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Wednesday, December 28, 2016

नोटबंदी और द्रौपदी

रात के आठ बजने वाले थे। पाँचों पांडवों को भोजन कराने के बाद द्रौपदी ने अपने और कुंती के लिए भोजन परोसा और खाने बैठ गई। तभी कुटिया के बाहर से संजय की आवाज सुनाई दी। यह वह समय होता था जब संजय पूरे दिन की बड़ी खबरों का सीधा प्रसारण करने के लिए पांडवों की अज्ञातवास की कुटिया में आते थे। सबने संजय का स्वागत किया और उन्हें बैठने के लिए आसन दिया।

बैठते ही संजय की आँखों से रोशनी की एक चमकदार किरण निकली और कुटिया की दीवार से टंगी धोती पर रंग बिरंगे इश्तहार दिखने लगे। तीर धनुष, साड़ी धोती और रथों के पहिये के इश्तहारों के बाद उस परदे पर महाराज धृतराष्ट्र का चिर परिचित चेहरा दिखाई दिया। संजय ने बताया कि महाराज धृतराष्ट्र कोई बड़ी घोषणा करने वाले थे।

धृतराष्ट्र की तल्ख आवाज गूँजने लगी, “मेरी प्यारी प्रजा के नर नारियों। आज मैं एक बड़ी घोषणा करने जा रहा हूँ। आज मध्यरात्रि के बाद वर्तमान में चलने वाली सारी स्वर्ण मुद्राएँ बंद हो जाएँगी। जिनके पास धेला या छदाम है उन्हें चिंता की कोई जरूरत नहीं है। जिनके पास स्वर्ण मुद्राएँ हैं उनके लिए अब बुरे दिन आने वाले हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि राज्य और उसके आस पास के इलाके में रहने वाले अपराधी तत्वों और बेईमानों को पकड़ा जा सके। ऐसे अपराधी और बेईमान स्वर्ण मुद्राओं का इस्तेमाल बड़े बड़े अपराधों को अंजाम देने के लिए करते हैं। जो इमानदार हैं उन्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है। वे कल से अगले पचास दिनों तक अपनी स्वर्ण मुद्राओं को राजसी खजाने में जमा कराकर बदले में नई मुद्राएँ प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा कठोर कदम इसलिए उठाना पड़ रहा है ताकि आर्यावर्त फिर से महान बन जाए।“


समाचार समाप्त होने के बाद संजय वहाँ से प्रस्थान कर गये। उसके बाद पांडव बड़े चिंतित भाव से मंत्रणा करने लगे। अर्जुन ने कहा, “भ्राता युधिष्ठिर, बड़ी मुश्किल से तो धन इकट्ठा किया था ताकि दिव्यास्त्र खरीद सकूँ। अब क्या होगा?”

युधिष्ठिर ने कहा, “अब इस पर हम क्या कर सकते हैं। तुम सबसे कुशल योद्धा हो। अब तुम ही कोई मार्ग ढ़ूँढ़ो।“

भीम ने नथुने फड़काते हुए कहा, “भ्राता श्री, यह आदेश महाराज ने हमें परेशान करने के लिए किया है। वे नहीं चाहते हैं कि हम अपना अज्ञातवास सफलतापूर्वक पूरा करें। आप आदेश करें तो मैं अभी जाकर धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों की हड्डियाँ तोड़ दूँ।“

इस बीच नकुल और सहदेव माता कुंती की गोद में सिर रखकर कब गहरी निद्रा में चले गये पता ही नहीं चला। कुंती ने कहा, “आपको अपने अस्त्रों की पड़ी है। मुझे तो यह चिंता खाये जा रही है कि कल से भोजन का प्रबंध कैसे करूँगी। वन के बाहर जो लोभी वनिक रहता है वह हर वस्तु के दाम स्वर्ण मुद्राओं में ही लेता है। उसे भली भाँति हमारी असलियत मालूम है। अब स्वर्ण मुद्राओं के बगैर वह राशन देने से भी मना कर देगा। महाराज ने यह आदेश केवल हमलोगों को तबाह करने के लिए दिया है।“

उसके बाद द्रौपदी और उसका पूरा परिवार भगवान कृष्ण को याद करते हुए लगान फिल्म का ये गाना गाने लगे, “ओ पालन हारे, निर्गुण और न्यारे, तुम बिन हमरा कौन न रे .............”

अपनी आराधना से प्रसन्न होकर कृष्ण भगवान तत्क्षण वहाँ प्रकट हो गये और द्रौपदी से पूछा, “हे सखी, तुम इतनी कातर मुद्रा से मुझे क्यों याद कर रही हो?”

जब द्रौपदी ने उन्हें सारी बात सुनाई तो कृष्ण के चेहरे पर एक भीनी सी मुसकान फैल गई। कृष्ण ने कहा, “अब महाराज का आदेश तो मैं भी नहीं टाल सकता। तुम कहो तो तुम्हारी स्वर्ण मुद्राओं के बदले में मैं धेले और छदाम की व्यवस्था कर दूँगा। मेरा एक मित्र है जो कुबेर के यहाँ टकसाल में काम करता है।“

इस पर युधिष्ठिर ने कहा, “लेकिन इस कार्य में खतरा है। इतनी सारी स्वर्ण मुद्राओं के बदले में जो धेले और छदाम मिलेंगे उन्हें लाने के लिए तो बैलगाड़ियों का एक बड़ा कारवाँ बुलाना पड़ेगा। हर ओर कड़ा पहरा है। महाराज धृतराष्ट्र को तुरंत पता लग जायेगा।“

द्रौपदी ने कहा, “हे कृष्ण, आप कोई जुगाड़ क्यों नहीं करते जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।“
द्रौपदी की बात सुनकर कृष्ण मुसकाए और अपना हाथ ऊपर हवा में किया। आसमान से एक चमकीली किरण आई और फिर कृष्ण के हाथ में पीतल का एक चमचमाता हुआ बड़ा सा कटोरा आ गया। कृष्ण ने वह कटोरा द्रौपदी को सौंपते हुए कहा, “हे सखी, ये अक्षय पात्र है। इसमें से तुम जितना चाहे उतना भोजन प्राप्त कर सकती हो। अब तुम्हें उस वणिक के आसरे की आवश्यकता नहीं होगी।“

इस तरह से द्रौपदी और उसके परिवार के लिए भोजन की समस्या समाप्त हो गई। वे बड़े आराम से अपना अज्ञातवास व्यतीत कर रहे थे। उधर महाराज धृतराष्ट्र चिंतित हो रहे थे क्योंकि पांडवों का कोई अता पता नहीं था। उनके गुप्तचरों ने सूचना दी थी कि पांडव बड़े आराम से अपने दिन बिता रहे थे। बीच बीच में वे हजारों की संख्या में साधु संतों को भी भोजन करवा रहे थे। पचास दिन पूरे होने वाले थे। पांडवों को गिरफ्तार करने की व्याकुलता में महाराज धृतराष्ट्र ने एक और बड़ी घोषणा कर दी, “मुद्राबंदी के पचास दिन पूरे होने के पश्चात जिस किसी के पास से पुरानी स्वर्ण मुद्राएँ मिलेंगी उसे पूरे परिवार के साथ आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी।“

