा होता है। ये दोनों प्राणि हैं दमनक और कर्टक नाम के सियार जो बहुत ही सयाने
हैं। बहुत साल पहले उनके पिता राजा के मंत्रीमंडल के वरिष्ठ सदस्य हुआ करते थे।
लेकिन उनके पिता की मृत्यु के बाद राजा ने उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल
दिया था। दमनक और कर्टक के लिए यह किसी सुनहरे मौके से कम नहीं होता है। वे इस
मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं और इस अवसर को इस तरह भुनाना चाहते हैं
ताकि वे मंत्रीमंडल में शामिल हो जाएं। मौका देखकर दमनक और कर्टक राजा की मंडली के
पास पहुँचते हैं और सलाम बजाने के बाद राजा से उसकी परेशानी का कारण पूछते हैं।
दमनक ने पूछा, “महाराज की जय हो। लगता है महाराज की तबीयत
कुछ नासाज है। माथे पर पसीने की बूँदें नजर आ रही हैं।“
ऐसा सुनकर पिंगलक अपने चेहरे पर एक फीकी हँसी लाने की कोशिश
करता है और कहता है, “अरे नहीं, कुछ नहीं। बस यूँ ही,
………. आज का मौसम कुछ ज्यादा ही उमस वाला है इसलिए थोड़ी घुटन सी हो
रही है।“
उसके बाद कर्टक कहता है, “हाँ महाराज, मैने भी देख लिया है कि इस उमस का असली कारण क्या है। लगता है कोई भयानक
जानवर इस जंगल में आ गया है और आपको चुनौती दे रहा है। अभी तो चुनाव आने में तीन
साल बचे हुए हैं। लेकिन लगता है कि ये तो आपको मध्यावधि चुनाव के लिए बाधित कर
देगा। या हो सकता है चुनाव के बगैर भी तख्तापलट कर दे। अब बाकी सभासदों का क्या
भरोसा। आजकल तो लोग थोड़ी सी बोटियों की लालच में दल बदल लेते हैं।“
ऐसा सुनकर पिंगलक ने कहा, “अब तुमने मामले को ताड़
ही लिया तो फिर तुमसे क्या छिपाना। आखिर तुम ठहरे हमारे पुराने मंत्री के बेटे।
लगता है स्वर्गीय मंत्री जी ने अपनी अकल विरासत में तुम्हें दे दी थी। अब तुम ही
कोई उपाय बताओ कि इस नए खतरे से कैसे निबटा जाये।“
दमनक ने कहा, “महाराज, यदि अभयदान
का वचन दें तो मैं कुछ कहूँ।“
पिंगलक ने कहा, “हाँ हाँ, निडर होकर
कहो।“
दमनक ने कहा, “शास्त्रों में कहा गया है कि नासूर को तभी
काट देना चाहिए जब वह छोटा हो। नहीं तो वह बाद में भगंदर का रूप ले सकता है और फिर
बड़ी तकलीफ देता है। आप फौरन ही अपनी सेना लेकर इसपर आक्रमण कर दीजिए और इसे
मुँहतोड़ जवाब दीजिए।“
कर्टक ने बीच में ही टोका, “नहीं महाराज, ऐसा हरगिज मत करिये। चाणक्य ने कहा है कि कभी भी किसी दुश्मन को कमजोर
समझने की गलती नहीं करनी चाहिए। सबसे पहले उसकी शक्ति और कमजोरी का पता करना
चाहिए। उसके बाद सटीक योजना बनाकर ही आक्रमण करना चाहिए।“
दमनक ने कहा, “महाराज, प्रजा का
दिल जीतने के लिए राजा को समय आने पर बहादुरी दिखाने से पीछे नहीं हटना चाहिए। यदि
प्रजा को राजा की बहादुरी पर संदेह हो गया तो फिर उस राजा के गिने चुने दिन ही बच
जाते हैं। मान और सम्मान की कीमत हमेशा से ही प्राणों से अधिक रही है।“
कर्टक ने कहा, “नहीं महाराज, जब जान
ही चली जायेगी तो फिर झूठी इज्जत लेकर क्या होगा। एक बुद्धिमान राजा को दुश्मन की
औकात देखकर ही कोई कदम उठाना चाहिए। यदि दुश्मन कमजोर हो तो उसे पटखनी दें नहीं तो
उससे हाथ मिला लें। इतिहास में इसके सैंकड़ों उदाहरण हैं कि किस तरह से कई राजाओं
ने अपने दुश्मन से हाथ मिलाकर बड़े से बड़ा साम्राज्य बना लिया। इससे बिना मतलब के
खून खराबे को रोका जा सकता है और प्रजा भी खुशहाल रहती है।“
फिलहाल अभी राजा पिंगलक के दरबार में उच्चस्तरीय मीटिंग चल रही
है। बाहर जो भी थोड़ी बहुत खबर लीक हो रही है उससे यह पता चल रहा है कि कोई ठोस नतीजा
नहीं निकला है। उधर इन बातों से बेखबर संजीवक मजे ले रहा है और बीच बीच में जोर से
रंभा भी रहा है। उसकी ‘दहाड़’ सुनकर पिंगलक और
उसके चाटुकारों की सांस अटक जा रही है और वे उसी तरह से झाड़ियों की ओट में दुबककर अपनी
उच्चस्तरीय मीटिंग कर रहे हैं।