Pages

Thursday, December 8, 2016

गाँव में कार्ड स्वाइप मशीन

रामलाल बड़े ही जतन से खैनी को मसल रहा था और उसपर ताल ठोंकते हुए कुछ कुछ ठुमके लगाने के अंदाज से टहल रहा था। साथ में उसके मुँह से हिंदी फिल्म के किसी हिट गाने के बोल के कुछ टूटे फूटे अंश भी निकल रहे थे। ऐसा करते हुए वह जब गाँव की चौपाल के पास पहुँचा तो गाँव के सरपंच ने उससे पूछा, “का हो रामलाल, का बात है, बड़े प्रसन्नचित्त लग रहे हो।“

सरपंच को देखकर रामलाल ने अपने धड़ को कमर के पास से लगभग समकोण पर आगे झुका लिया और सरपंच को नमस्कार करते हुए कहा, “राम राम सरपंच जी, बस आपके तरफ ही आ रहे थे। ई लें एक जूम खैनी। अभी ताजा बनाए हैँ।“

सरपंच भोला पासवान ने रामलाल की हथेली से एक चुटकी खैनी उठाकर अपने मसूढ़ों में दबा ली और फिर पूछा, “हमरी तरफ आ रहे थे। कौनो खास बात?”

रामलाल ने बाकी बची खैनी को अपने मुँह में डाल लिया और जमीन पर उकड़ू बैठते हुए बोला, “लगता है आज का समाचार नाही सुने हैं। आज ऊ जो एक टकला मंत्री है………… अरे का कहते हैं ....... हाँ वित्त मंत्री .......ऊ घोषणा किया है कि अब हर गाँव में एक कार्ड स्वाइप करने का मशीन लगेगा। बस अब हमरा गाँव भी अमरीका बन जाएगा।“

शाम होने ही वाली थी, इसलिए तब तक वहाँ पर गाँव के ज्यादातर वयस्क पुरुष जमा होने लगे थे। कोई चबूतरे पर बैठा था तो कोई एक कटे पेड़ के तने पर और उसके बाद जो बचे थे वे सभी या तो जमीन पर बैठे हुए थे या जमीन पर ही खड़े थे। उन्हीं में रघुबर यादव भी था जो अपने आप को गाँव का सबसे दबंग नौजवान मानता था। मानता क्या था बस यों समझ लीजिए कि उसकी कई हरकतें दबंगों वाली ही थी, मसलन किसी युवती पर फब्तियाँ कसना या उसके साथ छेड़खानी करना, चायवाले की दुकान से मुफ्त की चाय पीना। कभी कभी तो वह खुले में निबटने आई महिलाओं की वीडियो भी बना लेता था। रघुबर यादव ने अपनी लो कट जींस को थोड़ा और नीचे सरकाते हुए कहा, “चचा रामलाल, एक बात पूछें, जब तुम्हरे पास कार्ड ही नहीं है तो स्वाइप मशीन को लेकर इतने उड़ काहे रहे हो?”

रघुबर यादव का सवाल सुनकर कई लोगों को लगा कि कोई रोचक बात हो रही है। इसलिए वहाँ पर मौजूद ज्यादातर लोगों ने एक सुर में कहा, “हाँ भैया, इतना उड़ काहे रहे हो?”

रामलाल अपनी बात को ज्यादा दमदार तरीके से रखने के मंशे से उठकर खड़ा हो गया और बोला, “हम मानते हैं कि हमरे पास कार्ड नहीं है। लेकिन नोटबंदी के बाद सरकार हम सबको कार्ड देगी। इससे नगदी का लेन देन कम हो जाएगा। फिर हमलोग जब कार्ड से समान खरीदेंगे तो अईसा लगेगा जईसे कि कौनो माल में घूम रहे हैं।“

भीड़भाड़ देखकर वहाँ पर गाँव के सारे दुकानदार भी इकट्ठे हो गये। आपकी जानकारी के लिए यह बताना जरूरी है कि गाँव में कुल चार ही दुकानें थीं; एक किराने की दुकान, एक आटा चक्की, एक चाय पकौड़े की दुकान और एक साइकिल पंचर की दुकान। किराने वाला बोला, “हाँ भैया, ऊ न्यूज तो हम भी देखे रहे। बता रहे थे कि दस हजार से कम आबादी वाले गाँव को एक मशीन मिलेगी। हमरी समझ में ई नहीं आ रहा कि चार-चार दुकानों का काम एक मशीन से कईसे चलेगा। अब इस पर सरपंच जी ही कुछ रोशनी डालेंगे।“

उसे काटते हुए चक्की वाले ने कहा, “अरे ई सरपंच ठहरा हरिजन, इतना दिमाग थोड़े ही है कि इतनी गंभीर बात पर कुछ बोले। ज्ञान की बात तो हम पंडितों से पूछो। हम तो गेहूँ पिसाने के बदले में आटा ही रख लेते हैं इसलिए मशीन की जरूरत हमें नहीं है। हमको तो लगता है कि इस किराने वाले को ही मशीन की सबसे ज्यादा जरूरत होगी।“

ऐसा सुनते ही चाय वाले और पंचर वाले ने एक सुर में कहा, “ये खूब कही। और फिर हम का करेंगे? दुकान बंद करके कैलाश परबत के लिए चल पड़ेंगे।“

सरपंच ने कहा, “अब ई घोषणा तो आज ही हुई है। हमरे पास जिलाधिकारी के तरफ से कोई सूचना नहीं है। लेकिन आपको पता ही है कि हर काम पंचायत के मारफत ही होता है। इसलिए हमको लगता है कि ऊ मशीन भी पंचायत के पास ही आयेगा, मतलब हमरे पास।“

ऐसा सुनकर रामलाल ने कहा, “तो अब सरपंच जी दुकान खोलेंगे और तेल साबुन बेचेंगे। अरे पहले शिक्षा मित्र और मध्याह्न भोजन तो ठीक से संभाल लो। ई दुकानदारी का काम बनियों के पास ही रहने दो।“

रघुबर यादव ने कहा, “सरपंच चचा माफ करना। अगर यहाँ का निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित न होता तो फिर यादव में से ही कोई सरपंच होता। ऊ का कहते हैं कि बिल्ली के सरापे छीका फूट गया सो तुम बन गये सरपंच। अब पद का मजा लो लेकिन सरकारी खजाने के फेर में न पड़ो तो ही बेहतर होगा। ऊ मशीन कहाँ लगेगी इसका निर्णय हमरे ताऊ करेंगे।“

उसके इतना कहते ही वहाँ पर चुप्पी छा गई। थोड़ी देर बाद लोग वहाँ से तितर बितर हो गये। अगले दिन जब रामलाल खेत में काम कर रहा था तो उसे रघुबर यादव मिला। रघुबर ने उससे फुसफुसाते हुए कहा, “चचा, मुझे लगता है कि तुम चाहते हो कि ऊ मशीन तुम्हरे हाथ में रहे।“