Monday, December 19, 2016

टेम्पलेट से परेशानी

यदि आप इस ब्लॉग को पढ़ रहे हैं तो इससे यह साबित होता है कि आप कम्प्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल बखूबी जानते हैं। इससे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि आप टेम्पलेट का इस्तेमाल भी करते होंगे। कुछ लोग टेम्पलेट का इस्तेमाल थोड़ा बहुत करते होंगे तो कुछ लोग बहुत अधिक करते होंगे। सबकी अपनी अपनी पसंद के हिसाब से टेम्पलेट इस्तेमाल करने की आदत होती है और इसके खिलाफ अभी तक हमारे देश में कोई बैन भी नहीं लगा है। लेकिन मुझे लगता है कि कुछ गंभीर विषयों के मामलों में टेम्पलेट के इस्तेमाल से बचना चाहिए। लेकिन हमारे राजनेता तो अपना पूरा करियर टेम्पलेट के सहारे ही चला लेते हैं। इसका यदि आप एक उदाहरण खोजने निकलेंगे तो आपको हजार उदाहरण मिलेंगे।

गांधीजी के बारे में कहा जाता है कि वे टॉल्सटॉय से बहुत प्रभावित थे। टॉल्सटॉय की तर्ज पर गांधीजी एक ऐसे समाज की परिकल्पना करते थे जिसमें हर व्यक्ति एक समान होगा। ऐसा ही खयाल समाजवाद के शुरुआती प्रैक्टिशनरों का भी था। लेनिन और स्टालिन भी किसी ऐसे ही समाज का निर्माण करना चाहते थे। सोवियत रूस के विघटन के बाद यह साबित हो गया कि ऐसे समाज का चित्र कितना भी रोमांचकारी क्यों न हो, ऐसा समाज बनाना असंभव है। आज दुनिया के कुछ मुट्ठी भर देशों को छोड़कर कहीं भी समाजवादी सरकार नहीं है। चीन में सत्ता तो समाजवादी सोच वाली पार्टी की है लेकिन वहाँ भी पूँजीवाद ही हावी है। हमारे उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी की सरकार होने के बावजूद समाजवादी परिवार में भी पूँजीवाद का ही बोलबाला है। बहरहाल, गांधीजी हर घर में एक कुटीर उद्योग लगवाना चाहते थे। गांधीजी ने शायद हेनरी फोर्ड के आधुनिक मैनेजमेंट के बारे में नहीं पढ़ा होगा। उस समय भारत के समाज और आर्थिक व्यवस्था की स्थिति के बारे में मुझसे ज्यादा जानकारी गांधीजी को रही होगी। हो सकता है कि उस जमाने के हिसाब से उनकी सोच भी सही रही होगी। लेकिन तब से लेकर आजतक जमाना बदल चुका है। फिर भी हमारे आधुनिक नेता गांधीजी के दिये टेम्पलेट का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। वे गांधीजी की तरह लंगोट तो नहीं पहनते लेकिन जैसे ही कोई आदमी राजनीति में आता है तुरंत वह धोती कुर्ता या पाजामा कुर्ता धारण कर लेता है। हो सकता है कि गांधीजी के जमाने में हिंदुस्तान के ज्यादातर लोग धोती कुर्ता या पाजामा कुर्ता पहनते रहे होंगे। लेकिन आज अगर आप गाँव में भी चले जाएँ तो ज्यादातर लोग आपको जींस टीशर्ट में मिलेंगे। एक खास उम्र से नीचे के लोग आपको शॉर्ट्स में ही नजर आएँगे। अरविंद केजरीवाल जब राजनीति में आये थे तो उनसे कुछ उम्मीद बनी थी। लेकिन उनकी जरूरत से ज्यादा ढ़ीली शर्ट देखकर लगता है कि गांधीजी के टेम्पलेट में उन्होंने दिल्ली के हिसाब से बदलाव भर कर दिया है। अखिलेश यादव और राहुल गांधी भारत की राजनीति के हिसाब से अभी युवा हैं। लेकिन ये दोनों भी कुर्ता पायजामा ही धारण करते हैं। बीजेपी के नेताओं के परिधान भी पारंपरिक ही होते हैं लेकिन कुछ डिजायनर किस्म के। अब इन नेताओं को कौन समझाए कि भारत बदल चुका है और अब ज्यादातर लोग पारंपरिक परिधान किसी खास मौके पर ही धारण करते हैं। जिस दिन देश के नेता यहाँ के आम लोगों जैसे पोशाक पहनने लगेंगे उस दिन हमारी समस्या काफी कुछ हल हो जायेगी।

गांधीजी गरीबों के बारे में बहुत कुछ सोचते थे। उनका मानना था कि कुटीर उद्योग से गरीबी दूर होगी। उनके टेम्पलेट को इंदिरा गांधी एक नये मुकाम पर तब ले गईं जब उन्होंने गरीबी हटाओका नारा दिया। ये बात और है कि अभी भी भारत में गरीबी मौजूद है। मजा तो तब आता है जब कोई नेता डिजायनर जैकेट के साथ कुर्ते पाजामे में किसी हवाई जहाज या हेलिकॉप्टर से उतरता है और अपने आप को गरीबों का सबसे बड़ा रहनुमा बताता है।

एक और कमाल का टेम्पलेट सम्राट अशोक ने बनाया था जिसकी नकल आज के नेता जमकर करते हैं। माना जाता है कि अशोक वह पहला राजा था जिसने जनता तक अपना संदेश पहुँचाने के लिए मास मीडिया का इस्तेमाल किया था। उस समय होर्डिंग का फैशन नहीं आया था इसलिए अशोक ने बड़े बड़े शिलालेख लगवाये जिनपर संदेश खुदे होते थे। उस जमाने में इस काम में कितना  खर्चा आया होगा, कितने का घोटाला हुआ होगा, ट्रैफिक को कितनी बाधा पहुँची होगी, ये सब बताना बहुत मुश्किल है। लेकिन आज के जमाने में मास मीडिया में विज्ञापन देने में करोड़ों का खर्चा आता है। इसमें नीचे स्तर के नेताओं में कुछ न कुछ बंदरबाँट भी होती होगी। कई शहरों में तो नेताओं की होर्डिंग ठीक ट्रैफिक साइन के ऊपर या मुहल्लों या शहरों का रास्ता बताने वाले बोर्ड के ऊपर ही लगा दी जाती है। इससे लोगों को अच्छी खासी परेशानी होती है। कई बार तो अखबार का कवर देखकर शक होने लगता है कि गलती से अखबार वाले ने अखबार की जगह किसी पार्टी का घोषणापत्र तो नहीं डाल दिया।


इन सबसे होता कुछ भी नहीं है। गरीब आज भी गरीब ही हैं। लोग आज भी भूखमरी से मर रहे हैं। भारत अभी भी स्वच्छ नहीं हो पाया है। यह सब टेम्पलेट इस्तेमाल करने के साइड इफेक्ट हैं। जिस दिन हमारे नेता सामान्य लोगों की तरह कपड़े पहने लगेंगे, जिस दिन पुलिस वाले हेल्मेट पहनकर बाइक चलाने लगेंगे, उस दिन हमारी ज्यादातर समस्याएँ अपने आप दूर हो जाएँगी। 

Monday, December 12, 2016

एटीएम भगवान पूजन कथा

किसी समय की बात है। नारद मुनि देवलोक से भ्रमण करते हुए पृथ्वी लोक में विचरण कर रहे थे। नारद मुनि कई सौ वर्षों बाद पृथ्वी लोक में आये थे। इस बीच पृथ्वी लोक में असंख्य परिवर्तन हुए थे। नारद मुनि ने देखा कि वर्षों पहले जो नगर इंद्रपस्थ के नाम से विख्यात था उसे अब लोग नई दिल्ली या दिल्ली के नाम से जानते थे। नारद मुनि दिल्ली नगर के बीचोबीच स्थित एक मशहूर बाजार में पहुँचे जिसका नाम कनाट प्लेस था। वहाँ पर वृत्ताकार सड़कों के चारों ओर एक मनोहारी बाजार था जहाँ श्वेत रंग के सुंदर सुंदर भवन बने हुए थे। उस बाजार के बीचोबीच एक बड़ा ही रमनीक उपवन था जिसमें नाना प्रकार के पुष्प शोभायमान हो रहे थे। बाजार के बाहर की सड़कों के किनारे लाल पत्थरों से बनी हुई कुछ भव्य अट्टालिकाएँ भी थीं। उस उपवन में आधुनिक नर नारी रति क्रीड़ा में मग्न थे। लेकिन वैसे नर नारियों की संख्या काफी कम होने के कारण नारद मुनि कुछ चिंता में पड़ गये। बाजार में थोड़ा और भ्रमण करने के बाद नारद मुनि ने देखा कि असंख्य नर नारी कतार बद्ध होकर एक विचित्र सी दिखने वाली मशीने के आगे खड़े थे। वह मशीन एक काँच की कोठरी में बंद थी। उसमें एक एक करके नर या नारी जाते थे और कुछ अजीबोगरीब क्रियाकलाप करके वापस लौटते थे। लौटते समय उनके चेहरे पर जो विजयी मुसकान होती थी उससे प्रतीत होता था कि वहाँ पर अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण कार्य को मूर्तरूप दिया जा रहा था। अपनी जिज्ञासा शांत करने के उद्देश्य से नारद मुनि भी वहाँ पहुँचे और एक षोडशी स्त्री से पूछा, “हे बालिके, क्या मैं जान सकता हूँ कि तुम और बाकी लोग यहाँ किस प्रयोजन से एकत्र हुए हो और इस प्रयोजन का क्या लाभ है?”

उस बाला ने बिना शर्माए सकुचाए हुए नारद मुनि से कहा, “हे मुनि जैसे दिखने वाले व्यक्ति, लगता है आप किसी नाटक मंडली से आये हैं। हमलोग यहाँ पर एक आधुनिक देवता एटीएम की पूजा अर्चना करने आये हैं। इस देवता की पूजा करने से हाथ में धन आने का प्रबल योग बनता है।“

नारद मुनि की जिज्ञासा और बढ़ गई। उन्होंने फिर पूछा, “हे बालिके, इस नये देवता का नाम मैने कभी नहीं सुना। फिर भी क्या तुम इस देवता की पूजन विधि, उसके पीछे की कथा और उसका व्रत रखने के लाभ के बारे में बताने का कष्ट करोगी?”

उस बाला ने नारद मुनि से कहा, “हाँ, मैं अवश्य बताउँगी। उसके लिये आपको मेरे साथ इस कतार में खड़ा होना पड़ेगा।“

बस नारद मुनि उस बालिका के पीछे कतार में खड़े हो गये और एटीएम भगवान की कथा श्रवण का आनंद लेने लगे। उस बालिका ने कथा कुछ इस प्रकार सुनाई।

किसी युग में सौदास नामक एक राजा पृथ्वी पर राज करता था। राजा का राजकाज समुचित ढंग से चल रहा था। राजा का परिवार भी पुत्रो और पुत्रियों से भरा पूरा था। लेकिन राजा को एक चिंता सदैव सताती थी। राजा की अनगिनत रानियों और पटरानियों के कारण राजा के पास हमेशा धन की कमी हो जाती थी। राजा चाहे जितना प्रयास कर ले, हर महीने की बीस तारीख आते आते उसका खजाना खाली होने लगता था। राजा ने अपने मंत्रियों से राजस्व बढ़ाने के बारे में सलाह ली और प्रजा पर कर का बोझ बढ़ाने की अनुशंसा की। लेकिन मंत्रियों ने प्रजा के विद्रोह के डर से उसकी सलाह मानने से मना कर दिया।

राजा की चिंता इतनी बढ़ गई थी कि उसे रातों को नींद नहीं आती थी। एक रात उसकी आँख किसी तरह लगी ही थी कि उसके सपने में उसके कुल देवता ने साक्षात दर्शन दिये। राजा के कुल देवता ने राजा से कहा कि वह एटीएम देवता की पूजा विधि विधान से करे तो उसके कष्ट दूर हो जाएँगे।

अगले दिन राजा ने यमुना के तट पर एटीएम देवता की मूर्ति स्थापित की। इसके लिये उसने सीधे विश्वकर्मा से मदद ली। राजा ने विधि पूर्वक स्नानादि करके पहले अपने ईष्ट देवों का स्मरण किया। फिर उसके बाद उसने 108 बाद मंत्र जाप करके एटीएम देवता का स्मरण किया। उसके बाद राजा ने देवता के आगे नाना प्रकार के नैवेद्य का प्रसाद चढ़ाया। फिर राजा सौदास ने ब्राह्मणों को भरपेट भोजन करवाया। ब्राह्मणों को विदा करते समय राजा ने रेशमी वस्त्र, स्वर्ण मुद्राएँ और दुधारु गायेँ भी दान में दी। राजा की इतनी कठोर साधना से एटिएम देवता प्रसन्न हो गये और प्रकट हुए।

एटीएम देवता के आदेश पर राजा ने विनती की, “हे प्रभु, मुझे अधिक की लालसा नहीं है। बस इतनी इच्छा है कि मेरे खजाने में इतना धन रहे कि मेरी रानियों और पटरानियों के भोग विलास में कोई कमी न हो।“

एटीएम देवता ने वर दिया, “हे राजन, मैं तुम्हारी आराधना से प्रसन्न हुआ। तुम पूरे नगर में मेरी मूर्तियाँ स्थापित करवा दो। नगर के हर व्यक्ति को मेरी पूजा करने की अनुमति दो। फिर तुम या तुम्हारे राज्य का कोई भी व्यक्ति एक शॉर्ट कट पूजा के बाद मेरे मंदिर से दो हजार रुपये प्राप्त कर सकता है। याद रहे कि एक दिन में कोई भी व्यक्ति दो हजार रुपये से अधिक प्राप्त नहीं कर सकता है। यदि किसी ने भी इस नियम को तोड़ने की कोशिश की तो राज्य में भीषण अकाल पड़ जायेगा और पूरा राज्य तबाह हो जायेगा।

इतना कहने के बाद उस बाला ने नारद मुनि से कहा, “हे मुनि, तब से लेकर आज तक इस नगर का हर व्यक्ति सप्ताह में एक या दो दिन आकर एटीएम भगवान की पूजा करता है और दो हजार रुपये की धनराशि प्राप्त करके सुखपूर्वक अपने दिन बिताता है।“

नारद मुनि ने कहा, “ये तो बहुत अच्छी बात है। कृपा करके उस पूजा की पूजन विधि बताओ।“

उस बाला ने नारद मुनि से कहा, “हे मुनिवर, इस देवता की पूजन विधि बहुत ही सरल है। आपको एक एटीएम कार्ड बनवाना पड़ेगा। उसके बाद धूप दीप आदि दिखाकर भगवान द्वारा स्थापित इस मशीन के गर्भ गृह में उस कार्ड को डालना पड़ेगा। फिर एक गुप्त मंत्र का एक बार जाप करने से दो हजार की धनराशि अपने आप आपके हाथों में आ जायेगी। याद रहे कि प्रत्येक व्यक्ति को दिया हुआ वह गुप्त मंत्र अपने आप में अनूठा होता है। आपको दिये हुए गुप्त मंत्र से इस संसार का कोई अन्य व्यक्ति धनराशि नहीं पा सकता है। मतलब आपको आपके हिस्से की धनराशि मिलने की पूरी गारंटी है।“


उसके बाद नारद मुनि उस बालिका द्वारा बताये निर्देश के अनुसार एक भव्य मंदिर में पहुँचे जहाँ कि उनको अपना एटीएम कार्ड मिल सकता था। 

पढ़िए नई मधुशाला ....