रामलाल ने जब हामी भरी तो रघुबर यादव ने कहा, ‘उसके लिए कुछ खरचना पड़ेगा। ज्यादा नहीं है। केवल पाँच सौ रुपए मात्र और ऊ भी नया वाला नोट। अगर मंजूर है तो आगे बात चलाएँ। लेकिन ई बात किसी तीसरे को पता न चले।“

यही सब कई लोगों से कहकर रघुबर यादव ने कोई सात आठ हजार रुपए तो बना ही लिए। उधर तीन चार महीने बीतने के बाद ग्राम पंचायत के नाम पर एक स्वाइप मशीन भी आ गई। बकायदा लाल फीता काटकर वहाँ के विधायक ने उस मशीन की शुरुआत की। उन्होंने किराने वाले से एक पैकेट बिस्किट खरीदा और उसका पेमेंट कार्ड से किया। फिर विधायक ने एक छोटा सा भाषण दिया, “प्यारे गाँव वालों। भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की दिशा में यह एक ठोस कदम है। अब हम देश को कैशलेस इंडिया बनाकर ही छोड़ेंगे।“

चाय वाले ने पूछा, “माननीय विधायक जी, हम एक सवाल पूछना चाहते हैं। अगर कोई आदमी हमरी दुकान से चाय पिया और उसका भुगतान इस स्वाइप मशीन से दिया तो फिर ऊ पईसा हमकों कईसे मिलेगा।“

विधायक ने कहा, “अरे उसका पैसा पहले तो सरपंच जी के खाते में जायेगा। उसके बाद सरपंच जी तुम्हारे खाते में पैसे भेज देंगे। जनधन खाता तो खुला ही होगा तुम्हारा।“

चाय वाले ने दबे सुर में कहा, “हाँ जनधन खाता तो खुला था, लेकिन चाय बेचें हम और पईसा जाये सरपंच के खाते में।“

किराने वाला भी बोल उठा, “ई सरपंच का क्या भरोसा, पईसा डालने में देर किया या कम डाला तो क्या करेंगे? दुकान में मेहनत करें हम और पईसा ले ई। मतलब हमरे दुकान से सामान खरीदने के बाद ग्राहक को भुगतान करने के लिए सरपंच के पास जाना होगा। अगर उस दिन सरपंच जिला परिषद की बैठक के लिए जिला मुख्यालय में रहा तो। या कहीं नातेदारी में गया तो? मतलब उस दिन हमरी दुकान बंद।“

पंचर की दुकान वाला भी अपनी राय रखना चाहता था। उसने कहा, “अरे आटा दाल का क्या है। कोई एक दो घंटे बाद भी खरीद सकता है। लेकिन किसी की साइकिल या मोटरसाइकिल पंचर हो गई तो फौरन बनाना पड़ता है। अब हमरे रघुबर यादव तो बिना मोटरसाइकिल के निबटने भी नहीं जाते।“

ऐसा सुनकर चाय वाले ने कहा, “उसमें का है, तब तक यहीं अहाते में निबट लेंगे।“


वहाँ बैठे बाकी लोग यह सुनकर जोर जोर से हँसने लगे। उन्हें हँसता देखकर रघुबर यादव ने एक चुनिंदा गाली पढ़ी जो लोगों को चुप कराने के लिए काफी थी। तबतक विधायक जी के लिए टेबल पर चाय और पकौड़ी सजा दी गई थी। विधायक जी ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “भईया, ई सब खाली ड्रामा है और कुछ नहीं। इस गाँव में मोबाइल का नेटवर्क तो पकड़ता नहीं है फिर स्वाइप मशीन कैसे काम करेगा। कुछ दिन की समस्या है फिर सबके पास नोट भी आ जाएँगे। उसके बाद इस मशीन को अगरबत्ती दिखाते रहना।“  

Thursday, December 1, 2016

Cash Crisis

Rahul was in deep thought. His wife; Pooja served tea and said, “I am running short on cash. The two thousand rupees which you had withdrawn last week is almost finished. We need to get more cash now. I have to pay the maidservant, the flower seller, the newspaper vendor and the person who cleans our car.”

Rahul took a deep breath and said, “Yeah, we also have to pay the house rent next week. I need fifteen thousand for house rent. When I talked to the landlord he said that he won’t be taking payment through cheque. After paying to these guys we are not going to be left with any cash.”

Pooja said, “You can withdraw only two thousand rupees from ATM but there is no guarantee of getting a success from any ATM. Most of the ATMs have not received cash for the last ten days.”

Rahul said, “Can you recall that I had to stand in queue for four hours just to withdraw two thousand rupees from the ATM that too at the mid of the night? Let me go to any nearby branch of Oriental Bank to try my luck.”  

Pooja said, “You need to hurry to get ready. Meanwhile, I will make breakfast for you.”

Rahul was ready within five minutes and was having breakfast. His wife had already kept cheque book, pass book and copies of ID proof in his bag. After finishing the breakfast, Rahul went downstairs, started his motorbike and began his journey in search of a branch where he could find some cash. He went to three branches of Oriental Bank but at each branch he saw the same notice, i.e. ‘NO CASH’.”

When he reached the fourth branch he saw some hope in the form of a long queue outside. A bank staff was also present who was trying to handle various queries from people. On Rahul’s query, he replied, “I am sorry, we cannot make you a payment because your account is not at this branch.”

Rahul said, “What is the use of computerized banking? Till date, I was under the impression that I can do banking transaction from any branch of Oriental Bank anywhere in this country because my account is with your bank.”

The bank staff rudely said, “Sir, I am helpless. We are unable to do anything as we are receiving very low amount of cash. We have decided to pay cash to those people who have accounts at this branch.”

Dejected Rahul returned to his home. After opening the door for him, Pooja shot the inevitable question, “What happened? Did you get some cash?”

Rahul just sank in the sofa with a loud thud and said, “No way. The bank staff was telling that I need to go the branch which has my account.”

Pooja said, “But your account is with a branch in Gurgaon. What will you do now?”

Rahul said, “This is the real problem for me. That branch is about fifty kilometer from this place. The fact that it is a small branch further compounds the problem. I fear to see ‘NO CASH’ notice after reaching that branch. I am thinking of trying at Connaught Place. If I am not wrong, there is a big branch of Oriental Bank in E block of Connaught Place. I am hopeful that a branch at Connaught Place would not refuse to pay me. After all, it is right in the heart of Delhi.”

Pooja said, “But it is already two O’clock. There is no use of starting for Connaught Place now. It is too late.”

Rahul said, “I am thinking of going there tomorrow. I will start at eight in the morning. I will go to Vaishali metro station. I will take the metro train for Rajiv Chowk. Let us see what is in store at Connaught Place.”