This poem is written by one of my friends Mr. Pradeep Gulati who is a senior editor with a publishing firm:

__________________
सब्जी ले आने को घर से
चलता है जब घरवाला
' किस दुकान जाऊँ ' असमंजस में
है वह भोला भाला
दो हजार का नोट देख कर
उसको सब गाली देंगे
और इसी असमंजस में वह
पहुँच गया फ़िर मधुशाला
__________________
लाल गुलाबी नोट देख कर
डरता है लेने वाला
सोच रहा है दिल ही दिल में
नहीं चलेगा यह साला
बिना दूध की चाय हमेशा
से उसको कड़वी लगती
यही सोच कर पहुँच गया वह
सुबह सबेरे मधुशाला.
______________________
थके हुए क़दमों से देखो
आया सोहन का साला
पीछे पीछे चलीं आ रहीं
जाकिर की बूढ़ी खाला
रोज बैंक से डंडे खाकर
लिए व्यथित मन लौट रहे
कार्ड स्वाईप करने वाले तो
घर ले आते मधुशाला.

______________________
पैसा लेकर रामभरोसे
घूम रहे बन मतवाला
रुपए उसके पास देख कर
बता रहे सब धन काला
खाद डालनी थी खेतों में
रामभरोसे चिंतित हैं
भक्त कह रहे छोड़ो ये सब
हो आओ तुम मधुशाला

खुली हुई है मधुशाला ....
__________________
इन थोड़े नोटों से कितना
प्यार करूं, पी लूं हाला
आने के ही साथ आ गया
है इनको लेने वाला
पांच हजार मकान किराया
लेने को आईं आंटी
है उधार अब पंद्रह दिन से
मेरी जीवन मधुशाला

___________________
यम बनकर बाज़ार आएगा
हफ्ता जो आने वाला
फिर न होश में आ पाएगा
अर्थतंत्र पी कर हाला
यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है
ज़रा संभल कर पीना इसको
यह है देशी मधुशाला

Thursday, December 8, 2016

गाँव में कार्ड स्वाइप मशीन

रामलाल बड़े ही जतन से खैनी को मसल रहा था और उसपर ताल ठोंकते हुए कुछ कुछ ठुमके लगाने के अंदाज से टहल रहा था। साथ में उसके मुँह से हिंदी फिल्म के किसी हिट गाने के बोल के कुछ टूटे फूटे अंश भी निकल रहे थे। ऐसा करते हुए वह जब गाँव की चौपाल के पास पहुँचा तो गाँव के सरपंच ने उससे पूछा, “का हो रामलाल, का बात है, बड़े प्रसन्नचित्त लग रहे हो।“

सरपंच को देखकर रामलाल ने अपने धड़ को कमर के पास से लगभग समकोण पर आगे झुका लिया और सरपंच को नमस्कार करते हुए कहा, “राम राम सरपंच जी, बस आपके तरफ ही आ रहे थे। ई लें एक जूम खैनी। अभी ताजा बनाए हैँ।“

सरपंच भोला पासवान ने रामलाल की हथेली से एक चुटकी खैनी उठाकर अपने मसूढ़ों में दबा ली और फिर पूछा, “हमरी तरफ आ रहे थे। कौनो खास बात?”

रामलाल ने बाकी बची खैनी को अपने मुँह में डाल लिया और जमीन पर उकड़ू बैठते हुए बोला, “लगता है आज का समाचार नाही सुने हैं। आज ऊ जो एक टकला मंत्री है………… अरे का कहते हैं ....... हाँ वित्त मंत्री .......ऊ घोषणा किया है कि अब हर गाँव में एक कार्ड स्वाइप करने का मशीन लगेगा। बस अब हमरा गाँव भी अमरीका बन जाएगा।“

शाम होने ही वाली थी, इसलिए तब तक वहाँ पर गाँव के ज्यादातर वयस्क पुरुष जमा होने लगे थे। कोई चबूतरे पर बैठा था तो कोई एक कटे पेड़ के तने पर और उसके बाद जो बचे थे वे सभी या तो जमीन पर बैठे हुए थे या जमीन पर ही खड़े थे। उन्हीं में रघुबर यादव भी था जो अपने आप को गाँव का सबसे दबंग नौजवान मानता था। मानता क्या था बस यों समझ लीजिए कि उसकी कई हरकतें दबंगों वाली ही थी, मसलन किसी युवती पर फब्तियाँ कसना या उसके साथ छेड़खानी करना, चायवाले की दुकान से मुफ्त की चाय पीना। कभी कभी तो वह खुले में निबटने आई महिलाओं की वीडियो भी बना लेता था। रघुबर यादव ने अपनी लो कट जींस को थोड़ा और नीचे सरकाते हुए कहा, “चचा रामलाल, एक बात पूछें, जब तुम्हरे पास कार्ड ही नहीं है तो स्वाइप मशीन को लेकर इतने उड़ काहे रहे हो?”

रघुबर यादव का सवाल सुनकर कई लोगों को लगा कि कोई रोचक बात हो रही है। इसलिए वहाँ पर मौजूद ज्यादातर लोगों ने एक सुर में कहा, “हाँ भैया, इतना उड़ काहे रहे हो?”

रामलाल अपनी बात को ज्यादा दमदार तरीके से रखने के मंशे से उठकर खड़ा हो गया और बोला, “हम मानते हैं कि हमरे पास कार्ड नहीं है। लेकिन नोटबंदी के बाद सरकार हम सबको कार्ड देगी। इससे नगदी का लेन देन कम हो जाएगा। फिर हमलोग जब कार्ड से समान खरीदेंगे तो अईसा लगेगा जईसे कि कौनो माल में घूम रहे हैं।“

भीड़भाड़ देखकर वहाँ पर गाँव के सारे दुकानदार भी इकट्ठे हो गये। आपकी जानकारी के लिए यह बताना जरूरी है कि गाँव में कुल चार ही दुकानें थीं; एक किराने की दुकान, एक आटा चक्की, एक चाय पकौड़े की दुकान और एक साइकिल पंचर की दुकान। किराने वाला बोला, “हाँ भैया, ऊ न्यूज तो हम भी देखे रहे। बता रहे थे कि दस हजार से कम आबादी वाले गाँव को एक मशीन मिलेगी। हमरी समझ में ई नहीं आ रहा कि चार-चार दुकानों का काम एक मशीन से कईसे चलेगा। अब इस पर सरपंच जी ही कुछ रोशनी डालेंगे।“

उसे काटते हुए चक्की वाले ने कहा, “अरे ई सरपंच ठहरा हरिजन, इतना दिमाग थोड़े ही है कि इतनी गंभीर बात पर कुछ बोले। ज्ञान की बात तो हम पंडितों से पूछो। हम तो गेहूँ पिसाने के बदले में आटा ही रख लेते हैं इसलिए मशीन की जरूरत हमें नहीं है। हमको तो लगता है कि इस किराने वाले को ही मशीन की सबसे ज्यादा जरूरत होगी।“

ऐसा सुनते ही चाय वाले और पंचर वाले ने एक सुर में कहा, “ये खूब कही। और फिर हम का करेंगे? दुकान बंद करके कैलाश परबत के लिए चल पड़ेंगे।“

सरपंच ने कहा, “अब ई घोषणा तो आज ही हुई है। हमरे पास जिलाधिकारी के तरफ से कोई सूचना नहीं है। लेकिन आपको पता ही है कि हर काम पंचायत के मारफत ही होता है। इसलिए हमको लगता है कि ऊ मशीन भी पंचायत के पास ही आयेगा, मतलब हमरे पास।“

ऐसा सुनकर रामलाल ने कहा, “तो अब सरपंच जी दुकान खोलेंगे और तेल साबुन बेचेंगे। अरे पहले शिक्षा मित्र और मध्याह्न भोजन तो ठीक से संभाल लो। ई दुकानदारी का काम बनियों के पास ही रहने दो।“

रघुबर यादव ने कहा, “सरपंच चचा माफ करना। अगर यहाँ का निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित न होता तो फिर यादव में से ही कोई सरपंच होता। ऊ का कहते हैं कि बिल्ली के सरापे छीका फूट गया सो तुम बन गये सरपंच। अब पद का मजा लो लेकिन सरकारी खजाने के फेर में न पड़ो तो ही बेहतर होगा। ऊ मशीन कहाँ लगेगी इसका निर्णय हमरे ताऊ करेंगे।“

उसके इतना कहते ही वहाँ पर चुप्पी छा गई। थोड़ी देर बाद लोग वहाँ से तितर बितर हो गये। अगले दिन जब रामलाल खेत में काम कर रहा था तो उसे रघुबर यादव मिला। रघुबर ने उससे फुसफुसाते हुए कहा, “चचा, मुझे लगता है कि तुम चाहते हो कि ऊ मशीन तुम्हरे हाथ में रहे।“

रामलाल ने जब हामी भरी तो रघुबर यादव ने कहा, ‘उसके लिए कुछ खरचना पड़ेगा। ज्यादा नहीं है। केवल पाँच सौ रुपए मात्र और ऊ भी नया वाला नोट। अगर मंजूर है तो आगे बात चलाएँ। लेकिन ई बात किसी तीसरे को पता न चले।“

यही सब कई लोगों से कहकर रघुबर यादव ने कोई सात आठ हजार रुपए तो बना ही लिए। उधर तीन चार महीने बीतने के बाद ग्राम पंचायत के नाम पर एक स्वाइप मशीन भी आ गई। बकायदा लाल फीता काटकर वहाँ के विधायक ने उस मशीन की शुरुआत की। उन्होंने किराने वाले से एक पैकेट बिस्किट खरीदा और उसका पेमेंट कार्ड से किया। फिर विधायक ने एक छोटा सा भाषण दिया, “प्यारे गाँव वालों। भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की दिशा में यह एक ठोस कदम है। अब हम देश को कैशलेस इंडिया बनाकर ही छोड़ेंगे।“

चाय वाले ने पूछा, “माननीय विधायक जी, हम एक सवाल पूछना चाहते हैं। अगर कोई आदमी हमरी दुकान से चाय पिया और उसका भुगतान इस स्वाइप मशीन से दिया तो फिर ऊ पईसा हमकों कईसे मिलेगा।“

विधायक ने कहा, “अरे उसका पैसा पहले तो सरपंच जी के खाते में जायेगा। उसके बाद सरपंच जी तुम्हारे खाते में पैसे भेज देंगे। जनधन खाता तो खुला ही होगा तुम्हारा।“

चाय वाले ने दबे सुर में कहा, “हाँ जनधन खाता तो खुला था, लेकिन चाय बेचें हम और पईसा जाये सरपंच के खाते में।“

किराने वाला भी बोल उठा, “ई सरपंच का क्या भरोसा, पईसा डालने में देर किया या कम डाला तो क्या करेंगे? दुकान में मेहनत करें हम और पईसा ले ई। मतलब हमरे दुकान से सामान खरीदने के बाद ग्राहक को भुगतान करने के लिए सरपंच के पास जाना होगा। अगर उस दिन सरपंच जिला परिषद की बैठक के लिए जिला मुख्यालय में रहा तो। या कहीं नातेदारी में गया तो? मतलब उस दिन हमरी दुकान बंद।“

पंचर की दुकान वाला भी अपनी राय रखना चाहता था। उसने कहा, “अरे आटा दाल का क्या है। कोई एक दो घंटे बाद भी खरीद सकता है। लेकिन किसी की साइकिल या मोटरसाइकिल पंचर हो गई तो फौरन बनाना पड़ता है। अब हमरे रघुबर यादव तो बिना मोटरसाइकिल के निबटने भी नहीं जाते।“

ऐसा सुनकर चाय वाले ने कहा, “उसमें का है, तब तक यहीं अहाते में निबट लेंगे।“


वहाँ बैठे बाकी लोग यह सुनकर जोर जोर से हँसने लगे। उन्हें हँसता देखकर रघुबर यादव ने एक चुनिंदा गाली पढ़ी जो लोगों को चुप कराने के लिए काफी थी। तबतक विधायक जी के लिए टेबल पर चाय और पकौड़ी सजा दी गई थी। विधायक जी ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “भईया, ई सब खाली ड्रामा है और कुछ नहीं। इस गाँव में मोबाइल का नेटवर्क तो पकड़ता नहीं है फिर स्वाइप मशीन कैसे काम करेगा। कुछ दिन की समस्या है फिर सबके पास नोट भी आ जाएँगे। उसके बाद इस मशीन को अगरबत्ती दिखाते रहना।“  

Thursday, December 1, 2016

Cash Crisis

Rahul was in deep thought. His wife; Pooja served tea and said, “I am running short on cash. The two thousand rupees which you had withdrawn last week is almost finished. We need to get more cash now. I have to pay the maidservant, the flower seller, the newspaper vendor and the person who cleans our car.”

Rahul took a deep breath and said, “Yeah, we also have to pay the house rent next week. I need fifteen thousand for house rent. When I talked to the landlord he said that he won’t be taking payment through cheque. After paying to these guys we are not going to be left with any cash.”

Pooja said, “You can withdraw only two thousand rupees from ATM but there is no guarantee of getting a success from any ATM. Most of the ATMs have not received cash for the last ten days.”

Rahul said, “Can you recall that I had to stand in queue for four hours just to withdraw two thousand rupees from the ATM that too at the mid of the night? Let me go to any nearby branch of Oriental Bank to try my luck.”  

Pooja said, “You need to hurry to get ready. Meanwhile, I will make breakfast for you.”

Rahul was ready within five minutes and was having breakfast. His wife had already kept cheque book, pass book and copies of ID proof in his bag. After finishing the breakfast, Rahul went downstairs, started his motorbike and began his journey in search of a branch where he could find some cash. He went to three branches of Oriental Bank but at each branch he saw the same notice, i.e. ‘NO CASH’.”

When he reached the fourth branch he saw some hope in the form of a long queue outside. A bank staff was also present who was trying to handle various queries from people. On Rahul’s query, he replied, “I am sorry, we cannot make you a payment because your account is not at this branch.”

Rahul said, “What is the use of computerized banking? Till date, I was under the impression that I can do banking transaction from any branch of Oriental Bank anywhere in this country because my account is with your bank.”

The bank staff rudely said, “Sir, I am helpless. We are unable to do anything as we are receiving very low amount of cash. We have decided to pay cash to those people who have accounts at this branch.”

Dejected Rahul returned to his home. After opening the door for him, Pooja shot the inevitable question, “What happened? Did you get some cash?”

Rahul just sank in the sofa with a loud thud and said, “No way. The bank staff was telling that I need to go the branch which has my account.”