Next day, Rahul started on his mission to get some cash; at about eight in the morning. His wife packed a lunch box for him so that there would be no need to waste money on buying food. Rahul was carrying the pre-paid card of metro so he did not have to worry about spending the dwindling reserve of cash. Rahul’s purse contained only three hundred rupees. Looking at those notes, Rahul uttered, “There were good old days when the same purse used to contain at least three thousand rupees.”

Hearing that, Pooja said, “Don’t be so depressed. This is just a passing phase. Things will improve in coming days.”

It took a one hour drive to reach Vaishali metro station. After a thirty minute ride on the metro rail, Rahul reached Rajiv Chowk. When he came out of gate number seven of the metro station, he could see the familiar green sign board of Oriental Bank in front of him. Seeing no crowd outside the bank, Rahul was getting worried. There was a security guard at the entrance of the bank. The burly security guard raised his right arm to block Rahul’s path and asked, “Hey, where are you going?”

Rahul said, “Bhaiya, I need to withdraw money from my account.”

The security guard asked, “Do you have account with this branch?”

Rahul said, “No, but my account is with a branch in Gurgaon.”

Hearing that, the security guard brought some irritation in his voice and said, “Then you need to go to your branch. We have stopped paying cash to account holders from any other branch.”

Rahul said, “Bhaiya, this appears to be a small branch. But I think there is a much bigger branch of Oriental Bank at Connaught Place. Can you guide me to that branch?”

The security guard said, “Yeah, that is in the E block. But there is no use of going to that branch.”

Rahul thought that there was no harm in giving it a try. He walked towards the E block at a rapid pace. After walking for about two hundred meters, he could see the sign board of the bank. He felt more hopeful when he saw a long queue outside that branch. But his happiness was short lived once he realized that the queue was outside the ATM. Nobody appeared to be interested in going inside the bank. The security guard outside the gate told that cash was not available at the branch. When Rahul narrated his problem to the security guard, he allowed Rahul to go inside. There was a huge waiting area inside but there was not a single soul in that waiting area. After craning his neck in all directions, Rahul could see a queue of about twenty people near a counter. Rahul could also see cheque leaves in every person’s hand. Rahul went there and stood at the last position in the queue. Within a few moments, the person at the head of the queue was coming back. The sad expression on his face was enough to reveal that he was not coming with cash. Rahul asked that person, “Hey, could you find cash?”

The person replied, “No, they are not giving cash today. They are just giving token against the cheque. Tomorrow they will be giving cash against the token.”  

Rahul came out of the queue in order to enquire with the bank staff. He said to the bank staff, “Sir, I don’t have account at this branch. Can I withdraw money from this branch?”

The bank staff was showing a long face. He stared at Rahul with expressionless eyes and said, “Yeah, you can. But we are giving only ten thousand rupees to those who have account at this branch. For account holders from any other branch, we are giving only five thousand rupees. We don’t have cash right now so we are only issuing tokens. As your account is with another branch, so you can get your cash day after tomorrow.”

Rahul said, “Sir, this defeats the whole purpose of computerized banking. The government has announced that anybody can withdraw twenty four thousand rupees from his account.”

The bank staff said with all the courtesy in his voice, “Sir, we are getting so little cash that we are unable to satisfy our customers. We are trying our best to satisfy as many customers as we can. The Reserve Bank is not supplying as much cash as we really need.”

Rahul did not say a word and came back. After coming out of the bank, Rahul was feeling quite dejected. There was not much crowd at that place; which was unusual. Some young guys and girls could be seen roaming aimlessly; which they usually do. Most of the hawkers were conspicuous by their absence. Rahul sat down on a bench and filled his mouth with pan masala. After chewing on the pan masala for a while, he spat a strong jet of red saliva in the garbage bin. Then he took out his mobile phone and dialed his wife’s number. Rahul said to Pooja, “Things are equally bad even at Connaught Place. There are two branches but none of them has cash. This is horrible. When banks are Connaught Place are in this state then I shudder to think about a small branch in Gurgaon.”  

Pooja asked, “Now, what is your next plan of action?”

Rahul said, “There is no use of going to Gurgaon now. It will take me about an hour to reach Gurgaon by metro train. But my bank is about fifteen kilometers from M G Road metro station. It will take me another hour to reach there by auto-rickshaw. I will not be able to reach there before two; only to see ‘NO CASH’ notice. I am thinking of starting for Gurgaon tomorrow morning. I will go by my bike. It will save my time.”

After sitting on the bench for a few more minutes, Rahul began walking towards the gate number two of Rajiv Chowk metro station. Within a few seconds, he was inside the metro station.

After clearing the security cheque, Rahul touched the sensor with his prepaid card when the turnstile opened and Rahul crossed the last hurdle towards the next metro train. He could see queues of people near two ATMs. He was looking at those people with a touch of jealousy because Rahul’s ATM card had been blocked about two months back. There was some security breach in ATMs which resulted in more than six hundred thousand ATMs being blocked. Rahul just walked past those gleaming ATMs as if they were making faces at him.

Next day, Rahul started for Gurgaon at about seven in the morning. After about two and a half hour of a tortuous navigation through peak traffic, Rahul was parking his bike in front of his bank. There were a few people outside the bank. Rahul could easily see the ‘NO CASH’ notice outside the bank. He was at his wit’s end; unable to think anything. 

After a few seconds, he could come out of his shock and remembered that he needed to apply for ATM card and cheque book. After too much cajoling, the security guard allowed him to enter the bank. He gave the requisition slips for ATM card and cheque book to the concerned staff. After that, Rahul sat down on a chair as he needed some rest before starting his return journey. About ten minutes had passed when the bank manager announced, “We have good news. A businessman has deposited two lakh rupees just now. We are going to make cash payments to twenty people on a first come first serve basis. Each person will get five thousand rupees. You are requested to make a queue quickly.”

People meekly followed his dictum and made an impromptu queue. Rahul was among the lucky twenty who got the tokens. After taking the token, Rahul once again sat on a chair. After waiting for about one and a half hour, Rahul could finally get five thousand rupees in cash. He was confused whether to feel happy or sad after getting the money. He called his wife to share the good news and then started his motorbike to go back to his home.

When Rahul reached his home it was already half past four. His whole body was in pain. He said to his wife, “It is tough to ride a motorbike for such a long journey. While coming back, I was feeling so much pain in my legs that I felt like jumping off my bike. When I was young, I used to ride at least hundred kilometers on my bike at one go. I think I am getting old now. ”

Pooja said, “No way, you are still young. You are just a borderline case between youth and middle age. Moreover, your body has lost the habit of riding a bike for so many years. It is more attuned to the comforts of a car. It will be better if you will start taking me for a ride on your bike at least once in a week.”

Rahul said, “I am sure that this cash crunch is going to last for at least six months to come. I will have to forget my car in order to save the money. Next time, I will take you with me when I shall be going to Gurgaon to withdraw money from my bank. I can assure you that it won’t be a romantic ride at all.”