Pooja said, “But your account is with a branch in Gurgaon. What will you do now?”

Rahul said, “This is the real problem for me. That branch is about fifty kilometer from this place. The fact that it is a small branch further compounds the problem. I fear to see ‘NO CASH’ notice after reaching that branch. I am thinking of trying at Connaught Place. If I am not wrong, there is a big branch of Oriental Bank in E block of Connaught Place. I am hopeful that a branch at Connaught Place would not refuse to pay me. After all, it is right in the heart of Delhi.”

Pooja said, “But it is already two O’clock. There is no use of starting for Connaught Place now. It is too late.”

Rahul said, “I am thinking of going there tomorrow. I will start at eight in the morning. I will go to Vaishali metro station. I will take the metro train for Rajiv Chowk. Let us see what is in store at Connaught Place.”

Next day, Rahul started on his mission to get some cash; at about eight in the morning. His wife packed a lunch box for him so that there would be no need to waste money on buying food. Rahul was carrying the pre-paid card of metro so he did not have to worry about spending the dwindling reserve of cash. Rahul’s purse contained only three hundred rupees. Looking at those notes, Rahul uttered, “There were good old days when the same purse used to contain at least three thousand rupees.”

Hearing that, Pooja said, “Don’t be so depressed. This is just a passing phase. Things will improve in coming days.”

It took a one hour drive to reach Vaishali metro station. After a thirty minute ride on the metro rail, Rahul reached Rajiv Chowk. When he came out of gate number seven of the metro station, he could see the familiar green sign board of Oriental Bank in front of him. Seeing no crowd outside the bank, Rahul was getting worried. There was a security guard at the entrance of the bank. The burly security guard raised his right arm to block Rahul’s path and asked, “Hey, where are you going?”

Rahul said, “Bhaiya, I need to withdraw money from my account.”

The security guard asked, “Do you have account with this branch?”

Rahul said, “No, but my account is with a branch in Gurgaon.”

Hearing that, the security guard brought some irritation in his voice and said, “Then you need to go to your branch. We have stopped paying cash to account holders from any other branch.”

Rahul said, “Bhaiya, this appears to be a small branch. But I think there is a much bigger branch of Oriental Bank at Connaught Place. Can you guide me to that branch?”

The security guard said, “Yeah, that is in the E block. But there is no use of going to that branch.”

Rahul thought that there was no harm in giving it a try. He walked towards the E block at a rapid pace. After walking for about two hundred meters, he could see the sign board of the bank. He felt more hopeful when he saw a long queue outside that branch. But his happiness was short lived once he realized that the queue was outside the ATM. Nobody appeared to be interested in going inside the bank. The security guard outside the gate told that cash was not available at the branch. When Rahul narrated his problem to the security guard, he allowed Rahul to go inside. There was a huge waiting area inside but there was not a single soul in that waiting area. After craning his neck in all directions, Rahul could see a queue of about twenty people near a counter. Rahul could also see cheque leaves in every person’s hand. Rahul went there and stood at the last position in the queue. Within a few moments, the person at the head of the queue was coming back. The sad expression on his face was enough to reveal that he was not coming with cash. Rahul asked that person, “Hey, could you find cash?”

The person replied, “No, they are not giving cash today. They are just giving token against the cheque. Tomorrow they will be giving cash against the token.”  

Rahul came out of the queue in order to enquire with the bank staff. He said to the bank staff, “Sir, I don’t have account at this branch. Can I withdraw money from this branch?”

The bank staff was showing a long face. He stared at Rahul with expressionless eyes and said, “Yeah, you can. But we are giving only ten thousand rupees to those who have account at this branch. For account holders from any other branch, we are giving only five thousand rupees. We don’t have cash right now so we are only issuing tokens. As your account is with another branch, so you can get your cash day after tomorrow.”

Rahul said, “Sir, this defeats the whole purpose of computerized banking. The government has announced that anybody can withdraw twenty four thousand rupees from his account.”

The bank staff said with all the courtesy in his voice, “Sir, we are getting so little cash that we are unable to satisfy our customers. We are trying our best to satisfy as many customers as we can. The Reserve Bank is not supplying as much cash as we really need.”

Rahul did not say a word and came back. After coming out of the bank, Rahul was feeling quite dejected. There was not much crowd at that place; which was unusual. Some young guys and girls could be seen roaming aimlessly; which they usually do. Most of the hawkers were conspicuous by their absence. Rahul sat down on a bench and filled his mouth with pan masala. After chewing on the pan masala for a while, he spat a strong jet of red saliva in the garbage bin. Then he took out his mobile phone and dialed his wife’s number. Rahul said to Pooja, “Things are equally bad even at Connaught Place. There are two branches but none of them has cash. This is horrible. When banks are Connaught Place are in this state then I shudder to think about a small branch in Gurgaon.”  

Pooja asked, “Now, what is your next plan of action?”

Rahul said, “There is no use of going to Gurgaon now. It will take me about an hour to reach Gurgaon by metro train. But my bank is about fifteen kilometers from M G Road metro station. It will take me another hour to reach there by auto-rickshaw. I will not be able to reach there before two; only to see ‘NO CASH’ notice. I am thinking of starting for Gurgaon tomorrow morning. I will go by my bike. It will save my time.”

After sitting on the bench for a few more minutes, Rahul began walking towards the gate number two of Rajiv Chowk metro station. Within a few seconds, he was inside the metro station.

After clearing the security cheque, Rahul touched the sensor with his prepaid card when the turnstile opened and Rahul crossed the last hurdle towards the next metro train. He could see queues of people near two ATMs. He was looking at those people with a touch of jealousy because Rahul’s ATM card had been blocked about two months back. There was some security breach in ATMs which resulted in more than six hundred thousand ATMs being blocked. Rahul just walked past those gleaming ATMs as if they were making faces at him.

Next day, Rahul started for Gurgaon at about seven in the morning. After about two and a half hour of a tortuous navigation through peak traffic, Rahul was parking his bike in front of his bank. There were a few people outside the bank. Rahul could easily see the ‘NO CASH’ notice outside the bank. He was at his wit’s end; unable to think anything. 

After a few seconds, he could come out of his shock and remembered that he needed to apply for ATM card and cheque book. After too much cajoling, the security guard allowed him to enter the bank. He gave the requisition slips for ATM card and cheque book to the concerned staff. After that, Rahul sat down on a chair as he needed some rest before starting his return journey. About ten minutes had passed when the bank manager announced, “We have good news. A businessman has deposited two lakh rupees just now. We are going to make cash payments to twenty people on a first come first serve basis. Each person will get five thousand rupees. You are requested to make a queue quickly.”

People meekly followed his dictum and made an impromptu queue. Rahul was among the lucky twenty who got the tokens. After taking the token, Rahul once again sat on a chair. After waiting for about one and a half hour, Rahul could finally get five thousand rupees in cash. He was confused whether to feel happy or sad after getting the money. He called his wife to share the good news and then started his motorbike to go back to his home.

When Rahul reached his home it was already half past four. His whole body was in pain. He said to his wife, “It is tough to ride a motorbike for such a long journey. While coming back, I was feeling so much pain in my legs that I felt like jumping off my bike. When I was young, I used to ride at least hundred kilometers on my bike at one go. I think I am getting old now. ”

Pooja said, “No way, you are still young. You are just a borderline case between youth and middle age. Moreover, your body has lost the habit of riding a bike for so many years. It is more attuned to the comforts of a car. It will be better if you will start taking me for a ride on your bike at least once in a week.”