Tuesday, November 29, 2016

पैसे कहाँ से आएँगे?

राहुल गहरी चिंता में डूबा हुआ था। राहुल की बीवी ने सुबह की चाय रखते हुए कहा था, “पिछले सप्ताह तुमने जो दो हजार रुपए निकाले थे वो अब खत्म होने को हैं। इस बार ज्यादा निकालना पड़ेगा। कामवाली को पगार देनी है। फूलवाले, अखबार वाले और गाड़ी पोंछने वाले को भी पैसे देने हैं।“

राहुल ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “अरे हाँ, अगले सप्ताह तो किराया भी देना होगा। पंद्रह हजार तो किराये में ही निकल जाएँगे। मकानमालिक से बात की थी, कह रहा था कि चेक नहीं लेगा। बाकी लोगों को देने के बाद हमारे पास तो कुछ बचेगा ही नहीं।“

राहुल की बीवी ने कहा, “एटीएम से तो दो हजार ही निकलेंगे, उसकी भी गारंटी नहीं है। ज्यादातर एटीएम में कैश रहता ही नहीं है।“

राहुल ने कहा, “हाँ पिछली बार चार घंटे लाइन में लगा था तब जाकर कहीं पैसे निकाल पाया था। आज जाकर देखता हूँ कि ओरियेंटल बैंक के किसी लोकल ब्रांच से चेक से निकाल पाता हूँ या नहीं।“

राहुल की बीबी ने कहा, “तुम जल्दी से तैयार हो जाओ। तब तक मैं नाश्ता बना देती हूँ।“

थोड़ी देर बाद राहुल तैयार होकर नाश्ता करने लगा। इस बीच उसकी बीवी ने उसके बैग में चेक बुक, पास बुक और पहचान पत्र की फोटो कॉपी रख दी। राहुल नीचे उतरा, अपनी बाइक स्टार्ट की और चल पड़ा किसी ऐसे ब्रांच की तलाश में जहाँ उसे पैसे मिल सकते थे। वह तीन ब्रांच में गया लेकिन सब जगह एक ही जवाब मिला, “कैश नहीं है।“

चौथे ब्रांच के पास पहुँचकर उसने देखा कि बाहर लंबी लाइन लगी थी। उस लंबी लाइन को देखकर राहुल को कुछ उम्मीद बंधी। बाहर ही बैंक का एक स्टाफ भी खड़ा था जो लोगों के तरह तरह के सवालों के जवाब दे रहा था। राहुल के सवाल पर उसने कहा, “आय एम सॉरी। आपका खाता हमारे ब्रांच में नहीं है इसलिये हम आपको पैसे नहीं दे सकते हैं।“

राहुल ने कहा, “फिर कंप्यूटराइजेशन का क्या मतलब हुआ? माना कि मेरा खाता यहाँ नहीं है, लेकिन मैं तो हिंदुस्तान के किसी भी ब्रांच से पैसे निकाल सकता हूँ। मेरा खाता आपके ही बैंक में जो है।“

बैंक के स्टाफ ने बड़े रूखेपन से कहा, “सर, जब हमारे पास कैश ही कम आ रहा है तो इसमें हम क्या कर सकते हैं। सबसे पहले हम उन लोगों को पैसे देंगे जिनके खाते हमारे ब्रांच में है।“

राहुल निराश होकर अपने घर वापस आ गया। दरवाजा खोलते ही उसकी बीवी ने पूछा, “क्या हुआ, पैसे मिले?”

राहुल धम्म से सोफे पर बैठ गया और बोला, “अरे नहीं, बैंक वाले बता रहे हैं कि मेरा खाता जिस ब्रांच में है वहीं जाना होगा।“

राहुल की बीवी ने कहा, “लेकिन हमारा खाता तो गुड़गाँव की ब्रांच में है। अब क्या करोगे?”

राहुल ने कहा, “यही तो मुसीबत है। यहाँ से मेरा ब्रांच लगभग पचास किमी दूर है। लेकिन वह एक छोटा ब्रांच है। पता चला कि वहाँ पहुँचे तो वहाँ भी कैश न मिले। ऐसा करता हूँ कि कल कनाट प्लेस चला जाता हूँ। कनाट प्लेस के ई ब्लॉक में ओरियेंटल बैंक का एक बड़ा सा ब्रांच है। उम्मीद है कि कनाट प्लेस की ब्रांच में पैसे मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी।“

राहुल की बीवी ने कहा, “अब जाने से क्या फायदा। दो बजने जा रहे हैं।“

राहुल ने कहा, “सोच रहा हूँ कि कल सुबह आठ बजे ही कनाट प्लेस के लिये चल दूँगा। यहाँ से बाइक से वैशाली मेट्रो स्टेशन जाउँगा। फिर वहाँ से मेट्रो ट्रेन से राजीव चौक चला जाउँगा। फिर देखते हैं क्या होता है।“

अगले दिन राहुल सुबह आठ बजे के आस पास रुपये निकालने के मिशन पर निकल पड़ा। उसकी बीवी ने एक टिफिन भी दे दिया ताकि रास्ते में कुछ खरीदकर पैसे बरबाद करने की नौबत न आये। मेट्रो के प्रीपेड कार्ड में बैलेंस था ही इसलिए मेट्रो के किराये की चिंता नहीं थी। राहुल ने पर्स में तीन सौ रुपये देखकर एक मशहूर शेर कहा, “आज इतनी भी मयस्सर नहीं मयखाने में, जितनी छोड़ दिया करते थे पैमाने में।“

शेर सुनकर उसकी बीवी ने कहा, “तुम भी अजीब इंसान हो। घर में खाने को फूटी कौड़ी नहीं है और तुम्हें शेर की सूझी है।“

राहुल को अपने घर से वैशाली मेट्रो स्टेशन तक पहुँचने में एक घंटा लग गया। उसके बाद मेट्रो से लगभग पच्चीस मिनट की यात्रा के बाद वह राजीव चौक स्टेशन पहुँच गया। राजीव चौक से बाहर गेट नंबर सात से निकलते ही सामने ओरियेंटल बैंक का बोर्ड नजर आया। वहाँ पर एक भी आदमी नहीं देखकर राहुल के मन में खटका हो रहा था। गेट पर एक दरबान खड़ा था। दरबान ने अपनी दाईं बाँह फैलाकर राहुल का रास्ता रोका और पूछा, “हाँ भई, कहाँ?”

राहुल ने कहा, “भैया, पैसे निकालने हैं, चेक से।“

दरबान ने कहा, ‘आपका खाता किस ब्रांच में है?”

राहुल ने कहा, “मेरा खाता गुड़गाँव के एक ब्रांच में है।“

इसपर दरबान ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा, “तो अपने ब्रांच में जाओ। यहाँ कहाँ चले आये मुँह उठाये हुए। हमने दूसरे ब्रांच के खाताधारियों को पैसे देना बंद कर दिया है।“

राहुल ने कहा, “यहाँ पर ओरियेंटल बैंक का एक बड़ा ब्रांच भी तो है। आप बता सकते हैं कि वह किस ब्लॉक में है?”

दरबान ने कहा, “हाँ, ई ब्लॉक में है। लेकिन वहाँ जाकर भी कोई फायदा नहीं होगा।“

राहुल ने सोचा कि कोशिश करने में क्या हर्ज है। वह तेजी से चलता हुआ ई ब्लॉक की तरफ बढ़ा। लगभग दो सौ मीटर चलने के बाद उसे ई ब्लॉक के पास ओरियेंटल बैंक का ब्रांच दिखा। बाहर एक लंबी लाइन को देखकर उसे थोड़ी तसल्ली हुई। पास जाकर देखा तो वह लाइन एटीएम के बाहर लगी थी। बैंक के अंदर जाने के लिए कोई लाइन नहीं लगी थी। बैंक के गेट पर खड़े दरबान से पूछने पर पता चला कि वहाँ भी कैश नहीं था। जब राहुल ने दरबान से अपनी समस्या बताई तो उसने राहुल को अंदर जाने दिया। अंदर एक बड़ा सा वेटिंग एरिया था लेकिन वहाँ पर एक भी आदमी नहीं था। इधर उधर नजर दौड़ाने के बाद राहुल को एक काउंट के बाहर एक छोटी सी लाइन मिली जिसमें लगभग बीस लोग खड़े थे। उन सबके हाथों में चेक दिख रहा था। राहुल की उम्मीद कुछ कुछ बढ़ रही थी। वह उस लाइन में जाकर सबसे पीछे खड़ा हो गया। थोड़ी देर में लाइन में सबसे आगे खड़ा आदमी वापस लौट रहा था। उसके चेहरे पर के भाव देखकर कोई भी कह सकता था कि उसे पैसे नहीं मिले थे। राहुल ने उस आदमी से पूछा, “भाई साहब, पैसे मिल रहे हैं?”

उस आदमी ने कहा, “नहीं, आज पैसे नहीं मिल रहे हैं। ये लोग चेक लेकर टोकन दे रहे हैं। पैसे कल मिलेंगे।“

राहुल लाइन से निकलकर आगे पहुँच गया ताकि बैंक स्टाफ से जानकारी ले सके। उसने बैंक स्टाफ से कहा, “सर, मेरा खाता इस ब्रांच में नहीं है। मैं इस ब्रांच से पैसे निकाल सकता हूँ?”

बैंक के स्टाफ का मुँह लटका हुआ था। उसने भाव शून्य आँखों से कहा, “हाँ बिलकुल निकाल सकते हैं। जिनका खाता इस ब्रांच में है उन्हें हम दस हजार दे रहे हैं। जिनका खाता किसी दूसरे ब्रांच में है उन्हें हम केवल पाँच हजार दे रहे हैं। लेकिन आज हमारे पास कैश नहीं है। आज हम केवल टोकन दे रहे हैं। आपका खाता दूसरे ब्रांच में है इसलिए आपको पैसे परसों मिल पाएँगे।“

राहुल ने कहा, “सर, फिर कंप्यूटराइज्ड बैंकिंग का क्या मतलब हुआ? सरकार ने घोषणा की है कि अब कोई भी अपने खाते से चौबीस हजार तक निकाल सकता है।“

बैंक के स्टाफ ने हाथ जोड़कर कहा, “सर, हमारे पास कैश इतना कम आ रहा है कि हम अपने ग्राहकों को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं। हमारी कोशिश है कि अधिक से अधिक लोगों को थोड़े ही सही पैसे दे सकें। रिजर्व बैंक ठीक से कैश सप्लाई ही नहीं कर पा रहा है।“

राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया और वहाँ से वापस हो लिया। बैंक से निकलने के बाद राहुल बड़ा ही विक्षिप्त लग रहा था। बाहर ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी। कुछ जवान लड़के लड़की वहाँ चहलकदमी कर रहे थे, जो कि हमेशा ही करते रहते हैं। ज्यादातर फेरीवाले भी नदारद थे। राहुल एक बेंच पर बैठ गया और जेब से पान मसाला निकालकर मुँह में भर लिया। थोड़ी देर तक चबाने के बाद उसने पास रखे डस्टबिन में पीक की एक तेज धार छोड़ी। फिर उसने अपना मोबाइल फोन निकाला और अपनी बीवी का नंबर डायल किया, “यहाँ पर भी बुरा हाल है। यहाँ दो ब्रांच हैं लेकिन दोनों में से किसी के पास कैश नहीं है। सोचो, जब कनाट प्लेस का ये हाल है तो गुड़गाँव के छोटे ब्रांच में क्या होगा।“
उसकी बीवी ने कहा, “अब क्या करोगे?”

राहुल ने कहा, “अब गुड़गाँव तो कल ही जा पाउंगा। अभी जाने से कोई फायदा नहीं होगा। यहाँ से गुड़गाँव तो मेट्रो से आसानी से पहुँच जाउँगा। लेकिन एम जी रोड मेट्रो स्टेशन से मेरे बैंक का ब्रांच चौदह पंद्रह किलोमीटर दूर है। वहाँ से ऑटो से जाने में कम से कम एक घंटा लगेगा। वहाँ पहुँचते पहुँचते दो बज जाएँगे। पहुँचने पर पता चला कि वहाँ भी कैश खत्म हो चुका है। अब कल सुबह सात बजे बाइक से गुड़गाँव के लिये निकल लूँगा।“


थोड़ी देर बाद राहुल बोझिल कदमों से चलता हुआ गेट नम्बर दो से राजीव चौक मेट्रो स्टेशन के लिये जमीन के नीचे उतरने लगा। 

राजीव चौक पर सिक्योरिटी चेक के बाद राहुल ने अपना प्रीपेड कार्ड सेंसर के पास लगाया तो टर्न्सटाइल खुल गया और राहुल अंदर चला गया। उसने दाहिनी ओर देखा कि दो एटीएम के पास लंबी लाइनें लगी थीं। वह भीतर ही भीतर आत्मग्लानि से त्रस्त था क्योंकि उसके पास जो एटीएम था वह दो महीने पहले ही ब्लॉक हो चुका था। एटीएम को देखकर राहुल मन मसोसकर रह गया और तेजी से ट्रेन पकड़ने आगे बढ़ गया।