Rahul said, “I am sure that this cash crunch is going to last for at least six months to come. I will have to forget my car in order to save the money. Next time, I will take you with me when I shall be going to Gurgaon to withdraw money from my bank. I can assure you that it won’t be a romantic ride at all.”


Tuesday, November 29, 2016

पैसे कहाँ से आएँगे?

राहुल गहरी चिंता में डूबा हुआ था। राहुल की बीवी ने सुबह की चाय रखते हुए कहा था, “पिछले सप्ताह तुमने जो दो हजार रुपए निकाले थे वो अब खत्म होने को हैं। इस बार ज्यादा निकालना पड़ेगा। कामवाली को पगार देनी है। फूलवाले, अखबार वाले और गाड़ी पोंछने वाले को भी पैसे देने हैं।“

राहुल ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “अरे हाँ, अगले सप्ताह तो किराया भी देना होगा। पंद्रह हजार तो किराये में ही निकल जाएँगे। मकानमालिक से बात की थी, कह रहा था कि चेक नहीं लेगा। बाकी लोगों को देने के बाद हमारे पास तो कुछ बचेगा ही नहीं।“

राहुल की बीवी ने कहा, “एटीएम से तो दो हजार ही निकलेंगे, उसकी भी गारंटी नहीं है। ज्यादातर एटीएम में कैश रहता ही नहीं है।“

राहुल ने कहा, “हाँ पिछली बार चार घंटे लाइन में लगा था तब जाकर कहीं पैसे निकाल पाया था। आज जाकर देखता हूँ कि ओरियेंटल बैंक के किसी लोकल ब्रांच से चेक से निकाल पाता हूँ या नहीं।“

राहुल की बीबी ने कहा, “तुम जल्दी से तैयार हो जाओ। तब तक मैं नाश्ता बना देती हूँ।“

थोड़ी देर बाद राहुल तैयार होकर नाश्ता करने लगा। इस बीच उसकी बीवी ने उसके बैग में चेक बुक, पास बुक और पहचान पत्र की फोटो कॉपी रख दी। राहुल नीचे उतरा, अपनी बाइक स्टार्ट की और चल पड़ा किसी ऐसे ब्रांच की तलाश में जहाँ उसे पैसे मिल सकते थे। वह तीन ब्रांच में गया लेकिन सब जगह एक ही जवाब मिला, “कैश नहीं है।“

चौथे ब्रांच के पास पहुँचकर उसने देखा कि बाहर लंबी लाइन लगी थी। उस लंबी लाइन को देखकर राहुल को कुछ उम्मीद बंधी। बाहर ही बैंक का एक स्टाफ भी खड़ा था जो लोगों के तरह तरह के सवालों के जवाब दे रहा था। राहुल के सवाल पर उसने कहा, “आय एम सॉरी। आपका खाता हमारे ब्रांच में नहीं है इसलिये हम आपको पैसे नहीं दे सकते हैं।“

राहुल ने कहा, “फिर कंप्यूटराइजेशन का क्या मतलब हुआ? माना कि मेरा खाता यहाँ नहीं है, लेकिन मैं तो हिंदुस्तान के किसी भी ब्रांच से पैसे निकाल सकता हूँ। मेरा खाता आपके ही बैंक में जो है।“

बैंक के स्टाफ ने बड़े रूखेपन से कहा, “सर, जब हमारे पास कैश ही कम आ रहा है तो इसमें हम क्या कर सकते हैं। सबसे पहले हम उन लोगों को पैसे देंगे जिनके खाते हमारे ब्रांच में है।“

राहुल निराश होकर अपने घर वापस आ गया। दरवाजा खोलते ही उसकी बीवी ने पूछा, “क्या हुआ, पैसे मिले?”

राहुल धम्म से सोफे पर बैठ गया और बोला, “अरे नहीं, बैंक वाले बता रहे हैं कि मेरा खाता जिस ब्रांच में है वहीं जाना होगा।“

राहुल की बीवी ने कहा, “लेकिन हमारा खाता तो गुड़गाँव की ब्रांच में है। अब क्या करोगे?”

राहुल ने कहा, “यही तो मुसीबत है। यहाँ से मेरा ब्रांच लगभग पचास किमी दूर है। लेकिन वह एक छोटा ब्रांच है। पता चला कि वहाँ पहुँचे तो वहाँ भी कैश न मिले। ऐसा करता हूँ कि कल कनाट प्लेस चला जाता हूँ। कनाट प्लेस के ई ब्लॉक में ओरियेंटल बैंक का एक बड़ा सा ब्रांच है। उम्मीद है कि कनाट प्लेस की ब्रांच में पैसे मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी।“

राहुल की बीवी ने कहा, “अब जाने से क्या फायदा। दो बजने जा रहे हैं।“

राहुल ने कहा, “सोच रहा हूँ कि कल सुबह आठ बजे ही कनाट प्लेस के लिये चल दूँगा। यहाँ से बाइक से वैशाली मेट्रो स्टेशन जाउँगा। फिर वहाँ से मेट्रो ट्रेन से राजीव चौक चला जाउँगा। फिर देखते हैं क्या होता है।“

अगले दिन राहुल सुबह आठ बजे के आस पास रुपये निकालने के मिशन पर निकल पड़ा। उसकी बीवी ने एक टिफिन भी दे दिया ताकि रास्ते में कुछ खरीदकर पैसे बरबाद करने की नौबत न आये। मेट्रो के प्रीपेड कार्ड में बैलेंस था ही इसलिए मेट्रो के किराये की चिंता नहीं थी। राहुल ने पर्स में तीन सौ रुपये देखकर एक मशहूर शेर कहा, “आज इतनी भी मयस्सर नहीं मयखाने में, जितनी छोड़ दिया करते थे पैमाने में।“

शेर सुनकर उसकी बीवी ने कहा, “तुम भी अजीब इंसान हो। घर में खाने को फूटी कौड़ी नहीं है और तुम्हें शेर की सूझी है।“

राहुल को अपने घर से वैशाली मेट्रो स्टेशन तक पहुँचने में एक घंटा लग गया। उसके बाद मेट्रो से लगभग पच्चीस मिनट की यात्रा के बाद वह राजीव चौक स्टेशन पहुँच गया। राजीव चौक से बाहर गेट नंबर सात से निकलते ही सामने ओरियेंटल बैंक का बोर्ड नजर आया। वहाँ पर एक भी आदमी नहीं देखकर राहुल के मन में खटका हो रहा था। गेट पर एक दरबान खड़ा था। दरबान ने अपनी दाईं बाँह फैलाकर राहुल का रास्ता रोका और पूछा, “हाँ भई, कहाँ?”

राहुल ने कहा, “भैया, पैसे निकालने हैं, चेक से।“

दरबान ने कहा, ‘आपका खाता किस ब्रांच में है?”

राहुल ने कहा, “मेरा खाता गुड़गाँव के एक ब्रांच में है।“

इसपर दरबान ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा, “तो अपने ब्रांच में जाओ। यहाँ कहाँ चले आये मुँह उठाये हुए। हमने दूसरे ब्रांच के खाताधारियों को पैसे देना बंद कर दिया है।“

राहुल ने कहा, “यहाँ पर ओरियेंटल बैंक का एक बड़ा ब्रांच भी तो है। आप बता सकते हैं कि वह किस ब्लॉक में है?”