अगले दिन राहुल सुबह सुबह ही गुड़गाँव के लिये चल पड़ा। लगभग दो घंटे की थका देने वाली ड्राइव के बाद आखिरकार वह अपने बैंक के पास पहुँच गया। वहाँ पर ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। पास जाकर उसने देखा कि नो कैशनोटिस चिपका हुआ था। राहुल मन मसोसकर रह गया। फिर भी उसने सोचा कि एटीएम और चेक बुक के लिए आवेदन दे दे। गार्ड से बड़ी मिन्नत करने के बाद राहुल को बैंक के अंदर प्रवेश करने में सफलता मिली। उसने एटीएम और चेकबुक के लिए आवेदन दे दिया। उसके बाद थोड़ा सुस्ताने के लिए वह वहीं एक कुर्सी पर बैठ गया। लगभग पंद्रह मिनट के बाद बैंक के एक मैनेजर ने एक घोषणा की, “अभी अभी हमारे पास किसी बिजनेसमैन का एक लाख का डिपॉजिट आया है। इसलिए मैं केवल बीस लोगों को पेमेंट कर सकता हूँ वो भी पाँच हजार प्रति व्यक्ति को। आप जल्दी से लाइन में लग जाएँ।“


लोग आनन फानन में लाइन में लग गये। राहुल उन किस्मत वालों में से था जिन्हें टोकन मिल पाया। उसके बाद लगभग एक डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद राहुल को पाँच हजार रुपये मिल ही गये। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि खुश हो या दुखी हो। उसने अपनी बीवी को फोन करके शुभ समाचार दिया और फिर वापस अपने घर की ओर चल पड़ा। 


Harsh Reality of Notebandi

All the TV channels are flashing news that RBI has increased the limit of withdrawal to Rs. 24,000. Another update says that for deposit after 29th November, no such limit exists and one can withdraw any amount of money from account. This means that people who get salaries in their accounts shall be able to withdraw their whole salary at one go. But reality is quite different.

I have recently shifted to Ghaziabad. I have account at a branch of Oriental Bank of Commerce and the branch is in Gurgaon. The location of the branch is about 60 km from my current residence. This appeared to be normal because of the facility of computerised banking. But things have changed for worse after demonetization.

I tried to withdraw money from three branches of OBC at Gahziabad but all of them refused. They said that they were allowing only those people who have accounts at their branches. I decided to go to Connaught Place because of many reasons. The branch at CP is a huge one. This is in the heart of Delhi; the capital of India. So, I had all the hopes of getting money from that branch.

There are two branches; one is in A block and another is in E block of CP. The branch in A block is a smaller one. The security guard did not allow me to enter the bank premises. He said that I should go to the branch where my account is. After that, I went to the E block branch. After some cajoling, the guard allowed me to enter the bank. There was a long queue in front of one counter. The bank staff was taking cheques from people. He told that he would be happy to give me the money. But there was a condition. He said that people with their account at that branch shall be given Rs. 10000 and people with accounts at any other branch of OBC shall be given only Rs. 5000. He further told that he shall be issuing tokens to everyone but the money shall be given after two days. He was diligently jotting down the names and cheque numbers in a register while issuing tokens.

This is ridiculous at its best. This is the reality of the capital city of India. This is making a mockery of computerisation in all the banks. This is making a mockery of personal freedom and right to live with dignity. Many people will say that I should go cashless. I am already cashless because I am not left with any cash. I can do monthly shopping for groceries by card, I have paid the maintenance charge by cheque, shall be paying school fees by cheque. But my landlord is not willing to accept payment through cheque. My maid does not want a cheque or online payment because she does not get spare time to stand in queue. The flower vendor and newspaper vendor have also refused to accept payment by cheque or mobile phones because they also need cash for petty expenses.

Most of the people who were returning empty handed from the bank were feeling disgusted, depressed and were angry. But nobody was raising his voice. This can happen to anybody. When you are down because of low level of resources, you don't get the energy to fight against anything. To illustrate this, I would like to recall an interesting story from Panchatantra.

There was a hermit who was living in a small hut. He used to get many gifts, food and gold coins from his clients. After eating the food, he used to keep the remaining food in a pot and the pot was suspended from a rope which was slung very high; almost near the roof. Every night, a rat had developed a strange habit of jumping to the pot to steal the food. The hermit was puzzled because it was quite abnormal for a tiny rat to jump so high. One day, a friend of hermit had stopped for a night stay with him. When the hermit narrated the story of the rat to his friend, the friend was able to solve the puzzle.

Both of them dug the rat hole. To their amazement, they found a huge lump of gold under the hole. The friend of hermit said that the rat was getting all the confidence and energy to jump so high because of the huge amount of wealth he was sitting on. Once the lump of gold was removed from the site, the rat was no longer able to jump so high and peace returned for the hermit.

The common people of India are suffering the plight of the rat. Whatever small trinkets were there with the common people have been sucked up by the government machinery. The poor guys have no energy or confidence left to raise their voice. They are just simmering with the discontent of living a life of abject dejection and depression. It is difficult to predict how long all of this is going to last.

If the situation is so bad in the capital of the country, you can imagine the situation in the hinterland. 

Saturday, November 26, 2016

Migrant Go Back

The moment Bujhaavan pulled up the shutter of his shop, a strong whiff of rotten vegetables shattered the olfactory receptors in their noses. Bujhaavan’s wife; Lalita covered her nose with her dupatta but could not stop a strong bout of coughing. When she was through with a round of coughing, she just wailed in anguish, “Oh my God! Look at this! Our shop is devastated. Almost all the vegetables have rotten completely.”

Lalita started to wail uncontrollably. Bujhaavan was trying to console her. Their son and daughter were looking at them with a sense of bewilderment. Bujhaavan could muster up some courage to say, “Don’t worry. Have faith on me. I will once again bring our life back on rail.”

After opening his shop, Bujhaavan sat on the steps. He was sitting on his haunches; with his head resting on his palms. His wife was filling plastic crates with rotten vegetables; in order to clean the shop. Her son (who is about 12 years old) was helping her. Her five year old daughter was playing with an orange as if it was a ball. After looking at Bujhavans’s gesture and posture, anybody could easily tell that he was not enjoying the sunshine on a winter morning rather he was feeling highly dejected.

Bujhaavan was spotted by Rahul. Rahul was a regular customer for Bujhaavan. Rahul works as software developer in an MNC. He is quite friendly with most of the people and does not mind talking to people even from the lower strata of socio-economic ladder. Looking at Bujhaavan, Rahul said, “Hey, Bujhaavan! What happened? Your shop was not being opened since so many days. Is everything alright? Anybody is sick?”

Hearing that, Bujhaavan raised his hands over his head to offer a silent Namaste and said, “No Sahib, nobody was sick. I was just getting negligible customers on a daily basis so there was no other way out. It was better to keep the shop shut.”

Rahul sat beside Bujhaavan and said, “Don’t be a pessimist. I know that sales have suffered a bit. But it is a short term dip. Everything would improve in the long run. A bright future awaits all of us. Have people stopped buying vegetables?”

Bujhaavan gave a wry smile and said, “Yeah, you are right. Earlier, you used to buy at least one kg of cauliflower at one go. But now, you are not buying more than one-fourth of a kg. Earlier, you used to buy at least two litres of milk on a daily basis. Now, I have seen you carrying a half litre pack only. Sir, I have to think about paying my rents. Add the electricity bill to it. Keeping the shutter down would at least help in saving on electricity bill. Nobody has cash so everybody is cutting on spending. I had to stand in queue for four days. After that, I became successful in depositing my money in my account. Now, they are not allowing us to withdraw the money.  The bank on the other side of the road has not received cash after the nineteenth November. How do I buy fresh stock? I need at least twenty thousand but ATM is just giving two thousand.”

Rahul took out a cigarette and offered another to Bujhaavan. After lighting up their cigarettes, Rahul took a long puff of nicotine enriched smoke and said, “Don’t worry my friend. You must know about the great work being done by our government. It has changed everything in one stroke. Now, every transaction is going to be online; through internet. You can make all your transactions through your mobile phone. For the time being, you can use check or DD to pay your suppliers. Haven’t you heard what the Finance Minister had said a couple of days ago?”

Bujhaavan exhaled a sharp jet of smoke towards the ground and said, “Do you know my landlord? He appears to be highly educated. When he refuses to take payment through cheque, then what do you expect from farmers who come to sell in mandi. Even the wholesalers in the mandi are refusing cheques now-a-days. One of them was telling that he does not have time to stand in queue just to deposit cheques. Our Finance Minister was talking about DD. Is he going to pay for the commission on DD? Cannot he see the huge crowd in front of every bank? Which staff in a bank is free to make a demand draft?”  

Bujhaavan was unable to dampen the optimistic spirit in Rahul. Rahul said, “You already own a smartphone; if I am not wrong. I have seen you forwarding messages. Making a payment is as easy as forwarding an MMS.”

Bujhaavan said, “I know that if I make a typo error while using WhatsApp then it is not going to make a difference. But if I will repeat the same mistake in my bank account then I will lose my hard-earned money. What happens when someone steals my password? Sahib, we are much smaller in size. We are not in a position to withstand such shocks. To add insult to my injury, the landlord has created a new problem for me.”

Rahul asked, “What happened?”

Bujhaavan said, “I had been to meet my landlord. When I told him that I am not in a position to pay my rents for the next couple of months, he handed an eviction notice to me. My shop has a good client base but he is hell bent to destroy my business. It takes years to establish a business at a new place.”

Rahul said, “Why don’t you set up your shop on the sidewalk. You can shift later to a new shop after finding a suitable place.”

Bujhaavan said, “It is more difficult to do business on the sidewalk. One needs to bribe the police. The local muscleman also takes his share. There is additional risk of theft. I was able to protect my dignity by keeping a shop in this shopping complex. I have enquired in nearby shopping complexes, but there is no vacancy. A shop is vacant near another apartment but they are asking for a hefty advance.”

Rahul said, “Your shop must be quite old; at least five or six years old. I think it is as old as this apartment. You must have saved enough money by now. You can easily pay the advance.”

Bujhaavan said, “I also overestimate people who live in high rise apartments. But you are underestimating my expenses. I need to pay eight thousand as rent for this shop and at least two thousand as electricity bill. The beat constable takes one thousand and the municipality staff takes five hundred. I need to pay at least five thousand in a year as donations for pooja and bhandara. A stray food inspector may rob me off a couple of thousands in a year. I pay two thousand as house rent and pay one thousand five hundred as school fees. Now, you can easily calculate that I hardly earn enough to make a saving. Nevertheless, I have saved about one lakh fifty thousand during this period. I was planning to buy a small plot. But even a fifty yard plot is costing around seven lakh in this area.”

Rahul said, “Don’t worry, everything would be alright. The moment we shift to cashless economy, no food inspector is going to disturb you.”

Bujhaavan laughed and said, “Don’t underestimate an illiterate person who is in business for so many years. When everything will happen through account then I will get another set of greedy officials to satiate. The guys from sales tax and income tax would be my new tormentors. My hands were already full with constable and muscleman. You mean to say that I need to increase my business related expenses. I need to pay taxes as well as hefty fees to the chartered accountant. Wonderful.”

Rahul asked, “What have you thought of future?”

Bujhaavan said, “I don’t plan for future. Let us leave it to the almighty. But the present is looking scary. All the vegetables have rotten; setting me back with huge loss. I am not left with enough strength to stand on my feet. Add the ultimatum of my landlord to this. I am packing my bag and baggage; to go back to my village. I will once again work in the farms; the way I did it when I was much younger. Farm work comes for only four months in a given year. But I will have the solace to be with my own people. It is better to die peacefully in my own village than facing the endless agony in this big city. I migrated to this city in search of better opportunity. I had dreamt of a better life for my children. Now, I can only look at a blank screen ahead of me.”


घर वापसी

बुझावन की दुकान आज लगभग बीस पच्चीस दिनों बाद खुली थी। वह अपनी दुकान के बाहर धूप में बैठा था। लेकिन उसने जिस तरह से अपने झुके हुए सिर को अपनी हथेलियों से संभाला हुआ था उससे जाहिर होता था कि वह जाड़े की धूप का आनंद नहीं उठा रहा था बल्कि गहरी चिंता में था। दुकान के अंदर उसकी बीबी संड़ी-गली सब्जियों को छाँट रही थी। उस सड़ांध से उठे भभके से बचने के लिए उसने अपने आँचल को नाक के ऊपर कसकर बाँधा हुआ था। उसका दस बारह साल का बेटा इस काम में उसका हाथ बँटा रहा था। पास में ही उसकी पाँच छ: साल की बेटी एक संतरे को गेंद बनाकर खेल रही थी।

बुझावन का एक पुराना ग्राहक होने के नाते मैने उससे पूछा, “क्या हुआ? कहाँ थे इतने दिन? बहुत दिनों से दुकान नहीं खुली थी। किसी की तबीयत तो नहीं खराब हो गई थी?”

बुझावन ने मुझे देखते ही अपने जुड़े हाथों को अपने सिर के ऊपर कर लिया जैसे नमस्कार करना चाहता हो, और बोला, “अरे नहीं साहब, कौनो तबीयत उबियत खराब नहीं हुई। ग्राहक ही नहीं आ रहे थे इसलिए दुकान बंद करना पड़ा।“

मैने पूछा, “क्या बात करते हो भैया? माना कि बिक्री थोड़ी कम हुई होगी लेकिन हमलोग थोड़ा बहुत सामान तो खरीद ही रहे हैं।“

बुझावन ने कहा, “क्या बताएँ साहब, थोड़े बहुत ग्राहक से तो दुकान का भाड़ा भी नहीं निकलेगा। फिर पूरे दिन दुकान खोलकर रहने से बिजली का बिल भागेगा सो अलग। लोगों के पास नोट हैं ही नहीं जो खरीदेंगे कुछ। शुरु के तीन चार दिन तो बैंकों की लाइन में लग गये और उस चक्कर में दुकान बंद करना पड़ा। जब सारे पैसे खाते में जमा कर दिया तो अब बैंक वाले निकालने ही नहीं देते। रोड के सामने वाले बैंक में तो पिछली उन्नीस तारीख के बाद से कैश आया ही नहीं है। अब ताजी सब्जियाँ खरीदूं तो कैसे?”