दरबान ने कहा, “हाँ, ई ब्लॉक में है। लेकिन वहाँ जाकर भी कोई फायदा नहीं होगा।“

राहुल ने सोचा कि कोशिश करने में क्या हर्ज है। वह तेजी से चलता हुआ ई ब्लॉक की तरफ बढ़ा। लगभग दो सौ मीटर चलने के बाद उसे ई ब्लॉक के पास ओरियेंटल बैंक का ब्रांच दिखा। बाहर एक लंबी लाइन को देखकर उसे थोड़ी तसल्ली हुई। पास जाकर देखा तो वह लाइन एटीएम के बाहर लगी थी। बैंक के अंदर जाने के लिए कोई लाइन नहीं लगी थी। बैंक के गेट पर खड़े दरबान से पूछने पर पता चला कि वहाँ भी कैश नहीं था। जब राहुल ने दरबान से अपनी समस्या बताई तो उसने राहुल को अंदर जाने दिया। अंदर एक बड़ा सा वेटिंग एरिया था लेकिन वहाँ पर एक भी आदमी नहीं था। इधर उधर नजर दौड़ाने के बाद राहुल को एक काउंट के बाहर एक छोटी सी लाइन मिली जिसमें लगभग बीस लोग खड़े थे। उन सबके हाथों में चेक दिख रहा था। राहुल की उम्मीद कुछ कुछ बढ़ रही थी। वह उस लाइन में जाकर सबसे पीछे खड़ा हो गया। थोड़ी देर में लाइन में सबसे आगे खड़ा आदमी वापस लौट रहा था। उसके चेहरे पर के भाव देखकर कोई भी कह सकता था कि उसे पैसे नहीं मिले थे। राहुल ने उस आदमी से पूछा, “भाई साहब, पैसे मिल रहे हैं?”

उस आदमी ने कहा, “नहीं, आज पैसे नहीं मिल रहे हैं। ये लोग चेक लेकर टोकन दे रहे हैं। पैसे कल मिलेंगे।“

राहुल लाइन से निकलकर आगे पहुँच गया ताकि बैंक स्टाफ से जानकारी ले सके। उसने बैंक स्टाफ से कहा, “सर, मेरा खाता इस ब्रांच में नहीं है। मैं इस ब्रांच से पैसे निकाल सकता हूँ?”

बैंक के स्टाफ का मुँह लटका हुआ था। उसने भाव शून्य आँखों से कहा, “हाँ बिलकुल निकाल सकते हैं। जिनका खाता इस ब्रांच में है उन्हें हम दस हजार दे रहे हैं। जिनका खाता किसी दूसरे ब्रांच में है उन्हें हम केवल पाँच हजार दे रहे हैं। लेकिन आज हमारे पास कैश नहीं है। आज हम केवल टोकन दे रहे हैं। आपका खाता दूसरे ब्रांच में है इसलिए आपको पैसे परसों मिल पाएँगे।“

राहुल ने कहा, “सर, फिर कंप्यूटराइज्ड बैंकिंग का क्या मतलब हुआ? सरकार ने घोषणा की है कि अब कोई भी अपने खाते से चौबीस हजार तक निकाल सकता है।“

बैंक के स्टाफ ने हाथ जोड़कर कहा, “सर, हमारे पास कैश इतना कम आ रहा है कि हम अपने ग्राहकों को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं। हमारी कोशिश है कि अधिक से अधिक लोगों को थोड़े ही सही पैसे दे सकें। रिजर्व बैंक ठीक से कैश सप्लाई ही नहीं कर पा रहा है।“

राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया और वहाँ से वापस हो लिया। बैंक से निकलने के बाद राहुल बड़ा ही विक्षिप्त लग रहा था। बाहर ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी। कुछ जवान लड़के लड़की वहाँ चहलकदमी कर रहे थे, जो कि हमेशा ही करते रहते हैं। ज्यादातर फेरीवाले भी नदारद थे। राहुल एक बेंच पर बैठ गया और जेब से पान मसाला निकालकर मुँह में भर लिया। थोड़ी देर तक चबाने के बाद उसने पास रखे डस्टबिन में पीक की एक तेज धार छोड़ी। फिर उसने अपना मोबाइल फोन निकाला और अपनी बीवी का नंबर डायल किया, “यहाँ पर भी बुरा हाल है। यहाँ दो ब्रांच हैं लेकिन दोनों में से किसी के पास कैश नहीं है। सोचो, जब कनाट प्लेस का ये हाल है तो गुड़गाँव के छोटे ब्रांच में क्या होगा।“
उसकी बीवी ने कहा, “अब क्या करोगे?”

राहुल ने कहा, “अब गुड़गाँव तो कल ही जा पाउंगा। अभी जाने से कोई फायदा नहीं होगा। यहाँ से गुड़गाँव तो मेट्रो से आसानी से पहुँच जाउँगा। लेकिन एम जी रोड मेट्रो स्टेशन से मेरे बैंक का ब्रांच चौदह पंद्रह किलोमीटर दूर है। वहाँ से ऑटो से जाने में कम से कम एक घंटा लगेगा। वहाँ पहुँचते पहुँचते दो बज जाएँगे। पहुँचने पर पता चला कि वहाँ भी कैश खत्म हो चुका है। अब कल सुबह सात बजे बाइक से गुड़गाँव के लिये निकल लूँगा।“


थोड़ी देर बाद राहुल बोझिल कदमों से चलता हुआ गेट नम्बर दो से राजीव चौक मेट्रो स्टेशन के लिये जमीन के नीचे उतरने लगा। 

राजीव चौक पर सिक्योरिटी चेक के बाद राहुल ने अपना प्रीपेड कार्ड सेंसर के पास लगाया तो टर्न्सटाइल खुल गया और राहुल अंदर चला गया। उसने दाहिनी ओर देखा कि दो एटीएम के पास लंबी लाइनें लगी थीं। वह भीतर ही भीतर आत्मग्लानि से त्रस्त था क्योंकि उसके पास जो एटीएम था वह दो महीने पहले ही ब्लॉक हो चुका था। एटीएम को देखकर राहुल मन मसोसकर रह गया और तेजी से ट्रेन पकड़ने आगे बढ़ गया।

अगले दिन राहुल सुबह सुबह ही गुड़गाँव के लिये चल पड़ा। लगभग दो घंटे की थका देने वाली ड्राइव के बाद आखिरकार वह अपने बैंक के पास पहुँच गया। वहाँ पर ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। पास जाकर उसने देखा कि नो कैशनोटिस चिपका हुआ था। राहुल मन मसोसकर रह गया। फिर भी उसने सोचा कि एटीएम और चेक बुक के लिए आवेदन दे दे। गार्ड से बड़ी मिन्नत करने के बाद राहुल को बैंक के अंदर प्रवेश करने में सफलता मिली। उसने एटीएम और चेकबुक के लिए आवेदन दे दिया। उसके बाद थोड़ा सुस्ताने के लिए वह वहीं एक कुर्सी पर बैठ गया। लगभग पंद्रह मिनट के बाद बैंक के एक मैनेजर ने एक घोषणा की, “अभी अभी हमारे पास किसी बिजनेसमैन का एक लाख का डिपॉजिट आया है। इसलिए मैं केवल बीस लोगों को पेमेंट कर सकता हूँ वो भी पाँच हजार प्रति व्यक्ति को। आप जल्दी से लाइन में लग जाएँ।“


लोग आनन फानन में लाइन में लग गये। राहुल उन किस्मत वालों में से था जिन्हें टोकन मिल पाया। उसके बाद लगभग एक डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद राहुल को पाँच हजार रुपये मिल ही गये। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि खुश हो या दुखी हो। उसने अपनी बीवी को फोन करके शुभ समाचार दिया और फिर वापस अपने घर की ओर चल पड़ा।