मैने कहा, “अरे इसमे इतना परेशान होने की क्या जरूरत है? तुम्हें पता नहीं है कि इस सरकार ने कितना अच्छा काम किया है। अब सबकुछ ऑन लाइन होगा, मतलब इंटरनेट से। तुम रुपये की लेन देन अपने मोबाइल फोन से कर सकते हो। तुम्हारे खाते में पैसे जमा हो गये हैं तो चेक से पेमेंट कर दो।“

बुझावन ने कहा, “साहब यहाँ इतना पढ़ा लिखा मकान मालिक तो किराया चेक से लेता ही नहीं है और आप मंडी में आये किसानों की बात कर रहे हो। आजकल तो आढ़तिये भी चेक लेने से मना कर रहे हैं। कहते हैं, कौन जायेगा लाइन में लगने। अभी तो चेक जमा कराने में भी चार-चार घंटे लाइन में लगना पड़ता है।“

मैने कहा, “तुम्हारे पास स्मार्टफोन तो है ही। मैने देखा है तुम उसपर सारा दिन फोटो देखते रहते हो। उससे पेमेंट कर दो। बड़ा आसान है।“

बुझावन ने कहा, “साहब, व्हाट्स ऐप करने में कोई गलती टाइप हो जाये तो क्या फर्क पड़ता है। खाते में ऐसा हुआ तो पता चला मेरी पूरी जमा पूँजी चली गई। और कोई मेरा पासवर्ड चुरा लिया तो फिर जुलुम हो जायेगा। हम छोटे आदमी हैं, उतनी बड़ी चपत थोड़े न झेल पाएँगे। ऊपर से एक और नई मुसीबत सर पर आ गई है।“

मैने पूछा, “अब क्या हुआ?”

बुझावन ने कहा, “मकान मालिक के पास गया था। जब उसे बताया कि एक दो महीने किराया नहीं दे पाउँगा तो उसने दुकान खाली करने की नोटिस दे दी। अब जमी जमाई दुकान थी, उजड़ जायेगी। नई जगह पर जमने में तो सौ फेरे हैं।“

मैने कहा, “कुछ दिन के लिए बाहर फुटपाथ पर लगा लो। इस बीच कोई दूसरी दुकान आस पास ही खोज लेना।“

बुझावन ने कहा, “फुटपाथ पर दुकान चलाना तो और मुश्किल है। पुलिस को हफ्ता देने के साथ साथ मुहल्ले के रंगदार को भी देना पड़ता है। फिर रात में चोरी चकारी का भी डर रहता है। इस शॉपिंग कम्प्लेक्स में इज्जत से दुकान चलती थी। आस पास पता किया है, कोई दुकान खाली नहीं है। एक खाली भी है तो पगड़ी इतना अधिक मांग रहा है कि पूछो मत।“

मैने कहा, “क्या बात कर रहे हो। तुम्हारी तो पाँच छ: साल पुरानी दुकान है। जब से यह अपार्टमेंट बना है तब से। इतने पैसे तो जमा किये ही होंगे। पगड़ी तो दे ही सकते हो।“

बुझावन ने कहा, “अरे कहाँ साहिब, आठ हजार तो ई दुकान का किराया है और दो हजार बिजली बिल लगता है। एक हजार कांस्टेबल को और पाँच सौ यहाँ के रंगदार को। साल में चार पाँच हजार से अधिक तो पूजा और भंडारा का चंदा देने में चला जाता है। कभी कभार अगर फ़ूड इंस्पेक्टर टहलते हुए आ गया तो उसे भी एक दो हजार देने पड़ते हैं। मेरे घर का किराया दो हजार है और मेरे बेटे के स्कूल में पंद्रह सौ रुपये फीस है। उसके बाद बचता कहाँ है। हाँ एक डेढ़ लाख रुपये जोड़ के रखे थे। सोचा था छोटा सा प्लॉट ले लूँगा। लेकिन आजकल तो पचास गज का भी लेने में सात आठ लाख लग जाते हैं।“

मैने कहा, “अब सब कुछ ठीक हो जायेगा। जैसे ही कैशलेस इकॉनोमी बन जायेगी फिर कोई तंग नहीं करेगा।“

बुझावन ने कहा, “अब हमको इतना भी मूरख ना समझो साहब। जब सब कुछ खाते से होगा तो फिर सेल्स टैक्स और इनकम टैक्स वालों को भी चढ़ावा देना पड़ेगा। अब तक ये पुलिस वाले और रंगदार ही क्या कम थे? पाँच साल से दुकान चला रहा हूँ, इतनी समझ है। टैक्स भी भरो और सीए को भी फीस दो।“

मैने कहा, “तो अब क्या प्लान है? आगे क्या करना है?”


बुझावन ने कहा, “अब आगे का तो ऊपर वाला जाने। सारी सब्जियाँ संड़ गई हैं। जबरदस्त नुकसान हुआ है। अब ई हालत में नहीं हैं कि उठकर खड़े हो पाएँ। ऊपर से मकान मालिक का अल्टिमेटम। अब दुकान दौड़ी समेटकर गाँव वापस चले जाएँगे। पहले की तरह खेत में काम करेंगे; साल के तीन चार महीने ही सही। कुछ ऊँच नीच होगा तो फिर अपना समाज तो है ही वहाँ। सोचा था कि शहर जाकर कम से कम अपने बच्चों का भविष्य तो सुधार पाउँगा, लेकिन अब तो आगे अंधेरा ही दिखता है।“ 

Tuesday, November 22, 2016

कुछ दिन तो गुजारिये कतार में

जब तक पूरा देश है मझधार में
कुछ दिन तो गुजारिये कतार में।

क्या रक्खा है नोटों के इस जंजाल में
हरे, नीले और गुलाबी मायाजाल में
हमने सबकुछ छोड़ दिया संसार में
आप भी तो आ जाइये मेरे भंवरजाल में
कुछ दिन तो गुजारिये कतार में।

तुम क्या लेके आये थे
क्या लेके जाओगे
जो लिया यहाँ से लिया
इसलिए सब कुछ जमा कीजिए सरकार में
कुछ दिन तो गुजारिये कतार में।

क्या रखा है पुरानी रेल की सीत्कार में
क्या रखा है मरने वालों की चीत्कार में
असली मजा है बुलेट की रफ्तार में
कुछ दिन तो गुजारिये कतार में।